खरबूजे की खेती

खरबूजे की खेती

खरबूजे की खेती





मिट्टी




इसे गहरी उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में उगाया जाता है। अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। घटिया निकास वाली मिट्टी खरबूजे की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती। फसली चक्र अपनायें क्योंकि एक ही खेत में एक ही फसल उगाने से मिट्टी के पोषक तत्वों, उपज में कमी और बीमारियों का हमला भी ज्यादा होता है। मिट्टी की पी एच 6-7 के बीच होनी चाहिए। खारी मिट्टी और नमक की ज्यादा मात्रा वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती।





प्रसिद्ध किस्में और पैदावार




Hara Madhu: यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसके फल का आकार गोल और बड़ा होता है। फल का औसतन भार 1 किलोग्राम होता है। छिल्का हल्के पीले रंग का होता है। टी एस एस की मात्रा 13 प्रतिशत होती है और स्वाद में बहुत मीठा होता है। बीज आकार में छोटे होते हैं। यह सफेद रोग को सहनेयोग्य होता है। इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।


Punjab Sunehri: यह हरा मधु किस्म के 12 दिन पहले पक जाती हैं फल का आकार गोल, जालीदार छिल्का और रंग हल्का भूरा होता है। इसका औसतन भार 700-800 ग्राम होता है। इसका आकार मोटा और रंग संतरी होता है। टी एस एस की मात्रा 11 प्रतिशत होती है। यह फल की मक्खी के हमले को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab Hybrid: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसका फल जालीदार छिल्के वाला हरे रंग का होता है। इसका आकार मोटा और रंग संतरी होता है। खाने में रसीला और मज़ेदार होता है। इसमें टी एस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है और औसतन भार 800 ग्राम होता है। यह फल वाली मक्खी के हमले का मुकाबला करने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।



MH-51: यह किस्म 2017 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 89 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल गोल, धारीदार और जालीदार होते हैं। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है।


MH-27: यह किस्म 2015 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 88 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 12.5 प्रतिशत होती है।



दूसरे राज्यों की किस्में


Arka Jeet


Arka rajhans


MH 10


Pusa madhurima





ज़मीन की तैयारी




मिट्टी के भुरभुरा होने तक जोताई करें। उत्तरी भारत में इसकी बिजाई फरवरी के मध्य में की जाती है। उत्तरी पूर्वी और पश्चिमी  भारत में बिजाई नवंबर से जनवरी में की जाती है। खरबूजे को सीधा बीज के द्वारा और पनीरी लगाकर भी बोया जा सकता है।




बिजाई




बिजाई का समय

खरबूजे की बिजाई के लिए मध्य फरवरी का समय सही माना जाता है।


फासला

प्रयोग करने वाली किस्म के आधार पर 3-4 मीटर चौड़े बैड तैयार करें। बैड पर प्रत्येक क्यारी में दो बीज बोयें और क्यारियों में 60 सैं.मी. का फासला रखें।


बीज की गहराई

बिजाई के लिए 1.5 सैं.मी. गहरे बीज बोयें।


बिजाई का ढंग

इसकी बिजाई गड्ढा खोदकर और दूसरे खेत में पनीरी लगाकर यह ढंग प्रयोग कर सकते हैं।


पनीरी लगा कर : जनवरी के आखिरी सप्ताह से फरवरी के पहले सप्ताह तक 100 गज की मोटाई वाले 15 सैं.मी. x12 सैं.मी. आकार के पॉलीथीन बैग में बीज बोया जा सकता है। पॉलीथीन बैग में गाय का गोबर और मिट्टी को एक जितनी मात्रा में भर लें। पौधे फरवरी के आखिर या मार्च के पहले सप्ताह बिजाई के लिए तैयार हो जाते हैं। 25-30 दिनों के पौधे को उखाड़कर खेत में लगा दें और पौधे खेत में लगाने के तुरंत बाद पहला पानी लगाना चाहिए।




बीज




बीज की मात्रा

एक एकड़ में बिजाई के लिए 400 ग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।



बीज का उपचार


बिजाई से पहले कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडरमा विराइड 4 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। बीजों को छांव में सुखाएं और तुरंत बिजाई कर दें।






खाद





खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)













UREASSPMURIATE OF POTASH
11015540

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)













NITROGENPHOSPHORUSPOTASH
502525

 
10-15 टन गली सड़ी रूड़ी की खाद प्रति एकड़ में डालें। नाइट्रोजन 50 किलोग्राम (यूरिया 110 किलोग्राम), फासफोरस 25 किलोग्राम (सिंगल सुपर फासफेट 155 किलोग्राम), पोटाश 25 किलोग्राम (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलोग्राम) प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।


फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का तीसरा हिस्सा (1/3) बिजाई से पहले डालें। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा शुरूआती विकास के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाकर डालें और पत्तों को छूने से परहेज करें।


जब फसल 10-15 दिनों की हो जाये तो फसल के अच्छे विकास और पैदावार के लिए 19:19:19 + सूक्ष्म तत्व 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें। फूलों को झड़ने से रोकने और फसल का 10 प्रतिशत पैदावार बढ़ाने के लिए शुरूआती फूलों के दिनों में हयूमिक एसिड 3 मि.ली.+एम ए पी (12:61:00) 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। सालीसाइक्लिक एसिड (4-5 एसप्रिन गोलियां 350एम जी) प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर फूलों के बनने और पकने के समय 30 दिनों के फासले पर 1-2 बार स्प्रे करें। बिजाई के 55 दिनों के बाद 13:00:45, 100 ग्राम+हैक्साकोनाज़ोल 25 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से फल के पहले विकास के पड़ाव और सफेद धब्बा रोग से बचाने के लिए स्प्रे करें। बिजाई के 65 दिनों के बाद फल के आकार, स्वाद और रंग को बढ़ाने के लिए 00:00:50, 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ 100 ग्राम को प्रति 15 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।


 




खरपतवार नियंत्रण





पौधे के विकास के शुरूआती समय के दौरान बैड को नदीनों से मुक्त रखना जरूरी होता है। सही तरह से नदीनों की रोकथाम ना हो तो फल बोने से 15-20 दिनों में पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इस दौरान गोडाई करते रहना चाहिए। नदीन तेजी से बढ़ते हैं। इसलिए 2-3 गोडाई की जरूरत पड़ती है।




सिंचाई




गर्मियों के मौसम में हर सप्ताह सिंचाई करें। पकने के समय जरूरत पड़ने पर ही सिंचाई करें। खरबूजे के खेत में ज्यादा पानी ना लगाएं। सिंचाई करते समय, बेलों या वानस्पति भागों विशेष कर फूलों और फलों पर पानी ला लगाएं। भारी मिट्टी में लगातार सिंचाई ना करें, इससे वानस्पति भागों की अत्याधिक वृद्धि होगी। अच्छे स्वाद के लिए कटाई से 3-6 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें या कम कर दें।





पौधे की देखभाल




चेपा और थ्रिप




  • हानिकारक कीट और रोकथाम


चेपा और थ्रिप्स यह कीड़े पौधे के पत्तों का रस चूस लेते हैं जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और लटक जाते हैं। ये कीड़े पत्तों को ऊपर की तरफ मोड़ देते हैं। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो थाइमैथोक्सम 5 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें और स्प्रे करने के 15 दिन बाद डाइमैथोएट 10 मि.ली. + टराइडमोरफ 10 मि.ली. को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।








पत्ते का सुरंगी कीड़ा



पत्ते का सुरंगी कीड़ा : यह पत्तों के सुरंगी कीड़े हैं जो कि पत्तों में लंबी सुरंगे बना देते हैं और पत्तों से अपना भोजन लेते हैं। यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया और फलों के बनने को प्रभावित करते हैं।

इसकी रोकथाम के लिए एबामैक्टिन 6 मि.ली. को प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।






फल की मक्खी



फल की मक्खी : यह बहुत नुकसानदायक कीड़ा है। मादा मक्खी फल की ऊपर वाली सतह पर अंडे देती है और बाद में वे कीड़े फल के गुद्दे को खाते हैं। जिस कारण फल गलना शुरू हो जाता है।

प्रभावित फल को खेत में से उखाड़कर नष्ट कर दें। यदि नुकसान नज़र आये तो शुरूआती समय में नीम सीड करनाल एकसट्रैट 50 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के फासले पर 3-4 बार मैलाथियॉन 20 मि.ली.+100 ग्राम गुड़ को 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करते रहें।






एंथ्राकनोस




  • बीमारियां और रोकथाम


पत्तों के ऊपर की तरफ सफेद धब्बे : प्रभावित पौधे के पत्तों की ऊपरी सतह और मुख्य तने पर भी सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। गंभीर हमले के कारण पत्ते गिर जाते हैं और फल समय से पहले पक जाता है।


यदि इसका हमला दिखे तो घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।


लहसून की खेती







अचानक सूखा : यह फसल की किसी भी अवस्था पर हमला कर सकता है। पौधा कमज़ोर हो जाता है और शुरूआती अवस्था में पौधा पीला हो जाता है। गंभीर हमले में पौधा पूरी तरह सूख जाता है।


खेत में पानी ना खड़ा होने दें। प्रभावित भागों को खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें। ट्राइकोडरमा विराइड 1 किलो को 50 किलो रूड़ी की खाद के साथ मिलाकर डालें। यदि इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम या कार्बेनडाज़िम या थियोफनेट मिथाइल 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।







एंथ्राकनोस



एंथ्राक्नोस : एंथ्राक्नोस से प्रभावित पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।


इसकी रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।






पत्तों के निचले धब्बे



पत्तों के निचली तरफ धब्बे : इसका हमला खरबूजे पर ज्यादा होता है और तरबूज़ पर कम होता है। पत्तों का ऊपरी भाग पीले रंग का हो जाता है। बाद में पीलापन बढ़ जाता है और पत्तों को केंद्रीय भाग भूरे रंग का हो जाता है। पत्तों के अंदर की ओर सफेद सलेटी हल्के नीले रंग की फंगस पड़ जाती है। बादलवाई, बारिश और नमी के हालातों में यह बीमारी ज्यादा फैलती है।


यदि इसका हमला खेत में दिखे तो मैटालैक्सिल 8 प्रतिशत + मैनकोजेब 64 प्रतिशत डब्लयु पी (रिडोमिल) 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

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फसल की कटाई





हरा मधु किस्म की कटाई उस समय करें जब फल पीले रंग के हो जायें। दूसरी किस्मों की कटाई मंडी की दूरी के अनुसार की जाती है। यदि मंडी की दूरी ज्यादा हो तो जब फल हरे रंग का हो तब ही कटाई कर देनी चाहिए। यदि मंडी नज़दीक हो तो फल आधा पकने पर ही कटाई करनी चाहिए। जब तना थोड़ा सा ढीला सा नज़र आये उसे हाफ स्लिप कहते हैं।




कटाई के बाद





कटाई के बाद फलों का तापमान और गर्मी कम करने के लिए उन्हें ठंडा किया जाता है। फलों को उनके आकार के हिसाब से बांटा जाता है। खरबूजों को कटाई के बाद 15 दिनों के लिए 2 से 5 डिगरी सैल्सियस तापमान और 95 प्रतिशत पर रखा जाता है इसके बाद जब यह पूरा पक जाता है तो इसे 5 से 14 दिनों के लिए 0-2.2 डिगरी सैल्सियस तापमान और 95 प्रतिशत नीम में रखा जाता है।




रेफरेन्स





1.Punjab Agricultural University Ludhiana

2.Department of Agriculture

3.Indian Agricultural Research Instittute, New Delhi

4.Indian Institute of Wheat and Barley Research

5.Ministry of Agriculture & Farmers Welfare





जानें, खरबूजे की खेती कैसे करें और खरबूजे की उन्नत किस्में 


केन्द्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर किसानों को कृषि कार्यों से लेकर फसलों, कृषि यंत्रों आदि पर किसानों को सब्सिडी उपलब्ध कराती है। इससे किसानों को खेती के लाभ के साथ सरकार से भी आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। यही कारण है की किसानों का रुझान खेती के प्रति बढ़ने लगा है। अब देश के अधिकतर नागरिक जो ग्रामीण क्षेत्र से है वे नौकरी छोड़ खेती पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। आपको बता दें कि अभी मार्च का महीना समाप्त होने जा रहा है। ऐसे में किसान रबी सीजन की फसलें खेतों से निकालने की तैयारी कर रहे है। रबी सीजन की फसलों के बाद किसानों के खेत चार महीने तक खाली रहते हैं और इन खाली खेतों में अब जून में बारिश होने के बाद बोवनी होगी। इस बीच किसान अपने खाली खेत में खरबूज-तरबूज की खेती कर लाभ कमा सकता है। गर्मी के दिनों में खरबूज-तरबूज खूब बिकेंगे और खाली पड़ी जमीन का उपयोग भी हो जाएगा। गर्मी के दिनों में खरबूजे की खेती कर एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 200 से 250 किवंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है। जिससे किसान इसकी एक बार की फसल से 3 से 4 लाख की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं। खरबूजे के बीज पर सरकार से 35 फीसदी तक का अनुदान भी मिलता है। तो चलिए आज ट्रैक्टरजंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको खरबूजे की खेती कैसे करें (how to cultivate melon) तथा खरबूजे बीज पर होने वाले लाभ एवं सब्सिडी के बारे में जानकारी को साझा करने जा रहे हैं। खरबूजे की उन्नत खेती करने के लिए इस पोस्ट को अंत तक ध्यान पूर्वक जरूर पढ़े।

Kharbuja Ki Kheti : खरबूजे का इस्तेमाल 


खरबूजा एक कद्दूवर्गीय फसल है, जिसे नगदी फसल के रूप में उगाया जाता है। इसके पौधे लताओं के रूप में विकास करते हैं। इसके फलो को विशेष रूप से खाने के लिए इस्तेमाल करते है, जो स्वाद में अधिक स्वादिष्ट होता है। इसके फलो का सेवन जूस या सलाद के रूप में कर सकते है, तथा खरबूजे के बीजो को मिठाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। यह एक ऐसा फल है, जिसे गर्मियों में अधिक मात्रा में खाने के लिए इस्तेमाल में लाते है। इसके फलो में 90 प्रतिशत पानी तथा 9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पायी जाती है, जो आपको हाइड्रेट रखता है।

खरबूजे के बीज में पाये जाने वाले पौष्टिक तत्व 


खरबूजे का बीज अनेक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। खरबूजे में प्रोटीन 32.80 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट्स 22.874 प्रतिशत, फैट 37.167 प्रतिशत, फाइबर 0.2 प्रतिशत, नमी (मॉइस्चर) 2.358 प्रतिशत, एश 4.801 प्रतिशत ऊर्जा 557.199 केसीएएल (प्रति 100 ग्राम) खरबूजे में प्रचूर मात्रा में मौजूद रहते है। इन पोषक तत्वों के अलावा भी खरबूजे के बीज में कई अन्य पोषक तत्व जैसे शर्करा के अलावा कैल्शियम, जिंक, आयरन, मैग्रीशियम, मैगनीज व सोडियम और विटामिन ए, बी भी भरपूर मात्रा में होते हैं।

खरबूजे की उन्नत किस्में / खरबूजे की किस्में



  • पूसा शरबती (एस-445) : फल गोल, मध्यम आकार व छिलका हल्के गुलाबी रंग लिए होता है। छिलका जालीदार, गूदा मोटा एवं नारंगी रंग का होता है। एक बेल पर 3-4 फल लगते हैं।

  • पूसा मधुरस : फल गोल, चपटे, गहरे हरे रंग के धारीयुक्त होते है। गूदा रस से भरा हुआ एवं नारंगी रंग का होता है। फल का औसत वजन 700 ग्राम होता है और एक बेल पर 5 फल तक लगते हैं।

  • हरा मधु : फल का औसत भार एक किलो और फलों पर हरे रंग की धारियां पाई जाती है । फल पकने पर हल्के पीले पड़ जाते है। गूदा हल्का हरा, 2-3 सेमी मोटा व रसीला होता है।

  • आई.वी.एम.एम.3 : फल धारीदार एवं पकने पर हल्के पीले रंग के होते हैं। फल काफी मीठे एवं गूदा नारंगी रंग का होता है। फल का औसत वजन 500 से 600 ग्राम होता है।

  • पंजाब सुनहरी : इस किस्म की लता मध्यम लंबाई की, फल गोलाकार एवं पकने पर हल्का पीले रंग का,गूदा नारंगी रंग का तथा रसदार होता है।

  • इसके अलावा भी खरबूजे की कई उन्नत किस्मों को अधिक उत्पादन देने के लिए उगाया जा रहा है, जो इस प्रकार है:- दुर्गापुरा मधु, एम- 4, स्वर्ण, एम. एच. 10, हिसार मधुर सोना, नरेंद्र खरबूजा 1, एम एच 51, पूसा मधुरस, अर्को जीत, पंजाब हाइब्रिड, पंजाब एम. 3, आर. एन. 50, एम. एच. वाई. 5 और पूसा रसराज आदि।


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खरबूजे की खेती के उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और समय 


खरबूजे की खेती के लिए हल्की रेतीली बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है। इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल निकास वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधों पर अधिक रोग देखने को मिल जाते है। इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए। जायद के मौसम को खरबूजे की फसल के लिए अच्छा माना जाता है। इस दौरान पौधों को पर्याप्त मात्रा में गर्म और आद्र जलवायु मिल जाती है। इसके बीजो को अंकुरित होने के लिए आरम्भ में 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों के विकास के लिए 35 से 40 डिग्री तापमान जरूरी होता है।

खरबूजे की खेती के लिए खेत की तैयारी एवं उवर्रक मात्रा


खरबूजे की खेती के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर मिट्टी भुरभुरी कर दी जाती है। जुताई के बाद खेत को कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेवा कर दिया जाता है, पलेवा करने के कुछ दिन बाद कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है। मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है। इसके बाद खेत में बीज रोपाई के लिए उचित आकार की क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है। इसके अलावा यदि आप बीजो की रोपाई नालियों में करना चाहते है, भूमि पर एक से डेढ़ फीट चौड़े और आधा फीट गहरी नालियों को तैयार करना होता है। तैयार की गयी इन क्यारियों और नालियों में जैविक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए आरम्भ में 200 से 250 क्विंटल पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में देना होता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद के रूप में 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 30 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा को प्रति हेक्टेयर में तैयार नालियों और क्यारियों में देना होता है। जब खरबूजे के पौधों पर फूल खिलने लगे उस दौरान 20 किलोग्राम यूरिया की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है

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खरबूजे के बीजों की बुवाई का तरीका और सही समय 


खरबूजे की खेती में रोपाई बीज और पौध दोनों ही रूप में की जा सकती है। एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन एक से डेढ़ किलो बीजों की आवश्यकता होती है, तथा बीज रोपाई से पूर्व उन्हें कैप्टान या थिरम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है। इससे बीजों को आरम्भ में लगने वाले रोग का खतरा कम हो जाता है। इन बीजों को क्यारियों और नालियों के दोनों ओर लगाया जाता है। इन बीजों को दो फीट की दूरी और 2 से 3 सेमी की गहराई में लगाया जाता है। बीज रोपाई के पश्चात् टपक विधि द्वारा खेत की सिंचाई कर दी जाती है। खरबूजों के बीजों की रोपाई फरवरी के महीने में की जाती है तथा अधिक ठंडे प्रदेशो में इसे अप्रैल और मई के माह में भी लगाया जाता है। इसकी प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है। बाद में सप्ताह में दो सिंचाई की आवश्यकता होती है, तथा बारिश का मौसम हो तो जरूरत के हिसाब से ही सिंचाई करे।

खरबूजे की खेती पर खर्च, पैदावार, तुड़वाई और लाभ


एक हेक्टेयर खरबूज की खेती पर लगने वाला खर्च 1,000 रू. के लगभग 3 से 5 किलोग्राम बीज 3,000 रू, खेत तैयारी, रोपाई और खाद 6,000 रू, तुडाई पर मजदूरी 3,000 रू, कीटनाशक का उपयोग 13,000 रू कुल खर्च तुड़ाई: बीज रोपाई के 90 से 95 दिन पश्चात फसल तैयार हो जाती है। फल अंतिम छोर से पकना शुरू करता है। जिससे फल का रंग बदल जाता है। उस दौरान इसके फलों की तुड़ाई कर ली जाती है। एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 200 से 250 किवंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है। खरबूजे का बाजार भाव 15 से 20 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान इसकी एक बार की फसल से 3 से 4 लाख की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

खरबूजे के बीजों पर आय का गणित 


इसके अतिरिक्त इसके बीजों से भी आय की जा सकती है। बीज पर आय का गणित 6 क्विंटल बीज उत्पादन 15,000 रू क्विंटल बिकता है 90,000 रू. की आय। आय में से खर्च हटाने के बाद बीजों पर शुद्ध मुनाफा 77,000 रू प्रति हेक्टेयर होता है।

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