खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।

खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।

खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।



मूंग भारत में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसमें 24 प्रतिशत प्रोटीन के साथ-साथ रेशे एवं लौह तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। मूंग की जल्दी पकने वाली एवं उच्च तापमान को सहन करने वाली प्रजातियों के विकास के कारण जायद में मूंग की खेती लाभदायक हो रही है। मूंग की उन्नत तकनीक अपनाकर जायद ऋतु में फसल का उत्पादन 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक लिया जा सकता है।

बोने का समय :

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई का अनुकूल समय 10 मार्च से 10 अप्रैल होता है ग्रीष्मकाल में मूंग की खेती करने से अधिक तापमान तथा कम आद्र्रता के कारण बीमारियों तथा कीटों का प्रकोप कम होता है । परंतु इससे देरी से बुआई करने पर गर्म हवा तथा वर्षा के कारण फल्लियों को नुकसान होता हैं। अप्रैल में शीघ्र पकने वाली प्रजातियों को लगाना उत्तम होता है ।

भूमि और तैयारी:

मूंग को रेतीली से काली कपास वाली सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है परंतु इसकी खेती के लिये अच्छे जलनिकास वाली दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। क्षारीय एवं अम्लीय भूमि मूंग की खेती के लिये उपयुक्त नहीं होती है। जायद की फसल के लिये पलेवा देकर खेत की तैयारी करनी चाहिये। 2-3 जुताई देशी हल से करने के बाद पाटा लगाना चाहिये जिससे मृदा भुरभुरी हो जाये और भूमि में नमी संरक्षित रहे।

बीजदर एवं बीजोपचार:

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई हेतु 20-25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त होता है। बीजों को 2.5 ग्राम थायरम एवं 1.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 4-5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। फफूंदनाशी से बीजोपचार के पश्चात् बीज को राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर से उपचारित करें। राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने के लिये 25 ग्राम गुड़ तथा 20 ग्राम राइजोबियम एवं पीएसबी कल्चर को 50 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह से मिलाकर 1 किलोग्राम बीज पर हल्के हाथ से मिलाना चाहिये एवं बीज को 1-2 घंटे छायादार स्थान पर सुखाकर बुआई के लिये उपयोग करना चाहिये।

जल प्रबंधन :

जायद में हल्की भूमि में 4-5 बार सिंचाई की जबकि भारी भूमि में 2-3 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि शाखायें बनते समय तथा दाना भरते समय भूमि में नमी पर्याप्त रहे।

खरपतवार प्रबंधन :

जायद की फसल में पहली सिंचाई के पश्चात् हस्तचालित हो या हाथ से निंदाई करके खरपतवार निकालें। दूसरी निंदाई फसल में आवश्यकतानुसार की जा सकती है।

रोग प्रबंधन :

मूंग में फफूंदजनित रोगों में चूर्णी कवक, मैक्रोफोमिना झुलसन, सरकोस्पोरा पर्ण दाग तथा एन्थ्रेक्नोज प्रमुख हैं। इन रोगों की रोकथाम के लिये रोगरोधी किस्मों का चयन करें उचित बीजोपचार करें, समय पर नींदा नियंत्रण करें तथा खेत में उचित जल निकास रखें। तथा बुआई के 30 दिन बाद फसल पर कार्बेन्डाजिम दवा की 500 ग्राम मात्रा 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद छिड़काव दोबारा कर सकते हैं।

इसके अलावा मूंग में पीला मोजेक या पीली चितेरी रोग अधिक लगता है यह एक विषाणुजनित रोग है जिसका एक पौधे से दूसरे पौधे में संक्रमण सफेद मक्खी द्वारा होता है। सर्वप्रथम नई पत्तियों की नसों के बीच में पीले और हरे रंग के कोणीय धब्बे पड़ते हैं बाद में प्रभावित पत्तियों का पीलापन धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और पूरी पत्ती पीली पड़ जाती है। इसकी रोकथाम के लिये रोगरोधी प्रजातियां लगायें। खेत में ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रारंभ में कुछ ही रोगी पौधे होते है जिन्हें लक्षण दिखते ही उखाड़कर नष्ट कर दें और सफेद मक्खी की रोकथाम करें। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिये इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली या डाइमिथिएट की 400 मिली प्रति हेक्टेयर मात्रा 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें और 12-15 दिन में छिड़काव दोहरायें। सफेद मक्खी के पोषक खरपतवारों को खेत की मेड़ों पर या आसपास न रहने दें 

कीट प्रबंधन :

मूंग की फसल पर काटने वाले एवं रसचूसक दोनों प्रकार के कीटों का प्रकोप होता है। भेदक कीटों में पिस्सू भृंग, फली भेदक कीट तथा पत्ती मोड़क कीट प्रमुख हैं जिनके नियंत्रण के लिये प्रोफेनोफॉस की 1 लीटर या क्लोरेन्ट्रानिलिट्रोल की 500 मिली या स्पाइनोसैड की 125 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से दो बार छिड़काव करें ।

रस चूसक कीटों जैसे सफेद मक्खी, थ्रिप्स या जैसिड्स के नियंत्रण के लिये इमिडाक्लोप्रिड की 150 मिली या डाइमिथिएट की 400 मिली प्रति हेक्टेयर मात्रा का छिड़काव करें ।
भेदक एवं रसचूसक दोनों प्रकार के कीटों का प्रकोप होने पर प्रोफेनोसाइपर दवा की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है ।

कटाई, गहाई एवं भंडारण :

जब मूंग की 85 प्रतिशत फलियां परिपक्व हो जायें तब फसल की कटाई करें। अधिक पकने पर फलियां चटक सकती हैं अत: कटाई समय पर किया जाना आवश्यक होता है। कटाई उपरांत फसल को गहाई करके बीज को 9 प्रतिशत नमी तक सुखाकर भंडारण करें।

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