वर्मी कंपोस्ट FULL JAANKARI

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  • वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) का गाँवों में उत्पादन







वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधियाँ





  1. सामान्य विधि (General method)

  2. चक्रीय चार हौद विधि (Four-pit method)

  3. केंचुआ खाद बनाने की चरणबद्ध विधि








सामान्य विधि (General method)


वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए इस विधि में क्षेत्र का आकार (area) आवश्यकतानुसार रखा जाता है किन्तु मध्यम वर्ग के किसानों के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्र पर्याप्त रहता है। अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेन्ट तथा इटों से पक्की क्यारियां (Vermi-beds) बनाई जाती हैं। प्रत्येक क्यारी की लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी0 रखते हैं। 100 वर्गमीटर क्षेत्र में इस प्रकार की लगभग 90 क्यारियां बनाइ र् जा सकती है। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर टटि्‌टयों से हरे नेट से ढकना अत्यन्त आवश्यक है।

क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ घास,सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढ़रे बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेऱ को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप (Partially decomposed ) में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। अधगले कचरे को क्यारियों में 50 से.मी. ऊँचाई तक भर दिया जाता है। कचरा भरने के 3-4 दिन बाद पत्तियों की क्यारी में केंचुऐं छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है।

चक्रीय चार हौद विधि (Four-pit method)


इस विधि में चुने गये स्थान पर 12’x12’x2.5’(लम्बाई x चौड़ाई x ऊँचाई) का गड्‌ढा बनाया जाता है। इस गड्‌ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। प्रत्येक क्यारी का आकार लगभग 5.5’ x 5.5’ x 2.5’ होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों (9 इंच) की बनाई जाती है। विभाजक दीवारों में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़ जाते हैं। इस प्रकार की क्यारियों की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है।

इस विधि में प्रत्येक क्यारी को एक के बाद एक भरते हैं अर्थात पहले एक महीने तक पहला गड्‌ढा भरते हैं पूरा गड्‌ढा भर जाने के बाद पानी छिड़क कर काले पॉलीथिन से ढक देते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाये। इसके बाद दूसरे गड्‌ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। दूसरे माह जब दूसरा गड्‌ढा भर जाता है तब ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्‌ढे में भरना आरम्भ कर देते हैं। इस समय तक पहले गड्‌ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है। एक दो दिन बाद जब पहले गड्‌ढे में गर्मी (heat) कम हो जाती है तब उसमें लगभग 5 किग्रा0 (5000) केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गड्‌ढे को सूखी घास अथवा बोरियों से ढक देते हैं। कचरे में गीलापन बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहते है। इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्‌ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं और चौथे को गड्‌ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्‌ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्‌ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से अपने आप प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआ खाद बनना आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्‌ढे भर जाते हैं। इस समय तक पहले गड्‌ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके हैं केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाती है। इस गड्‌ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्‌ढे में धीरे-धीरे  बीच की दीवारों में बने छिद्रों द्वारा प्रवेश कर जाते हैं। अब पहले गड्‌ढे से खाद निकालने की प्रक्रिया आरम्भ की जा सकती है। खाद निकालने के बाद उसमें पुन: कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्यके गड्‌ढे में एक बार में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 कुन्तल खाद (70 प्रतिशत) बनकर तैयार होती है। इस प्रकार एक वर्ष में चार गड्‌ढों से तीन चक्रों में कुल 84 कुन्तल खाद (4x3x7) प्राप्त होती है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्‌ढे से 25 किग्रा0 और 4 गड्‌ढों से कुल 100 किग्रा0 केंचुए भी प्राप्त होते हैं।

केंचुआ खाद बनाने की चरणबद्ध विधि


केंचुआ खाद बनाने हेतु चरणबद्ध निम्न प्रक्रिया अपनाते हैं।

चरण-1






कार्बनिक अवशिष्ट/ कचरे में से पत्थर,काँच,प्लास्टिक, सिरेमिक तथा धातुओं को अलग करके कार्बनिक कचरे के बड़े ढ़ेलों को तोड़कर ढेर बनाया जाता है।

चरण–2

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मोटे कार्बनिक अवशिष्टों जैसे पत्तियों का कूड़ा, पौधों के तने, गन्ने की भूसी/खोयी को 2-4 इन्च आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इससे खाद बनने में कम समय लगता है।

चरण–3






कचरे में से दुर्गन्ध हटाने तथा अवाँछित जीवों को खत्म करने के लिए कचरे को एक फुट मोटी सतह के रुप में फुलाकर धूप में सुखाया जाता है।

चरण–4






अवशिष्ट को गाय के गोबर में मिलाकर एक माह तक सड़ाने हेतु गड्डों में डाल दिया जाता है। उचित नमी बनाने हेतु रोज पानी का छिड़काव किया जाता है।

चरण–5






केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम फर्श पर बालू की 1 इन्च मोटी पर्त बिछाकर उसके ऊपर 3-4 इन्च मोटाई में फसल का अवशिष्ट/मोटे पदार्थों की पर्त बिछाते हैं। पुन: इसके ऊपर चरण-4 से प्राप्त पदार्थों की 18 इन्च मोटी पर्त इस प्रकार बिछाते हैं कि इसकी चौड़ाई 40-45 इन्च बन जाती है। बेड की लम्बाई को छप्पर में उपलब्ध जगह के आधार पर रखते हैं। इस प्रकार 10 फिट लम्बाई की बेड में लगभग 500 कि.ग्रा. कार्बनिक अवशिष्ट समाहित हो जाता है। बेड को अर्धवृत्त प्रकार का रखते हैं जिससे केंचुए को घूमने के लिए पर्याप्त स्थान तथा बेड में हवा का प्रबंधन संभव हो सके। इस 17 प्रकार बेड बनाने के बाद उचित नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहते है तत्पश्चात इसे 2-3 दिनों के लिए छोड़ देते हैं।

चरण–6

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जब बेड के सभी भागों में तापमान सामान्य हो जाये तब इसमें लगभग 5000 केंचुए / 500 0ग्रा0 अवशिष्ट की दर से केंचुआ तथा कोकून का मिश्रण बेड की एक तरफ से इस प्रकार डालते हैं कि यह लम्बाई में एक तरफ से पूरे बेड तक पहुँच जाये।

चरण–7






सम्पूर्ण बेड को बारीक / कटे हुए अवशिष्ट की 3-4 इन्च मोटी पर्त से ढकते हैं, अनुकूल परिस्थितयों में केंचुए पूरे बेड पर अपने आप फलै जाते हैं। ज्यादातर केंचुए बेड में 2-3 इन्च गहराई पर रहकर कार्बनिक पदार्थों का भक्षण कर उत्सर्जन करते रहते हैं।

चरण–8

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अनुकूल आर्द्रता, तापक्रम तथा हवामय परिस्थितयोंमें 25-30 दिनों के उपरान्त बडै की ऊपरी सतह पर 3-4 इन्च मोटी केंचुआ खाद एकत्र हो जाती हैं। इसे अलग करने के लिए बेड की बाहरी आवरण सतह को एक तरफ से हटाते हैं। ऐसा करने पर जब केंचुए बेड में गहराई में चले जाते हैं तब केंचुआ खाद को बडे से आसानी से अलग कर तत्पश्चात बेड को पुनः पूर्व की भाँति महीन कचरे से ढक कर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव कर देते हैं।

चरण–9






लगभग 5-7 दिनों में केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी एक और पर्त तैयार हो जाती है। इसे भी पूर्व में चरण-8 की भाँति अलग कर लेते हैं तथा बेड में फिर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव किया जाता है।

चरण–10






तदोपरान्त हर 5-7 दिनोंके अन्तराल में अनुकूल परिस्थतियों में पुन: केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी पर्त बनती है जिसे पूर्व में चरण-9 की भाँति अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार 40-45 दिनोंमें लगभग 80-85 प्रतिशत केंचुआ खाद एकत्र कर ली जाती है।

चरण–11






अन्त में कुछ केचुआ खाद केंचुओं तथा केचुए के अण्डों (कोकूनद) सहित एक छोटे से ढेर के रुप में बच जाती है। इसे दूसरे चक्र में केचुए के संरोप के रुप में प्रयुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार लगातार केंचुआखाद उत्पादन के लिए इस प्रि क्रया को दोहराते रहते हैं।

चरण–12






एकत्र की गयी केंचुआ खाद से केंचुए के अण्डों अव्यस्क केंचुओं तथा केंचुए द्वारा नहीं खाये गये पदार्थों को 3-4 से.मी. आकार की छलनी से छान कर अलग कर लेते हैं।

चरण–13






अतिरिक्त नमी हटाने के लिए छनी हुई केचुआ खाद को पक्के फर्श पर फैला देते हैं। तथा जब नमी लगभग 30-40 प्रतिशत तक रह जाती है तो इसे एकत्र कर लेते हैं।

चरण–14






केंचुआ खाद को प्लास्टिक/एच0 डी0 पी0 ई0 थैले में सील करके पैक किया जाता है ताकि इसमें नमी कम न हो।

 

वर्मीकम्पोस्ट बनाते समय ध्यान रखने योग्य बातें

कम समय में अच्छी गुणवत्ता वाली वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए निम्न बातोंपर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है ।

1. वर्मी बेडों में केंचुआ छोड़ने से पूर्व कच्चे माल (गोबर व आवश्यक कचराद्) का आंशिक विच्छेदन (Partial decomposition) जिसमें 15 से 20 दिन का समय लगता है करना अति आवश्यक है।

2. आंशिक विच्छेदन की पहचान के लिए ढेऱ में गहराई तक हाथ डालने पर गर्मीं महसूस नहीं होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में कचरे की नमीं की अवस्था में पलटाई करने से आंशिक विच्छेदन हो जाता है।

3. वर्मी बेडों में भरे गये कचरे में कम्पोस्ट तैयार होने तक 30 से 40 प्रतिशतनमी बनाये रखें। कचरें में नमीं कम या अधिक होने पर केंचुए ठीक तरह से कार्य नही करतें।

4. वर्मीवेडों में कचरे का तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस रहना अत्यन्त आवश्यक है। वर्मीबेडों पर तेज धूप न पड़ने दें। तेज धूप पड़ने से कचरे का तापमान अधिक हो जाता है परिणामस्वरूप केंचुए तली में चले जाते हैं अथवा अक्रियाशील रह कर अन्ततः मर जाते हैं।

5. वर्मीबेड में ताजे गोबर का उपयोग कदापि न करें। ताजे गोबर में गर्मी (Heat) अधिक होने के कारण केंचुए मर जाते हैं अतः उपयोग से पहले ताजे गोबर को 4व 5 दिन तक ठण्डा अवश्य होने दें।

6. केंचुआखाद तैयार करने हेतु कार्बि नक कचरे में गोबर की मात्रा कम से कम 20 प्रतिशत अवश्य होनी चाहिए।

7. कांग्रेस घास को फूल आने से पूर्व गाय के गोबर में मिला कर कार्बनिकपदार्थ के रूप में आंशिक विच्छेदन कर प्रयोग करने से अच्छी केंचुआ खाद प्राप्त होती है।

8. कचरे का पी. एच. उदासीन (7.0 के आसपास) रहने पर केंचुए तेजी से कार्य करते हैं अतः  वर्मीकम्पोस्टिंग के दौरान कचरे का पी. एच. उदासीन बनाये रखे। इसके लिए कचरा भरते समय उसमें राख (ash) अवश्य मिलाएं।

9. केंचुआ खाद बनाने के दौरान किसी भी तरह के कीटनाशकों का उपयोग न करें।

10. खाद की पलटाई या तैयार कम्पोस्ट को एकत्र करते समय खुरपी या फावडे़ का प्रयोग कदापि न करें।



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वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) का गाँवों में उत्पादन





  1. परिचय

  2. वर्मी कम्पोस्ट क्या है?

  3. केंचुआ खाद तैयार करने के लिए कौन-कौन प्रजातियाँ प्रयोग में लायी जाती है?

  4. केंचुआ खाद में विभिन्न तत्वों की मात्रा

  5. केंचुए खाद निर्माण कैसे करें?

  6. केंचुआ खाद को रखने का तरीका

  7. केंचुआ खाद की प्रयोग – विधि

  8. केंचुआ खाद प्रयोग करने से लाभ

  9. वर्मी कम्पोस्ट से आर्थिक लाभ






परिचय


आज की सधन खेती के युग में भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने के लिए प्राकृतिक खादों में गोबर की खाद, कम्पोस्ट एवं हरी खाद मुख्य है। कम्पोस्ट बनाने के लिए फसल के अवशेष, पशुशाला का कूड़ा –करकट व गोबर को गड्ढे में गलाया व सड़ाया जाता है। इस प्रक्रिया में ज्यादा समय लगता है तथा पोषक तत्वों का भी नुकसान होता है। साधारण कम्पोस्टिंग प्रक्रिया में ज्यादा समय लगने के कारण पर्यावरण भी दूषित होता है। पिछले कुछ सालों से कम्पोस्ट बनाने की एक नई विधि विकसित की गई है जिसमें केंचुआ का प्रयोग किया जाता है। इसे “केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट” कहते है। केंचुआ खाद प्लास्टिक, शीशा, पत्थर के अलावा किसी भी चीज जैसे कूड़ा-करकट, फसल-अवशेष, गोबर, जूट के सड़े हुए बोरे आदि से बड़ी आसानी से बनाया जा सकता है।

वर्मी कम्पोस्ट क्या है?


केंचुआ भूमि में अपना महत्वपूर्ण योगदान भूमि सुधारक के रूप में देता है। इनकी क्रियाशीलता मिट्टी में स्वत: चलती रहती है। प्राचीन समय में केंचुए प्राय: भूमि में पाये जाते थे तथा वर्षा के समय भूमि पर देखे जाते थे। परन्तु आधुनिक खेती में अधिक रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के लगातर प्रयोग से केंचुओं की संख्या में भारी कमी आई है, जिससे भूमि में केंचुए नहीं पाये जाते। इससे यह स्पष्ट होता है कि केंचुए की कमी के साथ मिट्टी अब अपनी उर्वरा शक्ति खो रही है।

केंचुआ मिट्टी में पाये जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है। ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गुजारते हैं, जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते है और अपने शरीर से बाहर छोटी-छोटी कास्टिंगस के रूप में निकालते है। इसी कम्पोस्ट को केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है। केंचुओं के उपयोग से व्यापारिक स्तर पर खेत पर ही कम्पोस्ट बनाया जाना संभव है। इस विधि द्वारा कम्पोस्ट मात्र 45 से 75 दिनों में तैयार हो जाता है। यह खाद बहुत ही प्रभावशाली होती है तथा इसमें पौधों के लिए पोषक तत्व भरपूर मात्रा में मौजूद होते है तथा पौधे इनको तुरंत ग्रहण कर लेते हैं।

केंचुआ खाद तैयार करने के लिए कौन-कौन प्रजातियाँ प्रयोग में लायी जाती है?


विश्व के विभिन्न भागों में 4500 प्रजातियाँ बताई जा चुकी है। आज केंचुए की कुछ प्रजातियाँ विकसित कर ली गई है, जिनको पाकर किसान प्रतिदिन के कूड़ा-करकट को एक अच्छी खाद “वर्मी कम्पोस्ट” में बदल सकते है। दो प्रजातियाँ सबसे उपयोगी पाई गई, जिनका नाम ऐसीनिया फोटिडा (लाल केंचुआ) तथा युड्रिलय युजीनी (भूरा गुलाबी केंचुआ) है।

केंचुआ खाद में विभिन्न तत्वों की मात्रा


केंचुआ की खाद एक उच्च पौष्टिक तत्व वाली खाद होती है। केंचुआ खाद दो नाइट्रोजन (1.2 से 1.4 प्रतिशत), फास्फोरस (0.4 से 0.6 प्रतिशत) तथा पोटाश (1.5 से 1.8 प्रतिशत) के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी उपलब्ध होते है। केंचुए की गतिविधियों से निकलने वाला अवशिष्ट पदार्थ प्राकृतिक तत्व से मिश्रित होने के कारण यह खाद अधिक उपजाऊ हो जाती है।

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केंचुए खाद निर्माण कैसे करें?


केंचुए की खाद बनाने की विधि बहुत ही सरल तथा सस्ती है। इससे बेरोजगार नवयुवक काफी पैसा कमा सकते हैं। औद्योगिक स्तर पर केंचुआ खाद तैयार करने की निम्नलिखित दो विधियां हैं।

  1. विंडरोज विधि

  2. मोड्युलर विधि


चूँकि “मोड्यूलर विधि” में एक बना हुआ बक्सा खरीदने की जरूरत पड़ती है। अत: यह विधि खर्चीली होने के कारण आम किसानों के लिए उपयोगी नहीं है।

“विंडरोज विधि” किफायती होने के कारण अधिक लोकप्रिय है जिसका वर्णन नीचे किया गया है:

मूलभूत सुविधा: केंचुआ धूप सहन नहीं कर सकते अत: पहले 5 फुट चौड़ा व 20 फुट लम्बा बाँस या लकड़ी का छप्पर खड़ा करते है। तथा खपड़ा अथवा पुआल से छत बना दिया जाता है। इसकी ऊँचाई इतनी चाहिए कि आदमी आराम से पानी दे सके। इस झोपड़ी के नीचे वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जाता है ताकि अधिक धूप एवं बरसात के पानी से बचाया जा सके। स्थान के चुनाव के समय यह ध्यान देना चाहिए कि वहां पर बरसात का पानी इकट्ठा न हो। अत: हमेशा ऊँची जमीन का चुनाव करना चाहिए।

जैविक पदार्थो की पूर्व उपचार: जैविक पदार्थ जैसे गोबर, कूड़ा-करकट, पौधों का अवशेष तथा घास फूस, हरी पत्ती आदि से पहले शीशा, पोलीथिन, पत्थर आदि, अगर हो तो चुन कर अलग कर लेना चाहिए। उसके बाद उसका छोटा-छोटा टुकड़ा कर देना चाहिए। सब्जियों के अवशेष कूड़ा-करकट आदि को गोबर के साथ मिलाने के बाद 10 से 15 दिन तक अलग जगह नर आंशिक विघटन के लिए छोड़ दिया जाता है। गोबर एवं अन्य पदार्थो का अनुपात बराबर होना चाहिए। आंशिक विघटन के बाद वर्मी कम्पोस्ट यूनिट में इसे प्रयोग किया जाता है।

पहला चरण: शेड के नीचे जमीन को समतल बनाकर इसे भिंगोकर सड़ने वाला पदार्थ रखा जाता है।

दूसरा चरण: पहली सतह, धीरे-धीरे सड़ने वाले पदार्थो जैसे – नारियल के पिछले, केले के पत्ते या छोटे टुकड़ों में कटे बांस से तैयार किया जाता है। इसकी सतह की मोटाई लगभग 3” से 4” होना आवश्यक है। इस सतह को बेड कहा जाता है। कठिन समय पर केंचुआ इसे घर के रूप में इस्तेमाल करता है।

तीसरा चरण: दूसरी सतह भी करीब 3” से 4” मोटी होती है जो कि बेडिंग पदार्थ के ऊपर बिछाई जाती है। इस सतह में मुख्यत: आधा सड़े गोबर का इस्तेमाल किया जाता है ताकि सड़ने के समय पदार्थ में ज्यादा गर्मी पैदा नहीं हो। अगर इस पदार्थ में नमी की कमी हो तो सतह में पानी का छिड़काव करना आवश्यक है।

चौथा चरण: दूसरी सतह के ऊपर केचुओं को हल्के से रखा जाता है। एक वर्ग मीटर जगह के लिए 250 केंचुओं की जरूरत है। केंचुओं को छोड़ने के पश्चात बहुत जल्दी ये दूसरी सतह के नीचे घुस जाते है क्योकि ये अपने को बाहर में खुला रखना पसंद नहीं करते है।

पाँचवा चरण: छोटे टुकड़ों में कटा हुआ हरा या सुखा जैविक पदार्थ एवं गोबर आधा-आधा हिस्सा (50-50) में मिलाकर आखिरी सतह में दिया जाता है। यह सतह तकरीबन 4” से 5” मोटी होती है। इस तरह ढेर की ऊँचाई करीब 1.0 से 1.5 फुट हो जाती है।

छठवाँ चरण: आखिरी सतह को पूरी क्यारी के लम्बाई के बराबर जूट के कपड़े से ढंक दिया जाता है। पूरे ढेर को ढंकना आवश्यक है। जूट का फटा हुआ बोरा इस काम में इस्तेमाल किया जा सकता है। बोरे के ऊपर नियमित रूप से पानी का छिड़काव आवश्यक है। नमी लगभग 60 प्रतिशत बनी रहनी चाहिए।

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सातवाँ चरण: जब केंचुआ तैयार हो जाए तो इसमें पानी का छिड़काव बंद कर देना चाहिए तथा उसे सूखने देना चाहिए। इसके बाद ऊपर में आधा सड़े हुए गोबर की एक पतली परत देनी चाहिए। सारे केंचुए इस परत में आ जाते है। तत्पश्चात इन केंचुओं को ऊपर की परत समेत इकट्ठा कर लेते है। मोटी छलनी से छान कर भी केंचुआ को अलग किया जा सकता है।

आठवाँ चरण: ऊपर के दो स्तर केंचुआ खाद के रूप में इकट्ठा कर लिये जाते है। बेड को सुरक्षित रखा जाता है तथा पुराने बेड के ऊपर दूसरी खेप की तैयारी पुन: पहले चरण से शुरू कर देनी चाहिए।

केंचुआ खाद को रखने का तरीका


इस खाद को छाया में सुखाकर इसकी नमी कम कर जाती है। इससे यह रखने योग्य हो जाता है। सूखने के पश्चात खाद को बोरे में एक साल की अवधि तक के लिए रखा जा सकता है।

केंचुआ खाद का इस्तेमाल करते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि खेत में किसी तरह की रासायनिक खाद तथा किसी प्रकार की दवा का इस्तेमाल न हो।

केंचुआ खाद की प्रयोग – विधि



  1. खेत में अंतिम जुताई के समय 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर में केंचुआ खाद डालकर जुताई करें।

  2. बीज बोने से पहले पंक्ति में इसे अच्छी तरह छालें, अथवा बिचड़ा या पौधा लगाने से पूर्व इसको अच्छी तरह डाल दें।

  3. मिट्टी चढ़ाने के समय भी इसे डाला जा सकता है।

  4. निकौनी, गुड़ाई के समय केंचुआ खाद पौधों की जड़ों में डालकर मिट्टी से ढंक दें अथवा पौधों की रोपाई एवं बीजों की बुआई के समय केंचुआ खाद डालकर बुआई रोपाई करें।

  5. 5. अच्छे परिणाम के लिए केंचुआ खाद का प्रयोग करने के बाद पुवाल, सूखी पत्ती पलवार (मल्लिवंग) का उपयोग करें।


केंचुआ खाद प्रयोग करने से लाभ



  1. केंचुआ खाद को भूमि में बिखेरने से तथा भूमि में इनकी सक्रियता से भूमि भुरभुरी एवं उपजाऊ बनती है जिससे पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बनता है। इससे उनका अच्छा विकास होता है। पौधों की जड़ों के लिए उचित वातावरण बनता है। इससे उसका अच्छा विकास होता है।

  2. केंचुआ खाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की विधि करता है तथा भूमि में जैविक क्रियाओं को निरंतरता प्रदान करता है।

  3. केंचुआ खाद में आवश्यक पोषक तत्व प्रचुर एवं संतुलित मात्र में होते हैं, जिससे पौधे संतुलित मात्र में विभिन्न आवश्यक तत्व प्राप्त कर सकते हैं।

  4. केंचुआ खाद के प्रयोग से मिट्टी भुरभुरी हो जाती है, जिससे उसमें पोषक तत्व एवं जल संरक्षण की क्षमता बढ़ जाती है व हवा का आगमन भी मिट्टी में ठीक रहता है।

  5. केंचुआ खाद चूँकि कूड़ा-करकट, गोबर व फसल अवशेषों से तैयार की जाती है अत: गंदगी में कमी करती है और पर्यावरण को सुरक्षित रखती है।

  6. केंचुआ खाद टिकाऊ खेती के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है तथा यह जैविक खेती की दिशा में एक नया कदम है।










जानें किस प्रकार वर्मी कंपोस्ट से हर महीने 2 लाख मुनाफा कमा सकते हैं आप


प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए देश में केन्द्र सरकार द्वारा नेचुरल फार्मिंग योजना चलाई जा रही है। इस योजना के तहत प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को सब्सिडी यानि प्रोत्साहन भी दिया जा रहा हैं। देश के कई राज्यों की सरकारें जैविक खेती को बढ़़ावा देने वाली नेचुरल फार्मिंग योजना को सफल बनाने की तैयारी में जुट गई है। कई राज्य सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नई-नई पहल कर रही हैं। सरकार रासायनिक कीटनाशक मुक्त फसलों की खेती करने के लिए किसानों को  प्रोत्साहित कर रही है, जिससे लोगों को तमाम तरह की गंभीर बीमारियों से बचाया जा सके और खेती किसानी में किसानों के खर्च को भी कम कर सके। भारत में जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है। फसलों का विकास सही तरीके से हो सके इसके लिए कृषि विशेषज्ञों द्वारा खेतों में खाद के तौर पर ऑर्गेनिक वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करने का सलाह दी जाती है।

इसी क्रम में सरकार किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए कई राज्य सरकार किसानों को देसी गाय खरीद पर सब्सिडी एवं पैसे देकर इन गाय का गोबर भी खरीद रही है। किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश की सरकार ने इस तरह की योजनाओं पर काम भी शुरू कर दिया है। ट्रैक्टरगुरू की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको वर्मी कम्पोस्ट बनाने एवं किसी प्रकार वर्मीकम्पोस्ट से बढि़या मुनाफा कमा सकते है इस के बारें में जानकारी देने जा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में कम्पोस्ट उत्पादक महिला समूहों को बड़ी सौगात


छत्तीसगढ़ राज्य की सरकार राज्य में जैविक खेती को बढ़़ावा देने एवं किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गौठानों में वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट एवं सुपर प्लस कम्पोस्ट का निर्माण कर छत्तीसगढ़ में जैविक खेती को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिला स्व-सहायता समूहों को सौगात दी है। महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा उत्पादित कम्पोस्ट में से 7 जुलाई 2022 तक बिक चुकी कम्पोस्ट के एवज में प्रति किलो एक रुपए तथा सहकारी समितियों को 10 पैसे के मान से प्रोत्साहन राशि देने का फैसला किया था। वर्मी कम्पोस्ट पर बोनस वितरण को लेकर सरकार की तरफ से आदेश भी जारी किया गया था।

महिला समूहों को होगा अतिरिक्त लाभ


आपकी जानकारी के लिए बता दें कि महिला स्व-सहायता समूहों को वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण के लिए 3.27 रुपए प्रति किलो के मान से लाभांश तथा प्रति किलो पैकेजिंग पर 65 पैसे मिलते हैं। अब 7 जुलाई 2022 तक बिक चुकी कम्पोस्ट की प्रति किलो मात्रा पर एक रुपए का बोनस मिलने से वर्मी कम्पोस्ट निर्माण स्वयं सहायता महिला समूहों को अतिरिक्त लाभ होगा। अगर देखा जाए कि महिला समूहों को कम्पोस्ट निर्माण का लाभांश, पैकेजिंग और प्रोत्साहन राशि को मिलाकर प्रति किलो 4.92 रुपए मिल रहे हैं, जो वर्मी कम्पोस्ट के विक्रय मूल्य के 50 प्रतिशत के करीब है।

कृषि विभान ने जारी किए आदेश


बता दें कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में 7 जुलाई को आयोजित मंत्रिपरिषद की बैठक में लिए गए निर्णय के परिपालन में कृषि विभाग ने इस संबंध में 19 जुलाई को आदेश जारी किया। आदेश के तहत महिला समूहों द्वारा उत्पादित कम्पोस्ट में से बेचे गए लगभग 17.64 लाख क्विंटल की मात्रा के एवज में महिला समूहों को 17 करोड़ 64 लाख तथा प्राथमिक सहकारी समितियों को 1 करोड़ 76 लाख रुपए की राशि प्रोत्साहन के रूप में दी जाएगी। बोनस की ये सारी राशि का वितरण गोधन न्याय योजना के तहत किया जाएगा। इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2021-22 के लिए 175 करोड़ रूपए की बजट राशि आवंटित किया गया है। राज्य में पशुपालन ग्रामीणों से गोधन न्याय योजना के तहत 2 रूपए प्रति किलों के हिसाब से अब 76 लाख क्विंटल से अधिक की गोबर खरीद की जा चुकी है।

वर्मी कम्पोस्ट को बढ़ाव दे रही यूपी सरकार


राज्य में रासायनिक खाद के अंधाधुंध इस्तेमाल से लगातार घट रही भूमि की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए यूपी सरकार जैविक खाद के इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। राज्य सरकार इसके लिए किसानों को अपने खेतों में केंचुआ खाद बनाने के लिए गड्ढा तैयार करने पर 6 हजार रुपये अनुदान दे रही है। इस योजना का लाभ लेने वाले किसानों को सात फीट लंबा, तीन फीट चौड़ा एवं एक फीट गहरा गड्ढा तैयार करना है। इसके बाद इस पर शेड डालना होगा। गड्ढा तैयार होने के बाद किसान को इसमें गोबर भरना होगा और सरकार से किसान को केंचुए भी दिए जाएंगे। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार वर्मी कम्पोस्ट योजना चला रही है।

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फसल लागत होगी कम, बढ़ेगी आय


यूपी सरकार वर्मी कंपोस्ट योजना के तहत किसान को अपने खेत में केंचुए से खाद बनाने वाले किसान को अनुदान दे रही है। किसान इस योजना का लाभ लेकर अपनी लागत में कमी लाने के साथ-साथ आय बढ़ा सकेगा। वर्मी कम्पोस्ट योजना अंर्तगत केंचुआ खाद बनाने से किसान की फसल में लागत कम आएगी। क्योंकि यह खाद पूरी तरह जैविक होगी। इसका फसलों में प्रयोग करने से किसान को महंगा खाद एवं कीटनाशक खरीदने से मुक्ति मिलेगी। वहीं, किसान इस खाद को बेचकर आय बढ़ा सकता है। इस योजना का लाभ एक साल में एक गांव से एक ही किसान को मिलेगा।

राजथान में डॉ.श्रवण यादव वर्मीकम्पोस्ट से कमा रहे हैं बढि़या मुनाफा 


सरकार रासायनिक कीटनाशक मुक्त फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही। इसके लिए राज्य के किसानों को खेतों में वर्मीकम्पोस्ट को तैयार करने की सलाह दी जा रही हैं, तो वहीं राज्य के जयपुर जिले के सुंदरपुरा गांव के रहने वाले डॉ. श्रवण यादव वर्मीकम्पोस्ट से बढि़या मुनाफा कमा रहे हैं। श्रवण बताते हैं कि शुरूआत से ही खेती किसानी में उनका मन लगता था। खेती-किसानी से जुड़ी छोटी-छोटी जानकारी के लिए उन्होने अपनी पूर पढ़ाई खेती से जुड़े विषयों से की है उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग में एमएससी किया और इस बीच मल्टीनेशनल कंपनी में उनकी नौकरी भी लग गई, लेकिन नौकरी में मन नहीं लगने पर उसे भी छोड़ दिया। नौकरी छोड़ने के बाद, वह ‘उदयपुर महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी’ से जैविक खेती की पर पीएचडी भी करने लगे।

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17 बेड़ के साथ शुरूआत कि वर्मीकंपोस्ट यूनिट


श्रवण कहते हैं कि नौकरी के दौरान उन्हें खेती-किसानी के लिए ज्याद वक्त नहीं मिल पाता था। साल 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगने के बाद वह अपने गांव लौट आए। उन्हें खेती-किसानी को लेकर काफी वक्त मिलने लगा। इस दौरान उन्होंने यहां 17 बेड के साथ वर्मीकम्पोस्ट का एक छोटी यूनिट डाली। वह बताते हैं कि उन्होंने जब इस काम की शुरुआत की तो लोग ताना मारते थे और शुरुआत में परिवार वालों ने भी साथ नहीं दिया। लेकिन फिर लगातार बढ़ते मुनाफा को देखते हुए वह भी साथ हो गए। श्रवण कुमार कहते हैं की उन्होंने अब अपने वर्मी कंपोस्ट बेड़ों की संख्या बढ़ाकर एक हजार बेड तक कर ली है। वह दावा करते हैं कि पूरे भारत में उनकी यूनिट प्रति किलो सबसे ज्यादा केंचुए देती है। वह एक किलो वर्मीकंपोस्ट खाद में 2000 केंचुए देते हैं, जबकि बाकि जगह लोग 400 से 500 केंचुएं ही देते हैं। इसके अलावा वह किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने की फ्री ट्रेनिंग भी देते हैं। और वर्मीकंपोस्ट का निर्माण कर इसे अन्य किसानों को बेच कर 2 से 3 लाख रूपये हर महीने मुनाफा कमा रहे हैं।

25 हजार लोग ट्रैनिंग लेकर वर्मीकम्पोस्ट खाद यूनिट लगा चुके हैं


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डॉ. श्रवण यादव कहते हैं कि उनके द्वारा तैयार वर्मीकम्पोट खाद को किसानों को बेचने के लिए सोशल मीडिया को मुख्य जरिया बनाया। डॉ. श्रवण ने ऑर्गनिक वर्मीकम्पोस्ट के नाम से अपना खुद कस एक चैनल भी बनाया, जिसपर वह इससे जुड़ी सभी जानकारी की वीडियोज भी किसानों को उपलब्ध करते हैं। श्रवण बताते हैं कि राज्य में अभी तक 25 हजार लोग ट्रेनिंग लेकर खुद की वर्मीकम्पोस्ट खाद की यूनिट लगा चुके हैं।

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