भारत के लिए प्रौद्योगिकी
- खासी संतरा फसल पैदावार और प्रबंधन के तरीके
- खासी संतरा कटाई के बाद का प्रबंधन
- बाजार के लिए तैयारी
- तापमान प्रबंधन
- कटाई के बाद की प्रमुख बीमारियाँ
खासी संतरा फसल पैदावार और प्रबंधन के तरीके
बगीचा के लिए स्थल चयन
- वहाँ सूर्य की पर्याप्त रोशनी हो।
- खड़ी ढलान, उथली भारी मिट्टी के इस्तेमाल से बचना चाहिए।
मौसम
- उष्णकटिबंधीय-समशीतोष्ण जलवायु
- उच्च आर्द्रता और तेज गर्म एवं हल्की सर्दी वाला मौसममिट्टी- पीएच 5.5 से 6.5 तक, सही तरीके की निकासी व्यवस्था, मिट्टी की मध्यम गहराई
Solis Hybrid 5015 Tractor
प्रसारण (वंश वृद्धि)
बीज
- स्वस्थ, उच्च गुणवत्ता वाले, बीमारी मुक्त और कीटनाशक मुक्त पौधों को बीजों के लिए चुना जाना चाहिए।
- बीज निकालने के बाद नर्सरी में उन्हें तुरंत बोया जाना चाहिए (सप्ताह भर के भीतर)।
- नर्सरी में बीज 1.5 से 2 सेंटीमीटर की गहराई और 10 X 5 सेंटीमीटर के अंतराल पर बोने चाहिए।
- 4 से 6 पत्तों के होने पर पौधों को दूसरी क्यारी या पॉलिथीन बैग में लगा देना चाहिए जहाँ समान मात्रा में मिट्टी, रेत और कृषि खाद पड़ी हो।
- अब वे मुख्य खेत में रोपण के लिए तैयार हैं। 12 से 18 महीने के बाद उनकी कलम निकाली जा सकती है ओर वे फूलने के लिए तैयार होंगे।
- रोपण के लिए चुनी गई पौधे मजबूत, स्वस्थ और कीटनाशक मुक्त, बीमारियों से मुक्त और 60 से 90 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक होनी चाहिए।
फूल आनाः
फरवरी-मार्च या जुलाई-अगस्त।
रूट स्टॉकः रफ लेमन
- रूट स्टॉक में जमीन से 15-20 सेमी ऊपर टी के आकार का कट लगाया जाता है।
- इसके दोनों फ्लैप को ढीला किया जाता है।
- मुख्य पौधे से 2.5 सेंटी मीटर की लंबाई वाला कली का हिस्सा निकाल लिया जाता है।
- इस कली को रूट स्टॉक के टी आकार वाले हिस्से में डाल दिया जाता है और उसे 400 गॉज की पालिथिन या हेसियन कपड़े से बांध दिया जाता है।
रोपणरोपण का समय: जून से अगस्त
पौधों से पौधों के बीच की दूरी: 5 X 5 मीटर
गड्ढे का आकार: 0.75 X 0.75 X 0.75 मीटर
गड्ढे का भराव
John Deere Deluxe MB Plough
- 10 सेंटीमीटर मिट्टी, 15-20 किलो कृषि खाद, 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश यूरिया, 300 जी एसएसपी, 100 ग्राम क्लोरोपाइरिफॉस की धूल या कण
- कलम को जमीन से 15 सेंटी मीटर ऊपर रखा जाता है।
- पौधे के गड्ढों में रोपण से पहले पौधे की जड़ों को रिडोमिल एमजेड-72 एट 2.75 ग्राम/लीटर प्लस बाविस्तिन 1 ग्राम/लीटर मिश्रण में भिगोना चाहिए।
- उसे जमीन स्तर से 10 सेंटीमीटर ऊपर तक भरा जाना चाहिए।
पैदावार के बीच में रोपण
- फ्रेंच बीन, राइस बीन और अन्य सब्जियों को बीच में बोया जा सकता सकता है (1 से 5 साल)।
खाद
बागवानी प्रभाग(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
- दो साल से अधिक के दौरान प्रति पौधे 5 किलो राख व भूसी (फार्मयार्ड मैन्यूर, एफवाईएम) का छिड़काव किया जाना चाहिए और प्रत्येक साल इसमें 5 किलो की मात्रा बढ़ा दी जानी चाहिए और छठें साल 25 किलो प्रति पेड़ पर छिड़काव किया जाना चाहिए।
- सूक्ष्म और स्थूल (वृहत्) पोषक तत्वों का प्रयोग मिट्टी के नमूना परीक्षण या विशेषज्ञों की सिफारिशों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
छंटाई
- पहले साल के दौरान जमीन के स्तर से सभी शाखाओं की लंबाई 50 सेंटीमीटर तक बढ़नी चाहिए और उसके बाद आधी मीटर साफ, सीधी शाखाओं को छोड़कर अन्य की छंटाई की जानी चाहिए।
- सभी अतिरिक्त शाखाओं की छंटाई पहले साल के दौरान महीने में एक बार की जानी चाहिए और उसके बाद प्रत्येक दो या तीन महीनों में की जानी चाहिए।
- जिन पेड़ों में फल लग रहे हों, उनमें नम, सूखी और बीमारी लगी हुई शाखाओं की छंटाई साल में एक बार या दो बार की जानी चाहिए।
- जिनमें फल न लग रहे हों, उनकी छंटाई किसी भी समय की जा सकती है, लेकिन फलदार पेड़ों में कटाई के तुरंत बाद छंटाई की जानी चाहिए।
सिंचाई- दिसम्बर से मार्च, 15 से 20 दिन के अंतराल पर।
फ्रूट ड्रॉप
- कली के चरण पर 2, 4-डी 1 किलो प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव तथा कटाई से तुरंत पहले 100 लीटर पानी में 2 किलो या मार्च से अप्रैल तथा अगस्त से सितम्बर महीने में 5 लीटर पानी में 1 मिली लीटर प्लानो फिक्स का छिड़काव किया जाना चाहिए।
- संतरा तना छेदक (एनोप्लोफोरा वर्सटीजी)
लक्षण
- शाखाओं/पेड़ों के आधार में धूल दिखाई देती हो।
- तने में गोल छेद
प्रबंधन
- अप्रैल से जुलाई के दौरान पके हुए को इकट्ठा करना और उन्हें नष्ट करना
- एंडोसल्फान/मोनोक्रोटोफास के साथ चूना और पानी 1:10:100 के अनुपात में।
- तामचीनी या दंतवल्क पेंट के एक लीटर में 3 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफास मिलाकर तने पर 1 मीटर तक अप्रैल से जून के बीच दो बार छिड़काव किया जाना चाहिए।
- अप्रैल से जुलाई के दौरान तीन बार नीम की दवा का छिड़काव (प्रति लीटर पानी में 4 मिलीलीटर या एंडोसल्फान (0.70 फीसदी) या मोनोक्रोटोफास (0.05 फीसदी) या क्वीनालफोस (0.05) का।
- तने में 10 मिली लीटर का छेद कर उसमें मोनोक्रोटोफास (0.07 प्रतिशत) या डायक्लोरवोस (0.05 फीसदी) का इंजेक्शन मई से अक्टूबर के बीच में दिया जाना चाहिए और इस इंजेक्शन के बाद छेद को मिट्टी से बंद कर दिया जाना चाहिए।
- चींटियों की मौजूदगी को प्रोत्साहन दें।
- संक्रमित पौधे के छेद को लोहे की तार की मदद से साफ करें और फिर उसके भीतर पेट्रोल या डायक्लोरवोस में भिगोई रूई को डालें।
फल चूसक कीड़ा (ऑथेरेसिस फुलोनिका)
Laser Leveler
लक्षण
- फलों का पिचकना
- पिचके हुए क्षेत्र का मुलायम और गुदगुदा हो जाना ओर तेज गंध हो जाना
- नुकसान पहुंचे हुए फलों का परिपक्व होने से पहले ही गिर जाना
प्रबंधन
- बगीचों को धुआँ दिखाना (शाम से पहले आधा घंटा से लेकर दो-तीन घंटे तक)
- पकने से पहले नीम की दवा का छिड़काव प्रति लीटर पानी में 4 मिली लीटर या 2 प्रतिशत मछली के तेल से बना साबुन उस पर लगा दें।
- नुकसान हुए फलों को नियमित रूप से इकट्ठा करना और उन्हें गहराई में गाड़ देना।
- कीट को पकड़कर जहर देकर मार देना (10 लीटर पानी में 1 किलो चीनी और 50 मिली लीटर डाइक्लोरवॉस मिलाकर)
- एक हेक्टेयर क्षेत्र में जहर की 20-30 थैलियां लटका दी जानी चाहिए।
संतरा पत्ती छेदक (फिलोक्निसटिस सिट्रेला)लक्षण
- नाजुक पत्तों पर लार्वा का पलना, ऊपरी सतह को खाना और पत्ते पर टेढ़े-मेढ़े रास्ते बनाना जिससे पत्ती पीली पड़कर सूख जाती है।
प्रबंधन
फ्रेंचबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
- सर्दी के दौरान प्रभावित क्षेत्र को छाँटकर उसे जलाना।
- नीम की दवा का 2 फीसदी छिड़काव करना।
- 0.05 फीसदी मोनोक्रोटोफास या 0.01 फीसदी फेनवालेरेट का छिड़काव करना।
एफिड (टोक्सोटेरा ओरांटी)लक्षण
- नाजुक पत्तों की निचली सतह, तने और ताजा फलों को संक्रमित कर देता है।
- संक्रमित भाग मुड़ जाता है और फल अपने आप नीचे गिर जाते हैं।
प्रबंधन
- नीम के तेल या नीम के बीज के 2 प्रतिशत अर्क का छिड़काव करना।
बीमारियों का प्रबंधन
संतरा कीड़ी (जांथोमोनाज कम्पेसट्रिस पीवी सिट्री)
लक्षण
- बीज, पत्तों और फलों पर पीले रंग के धब्बे प्रकट हो जाते हैं।
प्रबंधन
- 15 दिनों के अंतराल पर 1 प्रतिशत बोर्डाउ मिश्रण, 500 से 1000 पीपीएम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट का छिड़काव करना।
धूमल (कालारुण) फफूँद (कैपनोडियम एसपी)
लक्षण
- पत्तों, फलों और फलियों पर काले धब्बे प्रकट हो जाते हैं।
प्रबंधन
- मछली के तेल, धूप साबुन या कच्चे तेल के घोल और माड़ी के मिश्रण को (250 ग्राम: 250 ग्राम: 250 ग्राम के अनुपात में) पौधे पर छिड़काव करना।
- गाय के मूत्र का छिड़काव करने से भी धब्बों को कम किया जा सकता है।
नीला व हरा फफूँद (पेनीसिलियम इटैलिकम)लक्षण
- पहले फफूँद होता है और वे जैसे-जैसे फल पर बढ़ता है, वैसे-वैसे उसका रंग नीले या हरे रंग में बदल जाता है।
प्रबंधन
- कटाई के 24 घंटों के अंदर इमेजेलिल का छिड़काव किया जाना चाहिए।
लोरेंथस (लोरेंथस एसपी)
लक्षण
- पेड़ की एक या अधिक टहनियों पर गुच्छेदार परजीवी पैदा हो जाते हैं।
प्रबंधन
- प्रभावित क्षेत्र की छंटाई करना और परजीवी का उन्मूलन करना।
How entamopox help in agriculture?(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
खासी संतरा कटाई के बाद का प्रबंधन
संतराकोतोड़नेकेबादरख-रखाव (प्रबंधन)संतरा को तोड़ने के बाद होने वाली क्षति को रख-रखाव और संग्रहण की उपयुक्त तकनीक अपनाकर कम किया जा सकता है।
फसलपकनेकेसंकेत
संतरा को पूरी तरह पकने के बाद तोड़ा जाता है। बहुत जल्दी तोड़ने से फलों में चिलिंग इंजरी यानी प्रशीतन के कारण हुई क्षति पैदा हो जाती है और देरी से तोड़ने से नमी वाली परिस्थितियों में उसके संग्रहण की वजह से फल का रूप बिगड़ जाता है या फिर वे फूल जाते हैं। सामान्यत: संतरा को तोड़ने के समय का निर्धारण उसके छिलके के रंग के आधार पर किया जाता है। जब फल का 75 फीसदी या उससे अधिक भाग का रंग संतरी हो जाता है, तो यह फल के पकने और उसके तोड़ने के उपयुक्त हो जाता है। रस में कुल घुलनशील ठोस सामग्री (टीएसएस), एसिड और टीएसएस/एसिड के अनुपात को फल के पकने का आंतरिक लक्षण माना जाता है। रस में टीएसएस 8.5 प्रतिशत या इससे अधिक होना चाहिए जो छोटे रिफ्रैक्टोमीटर द्वारा निर्धारित किया गया हो। रस में टीएसएस के साथ 0.3-0.4 प्रतिशत अम्लता भी होनी चाहिए या टीएसस व एसिड का अनुपात 6.5 प्रतिशत होना चाहिए।
तोड़नेकेतरीके
संतरा कटाई के दौरान बहुत ही संवेदनशील होते हैं और तोड़ने की सही तकनीक से इसे होनेवाले नुकसान को कम किया जा सकता है। नारंगी को चाकू, दरांती या क्लिपर से काटना सबसे अच्छा होता है।
पारंपरिक तरीके के लिए फल को सावधानीपूर्वक मोड़ कर झटके से खींच कर तोड़ते हुए अपनी कलाई को इस तरह से घुमाना चाहिए ताकि डंठल फल के साथ जुड़ा रह सके। फल के साथ जो टहनी टूट जाती है, उसे काट देना चाहिए क्योंकि वे आपके फल में छेद कर सकती हैं या नुकसान पहुंचा सकती है और उससे फल सड़ सकता है।पेड़ों को हिलाना नहीं चाहिए क्योंकि इससे फल जमीन पर गिर सकते हैं जिससे उन पर चोट लग सकती है जिससे कटाई के बाद नुकसान हो सकता है। कटाई के बाद फल को गद्देदार टोकरी में इकट्ठा करना चाहिए या उन्हें प्लास्टिक की ऐसी टोकरी में रखना चाहिए जिसमें हवा के लिए पर्याप्त जगह हो। इकट्ठा करने वाली टोकरियाँ या तो आपकी कमर से बंधी होनी चाहिए या आपके कंधों से और वे ऐसी होनी चाहिए जिससे वे नीचे से आसानी से खुल सकें। जब इकट्ठा करने वाली टोकरी भर जाती है, तो पेड़ से एक रस्सी की मदद से उसे बड़े कंटेनर में सावधानीपूर्वक खाली किया जाना चाहिए ताकि उन्हें कोई नुकसान न हो।
संतरा की कटाई सुबह 9 बजे से दिन के 3 बजे तक की जानी चाहिए क्योंकि यह उसके बदरंग होने की आशंकाओं को कम करता है। कटाई सूखे मौसम में की जानी चाहिए और तोड़े हुए फलों को तुरंत ही छायादार और ठंडे स्थान पर रख दिया जाना चाहिए।
बाजार के लिए तैयारी
सफाई
फलों पर से मिट्टी या अन्य जो भी पदार्थ लगा हुआ हो, उसे अच्छी तरह से साफ कर दिया जाना चाहिए क्योंकि ग्राहकों की साफ उत्पाद की मांग रहती है और इससे उगाने वालों को अच्छा मूल्य भी मिलता है। सफाई हाथ से रगड़कर सामान्य तरीके से की जा सकती है। इसके लिए फल को कुछ मिनटों तक सोडियम हाइपोक्लाराइट या क्लोरीन मिले हुए पानी में कुछ देर भिगोकर रख दिया जाना चाहिए और उसके बाद उन्हें दूसरे टैंक में सामान्य पानी में डाल कर निकाल कर साफ कर दिया जाना चाहिए। फलों को मशीन से भी साफ किया जा सकता है जिसमें नारंगी पर रोलर के जरिए ब्रश और स्प्रे किया जाता है। फलों को जितना संभव हो सके, उतना कम पानी के भीतर रखना चाहिए। यदि फलों को अधिक दिनों तक संग्रह करके रखा जाना हो, तो फंगसरोधी के बतौर हाई-प्रेशर स्प्रे या इमेजालिल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
पैकिंग
संतरा को ऐसे बक्सों में रखा जाना चाहिए जो पर्याप्त हवादार हो और जिसमें फल आपस में एक-दूसरे से टकराएं नहीं। सामान्यतौर पर घरेलू बाजार के लिए इस्तेमाल होने वाले कंटेनरों में 30 किलो फल आ जाते हैं। हालांकि, वे चोट के खतरे और एक-दूसरे से टकराने के खिलाफ फलों को पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराते। लकड़ी के कंटेनर फलों को अच्छी सुरक्षा देते हैं। निर्यात के लिए जिन कंटेनरों को प्राथमिकता दी जाती है वे फाइबर के बने होते हैं या फ्लिप-ऑन प्लास्टिक क्रेट होते हैं जिनमें 20 किलो फल आते हैं। पैकिंग के लिए सील पैक की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है या एक-एक फल को 0.01 एचडीपीई के हिसाब से श्रिंक पैक किया जाता है।
छिलकेकेहरेपनकोहटाना
इथीलीन को नारंगी के छिलके के हरेपन को दूर करने और उसका रंग बेहतर बनाने में इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह निर्यात बाजार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इथीलीन फल के स्वाद पर कोई फर्क नहीं डालता। छिलके के हरेपन को दूर करने की प्रक्रिया में हरे छिलके वाले फल को कम इथीलीन में 20 से 25 डिग्री सेल्सियस पर कुछ दिनों के लिए रखा जाता है। इस इथीलीन का आरएच 90 फीसदी होना चाहिए। अंदर अच्छी हवा की आवाजाही की जरूरत होती है ताकि हरेक 2 से 3 मिनट में हवा आ-जा सके। ट्रीटमेंट चैम्बर में कार्बन डाइ ऑक्साइड का स्तर 2000 पीपीएम से अधिक नहीं होना चाहिए। फलों के हरेपन को दूर करने की प्रक्रिया से पहले उन्हें धोना नहीं चाहिए। लिक्विड इथीलीन का उत्सर्जन करने वाले इथीफोन या थायाबेंडाजोल (1000 पीपीएम) या बेनोमिल (500 पीपीएम) का प्रयोग उन बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है जो फसल की कटाई के बाद नुकसान की सबसे बड़ी वजह होती हैं। sफलों को इकट्ठा करने वाले बक्सों या कंटेनरों को बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए 6 से 8 फीसदी बोरैक्स से साफ किया जाना चाहिए। फलों पर लगे अतिरिक्त पानी को उन्हें तेज गति वाली ताजा हवा में रख कर अथवा टिश्यू पेपर या मुलायम कपड़े से पोंछ कर हटाना चाहिए।
श्रेणीकरण/छंटाई
आकार, छिलके के रंग, नुकसान या सड़न के हिसाब से नारंगी का श्रेणीकरण किया जाना चाहिए। इसी के अनुसार उन्हें चॉयस, रेगुलर, प्लेन और प्रसंस्करण का नाम दिया जा सकता है। छोटे स्तर पर श्रेणीकरण और छंटाई हाथों द्वारा ही की जा सकती है। बड़े स्तर पर पैकिंग हाउस में इसे मशीनों द्वारा किया जा सकता है जहां नारंगी को आकार के हिसाब से छांटने वाले कनवेयर पर लोड किया जाता है। एक आकार के फलों को एक कंटेनर में भरा जाता है जबकि दूसरे आकार के फलों को अन्य कंटेनर में।
वैक्सिंग
फलों की सफाई के दौरान अधिकतर प्राकृतिक वैक्स छिलके के ऊपर से हट जाती है। वैक्सिंग फलों के पकने, मुरझाने, नमी की कमी को रोककर छिलके की चमक को बढ़ा देती है जो उन्हें नुकसान पहुंचने से बचाती हैं और जिससे उनकी बाजार में रहने की अवधि भी बढ़ जाती है। फोम वैक्सिंग के तरीके से फलों पर वैक्सिंग की जा सकती है जिसमें कोटिंग या डुबाने की भी सुविधा होती है। इसमें एक द्रव्य के भीतर मोम को घोल कर फलों पर या तो छिड़का जा सकता है या ब्रशिंग विधि से लगाया जा सकता है। वैक्सिंग न तो अधिक मोटी और न ही अधिक पतली। उसे तुरंत अच्छी तरह से सुखा लिया जाना चाहिए। 140 किलो नारंगी पर 500 पीपीएम के अनुपात में कार्नोबा वैक्स, पॉली इथीलिन इमल्शन या सुक्रोज ईस्टर कोटिंग्स के जरिए वैक्स करने के लिए कमरे के तापमान पर फलों को इनमें मिश्रण वाले पानी से भरे टैंक में एक-एक मिनट तक भिगोना चाहिए।
तापमान प्रबंधन
कटाई के बाद नारंगी को रखने के लिए 2 से 3 डिग्री सेल्सियस का तापमान सर्वोत्तम होता है। इस तापमान पर उनकी बाजार की अवधि 4 महीने तक बढ़ सकती है जो कटाई के समय फलों की परिपक्वता पर निर्भर करती है। लघु अवधि यानी कुछ हफ्तों के संग्रहण के लिए 10 डिग्री सेल्सियस तापमान पर्याप्त होता है। अधिक तापमान पर फलों का संग्रहण करने से नमी में कमी, स्वाद में कड़वापन और सड़न भी तेजी से होगी। अधिक तापमान और आर्द्रता में संग्रहण के कारण तीन सप्ताह में नारंगी के छिलके में 10 फीसदी नमी की कमी हो सकती है। नारंगी को 85 से 90 प्रतिशत की आर्द्रता में संग्रहित किया जाना चाहिए। कम आरएच पर रखने से छिल्के पतले, सूखे और मुरझा जाते हैं।
बारिश की मौसम के लिए आसान हेल्थ टिप्स(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
कटाई के बाद की प्रमुख बीमारियाँ
कटाई के बाद की सड़न को कटाई के पहले और कटाई के बाद फंगसरोधी के इस्तेमाल, धुलाई वाले पानी की साफ-सफाई, संग्रहण करने के तापमान और आरएच परिस्थितियों पर ध्यान देकर कम किया जा सकता है।
हराफफूँद
ग्रीन मोल्ड कटाई के बाद आमतौर पर नारंगी में होने वाली बीमारी है। इस बीमारी के होने पर शुरुआत में फलों के छिलके पर मुलायम, पानी वाले रंगहीन धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इसके बाद ये धब्बे 2.5 सेंटीमीटर तक फैल जाते हैं जो उस स्थान के अंदर सफेद फंगस पैदा करते हैं और रेशों को मुलायम कर देते हैं।
नीलाफफूँद
ब्लू मोल्ड के लक्षण भी ग्रीन मोल्ड से मिलते-जुलते होते हैं। इसमें सिर्फ फंगस लगे छेदों का रंग बदल जाता है। 10 डिग्री से नीचे नीला मोल्ड बेहतर वृद्धि। ब्लू मोल्ड बंद कंटेनरों में फैलता है।
तनेकासूखना
तने के अंत में सड़न विभिन्न फंगस प्रजातियों द्वारा पैदा होती है। इसमें सड़न तब शुरू होती है जब फल और तने के बीच का हिस्सा पानी को सोख लेता है जो भूरा होकर पूरे तने पर फैल जाता है। प्रभावित कोशिकाएं सिकुड़ जाती हैं और सड़े हुए व स्वस्थ छाल के बीच एक स्पष्ट रेखा दिखाई देने लगती है। सड़न की यह प्रक्रिया या तो छाल के नीचे फैलती है या भूरी कोशिकाएं अंगुली जैसी आकृति में फैल जाती हैं। कटाई के बाद इस रोग से बचने के लिए 2,4-डी, 500 पीपीएम का प्रयोग किया जा सकता है।
कटाईकेबादकीबीमारियाँ
ऑलियोसेलोसिस (ऑयल स्पॉटिंग)
छिल्के को नुकसान होने पर कभी-कभार तेल की ग्रंथियां क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिसके परिणाम के तौर पर ऑयल स्पॉटिंग यानी तैलीय धब्बे पैदा हो जाते हैं। निकला हुआ तेल छिल्के की कोशिकाओं को मार देता है जिसके बाद वह फल के छिलके पर भूरा होकर दाग का रूप ले लेता है। सुबह के समय या ओस में कटाई नहीं करनी चाहिए। बारिश के बाद 2 से 3 दिन बाद जब फलों का छिलका पूरी तरह सूख जाए, ऐसे समय में फलों को सूती दस्ताने पहन कर गद्देदार कंटेनर का इस्तेमाल कर तोड़ा जाना चाहिए। इससे ऑयल स्पॉटिंग को फलों पर लगने से रोका या कम किया जा सकता है।
स्टेम-एंडरिंडब्रेकडाउन (एसईआरबी)
स्टेम एंड रिंड ब्रेकडाउन फलों और तने को जोड़ने वाले हिस्से का खराब होना है। छाल में नमी की अत्यधिक कमी के चलते कोशिकाएं खराब हो जाती हैं। एसईआरबी की घटनाओं को रोकने के लिए सूखे मौसम में कटाई से पहले सिंचाई करनी चाहिए या फलों पर वैक्सिंग की जानी चाहिए।
चिलिंगइंजरी (सीआई)
संतरा चिलिंग इंजरी के प्रति संवेदनशील होती हैं। यह कम तापमान पर संग्रहण के दौरान विकसित होती है। चिलिंग इंजरी के लक्षणों में गंदे धब्बे, छिलके पर भूरे धब्बे आदि होते हैं। चिलिंग इंजरी की घटनाओं को संग्रहण से पूर्व वैक्सिंग, फिल्म पैकेजिंग और/या इथीलीन और CO2 के ट्रीटमेंट से रोका जा सकता है।
अधिकजानकारीकेलिएसम्पर्ककरें:
डॉ.सुरेश तिवारी,एसिस्टेंट प्रोफेसर(पोस्ट हार्वेस्ट टेक्नोलॉजी),
बागवानी और वानिकी कॉलेज,केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पासीघाट- 791102, अरुणाचल प्रदेशफोन नंबर (कार्यालय): 0368-2224887
बोरडॉक्स मिश्रण का निर्माण
कॉपर सल्फेट तथा चूना के मिश्रण को बोरडॉक्स मिश्रण के नाम से जाना जाता हैं।
1 प्रतिशत बोरडॉक्स मिश्रण का निर्माण
1. प्लास्टिक की बाल्टी में 50 लीटर जल में एक किलोग्राम कॉपर सल्फेट घोलें।
2. दूसरे प्लास्टिक की बाल्टी में 50 लीटर जल में एक किलोग्राम अनबूझा चूना घोलें।
3. कॉपर सल्फेट के घोल को लकड़ी की छड़ी से सतत रूप से हिलाते हुए चूना-जल में उड़ेलें।
यदि निर्मित मिश्रण अम्लीय श्रेणी में है तो इसे उदासीन या क्षारीय स्थिति के निकट मिश्रण में कुछ और चूने का घोल मिलाकर लाया जा सकता है। मिश्रण की उदासीनता की जांच के लिए पूर्णतया परिमार्जित चाकू या दराँती को कुछ मिनटों के लिए मिश्रण में डुबोएं। यदि चाकू/दरांती पर लाल निक्षेप दिखता है तो यह मिश्रण के अम्लीय प्रकृति को दर्शाता है। बोरडॉक्स के मिश्रण को ताजा स्थिति में हीं छिड़कना चाहिए। खड़ी स्थिति में इसका भंडारण न करें, यह अपना फफूंदनाशक गुण खो देता है। यद्यपि, मिश्रण के 100 लीटर में 1 किलोग्राम की दर से चीनी या गुड़ मिलाकर इसे स्थिर किया जा सकता है। स्थिर मिश्रण 3-5 दिनों तक नहीं बिगड़ता है।
बोरडॉक्स मिश्रण का निर्माण
Benefits of eating orange and its information | संतरा खाने से होने वाले फायदे व इसकी जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
सावधानी
- घोल लकड़ी या मिट्टी या प्लास्टिक के बने बर्तन में ही निर्मित होना चाहिए। धातु के बर्तन में इसके निर्माण से बचें क्योंकि धातु के बर्तनों के लिए यह क्षयकारी होता है।
- हमेशा कॉपर सल्फेट के घोल को ही चूने के घोल में मिलाना चाहिए, उल्टे तरीके से मिलाने पर कॉपर का अवक्षेपण होता है तथा परिणामस्वरूप सस्पेंशन का जहरीलापन कम हो जाता है।
गुण
- प्राकृतिक चिपचिपापन या प्रवृत्ति
- तुलनात्मक रूप से सस्ता
- विस्तृत प्रकार के रोगों को नियंत्रित करने में सक्षम
- उपयोग में सुरक्षित
दोष
- सेब तथा आड़ू जैसे फ़सलों के लिए विषैला
- पकने में देरी
- धातु के बर्तन पर संक्षारण क्रिया करता है।
उपयोग
- खट्टे फलों की विकृति पर नियंत्रण: गलन रोग नर्सरी, पौध, पत्ते, डालियों तथा फलों को प्रभावित करता है। लक्षण के दिखाई पड़ने के तुरंत बाद 1% बोरडॉक्स मिश्रण से प्रभावित नर्सरी-पौधों पर छिड़काव करनी चाहिए।
- पुराने फलोद्यानों में मानसून से पहले प्रभावित डालों की छंटाई तथा 15 दिनों के अंतराल पर 3 से 5 बार 1% बोरडॉक्स मिश्रण का छिड़काव करनी चाहिए।
खट्टे फलों तथा पत्तियों पर विकृति
बोरडॉक्स पेस्ट
बोरडॉक्स पेस्ट बोरडॉक्स मिश्रण के अवयवों से ही बना होता है परंतु यह पेस्ट के रूप में होता है क्योंकि इसमें जल की कम मात्रा प्रयोग की जाती है।इसका निर्माण 10 लीटर जल में 1 किलोग्राम चूना तथा 1 किलोग्राम कॉपर सल्फेट को मिला कर किया गया है। घोल को मिश्रित करने की विधि बोरडॉक्स मिश्रण के समान ही हैं।
उपयोग
रोग ग्रसित टहनियों तथा डालियों के साथ कुछ छोटे स्वस्थ हिस्से की छंटाई करें तथा इसे जलाएं। कटे हुए सिरे परबोरडॉक्स पेस्ट का प्रयोग करना चाहिए। इसे वृक्ष के तल से 1 मीटर तक लेपित भी किया जा सकता है।
बोरडॉक्स पेस्ट का प्रयोग प्राय: फरवरी-मार्च, सितंबर-अक्टूबर तथा दिसंबर-जनवरी के दौरान स्वस्थ पौधों को मिट्टी से उत्पन्न रोगाणु से बचाने के लिए किया जाता है।
छटाईं के बाद कटे हुए सिरे पर इसे मरहम-पट्टी करने तथा चोटिल हिस्से की रक्षा के लिए प्रयोग किया जाता है।
बोरडॉक्स मिश्रण का वृक्ष के तल से 1 मीटर ऊंचाई तक प्रयोग
Benefits of eating orange and its information | संतरा खाने से होने वाले फायदे व इसकी जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बारिश की मौसम के लिए आसान हेल्थ टिप्स(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
How entamopox help in agriculture?(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
Rice Planting Machine latest
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