प्याज की खेती

प्याज की खेती






  1. परिचय

  2. गुण एवं उपयोग

  3. बिहार में सब्जी उत्पादन

  4. भारत में प्याज के विकसित प्रभेद एवं उनकी विशेषताएं

  5. बागवानी

  6. बीज की मात्रा

  7. बरसाती प्याज की खेती

  8. निकाई गुड़ाई एवं सिंचाई

  9. फसल चक्र

  10. रोग एवं व्याधि

  11. बीजोत्पादन

  12. भंडारण








परिचय


प्याज “ऐमारलीडेसी” परिवार का सदस्य है। इसका वैज्ञानिक नाम एलियस सेपा है। अंग्रेजी में इसे ओनियन कहा जाता है। पूरे संसार में इसकी मांग है।

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गुण एवं उपयोग


प्याज की खेती 5 हजार वर्षो और इससे अधिक समय से होती आयी है। चूँकि प्याज में गंधक युक्त यौगिक पाये जाते हैं इसी वजह से प्याज में गंध और तीखापन होता है।

मूंग(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

दवा के रूप में इसके उपयोग से खून के प्लेट बनने में अवरोध पैदा होता है जिससे मनुष्य की पतली नसों में खून के प्रवाह में बाधा पैदा नहीं होती है।

1.  मसाले के रूप में

2.  आयुर्वेदीय औषधि में

3.  भोजन स्वादिष्ट बनाने में

4.  सलाद बनाने में

5.  आँख की ज्योति बढ़ाने में

6.  मवेशियों एवं मुर्गियों के भोजन में

7.  कीटनाशक के रूप में

8.  प्याज में विटामिन-सी, लोहा और चूना अधिक पाया जाता है।

इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और वर्षा रहित जलवायु की सर्वोत्तम होती है। प्याज के लिए शुरू में 200 सें. गर्मी और 4 से 10 घंटे की धूप लेकिन बाद में 10सें. गर्मी तथा 12 घंटे धूप अच्छी होती है। अन्य देशों में इसकी औसत उपज 15 टन/हें. है। वर्ष 1980 से अभी तक इसकी उपज में 65.55% की वृद्धि हुई है। भारत वर्ष में औसत उपज 10.32 टन/हें. है जबकि विश्व के अन्य देशों में औसत उपज 15 टन/हें. है।

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बिहार में सब्जी उत्पादन


किसी भी सब्जी के वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन में उसके प्रभेदों का अधिक महत्व है तथा हमारी मिट्टी के लिए कौन सा अनुशंसित प्रभेद हैं इसका ध्यान रखना अधिक आवश्यक है। कुछ अनुशंसित प्रभेदों के नाम नीचे दिये जा रहे हैं। ये अधिक उपज देते हैं साथ ही साथ यहाँ की जलवायु के लिए पूर्णतया उपयुक्त हैं।

भारत में प्याज के विकसित प्रभेद एवं उनकी विशेषताएं

























































प्रभेदों के नाम

विशेषताएं


पूसा रेडलाल रंग, गोल, उपज 20-30 टन/हें., भंडारण में विशेष अच्छा तथा कहीं भी अपने को समायोजित करने की क्षमता।
पूसा रत्नारगहरा लाल प्रभेद, गोलाकार बड़ा, 30-40 टन/हें. उपज क्षमता।
पूसा माधवीहल्के लाल रंग, अच्छा भंडारण क्षमता, 30-35 टन/हें. उपज क्षमता।
पंजाब सेलेक्शनहल्का लाल, उपज क्षमता 20 टन/हें., एन-53 गहरा लाल, उपज क्षमता 15-20 टन/हें., खरीफ फसल के लिए उपयुक्त।
अरका निकेतनहल्का लाल, उपज क्षमता 33 टन/हें., भंडारण के लिए उपयुक्त।
अरका कल्याणगहरा लाल, उपज क्षमता 33 टन/हें., भंडारण के लिए उपयुक्त।
अरका बिंदुचमकीला गहरा लाल, 100 दिनों में तैयार, 25 टन/हें. निर्यात के लिए उपयुक्त।
बसवंत 780चमकीला लाल।
एग्री फाउंड लाइट रेडहल्का लाल, भंडारण में अच्छा, उपज क्षमता 30 टन/हें. ।
पंजाब रेड राउंडलाल, उपज क्षमता 30 टन/हें. ।
कल्याणपुर रेड राउंडगहरा लाल, गोल, उपज क्षमता 30 टन/हें. ।खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23 : सरकार ने 14 फसलों की एमएसपी बढ़ाई(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
हिसार-IIहल्का लाल, उपज क्षमता 20 टन/हें. ।

 

उजला प्रभेदों के नाम

पूसा हवाइट फ्लाइट उपज क्षमता 30-35 टन/हें., भंडारण के लिए उपयुक्त, सगा प्याज के लिए उपयुक्त। एन 257-9-1, गोलाकार चिपटा, उपज 25-30 टन/हें. ।

पीले रंग का प्रभेद

अर्ली ग्रानो          बड़ा कंद, सलाद के लिए उपयुक्त, उपज क्षमता 50-60 टन/हें. ।

ब्राउन स्पेनिश       उपज क्षमता 20-25 टन/हें. ।

इसके अलावे प्याज के और प्रभेद भी हैं जिसे किसान सब्जी बीज की दुकान से प्राप्त कर लगाते हैं। वे प्रभेद भी रजिस्टर्ड कम्पनी की होती है लेकिन यह उनकी विश्वसनीयता पर निर्भर करती है।

बागवानी


प्याज की बागवानी हेतु भूमि का चयन भी आवश्यक है क्योंकि कंद का विकास भूमि की संरचना पर भी निर्भर करती है।

जीवांशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। अधिक अम्लीय मिट्टी सर्वथा अनुपयुक्त है। जमीन की जुताई अच्छी के साथ-साथ खाद एवं उर्वरक जुताई के समय डालकर अच्छी तरह मिला दिया जाय। मिलाने के बाद पाटा देना चाहिए। इससे खेत की नमी सुरक्षित रहती है तथा खाद को मिट्टी में मिलाने में आसानी होती है। भूमि की तैयारी के साथ पौधशाला की भी तैयारी उतनी ही आवश्यक है। पौधशाला की तैयारी में ख़ास ध्यान देकर उसे खरपतवार से मुक्त कर मिट्टी को भुरभुरी बनाये। पौधशाला में जल जमाव नहीं हो इसका विशेष ध्यान दें। पौधशाला को छोटी क्यारियों में बाँट दें। पौधशाला अपनी आवश्यकता अनुसार बनावें। साधारणतया एक हेक्टेयर प्याज की खेती हेतु 1/12 हें. में बीज लगाते हैं।

पौधशाला में बीज गिराने के बाद उसे पुआल आदि से ढँक देते हैं। बिचड़े को 4-5 सेंमी. के होने के बाद, डायथेन एम-45 का छिड़काव किया जाय ताकि सड़ने गलने से बच सकें।

बीज की मात्रा


बीज की गुणवत्ता के आधार पर ही इसकी मात्रा निर्भर करती है। (क) बीज स्वस्थ हों, (ख) बीज की अंकुरण क्षमता प्रमाणित हो, (ग) बीज हमेशा नामांकित जगहों से प्राप्त करें।

एक हेक्टेयर प्याज लगाने के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

प्याज की बुआई तीन प्रकार से की जाती है:

(क) सीधे बीज डालकर: इसे बलुआही मिट्टी में उपयोग करते हैं। इस विधि में मिट्टी को अच्छे ढंग से तैयार कर बीज खेत में छोड़ देते हैं। इस विधि में बीज की मात्रा 7-8 किलो प्रति हें. लगाते हैं।

(ख) गांठों से प्याज लगाना: छोटे प्याज के गांठों को अप्रैल-मई में लगायी जाती है। प्याज की 12-14 क्विंटल प्रति हें. गाँठ लगते हैं।

(ग) बीज से पौध तैयार कर खेत में लगाना: यह प्रचलित विधि है जिसके द्वारा प्याज की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

बुआई का समय: पौधशाला में बोआई: अक्टूबर-नवम्बर।

खेत में रोपाई: दिसम्बर-जनवरी।

बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर के सब्जी विभाग में कुछ वर्षों के लगातार प्रयोग के आधार पर (खाद एवं उर्वरक) में निम्नलिखित तथ्य सामने आये है और इन तथ्यों को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी द्वारा अनुशंसित किया गया है।

सबौर क्षेत्र में प्याज के पूसा रेड प्रभेद हेतु पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सें.मी. रखने की अनुशंसा की गयी है।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा: कम्पोस्ट 10 टन, 150 किलो नेत्रजन, 60 किलो  फास्फोरस एवं 30 किलो पोटाश प्रति हें. देने की अनुशंसा की गयी है।

नेत्रजन का प्रयोग तीन बार करें और वह भी सिंचाई के बाद। स्फूर एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयारी के समय ही दी जाय।

बरसाती प्याज की खेती


बरसाती प्याज के लिए अनुशंसित प्रभेदों में एन.-53 की खेती ज्यादा हो रही है। इसकी अच्छी पैदावार के लिएनिम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।

महाराष्ट्र में इसकी खेती अधिक क्षेत्र में हो रही है। मुख्य फसल से प्राप्त प्याज के गांठों को अक्टूबर-नवम्बर से आगे तक भंडारण नहीं किया जा सकता है। सभी प्राय: फूट जाती है और गाँठ खोखले हो जाते हैं। उनकी विक्री समाप्त हो जाती है।

बरसाती प्याज की खेती मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा बिहार में भी हो रही है। नेफेड के द्वारा सेट उगाकर लगाने की तकनीक भी विकसित की गई है जो लाभकारी है।

बीज बोने का समय        - मई के अंतिम सप्ताह से जून तक

प्रतिरोपण                - अगस्त

अलगाने का समय         - दिसम्बर-जनवरी

अन्य प्रभेद जिसकी खेती बरसाती प्याज के रूप में की जाती है – एग्रीफाऊड डाकरेड, बसवंत 780, अरका कल्याण, उपज 19 -20 टन/हें. ।

बरसाती प्याज के लिए सेट तैयार करना

दिसम्बर जनवरी के माह में प्याज के बिचडों में छोटा गाँठ बाँधने पर पौधशाला से ही उखाड़ लिये जाते हैं। इन्हें गुच्छों में बांधकर रख देते हैं। रखने से पहले इसे धूप में सुखाते भी हैं। इन सेटों का प्रतिरोपण अगस्त में करते हैं। इनकी गाँठ 2 से 2.5 सें. आकार की अधिक उपयुक्त है। 25 ग्राम बीज प्रतिवर्ग मी. में बोआई करें। 12-15 क्विंटल सेट्स/हेक्टेयर के लिए आवश्यक है।

सागा प्याज उगाने के तकनीक

सागा प्याज में पूरी गाँठ बनने से पहले पौधा सहित उखाड़ना ही सागा प्याज की खेती में व्यवहार करते हैं। सागा प्याज की खपत है, प्याज की तैयार फसल की तरह करते हैं। प्रयोग के आधार पर सागा प्याज की खेती के लिए अर्ली ग्रानो, पूसा हवाइट फ़्लैट तथा पूसा हवाइट राउंड उपयुक्त पाये गये हैं।

निकाई गुड़ाई एवं सिंचाई


प्याज एक ऐसी फसल है जिसमें बिचड़े की रोपनी के बाद यानि जब पौधे स्थिर हो जाते हैं तब इसमें निकौनी एवं सिंचाई की आवश्यकता पड़ती रहती है। इस फसल में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें 15-20 सें.मी. सतह पफ फैलती है।

1.  इसमें पाँच दिनों के अंतराल पर सिंचाई चाहिए।

2.  इस फसल में 12-14 सिंचाई देना चाहिए।

3.  अधिक गहरी सिंचाई हानिकारक है।

4.  पानी की कमी से खेतों में दरार न बन पाये।

आरम्भ में 10-12 दिनों के अंतर पर सिंचाई करें। पुन: गर्मी आने पर 5-7 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए।

हर दो-तीन सिंचाई के साथ घास-पात की निकासी आवश्यक है। इससे पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व एवं प्रकाश मिलता रहता है।

खरपतवार के नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी टोक ई 25 का छिड़काव 5 ली. प्रति हें. की दर से करना चाहिए।

फसल चक्र































प्रथम वर्ष



द्वितीय वर्ष



तृतीय वर्ष


आलू (अगात)आलू (मध्य)प्याज
फूलगोभी (अगात)आलूप्याज
धानप्याजप्याज
आलू (अगात)फूलगोभी (मध्य)प्याज

 

रोग एवं व्याधि


प्याज की आंगमारी: पत्ते पर भूरे धब्बे बाद में पत्ते सूख जाते हैं – इसके लिए 0.15% डायथेन जेड-78 का छिड़काव करें।

मृदुरोमिल फफूंदी: पत्ते पहले पीले, हरे और लम्बे हो जाते हैं तथा उन पत्तों पर गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं। बाद में ये पत्ते मुड़ने और सूखने लगते हैं।

इसकी रोक थाम के लिए 0.35% ताम्बा जनित फफूंदी नाशक दवा का छिड़काव करें।

गले का गलन: इसके प्रकोप होने पर शल्क गलकर गिरने लगते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए फसल को कीड़े और नमी से बचावें।

प्याज का थ्रिप्स: इसके पिल्लू कीड़े पत्तों और जड़ों को छेद कर रस चूसते हैं। फलस्वरूप पत्तियों पर उजली धारियाँ दिखाई पड़ने लगते हैं और सारा फसल सफेद दिखने लगते हैं।

रोकथाम: इसके रोकथाम के लिए कीटनाशी दवा (मालाथियान) का छिड़काव करें।

फसल की कटाई: जब पौधों के तने सूखने लगे और सूखकर तना पीछे मुड़ने लगे तब प्याज के कंदों को खुरपी के सहारे उखाड़ लिया जाय।

गाँठ सहित पौधों को तीन-चार सप्ताह तक छाया में अवश्य सूखा लें।

बीजोत्पादन


जमीन की तैयारी पूर्व की तरह ही करें। बीज का उत्पादन

(क) कंद से बीज

(ख) बीज से बीज प्याज के कंद से ही बीज उत्पादन होता है। प्याज पर परागित पौधा है अत: एक ही किस्म के बीज एक जगह लगते हैं और दो किस्मों के बीच पर्याप्त दूरी छोड़ते हैं (कम से कम 700 मीटर) कंद लगाने का समय अक्टूबर है। फूल जनवरी में लगते हैं। समय-समय पर परागण हेतु प्याज के फल लगे डंठलों को हिलाना आवश्यक होता है, ताकि पूर्ण परागण हो सके।

(ग) पुराने एवं स्वस्थ गांठों को जमीन में रोपते हैं इन गांठों से बीज के बाल निकलते हैं। फूल लगते हैं। फूल के गुच्छे जब सूख जाते हैं तो इसे झाड़कर बीज प्राप्त करते हैं।

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भंडारण


सूखे कंदों को हल्की मिट्टी के ऊपर फैलाकर रखते हैं। इसे अनुकरण से बचाने के लिए मैलिक हाइड्राजाइड नामक रासायनिक दवा का (1000 से 1500 पी.पी.एम.) छिड़काव कर देते हैं।


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प्याज उत्पादन की उन्नत तकनीक


हालांकि प्याज की खेती के लिए मिट्टी प्रदेश के हिसाब से अलग-अलग होती है. लेकिन इसकी अच्छी फसल और जल निकासी के लिए दोमट मिट्टी (काली मिट्टी) और जैविक उर्वरकों से भरपूर मध्यम से दोमट मिट्टी में होती है. इस मिट्टी में प्रति हेक्टेयर 40 से 50 टन देसी खाद डालने से पैदावार अत्यधिक होती है



प्याज उत्पादन की उन्नत तकनीक


परिचयः


प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है इसमें प्रोटीन एवं कुछ बिटामिन भी अल्प मात्रा में रहते है प्याज में बहुत से औसधीय गुण पाये जाते है। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है।भारत के प्याज उत्पादक राज्यो में महाराष्ट्र, गुजरात, उ.प्र., उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, म.प्र., आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है भारत से प्याज का निर्यातमलेसिया, यू.ए.ई. कनाड़ा , जापान, लेबनान एवं कुबेत में निर्यात किया जाता है।

जलवायु:


यद्यपि प्याज ठण्डे मौसम की फसल हैं, लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता हैं। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 210से. ग्रे. तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 150 से. ग्रे. से 250 से. ग्रे. का तापक्रम उत्तम रहता हैं।

सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

मृदा:


प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है,प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा वलूई दोमट भूमिजिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए।

उन्नत किस्में:




  1. एग्री फाउण्ड डार्क रेड:



यह किस्म भारत में सभी क्षैत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर । यह किस्म खरीफ प्याज(वर्षात की प्याज ) उगाने के लिए अनुसंशित है।


  1. एन-53 :



भारत के सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ प्याज (वर्षातकी प्याज) उगाने हेतु अनुसंशित किस्म हैं।


  1. भीमा सुपर:



यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 किवंटल तक उपज देती है।

टमाटर(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

भूमि की तैयारी:


प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व हैं। खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाऐं जिससे नमी सुरक्षित रहें तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाऐ। भूमि को सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर चैड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है अतः खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक:


प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वो की आवश्यकता होती है प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर देने की अनुसंशा की जाती हैं। इसके अतिरिक्त सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं

पौध तैयार करना:


पौध शाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला का आकार 3 मीटर ग 0.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं, पौध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर ले। बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए।

खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सकें। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फब्बारें से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलिटेनल में उगाना उपयुक्त होगा।

बीज की मात्रा:


खरीफ मौसम के लिए 15-20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।

पौधशाला शैय्या पर बीज की बुवाई एवं रोपाई का समय:


खरीफ मौसम हेतु पौधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में बुवाई 1-15 जून तक कर देना चाहिए, जब पौध 45 दिन की हो जाऐ तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता हैं। पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धिति से तैयार खेतों पर करना चाहिए, इसमें 1.2 मीटर चैड़ी शैय्या एवं लगभग 30 से.मी. चैड़ी नाली तैयार की जाती हैं।

खरपतवार नियंत्रण:


फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जडे भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग किया जाना उचित होता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर अथवा आॅक्सीफ्लोरोफेन 600-1000 मिली/हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाये गये हैं।

सिंचाई एवं जलनिकास:


खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता हैं उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाऐ कि शल्ककन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती हैं क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं।

काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाऐगंे एवं फसल जल्दी आ जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए। यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाऐ तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोेग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं।

कंदों की खुदाई:


खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगे तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।

फसल सुरक्षा:-


थ्रिप्स:

ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं।

इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रि कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली./हे. 500-600 लीटर पानी मंे मिलाकर छिड़काव करें।
माइट:

इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05 डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।

बैंगनी धब्बा (परपल ब्लाच):



  • यह एक फफूंदी जनित रोग हैं, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता हैं पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पोधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं

  • इसके लक्षण दिखाई देने पर मेनकोजेब (5 ग्रा./ली. पानी) का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें। इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ जैसे सैन्उो विट, ट्राइटोन या साधारण गोंद अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सकें।


उपज:











खरीफ प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 250-300 क्विंटल तक मिल जाती हैं।

खरीफ प्याज की खेती में होने वाले आय-व्यय का अनुमानित विवरण (प्रति हेक्टेयर)






































विवरण


खेती पर व्यय
(
रू.)


खेत की तैयारी






  • जुताई 2 बार,6 घण्टे प्रति जुताई /400/- प्रति घण्टा



  • कल्टीवेटर एक बार, 6 घण्टे प्रति जूताई /400/- प्रति घण्टा



  • खेत का समतलीकरण. क्यारियाॅ. सिंचाई लालियाॅ और मेड बनाना




4800.00

2400.00

2000.00


खाद और उर्वरक

गोबर की खाद/कम्पोस्ट 20 टन, / 2500/- प्रति टन

रासायनिक उर्वरक

बीज 15 किग्रा. / 650 प्रति किग्रा.

बीज बोना, पौधे तैयार करना, रोपाई 30 मजदूर /200/- प्रति मजदूर

खरपतवार नियंत्रण, सिचाई 20 / 200 प्रति मजदूर

निराई-गुडाई दो-दो बार, 30 मजदूर प्रति / 200/-मजदूर

पौघ संरक्षण उपाय, दवायें एवं मजदूरी

कंद छॅटाई, सफाई, भण्डारण, बोरे एवं भराई

विक्रय हेतू खेतों से बाजार तक परिवहन लागत

अन्य व्यय
50000.00

5200.00

9750.00

6000.00

4000.00

12000.00

5000.00

4000.00

5000.00

4000.00

5000.00

कुल लागत

1,19,150.00

उत्पादन 225 क्विं/हेक्टेयर, विक्रय मूल्य 1600/- प्रति क्विंटल

3,60,000.00

लाभ लागत अनुपात

1:3.02




प्याज




































































































































परिचयः

प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है इसमें प्रोटीन एवं कुछ बिटामिन भी अल्प मात्रा में रहते है प्याज में बहुत से औसधीय गुण पाये जाते है। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है।भारत के प्याज उत्पादक राज्यो में महाराष्ट्र, गुजरात, उ.प्र., उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडू, म.प्र., आन्ध्रप्रदेश एवं बिहार प्रमुख हैं। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है। म.प्र. में प्याज की खेती खंण्डवा, शाजापुर, रतलाम छिंन्दवाडा सागर एवं इन्दौर में मुख्य रूप से की जाती हैसामान्य रूप में सभी जिलो में प्याज की खेती की जाती है।भारत से प्याज का निर्यातमलेसिया, यू.ए.ई. कनाड़ा , जापान, लेबनान एवं कुबेत में निर्यात किया जाता है।


जलवायु:

यद्यपि प्याज ठण्डे मौसम की फसल हैं, लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता हैं। कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 210से. ग्रे. तापक्रम उपयुक्त माना जाता है। जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 150 से. ग्रे. से 250 से. ग्रे. का तापक्रम उत्तम रहता हैं।



मृदा:



प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है,प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा वलूई दोमट भूमिजिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है, प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए।



उन्नत किस्में:



म.प्र में खरीफ प्याज की प्रमुख उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं-



1. एग्री फाउण्ड डार्क रेड:















यह किस्म भारत में सभी क्षैत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसके शल्क कन्द गोलाकार, 4-6 सेमी. आकार वाले, परिपक्वता अवधि 95-110, औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर । यह किस्म खरीफ प्याज(वर्षात की प्याज ) उगाने के लिए अनुसंशित है।





2. एन-53 :


भारत के सभी क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, इसकी परिपक्वता अवधि 140 दिन, औसत उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, इसे खरीफ प्याज (वर्षातकी प्याज) उगाने हेतु अनुसंशित किस्म हैं।






3. भीमा सुपर:











यह किस्म भी खरीफ एवं पिछेती खरीफ के लिये उपयुक्त है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है तथा प्रति हेक्टेयर 250-300 किवंटल तक उपज देती है।






भूमि की तैयारी:



प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व हैं। खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाऐं जिससे नमी सुरक्षित रहें तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाऐ। भूमि को सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर चैड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है अतः खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए।



खाद एवं उर्वरक:



प्याज की फसल को अधिक मात्रा में पोषक तत्वो की आवश्यकता होती है प्याज की फसल में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर रोपाई से एक-दो माह पूर्व खेत में डालना चाहिए। इसके अतिरिक्त नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर देने की अनुसंशा की जाती हैं। इसके अतिरिक्त सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर प्याज की गुणवत्ता सुधारने के लिए आवश्यक होते हैं



पौध तैयार करना:



पौध शाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें इसके पश्चात् उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट डालना चाहिए। पौधशाला का आकार 3 मीटर ग 0.75 मीटर रखा जाता हैं और दो क्यारियों के बीच 60-70 सेमी. की दूरी रखी जाती हैं जिससे कृषि कार्य आसानी से किये जा सके। पौधशाला के लिए रेतीली दोमट भूमि उपयुक्त रहती हैं, पौध शैय्या लगभग 15 सेमी. जमीन से ऊँचाई पर बनाना चाहिए बुवाई के बाद शैय्या में बीजों को 2-3 सेमी. मोटी सतह जिसमें छनी हुई महीन मृदा एवं सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद से ढंक देना चाहिए। बुवाई से पूर्व शैय्या को 250 गेज पालीथीन द्वारा सौर्यकरण उपचारित कर ले। बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सकें। पौधशाला में अंकुरण हो जाने के बाद पलवार हटा देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाये कि पौधशाला की सिंचाई पहले फब्बारें से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलिटेनल में उगाना उपयुक्त होगा।



बीज की मात्रा:



खरीफ मौसम के लिए 15-20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती हैं।



पौधशाला शैय्या पर बीज की बुवाई एवं रोपाई का समय:



खरीफ मौसम हेतु पौधशाला शैय्या पर बीजों की पंक्तियों में बुवाई 1-15 जून तक कर देना चाहिए, जब पौध 45 दिन की हो जाऐ तो उसकी रोपाई कर देना उत्तम माना जाता हैं। पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धिति से तैयार खेतों पर करना चाहिए, इसमें 1.2 मीटर चैड़ी शैय्या एवं लगभग 30 से.मी. चैड़ी नाली तैयार की जाती हैं।



खरपतवार नियंत्रण:



फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए कुल 3 से 4 निराई-गुडाई की आवश्यकता होती है। प्याज के पौधे एक-दूसरे के नजदीक लगाये जाते है तथा इनकी जडे भी उथली रहती है अतः खरपतवार नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग किया जाना उचित होता है। इसके लिए पैन्डीमैथेलिन 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर अथवा आॅक्सीफ्लोरोफेन 600-1000 मिली/हेक्टेयर खरपतवार नाशक पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना बहुत प्रभावी और उपयुक्त पाये गये हैं।



सिंचाई एवं जलनिकास:



खरीफ मौसम की फसल में रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता हैं उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाऐ कि शल्ककन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती हैं क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाऐगंे एवं फसल जल्दी आ जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए। यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रूक जाऐ तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोेग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं।



कंदों की खुदाई:



खरीफ प्याज की फसल लगभग 5 माह में नवम्बर-दिसम्बर माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगे तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।



फसल सुरक्षा:-



1. थ्रिप्स:















ये कीट पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं।





इसके नियंत्रण हेतु नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रि कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली./हे. 500-600 लीटर पानी मंे मिलाकर छिड़काव करें।






माइट:










इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05ः डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।




बैंगनी धब्बा (परपल ब्लाॅच):















यह एक फफूंदी जनित रोग हैं, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता हैं पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पोधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।





इसके लक्षण दिखाई देने पर मेनकोजेब (2.5 ग्रा./ली. पानी) का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें। इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ जैसे सैन्उो विट, ट्राइटोन या साधारण गोंद अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सकें।






उपज:



खरीफ प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 250-300 क्विंटल तक मिल जाती हैं।



खरीफ प्याज की खेती में होने वाले आय-व्यय का अनुमानित विवरण (प्रति हेक्टेयर)







































विवरणखेती पर व्यय
(रू.)
खेत की तैयारी


  • जुताई 2 बार,6 घण्टे प्रति जुताई /400/- प्रति घण्टा

  • कल्टीवेटर एक बार, 6 घण्टे प्रति जूताई /400/- प्रति घण्टा

  • खेत का समतलीकरण. क्यारियाॅ. सिंचाई लालियाॅ और मेड बनाना


4800.002400.00

2000.00
खाद और उर्वरक
गोबर की खाद/कम्पोस्ट 20 टन, / 2500/- प्रति टन

रासायनिक उर्वरक


बीज 15 किग्रा. / 650 प्रति किग्रा.

बीज बोना, पौधे तैयार करना, रोपाई 30 मजदूर /200/- प्रति मजदूरखरपतवार नियंत्रण, सिचाई 20 / 200 प्रति मजदूर

निराई-गुडाई दो-दो बार, 30 मजदूर प्रति / 200/-मजदूर


पौघ संरक्षण उपाय, दवायें एवं मजदूरी

कंद छॅटाई, सफाई, भण्डारण, बोरे एवं भराईविक्रय हेतू खेतों से बाजार तक परिवहन लागत

अन्य व्यय
50000.005200.00

9750.006000.00

4000.0012000.00

5000.004000.00

5000.004000.00

5000.00
कुल लागत1,19,150.00
उत्पादन 225 क्विं/हेक्टेयर, विक्रय मूल्य 1600/- प्रति क्विंटल3,60,000.00
लाभ लागत अनुपात1:3.02

 


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