सोयाबीन
17 जून 2021, भोपाल । सोयाबीन की उन्नत खेती – भूमि का चयन एवं तैयारी-
- सोयाबीन की खेती उन खेतों में ही करें जहां जलभराव की समस्या न हो ।
- ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई के बाद 15-30 दिवस खेत खाली छोडऩे पर जमीन के नीचे आश्रय पाने वाले कीटों एवं भूमि जनित बीमारियों के अवशेष नष्ट हो जाते हैं तथा भूमि की जलधारण क्षमता एवं दशा में सुधार होता है।
- गोबर की खाद, कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट तथा सिंगल सुपर फास्फेट को ख्ंोत में समान रूप से छिड़कने के बाद बोनी के लिए जुताई करना श्रेष्यकर है ।
- खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाये एवं खरपतवार नष्ट हो जायें इस प्रकार जुताई करें।
- बुआई के पूर्व ख्ंोत के निचले हिस्से में प्रति 20 मीटर अंतराल पर जल निकास नाली का निर्माण अवश्य करें जिससे अधिक वर्षा की दशा में पानी का निकास आसानी से हो सके एवं अवर्षा की दशा में सिंचाई उपलब्ध करा सकें।
[caption id="attachment_2658" align="alignnone" width="1280"] सोयाबीन[/caption]
बुवाई का समय
- सोयाबीन की बुवाई 20 जून (4-5 इंच वर्षा होने पर) से जुलाई के प्रथम सप्ताह के बीच उत्तम परिणाम देती है ।
- इसमें परिस्थितिवश कुछ दिन आगे पीछे होना कोई विशेष प्रभाव नहीं डालता ।
- मानसून में देरी होने पर जहां सिंचाई के साधन उपलब्ध हों बुवाई समय से ही करें ।
जातियों का चयन
- सोयाबीन की जातियों का चुनाव उस क्षेत्र में वर्षा का औसत एवं भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर अर्थात् क्षेत्रीय अनुकूलता के आधार पर ही करें ।
- औसत से कम वर्षा एवं हल्की से मध्यम भूमि वाले क्षेत्रों में शीघ्र पकने वाली जातियॉँ एवं औसत से अधिक वर्षा वाले एवं मध्यम से भारी भूमि वाले क्षेत्रों में मध्यम अवधि की जातियॉँ लगाना उचित है।
उत्तम बीज व बीज दर
- सोयाबीन की बीज दर 60-80 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर निर्धारित हैं।
- उन्नत जातियॉँ अनुवांशिक रुप से शुद्ध एवं कम से कम 70 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाली हो।
- जब बीज छोटे हों या ज्यादा फैलने वाली प्रजाति हो तो 60-70 कि. ग्रा. एवं बड़ा बीज हो तथा कम फैलने वाली प्रजाति हो तो 80-85 कि. ग्रा. प्रति हेक्टेयर बीज का प्रयोग करें।
- आप कैसे कह सकते हैं कि भारतीय कृषि क्षेत्र में भूमि जोत का समेकन एक महत्वपूर्ण संस्थागत सुधार है?(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बीजोपचार
- कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत+थायरम 37.5 प्रतिशत, 2 ग्राम दवा या थायोफिनेट मेथाइल+पाइराक्लास्ट्रोबिन 50 प्रतिशत दवा 1-1.25 मि.ली दवा
- या ट्राइकोडर्मा हर्जियानम नामक जैविक फफूंदनाशक की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर सकते हैं, इससे बीज एवं मृदा जनित रोगों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
- जहॉंँ पर तना मक्खी, सफेद मक्खी एवं पीला मोजैेक की समस्या ज्यादा हो वहां पर थायामेथोक्जाम 30 एफ.एस. नामक कीटनाशक दवा से 10 मि.ली/किलो बीज की दर से बीज उपचारित कर सकते हैं।
- फफूंदनाशक एवं कीटनाशक दवा के उपचार के पश्चात् 5-10 ग्राम राइजोबियम कल्चर एवं 5-10 ग्राम पी.एस.बी. कल्चर से प्रति किलो बीज उपचारित करने से सोयाबीन में जड़ ग्रन्थियों का उचित विकास होता है।
उर्वरक एवं खाद
- सामान्यतया: सोयाबीन में 20-30 कि. ग्रा. नत्रजन, 60-80 कि. ग्रा. फास्फोरस एवं 20-30 कि.ग्रा. पोटाश तथा 20 कि.ग्रा. गंधक की मात्रा आवश्यक रूप से उपयोग करने की सलाह दी जाती है।
- 5-10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट या 5 टन फसलों का बारीक किया हुआ कचरा या भूसा और 5 टन कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर का उपयोग अच्छा परिणाम देता है ।
- जहां पर मृदा परीक्षण के उपरान्त जिंक एवं बोरान तत्व की कमी पाई जाये, वहां 7.5 कि. ग्रा. प्रति दो वर्ष के अंतराल पर जिंक एवं 1.0-1.5 कि.ग्रा. बोरान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना लाभकारी है ।
- फास्फोरस की पूरी मा़त्रा सिंगल सुपर फास्फेट के रूप में देने पर गंधक पूर्ति हो जाती है या जिप्सम 2-2.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपयोग करने से भी गंधक की कमी पूरी हो जाती है।
बुवाई का तरीका
- सोयाबीन की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. हो। कम उॅँचाई वाली जातियों या कम फैलने वाली जातियों को 30 से.मी. की कतार से कतार की दूरी पर बोयें।
- बुवाई का कार्य मेंढ़ – नाली विधि एवं चौड़ी पट्टी – नाली विधि से करनें से सोयाबीन की पैदावार में वृद्धि पायी गयी है एवं नमी संरक्षण तथा जल निकास में भी यह विधियां अत्यंत प्रभावी पायी गयी है। विपरीत परिस्थितियों में बुवाई दुफन, तिफन या सीड ड्रिल से कर सकते हैं। बुवाई के समय जमीन में उचित नमी आवश्यक है ।
- बीज जमीन में 2.5 से 3 से. मी. गहराई पर पडऩे चाहिए।
सोयाबीन
- खरीफ/ मध्य जून
- किस्मों के प्रकाररा
- सायनिक उर्वरक
- कीट नियंत्रण
सामान्य जानकारी
सोयाबीन जिसे गोल्डन बीन्स कहा जाता है, फलियां परिवार से संबंधित है। यह पूर्वी एशिया का मूल निवासी है। यह प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है और फाइबर का भी उत्कृष्ट स्रोत है। सोयाबीन से निकाले गए तेल में संतृप्त वसा की थोड़ी मात्रा होती है। पंजाब में, यह फसल विविधीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
धरती
यह अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ दोमट मिट्टी में उगाने पर अच्छा परिणाम देता है। 6 से 7.5 का पीएच सोयाबीन की इष्टतम उपज के लिए अनुकूल है। जलभराव, लवणीय/क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है। कम तापमान फसल को बुरी तरह प्रभावित करता है।
उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में
SL 525: 144 दिनों में कटाई के लिए तैयार। बीज एक समान और मोटे होते हैं। यह पीले मोज़ेक वायरस को प्रतिरोध देता है और स्टेम ब्लाइट और रूट नॉट नेमाटोड को सहनशीलता देता है। 6 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
SL 744: 139 दिनों में कटाई के लिए तैयार। दाने हल्के पीले रंग के होते हैं। यह पीले मोज़ेक वायरस के लिए प्रतिरोधी है। 7.3 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
SL 958: 142 दिनों में कटाई के लिए तैयार। 7.3 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
अन्य राज्य किस्म
अलंकार, अंकुर, ब्रैग, ली, पीके 262, पीके 308, पीके 327, पीके 416, पीके 472, पीके 564, पंत सोयाबीन 1024, पंत सोयाबीन 1042, पूसा 16, पूसा 20, पूसा 22, पूसा 24, पूसा 37, शिलाजीत, वीएल सोया 2, वीएल सोया 47
भूमि की तैयारी
बोवाई
सोयाबीन की बिजाई
के लिए जून का पहला पखवाड़ा सबसे अच्छा समय है।
बिजाई के समय कतार से कतार की दूरी
45 सें.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 4-7 सें.मी.
बुवाई की गहराई
बीज को 2.5-5 सें.मी. की गहराई पर बोयें।
बीज बोने की विधि
सीड ड्रिल की सहायता से बीज बोयें।
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बीज
बीज दर
एक एकड़ भूमि में बिजाई के लिए 25-30 किलो बीज दर का प्रयोग करें।
बीज उपचार
बीज को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए थीरम या कैप्टन 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें।
उर्वरक
उर्वरक आवश्यकताएँ (किलो/एकड़)
यूरिया | एसएसपी | पोटाश का मूरिएट |
28 | 200 | कमी दिखे तो आवेदन करें |
पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)
नाइट्रोजन | फॉस्फोरस | पोटाश |
12.5 | 32 | कमी दिखे तो आवेदन करें |
गोबर की खाद या अच्छी तरह सड़ी गाय का गोबर 4 टन प्रति एकड़ में डालें। साथ ही नाइट्रोजन 12.5 किग्रा और फास्फोरस 32 किग्रा यूरिया 28 किग्रा और एसएसपी 200 किग्रा प्रति एकड़ बुवाई के समय डालें।
अच्छी वृद्धि और अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए बुवाई के 60वें और 75वें दिन यूरिया 3 किलो/150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए दो बार निराई करनी पड़ती है, पहली जोडाई बुवाई के 20 दिन बाद और दूसरी निराई बुवाई के 40 दिन बाद करें।
खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के दो दिन के भीतर पेंडीमेथालिन 800 मि.ली. प्रति एकड़ को 100-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
सिंचाई
कुल फसल को तीन से चार सिंचाई की आवश्यकता होती है। फली भरने की अवस्था में सिंचाई करना आवश्यक है। इस अवधि में पानी का दबाव उपज को काफी प्रभावित करेगा। वर्षा की स्थिति के आधार पर सिंचाई करें। अच्छी वर्षा की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
प्लांट का संरक्षण
- कीट और उनका नियंत्रण:
सफेद मक्खी : सफेद मक्खी को नियंत्रित करने के लिए थायमेथोक्सम 40 ग्राम या ट्राईजोफोस 300 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
तंबाकू की सुंडी: यदि इसका हमला दिखे तो ऐसीफेट 57SP@800 ग्राम या क्लोरपाइरीफॉस 20EC@1.5 लीटर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
बालों वाली सुंडी : बालों वाली सुंडी को नियंत्रित करने के लिए इल्ली को हाथ से उठाएं और संक्रमण कम होने पर कुचलकर या मिट्टी के तेल में डालकर नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप होने पर क्विनालफॉस 300 मि.ली. या डाइक्लोरवोस 200 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।
ब्लिस्टर बीटल: ये फूल आने की अवस्था में नुकसान पहुंचाते हैं। वे फूलों पर फ़ीड करते हैं, कलियां इस प्रकार अनाज के गठन को रोकती हैं।
यदि इसका हमला दिखे तो इंडोक्साकार्ब 14.5SC@200 मिली या एसीफेट 75SC@800 ग्राम को प्रति एकड़ में स्प्रे करें। छिड़काव शाम के समय करें और यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
- रोग और उनका नियंत्रण:
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पीला मोज़ेक वायरस: यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। पत्तियों पर अनियमित पीले, हरे धब्बे देखे जाते हैं। संक्रमित पौधों पर फली विकसित नहीं होती।
पीली मोज़ेक वायरस प्रतिरोधी किस्में उगाएं। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए थायमेथोक्सम 40 ग्राम, ट्रायाजोफोस 400 मिली प्रति एकड़ की स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।
फसल काटने वाले
46 एचपी श्रेणी में बेहतरीन ट्रैक्टर जॉन डियर 5045 D पावर प्रो
फलियां सूख जाती हैं और पत्तियां अपना रंग बदलकर पीली हो जाती हैं और गिर जाती हैं, यह इस बात का संकेत है कि फसल कटाई के लिए तैयार है। फसल की कटाई दरांती या हाथ से करें। कटाई के बाद, थ्रेसिंग ऑपरेशन करें।
फसल कटाई के बाद
सुखाने के बाद बीजों की उचित सफाई करें। छोटे आकार के बीज, क्षतिग्रस्त बीज और फसल के डंठल हटा दें।
मध्यप्रदेश के लिए अनुशंसित 5 प्रमुख सोयाबीन की किस्में(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
संदर्भ
1.पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना
2.कृषि विभाग
3.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
4.भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान
5.कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
पालक की खेती की जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
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