chane ki kheti

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  1. प्रजातियों का चयन

  2. खेत का चुनाव तथा तैयारी

  3. बुवाई

    1.  समय

    2.  बीज दर



  4. ज्वार की उन्नतशील प्रजातियां

    1.  बोजोपचार

    2. पंक्तियों और पौधों की दूरी



  5. उर्वरक

  6.  सिंचाई

  7.  निराई गुडाई

    1. ज्वार में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए



  8. फसल सुरक्षाः कीट

    1.  ज्वार की प्ररोह मक्खी (शूट फ्लाई)

    2. उपचार



  9. उपचार

  10.  ईयर हेड मिज पहचान

    1. उपचार

    2.  ज्वार का माइट

    3. उपचार



  11. ज्वार के रोग

    1. ज्वार का भूरा फफूँद (ग्रे मोल्ड)

    2. उपचार



  12. कीट

    1. 1. दीमक

    2. 2. सूत्रकृमि

    3. 3. तना छेदक कीट

    4. 4. प्ररोह मक्खी

    5. 5. ईयर हेड मिज



  13. रोग

    1.  ज्वार का भूरा फफूँद(ग्रे मोल्ड)

    2. सूत्रकृमि



  14. मुख्य बिन्दु








ज्वार की खेती मुख्यतः प्रदेश के झांसी, हमीरपुर, जालौन, बांदा, फतेहपुर, इलाहाबाद, फर्रूखाबाद, मथुरा एवं हरदोई जनपदों में होती है। विगत पांच वर्षों के ज्वार के कुल क्षेत्रफल सिंचित क्षेत्र, उत्पादन तथा उत्पादकता के आंकड़ें परिशिष्ट-1 में दिये गये हैं।

प्रजातियों का चयन


अच्छी उपज प्राप्त करने हेतु उन्नतिशील प्रजातियों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए। बुवाई के समय क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार प्रजाति का चयन करें। विभिन्न क्षेत्रों के लिए संस्तुत प्रजातियों की विशेषतायें तथा उपज क्षमता तालिका में दर्शायी गयी है।

खेत का चुनाव तथा तैयारी


बलुई दोमट अथवा ऐसी भूमि जहां जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो, ज्वार की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में ज्वार की खेती प्रायः मध्यम भारी एवं ढालू भूमि में की जाती हैं।
मिट्टी पलटने वाले हल से पहली जुताई तथा अन्य दो तीन जुताइयॉ देशी हल से करके खेत को भली भॉति तैयार कर लेना चाहिए।

Eric Jones

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बुवाई


 समय


ज्वार की बुवाई हेतु जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अधिक उपयुक्त है।

 बीज दर


1 हे. क्षेत्र की बुवाई के लिए 10-12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। संकर7-8 किग्रा.हे., संकुल10-12 किग्रा है

ज्वार की उन्नतशील प्रजातियां























प्रजातिपकने की अवधि (दिन में)ऊचाई से.मी. (कु./हे.)दाने की उपजसूखे चारे (कु./हे.भुट्टे के गुणउपयुक्त क्षेत्र
1234567







संकुल प्रजातियां

















































वर्षा125-130200-22025-30100-110दो दनिया हल्का बादामीबुन्देलखण्ड को छोडकर समस्त उ.प्र.
सी.एस.बी. 13105-111160-18022-27100-110एक दनिया चमकीला हल्का बादामीसमस्त उ.प्र.
सी.एस.बी. 15105-110220-24023-28100-110एक दनिया चमकीला हल्का बादामीतदैव
एस.पी.बी.-1388 (बुन्देला)110-115240-25030-35115-120भुट्टा गठा हुआ एक दनिया दाना बड़ा मोती के समान सफेद चमकीलासमस्त उ.प्र.
विजेता100-110240-25030-35115-120तदैवतदैव







संकर प्रजातियां


























































सी.एस.एच 16105-11020038-4290-95लम्बा, मध्यम बादामी एक दनियातदैव
सी.एस.एच 9110-115175-20035-4080-100एक दनिया, चमकीला हल्का
सी.एस.एच.14100-105180-20035-4080-100तदैवतदैव
सी.एस.एच.18115-125180-20035-4080-100तदैवतदैव
सी.एस.एच.13115-125160-18035-4080-100तदैवतदैव
सी.एस.एच.23120-125180-20040-4575-120तदैवतदैव

 बोजोपचार


बोने से पूर्व एक किलोग्राम बीज को थीरम के 2.5 ग्राम से शोधित कर लेना चाहिए, जिससे अच्छा जमाव होता है एवं कंडुवा रोग नहीं लगता है। दीमक के प्रकोप से बचने हेतु 25 मिली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से क्लोरपायरीफास से शोधित करें।

पंक्तियों और पौधों की दूरी


ज्वार की बुवाई 45 सेमी. की दूरी पर हल के पीछे करनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेमी. होनी चाहिए। देर से पकने वाली अरहर की दो पंक्तियों के बीच एक पंक्ति ज्वार का बोना उचित होगा।

उर्वरक


उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना श्रेयस्कर होगा। उत्तम उपज के लिए संकर प्रजातियों के लिए 40:20:20 किलोग्राम एवं अन्य प्रजातियों हेतु 80:20:20 किलोग्राम नत्रजन फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हे. प्रयोग करना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बुवाई के समय कूंडों में बीज के नीचे डाल देना चाहिए तथा नत्रजन का शेष ½ भाग बुवाई के लगभग 30-35 दिन बाद खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहिए।

 सिंचाई


फसल में बाली निकलते और दाना भरते समय यदि खेत में नमी कम हो तो सिंचाई अवश्य कर दी जाय अन्यथा इसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

तिलहन

 निराई गुडाई


ज्वार की खेती में निराई-गुड़ाई का अधिक महत्व है। निराई-गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण के साथ ही आक्सीजन का संचार होता है जिससे वह दूर तक फैल कर भोज्य पदार्थ को एकत्र कर पौधों को देती है। पहली निराई जमाव के 15 दिन बाद कर देना चाहिए और दूसरी निराई 35-40 दिन बाद करनी चाहिए।

ज्वार में खरपतवारों को नष्ट करने के लिए


एट्राजीन 2 किग्रा. प्रति हे. अथवा 800 ग्राम प्रति एकड़ मध्यम से भारी मृदाओं में तथा 1.25 किग्रा. प्रति हे. अथवा 500 ग्राम प्रति एकड़ हल्की मृदाओं में बुवाई के तुरन्त 2 दिनों में 500 लीटर/हे. अथवा 200 लीटर/एकड़ पानी में मिलाकर स्प्रे करना चाहिए।
इस शाकनाशी के प्रयोग से एकवर्षीय घासकुल एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुत ही प्रभावी रूप से नियमित हो जाते हैं। इस रसायन द्वारा विशेषरूप से पथरचटा (ट्राइरगन्थिया) भी नष्ट हो जाता है।
जहॉ पर पथरचटा की समस्या नहीं है वहॉ पर लासो 50 ई.सी. (एलाक्लोर) 5 लीटर प्रति हेक्टर अथवा 2 लीटर प्रति एकड़ बुवाई के दो दिनों के अन्दर प्रयोग करना आवश्यक है।
हार्डी खरपतवारों जैसे कि वन पट्टा (ब्रेचेरिया रेप्टान्स), रसभरी (कोमेलिया वैफलेन्सिस) को नियन्त्रित करने हेतु बुवाई के दो दिनों के अन्दर एट्राटाफ 600 ग्राम प्रति एकड़+स्टाम्प 30 ई.सी. या ट्रेफ्लान 48 ई.सी. (ट्राइफ्लूरेलिन) प्रत्येक 1 लीटर प्रति एकड़ अच्छी तरह से मिलाकर 200 लीटर पानी के साथ प्रयोग करने पर आशातीत परिणाम आते है।

फसल सुरक्षाः कीट


 ज्वार की प्ररोह मक्खी (शूट फ्लाई)


पहचान

यह घरेलू मक्खी से छोटे आकार की होती है जिसका शिशु (मैगेट) जमाव के प्रारम्भ होते ही फसल को हानि पहुंचाती हैं।

उपचार


1. क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.5 लीटर प्रति हे. का छिड़काव करें।

2. तना छेदक कीट

पहचान
इस कीट की सूंड़ियां तने में छेद करके अन्दर ही अंदर खाती रहती है जिससे बीच का गोभ सूख जाता है।

उपचार


मक्का के तना छेदक के लिए बताये गये उपायों को प्रयोग करें।

 ईयर हेड मिज पहचान


प्रौढ़ मिज लाल रंग की होती है और यह पुष्प पत्र पर अण्डे देती है। लाल मेगेट्स दानों के अन्दर रहकर उसका रस चूसती हैं, जिससे दाने सूख जाते हैं।

उपचार


1. कार्बराइल (50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण) 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टर।

 ज्वार का माइट


पहचान
यह बहुत ही छोटा अष्टपदीय होता है, जो पत्तियों की निचली सतह पर जाले बुनकर उन्ही के अन्दर रहकर पत्तियों से रस चूसता है। ग्रसित पत्ती लाल रंग की जो जाती हैं तथा सूख जाती हैं।

उपचार


निम्न रसायनों में से किसी एक का छिड़काव करना चाहिए। डाइमेथोएट (30ई.सी.) 1 लीटर प्रति हेक्टर अथवा क्लोरपायरीफास 25 ई.सी. 1.5-2.00 ली./हे.।

ज्वार के रोग


ज्वार का भूरा फफूँद (ग्रे मोल्ड)


पहचान
प्रारम्भिक अवस्था में बीमारी सफेद रंग की फफूँदी बालियों एवं वृन्त पर दिखाई देती है। अन्ततः जो दाने बनते है वह भद्दे एवं उनका रंग हल्का गुलाबी भूरा या काला फफूँदी के अनुसार हो जाता है। रोग ग्रसित दाने हल्के या भुरभुरे हो जाते है ऐसे दानों का उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यह बीमारी ज्वार की संकर प्रजाति अथवा शीघ्र पकने वाली प्रजातियों में प्रायः अधिक पाई जाती है।

उपचार


मैंकोजेब 2.00 किलोग्राम/हे. की दर से आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।

कीट


1. दीमक


खड़ी फसल में प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.स. 2.5 ली. प्रति हे. की दर से प्रयोग करें।

2. सूत्रकृमि


रसायनिक नियंत्रण हेतु बुवाई से एक सप्ताह पूर्व खेत में 10 किग्रा. फोरेट 10 जी फैलाकर मिला दें।

3. तना छेदक कीट


निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे. बुरकाव/500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा. अथवा फोरेट 10 प्रतिशत जी. 20 किग्रा. अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे. अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. 1.50 लीटर

4. प्ररोह मक्खी


निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे. बुरकाव / 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किग्रा. अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सी.जी. 20 किग्रा. अथवा डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे. अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. 1.50 लीटर

5. ईयर हेड मिज


निम्नलिखित रसायन में से किसी एक रसायन को प्रति हे. बुरकाव / 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

फोसालोन 4 प्रतिशत डी.पी. 20 किग्रा. अथवा कारबिल 10 प्रतिशत डी.पी. 20 किग्रा. अथवा फोसालोन 35 प्रतिशत ई.सी. 1.0 ली. प्रति हे.

रोग


 ज्वार का भूरा फफूँद(ग्रे मोल्ड)



  1. खेत की गहरी जुताई करें।

  2. सल चक्र सिद्धान्त का प्रयोग करें।

  3. फसल एवं खरपतवारों के अवशेषों को नष्ट करें।

  4. सिंचाई का समुचित प्रबन्ध करें।

  5. उन्नतशील/संस्तुत प्रजातियों की ही बुवाई करें।

  6. बीजशोधन हेतु थिरम 75 प्रतिशत डब्लू.एस. 2.5 ग्राम अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू. पी. की 2.0 ग्राम अथवा मेटालैक्सिस 35 प्रतिशत डब्लू.एस. की 6.0 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

  7. रासायनिक नियंत्रण हेतु मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. 2.0 किग्रा. प्रति हे.की दर से 700-800 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

    सूत्रकृमि




रोकथाम हेतु गर्मी की गहरी जुताई आवश्यक है।

मुख्य बिन्दु



  1. उन्नतिशील / संस्तुत प्रजातियों की बुवाई समय से करायें।

  2. बीज शोधन अवश्य करें।

  3. उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करें।

  4. बाली निकलने एवं दाना बनते समय पानी आवश्यक है। अतः वर्षा के अभाव में सिंचाई करें।

  5. कीट एवं रोगों का समय से नियंत्रण करें।

  6. दो पंक्तियों के बीच में हल बैल चलित कल्टीवेटर / हो चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें।



 


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