तरबूज की खेती

तरबूज की खेती

तरबूज की खेती



  1. परिचय

  2. किस्में एवं संकर

  3. भूमि और जलवायु

  4. भूमि की तैयारी

  5. बीज दर एवं बीजोपचार

  6. बुआई रोपण की वैज्ञानिक विधि

  7. सिंचाई

  8. खाद एवं उर्वरक प्रबंधन



तरबूज की बेहतरीन किस्में और उनकी खासियत


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पूरे देश में रबी फसल की कटाई का काम चल रहा है। मार्च तक कटाई का काम पूरा कर लिया जाएगा और इसके बाद खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में किसान तरबूज की खेती करकेे अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं। तरबूज की खेती की खास बात ये हैं इसे कम पानी, कम खाद और कम लागत में उगाया जा सकता है। वहीं बाजार में इसकी मांग होने से इसके भाव अच्छे मिलते हैं। किसान रबी और खरीफ के बीच के समय में अपने खेत में तरबूज की खेती करके करीब सवा 3 लाख रुपए तक कमाई कर सकते हैं, बेशर्त हैं कि तरबूज की उन्नत किस्मों की बुवाई करें और खेती का सही तरीका अपनाएं।

देश में कहां-कहां होती है तरबूज की खेती (Tarbooj Ki Kheti)


तरबूज की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्य में की जाती है। इसकी खेती गंगा, यमुना व नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बनाकर की जाती है।

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तरबूज की खेती कब करें / तरबूज की खेती का उचित समय


वैसे तो तरबूज की खेती दिसंबर से लेकर मार्च तक की जा सकती है। लेकिन तरबूज की बुवाई का उचित समय मध्य फरवरी माना जाता है। वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल के महीनों में इसकी खेती की जाती है।

तरबूज की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी (Watermelon Cultivation)


तरबूजे की खेती के लिए अधिक तापमान वाली जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। अधिक तापमान से फलों की वृद्धि अधिक होती है। बीजों के अंकुरण के लिए 22-25 डिग्री सेटीग्रेड तापमान अच्छा रहता है। अब बात करें इसकी खेती के लिए मिट्टी की तो रेतीली और रेतीली दोमट भूमि इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। वहीं मिट्टी का पी. एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए। बता दें कि इसकी खेती अनुपजाऊ या बंजर भूमि में भी की जा सकती है।

तरबूज की खेती के लिए उन्नत किस्में (Watermelon Farming)


तरबूज की कई उन्नत किस्में होती है जो कम समय में तैयार हो जाती है और उत्पादन भी बेहतर देती हैं। इन किस्मों में प्रमुख किस्मेें इस प्र्रकार से हैं-

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शुगर बेबी


इस किस्म के फल बीज बोने के 95-100 दिन बाद तोड़ाई के लिए तैयार हो जाते है, जिनका औसत भार 4-6 किलोग्राम होता है। इसके फल में बीज बहुत कम होते है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 200-250 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

अर्का ज्योति


इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर किया गया है। इस किस्म के फल का भार 6-8 किलोग्राम तक होता है। इसके फलों की भंडारण क्षमता भी अधिक होती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 350 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है

आशायी यामातो


यह जापान से लाई गई किस्म है। इस किस्म के फल का औसत भार 7-8 किलोग्राम होता है। इसका छिलका हरा और मामूली धारीदार होता है। इसके बीज छोटे होते है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 225 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

डब्लू. 19


यह किस्म एन.आर.सी.एच. द्वारा गर्म शुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए जारी की गई है। यह किस्म उच्च तापमान सहन कर सकती है। इससे प्राप्त फल गुणवत्ता में श्रेष्ठ और स्वाद में मीठा होता है। यह किस्म 75-80 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से  प्रति हेक्टेयर 46-50 टन तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

पूसा बेदाना


इस किस्म की सबसे बङी विशेषता यह है कि इसके फलों में बीज नहीं होते हैं। फल में गूदा गुलाबी व अधिक रसदार व मीठा होता है यह किस्म 85-90 दिन में तैयार हो जाती है।

चीकू की खेती

अर्का मानिक


इस किस्म का विकास भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर द्वारा किया गया है यह एन्थ्रेक्नोज, चूर्णी फफूंदी और मृदुरोमिल फफूंदी की प्रतिरोधी किस्म है प्रति हेक्टेयर 60 टन तक उपज दे देती है।

हाइब्रिड किस्में/संकर किस्में (Tarbuj Ki Kisme)


तरबूज की हाईब्रिड यानि संकर किस्में भी है जिनमें मधु, मिलन और मोहनी प्रमुख रूप से उपयोगी किस्में है।

हाइब्रिड तरबूज की खेती के लिए खेत की तैयारी


खेती की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद देसी हल या कल्टीवेटर से जुताई की जानी चाहिए। इस बात का ध्यान रखे कि खेत में पानी की मात्रा कम या ज्यादा नहीं हो। इसके बाद नदियों के खाली स्थानों में क्यारियां बना लें। अब भूमि में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला दें। यदि रेत की मात्रा अधिक है, तो ऊपरी सतह को हटाकर नीचे की मिट्टी में खाद मिलाना चाहिए।

तरबूज की खेती के लिए बुवाई का तरीका


मैदानी क्षेत्रों में इसकी बुवाई समतल भूमि में या डौलियों पर की जाती है, जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में बुवाई कुछ ऊंची उठी क्यारियों में की जाती है। क्यारियां 2.50 मीटर चौङी बनाई जाती है उसके दोनों किनारों पर 1.5 सेमी. गहराई पर 3-4 बीज बो दिए जाते है। थामलों की आपसी दूरी भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। वर्गाकार प्रणाली में 4 गुणा 1 मीटर की दूरी रखी जाती है पंक्ति और पौधों की आपसी दूरी तरबूज की किस्मों पर निर्भर करता है।

तरबूज की खेती में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग


गोबर की खाद 20-25 ट्रौली को रेतीली भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। यह खाद क्यारियों में डालकर भूमि तैयारी के समय मिला देना चाहिए। 80 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर देना चाहिए तथा फास्फेट व पोटाश की मात्रा 60-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से देनी चाहिए। फास्फेट व पोटाश तथा नत्रजन की आधी मात्रा को भूमि की तैयारी के समय मिलाना चाहिए तथा शेष नत्रजन की मात्रा को बुवाई के 25-30 दिन के बाद देना चाहिए। खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है। उर्वरा शक्ति भूमि में अधिक हो तो उर्वरक व खाद की मात्रा कम की जा सकती है।

ओल की खेती

तरबूज की खेती में सिंचाई प्रबंधन


तरबूज की खेती में बुवाई के करीब 10-15 दिन के बाद सिंचाई की जानी चाहिए। वहीं यदि आप इसकी खेती नदियों के किनारों पर कर रहे है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। क्योंकि यहां की मिट्टी में पहले से ही नमी बनी हुई रहती है।

तरबूज की तुड़ाई


तरबूज के फलों को बुवाई से 3 या साढ़े तीन महीने के बाद तोडऩा शुरू कर दिया जाता है। फलों को यदि दूर भेजना हो तो पहले ही तोड़ लेना चाहिए। प्रत्येक जाति के हिसाब से फलों के आकार व रंग पर निर्भर करता है कि फल अब पक हो चुका है। आमतौर से फलों को दबाकर भी देख सकते हैं कि अभी पका है या कच्चा। फलों को डंठल से अलग करने के लिए तेज चाकू इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्राप्त उपज


तरबूजे की पैदावार किस्म के अनुसार अलग-अलग होती है। सामान्यत: तरबूजे की औसतन पैदावार 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टर फल प्राप्त हो जाते हैं।

तरबूज की खेती पर आने वाला खर्च



  • 5000 रुपए खेत तैयारी, बोवनी और, खाद

  • 1500 रुपए पांच किलो बीज

  • 4000 रु. कीटनाशक

  • 6000 तुड़ाई पर 30 मजदूरों की जरूरत

  • 16500 रु. कुल खर्च


तरबूज की खेती से प्राप्त लाभ/आय का गणित


जैसा कि बाजार में तरबूज के बीज 10000 रुपए प्रति क्विंटल बिकता है। तो 35 क्विंटल बीज उत्पादन पर 350000 रुपए और इसमें से खर्चा- 16500 रुपए हटा दें तो भी आप इससे 3,33500 रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं।


तरबूज की उन्नत खेती


ओल की खेती






परिचय


तरबूज एक बेलवाली गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली कद्दूवर्गीय महत्वपूर्ण फसल है। तरबूज हमारे देश में एक बहुत ही लोकप्रिय फल है। गर्मी में तरबूज का फल, फ्रूट डिश, जूस, शरबत, स्क्वैश आदि अनेक रूप से उपयोग होता है। तरबूज के पोषण और स्वास्थ्य लाभ भी कई हैं। इसकी खेती आर्थिक रूप से फायदेमंद मानी जाती है। यह एक बेहतरीन और ताजगीदायक फल है। प्रति 100 ग्राम तरबूज में 95.8 ग्राम पानी होता है। इसी लिए गर्मियों मे तरबूज का सेवन धूप की वजह से होने वाले निर्जलीकरण से बचाता है और शरीर को ताजगी से भरे रखता है। तरबूज गर्मियों में अक्सर होने वाले मूत्रमार्ग के संक्रमण से निजात पाने में भी सहायक है। इसमें उपलब्ध पोटेशियम हमारे हृदय को स्वस्थ एवं रक्तचाप को संतुलित बनाए रखने के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। तरबूज लगभग 119 मि.ग्रा. पोटेशियम देता है, जो कि हृदय के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।



तरबूज एक लो-कैलोरी फल है, जो सिर्फ 16 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है। यह प्रोटीन और वसा का निम्न स्रोत है। इसीलिए मोटे व्यक्ति भी तरबूज का सेवन बिना वजन बढ़ने की चिंता के कर सकते हैं। यह उपयोगी विटामिन 'ए' एवं विटामिन 'सी' भी प्रदान करता है। तरबूज लौह तत्व का एक बढ़िया स्रोत है और लगभग 7.9 मि.ग्रा. लौह तत्व देता है। इसलिए तरबूज किशोरी, सगर्भा एवं धात्री माता के लिए लौह का एक अच्छा स्रोत है। छह माह परे होने के तरंत बाद जब बच्चों को परक आहार देना होता है, तब तरबूज का रस एक स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यप्रद विकल्प है।

किस्में एवं संकर


तरबूज की प्रमुख किस्मों एवं संकर में शुगर बेबी, अर्का मानिक एवं अर्का ज्योति प्रमुख मानी जाती हैं। इसके अलावा कई बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों के बीज किसानों में प्रचलित हैं। बुआई के लिए उपयुक्त प्रजाति का चयन बाजार में मांग, उत्पादन क्षमता एवं जैविक अथवा अजैविक प्रकोप की प्रतिकारक क्षमता पर निर्भर करता है।

भूमि और जलवायु


मध्यम काली, रेतीली दोमट मृदा, जिसमें प्रचुर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ एवं उचित जल क्षमता हो, तरबूज की सफल खेती के लिए उचित मानी जाती है। तटस्थ मृदा (6.5-7 पी-एच मान वाली) इसकी खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। मृदा में घुलनशील कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट क्षार उपयुक्त नहीं हो सकते। नदी किनारे की रेतीली दोमट मृदा अच्छी मानी जाती है। तरबूज फल के मीठा होने के लिए गर्मी का मौसम उचित माना कर सकते हैं। जनवरी-फरवरी में कर सकते हैं।खरीफ मौसम में तरबूज की फसल लेने के लिए इसकी बुआई जून-जुलाई में कर सकते हैं। तरबूज फसल के लिए गर्म और शुष्क जलवायु उचित मानी जाती है। फल की वृद्धि और विकास के दौरान गर्म दिन (30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान) और ठंडी रात तरबूज फल की मिठास के लिए अच्छी मानी जाती है।

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भूमि की तैयारी


गहरी जुताई के समय अच्छी तरह से विघटित गोबर या कम्पोस्ट खाद 15-20 टन प्रति हैक्टर मृदा में दें, ताकि खेत साफ, स्वच्छ एवं भुरभुरा तैयार हो। इससे अंकुरण प्रभावित हो सकता है।

बीज दर एवं बीजोपचार


तरबूज की उन्नत किस्मों के लिए बीज दर 2.5-3 कि.ग्रा. और संकर किस्मों के लिए 750-875 ग्राम प्रति हैक्टर पर्याप्त होती है। बुआई के पहले बीज को कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में लगभग तीन घंटे तक डुबोकर उपचारित कर सकते हैं। उसके बाद उपचारित किए हुए बीजों को नम जूट बैग में 12 घंटे तक छाया में रख सकते हैं और फिर खेत में बुआई कर सकते हैं।

बुआई रोपण की वैज्ञानिक विधि


भूमि की तैयारी के बाद 60 सें.मी. चौड़ाई और 15-20 सें.मी. ऊंचाई वाली क्यारियां (रेज्ड बेड) तैयार की जाती हैं। क्यारियों में 6 फीट का अंतर रख सकते हैं। क्यारियों पर बीचों-बीच में लेटरल्स फैलाने चाहिए। क्यारियों को 4 फीट चौड़ाई के 25-30 माइक्रॉन मोटे मल्चिंग पेपर से कसकर फैलाना चाहिए। क्यारियों पर कसकर फैले मल्चिंग पेपर में बुआई/रोपण के कम से कम एक दिन पहले 30-45 सें.मी. की दूरियों पर छेद कर लेना चाहिए। इससे मृदा की गर्म हवा को बाहर निकाल सकते हैं।बुआई/रोपण से पहले क्यारियों की सिंचाई करें। प्रोट्रे में कोकोपीट का उपयोग करके 15-21 दिनों की आय के पौधों का : रोपाई के लिए उपयोग करें।

सिंचाई


रोपाई का काम सुबह या शाम कियाजाना चाहिए और आधा घंटा टपकन सिंचाई चालू रखे । पहले 6 दिन मृदा प्रकार अथवा जलवायु के अनुसार सिंचाई करें (प्रत्येक दिन 10 मिनट), शेष सिंचाई प्रबंधन फसल वृद्धि और विकास के अनुसार करें। तरबूज फसल पानी की जरूरत के प्रति बहुत संवेदनशील होती है। प्रारंभिक स्थिति में पानी की आवश्यकता कम होती है। वृद्धि और विकास अवस्था के अनुसार पानी की जरूरत बढ़ जाती है। यदि प्रारंभिक अवस्था में पानी अधिक हो जाता है, तो अंकुरण, रोपाई की वद्धि और कीट एवं रोग संक्रमण पर हानिकारक प्रभाव करता है। जल प्रबंधन मृदा के प्रकार और फसल के विकास पर निर्भर पड़ता है। सामान्यतः 5-6 दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए। फलधारण से पानी का तनाव नहीं होना चाहिए। सुबह 9 बजे तक सिंचाई करें। अनियमित सिंचाई से फल फटना. विकत आकार वाले फल एवं अन्य विकृतियों की आशंका होती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन


मृदा जांच के आधार पर खाद और उर्वरक का प्रयोग करना उचित रहता है। अच्छी तरह से विघटित गोबर या कम्पोस्ट खाद 15-20 टन प्रति हैक्टर खेत तैयार करते समय मृदा में दें। नीम खली (नीम केक) 250 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर दे सकते हैं। जैविक उर्वरक एजोटोबॅक्टर 5 कि.ग्रा., पी.एस.बी. 5 कि.ग्रा. और टाइकोडर्मा 5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर रासायनिक उर्वरक प्रयोग से लगभग 10वें दिन के बाद देना उचित माना जाता है। पानी में घुलनशील जैव उर्वरक टपकन सिंचाई से भी दे सकते हैं। जैव उर्वरक का रासायनिक उर्वरक के साथ प्रयोग न करें। तरबूज फसल के लिए रासायनिक उर्वरक के रूप में प्रति हैक्टर 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की मात्रा (यूरिया 109 कि.ग्रा.), 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस (एस.एस.पी. 313 कि.ग्रा.) एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश (एम.ओ.पी. 83 कि.ग्रा.) बुआई/रोपण के समय दिया जाना चाहिए। शेष नाइट्रोजन की मात्रा 50 कि.ग्रा. (यूरिया 109 कि.ग्रा.) को बुआई के 30, 45 एवं 60 दिनों में समान भाग में देना चाहिए। खाद का उपयोग मृदा में उपस्थित आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता एवं मृदा परीक्षण के ऊपर निर्भर रहता है


लहसून की खेती

 



 

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