लोबिया की खेती

लोबिया की खेती




  1. परिचय

  2. किस्में

  3. प्रमुख रोग एवं नियंत्रण





लोबिया (बोड़ा) की खेती के बारे में और उसके फायदे एवं नुकसान


लोबिया (बोड़ा) एक महत्वपूर्ण नगदी सब्जी की व्यावसायिक फसल है। लोबिया की खेती मैदानी क्षेत्रों में फरवरी से अक्टूबर तक सफलतापूर्वक की जाती है। लोबिया एक दलहनी पौधा है जिसमें पतली, लम्बी  फलियाँ होती हैं। इन फलियों का उपयोग कच्ची अवस्था में सब्जी के रूप में किया जाता है। लोबिया की इन फलियों को बोड़ा चौला या चौरा  की फलियों के नाम से भी जाना जाता है। लोबिया हरी फली, सूखे बीज, हरी खाद और चारे के लिए पूरे भारत में उगाई जाने वाली वार्षिक फसल है। यह अफ्रीकी मूल की फसल है। यह सूखे को सहने योग्य, जल्दी पैदा होने वाली और खरपतवार को शुरूआती समय में पैदा होने से रोकती है। यह मिट्टी में नमी बनाए रखने में मदद करती है। लोबिया प्रोटीन, कैल्शियम और लोहे का मुख्य स्त्रोत है।

लोबिया में मौजूद पौषक तत्व


लोबिया में मौजूद प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, फाइबर, एंटीऑक्सीडेन्ट, विटामिन बी 2 और विटामिन सी जैसे कई पोषक भी तत्व पाए जाते हैं जो कि स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। लोबिया का सेवन अलग-अलग स्वास्थ्य स्थितियों जैसे - वजन कम करने में, पाचन, दिल को स्वस्थ रखे में, शरीर को डिटॉक्स, सर्कुलेटरी हेल्थ में सुधार, नींद से जुड़ी समस्याओं से राहत, स्किन केयर, डायबिटीज को मैनेज आदि स्वास्थ्य स्थितियों के अनुसार फायदेमंद हैं। इस फायदों को आप इसे डाइट में कई तरीकों से शामिल करके पा सकते हैं।

कितने दिन में तैयार होती है लोबिया की फसल


लोबिया एक गर्म और आर्द्र जलवायु वाली फसल है। लोबिया की खेती मैदानी क्षेत्रों में फरवारी से मार्च व जून से जुलाई में की जाती है। लोबिया की खेती खरीफ की फसल के साथ भी की जा सकती है। वैसे तो लोबिया पूरे भारत में उगाई जाने वाली वार्षिक फसल है। इसकी  फसल बुवाई के बाद 45 से 50 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। और इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल जाती है।

किसानों को लोबिया खेती का लाभ


लोबिया की खेती दलहन फसल के रूप में की जाती है। किसान लोबिया की खेती हरी खाद, पशुओं के चारे एवं सब्जी के लिए करते है। इसकी कच्ची फलियों की तुड़ाई कर किसान स्थानीय बाजारों में बेचते हैं। इन कच्ची फलियों को सब्जी के रूप में खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। किसान को लोबिया की फसल से अपने  पशुओं के लिए उत्तम पौष्टिक चारा भी प्राप्त हो जाता है। किसान भाई इसके पौधों को पकने से पहले खेत में जोतकर इससे हरी खाद भी तैयार कर सकतें है । भारत में लोबिया की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, केरल और उत्तर प्रदेश में की जाती है।

लोबिया की खेती कब की जाती है? 


लोबिया की ग्रीष्मकालीन की खेती के लिए फरवरी से मार्च में एवं बरसाती फसल के लिए जून-जुलाई में बुआई की जानी चाहिए। क्योंकि लोबिया का पौधा समशीतोष्ण जलवायु का होता है। इसके पौधों का विकास शुष्क मौसम में उचित रूप से होता है।  इसके पौधे को विकास करने के लिए अधिक बारिश की जरूरत नही होती है। इसके पौधे भूमि में नमी बनाकर रखते हैं। इसके पौधे लता और झाड़ीदार दोनों रूप में पाए जाते हैं।

लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 


लोबिया की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है। लोबिया की खेती के लिए गर्म मौसम सबसे उपयुक्त होता है। लेकिन अधिक तेज गर्मी भी इसके पौधों के विकास और पैदावार को प्रभावित करती है। इसके पौधे सर्दी के मौसम में विकास नही कर पाते। और अधिक बारिश इसकी खेती के लिए उपयोगी नही होती। लोबिया की खेती के लिए शुरुआत में बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है। अंकुरित होने के बाद इसके पौधे 35 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते है। सामान्य तापमान पर इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। कुल मिलाकर कहा जाये तो इसके पौधों को उचित विकास के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती हैं।

लोबिया फसल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी 


लोबिया की फसल के लिए लगभग सभी प्रकार की मिट्टी को उपयुक्त माना गया है। इसे सभी प्रकार की मिट्टी में अच्छे प्रबंधन के साथ उगाई जा सकती हैं। लेकिन लोबिया की फसल के लिए मटियार या रेतीली दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना है। फिर भी कई क्षेत्रों में इसे लाल, काली और लैटराइटी मिट्टी में भी उगाया जाता है। लोबिया की अच्छी फसल के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मिट्टी को इसके लिए विशेष रूप से उपयुक्त होती है। इसकी खेती में उचित जल निकासी वाली भूमि की जरूरत होती है। अत्यधिक लवणीय क्षारीय मृदा इसकी खेती के लिए सही नहीं है। इसकी खेती के लिए भूमि का सामान्य पीएच मान 6 से 8 बीच उदासीन होना चाहिए।

लोबिया की उन्नत किस्में 


पूसा कोमल- लोबिया की यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाईट प्रतिरोधी है। इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है। इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है। यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है। अगर किसान इस किस्म की बुवाई करता है, तो इससे प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है।

  • पंत लोबिया - 4  लोबिया की इस किस्म के पौधे लगभग डेढ़ फीट के आसपास पाए जाते हैं। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है। इस किस्म की फलियों की लम्बाई आधा फिट के आसपास पाई जाती है। जिसके दानों का रंग सफेद दिखाई देता है। जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 किवंटल के आसपास पाया जाता है।

  • लोबिया 263 - लोबिया की इस किस्म के पौधे खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगाये जा सकते हैं। जिनकी खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन में पहली हरी फली की तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 125 किवंटल के आसपास पाया जाता है। इस किस्म के पौधों में विषाणु जनित रोग काफी कम पाए जाते हैं।

  • अर्का गरिमा - यह किस्म खम्भा प्रकार की किस्म कहलाती है, जिसकी ऊंचाई  2 से 3 मी की होती है। इस किस्म को बारिश और बसंत ऋतु में आसानी से बो सकते हैं। रोपाई के लगभग 40 से 45 दिनों पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेेयर की दर के आसपास उत्पादन मिलता है।

  • पूसा बरसाती - लोबिया की इस किस्म को बारिश के मौसम में ज्यादा लगाया जाता है। इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है, जो कि 26 से 28 सेमी लंबी होती है। खास बात है कि यह किस्म लगभग 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 85 से 100 क्विंटल पैदावार मिल जाती है।

  • पूसा ऋतुराज - लोबिया की यह किस्म प्रकाश एवं तापक्रम के प्रति अति संवेदनशील व फलिया 20 से 25 सेमी. लम्बी होती है एवं हरी फलियों की उपज लगभग 75 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।


बुवाई से पहले बीज उपचार


अच्छी पैदावार के लिए बीजों का उपचार करके ही बोना चाहिए। बीजों को उपचारित कर के बोने से लगभग 95 प्रतिशत बीजों का अंकुरण उचित रूप से होता है। साथ फसल में होने वालें रोगों की संभवना कम हो जाती है। लोबिया के बीजों को बुवाई से पूर्व 2.5 ग्राम थीरम दवा से प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लोबिया बीजो को विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से शोधित करें।

लोबिया बुवाई का समय तथा बीज की मात्रा


लोबिया की गर्मी की फसल के लिए फरवरी से मार्च में एवं बरसाती फसल के लिए जून से जुलाई के महीने में बुवाई करनी चाहिए। गर्मी में इसकी बुवाई समतल भूमि में कर सकते है। एवं बरसात ऋतु की फसल की बुवाई मेंडों पर 15 सेन्टीमीटर की ऊँचाई पर पंक्तियों में कर सकतें है। लोबिया की खेती के लिए 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों की आवश्यकता पड़ती है। दाना एवं हरी फलियों के लिए लोबिया की बीजों की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए। इन बीजों की बुवाई खेती के प्रकार के अनुसार ही करें। अगर दानें के लिए इसकी बुवाई कर रहें है तो बीजों की बुवाई 30 से 40 सेमी. तथा फलियों के लिए बुवाई पर 25 से 35 सेमी की दूरी पर करें।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा का प्रयोग


खाद व उर्वरक के मामले में साधारण भूमि में 10-15 टन तक गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर कि दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। लोबिया की अच्छी उपज के लिये 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। भूमि एवं पौधों की आवश्यकतानुसार जिंक सल्फेट का प्रयोग भी किया जा सकता हैं। लोबिया की बुवाई के बाद आवश्यकतानुसार एक हल्की सिंचाई करना अंकुरण के लिए अच्छा रहता है। जायद के मौसम में तापक्रम बढऩे से प्रति सप्ताह या 10 से 12 दिन के अंतराल में सिंचाई करतें रहें।

कैसे करें लोबिया में कीट प्रबंधन 



  • रोमिल सूंडी कीट - यह लोबिया का प्रमुख कीट है। यह फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है अगर फसल में इस कीट का प्रकोप दिखे तो 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 2 प्रतिशत मिथाइल पेराथियानद पाउडर का छिडक़ाव करें।

  • तेला और काला चेपा - लोबिया फसल पर यदि तेला और काले चेपे का हमला दिखे तो मैलाथियॉन 50 ई सी 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में डालें।

  • लीफ होपर, जैसिड, एफिड - ये कीट पौधे के रस को चूसकर उसे पीला व कमजोर कर देते है। अगर इस कीट का प्रकोप फसल में दिखे तो इसकी रोकथाम के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. या मिथाइल डिमेटान 30 ई.सी. की 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।


रोग नियंत्रण कैसे करें 



  • बीज गलन और पौधों का नष्ट होना - यह बीमारी बीज से पैदा होने वाले माइक्रोफलोरा के कारण फैलती है। प्रभावित बीज सिकुड़ जाते हैं और बेरंग हो जाते हैं। प्रभावित बीज अंकुरण होने से पहले ही मर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बुवाई से पहले थीरम दवा 2.5 ग्राम या बवास्टिन 50 डब्ल्यू पी 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।

  • जीवाणु झुलसा - रोग के लक्षण व प्रकोप प्रारंभिक दशा में बड़े पैमाने पर नवजात पौधों में देखनें को मिलता हैं। इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत का ब्लाईटाक्स का छिडक़ाव करें।

  • लोबिया मोजैक - यह बीमारी सफेद मक्खी द्वारा संचारित होती है। इससे पत्तियों का आकार विकृत हो जाता है। इसकी रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स या डाइमेथोएट का छिडक़ाव 10 दिन के अन्तराल पर करें।



धरती





इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है लेकिन अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में उगाने पर यह सबसे अच्छा परिणाम देता है।




उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में





लोबिया 88 : पूरे राज्य में खेती के लिए अनुशंसित। इसे चारे के साथ-साथ अनाज के लिए भी उगाया जाता है। इसकी फली बड़ी होती है और बीज चॉक्लेट ब्राउन सीड कलर के बोल्ड होते हैं। यह पीले मोज़ेक और एन्थ्रेक्नोज रोग के लिए प्रतिरोधी है। यह औसतन 4.4 क्विंटल प्रति एकड़ और 100 क्विंटल प्रति एकड़ हरा चारा देता है।

CL 367 : इसे चारे के साथ-साथ अनाज के लिए भी उगाया जा सकता है। इसमें बड़ी संख्या में फली होती है। इसके बीज छोटे, मलाईदार सफेद रंग के होते हैं। यह पीले मोज़ेक वायरस और एन्थ्रेक्नोज रोग के लिए प्रतिरोध देता है। यह औसतन 4.9 क्विंटल प्रति एकड़ और 108 क्विंटल प्रति एकड़ हरा चारा देता है।

अन्य राज्य किस्में:

काशी कंचन:बौनी और झाड़ीदार किस्म, गर्मी के साथ-साथ बरसात के मौसम में भी खेती के लिए उपयुक्त है। फलियाँ नरम और गहरे हरे रंग की होती हैं। यह 60-70 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत फली उपज देता है।

पूसा सु कोमल : 40 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देती है।

काशी उन्नति : फलियाँ नर्म और हल्के हरे रंग की होती हैं। पहली कटाई के लिए बुवाई के 40-45 दिनों में कटाई के लिए तैयार। 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।




भूमि की तैयारी





इसके लिए अन्य दलहनी फसलों की तरह सामान्य बिस्तर तैयार करने की आवश्यकता होती है। दो जुताई करके मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा कर लें और हर जुताई के बाद जोताई करें।




बोवाई





बुवाई का समय बुवाई
का सर्वोत्तम समय मार्च से मध्य जुलाई तक है।

बिजाई के समय कतार से कतार की दूरी
30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी रखें।

मूंगफली(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

बुवाई की गहराई
बुवाई की गहराई 3-4 सेमी होनी चाहिए।

बोने की विधि
पोरा या बीज सह उर्वरक ड्रिल की सहायता से बीज बोयें।

MASSEY tractor




बीज





बीज दर
जब चारे के लिए बोया जाता है, तो लोबिया 88 की किस्म के लिए 20-25 किलोग्राम और सीएल 367 की किस्म के लिए 12 किलोग्राम बीज दर का उपयोग करें।

बीज उपचार
बुवाई से पहले, एमिसन 6@2.5 ग्राम / किग्रा बीज के साथ बीज का उपचार करें। या कार्बेन्डाजिम 50% WP@2gm प्रति किलो बीज। यह बीजों को बीज सड़न और अंकुर मृत्यु दर से बचाएगा।




उर्वरक





उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)













यूरियाएसएसपीपोटाश का मूरिएट
17140कमी दिखे तो आवेदन करें

 

पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)













नाइट्रोजनफॉस्फोरसपोटाश
7.522-

 

बुवाई के समय 7.5 किलो यूरिया 17 किलो प्रति एकड़ और पी 22 किलो सिंगल सुपर फास्फेट 140 किलो प्रति एकड़ डालें। लोबिया फास्फोरस उर्वरकों के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देता है। यह जड़ के साथ-साथ पौधों की वृद्धि, पौधों के पोषक तत्वों को बढ़ाने, नोड्यूलेशन आदि में सुधार करने में मदद करता है।




खरपतवार नियंत्रण





फसल को खरपतवार से बचाने के लिए पेंडीमेथालिन 750 मि.ली. प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 24 घंटे के भीतर डालें।




सिंचाई





अच्छी वृद्धि के लिए औसतन 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जब मई माह में फसल की बुवाई हो जाए तो मानसून आने तक 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।




प्लांट का संरक्षण






जस्सीद और ब्लैक एफिड




  • कीट और उनका नियंत्रण:


जस्सीड और ब्लैक एफिड: यदि जस्सीड और ब्लैक एफिड का हमला दिखे तो मैलाथियान 50 ई सी 200 मि.ली. को 80-100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।








बिहारी कमला



बिहार बालों वाली सुंडी : अगस्त से नवंबर के महीने में इसका प्रकोप अधिक होता है। फसल को इस कीट से बचाने के लिए लोबिया के खेत के चारों ओर तिल की एक कतार बुवाई के समय ले लें।








बीज सड़न और बुवाई मृत्यु दर




  • रोग और उनका नियंत्रण:


बीज सड़ांध और बुवाई मृत्यु दर : यह विभिन्न बीज जनित माइक्रोफ्लोरा के कारण होता है। संक्रमित बीज मुरझा कर मुरझा जाते हैं। संक्रमित पौधे मिट्टी से बाहर निकलने से पहले ही मर जाते हैं और फसल की खराब स्थिति का कारण बनते हैं। इसके नियंत्रण के लिए बीज को एमिसन 6 @ 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज या बाविस्टिन 50 डब्ल्यूपी @ 2 ग्राम/किलोग्राम बीज से बुवाई से पहले उपचारित करें।




फसल काटने वाले





55 से 65 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।




संदर्भ





1.पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना

2.कृषि विभाग

3.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

4.भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान

5.कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय




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सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

गेंहू की संपूर्ण जानकारी A To Z(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

चना (छोला)(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

 


परिचय


लोबिया एक पौधा है जिसकी फलियाँ पतली, लम्बी होती हैं। इनकी सब्ज़ी बनती है। इस पौधे को हरी खाद बनाने के लिये भी प्रयोग में लाया जाता है। लोबिया एक प्रकार का बोड़ा है। इसे 'चौला' या 'चौरा' भी कहते हैं। यह सफेद रंग का और बहुत बड़ा होता है। इसके फल एक हाथ लंबे और तीन अंगुल तक चौड़े और बहुत कोमल होते हैं और पकाकर खाए जातै हैं।

किस्में


पूसा कोमल, पूसा सुकोमल, अर्का गरिमा, नरेन्द्र लोबिया, काशी गौरी तथा काशी कंचन

जलवायु : लोबिया की खेती के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु उपयुक्त हे। तापमान 24-27 डिग्री से. के बीच ठीक रहता है । अधिक ठेडे मौसम में पौधों की बढ़वार रुक जाती है।

भूमि : लगभग सभी प्रकार की भूमियों में इसकी खेती की जा सकती है। मिट॒टी का पी.एच. मान 5.5 से 6.5 उचित है। भूमि में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए तथा क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।

बीज दर : साधारण्तया 12-20 कि.ग्रा. बीज/हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है। बीज की मात्रा प्रजाति तथा मौसम पर निर्भर करती है। बेलदार प्रजाति के लिए बीज की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।

बुवाई का समय : गर्मी के मौसम के लिए इसकी बुवाई फरवरी -मार्च में तथा वर्षा के मौसम में जून अंत से जुलाई माह में की जाती है।

बुवाई की दूरी : झाड़ीदार किस्मों के बीज की बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45-60  सें.मी. तथा बीज से बीज की दूरी 10 सें.मी. रखी जाती है तथा बेलदार किस्मो के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 80-90 सें.मी. रखते हैं। बुवाई से पहले बीज का राजजोबियम नामक जीवाणु से उपचार कर लेना चाहिए। बुवाई के समय भूमि में बीज के जमाव हेतु पर्याप्त नमी का होना बहुत आवश्यक है।

उर्वरण व खाद : गोबर या कम्पोस्ट की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। लोबिया एक दलहनी फसल है इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा., फास्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 50 कि.ग्रा./ हेक्टेयर खेत में अंतिम जुलाई के समय मिट॒टी में मिला देना चाहिए तथा 20 कि.ग्रा. नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें।

खरपतवार नियंत्रण : दो से तीन निराई व गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण के लिए करनी चाहिए। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टाम्प 3 लिटर/हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अन्दर प्रयोग करें।

तुड़ाई : लोबिया की नर्म व कच्ची फलियों की तुड़ाई नियमित रुप से 4-5 दिन के अंतराल में करें। झाड़ीदार प्रजातियों में 3-4 तुड़ाई तथा बेलदार प्रजातियों में 8-10 तुड़ाई की जा सकती है।

उपज : हरी फली की झाड़ीदार प्रजातियों में उपज 60-70 क्विंटल तथा बेलदार प्रजातियों में 80-100 क्विंटल हो सकती है।

बीजोत्पादन : लोबिया के बीज उत्पादन के लिए गर्मी का मौसम उचित है क्योंकि वर्षा के मौसम में वातावरण के अंदर आर्द्रता ज्यादा होने से फली के अंदर बीज का जमाव हो जाने से बीज खराब हो जाता है। बीज शुद्धता बनाए रखने के लिए प्रमाणित बीज की पृथक्करण दूरी 5 मी. व आधार बीज के लिए 10 मी. रखें। बीज फसल में दो बार अवांछित पौधों को निकाल दें। पहली बार फसल के फूल आने की अवस्था में तथा दूसरी बार फलियों में बीज से भरने की अवस्था पर पौधे तथा फलियों के गुणों के आधार पर अवांछित पौधों को निकाल दें। समय-समय पर पकी फलियों की तुड़ाई करके बीज अलग कर लेने के बाद उन्हें सुखाकर व बीमारी नाशक तथा कीटनाशी मिलाकर भंडारित करें।

बीज उपज : 5-6 क्विंटल/हेक्टेयर

प्रमुख रोग एवं नियंत्रण


 


















रोगलक्षणनियंत्रण
जीवाणुज अंगमारी (जैन्थोमोनास कैम्पेस्ट्रिस विग्नीकोला)रोग संक्रमित बीजों से निकलने वाले पौधों के बीज पत्रों एवं नई पत्तियों पर रोग के लक्षण सर्वप्रथम दिखाई पड़ते हैं। इस रोग के कारण बीज पत्र लाल रंग के होकर सिकुड़ जाते हैं। नई पत्तियों पर सूखे धब्बे बनते हैं। पौधों की कलिकाएँ नष्ट हो जाती है और बढ़वार रुक जाती है। अन्त में पूरा पौधा सूख जाता है।* रोगी पौधो के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।

* जल निकास का अच्छा प्रबंध होना चाहिए।

* दो वर्षों का फसल चक्र अपनाना चाहिए।

* उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए तथा उन्नत कृषि विधियाँ अपनानी चाहिए|

* खड़ी फसलों में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 कि. ग्रा. एक हजार लिटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
लोबिया मोजैक (मोजैक विषाणु)रोगी पत्तियाँ हल्की पीली हो जाती है । इस रोग में हल्के पीले तथा हरे रंग के दाग भी बनते हैं। रोग की उग्र अवस्था में पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है और उन पर फफोले सदृश उभार आ जाते हैं । रोगी फलियों के दाने सिकुड़े हुए होते हैं तथा कम बनते हैं।* रोगी पौधो को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।

* स्वस्थ तथा अच्छे पौधों से प्राप्त बीज को ही बीज उत्पादन के काम मे लाना चाहिए|

* कीटनाशी जैसे मेटासिस्टॉक्स (ऑक्सी मिथाइल डेमेटॉन) एक मि.लि. या डायमेक्रान (फॉज्ञफेमिडान) आधा मि.लि. प्रति लिटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 15-15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करना चाहिए।


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