ईसबगोल की खेती

ईसबगोल की खेती


ईसबगोल की खेती,प्रौधोगिकी एवं संरक्षण






ईसबगोल Plantago ovata Forsk. रबी के मौसम में सिंचित अवस्था में उगाई जाने वाली एक औषधीय महत्व की फसल हैं, जो 115 – 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | यह कम वर्षा की स्थिति में कम लागत में होने वाली एक लाभकारी फसल है |

ईसबगोल एक अत्यन्त महत्वपूर्ण नगद आमदनी एवं निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाली औषधीय एवं वाणिज्यिक फसल है | भारत की औषधीय फसलों में उत्पादन व निर्यात की दृष्टि से ईसबगोल का प्रथम स्थान है | देश के विभिन्न राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थन, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं उत्तरप्रदेश में इसकी खेती लगभग 50 हजार हेक्टयर से अधिक क्षेत्र में हो रही है | मध्यप्रदेश में मंदसौर एवं नीमच जिला इसके उत्पादन में मुख्य स्थान रखता है | ईसबगोल का प्रमुख उपभोक्ता अमेरिका है |

औषधीय महत्व :-


सामान्य तौर पर माना जाता है , की इन्सान की ज्यादातर बीमारियों का घर उसका पेट होता है और पेट की मुख्य समस्याओं में से एक कब्ज की समस्या होती है और ईसबगोल कब्ज की कारगर औषधी है, तथा प्राकृतिक होने की वजह से लम्बे समय तक लेने पर भी इसकी आदत नहीं पड़ती है | ईसबगोल के बीज पर पाये जाने वाला छिलका ही इसका औषधीय उत्पाद है | जिसे ईसबगोल की भूसी के नाम से जाना जाता है |इसका उपयोग पेट की सफाई , कब्जियत, दस्त, आँव – पेचिस, अल्सर, बवासीर जैसे बिमारियों के उपचार में किया जाता है | इसके अलावा आईसक्रीम, रंग रोगन व प्रिंटिंग उधोग में भी उपयोग होता है |

पौधे का वर्णन :-


इसका पौधा शाखा रहित 30 – 35 से.मी. ऊँचाई वाला एवं पत्ती सकरी जिन पर सफ़ेद रंग के रोए होती है | इसकी बाली  की लम्बाई 4 – 6 से.मी. लम्बी होती है | जिस पर पुष्प एवं बाद में बीज उत्पन्न होते हैं |

भूमि एवं जलवायु :-


इसके उत्पादन के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मृदा जिसका पी.एच. मान  7 – 8 हो उपयुक्त होती है | भूमि की तैयारी हेतु दोबारा आदि एवं कड़ी जुताई कर पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी एवं समतल बनायें, क्योंकि इसके बीज का आकार छोटा होता है | जिससे समतल एवं भुरभुरी मृदा में उचित गहराई पर बीजों की बुआई की जा सकें |

यह फसल शीतोष्ण जलवायु में अच्छा उत्पादन देती है परन्तु अधिक आर्द्रता एवं नमीयुक्त जलवायु वाले क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए | इसके बीजों के अंकुरण के समय तापमान 20 – 25 डिग्री सेल्सियस, पौधे की उचित बढवार के लिये 30 – 35 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है |

जातियों का चुनाव-उन्नत किस्में  :-


जवाहर ईसबगोल 4 – यह प्रजाति 1996 में औषधीय एवं सुगन्धित पौध की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत कैलाश नाथ काटजू उद्यानिकी महाविघालय ,मंदसौर (राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय,ग्वालियर) द्वारा म.प्र. के लिए अनुमोदित एवं जारी की गई है। इसका उत्पादन 13-15 क्विंटल प्रति हेक्टर लिया जा सकता है। गुजरात ईसबगोल 2 – यह प्रजाति 1983 में अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, आणंद, गुजरात से विकसित की गई हैं। इसका उत्पादन 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टर लिया जा सकता हैं। हरियाणा ईसबगोल 5 – यह प्रजाति अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा 1989 में निकाली गई हैं। इसका उत्पादन 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टर लिया जा सकता हैं।

अन्य किस्मों में गुजरात ईसबगोल 1, हरियाणा ईसबगोल – 2, निहारिका, ट्राबे सलेक्शन 1 से 10 आदि का चयन कर बुवाई की जा सकती है।

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार व बोने की विधि :-


कतार में बोनी हेतु 4 – 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टयर पर्याप्त होता है | कतार से कतार की दुरी 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दुरी 4 – 5 से.मी. रखनी चाहिए | बुआई के पूर्व बीजों को 2 ग्राम डायथेन एम – 45 तथा 1 ग्राम बाविस्टिन या मैतालैकिसल 35 एस.डी. 6 ग्राम प्रति किलोग्राम के दर से बीजोपचार अवश्य करें | चूंकि बीज बहुत छोटे है अत: इसमें बराबर मात्रा में रेत मिला कर कतार में या छिडकाव विधि से बो सकते है | बोते समय यह सावधानी अवश्य रखें कि बीज 2 से.मी. से ज्यादा गहरे जायें |

अदरक की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

खाद या उर्वरक :-


अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 5 टन / हे. आखरी जुताई के समय खेत में मिला दें | इसके साथ ही 25 किलो नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम स्फुर एवं 20 किलोग्राम पोटाश बुआई के समय खेत में मिला देवें तथा बाकि 25 किलोग्राम नत्रजन 25 – 30 दिन बाद सिंचाई के समय देवें |

सिंचाई :-


बोने के तुरंत बाद सिंचाई कर देवें | भरी जमीं में अच्छे अंकुरण के लिए 5 – 6 दिन बाद गलवन देवें | अंकुरण के उपरान्त 30 दिन बाद कल्ले निकलने की अवस्था पर तथा दूसरी सिंचाई बाली निकलने की अवस्था पर 60 दिन बाद देना चाहिए | इसके उपरान्त सिंचाई नहीं देना चाहिए बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है तथा उपज कम प्राप्त होती है |

समन्वित निंदा प्रबन्धन :-


अंकुरण के 20 – 25 दिन पश्चात् एक निंदाई गुडाई अवश्य करनी चाहिए इसी समय छनाई का कार्य भी कर देवे उचित पौध संख्या 6 – 7 लाख / प्रति हेक्टयर रहने पर कीट व बिमारी की समस्या कम आती है | तथा उपज भी सही मिलती है | इस फसल में रासायनिक नींदा नियंत्रण हेतु आईसोंप्रोटूरान दावा 1 किलो प्रति हेक्टयर की दर से बोनी के तुरंत बाद 800 – 1000 ली. पानी में घोल कर छिड़काव करें |

अंतरवर्तीय खेती :-


फसल कम अवधि एवं ऊँचाई की होने के कारण इसे फ्लोधानों में बीच की खाली जगह में अंतरवर्ती फसल के रूप में आसानी से उगा सकते हैं |

रोग एवं कीट व्याधि :-


इस बीमारी में पौधे अंकुरण के बाद झुलस कर मर जाते हैं | रोग के नियंत्रण के लिए बीजोपचार करे तथा प्रकोप दिखाई देने पर फाईटोलान 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर जड़ क्षेत्र में भूमि को स्तर करें |

डाउनी मिल्ड्यू :-


इस रोग के लक्षण बाली मिकलने की अवस्था में दिखाई देता है | सर्वप्रथम पत्तियों के उपरी साथ पर कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देता है | पत्ती के नीचले भाग में सफ़ेद जाल दिखाई देता है और पत्तियों मुड जाती है | इससे उत्पादन व गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होता है | रोग के प्रकोप होने पर 3 ग्राम डायथेन एम – 45 या 3 ग्राम फाईटोलान या 2 ग्राम क्रिलैक्सिल 72 एम. जेड प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें |

मोला (महो) :-


ईसबगोल में अधिकतर मोला (एफिड) का प्रकोप होता है | इसके प्रकोप से फसल चिपचिपी, चमकदार व कलि दिखाई देने लगती है | मोला कीट पत्तों से रस चूसने वाला पीले रंग का सूक्ष्म कीट होता है | इसके रोकथाम के लिये मिथाईल डेमेटान या मेटासिस्टाक्स 25 ई.सी. 1.25 मिली लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें या इमिडासक्लोरप्रीड 5 मि.ली. 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें|

कटाई , गहाई व भंडारण :-


फसल 115 – 120 दिन में पक्क कर तैयार हो जाती है | इस अवस्था पर पत्तियां सुख जाती है तथा बालियों को हाथ से मसलने पर डेन आसानी से निकाल आते हैं | इस अवस्था पर फसल की कटाई कर लेनी चाहिये | वरना डेन आसानी से खतरा रहता है | अगर मावठे की संभावना हो तो फसल की एक दो दिन पूर्व में कटाई कर लेनी चाहिए | कटाई उपरान्त ढेरी को एक दो दिन धूप दिखा कर लकड़ी के द्वारा पीट कर दोनों को अलग करें तथा सूखे हुये दानों को प्लास्टिक या कपड़े के बैग भण्डारित करें | धातु की नमी रहित कोठी में भी भण्डारण कर सकते हैं |

अदरक की खेती : कम लागत में बंपर मुनाफे के लिए करें अदरक की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

उपज :


उन्नत किस्मों तथा उन्नत तकनीकी का उपयोग करके इसकी उपज 16 – 18 किवंटल / हे. प्राप्त की जाती है |

ईसबगोल की खेती का आर्थिक विश्लेषण






































































































































































































क्र.


विवरण


मात्रा एवं दर प्रति इकाई


लागत (रु)

1.भूमि की तैयारी
जुताई की संख्या – 03/ 400रु/घंटा, 2 घंटा /हेक्टर2400
2.खाद और उर्वरक4.7
उर्वरक गोबरकी खाद10 टन/हे./ 400रु/टन4000
नत्रजन30 * 12.5375
फॉस्फोरस40 * 32.51300
पोटाश20 * 20400
मजदूरों की संख्या2 पर 250रु/मजदूर500
3.बीज एवं बुआई
बीज की मात्रा5 किग्रा / 150 रु/किग्रा750
बीज उपचार
मैटालैक्जील5 ग्राम/किग्रा50
राइजोबियम50 ग्राम/किग्रा10
पी.एस.बी.50 ग्राम/किग्रा10
बुआई का खर्च2 घंटा /हेक्टर / 400रु/ घंटा800
मजदूरों की संख्या4 पर 250रु/मजदूर1000
4.निंदाई/खरपतवार
आइसोप्रोटूरोंन750 ग्राम975
निंदाई – मजदूरी25 / 200 रु/  मजदूर5000
5.फसल सुरक्षा
डाइमिथोएट (2 बार)750 मिली/हेक्टर (1.5 लीटर)525
मैटालैक्जील $ मैंकोजेब1 किग्रा900
6.सिंचाई
मजदूरों की संख्या3 सिंचाई / 750रु/ मजदूर2250
विद्युत खर्च100 रु/हेक्टर300
7.कटाई
मजदूरों की संख्या20 मजदूर / 200रु/ मजदूर4000
मडाई650रु/घंटा, 4 घंटा /हेक्टर2600
8.कुल खर्च28145
9.उपज15 क्विंटल / हेक्टर / 8000 रु/ किग्रा120000
10.शुद्ध लाभ91855

 


ईसबगोल की कृषि कार्यमाला

अदरक(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)



































































































































ईसबगोल की कृषि कार्यमाला
ईसबगोल Plantago ovata Forsk. एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय फसल है।औषधीय फसलों के निर्यात में इसका प्रथम स्थान हैं। वर्तमान में हमारे देश से प्रतिवर्ष 120 करोड के मूल्य का ईसबगोल निर्यात हो रहा है। विश्व में ईसबगोल का सबसे बडा उपभोक्ता अमेरिका है। विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक देश ईरान, ईराक, अरब अमीरात, भारत, फिलीपीन्स इत्यादि हैं। भारत का स्थान ईसबगोल उत्पादन एवं क्षेत्रफल में प्रथम है। भारत में इसका उत्पादन प्रमुख रूप से गुजरात ,राजस्थान ,पंजाब , हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में करीब 50 हजार हेक्टर में हो रहा हैं। म. प्र. में नीमच, रतलाम, मंदसौर, उज्जैन एवं शाजापुर जिले प्रमुख है।
उपयोग
ईसबगोल का औषधीय उपयोग अधिक होने के कारण विश्व बाजार में इसकी मांग तेजी से बड रही हैं। ईसबगोल के बीज पर पाएं जाने वाला छिलका ही इसका औषधीय उत्पाद हैं जिसे ईसबगोल की भूसी के नाम से जाना जाता हैं। भूसी और बीज का अनुपात 25:75 रहता है।इसकी भूसी में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती हैं ।इसलिए इसका उपयोग पेट की सफाई , कब्जीयत, दस्त आव पेचिस , अल्सर, बवासीर , जैसी शारीरिक बीमारियों के उपचार में आयुर्वेदिक दवा के रूप में किया जाता हैं।इसके अलावा आइसक्रीम रंग रोगन , प्रिंटिंग आदि उद्योगों में भी इसका उपयोग किया जाता हैं ।इसकी मांग एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करना आवश्यक हैं ।
भूमि एवं जलवायु -
ईसबगोल के लिए ठंडी एवं शुष्क जलवायु उपयुक्त हैं।फसल पकते समय वर्षा व ओस का होना फसल के लिए बहुत ही हानिकारक होता हैं । कभी कभी फसल 100 प्रतिशत तक नष्ट हो जाती हैं। अधिक आद्रता एवं नमीयुक्त जलवायु में इसकी खेती नहीं करना चाहिए । इसके अंकुरण के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियस तथा फसल की परिपक्वता के समय 30-35 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त हैं। इसके लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि उपयुक्त हैं। भूमि की पी-एच मान 7-8 तक होना चाहिए।
भूमि की तैयारी -
दो बार आडी खडी जुताई एवं एक बार बखर चलावें तथा पाटा चलाकर मिटटी भुरभुरी एवं समतल कर लेवें। छोटी क्यारियां बना लें। क्यारियों की लम्बाई चैडाई खेत के ढलान एवं सिंचाई की सुविधानुसार रखें।  क्यारियों की लम्बाई 8-12 मीटर व चैडाई 3 मीटर से अधिक रखना उचित नहीं होता हैं। खेत में जल निकास का प्रबंध अच्छा होना चाहिए। क्योंकि खेत में पानी का भराव ईसबगोल के पौधे सहन नहीं कर सकते हैं।
उन्नत जातियां -
जवाहर ईसबगोल 4 - यह प्रजाति 1996 में औषधीय एवं सुगन्धित पौध की अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत कैलाश नाथ काटजू उद्यानिकी महाविघालय ,मंदसौर (राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय,ग्वालियर) द्वारा म.प्र. के लिए अनुमोदित एवं जारी की गई है। इसका उत्पादन 13-15 क्विंटल प्रति हेक्टर लिया जा सकता है।

गुजरात ईसबगोल 2 - यह प्रजाति 1983 में अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, आणंद, गुजरात से विकसित की गई हैं। इसका उत्पादन 9-10 क्विंटल प्रति हेक्टर लिया जा सकता हैं।

हरियाणा ईसबगोल 5 - यह प्रजाति अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगन्धित पौध परियोजना, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा 1989 में निकाली गई हैं। इसका उत्पादन 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टर लिया जा सकता हैं।

अन्य किस्मों में गुजरात ईसबगोल 1, हरियाणा ईसबगोल - 2, निहारिका, ट्राबे सलेक्शन 1 से 10 आदि का चयन कर बुवाई की जा सकती है।

सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बोआई का समय-
ईसबगोल की अगेती बोआई करने पर फसल की ज्यादा वानस्पतिक वृद्धि हो जाती हैं परिणामस्वरुप फसल आडी पड जाती हैं तथा मदुरोमिल आसिता का प्रकोप बढ जाता हैं। वही पर देरी से बुवाई करने पर प्रकोप का वानस्पतिक विकास कम होता हैं और मानसून पूर्व की वर्षा से बीज झडने का अंदेशा बना रहता हैं। इसलिए किसान भाई ईसबगोल की बोआई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के द्वितीय सप्ताह तक करते हैं तो यह अच्छा समय होता हैं। दिसम्बर माह तक बोआई करने पर उपज में भारी कमी आ जाती हैं।
बीज की मात्रा -
बडे आकार का, रोग रहित बीज की 4 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टर की दर से उपयोग लेने पर फसल का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता हैं। बीज दर ज्यादा होने की दशा में मदुरोमिल आसिता का प्रकोप बढ जाता हैं व उत्पादन प्रभावित हो जाता है।
बीजोपचार -
ईसबगोल के बीज को मैटालैक्जिल 35 एस. डी. की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलो बीज के मान से बीजोपचार कर बुवाई करें। किसान भाई मृदा उपचार हेतु जैविक फफंदी नाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी की 2.5 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टर की दर से अच्छी पकी हुई गोबर की खाद अथवा वर्मीकम्पोस में मिला कर नमी युक्त खेत में प्रयोग करें।
बोने की विधि
किसानों में ईसबगोल की छिटकाव पद्धति से बुवाई करना प्रचलित हैं। परंतु इस विधि से अंतःसस्य किय्राएं करने में कठिनाई आती हैं। परिणामस्वरुप उत्पादन प्रभावित हो जाता है। अतः किसान भाई ईसबगोल की बुवाई कतारों में करते हुए कतार से कतार की दूरी 30 से. मी. एवं पौधे की दूरी 5 से. मी. रखे । बुवाई करते समय बीज में महीन बालू रेत अथवा छनी हुई गोबर की खाद मिलाकर बुवाई करें जिससे वंाछित बीज दर का प्रयोग हो सके। बीज की गहराई 2-3 से.मी. रखे। इससे ज्यादा गहरा बीज न बोयें । छिटकाव पद्धति से बोने पर मिट्टी में ज्यादा गहरा न मिलावें।
खाद एवं उर्वरक :-
ईसबगोल का अच्छा उत्पादन हेतु अच्छी पकी हुई गोबर की खाद 15-20 टन प्रति हेक्टर डालें। 10-15 किलो नत्रजन , 40 किलो स्फुर एवं 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टर बुवाई के समय डालें। नत्रजन की 10-15 किलो प्रति हेक्टर बुवाई के 40 दिन बाद छिटकाव कर डालें।
सिंचाई :-
अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई धीमी गति से करें। अंकुरण कमज़ोर होने पर दूसरी सिंचाई 5-6 दिन बाद देवें । इसके बाद प्रथम सिंचाई 30 दिन बाद एवं दूसरी सिंचाई 70 दिन बाद देवें। फूल एवं दाना भरने की अवस्था पर सिंचाई न दें। इनमें दो से ज्यादा सिंचाई देने पर रोगों का प्रकोप बढ जाता हैं तथा उपज में कमी आ जाती हैं। पुश्पक्रम / बाली आने के बाद स्प्रिकंलर से सिचाई ना करें ।
निंदाई-गुडाई :-
बुवाई के 20-25 दिन बाद एक बार निंदाई-गुडाई अवश्य करें । इसी समय छनाई का काम भी कर देवें तथा पौधों की दूरी 5 से.मी. रखें । इस फसल में रासायनिक नींदा नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फुरोन की 25 ग्राम मात्रा अथवा आइसोप्रोटूरोंन  की 500-750 ग्राम सक्रिय तत्व की मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर बोनी के 20 दिन पर छिडकाव करें।
पौध संरक्षण :-
डाउनी मिल्ड्यू (मदुरोमिल आसिता)-मृदुल रोमिल आसिता के लक्षण पौधों में बाली (स्पाइक) निकलते समय दिखाई देते हैं। सर्वप्रथम पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद या कत्थई रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा पत्ती के निचले भाग में सफेद चूर्ण जैसा कवक जाल दिखाई देता हैं। बाद में पत्तियां सिकुड जाती हैं तथा पौधों की बढवार रुक जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप डंठल की लम्बाई , बीज बनना एवं बीज की गुणवत्ता प्रभावित होती हैं। रोग नियंत्रण हेतु स्वस्थ व प्रमाणित बीज बोयें , बीजोपचार करें एवं कटाई के बाद फसल अवशेषों को जला देवें। प्रथम छिडकाव रोग का प्रकोप होने पर मैटालैक्जिल $ मैंकोजेब की 2-2.5 ग्राम मात्रा अथवा कापर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। छिडकाव 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराए।

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मोयला - माहू का प्रकोप सामान्यतः बुवाई के 60-70 दिन की अवस्था पर होता है।यह सुक्ष्म आकार का कीट पत्तियों, तना एवं बालियों से रस चूसकर नुकसान पहुंचाता है। अधिक प्रकोप होने की दषा में पूरा पौधा मधु स्त्राव से चिपचिपा हो जाता हैं तथा फसल पर क क्रिया बाधित हो जाती हैं जिससे उत्पादन प्रभावित होता हैं। इसकी रोकथाम हेतु आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली/ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आव यकतानुसार छिडकाव को दोहराए ।
फसल की कटाई :-
फसल 110-120 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं , फसल पकने पर पौधों की ऊपरी पत्तियां पीली एवं नीचे की पत्तियां सूख जाती हैं। बालियों को हथेली में मसलने पर दाने आसानी से निकल जाते हैं। इसी अवस्था पर फसल की कटाई करें। कटाई सुबह के समय करने पर झडने की समस्या से बचा जा सकता हैं। फसल कटाई देर से न करें अन्यथा दाने झडने से उपज में बहुत कमी आ जाती हैं। मावठा आने की स्थिति में फसल कटाई 2-3 दिन जल्दी कर लेवें।
उपज:-
उन्नत तकनीक से खेती करने पर 15-16 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज मिल जाती हैं ।
ईसबगोल की अधिक उपज के लिए क्या करें :-
1 समय पर बोनी करें ।

2 बीज की गहराई 2-3 सेमी से ज्यादा न रखें।

3 बीजोपचार अवश्य करें ।

4 उन्नत बीज का उपयोग करें ।

5 पौधों की छनाई 20 - 25 दिन बाद अवश्य करें।

6 क्रांतिक अवस्थाओं पर दो सिंचाई से ज्यादा न करें।

7 डाउनी मिल्ड्यू रोग का उपचार फफूंदनाशक से अवश्य करें।

8 रोगग्रस्त पौधों को उखाड कर नष्ट कर देवें।

9 मोयला का नियंत्रण समय पर अवश्य करें ।

10 खरपतवार नियंत्रण समय पर करें ।

11 कटाई उपयुक्त अवस्था में करें ।

12 मावठा / बरसात को ध्यान में रखते हुए कटाई 2-3 दिन जल्दी कर लेवें ।

13 फसल की गहाई सुबह के समय खेत में ही करें।
ईसबगोल की खेती का आर्थिक विश्लेषण




































































































































































































क्र. विवरणमात्रा एवं दर प्रति इकाईलागत (रु)
1.भूमि की तैयारी
जुताई की संख्या - 03/ 400रु/घंटा, 2 घंटा /हेक्टर2400
2.खाद और उर्वरक 4.7
उर्वरक गोबरकी खाद10 टन/हे./ 400रु/टन4000
नत्रजन30 * 12.5375
फॉस्फोरस40 * 32.5 1300
पोटाश20 * 20400
मजदूरों की संख्या2 पर 250रु/मजदूर  500
3.बीज एवं बुआई
बीज की मात्रा 5 किग्रा / 150 रु/किग्रा750
बीज उपचार
मैटालैक्जील5 ग्राम/किग्रा 50
राइजोबियम50 ग्राम/किग्रा 10
पी.एस.बी.50 ग्राम/किग्रा10
बुआई का खर्च2 घंटा /हेक्टर / 400रु/ घंटा800
मजदूरों की संख्या4 पर 250रु/मजदूर1000
4.निंदाई/खरपतवार
 आइसोप्रोटूरोंन750ग्राम 975
निंदाई - मजदूरी25 / 200 रु/  मजदूर5000
5.फसल सुरक्षा
डाइमिथोएट (2 बार)750 मिली/हेक्टर (1.5 लीटर)525
मैटालैक्जील $ मैंकोजेब1 किग्रा900
6.सिंचाई
मजदूरों की संख्या 3 सिंचाई / 750रु/ मजदूर 2250
विद्युत खर्च 100 रु/हेक्टर300
7. कटाई
मजदूरों की संख्या 20 मजदूर / 200रु/ मजदूर4000
 मडाई650रु/घंटा, 4 घंटा /हेक्टर2600
8.कुल खर्च 28145
9.उपज 15 क्विंटल / हेक्टर / 8000 रु/ किग्रा120000
10.शुद्ध लाभ91855


 

 

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