मिर्च की खेती

मिर्च की खेती


मिर्च की खेती











  1. परिचय

  2. जलवायु

  3. मृदा

  4. किस्म

  5. खेत की तैयारी

    1. बिचड़ा के लिए खेत की तैयारी एंव समय



  6. रोपाई की विधि

    1. नर्सरी में बीच बोने की विधि



  7. खाद का प्रयोग

  8. खाद प्रयोग की विधि

  9. फसल चक्र व अंतः सस्यन

  10. सिंचाई

  11. निकाई-गुड़ाई

  12. फलों की तुड़ाई

  13. उत्पादन

    1. बीज उत्पादन



  14. पादप संरक्षण








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परिचय


मिर्च कैप्सिकम एनम कुल-सोलेनेसी) एक गर्म मौसम का मसाला है जिसके आभाव में कोई सब्जी कितनी ही मेहनत से तैयार किया गयी हो, फीकी होती है। इसका उपयोग ताजे, सूखे एवं पाउडर-तीनों रूप में किया जाता है। इसमें विटामिन  ए व सी पाया जाता है।

यह मुख्य रूप से तीन तरह का होता है- मसालों वाली साधारण, आचार वाली व शिमला मिर्च। इसकी कुछ प्रजातियाँ काफी तिक्त व कुछ कम अथवा नहीं के बराबर होती है। इसकी तिक्ता एक रसायन- कैप्सेसीन के कारण होती है जिसका उपयोग औषधि निर्माण के क्षेत्र में भी होता है। इसका चमकीला लाल रंग ‘केप्सैथीन’ नाम रसायन के कारण होता है।

जलवायु


मिर्च गर्म मौसम की सब्जी है। इसकी सफल खेती वैसे क्षेत्रों की जा सकती है जहाँ वार्षिक बारिश 60-150 सेंटीमीटर होती हो। ज्यादा बारिश इसे नुकसान पहुंचाती है। तापक्रम समान्य से ज्यादा एवं कम-दोनों अवस्था में इसके उपज को कम करता है। फूल आने एक समय गर्म एवं सुखी हवा फूल-फल को गिरा कर उपज कम करती है

काली मिर्च की खेती - जानें कौन-सी किस्मों से मिलेगी अच्छी पैदावार और होगा भारी मुनाफा(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

मृदा


पोषक तत्वों से भरपूर बलुई-दोमट मिट्टी इसके लिए आदर्श है। मृदा में ऑक्सीजन की कमी इसके उपज को कम करता है। अतः इसके खेतों में जलनिकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

किस्म


मिर्च – एन. पी, 46 ए, पूसा ज्वाला, पूसा सदाबहार।

शिमला मिर्च- पूसा दीप्ती, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का बसंत।

आचार मिर्च- सिंधुर ।

कैप्सेसीन उत्पादन हेतु- अपर्ना , पचास यलो।

खेत की तैयारी


4-5 गहरी जुताई और हर बार जुताई के उपरान्त पट्टा देकर खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें। इसी समय अच्छी तरह सड़े गोबर की खाद 10 टन प्रति एकड़ के हिसाब से यवहार करें। खाद यदि अच्छी तरह सड़ा न होगा तो दीमक लगने का भय रहेगा।

बिचड़ा के लिए खेत की तैयारी एंव समय


बिचड़ा उगने के लिए नर्सरी की क्यारियाँ ऊँची व जल निकास की सुविधायुक्त होनी चाहिए। इस तरह की क्यारियों की मिट्टी अच्छी जुताई कर भुरभुरी बना लेनी चाहिए।

बरसाती मिर्च की खेती हेतु बीज नर्सरी में मई-जून के  महीने में बोनी चाहिए। बिचड़ों  की रोपाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक कर देनी चाहिए। जाड़े की फसल हेतु बीच बोने का समय नवम्बर महिना है। बिचड़ों की रोपाई फरवरी के दूसरे पखवाड़े में करते हैं।

बीज की मात्रा- 200-400 ग्राम प्रति एकड़

नर्सरी खेत का क्षेत्रफल- एक एकड़ में मिर्च लगाने के लिए बिचड़ा तैयार करने हेतु ढाई डिसमिल जमीन में बीज गिराते हैं।

रोपाई की विधि


4-8 सप्ताह के मिर्च के बिचड़ों की रोपाई समतल खेत में अथवा मेढ़ों पर किया जा सकता है। पंक्तियों के बीच की दुरी 2 फुट तथा पौधों व बीच की दूरी डेढ़ फुट रखते हैं।

रोपाई के पूर्व नर्सरी में बिछड़ों  की सिंचाई 15 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिए। रोपने के लिए उखाड़ने के एक दिन पूर्व नर्सरी की क्यारियों सिंचाई कर चाहिए। ऐसा करने से जड़ नहीं टूटते। रोपाई हमेशा शाम में अथवा धूप कम रहने या नहीं रहने पर करें। रोपाई के पूर्व व बाद में थालों में पाने दे दें।

नर्सरी में बीच बोने की विधि


बोने के एक दिन पूर्व बीजों को पाने में भिगों देना चाहिए। भिंगोने के पूर्व इन्हें अच्छी तरह हाथों से रगड़ना चाहिए। बीजों को आर्द्रगलन से बचाव हेतु एग्रोसन जी.एन अथवा तूतिया के 1.25% घोल से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को छिंट कर नहीं, बल्कि पंक्तियों में बोना चाहिए जो निकाई-गुड़ाई एवं बिचड़ा निकालने में सहायता करता है। पंक्तियों की दूरी डेढ़ से दो इंच हो। बीजों की बोवाई के उपरान्त अच्छी तरह सड़े पत्तों से ढँक देना चाहिए। यदि इसकी व्यवस्था न हो तो बालू का उपयोग किया जा सकता है। क्यारियों के चारों तरफ दीमक मार दवाई का एक घेरा बना देना चाहिए। बीज बोआई के ठीक बाद सिंचाई करें।

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खाद का प्रयोग


मिर्च की खेती हेतु उचित मात्रा में पोषक तत्वों की उपलब्धता हेतु निम्नांकित खाद प्रति एकड़ (किलोग्राम) निर्द्रिष्ट समय पर प्रयोग करते हैं।











































खाद का प्रकारकार्बनिकरसायनिक
खादकम्पोस्टअमोनियम सल्फेटएस.एस.पी,एम्.ओ. पी.
प्रयोग का समय    
खेत तैयार करते समय10 टन   
अधारिय 225750100
मिट्टी चढ़ाते समय (रोपाई से डेढ़ माह बाद) 225  

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खाद प्रयोग की विधि



  1. कम्पोस्ट की सम्पूर्ण मात्रा खेत तैयार करते समय देनी चाहिए।

  2. पौधों की रोपाई के समय पंक्तियों में अमोनियम सल्फेट की आधी व एस.एस.पी. एवं एम्. ओ. पी. की सम्पूर्ण मात्रा प्रयोग करनी चाहिए।

  3. अमोनियम सल्फेट की बची मात्रा का प्रयोग पौधों के जड़ों पर मिट्टी चढ़ाते समय जो की रोपाई से प्रायः डेढ़ माह बाद किया जाता है।


फसल चक्र व अंतः सस्यन


मिर्च के साथ फसल चक्र में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसमें आलू, बैंगन अथवा टमाटर में से कोई न हों। कद्दूवर्गीय सब्जियों, प्याज या भिन्डी के साथ मिर्च का अंतः सस्यन किया जा सकता है।बाजरा(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

सिंचाई


नियमित व सावधानीपूर्वक किया गया सिंचाई अच्छी उपज हेतु जरुरी है। रोपाई के बाद शुरूआती दिनों में नमी की कमी उपज में काफी कमी लाती है। दो सिंचाइयों के बीच का अंतराल मौसम व मृदा के प्रकार पर निर्भर करता है।

निकाई-गुड़ाई


निकाई-गुड़ाई के द्वारा खेत तो खरपतवारविहीन होते ही हैं, साथ ही इनके द्वारा प्रयोग होने वाले पोषक तत्व मिर्च के पौधों द्वारा उपयोग में लाये जाते हैं एवं इनके द्वारा होने वाले रोग व कीट से भी मिर्च का बचाव होता है। दो बार हाथ से निकाई व तीन बार गुड़ाई  आवश्यक है। मिट्टी भी दो बार चढ़ाना उचित होता है।

फलों की तुड़ाई


यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुड़ाई  का मकसद की क्या है? हरी मिर्च हेतु तुड़ाई पुर्णतः तैयार होने के बाद लाल मिर्च होने के पूर्व हरी अवस्था में ही करते हैं। यह प्रायः रोपाई से 30 वें दिन से आरंभ हो जाता है। हरी मिर्च सप्ताह में दो बार तोड़ते हैं। शिमला मिर्च सप्ताह में ही बार तोड़ा जाता है। शुरू में कच्चे फलों की तुड़ाई सिर्फ आमदनी में इजाफा ही नहीं बल्कि  पौधों के विकास के साथ उपज भी बढ़ाता है। सूखे लाल मिर्च हेतु तुड़ाई हरे से लाल रंग होने पर प्रायः रोपाई से साढ़े तीन महीनें बाद करते है। तुड़ाई के उपरान्त इन्हें धूप में सुखा लेते हैं। कच्चा फल सूखने में 10-15 दिन समय लगता है। फिर इन्हें सूखे डब्बों में भंडारित कर लेते हैं। तोड़ाई प्रायः दो महीना चलता है और कुल तोड़ाई सूखे मिर्च हेतु छः बार होता है।

उत्पादन


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हरी मिर्चवर्षा आश्रित12.6. क्विंटल प्रति एकड़
 सिंचित30-40 क्विंटल प्रति एकड़
सुखी मिर्चवर्षा आश्रित2.4 क्विंटल प्रति एकड़
 सिंचित6-10 क्विंटल प्रति एकड़

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बीज उत्पादन


बीज उत्पादन हेतु मिर्च की दो किस्मों के बीच की दुरी कम से कम 400 मीटर रखा जाता है। बीज उत्पादन 2032 किलो प्रति एकड़ होता है।

पादप संरक्षण


शिमला मिर्च की जैविक खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

































































कीटलक्षणउपचार
तेलाझालदार पंखों वाला महीन कीट। वयस्व व निम्फ-दोनों पत्तों के टुकड़े-टुकड़े कर देतें हैं। कैप्सिकम में बाह्यादलपुंज के नीचे भी खातें हैं सूखे मौसम में मिर्च की बहुत ही हानिकारक कीटनुवाक्रान या रोगर 2-3 मी.ली. 0.1 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बारुथी (माईट)खुली आँखों से दिखाई नहीं पड़ने वाले सफेद बारुथी। पत्तियां अदंर की ओर मुड़ जाती है। सूखे मौसम में मिर्च की बहुत ही हानिकारक कीट।केलथेन  या रोगर 2-3 मी, ली. 1 ली.पानी में घोलकर छिड़काव करें।
माहू/लाहीमुलायम पत्तियों व कलिकाओं को खाते हैंनुवाक्रान या रोगर -23 मी, ली. 0.1 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
फलछेदकलार्वा फल पत्तियों व कलिकाओं को खाते हैं।नुवाक्रान  2-3 मी. ली. 01 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
कटुवा (कटवर्म)रात्री में कीड़े बिचडों को आधार से काट देते हैं। दिन में दरार वैगरह में छिप जाते हैं।1 मी. ली. क्लोरपाइरीफॉस1 ली.पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आर्द्रगलन/पादप गलन.डैम्पिंग ऑफ़जमीन के पास से तने नर्सरी में से ही गलने लगते हैं।कैप्टान 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से बीजोपचार
  नर्सरी को कैप्टान या इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम मात्रा को 1 ली. पाने के घोल से उपचारित कर लें।
  बीज की नर्सरी हमेशा बदला करें।
फल सड़न व् पत्र अंगमारीफलों पर छोटे जलक्रांत धब्बे बनते हैं जो उन्हें पुर्णतः सड़ा देते अहिं। पत्तों पर जलाक्रांत सफेद धब्बे अंगमारी के रूप में विकसित होते हैं।रोगरहित बीज का उपयोग।

इंडोफिल एम्-45 के 2-3  ग्राम प्रति घोल बीज से बीजोपचार।

सड़े फलों को चुनकर नष्ट कर दें। इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोलकर 8-10 दिन अंतराल पर छिड़काव करें।

 
श्यामवर्ण (एन्थ्रेकनोज)नीचे से शाखाओं सूखने लगते हैं। शाखाओं पर लाल धब्बे बनते हैं। फलों पर गहरे भूरे या काले पनीले धब्बे बनते हैं। अधिक तापमान और अधिक वर्षा इसके बढ़ने में मदद करते हैं।रोगरहित फलों से इकट्ठे बीज का प्रयोग।

इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम प्रति किलो बीज से बीजोपचार।

सड़े फलों को चुनकर नष्ट कर दें। इंडोफिल एम्-45 के 2 ग्राम प्रति ली. पानी में घोल में  छिड़काव करें।

ग्रसित पौधों को जमकर जला दें।

 
मोजैकपत्तों पर हरे चितकबरे धब्बे बनते अहिं। बाद में पत्तें मुड़ जाते हैं। फल पीले झुर्रीदार हो जाते हैं व विगलन दर्शाते है।फसल विन्यास अपनाएं ।

रोगरहित बीज का उपयोग।

नर्सरी का भाप उपचार।

सभी कृषि यंत्रों को रोगमुक्त रखें।

रोगर  2-3 मी. ली. 01 ली. पानी में घोलकर माहू के रोकथाम हेतु 10-10 दिन अतंराल पर 3-4 बार छिड़काव करें।









मिर्च उत्पादन हेतु उन्नत तकनीक





मिर्च की खेती विविध प्रकार की मिट्टियों मे जिसमे की कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त हो एवं जल निकास की उचित सुविधा हो, मे सफलतापूर्वक की जा सकती है। मिर्च की फसल जलभराव वाली स्थिति सहन नही कर पाती है। यद्यपि मिर्च को pH 6.5—8.00 वाली मिट्टी मे भी (वर्टीसोल्स) मे भी उगाया जा सकता है |
मिर्च की खेती के लिये 15 – 35 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त होती है। तथा फसल अवधि के 130 – 150 दिन के अवधि मे पाला नही पडना चाहिये।

उन्नत किस्में


काशी अनमोल (उपज 250 क्वि. / हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./ हे.), जवाहर मिर्च – 283 (उपज 80 क्वि. / हे हरी मिर्च.) जवाहर मिर्च -218 (उपज 18-20 क्वि. / हे सूखी मिर्च.) अर्का सुफल (उपज 250 क्वि. / हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि. / हे.), काषी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि. / हे.) का चयन करें। पब्लिक सेक्टर की एचपीएच-1900, 2680, उजाला तथा यूएस-611, 720 संकर किस्में की खेती की जा रही है।

पौध तैयार करना तथा नर्सरी प्रबंधन


मिर्च की पौध तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहाँ पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजो की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधषाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोटेट दवा / क्यारी मिट्टी में मिलाऐं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में टोहा करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें।

बीज की मात्रा –


मिर्च की ओ.पी. किस्मों के 500 ग्राम तथा संकर (हायब्रिड) किस्मों के 200-225 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है।

रोपाई की तकनीक एवं समय  –


मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम  मे की जा सकती है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ (जून-अक्टू.) मे तैयार की जाती है। जिसकी रोपाई जून.-जूलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फर-मार्च में की जाती है।

बाजरा की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक  –


मिर्च की फसल मे उर्वकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करे। सामन्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 200-250 क्वि गोबर की पूर्णतः सडी हुयी खाद या 50 क्वि. वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें। नत्रजन 120-150 किलों, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाष 80 किलो का प्रयोग करे।

मल्चिंग के प्रयोग की तकनीक –


मिर्च फसल की आधुनिक खेती में सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति लगाई जा रही है तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए 30 माइक्रोन मोटाई वाली अल्ट्रावॉयलेट रोधी प्लास्टिक मल्चिंग शीट का प्रयोग किया जाता है | जिससे खरपतवार प्रबंधन के साथ साथ सिंचाई जल की मात्रा भी कम रहती है |

फर्टीगेशन तकनीक द्वारा पोषक तत्व प्रबंधन –


मिर्च के पौधों जिनको फरवरी में उठी हुई क्यारी पर लगाया गया हो ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का उपयोग करे तथा जल विलेय उर्वरको जैसे 19:19:19 को सिंचाई जल के साथ ड्रिप में देने से उर्वरक की बचत के साथ साथ उसकी उपयोग क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा पौधों को आवश्यकतानुसार एवं शीघ्र पोषक तत्व उपलब्ध होने से उपज तथा गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है |

पादप वृद्धि हार्मोन्स का प्रयोग


मिर्च की फसल में प्लैनोफिक्स 10 पी पी एम का पुष्पन के समय तथा उसके 3 सप्ताह बाद छिड़काव करने से शाखाओं की संख्या में वृद्धि होती है एवं फल अधिक लगते हैं | तथा रोपाई के 18 एवं 43 दिन के बाद ट्राई केटेनॉल १ पी पी एम की ड्रेन्चिंग करने से पौधों की अच्छी वृद्धि होती है
जिब्रेलिक एसिड 10-100 पी पी एम सांद्रता को घोल के फल लगने के बाद छिड़काव करने से फल ज्यादा लगते हैं |

मिर्च के महत्वपूर्ण कीट एवं प्रबंधन तकनीक


























कीट


प्रमुख लक्षण


रोकथाम / नियंत्रण के उपाय


थ्रिप्स

वैज्ञानिक भाषा मे इसे सिटरोथ्रिटस डोरसेलिस हुड कहते है। छोटी अवस्था मे ही कीट पौधों की पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते है जिसके कारण पत्तियां उपर की ओर मुड कर नाव के समान हो जाती है।1. बुवाई के पूर्व थायोमिथम्जाम 5 ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोचार करे।
2. नीम बीज अर्क का 4 प्रतिशत का छिडकाव करें।
3. रासायनिक नियंत्रण के अंतर्गत फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1.5 मि. ली. 1 ली. पानी मे मिला कर छिडकाव करें।
4. एसिटामिप्रिड 0.2 ग्रा. 1 ली. या इमिडक्लोप्रिड 0.3 ग्रा. 1 ली. या थायोमिथम्जाम 0.3 ग्र्रा.1 ली. पानी में मिलाकर छिडकाव करें।

सफ़ेद मक्खी

इस कीट का वैज्ञानिक नाम बेमिसिया तवेकाई है | जिसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं | जिसकी पत्तियां नीचे तरफ मुड़ जाती हैं |1. कीट की सतत निगरानी कर तथा संख्या के आधार पर डाईमिथएट की 2 मि.ली. मात्रा 1 पानी मिलकर छिड़काव करें |
2. अधिक प्रकोप की स्थिति में थायमेथाइसम 25 डब्लू जी की 5 ग्राम मात्रा 15 ली. पानी में मिलकर छिड़काव करें |

माइट

कीट का वैज्ञानिक नाम – हेमीटारयोनेमसलाटस बैंक है। यह बहुत ही छोटे कीट होते है जो पत्तियों की सतह से रस चूसते है जिसम पत्तियां नीचे की ओर मुड जाती है।1. नीम की निबोंली के सत का 4 प्रतिशत का छिडकाव करे।
2. डायोकोफाल 2.5 मि.ली. या ओमाइट 3 मि.ली. / ली. पानी मे मिलाकर छिडकाव करें।

मिर्च के महत्वपूर्ण रोग एवं प्रबंधन तकनीक

































प्रमुख लक्षण


रोकथाम / नियंत्रण के उपाय


डेम्पिंग ऑफ़ आर्द्रगलन

इस रोग का कारण पीथियम एफिजडरमेटम, फाइटोफ्थोरा स्पी. फफूंद  जिसम नर्सरी में पौधा भूमि की सतह के पास से गलकर गिर जाता है।1. मिर्च की नर्सरी उठी हुयी क्यारी पद्धति से तैयार करे जिसम जल निकास की उचित व्यवस्था हो।
2. बिजोचार कार्बेन्डाजिम 1 ग्रा.दवा 1 किलो बिज से करें।

एन्थे्रक्लोज

कोलेटोट्राइकम कैप्सीकी नामक फफूंद से होने वाला अतिव्यापक एवं महत्वपूर्ण रोग  है। विकसित पौधों पर शाखाओं का कोमल शीर्ष भाग ऊपर से नीचे की ओर सूखना प्रारम्भ होता है।1. फसल चक्र अपनाएं तथा स्वस्थ व प्रमाणित बीज बोये बुवाई पूर्व बिजोंचार अवश्य करें।
2. रोग का प्रारंभिक अवस्था मे ही लाइटक्स 50, अइथेन 45, के 0. 25 प्रतिशत धोल का 7 दिन अंतराल पर अवश्यकता अनूसार छिडकाव करें।

जीवाणु जम्लानी (बैक्टीरियलविल्ट)

इस रोग का कारण स्यूडोमोनस सोलेनेसियेरम नमक जीवाणु है | शिमला मिर्च, टमाटर तथा बैगन में इसका अधिक प्रकोप होता है |पौध रोपण पूर्व बोरडेक्स मिश्रण के
1 घोल या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम दवा 1 ली. पानी में घोलकर मृदा उपचार अवश्य करें या टोह करें
ट्राइकोडर्मा विरिडी या हरजीयनम 4 ग्राम और मेटलेक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें

पर्ण कुंचन

यह रोग विषाणु के कारण होता है जो कि तंबाकूपर्ण कुंचन विषाणु से होता है। रोग के कारण पौधें की पत्तियां छोटी होकर मुड जाती है तथा पौधा बोना हो जाता है यह रोग सफेद मक्खी कीट के कारण एक दूसरे पौधे पर फैलता है1. नर्सरी मे रोगी पौधौं को समय-समय पर हटाते रहे। तथा स्वस्थ पौधौं का ही रोपण करे।
2. रसचूसक कीटो के नियंत्रण हेतू अनुशंसित दवाओं का प्रयोग करे ।

मिर्च में खरपतवार प्रबंधन


सामान्यतः मिर्च मे पहली निंदाई 20-25 तथा दूसरी निंदाई 35-40 दिन पश्चात करें या डोरा या कोलपा चलायें। हाथ से निदाई या डोरा कोलपा को ही प्राथमिकता दे। जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ साथ मृदा नमी का भी संरक्षण होता है। मल्चिंग का प्रयोग करें।

  • उपज / उत्पादन (क्वि./हे .) – वैज्ञानिक विधि से उन्नत किस्मों से 20-25 क्वि. तथा संकर किस्मों से 30-40 क्वि. उत्पादन प्राप्त होता है।

  • मिर्च का भण्डारण  – हरी मिर्च के फलों को 7-10 से. तापमान तथा 90-95 प्रतिशत आर्द्रता पर 14-21 दिन तक भंण्डारीत किया जा सकता है । भण्डारण हवादार वेग मे करे । लाल मिर्च को 3-10 दिन तक सूर्य की तैज धुप मे सुखा कर 10 प्रतिशत नमी पर भण्डारण करे ।


मिर्च की खेती पर होने वाले लागत लाभ का विवरण प्रति हेक्टेयर









































विवरण


उन्नत किस्म


संकर किस्म

कुल लागत53090100662
उत्पादन (क्वि./हे.)150300
विक्रय (८०० रु. प्रति क्वि.)120000240000
लाभ लागत अनुपात2.302.50
प्रति कि.ग्रा. उत्पादन लागत (रूपये /किलो )3.503.30
शुद्ध लाभ (रूपये में )66910139338

उत्पादकता वृद्धि हेतु महत्वपूर्ण सुझाव



  • मिर्च की उन्नत किस्मो काशी अनमोल (उपज 250 क्वि./हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./हे.), जवाहर मिर्च – 218 (उपज 18-20 क्वि./हे. सूखी मिर्च), अर्का सुफल (उपज 250 क्वि./हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि./हे.), काशी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि./हे.) का चयन करें

  • नर्सरी उठी हुई क्यारी में कीट अवरोधी नेट के अंदर तैयार करें तथा नर्सरी में बीजोपचार के पश्चात ही बीज बोयें | खेत में रोपण 20 से.मी. उठी हुई मेड पर करें |

  • की फसल में खाद एवं उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें (120-150 H: 60 PO: 80 KO Kg./Ha.) तथा जल विलेय उर्वरक (19:19:19) का पत्तियों पर छिड़काव करें |

  • मिर्च में खरपतवार नियंत्रण हेतु डोरा कोल्पा चलायें | मल्चिंग का प्रयोग करें | मिर्च में वायरस वाहक कीटों थ्रिप्स एफिड माइट्स सफ़ेद मक्खी का समय पर नियंत्रण करें


मिर्च






















































































मिर्च भारत की प्रमुख मसाला फसल है| वर्तमान में भारत में 7,92000 हेक्टेयर में मिर्च की खेती की जा रही है| जिसमे 12,23000 टन उत्पादन प्राप्त होता है| (वर्ष 2010-2011), भारत में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा राजस्थान प्रमुख मिर्च उत्पादक राज्य हैं | जिनसे कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत भाग प्राप्त होता है | बड़वानी जिले में मिर्च के अंतर्गत कुल क्षेत्रफल 17050 हेक्टेयर तथा उत्पादन 77,6200 टन (हरी मिर्च ), 40,362 टन (लाल मिर्च ) प्राप्त होती है (वर्ष 2012-2013 )



जलवायु और मृदा



मिर्च की खेती विविध प्रकार की मिट्टियों मे जिसमे की कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त हो एवं जल निकास की उचित सुविधा हो, मे सफलतापूर्वक की जा सकती है। मिर्च की फसल जलभराव वाली स्थिति सहन नही कर पाती है। यद्यपि मिर्च को pH 6.5—8.00 वाली मिट्टी मे भी (वर्टीसोल्स) मे भी उगाया जा सकता है |
मिर्च की खेती के लिये 15 - 35 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा गर्म आर्द जलवायु उपयुक्त होती है। तथा फसल अवधि के 130 - 150 दिन के अवधि मे पाला नही पडना चाहिये।



मिर्च की उन्नत किस्में



काशी अनमोल (उपज 250 क्वि. / हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./ हे.), जवाहर मिर्च - 283 (उपज 80 क्वि. / हे हरी मिर्च.) जवाहर मिर्च -218 (उपज 18-20 क्वि. / हे सूखी मिर्च.) अर्का सुफल (उपज 250 क्वि. / हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि. / हे.), काषी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि. / हे.) का चयन करें। पब्लिक सेक्टर की एचपीएच-1900, 2680, उजाला तथा यूएस-611, 720 संकर किस्में की खेती की जा रही है।



मिर्च की पौध तैयार करना तथा नर्सरी प्रबंधन











मिर्च की पौध तैयार करने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहाँ पर पर्याप्त मात्रा में धूप आती हो तथा बीजो की बुवाई 3 गुणा 1 मीटर आकार की भूमि से 20 सेमी ऊँची उठी क्यारी में करें। मिर्च की पौधषाला की तैयारी के समय 2-3 टोकरी वर्मी कंपोस्ट या पूर्णतया सड़ी गोबर खाद 50 ग्राम फोटेट दवा / क्यारी मिट्टी में मिलाऐं। बुवाई के 1 दिन पूर्व कार्बन्डाजिम दवा 1.5 ग्राम/ली. पानी की दर से क्यारी में टोहा करे। अगले दिन क्यारी में 5 सेमी दूरी पर 0.5-1 सेमी गहरी नालियाँ बनाकर बीज बुवाई करें।



बीज की मात्रा - मिर्च की ओ.पी. किस्मों के 500 ग्राम तथा संकर (हायब्रिड) किस्मों के 200-225 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है।


रोपाई की तकनीक एवं समय  - मिर्च की रोपाई वर्षा, शरद, ग्रीष्म तीनों मौसम  मे की जा सकती है। परन्तु मिर्च की मुख्य फसल खरीफ (जून-अक्टू.) मे तैयार की जाती है। जिसकी रोपाई जून.-जूलाई मे, शरद ऋतु की फसल की रोपाई सितम्बर-अक्टूबर तथा ग्रीष्म कालीन फसल की रोपाई फर-मार्च में की जाती है।


पोषक तत्व प्रबंधन तकनीक  - मिर्च की फसल मे उर्वकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करे। सामन्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 200-250 क्वि गोबर की पूर्णतः सडी हुयी खाद या 50 क्वि. वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें। नत्रजन 120-150 किलों, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाष 80 किलो का प्रयोग करे।



मिर्च में मल्चिंग के प्रयोग की तकनीक -



मिर्च फसल की आधुनिक खेती में सिंचाई के लिए ड्रिप पद्धति लगाई जा रही है तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए 30 माइक्रोन मोटाई वाली अल्ट्रावॉयलेट रोधी प्लास्टिक मल्चिंग शीट का प्रयोग किया जाता है | जिससे खरपतवार प्रबंधन के साथ साथ सिंचाई जल की मात्रा भी कम रहती है |



मिर्च में फर्टीगेशन तकनीक द्वारा पोषक तत्व प्रबंधन -



मिर्च के पौधों जिनको फरवरी में उठी हुई क्यारी पर लगाया गया हो ड्रिप सिंचाई व्यवस्था का उपयोग करे तथा जल विलेय उर्वरको जैसे 19:19:19 को सिंचाई जल के साथ ड्रिप में देने से उर्वरक की बचत के साथ साथ उसकी उपयोग क्षमता में भी वृद्धि होती है तथा पौधों को आवश्यकतानुसार एवं शीघ्र पोषक तत्व उपलब्ध होने से उपज तथा गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है |



मिर्च में पादप वृद्धि हार्मोन्स का प्रयोग



मिर्च की फसल में प्लैनोफिक्स 10 पी पी एम का पुष्पन के समय तथा उसके 3 सप्ताह बाद छिड़काव करने से शाखाओं की संख्या में वृद्धि होती है एवं फल अधिक लगते हैं | तथा रोपाई के 18 एवं 43 दिन के बाद ट्राई केटेनॉल १ पी पी एम की ड्रेन्चिंग करने से पौधों की अच्छी वृद्धि होती है
जिब्रेलिक एसिड 10-100 पी पी एम सांद्रता को घोल के फल लगने के बाद छिड़काव करने से फल ज्यादा लगते हैं |


मार्केटिंग  - बड़वानी से हरी एवं लाल मिर्च का निर्यात सुदूर क्षेत्र मुंबई, पुणे, दिल्ली एवं अन्य क्षेत्रों को किया जा रहा है















मिर्च के महत्वपूर्ण कीट एवं प्रबंधन तकनीक


























कीटप्रमुख लक्षणरोकथाम / नियंत्रण के उपाय

थ्रिप्स



वैज्ञानिक भाषा मे इसे सिटरोथ्रिटस डोरसेलिस हुड कहते है। छोटी अवस्था मे ही कीट पौधों की पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते है जिसके कारण पत्तियां उपर की ओर मुड कर नाव के समान हो जाती है।



1. बुवाई के पूर्व थायोमिथम्जाम 5 ग्राम प्रति किलो बीज दर से बीजोचार करे।
2. नीम बीज अर्क का 4 प्रतिशत का छिडकाव करें।
3. रासायनिक नियंत्रण के अंतर्गत फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 1.5 मि. ली. 1 ली. पानी मे मिला कर छिडकाव करें।
4. एसिटामिप्रिड 0.2 ग्रा. 1 ली. या इमिडक्लोप्रिड 0.3 ग्रा. 1 ली. या थायोमिथम्जाम 0.3 ग्र्रा.1 ली. पानी में मिलाकर छिडकाव करें।



सफ़ेद मक्खी



इस कीट का वैज्ञानिक नाम बेमिसिया तवेकाई है | जिसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं | जिसकी पत्तियां नीचे तरफ मुड़ जाती हैं |



1. कीट की सतत निगरानी कर तथा संख्या के आधार पर डाईमिथएट की 2 मि.ली. मात्रा 1 पानी मिलकर छिड़काव करें |
2. अधिक प्रकोप की स्थिति में थायमेथाइसम 25 डब्लू जी की 5 ग्राम मात्रा 15 ली. पानी में मिलकर छिड़काव करें |



माइट



कीट का वैज्ञानिक नाम - हेमीटारयोनेमसलाटस बैंक है। यह बहुत ही छोटे कीट होते है जो पत्तियों की सतह से रस चूसते है जिसम पत्तियां नीचे की ओर मुड जाती है।



1. नीम की निबोंली के सत का 4 प्रतिशत का छिडकाव करे।
2. डायोकोफाल 2.5 मि.ली. या ओमाइट 3 मि.ली. / ली. पानी मे मिलाकर छिडकाव करें।




मिर्च के महत्वपूर्ण रोग एवं प्रबंधन तकनीक


रोग




























प्रमुख लक्षणरोकथाम / नियंत्रण के उपाय
डेम्पिंग ऑफ़ आर्द्रगलन

इस रोग का कारण पीथियम एफिजडरमेटम, फाइटोफ्थोरा स्पी. फफूंद  जिसम नर्सरी में पौधा भूमि की सतह के पास से गलकर गिर जाता है।




1. मिर्च की नर्सरी उठी हुयी क्यारी पद्धति से तैयार करे जिसम जल निकास की उचित व्यवस्था हो।
2. बिजोचार कार्बेन्डाजिम 1 ग्रा.दवा 1 किलो बिज से करें।

एन्थे्रक्लोज




कोलेटोट्राइकम कैप्सीकी नामक फफूंद से होने वाला अतिव्यापक एवं महत्वपूर्ण रोग  है। विकसित पौधों पर शाखाओं का कोमल शीर्ष भाग ऊपर से नीचे की ओर सूखना प्रारम्भ होता है।


1. फसल चक्र अपनाएं तथा स्वस्थ व प्रमाणित बीज बोये बुवाई पूर्व बिजोंचार अवश्य करें।
2. रोग का प्रारंभिक अवस्था मे ही लाइटक्स 50, अइथेन 45, के 0. 25 प्रतिशत धोल का 7 दिन अंतराल पर अवश्यकता अनूसार छिडकाव करें।
जीवाणु जम्लानी (बैक्टीरियलविल्ट)

इस रोग का कारण स्यूडोमोनस सोलेनेसियेरम नमक जीवाणु है | शिमला मिर्च, टमाटर तथा बैगन में इसका अधिक प्रकोप होता है |



पौध रोपण पूर्व बोरडेक्स मिश्रण के
1 घोल या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम दवा 1 ली. पानी में घोलकर मृदा उपचार अवश्य करें या टोह करें
ट्राइकोडर्मा विरिडी या हरजीयनम 4 ग्राम और मेटलेक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें



पर्ण कुंचन



यह रोग विषाणु के कारण होता है जो कि तंबाकूपर्ण कुंचन विषाणु से होता है। रोग के कारण पौधें की पत्तियां छोटी होकर मुड जाती है तथा पौधा बोना हो जाता है यह रोग सफेद मक्खी कीट के कारण एक दूसरे पौधे पर फैलता है



1. नर्सरी मे रोगी पौधौं को समय-समय पर हटाते रहे। तथा स्वस्थ पौधौं का ही रोपण करे।
2. रसचूसक कीटो के नियंत्रण हेतू अनुशंसित दवाओं का प्रयोग करे ।




मिर्च में खरपतवार प्रबंधन



 सामान्यतः मिर्च मे पहली निंदाई 20-25 तथा दूसरी निंदाई 35-40 दिन पश्चात करें या डोरा या कोलपा चलायें। हाथ से निदाई या डोरा कोलपा को ही प्राथमिकता दे। जिससे खरपतवार नियंत्रण के साथ साथ मृदा नमी का भी संरक्षण होता है। मल्चिंग का प्रयोग करें।


उपज / उत्पादन (क्वि./हे .)- वैज्ञानिक विधि से उन्नत किस्मों से 20-25 क्वि. तथा संकर किस्मों से 30-40 क्वि. उत्पादन प्राप्त होता है।


मिर्च का भण्डारण  - हरी मिर्च के फलों को 7-10 से. तापमान तथा 90-95 प्रतिशत आर्द्रता पर 14-21 दिन तक भंण्डारीत किया जा सकता है । भण्डारण हवादार वेग मे करे । लाल मिर्च को 3-10 दिन तक सूर्य की तैज धुप मे सुखा कर 10 प्रतिशत नमी पर भण्डारण करे ।



मिर्च की खेती पर होने वाले लागत लाभ का विवरण प्रति हेक्टेयर


काली मिर्च की खेती - जानें कौन-सी किस्मों से मिलेगी अच्छी पैदावार और होगा भारी मुनाफा(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)







































विवरण



उन्नत किस्म



संकर किस्म



कुल लागत



53090



100662



उत्पादन (क्वि./हे.)



150



300



विक्रय (८०० रु. प्रति क्वि.)



120000



240000



लाभ लागत अनुपात



2.30



2.50



प्रति कि.ग्रा. उत्पादन लागत (रूपये /किलो )



3.50



3.30



शुद्ध लाभ (रूपये में )



66910



139338



 

मिर्च की उत्पादकता वृद्धि हेतु महत्वपूर्ण सुझाव















मिर्च की उन्नत किस्मो काशी अनमोल (उपज 250 क्वि./हे.), काशी विश्वनाथ (उपज 220 क्वि./हे.), जवाहर मिर्च - 218 (उपज 18-20 क्वि./हे. सूखी मिर्च), अर्का सुफल (उपज 250 क्वि./हे.) तथा संकर किस्म काशी अर्ली (उपज 300-350 क्वि./हे.), काशी सुर्ख या काशी हरिता (उपज 300 क्वि./हे.) का चयन करें



मिर्च की नर्सरी उठी हुई क्यारी में कीट अवरोधी नेट के अंदर तैयार करें तथा नर्सरी में बीजोपचार के पश्चात ही बीज बोयें | खेत में रोपण 20 से.मी. उठी हुई मेड पर करें |


मिर्च की फसल में खाद एवं उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें (120-150 H: 60 PO: 80 KO Kg./Ha.) तथा जल विलेय उर्वरक (19:19:19) का पत्तियों पर छिड़काव करें |


मिर्च में खरपतवार नियंत्रण हेतु डोरा कोल्पा चलायें | मल्चिंग का प्रयोग करें | मिर्च में वायरस वाहक कीटों थ्रिप्स एफिड माइट्स सफ़ेद मक्खी का समय पर नियंत्रण करें


टमाटर की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)





3 Comments

  1. […] 10-15 टन गली सड़ी रूड़ी की खाद प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 50 किलोग्राम (यूरिया 110 किलोग्राम), फासफोरस 25 किलोग्राम (सिंगल सुपर फासफेट 155 किलोग्राम), पोटाश 25 किलोग्राम (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलोग्राम) प्रति एकड़ के हिसाब से डालें। फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का तीसरा हिस्सा (1/3) बिजाई से पहले डालें। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा शुरूआती विकास के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर डालें और पत्तों को छूने से परहेज करें। जब फसल 10-15 दिनों की हो जाये तो फसल के अच्छे विकास और पैदावार के लिए 19:19:19 + सूक्ष्म तत्व 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। फूलों को झड़ने से रोकने और फसल का 10 प्रतिशत पैदावार बढ़ाने के लिए शुरूआती फूलों के दिनों में हयूमिक एसिड 3 मि.ली.+एम ए पी (12:61:00) 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। सालीसाइक्लिक एसिड (4-5 एसप्रिन गोलियां 350एम जी) प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर फूलों के बनने और पकने के समय 30 दिनों के फासले पर 1-2 बार स्प्रे करें। बिजाई के 55 दिनों के बाद 13:00:45, 100 ग्राम+हैक्साकोनाज़ोल 25 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से फल के पहले विकास के पड़ाव और सफेद धब्बा रोग से बचाने के लिए स्प्रे करें। बिजाई के 65 दिनों के बाद फल के आकार, स्वाद और रंग को बढ़ाने के लिए 00:00:50, 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ 100 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। मिर्च की खेती […]

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