मक्का
- संस्तुत सघन पद्धतियाँ
- खेत की तैयारी
- बुआई का समय
- बीज दर व बुआई की विधि
- बीज शोधन
- उर्वरक
- अन्य आवश्यक क्रियाएँ
- निराई-गुड़ाई
- सिंचाई
- अन्तः फसलें
- कटाई
- दाना निकालना
- फसल सुरक्षा
- दीमक कीट की पहचान
- बालदार कीट (भुड़ली) की पहचान
- उपचार
- माहूँ कीट की पहचान
- उपचार
- रोग नियंत्रण
- पत्तियों का झुलसा रोग की पहचान
- उपचार
- गुलाबी उकठा रोग की पहचान
- काला चूर्ण उकठा रोग की पहचान
- उपचार
- पत्तियों का झुलसा रोग की पहचान
रबी मक्का की खेती उत्तर/पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में की जाती है। प्रदेश के अन्य सिंचित भागों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
संस्तुत सघन पद्धतियाँ
संकर और संकुल मक्का की अनुमोदित प्रजातियों का विवरण निम्नवत है
क्र. सं. | किस्म का नाम | रिलीज होने के वर्ष | रंगों और दानों आकार | जीरा निकलने की अवधि (दिन) | पकने की अवधि (दिन) | उत्पादन क्षमता कु०/हे० |
संकर मक्का |
1 | बुलन्द | 2005 | पीला, गोल | 85-90 | 150-155 | 70-80 |
2 | पीएमएच-3 | 2008 | नारंगी, गोल | 85-90 | 150-160 | 70-80 |
3 | डक्कन-105 | 1991 | नारंगी, अर्द्धचपटा | 85-90 | 150-160 | 70-80 |
4 | त्रिशूलता | 1991 | नारंगी, अर्द्धचपटा | 85-90 | 150-160 | 70-80 |
5 | शक्तिमान-1 | 2001 | सफेद, चमकदार | 85-90 | 150-155 | 70-80 |
6 | एक्स-1382 (3054) | 1998 | पीला, अर्धचपटा | 85-90 | 155-160 | 70-80 |
7 | के.एच.-5981 | 1997 | पीला, अर्धचपटा | 85-90 | 155-160 | 70-80 |
8 | के.एच.-5991 | 1997 | पीला, अर्धचपटा | 85-90 | 155-160 | 70-80 |
9 | सीडटेक-2324 | 2001 | पीला, अर्धचपटा | 85-90 | 155-160 | 70-80 |
10 | एच.क्यू.पी.एम.-1 | 2005 | पीला, चपटा | 85-90 | 155-160 | 70-80 |
संकुल मक्का |
1 | धवल | 1988 | सफेद अर्द्धचपटा | 75-79 | 145-150 | 50-60 |
2 | शरदमणी | 2008 | नारंगी पीला | 82-87 | 125-130 | 45-50 |
3 | शक्ति-1 | 1997 | पीला, अर्द्धचपटा | 75-80 | 130-135 | 40-45 |
लावा हेतु |
4 | अम्बर-पॉपकार्न | 1988 | 1988 | 75-80 | 135-140 | 30-35 |
5 | वी.एल. अम्बर-पॉपकार्न | 1982 | नारंगी, गोल | 75-80 | 135-140 | 30-35 |
6 | पर्ल-पॉपकार्न | 1996 | नारंगी, गोल | 75-80 | 135-140 | 30-35 |
हरे भुट्टे हेतु मीठी मक्का (स्वीट कार्न) |
7 | माधुरी स्वीट कार्न | 1990 | पीला, चपटा | 80-85 | 120-125 | भुट्टा तैयार |
8 | प्रिया स्वीट कार्न | 2002 | पीला, चपटा | 80-85 | 120-125 | भुट्टा तैयार |
चारा हेतु मक्का |
9 | अफ्रीकन टाॅल | 1982 | - | - | 350-400 | कु० हरा चारा |
10 | जे.-1006 | 1992 | - | - | 300-350 | कु० हरा चारा |
नोट: विशेष उपयोग हेतु मक्का की खेती के समय यह ध्यान रखा जाये कि 400 मीटर के आस-पास मक्का की अन्य प्रजातियाँ न लगाई जाये। |
खेत की तैयारी
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दोमट मिट्टी रबी मक्का के लिये उपयुक्त होती है। सामान्यतः 1-2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करके मिट्टी भुरभुरी बना लें। यदि नमी की कमी हो तो पलेवा करके खेत की तैयारी कर लें। ट्रैक्टर चालित रोटावेटर द्वारा एक ही जुताई में खेत अच्छी तरह तैयार हो जाता है।
बुआई का समय
रबी मक्का की उपयुक्त बुआई का समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक का है।
बीज दर व बुआई की विधि
रबी मक्का हेतु 20-22 किग्रा. बीज प्रति हेक्टर का प्रयोग करें जिससे लगभग 85-90 हजार पौधे प्रति हेक्टर प्राप्त हो सकें। बुआई के पूर्व बीज शोधन अवश्य करें, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सेमी.तथा पौधे से पौधे की दूरी 20-25 से.मी रखे।
बीज शोधन
बीज जनित रोगों से बचाव हेतु बीज को थीरम 2.5 ग्राम अथवा कार्बान्डाजिम 50 प्रतिशत की 2 ग्राम मात्रा में प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करके बोगेहूं की खेतीना चाहिए।
उर्वरक
उर्वरक की मात्रा किस्मों एवं मृदा परीक्षण के अनुसार निम्नानुसार प्रयोग करना लाभदायक रहता है।
नत्रजन | फास्फोरम | पोटाश | गंधक | |
संकर मक्का | 150 किग्रा./हे. | 75 किग्रा.हे. | 60 किग्रा./हे. | 40 किग्रा./हे. |
संकुल मक्का | 120 किग्रा./हे. | 60 किग्रा./हे. | 40 किग्रा./हे. | 30 किग्रा./हे. |
फास्फोरस तथा पोटाश की समपूर्ण मात्रा तथा नत्रजन की चौथाई मात्रा बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए। शेष नत्रजन का आधा भाग जब पौधे घुटने की ऊँचाई तक हो जाये तथा शेष चैथाई भाग जीरा निकलने के पूर्व टापड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करना चाहिए, जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में 20-25 किग्रा.जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से अन्तिम जुताई से पहले प्रयोग करें। सावधानी के तौर पर जिंक सल्फेट को फास्फोरस वाले उर्वरकों के साथ मिलाकर प्रयोग न करें अच्छी उपज तथा भूमि की उर्वरता के बनाये रखने के लिए संकर किस्मों की दशा में 60 कुन्तल तथा संकुल किस्म की बुआई की दशा में 40 कुन्तल प्रति हे. की दर सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट का प्रयोग करना चाहिए। ऐसी दशा में 20 किग्रा. प्रति हे. नत्रजन का कम प्रयोग किया जाये।
अन्य आवश्यक क्रियाएँ
जब फसल घुटने के बराबर हो जाय तब पौधों पर मिट्टी चढ़ा दे। इस क्रिया द्वारा पौधों की पंक्तियों के बीच एक नाली बन जाती है जिससे सिंचाई में आसानी होती है।
निराई-गुड़ाई
बुआई के 20-25 व 40-50 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें अथवा एट्राजीन 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 1.00-1.5 लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर बुआई के बाद तथा जमाव से पहले छिड़काव करे।
सिंचाई
रबी मक्का में 4-5 सिंचाई करनी पड़ती है। प्रथम सिंचाई बुआई के 25-30 दिन, दूसरी 55-60 दिन तीसरी 75-80 दिन, चैथी 110-115 दिन तथा पांचवी 120-125 दिन बाद करनी चाहिए। अगर आवश्यकता हो तो अतिरिक्त सिंचाई खेत की नमी के अनुसार करना उपयुक्त होगा।
अन्तः फसलें
दालों की कम समय में तैयार होने वाली प्रजातियाँ मटर (सब्जी वाली) राजमा, वाकला, टमाटर, अगेती आलू, गाजर, चुकन्दर तथा प्याज, मक्का की कतारों के बीच बो कर सफलतापूर्वक अन्तः फसल के रूप में ली जा सकती है।
कटाई
भुट्टे को ढकने वाली 75 प्रतिशत पत्तियां पीली पड़ जाने पर भुट्टों को तोड़कर सुखाकर दाने अलग कर लेना चाहिए।
दाना निकालना
बाली को सुखाकर मानव चालित अथवा पावर चालित मेज सेलर से दाना निकालना चाहिए। इससे 40-50 प्रतिशत लागत कम होती है।
फसल सुरक्षा
भूमि शोधन एवं खड़ी फसल पर कीट/रोग उपचार
दीमक कीट की पहचान
मुख्यतः श्रमिक दीमक जो लगभग 6 मि.मीटर लम्बे, मटमैले सफेद रंग के मुलायम कीड़ें हैं, जो पौधे की जड़ों को काटकर हानि पहुंचाते हैं।
- खेत में आखिरी जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्लोरपाइरीफास 25-30 किलोग्राम प्रति हे. की दर से प्रयोग करें।
- खड़ी फसल में प्रकोप होने की दशा में लिन्डेन 20 ई.सी. 3.75 लीटर या क्लोरोपायरीफास 2-3 ली./हे. की दर से सिंचाई पानी के साथ प्रयोग करें।
बालदार कीट (भुड़ली) की पहचान
इस कीट की गिडारें पत्तियों को बहुत तेजी से खाती है और फसल को काफी हानि पहुंचाती है। इनके शरीर पर रोऐं होते है।
उपचार
- इसकी रोकथाम हेतु निम्न में से किसी एक रसायन का बुरकाव, छिड़काव करना चाहिए।
- मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर
- डाइक्लोरवास 650 मिली०
- क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 1.5 लीटर
माहूँ कीट की पहचान
इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तियों की सतह से रस चूसकर हानि पहुंचाते है।
उपचार
इसकी रोगथाम हेतु निम्न में से किसी एक रसायन का छिड़काव करना चाहिए।
- मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी. 1.00 लीटर
- मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. 0.500 लीटर
- क्लोरोपायरीफास 20 ई.सी. 0.750 लीटर
रोग नियंत्रण
पत्तियों का झुलसा रोग की पहचान
इस रोग में पत्तियों पर बड़े लम्बे अथवा कुछ अण्डाकार भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है। रोग के उग्र होने पर पत्तियां झुलसकर सूख जाती है।
उपचार
इसकी रोकथाम हेतु जिनेब या मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
गुलाबी उकठा रोग की पहचान
इस रोग में दाने पड़ने के बाद पौधे खेत में कम नमी के कारण सूखे दिखाई पड़ते है। तने को तिरछा काटने पर संवहन नालिकायें निचली पोरों पर गुलाबी रंग की निचली पोरों में दिखाई पड़ती है तथा सिकुड़ जाती है।
काला चूर्ण उकठा रोग की पहचान
कटाई से 10-15 दिन पहले पौधें खेत में सूखे दिखाई देते है। तनों को तिरछा काटने पर जड़ों के पास संवहन नलिकायें सिकुड़ी हुई तथा कोपल चूर्ण से पोर भरे हुए दिखायी देते है।
उपचार
इसकी रोकथाम हेतु स्वस्थ बीज का प्रयोग, बीजोपचार तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।
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