मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस

मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस

 

दिवस विशेष समसामयिकी 2 (11-November-2021)
मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की मंजूरी दी

(Cabinet approves to observe 15 November as Tribal Pride Day)



केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने के जश्न के हिस्से के रूप में बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने हेतु 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मंज़ूरी दी है।

 

जनजातीय गौरव दिवस :

 

सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और राष्ट्रीय गौरव, वीरता तथा आतिथ्य के भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में आदिवासियों के प्रयासों को मान्यता देने हेतु प्रतिवर्ष ‘जनजातीय गौरव दिवस’ का आयोजन किया जाएगा।

 

उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई आदिवासी आंदोलन किये। इन आदिवासी समुदायों में तामार, संथाल, खासी, भील, मिज़ो और कोल शामिल हैं।

 

प्रधानमंत्री द्वारा रांची में एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय का उद्घाटन किया जाएगा।

 

15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती भी है, जिन्हें पूरे भारत में आदिवासी समुदायों द्वारा भगवान के रूप में सम्मानित किया जाता है।

 

आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी :

 

बिरसा मुंडा:

 

उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ था। वे मुंडा जनजाति से संबद्ध थे।

 

उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में आधुनिक झारखंड और बिहार के आदिवासी क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के दौरान एक भारतीय आदिवासी धार्मिक सहस्त्राब्दि आंदोलन का नेतृत्व किया।

 

शहीद वीर नारायण सिंह :

 

उन्हें छत्तीसगढ़ में सोनाखान का गौरव माना जाता है, उन्होंने वर्ष 1856 के अकाल के बाद व्यापारियों के अनाज के स्टॉक को लूट लिया और गरीबों में बाँट दिया।

 

वीर नारायण सिंह के बलिदान ने उन्हें आदिवासी नेता बना दिया और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के पहले शहीद बने।

 

श्री अल्लूरी सीता राम राजू :

 

उनका जन्म 4 जुलाई, 1897 को आंध्र प्रदेश में भीमावरम के पास मोगल्लु नामक गाँव में हुआ था।

 

अल्लूरी को अंग्रेज़ों के खिलाफ ‘रम्पा विद्रोह’ का नेतृत्व करने के लिये सबसे ज़्यादा याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने विशाखापत्तनम और पूर्वी गोदावरी ज़िलों के आदिवासी लोगों को विदेशियों के खिलाफ विद्रोह करने के लिये संगठित किया।

 

वह ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ने के लिये बंगाल के क्रांतिकारियों से प्रेरित थे।

 

रानी गौंडिल्यू :

 

वह नगा समुदाय की आध्यात्मिक और राजनीतिक नेता थीं, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। 13 वर्ष की आयु में वह अपने चचेरे भाई हाइपौ जादोनांग के हेराका धार्मिक आंदोलन में शामिल हो गईं।

 

उनके लिये नगा लोगों की स्वतंत्रता की यात्रा स्वतंत्रता हेतु भारत के व्यापक आंदोलन का हिस्सा थी। उन्होंने मणिपुर क्षेत्र में गांधी जी के संदेश का भी प्रसार किया।

 

सिद्धू और कान्हू मुर्मू :

 

30 जून, 1855 को 1857 के विद्रोह से दो वर्ष पूर्व दो संथाल भाइयों सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने 10,000 संथालों का एकत्र किया और अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा की।

 

आदिवासियों ने अंग्रेज़ों को अपनी मातृभूमि से भगाने की शपथ ली। मुर्मू भाइयों की बहनों फूलो और झानो ने भी विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई।

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