राइसबीन

राइसबीन

 

राइसबीन चारा की खेती की पूरी जानकारी – Rice bean farming


नमस्कार किसान भाईयों, राइसबीन चारा एक महत्वपूर्ण एवं पौष्टिक चारे की फसल है. इसको अधिक पानी की दशा में में उगाया जा सकता है, क्योकि ऐसे स्थानों पर लोबिया या ग्वार जैसी फसल उगाना कठिन है. आज गाँव किसान (Gaon kisan) अपने इस लेख में राइसबीन चारा की खेती के बारे में पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी चारे की अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है राइसबीन चारा की खेती की पूरी जानकारी-

Swaraj 963 FE TRACTOR INFORMATION


  • 1 राइसबीन चारा के फायदे

  • 2 उत्पत्ति एवं क्षेत्र

  • 3 जलवायु एवं भूमि

  • 4 फसल चक्र

  • 5 खेत की तैयारी

  • 6 बुवाई

  • 7 खाद एवं उर्वरक

  • 8 सिंचाई एवं जल-निकास

  • 9 फसल सुरक्षा

  • 10 कटाई-प्रबन्धन एवं उपज

  • 11 निष्कर्ष





सामान्य जानकारी





राइसबीन को वानस्पतिक नाम के रूप में विग्ना अम्बेलाटा के नाम से जाना जाता है। यह एक बारहमासी फलियां है जिसकी औसत ऊंचाई 30-100 सेमी होती है और इसे 200 सेमी तक उगाया जा सकता है। पत्तियां त्रिकोणीय होती हैं जिनमें 6-9 सेमी लंबे पत्ते होते हैं। फूल चमकीले पीले रंग के होते हैं जिन पर फल लगते हैं। फल बेलनाकार होते हैं जो आकार में 6-8 मिमी के बीज धारण करते हैं। यह भारत-चीन, दक्षिणी चीन, नेपाल, बांग्लादेश और भारत में पाया जाता है। हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ भारत के प्रमुख धान उत्पादक राज्य हैं।






धरती


यह दोमट से लेकर बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी जल निकासी प्रणाली वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है। यह खराब या हल्की उपजाऊ मिट्टी पर मध्यम रूप से उगता है। लवणीय-क्षारीय मिट्टी, रेतीली या जलभराव वाली मिट्टी में खेती से बचें। धान की फलियों को हल्की मिट्टी में न उगाएं क्योंकि इससे फसल को जड़-गाँठ सूत्रकृमि की समस्या होती है।
VST 95 DI Ignito Power Tiller

उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में


आरबीएल 6 : वर्ष 2002 में विकसित। यह किस्म वायरल, फंगल और जीवाणु रोगों के लिए प्रतिरोधी है। इस किस्म का विकास तेजी से होता है। फली का बनना, उसका विकास और उसकी परिपक्वता सभी एक ही समय में घटित होती हैं। इस किस्म के बीज हरे रंग के होते हैं और कीटों के प्रतिरोधी होते हैं। यह किस्म 125 दिनों में पक जाती है और औसतन 6 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।

आरबीएल 1: पीएयू, लुधियाना द्वारा विकसित। सामान्य अवधि और अधिक उपज देने वाली फसल। 6 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।

आरबीएल 35: जल्दी पकने वाली किस्म, पीएयू, लुधियाना द्वारा विकसित। 6 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।

आरबीएल 50 : पीएयू, लुधियाना द्वारा विकसित उच्च उपज देने वाली किस्म। यह सामान्य अवधि की फसल है। 6.5 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
अन्य राज्य किस्में:

PRR2 : GBPUA&T द्वारा विकसित सामान्य अवधि, उच्च उपज देने वाली किस्म। यह 6 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
MASSEY tractor
बीआरएस 1: अधिक उपज देने वाली किस्म, एनबीपीजीआर, भोवाली द्वारा विकसित। यह पहाड़ी क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के बीजों का रंग काला होता है। यह औसतन 7 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

भूमि की तैयारी


धान की फलियों की खेती के लिए, इसके लिए अच्छी बीज क्यारी की आवश्यकता होती है जो किसान द्वारा अच्छी तरह से तैयार की जाती है। अच्छे पौधे के खड़े होने के लिए इसे तैयार सीड बेड की आवश्यकता होती है। बीज का अंकुरण ठीक बीज क्यारी पर किया जाता है और तैयार नर्सरी क्यारियों पर रोपाई की जाती है।

बोवाई


बुवाई का समय:
चूंकि यह खरीफ मौसम की फसल है, बुवाई मुख्य रूप से जुलाई महीने के पहले - तीसरे सप्ताह में की जाती है।

दूरी:
पौधे की वृद्धि की आदत के आधार पर, पंक्ति की दूरी 30 सेमी और पौधे की दूरी 10-12 सेमी का उपयोग करें।

बुवाई की गहराई :
बीज को 3-4 सें.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।

बुवाई की विधि: डिब्बलिंग


केरा/पोरा/बीज ड्रिल का प्रसारण

मूंगफली(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

बीज


बीज दर:

अच्छी उपज के लिए बीज दर 10-12 किलो प्रति एकड़ का प्रयोग करें।

नर्सरी प्रबंधन और प्रत्यारोपण


धान की फलियों के बीजों को सुविधाजनक लंबाई और चौड़ाई की तैयार क्यारियों पर बोयें। सीड ड्रिल की सहायता से बीज बोयें। उच्च बीज अंकुरण के लिए बुवाई अच्छी पानी की स्थिति में की जानी चाहिए।

उर्वरक


उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)

 















यूरियाएसएसपीझाड़ूजस्ता
1320##

चना (छोला)(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

पोषक तत्व मूल्य (किलो/एकड़)

Power tiller supply VST Kisan Brand VST Model Name Kisan Implement Type Power Tiller Category Tillage













नाइट्रोजनफॉस्फोरसपोटाश
68#

 

खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह सड़ी-गली गोबर की खाद 10-15 टन प्रति एकड़ डालें। नाइट्रोजन की उर्वरक मात्रा 6 किलो प्रति एकड़ (यूरिया 13 किलो प्रति एकड़) और फॉस्फोरस पेंटोक्साइड 8 किलो प्रति एकड़ (सिंगल सुपरफॉस्फेट 50 किलो प्रति एकड़) डालें।

खरपतवार नियंत्रण


खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए बार-बार निराई-गुड़ाई करनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 30-50 दिनों के बाद 1-2 बार निराई करनी पड़ती है। खरपतवार नियंत्रण के साथ-साथ मिट्टी के तापमान को कम करने के लिए मल्चिंग भी एक प्रभावी तरीका है।

सिंचाई


मानसून में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन जब मानसून समय पर नहीं आता या सूखा पड़ जाता है तो मानसून के बाद की अवधि में 2-3 बार सिंचाई करें।

प्लांट का संरक्षण



  • रोग और उनका नियंत्रण:


पत्ती का तना सड़ा हुआ : यह रोग तने को नुकसान पहुंचाता है और इसके परिणामस्वरूप बीज की उपज कम होती है और इसकी गुणवत्ता भी कम हो जाती है।

पीली पत्तियाँ : रोग पहले लाल धब्बे के रूप में प्रकट होता है और फिर धीरे-धीरे यह लाल भूरे और फिर पीले रंग में बदल जाता है। इससे पत्तियों की उपज कम हो जाएगी।

इस बीमारी के इलाज के लिए जितनी जल्दी हो सके संक्रमित हिस्से को हटा दें।

ब्लिस्टर बीटल: बीटल फूल को नुकसान पहुंचाती है और फली के गठन को अवरुद्ध करती है।

ब्लिस्टर बीटल कीट के इलाज के लिए डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी @ 200 मिली या इंडोक्साकार्ब 14.5 एससी @ 200 मिली या एसीफेट 75 एसपी @ 800 ग्राम प्रति एकड़ 80-100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

  • कीट और उनका नियंत्रण:


छोटा लार्वा (बालों वाली सुंडी) : सुंडी खुद को खिलाकर पत्तियों और हरे तनों को नुकसान पहुंचाती है।

बालों वाली सुंडी के उपचार के लिए एकलक्स 25 ईसी 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में या नुवन 100 @ 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है।

फली छेदक (लेपिडोप्टेरा): यह युवा बीजों को खाकर या एक फली से दूसरी फली में ले जाकर फली को नुकसान पहुंचाता है।

फली छेदक के उपचार के लिए इंडोक्साकार्ब 14.5 एससी @ 200 मिली या एसीफेट 75 एसपी @ 800 ग्राम या स्पिनोसैड 45 एससी @ 60 मिली 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

छिपकली: यह पौधे की पत्तियों और मेड़ों को काट देती है।

पौधे के चारों ओर कीटनाशक का छिड़काव करने से छिपकली को पौधों से दूर रहने में मदद मिलेगी। छिड़काव शाम को करना चाहिए।



लार्वा : यह पौधे की पत्तियों और फली को पत्तियों को खाकर और फली में छेद करके नष्ट कर देता है।

फसल काटने वाले


कटाई मुख्य रूप से तब की जाती है जब 80% फली भूरे रंग की हो जाती है। फली को खराब होने से बचाने के लिए कटाई मुख्य रूप से सुबह के समय की जाती है। कटाई छोटे टुकड़ों में की जाती है क्योंकि पौधे एक दूसरे से जुड़े होते हैं।

फसल कटाई के बाद


कटाई के बाद अनाज को धूप में सुखाया जाता है। सुखाने के बाद उन्हें लंबी दूरी के परिवहन और बिक्री के उद्देश्य के लिए बोरियों या लकड़ी के बक्से में पैक किया जाता है।

राइसबीन चारा के फायदे


राइसबीन पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा है. इसकी पुष्पावस्था में कटाई करने पर इसके चारे में शुष्क पदार्थ के आधार पर 14.54 प्रतिशत प्रोटीन तथा 32.15 प्रतिशत रेशा पाया जाता है. इसके अलावा में नाइट्रोजन रहित निष्कर्ष, ईथर निष्कर्ष, कुल राख, कैल्सियम, फ़ॉस्फोरस आदि रासायनिक तत्व पाए जाते है. जो चारे की पौष्टिकता को बढ़ाते है. एक एक वर्षीय चारा फसल है.

सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

उत्पत्ति एवं क्षेत्र


राइसबीन का वानस्पतिक नाम फेजिओलस कैलकेरेटस (Phaseolus calcaratus) है. इसकी उत्पत्ति का मूल स्थान भारत माना जाता है. विश्व में इसकी खेती इंडोनेशिया, बर्मा, युगांडा, पेराग्वे तथा दक्षिणी अमेरिका के भागों में की जाती है. भारत में इसकी फसल चारे के अलावा हरी खाद के लिए भी उगाई जाती है. भारत में इसे पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के कुछ भागों में चारे के लिए उगाई जाती है.

जलवायु एवं भूमि


इसकी फसल सभ प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है. इसे अधिकतर कम उपजाऊ भूमि में भी उगाया जा सकता है. इसके लिये सबसे उपयुक्त दोमट मिट्टी होती है. वर्षा काल में लगातार अच्छी बारिश से इसकी वृध्दि अच्छी होती है. परन्तु यदि खेत में पानी भर जाता है, तो फसल पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है. यह फसल प्रायः उन सभी स्थानों पर उगाई जाता है. जहाँ तापमान 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तक होता है. इसके अतरिक्त 22 से 25 सेंटीग्रेड तापमान वाले स्थानों पर इसकी कम से कम दो फासले ली जा सकती है.

फसल चक्र


यह मिलवा खेती में सूडान घास या ज्वार के साथ मिलाकर उगाई जा सकती है. बहु कटाई वाली फसलों, जैसे नेपियर या गिनी घास के साथ भी इसे उगा सकते है. घास की उपज अधिक वर्षा वाले या ठन्डे मौसम में कम हो जाती है. इसके लिए निम्न फसल चक्र उपयुक्त होता है.

  • धान-राइसबीन-राइसबीन (एकवर्षीय)

  • जूट-राइसबीन-राइसबीन (एकवर्षीय)

  • धान-गेहूं-राइसबीन-धान-गेहूं-राइसबीन (द्विवर्षीय)

  • जूट-राइसबीन-धान-राइसबीन-धान (द्विवर्षीय)


खेत की तैयारी 


भूमि की तैयारी खेत में पूर्ववर्ती उगाई गई फसल पर निर्भर करता है. सामान्य रूप से दो से तीन बार अच्छी प्रकार जुताई कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए. जिससे खेत की मिट्टी भुरभुरी बन जाय. इससे चारे की उपज अच्छी होगी.

बुवाई 


बुवाई इसकी फसल की बुवाई प्रायः साल में कई बार की जा सकती है. जिससे पशुओं के लिए हरा चारा साल में कई बार प्राप्त किया जा सकता है. इसकी बुवाई जूट की फसल काटने के बाद अगस्त के महीने में की जा सकती है. इसके अतरिक्त निचली भूमियों में, जहाँ धन की पछेती फसलें उगाई जाती है. इसकी बुवाई धान की खड़ी फसल में भी की जा सकती है. अगस्त में बोने पर यह फसल अक्टूबर और नवम्बर तक हरा चारा देती है. धान की खड़ी फसल में अक्टूबर-नवम्बर में बुवाई करने पर चारा जनवरी से अप्रैल तक प्राप्त हो जाता है. यदि केवल चारे की फसलों का चक्र बनाया जाय, तो यह फसल जून-जुलाई और मार्च -अप्रैल में भी ली जा सकती है.

चारे के लिए बीज बोने की दर 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा दाने के लिए 25 से 20 किलोग्राम आवश्यकता पड़ती है. चारे की फसल छिटकवाँ विधि से या 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोते है. दाने की फसल 60 से 70 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोते है.

खाद एवं उर्वरक


इसकी खेती ऐसे स्थानों पर करते है. जहाँ वर्षा अधिक होती है. इसलिए इसकी भूमि का पी० एच० मान थोडा कम होता है. इस दशा में नाइट्रोजन युक्त खादों का प्रयोग ठीक नही होता है. प्रायः इसके लिए 80 से 150 कुंटल सड़ी गोबर की खाद तथा 30 से 40 किलोग्राम फ़ॉस्फोरिक अम्ल प्रति हेक्टेयर डालना चाहिए. यह खाद खेत की तैयारी के समय ही डाल देते है. यदि भूमि का पी० एच० मान 7 या इससे अधिक हो, तो 25 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 से 45 किलोग्राम फ़ॉस्फोरस अम्ल प्रति हेक्टेयर खेत में बुवाई के पहले डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए. यह खाद पौधों की प्रारम्भिक वृध्दि में सहायक होती है.

सिंचाई एवं जल-निकास 


खरीफ की फसल को पानी की कोई आवश्यकता नही होती है. अगस्त में ली जाने वाली फसल में 1 या 2 सिंचाइयों की आवश्यकता नही पड़ती है. यह फसल की सूखे की अवस्था को भी सहन कर सकती है. गर्मी में ली जाने वाली फसल को 2 से 3 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. पूर्वी भारत में जहाँ यह फसल अधिक प्रचलित है, सामन्यतया सिंचाइयों की आवश्यकता नही पड़ती है. क्योकि भूमि में पानी का स्तर ऊंचा होता है. खेत में अधिक पानी भर जाने नुकसान हो सकता है. इसलिए जल निकासी की व्यवस्था से ऐसे क्षेत्रों में लाभ होता है.

फसल सुरक्षा 


प्रारंभ में एक या दो बार निराई-गुड़ाई करने से पौधों की बढ़ोत्तरी अच्छी होती है. और खरपतवार निकल जाते है. इसकी चारे की फसल में रोगों एवं कीड़ों का प्रकोप नही के बराबर होता है.

कटाई-प्रबन्धन एवं उपज


बुवाई के 80 से 90 दिन बाद यह फसल चारे के लिए तैयार हो जाती है. इस समय कटाई करने से हरे चारे की कुल उपज 300 से 350 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक पाई जाती है. इस समय चारे में पौष्टिक तत्वों की मात्रा भी अधिक पायी जाती है. यदि कटाई 15 से 20 दिन देर से की जाय, तो कुल उपज 350 से 400 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुँच जाती है. परन्तु चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है. उपज प्रायः बुवाई के समय पर निर्भर करती है. देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है.

निष्कर्ष 


किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान के इस लेख से राइसबीन चारा फसल की खेती की पूरी जानकारी मिल पायी होगी. फिर भी राइसबीन चारा से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा आपको यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.

संदर्भ


1.पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना

2.कृषि विभाग

धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

3.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

4.भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान

5.कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय

How entamopox help in agriculture?(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

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