भिंडी की कृषि
भूमि व खेत की तैयारी
यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पी0 एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए।
भिंडी की खेती-बुआई एवं खेत की तैयारी
- भिंडी-एक लोकप्रिय एवं लाभकारी सब्जी
- भूमि व खेत की तैयारी
- उत्तम किस्में
- पूसा ए-4
- परभनी क्रांति
- पंजाब-7
- अर्का अभय
- अर्का अनामिका
- वर्षा उपहार
- हिसार उन्नत
- वी.आर.ओ.-6
- बीज की मात्रा व बुआई का तरीका
- बुआई का समय
- खाद और उर्वरक
- निराई व गुड़ाई
- सिंचाई
भिंडी-एक लोकप्रिय एवं लाभकारी सब्जी
भिंडीAbelmoschus esculentus(L.)Moench एक लोकप्रिय सब्जी है। सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लोग लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं।
भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। मुख्य रुप से भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन 'ए', बी, 'सी', थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है।
इसमें विटामिन ए तथा सी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है। भिंडी का फल कब्ज रोगी के लिए विशेष गुणकारी होता है। म. प्र. में लगभग 23500 हे. में इसकी खेती होती है। प्रदेश के सभी जिलों में इसकी खेती की जा सकती है।
अधिक उत्पादन तथा मौसम की भिंडी की उपज प्राप्त करने के लिए संकर भिंडी की किस्मों का विकास कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किया गया हैं। ये किस्में यलो वेन मोजकै वाइरस रोग को सहन करने की अधिक क्षमता रखती हैं। इसलिए वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर उच्च गुणवत्ता का उत्पादन कर सकते हैं।
भूमि व खेत की तैयारी
भिंडी के लिये दीर्घ अवधि का गर्म व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिये 27-30 डिग्री सेग्रे तापमान उपयुक्त होता है तथा 17 डिग्री सें.ग्रे से कम पर बीज अंकुरित नहीं होता। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पी0 एच मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए।
उत्तम किस्में
पूसा ए-4
- यह भिंडी की एक उन्नत किस्म है।
- यह प्रजाति 1995 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नई दिल्ली द्वारा निकाली गई है।
- यह एफिड तथा जैसिड के प्रति सहनशील है।
- यह पीतरोग यैलो वेन मोजैक विषाणु रोधी है।
- फल मध्यम आकार के गहरे, कम लस वाले, 12-15 सेमी लंबे तथा आकर्षक होते हैं।
- बोने के लगभग 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाते है तथा पहली तुड़ाई 45 दिनों बाद शुरु हो जाती है।
- इसकी औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति है।
परभनी क्रांति
- यह किस्म पीत-रोगरोधी है।
- यह प्रजाति 1985 में मराठवाड़ाई कृषि विश्वविद्याल य, परभनी द्वारा निकाली गई है।
- फल बुआई के लगभग 50 दिन बाद आना शुरू हो जाते हैं।
- फल गहरे हरे एवं 15-18 सेंमी लम्बे होते हैं।
- इसकी पैदावार 9-12 टन प्रति है।
पंजाब-7
यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। यह प्रजाति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा निकाली गई है। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते हैं। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। इसकी पैदावार 8-12 टन प्रति है।
अर्का अभय
- यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा निकाली गई हैं।
- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं।
- इसके पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे तथा अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
अर्का अनामिका
- यह प्रजाति भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा निकाली गई है।
- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है।
- इसके पौधे ऊँचे 120-150 सेमी सीधे व अच्छी शाखा युक्त होते हैं।
- फल रोमरहित मुलायम गहरे हरे तथा 5-6 धारियों वाले होते हैं।
- फलों का डंठल लम्बा होने के कारण तोड़ने में सुविधा होती है।
- यह प्रजाति दोनों ऋतुओं में उगाई जा सकती हैं।
- पैदावार 12-15 टन प्रति है हो जाती हैं।
वर्षा उपहार
- यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई है।
- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं।
- पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं।
- पौधे में 2-3 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं।
- पत्तियों का रंग गहरा हरा, निचली पत्तियां चौड़ी व छोटे छोटे लोब्स वाली एवं ऊपरी पत्तियां बड़े लोब्स वाली होती है।
- वर्षा ऋतु में 40 दिनों में फूल निकलना शुरु हो जाते हैं व फल 7 दिनों बाद तोड़े जा सकते हैं।
- फल चौथी पांचवी गाठों से पैदा होते हैं। औसत पैदावार 9-10 टन प्रति हे. होती हैं।
- इसकी खेती ग्रीष्म ऋतु में भी कर सकते हैं।
हिसार उन्नत
- यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा निकाली गई है।
- पौधे मध्यम ऊँचाई 90-120 सेमी तथा इंटरनोड पासपास होते हैं।
- पौधे में 3-4 शाखाएं प्रत्येक नोड से निकलती हैं। पत्तियों का रंग हरा होता हैं।
- पहली तुड़ाई 46-47 दिनों बाद शुरु हो जाती है।
- औसत पैदावार 12-13 टन प्रति है होती हैं।
- फल 15-16 सेंमी लम्बे हरे तथा आकर्षक होते हैं।
- यह प्रजाति वर्षा तथा गर्मियों दोनों समय में उगाई जाती हैं।
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वी.आर.ओ.-6
- इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है।
- यह प्रजाति भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान,वाराणसी द्वारा 2003 में निकाली गई हैं।
- यह प्रजाति येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी हैं।
- पौधे की औसतन ऊँचाई वर्षा ऋतु में 175 सेमी तथा गर्मी में 130 सेमी होती है।
- इंटरनोड पासपास होते हैं।
- औसतन 38 वें दिन फूल निकलना शुरु हो जाते हैं ।
- गर्मी में इसकी औसत पैदावार 13.5 टन एवं बरसात में 18.0 टन प्रति हे. तक ली जा सकती है।
बीज की मात्रा व बुआई का तरीका
सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किग्रा तथा असिंचित दशा में 5-7 किग्रा प्रति हेक्टेअर की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोये जाते हैं। बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिये 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सें.मी. एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सें.मी. का अंतर रखना उचित रहता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सें.मी. एवं कतार में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15-20 से.मी. रखनी चाहिए। बीज की 2 से 3 से.मी. गहरी बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो। वर्षा ऋतु में जल भराव से बचाव हेतु उठी हुई क्यारियों में भिण्डी की बुवाई करना उचित रहता है।
बुआई का समय
ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में तथा वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है।
खाद और उर्वरक
भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की क्रमशः 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।
निराई व गुड़ाई
नियमित निंदाई-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन के 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है।
सिंचाई
सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून में 4-5 दिन के अन्तर पर करें। बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।
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भिंडी की वैज्ञानिक खेती
भिंडी Abelmoschus esculentus (L.) Moench एक लोकप्रिय सब्जी है। सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लोग लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ अर्जित कर सकते है। भारत में भिंडी एक प्रमुख सब्जी है | इसकी खेती उष्ण तथा शुष्क दोनों क्षेत्रों में खेती होती हैं | देश में भिंडी की खेती वर्ष में दो बार होती है इसलिए लगभग वर्ष भर भिंडी उपलब्ध हो जाता है |
भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्सियम, फास्फोरस के अतिरिक्त विटामिन ए, बी, सी, थाईमीन एवं रिबोफलेविन भी पाया जाता है | इसमें विटामिन ए तथा सी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है | आयोडीन की मात्रा भिंडी में अधिक होती है | भिंडी का उपयोग कई बीमारियों में होता है | ICAR- Indian Institute of Vegetable Research द्वारा बहुत सी प्रोद्योगिकी विकसित की गई है |
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भूमि तथा खेत की तैयारी कैसे करें
भिंडी के बीज के अंकुरण के लिए 27 से 30 डिग्री से.ग्रे. तापमान उपयुक्त होता है | एक बात यह भी ध्यान देने की है की 17 डिग्री से.ग्रे. से कम तापमान पर अंकुरण नहीं होता है | अगर भूमि की बात किया जय तो जल निकासी वाली किसी भी भूमि में खेती किया जाता हैं | लेकिन भूमि का पी.एच.मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है | खेत तैयार करने के लिए खेत को दो – तीन जुताई के बाद पाता चलालेना चाहिए | इससे मिट्टी भूर-भूरी हो जाती है |
भिंडी की नई प्रजातियाँ
पूसा ए – 4
यह प्रजाति पतरोग यैलो वें मोजैक विषाणु रोधी है तथा एफिड तथा जैसिड के प्रति सहनशील है | इस प्रजाति को बोने के 15 दिन बाद से फल आना शुरू हो जाता है तथा पहली तुडाई 45 दिनों बाद शुरू हो जाती हैं | इसकी फल मध्यम आकार के गहरे, कम लॉस वाले, 12 – 15 से.मी. लंबे तथा आकर्षक होते हैं | इसकी औसत पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति हेक्टयर है |
परभनी क्रांति
यह किस्म बुवाई के 50 दिन बाद फल को तोड़ सकते हैं इसकी फल गहरे हरे एवं 15 – 18 से.मी. लम्बे होते हैं | अगर रोग की बात करें तो पित – रोगरोधी है | परभनी क्रांति किस्म की पैदावार 9 – 12 टन प्रति हैक्टेयर है |
पंजाब – 7
यह किस्म पंजाब तथा हरियाण के राज्यों में ज्यदा होता है | यह प्रजाति पित – रोगरोधी के लिए जाना जाता है | इसके फल हरे एवं मध्य आकार के होते है | बुवाई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते हैं | इसकी पैदावार 8 – 12 टन / हैक्टेयर है |
अर्का अभय
यह प्रजाति बेंगलौर के भारतीय अनुसंधान संस्थान के द्वारा तैयार किया गया है | इस प्रजाति के पौधें येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है | इसकी पौधें 120 से 150 से.मी. सीधे तथा अच्छी शाखा युक्त होते हैं |
अर्का अनामिका
प्रजाति भी भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बंगलौर के द्वारा तैयार किया गया है | तथा यह भी येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है | इसकी फल रोम्र्हित मुलायम गहरे हरे तथा 5 – 6 धारियों वाले होते हैं | यह प्रजाति दोनों ऋतुओं में उगाई जा सकती है | इसकी पौधा 120 से 150 से.मी. सीधे होता है तथा 12 – 15 टन प्रति हेक्टयर पैदावार है |
गन्ने की खेती मैं उत्पादन बढ़ाने के लिए करें इस विधि का प्रयोग(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
वर्षा उपहार
इस प्रजाति की शुरुआत हरियाणा से हुई है तथा येलोवेन मोजेक विषाणु रोग रोधी है | इसकी पौधे माध्यम आकार 90 से 120 से.मी.की होती है तथा कई शाखाओं युक्त होती है | इस प्रजाति की पौधों में 40 दिन में फूल निकाल आती है तथा फल 7 दिनों बाद तोड़े जा सकते हैं | यह प्रजाति वर्ष के दोनों ऋतुओं में किया जाता है | इसकी पैदावार 9 – 10 टन प्रति हेक्टयर होती है |
हिसार उन्नत
यह प्रजाति चौधरी चरण सिंह हरियाण कृषि विश्वविध्यालय, हिसार द्वारा तैयार किया गया है | यह मध्य ऊँचाई वाला पौधा है जिसकी ऊँचाई 90 से 120 से.मी. तक होती है | इसकी पौधे 4 से 5 शाखाओं वाली होती है | बुवाई के 45 दिन बाद फल तोड़ सकते हैं तथा पैदावार 12 से 13 टन / हैक्टेयर होता है | इसकी खेती दोनों ऋतू में कर सकते हैं |
धनिया की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
वि.आर.ओ.- 6
इस प्रजाति की शुरुआत 2003 में हुई है | इसकी खेती वर्ष तथा ग्रीष्म दोनों ऋतुओं में किया जाता है | इसकी पौधों में 35 से 38 दिनों में फूल निकाल आती है | इसकी पैदावा वर्षा ऋतू में 18 टन / हैक्टेयर तथा गर्मी के मौसम में 13.5 टन/ प्रति हेक्टयर है |
भिन्डी Okra की अन्य विकसित प्रजातियों के बारें में जानने के लिए क्लिक करें
धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बीज की मात्र एवं बुवाई की विधि
अलग – अलग मौसम में अलग – अलग होती है | सिंचित क्षेत्र में 2.5 से 3 किलोग्राम तथा असिंचित क्षेत्र में 5 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टयर की आवश्यकता होती है | भिंडी के बीज बोने से पहले खेत को तैयार कर लें | इसके लिए खेत को 2 से 3 जुताई करने के बाद पाटा चला ले वर्षा कालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दुरी 40 – 45 से.मी. एवं कतारों में पौधों की बीच की दुरी 25 – 30 से.मी. का अंतराल उचित रहता है | ग्रीष्मकालीन भिंडी का भी बुवाई कतारों में करना चाहिए |
बुवाई का सही समय क्या है ?
भिंडी की खेती वर्ष तथा ग्रीष्म दोनों मौसम में किया जाता है | ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फ़रवरी – मार्च में तथा वर्षकालीन भिड़ी की बुवाई जून – जुलाई में की जाती है | अगर भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तिन सप्ताह के अंतराल पर फ़रवरी से जुलाई के मध्य अलग – अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है |
टमाटर(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
खाद और उर्वरक
अगर किसान के पास खाद है तो प्रति हेक्टयर 15 से 20 टन गोबर की खाद दे सकते हैं | रासायनिक खाद में 80 किलोग्राम नाईट्रोजन , 60 किलोग्राम फास्फोरस, तथा 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टयर देना चाहिए | नाईट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए | नाईट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30 से 40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए |
निंदाई तथा गुडाई
भिंडी की फसल में निराई तथा गुडाई बहुत जरुरी है | इससे खेत में खरपतवार नहीं होते हैं तथा उर्वरक देने में आसानी होता है | बुवाई के 15 से 20 दिन बाद प्रथम निंदाई – गुडाई करना चाहिए | कोशिश करें की खरपतवार के लिए कीटनाशक का प्रयोग नहीं करे | अगर कीटनाशक का प्रयोग करते हैं तो फ्ल्यूक्ल्रेलिन की 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से पर्याप्त नाम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है |
सिंचाई कब करें ?
भिंडी की सिंचाई मौसम के आधार अपर करना चाहिए | मार्च महीने में 10 से 12 दिन, अप्रैल माह में 7 से 8 दिन और मई – जून में 4 से 5 दिन के अंतराल पर करें | अगर किसान वर्ष ऋतू में भिंडी की खेती करते हैं तो आप को सिंचाई करने की जरुरत नहीं हैं |
पौधों को रोग से बचने के उपाय
भिंडी की बीज खरीदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की बीज रोगरोधी होना चाहिए | एसे भिंडी में येलोवेन मोजैक वाईरस एवं चूर्णिल रोग लगता है | लेकिन मोयला, हरा तेला, सफ़ेद मक्खी प्ररोहे एवं फल छेदक कीट, रेड स्पाइडर माइट कीट पौधों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं |
पीत शिरा रोग (यलो वेन मोजैक वाइरस)
इस रोग की लक्षण यह है की पत्तियों की शिराएं पीली पडने लगती है। पूरी पत्तियाँ एवं फल भी पीले रंग के हो जाते है पौधे की बढवार रुक जाती है |
रोकथाम :- इसकी रोकथाम के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें |
चूर्णिल आसिता
इस रोग में भिंडी की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त हल्के पीले धब्बे पडने लगते है |
रोकथाम : इस रोग की रोकथाम के लिए ये सफेद चूर्ण वाले धब्बे काफी तेजी से फैलते है। इस रोग का नियंत्रण न करने पर पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो सकती है। इस रोग के नियंत्रण हेतु घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा अथवा हेक्साकोनोजोल 5 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिए |
कीट से पौधों की बचाव
प्ररोह एवं फल छेदक :- इसकी लक्ष्ण यह है की इस कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में अधिक होता है। प्रारंभिक अवस्था में इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे तना सूख जाता है। फूलों पर इसके आक्रमण से फल लगने के पूर्व फूल गिर जाते है। फल लगने पर इल्ली छेदकर उनको खाती है जिससे फल मुड जाते हैं एवं खाने योग्य नहीं रहते है |
रोकथाम :- रोकथाम हेतु क्विनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी., क्लोरपाइरोफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. अथवा प्रोफेनफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. की 2.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करें तथा आवयकतानुसार छिडकाव को दोहराएं |
हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी:- इस कीट का लक्षण यह है की ये सूक्ष्म आकार के कीट पत्तियों, कोमल तने एवं फल से रस चूसकर नुकसान पहुंचाते है |
रोकथाम :- रोकथाम हेतु आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराए ।
रेड स्पाइडर माइट
यह माइट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर भारी संख्या में कॉलोनी बनाकर रहता हैं। यह अपने मुखांग से पत्तियों की कोशिकाओं में छिद्र करता हैं । इसके फलस्वरुप जो द्रव निकलता है उसे माइट चूसता हैं। क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली पडकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं। अधिक प्रकोप हो ने पर संपूर्ण पौधे सूख कर नष्ट हो जाता हैं।
रोकथाम :- इसकी रोकथाम हेतु डाइकोफॉल 18.5 ई. सी. की 2.0 मिली मात्रा प्रति लीटर अथवा घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराए ।
भिंडी
भिंडी की कृषि कार्यमाला :- :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भिंडी । Abelmoschus esculentus (L.) Moench एक लोकप्रिय सब्जी है। सब्जियों में भिंडी का प्रमुख स्थान है जिसे लोग लेडीज फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान भाई अधिक लाभ अर्जित कर सकते है। मुख्य रुप से भिंडी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवणों जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस के अतिरिक्त विटामिन ‘ए’, बी, ‘सी’, थाईमीन एवं रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है। इसमें विटामिन ए तथा सी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते है। भिंडी के फल में आयोडीन की मात्रा अधिक होती है। भिंडी का फल कब्ज रोगी के लिए विशेष गुणकारी होता है। म. प्र. में लगभग 23500 हे. में इसकी खेती होती है। प्रदेश के सभी जिलों में इसकी खेती की जा सकती हैं। अधिक उत्पादन तथा मौसम की भिंडी की उपज प्राप्त करने के लिए संकर भिंडी की किस्मों का विकास कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किया गया हैं। ये किस्में येलो वेन मोजैक वाइरस रोग को सहन करने की अधिक क्षमता रखती हैं। इसलिए वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर उच्च गुणवत्ता का उत्पादन कर सकते हैं। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भूमि व खेत की तैयारी :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भिंडी के लिये दीर्घ अवधि का गर्म व नम वातावरण श्रेष्ठ माना जाता है। बीज उगने के लिये 27-30 डिग्री से०ग्रे० तापमान उपयुक्त होता है तथा 17 डिग्री से०ग्रे० से कम पर बीज अंकुरित नहीं होते। यह फसल ग्रीष्म तथा खरीफ, दोनों ही ऋतुओं में उगाई जाती है। भिंडी को उत्तम जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है। भूमि का पी0 एच० मान 7.0 से 7.8 होना उपयुक्त रहता है। भूमि की दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरी कर तथा पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उत्तम किस्में :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पूसा ए -4 : | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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परभनी क्रांति: | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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पंजाब -7 : | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
यह किस्म भी पीतरोग रोधी है। यह प्रजाति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा निकाली गई हैं। फल हरे एवं मध्यम आकार के होते है। बुआई के लगभग 55 दिन बाद फल आने शुरू हो जाते है। इसकी पैदावार 8-12 टन प्रति है० है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अर्का अभय : | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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अर्का अनामिका: | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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हिसार उन्नत: | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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वी.आर.ओ. -6: | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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बीज की मात्रा व बुआई का तरीका - | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 कि०ग्रा० तथा असिंचित दशा में 5-7 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेअर की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोये जाते है। बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिये 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। वर्षाकालीन भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 40-45 सें.मी. एवं कतारों में पौधे की बीच 25-30 सें.मी. का अंतर रखना उचित रहता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार की दूरी 25-30 सें.मी. एवं कतार | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
में पौधे से पौधे के मध्य दूरी 15-20 से.मी. रखनी चाहिए। बीज की 2 से 3 सें०मी० गहरी बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के पूर्व भिंडी के बीजों को 3 ग्राम मेन्कोजेब कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। पूरे खेत को उचित आकार की पट्टियों में बांट लें जिससे कि सिंचाई करने में सुविधा हो। वर्षा ऋतु में जल भराव से बचाव हेतु उठी हुई क्यारियों में भिण्डी की बुवाई करना उचित रहता है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
बुआई का समय :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में तथा वर्षाकालीन भिंडी की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है। यदि भिंडी की फसल लगातार लेनी है तो तीन सप्ताह के अंतराल पर फरवरी से जुलाई के मध्य अलग-अलग खेतों में भिंडी की बुवाई की जा सकती है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
खाद और उर्वरक - | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की क्रमशः 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
निराई व गुडाई :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नियमित निंदाई-गुडाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद प्रथम निंदाई-गुडाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण हेतु रासायनिक नींदानाशकों का भी प्रयोग किया जा सकता है। खरपतवारनाशी फ्ल्यूक्लरेलिन की 1.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व मात्रा को प्रति हेक्टर की दर से पर्याप्त नम खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से प्रभावी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सिंचाई :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
सिंचाई मार्च में 10-12 दिन, अप्रैल में 7-8 दिन और मई-जून मे 4-5 दिन के अन्तर पर करें। बरसात में यदि बराबर वर्षा होती है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती है । | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
पौध संरक्षण :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भिंडी के रोगो में यलो वेन मोजैक वाइरस एवं चूर्णिल आसिता तथा कीटों में मोयला, हरा तेला, सफेद मक्खी, प्ररोहे एवं फल छेदक कीट, रेड स्पाइडर माइट मुख्य है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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कटाई व उपज :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भिन्डी की फली तुडाई हेतु सी. आई. ए. ई., भोपाल द्धारा विकसीत ओकरा पॉड पिकर यन्त्र का प्रयोग करें। किस्म की गुणता के अनुसार 45-60 दिनों में फलों की तुडाई प्रारंभ की जाती है एवं 4 से 5 दिनों के अंतराल पर नियमित तुडाई की जानी चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी फसल में उत्पादन 60-70 क्विंटल प्रति हेक्टर तक होता है। भिंडी की तुडाई हर तीसरे या चौथे दिन आवश्यक हो जाती है। तोड़ने में थोड़ा भी अधिक समय हो जाने पर फल कडा हो जाता है। फल को फूल खिलने के 5-7 दिन के भीतर अवश्य तोड़ लेना चाहिए। उचित देखरेख, उचित किस्म व खाद- उर्वरकों के प्रयोग से प्रति हेक्टेअर 130-150 कुन्तल हरी फलियाँ प्राप्त हो जाती हैं। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
भिंडी की खेती का आर्थिक विश्लेषण :- | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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