स्टीविया की खेती

स्टीविया की खेती

स्टीविया की खेती


Stevia की खेती का खर्च सिर्फ एक लाख रुपये है। Stevia की खेती से एक सीजन में मुनाफा 5 लाख रुपये तक हो सकता है। स्टीविया (Stevia ) की खेती करने के लिए प्रति वर्ष 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद या 7-8 टन प्रति एकड़ केचुआ खाद दिया जा सकता है। stevia की फसल की सबसे अच्छी बात है कि इसके पौधे में कोई रोग नहीं लगता


स्टीविया की खेती के बारे में पूरी जानकारी.


भारत सहित अन्य देशों में मधुमेह रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी और अनियमित खान-पान के कारण करीब 10 में से 5 व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड एवेल्यूएशन और पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की नवंबर 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 25 बरस में भारत में डायबिटीज के मामलों में 64 प्रतिशत का इजाफा हुआ। एक शोध के अनुसार, साल 2017 में दुनिया के कुल डायबिटीज रोगियों का 49 प्रतिशत हिस्सा भारत में था और 2025 में जब यह आंकड़ा 13.5 करोड़ पर पहुंचेगा तो देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर एक बड़ा बोझ होने के साथ ही आर्थिक रूप से भी एक बड़ी चुनौती पेश करेगा। शोध में दिए गए ये आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। इसे देखते हुए मधुमेह रोगियों के लिए स्टीविया एक औषधी के रूप में उन्हें लाभ पहुंचा सकती है।

स्टीविया से आएगी जीवन में मिठास, एक एकड़ में 5 लाख की कमाई


स्टीविया चीनी से 300 गुना मीठा होता है और उसमें कैलोरीज की मात्रा शून्य होती है जो शरीर में शुगर के लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है। इसलिए डाक्टरों द्वारा मधुमेह रोगियों को इसके सेवन की सलाह दी जाती है। यदि इसकी आधुनिक तरीके से खेती की जाए तो किसान इस फसल से लाखों रुपए कमा सकता है। स्टीविया को उगाया जाना काफी आसान है और इसकी लागत भी कम आती है और मुनाफा कई गुना अधिक होता है। चूंकि बाजार में इसकी मांग काफी होने के कारण इसे बेचने में भी किसान को कोई परेशानी नहीं आती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि किसान को भी स्मार्ट तरीके से काम करना होगा तभी उसे अधिक कमाई मिल सकती है। उसे परंपरागत तरीके से काम नहीं करके आधुनिक तरीके से काम व सोच को विकसित करना होगा ताकि वे अधिक आमदनी का प्राप्त कर सके। यही कारण है कि वर्तमान समय में कुछ स्मार्ट किसान ऐसी फसलों की खेती कर रहे हैं जिससे अधिक मुनाफा होता है। स्टीविया एक ऐसी उपज है जो किसान के जीवन में ही नहीं अपितु मधुमेह रोगियों के जीवन में भी मिठास घोल देगी। तो आइए जानते हैं स्टीविया के उत्पादन और इससे होने वाली आमदनी के बारे में।

क्या है स्टीविया


स्टीविया माने मीठी तुलसी, सूरजमुखी परिवार (एस्टरेसिया) के झाड़ी और जड़ी बूटी के लगभग 240 प्रजातियों में पाया जाने वाला एक जीनस है, जो पश्चिमी उत्तर अमेरिका से लेकर दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। स्टीविया रेबउडियाना प्रजातियां, जिन्हें आमतौर पर स्वीटलीफ, स्वीट लीफ, सुगरलीफ या सिर्फ स्टीविया के नाम से जाना जाता है, मीठी पत्तियों के लिए वृहत मात्रा में उगाया जाता है।

स्वीटनर और चीनी स्थानापन्न के रूप में स्टेविया, चीनी की तुलना में धीरे-धीरे मिठास उत्पन्न करता है और ज्यादा देर तक रहता है, हालांकि उच्च सांद्रता में इसके कुछ सार का स्वाद कड़वापन या खाने के बाद मुलैठी के समान हो सकता है। इसके सार की मिठास चीनी की मिठास से 300 गुणा अधिक मीठी होती है, न्यून-कार्बोहाइड्रेट, न्यून-शर्करा के लिए एक विकल्प के रूप में बढ़ती मांग के साथ स्टीविया का संग्रह किया जा रहा है।

 

भारत सहित अन्य देशों में तेजी से बढ़ रही है स्टीविया की मांग

चिकित्सा अनुसंधान ने भी मोटापे और उच्च रक्त चाप के इलाज में स्टीविया के संभव लाभ को दिखाया है। क्योंकि रक्त ग्लूकोज में स्टीविया का प्रभाव बहुत कम होता है, यह कार्बोहाइड्रेट-आहार नियंत्रण में लोगों को स्वाभाविक स्वीटनर के रूप में स्वाद प्रदान करता है। इसके अलावा इसमें ग्लूकोज रक्त पर स्टीविया का प्रभाव नगण्य होता है, यहां तक कि ग्लूकोज सहनशीलता को यह बढ़ाता है, इसलिए, यह प्राकृतिक मिठास के रूप में मधुमेह रोगियों और कार्बोहाइड्रेट नियंत्रित आहार पर रहने वाले अन्य लोगों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है।

कहां-कहां होती है स्टीविया की खेती


स्टीविया की खेती मूल रूप से पराग्वे में होती है। दुनिया में इसकी खेती पराग्वे, जापान, कोरिया, ताइवान, अमेरिका इत्यादि देशों में होती है। भारत में दो दशक पहले इसकी खेती शुरू हुई थी। इस समय इसकी खेती बंगलोर, पुणे, इंदौर व रायपुर और उत्तर प्रदेश व महाराष्ट के कुछ हिस्सों में इसकी खेती की जाती है।

कैसे उगाए स्टीविया 


स्टीविया को उगाने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है। किसान चाहे तो इसे खेत की मेड पर भी उगा सकता है। इतना ही नहीं घर के गार्डन में भी इसे उगाकर इसका लाभ लिया जा सकता है। यदि व्यवसायिक स्तर पर इसका लाभ लेना है और कमाई करनी है तो इसे व्यापक स्तर पर उगाना ही फायदेमंद रहता है। इसका रोपण कलम द्वारा किया जाता है।

जलवायु व भूमि


स्टीविया के लिए समशीतोष्ण जलवायु अधिक उपयुक्त रहती है। इसे 10 से 41 अंश तक की जलवायु में स्टीविया बिना किसी बांधा के सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है परन्तु यदि तापक्रम इससे कम या ज्यादा हो तो उसे मेंटेन करने हेतु उचित व्यवस्था करनी आवश्यक होगी। इसकी खेती करते समय किसान को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्टीविया की वही वेराइटी लगाई जाए जो उच्च तापक्रम में सफलतापूर्वक उगाई जा सके तथा पौधों को तेज गर्मी से बचाने के लिए इनका रोपण मक्की अथवा जैट्रोफा आदि के पौधों के बीच में किया जाए तो ज्यादा तापक्रम का प्रभाव नहीं होगा। इसकी भूमि की बात करें तो इसकी खेती के लिए समुचित शिमला मिर्चजलनिकास, भुरभुरी, समतल, बलुई दोमट अथवा दोमट भूमि सबसे उपयुक्त रहती है।

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स्टीविया की उन्नत किस्में


एस.आर.बी.- 123 : स्टीविया की इस प्रजाति का उदगम स्थल पेरूग्वे है तथा या भारतवर्ष के दक्षिणी पठारी क्षेत्रों के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इस प्रजाति की वर्ष भर में 5 कटाइयां ली जा सकती है तथा इस किस्म मे ग्लुकोसाइड की मात्रा 9 से 12 प्रतिशत पाई गई है।

एस. आर. बी.- 512 : यह प्रजाति ऊत्तरी भारत के लिए ज्यादा उपयुक्त है। इस प्रजाति 9 से 12 प्रतिशत ग्लुकोसाइड पाए जाए हैं तथा वर्ष भर में 5 कटाइयाँ ली जा सकती है।

एस.आर.बी.- 128 : कृषिकरण की दृष्टि से स्टीविया की या किस्म सर्वोत्तम मानी जाती है। इसमें 12 प्रतिशत तक ग्लुकोसाइड पाए गए हैं। यह प्रजाति भारतवर्ष के उत्तरी क्षेत्रों के लिए भी उतनी ही उपयुक्त है जितनी की दक्षिणी भारतवर्ष के लिए।

खेती हेतु स्टीविया के पौधे लेने से पूर्व रखी जाने वाली सावधानियां



  • स्टीविया के पौधे खरीदने से पूर्व किसानों द्वारा निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  • क्या आपके पौधे टिश्यु कल्चर विधि से तैयार किए गये हैं अथवा तने की कलम (स्टेम कटिंग) विधि से? टिश्यु कल्चर विधि से तैयार पौधे नि:संदेह उत्तम होते हैं।

  • स्टीविया की जो वेरायटी आप ले रहे हैं क्या यह आपकी जलवायु के अनुकूल है?

  • आपके द्वारा ली गई वेरायटी से स्टीवियासाइड की मात्रा कितनी है?

  • क्या आपने प्लांटिंग मेटेरियल प्रदायकर्त्ता से संबंधित वेरायटी के स्टिवियोसाइड कंटेंट की मात्रा के बारे में कोई गारंटी ली है?


स्टीविया के रोपण की विधि


इसका प्रवर्धन बीजों द्वारा, वानस्पतिक कल्लो अथवा जड़ सहित छोटे कल्लों द्वारा किया जाता है। स्टीविया का रोपन कलमों द्वारा किया जाता है। जिसके लिए 15 सेंटीमीटर लंबी कलमों को काटकर पोलिथिन की थैलियों में तैयार कर लिया जाता है। टीस्यू कल्चर से भी पौधों को बनाया जाता है जो सामान्यत: 5-6 रुपए प्रति पौधे मिलते हैं। वैसे इसकी अक्टूबर या नवंबर के महीने में पौधों की रोपाई 30*30 सेमी. की दूरी पर करनी चाहिए। रोपाई के बाद तुरन्त सिंचाई करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक


इसकी खेती में एक और फायदा ये है कि इसमे सिर्फ देसी खाद से ही काम चल जाता है। इसके लिए 10-15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या 5-6 टन केंचुआ खाद तथा 60:60 किग्रा फास्फोरस एवं पोटास पौधरोपण के समय खेत में मिला देना चाहिए। कुल 120 किग्रा नत्रजन को 3 बार बराबर मात्रा में खड़ी फसल में देना चाहिए।

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सिंचाई


इसकी पूरी फसल की अवधि में 4-5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। इसलिए अवश्याकतानुसार इसकी सिंचाई करते रहना चाहिए, क्योंकि स्टीविया की फसल को पानी की आवश्यकता चावल की फसल जैसी ही रहती है। इसे पूरे वर्ष सिंचाई की आवश्यकता रहती है इसलिए इसकी समय-समय पर सिंचाई करना जरूरी है। बेहतर होगा कि इसकी सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया जाए ताकि इसे पूरे समय पानी की उपलब्धता होती रहे और
पानी की बचत भी हो सके।

 

खरपतवार नियंत्रण

स्टीविया की फसल की निरंतर सफाई करते रहना चाहिए तथा जब भी किसी प्रकार के खरपतवार फसल में उन्हें उखाड़ दिया जाना चाहिए। नियमित अंतरालों पर खेत की निकाई-गुड़ाई भी करते रहना चाहिए। जिससे जमीन की नमी बनी रहे। खरपतवार नियंत्रण का कार्य हाथ से ही किया जाना चाहिए तथा इसके लिए किसी प्रकार के रासायनिक खरपतवार नाशी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

कीट व रोग नियंत्रण


यू तो स्टीविया पर अधिकांशता किसी विशेष रोग अथवा कीट का प्रकोप नहीं देखा गया है। परंतु काई बार भूमि में बोरोन तत्व की कमी के कारण लीप स्पॉट का प्रकोप हो सकता है। इसके निदान हेतु 6 प्रतिश बोरेक्स का छिडक़ाव किया जा सकता है। वैसे नियमित अंतरालों पर गौमूत्र अथवा नीम के तेल को पानी में मिश्रित करके उसका छिडक़ाव करने से फसल में किसी प्रकार के रोग व कीट नहीं लगते हैं।

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पत्तियों की तुड़ाई


रोपण के लगभग चार माह के उपरान्त स्टीविया की फसल प्रथम कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई का कार्य पौधों पर फूल आने के पूर्व ही कर लिया जाना चाहिए क्योंकि फूल आ जाने से पौधे में स्टिवियोसाइड की मात्रा घटने लगती है जिससे इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इस प्रकार प्रथम कटाई चार माह के उपरान्त तथा आगे की कटाइयाँ प्रत्येक 3-3 माह में आने लगती है। कटाई चाहे पहली हो अथवा दूसरी अथवा तीसरी, यह ध्यान रखा जाना आवश्यक है कि किसी भी स्थिति में कटाई का कार्य पौधे पर फूल आने के पूर्व ही कर लेनी चाहिए। इसमें करीब 3-4 बार पत्तियों की तुड़ाई की जा सकती है। अंत में सारी फसल को काट लेना चाहिए।मशरूम की किस्म

पत्तियों को सुखाना व भंडारण करना


पत्तियों लेने के बाद उन्हें छाया में सुखाया चाहिए। 3-4 दिन तक इन्हें छाया में सूखा लिए जाने पर पत्ते पूर्णतया नमी रहित हो जाते हैं तथा इसके बाद इसका भंडारण, वायुरोधक डिब्बों अथवा पाली बैग में किया जाता है। इस तरह इसे बिक्री के लिए तैयार किया जाता है। स्टीविया के पत्ते भी बेचे जा सकते हैं, इसको पाउडर बनाकर के भी बेचा जा सकता है तथा इसका एक्सट्रैक्ट भी निकाला जा सकता है। वैसे किसान के स्तर पर इसके सूखे पत्तें बेचे जाना ही उपयुक्त होता है। यदि पाउडर बनाकर बेचा जाए तो इसे बेचने पर सूखी पत्तियों की तुलना में दुगुनी कमाई होती है।

कितनी होती है उपज


एक बहुवर्षीय फसल होने के कारण स्टीविया की उपज में प्रत्येक कटाई के साथ निरंतर बढ़ती जाती है। हालांकि उपज की मात्रा काई कारकों जैसे लगाई गई प्रजाति, फसल की वृद्धि, कटाई का समय आदि पर निर्भर करता है, परन्तु चार कटाइयों में प्राय: 2 से 4 टन तक सूखे पत्तों का उत्पादन हो सकता है। वैसे एक औसतन फसल से वर्ष भर से लगभग 2.5 टन सूखे पत्ते प्राप्त हो जाते हैं। अनुमानत: सूखी पत्तियों का उत्पादन 12-15 कुंतल प्रति हेक्टेयर होता है।

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कितनी हो सकती है कमाई


बाजार में स्टीविया के पत्तों की बिक्री दर 60 से 120 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो सकती है। वैसे यदि औसतन 2.5 टन पत्तों का उत्पादन हो तथा इनकी बिक्री दर 100 रुपए प्रति किलोग्राम मानी जाए तो इस फसल से प्रतिवर्ष किसान को 2.5 लाख रूपये प्रति एकड़ की प्राप्तियां होगी। फसल से होने वाले लाभ एवं हानि की गणना यदि पांच एकड़ की प्राप्तियां होगी। फसल से होने वाले लाभ एवं हानि की गणना यदि पंच वर्षीय फसल के आधार पर की जाए तो इस फसल से किसान को पांच वर्षों में लगभग 8.40 लाख रुपए लाभ होना अनुमानित है। वहीं इसकी पत्तियों का पाउडर बनाकर बेचा जाए तो एक एकड़ में करीब 5 लाख की कमाई आसानी से की जा सकती है।

 

भारत में स्टीविया की खेती

देश में स्टीविया की खेती बड़े स्तरपर मुख्यत: कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य तक ही सीमित है। मध्यप्रदेश में स्टीविया की खेती प्रारंभ हो चुकी है। राजस्थान में स्टीविया की खेती भरतपुर जिला मुख्यालय पर लुपिन ह्यूमन वैलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रायोगिक तौर पर कराई जा चुकी है। उत्तरप्रदेश में स्टीविया की खेती के प्रति किसान जागरूक हो रहे हैं और कई जगह किसानों ने स्टीविया की खेती शुरू कर दी है।

 

 

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