महर्षि वाल्मीकि जयंती कब है,और रामायण की रचना कैसे की? महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती, निबंध

महर्षि वाल्मीकि जयंती कब है,और रामायण की रचना कैसे की? महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती, निबंध

 महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना कैसे की? 

महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय (जीवनी), कौन थे, 2021 निबंध जयंती, जन्म, आश्रम, रामायण, महत्व भजन

जयंती 20 अक्टूबर 2021 को महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाया जाता है
वाल्मीकि जयंती (Valmiki Jayanti 2020): आज 31 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती मनाई जा रही है. हर वर्ष आश्विन माह की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि ने ही रामायण (Ramayan) की रचना की थी.

महर्षि वाल्मीकि



वाल्मीकि रामायण महाकाव्य की रचना करने के पश्चात आदिकवि कहलाए परन्तु वे एक ज्ञानी केवट थे, वे कोई ब्राह्मण नही थे । आदिकवि शब्द 'आदि' और 'कवि' के मेल से बना है। 'आदि' का अर्थ होता है 'प्रथम' और 'कवि' का अर्थ होता है 'काव्य का रचयिता'।

एक बार महर्षि वाल्मीकि एक क्रौञ्च पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था, तभी उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ा।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा।

यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्।।

अर्थात- निषाद। तुझे कभी भी शांति न मिले, क्योंकि तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की, जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।

गुरु वाल्मीकि ने जब भारद्वाज से कहा कि यह जो मेरे शोकाकुल हृदय से फूट पड़ा है, उसमें चार चरण हैं, हर चरण में अक्षर बराबर संख्या में हैं और इनमें मानो तंत्र की लय गूंज रही है अत: यह श्लोक के अलावा और कुछ हो ही नहीं सकता।

पादबद्धोक्षरसम: तन्त्रीलयसमन्वित:।

शोकार्तस्य प्रवृत्ते मे श्लोको भवतु नान्यथा।।

करुणा में से काव्य का उदय हो चुका था, जो वैदिक काव्य की शैली, भाषा और भाव से एकदम अलग था, नया था और इसीलिए वाल्मीकि को ब्रह्मा का आशीर्वाद मिला कि तुमने काव्य रचा है, तुम आदिकवि हो, अपनी इसी श्लोक शैली में रामकथा लिखना, जो तब तक दुनिया में रहेगी, जब तक पहाड़ और नदियां रहेंगे-


यावत् स्थास्यन्ति गिरय: लरितश्च महीतले।

तावद्रामायणकथा सोकेषु प्रचरिष्यति।

वाल्मीकि जब अपनी ओर से रामायण की रचना पूरी कर चुके थे तब राम द्वारा परित्यक्ता, गर्भिणी सीता भटकती हुई उनके आश्रम में आ पहुंची। बेटी की तरह सीता को उन्होंने अपने आश्रय में रखा। वहां सीता ने दो जुड़वां बेटों, लव और कुश को जन्म दिया। दोनों बच्चों को वाल्मीकि ने शास्त्र के साथ ही शस्त्र की शिक्षा प्रदान की। इन्हीं बच्चों को मुनि ने अपनी लिखी रामकथा याद कराई जो उन्होंने सीता के आने के बाद फिर से लिखनी शुरू की थी और उसे नाम दिया-उत्तरकांड। उसी रामकथा को कुश और लव ने राम के दरबार में अश्वमेघ यज्ञ के अवसर पर सम्पूर्ण रूप से सुनाया था।


महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय, जयंती, निबंध


महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय (जीवनी), कौन थे, 2021 निबंध जयंती, जन्म, आश्रम, रामायण, महत्व भजन


आपको पता चलेगा वाल्मीकि जी जो कि रामायण के रचियता थे वास्तव में एक डाकू थे. वाल्मीकि जयंती अर्थात एक ऐसा दिन जब महान रचियता वाल्मीकि जी का जन्म हुआ. इनकी महान रचना से हमें महा ग्रन्थ रामायण का सुख मिला. यह एक ऐसा ग्रन्थ हैं जिसने मर्यादा, सत्य, प्रेम, भातृत्व, मित्रत्व एवम सेवक के धर्म की परिभाषा सिखाई.

वाल्मीकि जी के जीवन से बहुत सीखने को मिलता हैं, उनका व्यक्तितव साधारण नहीं था. उन्होंने अपने जीवन की एक घटना से प्रेरित होकर अपना जीवन पथ बदल दिया, जिसके फलस्वरूप वे महान पूज्यनीय कवियों में से एक बने. यही चरित्र उन्हें महान बनाता हैं और हमें उनसे सीखने के प्रति प्रेरित करता हैं.


महर्षि वाल्मीकि परिचय (Introduction) –

  • नाम महर्षि       -       वाल्मीकि
  • वास्तविक नाम  -        रत्नाकर
  • पिता                  -       प्रचेता

  • जन्म दिवस         -         आश्विन पूर्णिमा
  • पेशा                    -            डाकू , महाकवि
  • रचना                    -             रामायण


वाल्मीकि जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटना (Story) 

महर्षि वाल्मीकि का नाम रत्नाकर था और उनका पालन जंगल में रहने वाली भील जाति में हुआ था, जिस कारण उन्होंने भीलों की परंपरा को अपनाया और आजीविका के लिए डाकू बन गए. अपने परिवार के पालन पोषण के लिए वे राहगीरों को लुटते थे, एवम जरुरत होने पर मार भी देते थे. इस प्रकार वे दिन प्रतिदिन अपने पापो का घड़ा भर रहे थे.

एक दिन उनके जंगल से नारद मुनि निकल रहे थे. उन्हें देख रत्नाकर ने उन्हें बंधी बना लिया. नारद मुनि ने उनसे सवाल किया कि तुम ऐसे पाप क्यूँ कर रहे हो ? रत्नाकर ने जवाब दिया अपने एवम परिवार के जीवनव्यापन के लिए. तब नारद मुनि ने पूछा जिस परिवार के लिए तुम ये पाप कर रहे हो, क्या वह परिवार तुम्हारे पापो के फल का भी वहन करेगा ? इस पर रत्नाकर ने जोश के साथ कहा हाँ बिलकुल करेगा. मेरा परिवार सदैव मेरे साथ खड़ा रहेगा. नारद मुनि ने कहा एक बार उनसे पूछ लो, अगर वे हाँ कहेंगे तो मैं तुम्हे अपना सारा धन दे दूंगा. रत्नाकर ने अपने सभी परिवार जनों एवम मित्र जनों से पूछा, लेकिन किसी ने भी इस बात की हामी नहीं भरी. इस बात का रत्नाकर पर गहरा आधात पहुँचा और उन्होंने दुराचारी के उस मार्ग को छोड़ तप का मार्ग चुना एवम कई वर्षो तक ध्यान एवम तपस्या की, जिसके फलस्वरूप उन्हें महर्षि वाल्मीकि नाम एवम ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण महा ग्रन्थ की रचना की.

इस प्रकार जीवन की एक घटना से डाकू रत्नाकर एक महान रचियता महर्षि वाल्मीकि बने.

कौन थे महर्षि वाल्मीकि (Who is Maharshi Valmiki) –

वाल्मीकि एक डाकू थे और भील जाति में उनका पालन पोषण हुआ, लेकिन वे भील जाति के नहीं थे, वास्तव में वाल्मीकि जी प्रचेता के पुत्र थे. पुराणों के अनुसार प्रचेता ब्रह्मा जी के पुत्र थे. बचपन में एक भीलनी ने वाल्मीकि को चुरा लिया था, जिस कारण उनका पालन पोषण भील समाज में हुआ और वे डाकू बने.

  1. कैसे मिली रामायण लिखने की प्रेरणा ?

    जब रत्नाकर को अपने पापो का आभास हुआ, तब उन्होंने उस जीवन को त्याग कर नया पथ अपनाना, लेकिन इस नए पथ के बारे में उन्हें कोई ज्ञान नहीं था. नारद जी से ही उन्होंने मार्ग पूछा, तब नारद जी ने उन्हें राम नाम का जप करने की सलाह दी.
    रत्नाकर ने बहुत लम्बे समय तक राम नाम जपा पर अज्ञानता के कारण भूलवश वह राम राम का जप मरा मरा में बदल गया, जिसके कारण इनका शरीर दुर्बल हो गया, उस पर चीटियाँ लग गई. शायद यही उनके पापो का भोग था. इसी के कारण इनका नाम वाल्मीकि पड़ा. पर कठिन साधना से उन्होंने ब्रह्म देव को प्रसन्न किया, जिसके फलस्वरूप ब्रम्हदेव ने इन्हें ज्ञान दिया और रामायण लिखने का सामर्थ्य दिया, जिसके बाद वाल्मीकि महर्षि ने रामायण को रचा. इन्हें रामायण का पूर्व ज्ञान था.

  2. वाल्मीकि जी ने सबसे पहले श्लोक की रचना कैसे की ?

    एक बार तपस्या के लिए गंगा नदी के तट पर गये, वही पास में पक्षी का नर नारी का जोड़ा प्रेम में था. उसी वक्त एक शिकारी ने तीर मार कर नर पक्षी की हत्या कर दी, उस दृश्य को देख  इनके मुख से स्वतः ही श्लोक निकल पड़ा जो इस प्रकार था :
    मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
    यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
    अर्थात : जिस दुष्ट ने भी यह घृणित कार्य किया, उसे जीवन में कभी सुख नहीं मिलेगा.उस दुष्ट ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया हैं. इसके बाद महाकवि ने रामायण की रचना की.

वाल्मीकि रामायण संक्षित विवरण  (Ramayan History) 

वाल्मीकि महा कवी ने संस्कृत में महा काव्य रामायण की रचना की थी, जिसकी प्रेरणा उन्हें ब्रह्मा जी ने दी थी. रामायण में भगवान विष्णु के अवतार राम चन्द्र जी के चरित्र का विवरण दिया हैं. इसमें  23 हजार श्लोक्स लिखे गए हैं. इनकी अंतिम साथ किताबों में वाल्मीकि महर्षि के जीवन का विवरण हैं.

वाल्मीकि महर्षि ने राम के चरित्र का चित्रण किया, उन्होंने माता सीता को अपने आश्रम में रख उन्हें रक्षा दी. बाद में, राम एवम सीता के पुत्र लव कुश को ज्ञान दिया.

वाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती हैं (Valmiki Jayanti 2021) –

वाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था, इसी दिन को हिन्दू धर्म  कैलेंडर में वाल्मीकि जयंती कहा जाता हैं. इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 31 अक्टूबर, को मनाई जाएगी.

वाल्मीकि जयंती का महत्व  (Mahatv) –

वाल्मीकि जी आदि कवी थे. इन्हें श्लोक का जन्मदाता माना जाता है, इन्होने ही संस्कृत के प्रथम श्लोक को लिखा था. इस जयंती को प्रकट दिवस  के रूप में भी जाना जाता हैं.


कैसे मनाई जाती हैं वाल्मीकि जयंती (Celebration) –

भारत देश में वाल्मीकि जयंती मनाई जाती हैं. खासतौर पर उत्तर भारत में इसका महत्व हैं.


कई प्रकार के धार्मिक आयोजन किये जाते हैं.

शोभा यात्रा सजती हैं.

मिष्ठान, फल, पकवान वितरित किये जाते हैं.

कई जगहों पर भंडारे किये जाते हैं.

वाल्मीकि के जीवन का ज्ञान सभी को दिया जाता हैं ताकि उससे प्रेरणा लेकर मनुष्य बुरे कर्म छोड़ सत्कर्म में मन लगाये.

वाल्मीकि जयंती का महत्व हिन्दू धर्म में अधिक माना जाता हैं उनके जीवन से सभी को सीख मिलती हैं.


क्या महर्षि वाल्मीकि शूद्र वर्ण  से थे

 

जी नही, ऐसा बिल्कुल भी नही है।

सबसे पहले ये निश्चित कीजिये कि हम किस वाल्मीकि की बात कर रहे हैं? यदि हम रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की बात कर रहे हैं तो वे ब्राह्मण वर्ण में जन्मे थे और उनका गोत्र भृगु था।

परमपिता ब्रह्मा के प्रथम 16 मानस पुत्रों में एक थे महर्षि मरीचि। ये प्रजापति थे एवं सप्तर्षियों में से एक थे। मरीचि ने कर्दम ऋषि की पुत्री कला से विवाह किया जिनसे इन्हें महर्षि कश्यप पुत्र रूप में प्राप्त हुए। कश्यप ने प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया जिनसे समस्त जीवों की उत्पत्ति हुई। उनकी दूसरी पत्नी अदिति से 12 आदित्यों ने जन्म लिया। इन आदित्यों में एक थे वरुण। महर्षि वाल्मीकि को इन्ही वरुण का पुत्र बताया गया है।

वेदों में वरुण को प्रचेता भी कहा गया है और इसी कारण वाल्मीकि का एक नाम प्रचेतस भी प्रसिद्ध हुआ। इनकी माता का नाम चर्षणी था। इनका गोत्र महर्षि भृगु का बताया गया है, हालांकि कुछ जगह इन्हें भृगु का छोटा भाई भी बताया गया है।

महर्षि भृगु के कहने पर एक बार इन्होंने इतनी भीषण तपस्या की कि इनके शरीर पर दीमकों ने अपनी बाम्बी बना ली। जब इनकी तपस्या पूर्ण हुई तो वे उन्ही बांबियों को तोड़ कर बाहर आये। दीमक की बाम्बी को संस्कृत में वाल्मीक कहा जाता है और तब से उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया।

इन्होंने ही व्याध द्वारा क्रौंच पक्षी के मारे जाने पर अत्यंत दुख में रामायण का पहला श्लोक रचा। तत्पश्चात परमपिता ब्रह्मा की आज्ञा और देवर्षि नारद की प्रेरणा से इन्होंने 24000 श्लोकों वाले महान रामायण की रचना की और आदिकवि कहलाये।

अब प्रश्न आता है कि यदि महर्षि वाल्मीकि ब्राह्मण वर्ण में जन्मे प्रचेता के पुत्र थे तो उनके शुद्र वर्ण में जन्म लेने की कथा का प्रसार कैसे हुआ? इसका उत्तर स्कन्द पुराण में है जहाँ रत्नाकर नामक एक डाकू का वर्णन है जो देवर्षि नारद की प्रेरणा से राम नाम लेकर महान तपस्वी बनता है और अपना नाम वाल्मीकि रख लेता है।

ऐसी संभावना है कि उसने आदिकवि महर्षि वाल्मीकि से प्रेरित होकर अपना नाम उन्ही के नाम पर रख लिया हो। क्योंकि पुराणों का कालखंड रामायण से बहुत बाद का है, और रत्नाकर का वर्णन केवल स्कन्द पुराण में मिलता है, यही संभावना सबसे सटीक बैठती है।

अब समस्या ये है कि वास्तविक वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में लेश मात्र भी भेद नही है। लेकिन समय के साथ ये पवित्र वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था में बदल गयी जहाँ ब्राह्मण को ऊँचा और शूद्र को नीचा बताया जाने लगा। मैं बहुत विस्तार में नही जाऊंगा क्योंकि वर्ण और जाति के भेद पर मैंने एक विस्तृत उत्तर लिखा है जिसे आप यहाँ[1] पढ़ सकते हैं।

बाद में जब स्वघोषित दलित विकास पथ पर आए तो उन्हें रत्नाकर डाकू से जोड़ दिया गया जो अपने कर्मो द्वारा ब्राह्मणत्व प्राप्त करता है। हालांकि इसमें कुछ गलत नही है क्योंकि ये एक सांकेतिक संबंध है जो बहुत सकारात्मक है। अन्य वर्णों से ब्राह्मण बनने के भी कई उदाहरण हमारे पास हैं जिनमे से सर्वोत्तम महर्षि विश्वामित्र हैं जिन्होंने क्षत्रिय वर्ण त्याग कर ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया। ये स्वयं में एक प्रमाण है कि हिन्दू धर्म सदैव से कर्म प्रधान रहा है, जन्म प्रधान नही।

तो अंत मे यही कहना चाहूंगा कि सबसे पहले तो हमें वर्ण एवं जाति का अंतर ढंग से समझना चाहिए। तभी हम समझ पाएंगे कि रत्नाकर से वाल्मीकि बने व्यक्ति को यदि आज के शुद्र (जाति नही, वर्ण) से जोड़ें तो भी ये बहुत प्रेरणादायक है और किसी प्रकार की कोई हानि नही है। किंतु जहाँ तक रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का प्रश्न है तो वे ब्राह्मण वर्ण में जन्मे प्रचेता के पुत्र ही थे।

वैसे मैं बताना चाहता हूँ कि वर्ण और जाति भेद वाले मेरे उत्तर को, जिसमें 37000 व्यू और 2100 अपवोट थे, कोरा ने ब्लॉक कर दिया है। क्यों? पता नही। पर जब इतना श्रम एवं शोध किये गए उत्तर को यू हटा दिया जाता है तो बड़ा दुख होता है। वैसे कोरा से कुछ और अपेक्षा भी नही की जा सकती। अपील की है, देखिए वापस आता है या नही। वैसे मेरे ब्लॉक किये गए उत्तर कोरा कभी वापस नही करता।

आशा है आप लोगों को उत्तर पसंद आया होगा। जय श्रीराम।


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