वैज्ञानिक ढ़ंग से बाँस की खेती

वैज्ञानिक ढ़ंग से बाँस की खेती



 एवं मूल्य संवर्धन





  1. परिचय

  2. लकड़ी के स्थान पर बांस उत्पाद

  3. राष्ट्रीय बांस मिशन

  4. बांस की नर्सरी तैयार करना

  5. बांस का रोपण

  6. बांस के कल्म्प की देखभाल

  7. कल्म कटाई

  8. बांस के नाशीजीव तथा रोग एवं उनका नियंत्रण

  9. बांस की परिलक्षण तकनीकें

  10. ग्राम स्तर पर बांस का प्राथमिक प्रसंस्करण इकाई

  11. बांस क्लस्टर विस्तार मॉडल

  12. हार्मोन घोल तैयार करना

  13. राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत पहचानी गई प्रजातियाँ एवं मुख्य विवरणी

  14. राष्ट्रीय बांस मिशन अंतर्गत प्राप्त सहायतानुदान विवरणी

  15. अनुदान प्राप्त करने हेतु आवेदन-पत्र


कैसे कर सकते हैं खेती -
बांस को बीज, कटिंग या राइज़ोम से लगाया जा सकता है. इसके बीज अत्यंत दुर्लभ और महंगे होते हैं. पौधे की कीमत बांस के पौधे की किस...

Bamboo Farming: बांस की खेती से आप ऐसे कमा सकते हैं लाखों ...


प्रति हेक्टेयर इसके करीब 1,500 पौधे लगते जा सकते हैं. इसकी फसल करीब 3 साल में तैयार हो जाती है और इस दौरान प्रति पौधे पर लगभग 250 रुपये का खर्च आता है. 1 हेक्टेयर से आपको करीब 3-3.5 लाख रुपये की कमाई होगी. इसकी खेती में सबसे अच्छी बात ये है कि बांस की फसल 40 साल तक चलती रहती है.






परिचय



जैविक खेती


बांस  प्रकृति की अदभुत देन है। संख्या तथा विधिता की दृष्टि से किसी उगाये जाने वाले पादप के इतने उपयोग नहीं होते जितने बांस के होते हैं। बांस की मानव जीवन में सदैव महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

बांस विशाल घासों कुल का पौधा है जिसमें कल्मों भूमिगत राइजोम से उत्पन्न होती है। यहझाड़ीनुमा होता है, जिसकी प्रक्रति वृक्ष की तरह होती है। इस धरती पर यह सबसे तीव्र गति से बढ़ने वाला पौधा है। बांस को काष्ठीय रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ज्यादातर पोरी (इंटरनोड्स) डे साथ हौलो-कल्म तथा कल्म नोड्स पर शाखाएँ होती है। बांस की आनुवांशिक विविधता की सम्पन्नता के सन्दर्भ में भारत विश्व का दूसरा देश है यहाँ 75 वंशक्रमों (जेनेरा) के तहत कुल 136 प्रजातियाँ पाई जाती है। इसकी परिधि में वन क्षेत्र का लगभग 8.96 मिलियन हेक्टेयर आता है जो देश कुल वन क्षेत्र के 12.8% के समतुल्य है। वनीय क्षेत्र में इसे खराब प्रबंधन, कम उत्पादकता तथा अत्याधिक दोहन के कारण नुकसान होता है। यद्यपि हाल के वर्षों में विकास के एक प्रमुख घटक तथा निर्धन ग्रामीणों के जीवन निर्वाह में सुधार  के लिए एक प्रभावशाली तरीके के तौर पर बांस के बारे में जागरूकता में बढ़ोतरी हुई है। इस पेड़ के 1500 से ज्यादा उपयोग दर्ज है (पालना-झुला से लेकर ताबूत तक) तथा इसमें रोजगार तथा आय सृजन और गरीब ग्रामीणों के पोषण में सुधार की व्यापक संभावनाएं मौजूद है। बांस तीन प्रकार के हैं-

  1. संधिताक्षी (सिम्पोडियल) लंबी ग्रीवा सहित संधिताक्षी (मैकोलान्ना बेसीफेरा)

  2. एकलाक्षी (मोनोपोडीयल

  3. एम्फोडिय। वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा दस प्रमुख प्रजातियाँ की पहचान की गई है जिसमें निम्नलिखित शामिल है:






































प्रजातियाँ
बम्बूसा बम्बोस
बी. बैलकोआ
बी. न्यूटेन्स
बी. दुल्ज
डेन्द्रोकैलालम्स स्ट्रीककट्स
डी. हैमिलटोनी
डी. एस्पर
डी. गीगान्टीयस
मैलोकैना बेसीफेरा
ओकेलेंज ट्राबन्कोरिका

बिहार में बॉस का प्रमुख उपयोगकर्ता मकान निर्माण, कुटीर उद्योग एवं हस्तशिल्प है। इसके अलावा बांस अनेक पारपरिक कुटीर उद्योगों की सहायता भी करता है जिसमें हस्तशिल्प, सुगंधित अगरबत्ती तथा अन्य सबंधित वस्तुओं का उत्पादन शामिल है।

लकड़ी के स्थान पर बांस उत्पाद


यद्यपि आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा बनांये गए उत्पादों, लकड़ी उत्पादों, विशेष रूप से सख्त, लकड़ी उत्पाद की तरह इस्तेमाल किये जाने के लिए तरह उपयुक्त है। सख्त लकड़ी की प्रजातियाँ जैसे टीक, साल, बांजु (ओक), मैफिल, माइकेला डी पटी रोकारपस आदि को परिपक्व होने में 80 वर्ष से भी ज्यादा समय लगता है जबकि बांस को परिपक्व होने में 4 वर्ष का समय लगता है। इस प्रकार जब हम बांस उत्पादों का उपयोग करते हैं उस समय हम कुछ हद तक लकड़ी का प्रतिस्थापन करते हैं जिसमें हम अपने वनों की सुरक्षा करते हैं जो हमारी धरती को अगली पीढ़ी के लिए हरा-भरा और स्वच्छ बनाते हैं।

जैविक खेती

कुछ बनाये गए बांस उत्पाद

राष्ट्रीय बांस मिशन


देश में घरेलू एवं निर्यात बाजारों के लिए मूल्यवर्धित प्रसंस्कृत बांस उत्पादों को उत्पादन का आधार बनाना आवश्यक है। गुणवत्तापूर्ण सामग्री की आपूर्ति के लिए बांस क्षेत्र के तीव्र विकास हेतु समुदायों, गैर सरकारी संगठन, किसानों एवं उद्यमियों को प्रोत्साहन किया जाना है। इसके साथ अर्थव्यवस्था एवं समाज के बीज समेकित परस्पर समन्वय स्थापित किया जाना है, जिससे पर्यावरण अनुकूल उत्पाद एवं विपणन नेटवर्क को मजबूती प्रदान किया जा सके। उपभोक्ताओं को सस्ते रोपण पर विशेष जोर देने के साथ-साथ टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना, रोजगार सृजन और गरीबी उन्मूलन के वांस मिशन कार्यक्रम को प्रारंभ किया गया है। राष्ट्रीय बांस मिशन केंद्र द्वारा प्रायोजित स्कीम है जिसमें केंद्र सरकार का शत-प्रतिशत अंशदान है। इस स्कीम को कृषि एवं सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय, नई दिल्ली के अंतर्गत कार्यरत बागवानी प्रभाग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। राज्य में कृषि विभाग के उद्यान निदेशालय अंतर्गत बिहार बागवानी विकास सोसायटी का अधीन राज्य बांस मिशन का कार्यान्वयन किया जा रहा है।

राज्य में राष्ट्रीय बांस मिशन शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता से वितीय वर्ष 2006-07 से शुरू की गई है। बांस मिशन वन क्षेत्र में वन एवं एवं पर्यावरण विभाग और गैर वन क्षेत्र में कृषि  विभाग की सहायता से चलाई जा रही है जहाँ नोडल विभाग कृषि है। वन क्षेत्र में योजना का क्रियान्वयन वन विकास एजेंसी एवं गैर वन क्षेत्र में जिला बांस विकास एजेंसी की  सहायता से किया जा रहा है।

गैर वन क्षेत्र में बॉस मिशन, राज्य के 16  जिलों यथा मुंगेर, बांका, जमुई, नालंदा, मुजफ्फरपुर, प. चम्पारण, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, कटिहार, किशनगंज, अररिया, मधेपुरा, पुर्णियां , सीतामढ़ी एवं शिवहर में चलाई जा रही है।

राज्य बांस मिशन को कार्यान्वित करने के लिए राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमिटी का गठन किया गया है, जिसके पदेन अध्यक्ष प्रधान सचिव कृषि है। एवं प्रधान सचिव, वन एवं पर्यावरण पदेन उपाध्यक्ष हैं। निदेशक, राज्य बांस मिशन सदस्य सचिव हैं। जिला स्तर पर जिला बांस विकास एजेंसी (डी.बी.डी. ए.) का गठन किया गया है। जिला पदाधिकारी इस एजेंसी के पदेन अध्यक्ष, उप विकास आयुक्त पदेन उपाध्यक्ष एवं जिला उद्यान पदाधिकारी सदस्य सचिव बनाए गये हैं।

मिशन के उद्देश्य

  1. क्षेत्र आधारित क्षेत्रीय रूप से विभेदीकृत रणनीतियों द्वारा बांस क्षेत्र की व्यापक वृद्धि को बढ़ावा देना।

  2. वन तथा गैर-वन क्षेत्रों दोनों में बांस के तहत आने वाले क्षेत्र को बढाने के साथ-साथ पैदावार बढाने के लिए उचित किस्मों की वृद्धि।

  3. बांस आधारित हस्तशिल्प के विपणन के बढ़ावा देना।

  4. बांस के विकास के लिए स्टेकहोल्डरों के बीच अभिसरण और सहयोग को स्थापित करना।

  5. पारम्पिरक विवेक तथा आधुनिक वैज्ञानिक जानकारी के सिवानहीन ब्रांड द्वारा विकास और प्रसार प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।

  6. कुशल तथा अकुशल व्यक्तियों विशेष रूप से बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित करना।


रणनीति

खरीफ की फसलें

उपरोक्त उदेश्यों को हासिल करने के लिए मिशन द्वारा निम्नलिखित रणनीतियों को अंगीकृत किया जाएगा:

  1. उत्पादकों/निर्माताओं को उचित लाभ सुनिश्चित करने के लिए विशिष्ट अवधारणा को अपनाना जिसमें उत्पदान और विपणन शामिल है:

  2. उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकियों के अनुसधान एवं विकास (आर एंड डी) को बढ़ावा देना।

  3. खेती योग्य भूमि  (वन एवं गैर-वन क्षेत्रों में) और उत्पादकता वृद्धि।

  4. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में सभी स्तरों पर अनुसन्धान एवं विक्स एजेंसियों के बीच प्रतिभागित्ता, अभिसरण तथा सहयोग को बढ़ावा देना और एक समेकित अवधारणा को अपनाना।

  5. किसानों को सहायता तथा पर्याप्त लाभ को सुनिश्चित करने के लिए सहकारी और स्वयं-सेवी दलों को बढ़ावा देना।

  6. क्षमता निर्माण तथा मानव संसाधन विकास को सरल बनाना।

  7. किसानों को उप्ताद के लिए पर्योप्त लाभ प्राप्त करने और जहाँ तक संभव हो दलाल/मध्यस्थ को समाप्त करने की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय, राज्य तथा उपराज्य ढांचे को स्थापित करना।


राज्य बांस मिशन के मुख्य घटक

  1. बांस विकास के लिए अनुसन्धान एवं विकास

  2. बांस की पौध उगाने ले लिए नई नर्सरियों की स्थापना।

  3. वन तथा गैर-वनीय क्षेत्रों में वाणिज्यिक आधार पर उच्च पैदावार वाले बांस रोपण को बढ़ाना

  4. जराजीर्ण बांस रोपण, कीटनाशी तथा बांस के रोग प्रंबधन का सुधर

  5. हस्तशिल्प, बांस विपणन तथा निर्यात

  6. किसानों और कार्मिकों की क्षमता निर्माण तथा मानव संसाधन विकास

  7. बांस के लिए बांस बाजारों तथा नई विपणन रणनीतियों की स्थापना

  8. सतर्क निगरानी, मूल्याकंन और रिपोर्टिंग, डेटाबेस सृजन, संकलन और विश्लेष्ण


 

राष्ट्रीय बांस मिशन अंतर्गत प्रस्तावित वित्तीय लाभ का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:

  1. नर्सरी तैयार करने के लिए: सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा किसान/महिला नर्सरी के लिए 0.०६७ लाख

  2. वाणिज्यिक रोपण: सरकारी क्षेत्र द्वारा लागत का शत-प्रतिशत अर्थात रु०.25,000/हेक्टेयर तथा निजी क्षेत्र अर्थात किसानों द्वारा बांस रोपण पर कुल लागत रु०. 16000/हेक्टेयर का 90% अर्थात रु. 14,4000 दो किस्तों में देय है।

  3. उपरोक्त के अलावा रोपण से संबधित अनुसन्धान एवं विकास, रोपण सामग्री का प्रमाणीकरण आदि पर शत-प्रतिशत सहायता और किसानों/प्रखंड स्तर के कार्यक्रम आदि को प्रशिक्षण देने के लिए सिमित अनुदान दिया जाएगा। इसके साथ ही जागरूकता सृजन/प्रौद्योगिकी  सृजन और इस प्रकार के कार्यों के लिए राज्य स्तर/जिला स्तर के सेमीनार के आयोजन हेतु राशि आवंटित की गई है।


राज्य बांस मिशन से संबधित कार्यकलापों को वन विभाग के संबधित सर्किल/वन विकास एजेंसियों या जिलों के जिला बांस विकास समिति द्वारा कार्यान्वित किया जायेगा। इस सबंध में प्रस्ताव इस प्रयोजन हेतु पहले से गठित राज्य स्तर की उच्च स्त्तरीय समिति द्वारा प्रस्तुत होना चाहिए।

बांस की नर्सरी तैयार करना


बांस संचरण की अनेक विधियाँ है, विशेष रूप से नर्सरी स्तर पर बांस नर्सरी व्यापार एक प्रासंगिक व्यवसाय है और बैंक भी इसमें वत्तीय सहयोग करने को तैयार है। निम्नलिखित ऐसी विधियाँ दी गई है जिनके द्वारा वाणिज्यिक आधार पर आगामी रोपण के लिए एक नर्सरी में बांस का संचरण किया जा सकता है।

पारम्पिरक और गैर -पारम्परिक तरीकों से बांस को लगाया जा सकता है:

पारम्परिक तरीके

क)   बीजों द्वारा लगाना।

ख)   राइजोम/ऑफ़-सैट रोपण द्वारा लगाना।

बांस को लगाने की पारम्परिक विधियाँ बीज और उदभिज्ज तरीकों पर आधारित है। कुछ विशेष अवधि के दौरान बीज की इ=उपलब्धता कम हो जाती है लेकिन बांस-फूल (बम्बू फ्लावर) हर समय उपलब्ध रहता है। ज्यदातर बांस  के फूल 10 से लेकर 60 वर्ष से भी ज्यादा लंबे समय तक बने रहते हैं जो विभिन्न प्रजातियों पर निर्भर करते हैं। सामान्यतः चरणीय पुष्पण यूथवृति वाला हटा है और पुष्पण के बाद बांस के सम्पूर्ण खिले हुए फूल समाप्त हो जाते हैं।

गैर -पारम्परिक तरीके

क)   जड़ को काट कर लगाना

ख)   कल्म कटिंग द्वारा लगाना

ग)    शाखाओं की कटिंग द्वारा लगाना

घ)    व्यापक परिष्करण द्वारा लगाना

ङ)     दाब-कल्म तथा सूक्ष्म विगलन द्वारा लगाना

च)    ऊतक संवर्धन द्वारा लगाना

नर्सरी

Agricultural Technology

स्थान चयन

बांस नर्सरी तैयार करने के लिए चयनित किया जाने वाला स्थान आने-जाने के लिए सुगम्य होना चाहिये तथा जल स्रोत भी नजदीक होना चाहिये जिससे व्यय तथा अन्य तकनीकी कठिनाइयों से बचा जा सके। स्थान चुनते समय इसे उचित रूप से योजनाबद्ध किया जाए जो इसके आकार और बनावट पर आधारित होगा। योजना बनाते समय संवर्धन, अनुमानित वार्षिक उत्पादन क्षमता, व्यापक परिष्करण अपेक्षित क्यारियाँ सिंचाई सुविधाएँ, ओवरहैड टैंक तथा समानरूपी घटकों के बार में आवश्वस्त हो जाना चाहिए। परिवहन और बाजार पहलुओं पर भी सावधानीपूर्वक ध्यान दिया जाए।

नर्सरी तैयार करने का मौसम

नर्सरी तैयार करने का मौसम भी व्यापर की व्यवहारिकता को प्रभावित करता अहि। यद्यपि जहाँ तक नर्सरी तैयार करने, वृद्धि और मृत्युदर का संबधं है राज्य के इस हिस्से में मार्च का महिना बेहतर मौसम का है। विशेष रूप से किसी भी उदभिज्ज संचरण तरीके जैसे कल्म-कर्तन, शाखा कर्तन, दाब-कल्म आदि के द्वारा, यद्यपि इस कार्य को अधिक मृत्युदर के साथ पूरे वर्ष किया जा सकता अहि।

बांस नर्सरी के लिए बेहतर मृदा विशेषताएं

उदभिज्ज संचरण के लिए बेहतर मृदा लगभग 6.5 से 7.5 की पीएच मात्रा युक्त दोमट मिट्टी है। भूमि का टुकडा उच्च भूमि वाला होना चाहिए जिसमें भूमि का टुकड़ा बिना किसी जल अवरुद्धता या उचित जल निकासी वाला होना चाहिए। अन्य नर्सरी की तरह कुल छायादार वृक्ष बेहतर स्थान बनांते हैं।

राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत नर्सरी के प्रकार

  1. केन्द्रीय नर्सरी: इस प्रकार की नर्सरी की वार्षिक उत्पादन क्षमता से कम 50,000 रोपण सामग्री का उत्पादन करने की होगी।

  2. किसान नर्सरी/महिला नर्सरी: इनकी न्यूनतम वार्षिक उत्पादन क्षमता कम से कम 10,000 अरु 5,000 रोपण सामग्रियों की होनी चाहिए।


बीजों द्वारा संचरण

पुष्पन के बाद बनने वाले बीज को एकत्रित और स्वच्छ किया जा सकता है। स्वच्छ बीजों को विशेष भंडारण तकनीकों जैसे नियंत्रित नभी, न्यूनतम तापमान आदि के द्वारा 6 माह या एक वर्ष से ज्यादा समय के लिए भंडारित किया जा सकता है। बांस  बीजों को यदि बीज श्वसन, नियंत्रित तापमान अदि के लिए उचित वायु संचार के साथ भंडारण करके नहीं रखा जाता तो इसकी अकुरण क्षमता दो माह की अवधि के बाद धीरे-धीरे कम हो जाती है। अन्यथा बीज को संग्रहण के बाद तुरंत उगा देना चाहिए। संग्रहित बीज को उचित तरह से साफ करके 1-२ घंटा धूप में सुखाया और प्रसुप्ति को विखंडित करने के लिए 6-12 घंटे तक पानी में भिंगोया जाए और बुवाई से पहले 10-20 मिनट पहले उचित रूप से जल निकासी की जाए। एक नर्सरी क्यारी को तैयार किया जाए जिसका आकार 10x1.5 मी. हो जिसकी गहरी जुताई या खनन किया जाए और इसे मृदा, रेट तथा पूर्ण एक वाई २;1:1 अनुपात के मिश्रण से भरा जाए। बुवाई से एक सफ्ताह पहले नर्सरी क्यारी को कीटनाशी जैसे ऐल्ड्रक्स तथा फफूंद नाशी जैसे दीमक से बचने तथा फफूंद हमें के लिए बैविस्टिन के साथ मिश्रित करना चाहिए। प्रत्येक क्यारी के लिए 0.015% एल्ड्रिन एल्ड्रीन 40 ली. जिसे 0.5 एम एल. एल्ड्रीन 30 ई.सी. प्रति ली.पानी मिलाकर तैयार किया गया और 0.05 % 30 ली. जैसे 1 ग्राम बैविस्टिन 50 डब्लू पी प्रति ली. पानी मिलाकर तैयार किया गया, का इस्तेमाल किया जाए। एल्ड्रीन की अनुपलब्धता के दौरान अन्य कीटनाशी जैसे क्लोरोपाईरीफौस २ मी.ली. की दर से प्रति ली. पानी या इंडोस्फान-35 ई.सी., २ मी.ली. की दर से प्रति ली. पानी के घोल का उपयोग प्रति क्यारी पर 40 ली. का छिड़काव किया जाए। बुवाई का कार्य ओवर हैड शेड में किया जाए जिसमें पत्तियों या बांस विभाजन को सुरक्षित करने पर वरीयता दी जाए।  1 से.मी. गहराई तक फ्युरो –आप के साथ पंतकी में बुवाई की सलाह दी जाती है और इसे मिट्टी की पतली परत से ढक दिया जाए और दिन में एक बार हल्का पानी डाला जाए। 3-7 के दिन के बाद बीज अंकुरण आरंभ हो जाएगा और यह 15-25 दिन तक नियमित रहेगा। जब पौधा 3-4 माह पुरानी हो जाए तो इसे पौलीपौट में हस्तांतरित का कर जाए और दिन में एक बार इसकी सिंचाई की जाए तथा सांयकाल  में नियमित रूप से 1-२ सप्ताह तक सिंचाई की वरीयता दी जाए। पौली-पौट को विधिवत विगलित एफ वाई एम मृदा और रेत मिश्रण के साथ २:3:1 अनुपात में भरा जाए।

ऑफ़-सैट रोपण द्वारा संवर्धन

राइजोम या ऑफ़-सैट द्वारा उदभिज्ज संवर्धन एक प्राचीन तरीका है और इस क्षेत्र में इसका काफी इस्तेमाल होता है। यद्यपि यह पारम्परिक तरीका है और बांस संवर्धन में सभंवतः सबसे ज्यादा उपयोग में लाया जाने वाला तरीका है, विशेष रूप से छोटे और सुगम्य प्रवर्ध्य क्षेत्रों में यह सिर्फ कुछ कल्म को उगाने के लिए ही प्रायोगिक है। यह बेहतर होगा यदि ऑफ़-सैट को वर्षा के मौसम से पहले  रोपित किया जाए। सामन्यतया ऑफ़-सैट रोपण में पतली परत वाली बांस प्रजातियाँ कम सफल होती है और अलग-अलग प्रजातियों में काफी भिन्नताएँ  पाई जाती हैं। विशाल डायामीटर कल्म वाली बांस की प्रजातियों के लिए रोपण हेतु विशाल राइजोम जरूरी है।

1-२ वर्ष पहले ऑफ़-सैट को 1.0-1.5 मी. ऊंचाई पर काट लिया जाए (3 से 5 नोड्स वाले जीवनक्षम शाखा कली) और इसे राइजोम के हिस्से के साथ इसकी जड़-प्रणाली सहित खोदकर खुदाई के दौरान राइजोम के नुकसान में कमी आयगी। इस प्रकार का ऑफ़-सैट बेहतर होगा और इसे वर्षा के मौसम से पहले  विश्राम मौसम के अंत में नई बढ़वार आरंभ होने के बाद लगाए गये ऑफ़-सैट सामायतः जमने में सफल नहीं हो पाते। मातृ कल्म्प से निकालने के बाद ऑफ़-सैट का शीघ्र प्रतिरोपण किया जाए और परिवहन आवागमन के दौरान इसे आद्रेतायुक बोरी (गनी-बैगों) में रखा जाए। खेत में कल्म के शीर्ष को पौलिथिन बैग से ढका जाए और सूखने से बचने के लिए निम्न सतह (कैविटी) में पानी भरा जाए।

कल्म-कर्तन द्वारा संवर्धन

कल्म या तने के खंडों का इस्तेमाल करते हुए उदभिज्ज संवर्धन एक व्यवहारिक विकल्प है और अन्य तरीकों के मुकालबे में यह लाभकारी है। इसकी सफलता और निर्वाह की दर (40% से 80%) ऑफ़-सैट की तुलना में अधिक है। इस विधि में कल्म-कर्तन के साथ-साथ जड़-निर्माण उत्पन्न के लिए बढ़वार नियामक रसायन भी शामिल है। आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण बांस की अधिकांश प्रजातियों के लिए इस विधि के परीक्षण को सफलतम पाया गया। इस विधि द्वारा उत्कृष्ट किस्मों का व्यापक स्तर पर प्रगुणन संभव है।

नर्सरी क्यारी तैयार करना

  1. गहरी जुताई/खनन द्वार 10 मी. X1.२ मी. की नर्सरी क्यारी तैयारी करना तथा इसे मृदा रेत तथा पूर्ण अपघटित मिश्रण के साथ एफ वाई एम् के २:1:1 अनुपान में भरा जाए।

  2. रोपण से एक सफ्ताह पहले दीमक और फफूंद हमले से बचने के लिए नर्सरी क्यारी को पृथक रूप से कीटनाशी, एल्ड्रिन तथा फफूंदनाशक, बैविस्टिन के साथ मिला दिया जाए। प्रत्येक क्यारी के लिए प्रति लिटर पानी के साथ एल्ड्रीन उपलब्ध न होने वाली समयाविधि के दौरान अन्य कीटनाशकों जैसे क्लोरोफाईरोफोस (डर्सबैन) २ मी.ली. की दर प्रति लिटर या इंडोफिल-35 ई. सी. २ मी.;ली. की दर  प्रति लिटर प्रत्येक क्यारी में 40 लीटर घोल का इस्तेमाल किया जा सकता है।


ईंट और रेत से बनी नर्सरी

ईंट और रेत से बनी नर्सरी स्थायी प्रकार की होती है किन्तु इसमें अधिक निवेश होता है।  इसमें तीव्र रूटिंग होता है। इस क्यारी को कछुए के आकार में कंक्रीट सीमेंट से तैयार किया जाता है। मोटा रेत एकत्र किया जाए जो जमीन पर बेकार पड़ा हो। इसे अच्छी तरह छान जाए। कंक्रीट बेस के ऊपर क्यारी तैयार करने के लिए अपेक्षित संख्या में ईंटों को एकत्र किया जाए। क्यारी की लम्बाई को 6 मी. तक सिमित रखा जाए और इसकी ऊंचाई को एक के ऊपर रखते हुए तीन ईंटों के बराबर होनी चाहिए। इसकी चौड़ाई अंदर से लगभग 1.२ मीटर होनी चाहिए। किसी मोटरटार का प्रयोग नहीं किया जाए। इसके बाद क्यारी को छानी गई रेत से भर दिया जाए और ईंटों के बीच होने वाले रिक्त स्थान को भरने का कोई प्रयास न किया जाए।

अपेक्षित शेड को किसी भी बांस नर्सरी के लिए व्यवस्थित  किया जा सकता है। उचित सिंचाई को बनाए रखा जाए।

दाल

बांस का संग्रहण तथा कटिंग की तैयारी

  1. स्वस्थ कल्म्स से 1.6 से २ वर्ष पूरानी कल्म को निकालने के लिए के ठीक ऊपर से काटा जाए। सवंर्धन को प्ररोह प्रांरभ होने से करने के लिए प्राथमिकता दी जाए।

  2. कल्म के पत्ते वाले पतले हिस्से के टेंडर टाप को हटा दिया जाए काट दिया जाए। पत्ते और साईड  वाली शाखाओं को हटाते समय बड्स को कोई नुकान न हो इस बात का  ध्यान रखा जाए।

  3. कल्म को जहाँ संभव हो शीघ्र-अतिशीघ्र नर्सरी तक पहुंचाया जाए। सूखे के प्रकोप से बचाने पर अधिक ध्यान दिया जाए। इस प्रयोजन हेतु या कटे हुए सिरे को जमी वाली बोरी (गनी बैग) में लपेटा जाए या नमी युक्त बुरादे बक्से में इसे रखा जाए।

  4. एक या दो नोड के कटिंग तैयार की जाएँ (दोनों तरफ 5 से.मी. छोड़कर 1-२ नोड्स काटें) इसके लिए हैक्सा या पैने चाक़ू (डेओं) का उपयोग किया जाए।

  5. लगभग २ से.मी. लंबा और 1 से.मी. चौड़ा बांस का टुकड़ा लेकर या पोरी (इंटरनोड्स) के मध्य में दो छेदों को (लगभग 7 मी.मी. परिधि) ड्रिल किया जाए। छेद  करते समय इस बात पर ध्यान रखा जाए कि दोनों नोड्स पर आक्सलरी कली या शाखाएँ सतह के समतल रूप में होनी चाहिये।


जड़ निकलने के लिए कटिंग का उपचार

  1. आधे लीटर पानी में 20 ग्राम एन ए ए या बोरिक एसिड को घोला जाए। इस घोल को एक साफ जार में उंडेल दें और 100 ग्राम लीटर बनाने के लिए इसमें पानी मिलाएँ। इस घोल को अच्छी तरह हिला कर मिलाएं। बोरिक एसिड का अंतिम संकेद्रित पानी के 200 मिली. ग्राम या 200 पी पी एम् (पार्ट पर मिलियन) के समतुल्य हो जाएगा। यह गोल 1000 कटिंग के उपचार के लिए पर्याप्त होगा।

  2. लगभग 100 एम् एल घोल को कल्म की सतह  में उन्डेले। स्पीईलेज से बचने के लिए  ड्रिल किये गए छेदों द्वारा घोल को डालने के लिए साफ बोतल या कीप का उपयोग करें।

  3. पिघली हुई मोम से छेदों को बंद कर दें या रैपिंग कर दें और पोलीथिन स्ट्रिप की रैपिंग (6 से.मी. चौड़ा x 60 से.मी. लंबा) या सैलोटेप से बाँध दें। यह सुनिश्चित कर लें कि पोलीथिन टाइट है ताकि घोल का इसमें से रिसाव न हो सके। कटिंग को समानांतर रखें तथा इसके आमुख वाले हिस्से को ऊपर रखें।

  4. निष्कर्षन के बाद जहाँ तक संभव हो शीघ्र ही कल्म कटिंग को नेपथलीन एसिटिक एसिड/बोरिक एसिड के साथ उपचारित किया जाए। यदि रोपण स्थल काफी दूर है और रोपण में होने वाले विलम्ब से बचा नहीं जा सकता तो उपचारित कटिंग को तीन दिन तक आद्र बुरादे में रखकर संरक्षित किया जा सकता है।


कटिंग का रोपण

  1. 10 से 16 से.मी. फरो नर्सरी क्यारी के आर-पार से 50 से.मी. की दुरी बनाए जाएँ। फरो की गहराई और दूरी को कल्म कटिंग के डायमीटर के आधार पर घटाया –बढ़ाया जा सकता है।

  2. कटिंग को पहरों के समानांतर नर्सरी क्यारी के आर-पार इस तरह रखें कि छेद/आमुख हिस्सा ऊपर हो या कली (बड्स) को किनारे पर (लेटरली) रखें। 10 मी. X10 मी. आकार की तैयार नर्सरी क्यारी में लगभग 50-60 कटिंग को सुविधाजनक ढंग से रोपित किया जा सकता है। कटिंग को २-3 से.मी. मृदा परत से ढक दें। जब तक उचित जड़ विकसित नहीं होती तब तक इसकी नियमित सिंचाई की जाए। रुटीड कल्म खेत के पानी से भरने या वर्षा के मौसम के दौरान उस समय बाहर निकलेगी जब क्यारी की मिट्टी ढीली हो जाएगी। विधिवत गहरी जड़ वाले पौधे कल्म के साथ-साथ जड़ अरु पोली-पिटिड के साथ जुड़ जाते हैं। कल्म के शीर्ष को पैने चाकू से काट दें ताकि अत्याधिक श्वसन से बचा जा सके।


डाली की कटिंग द्वारा संचरण

माटी परत वाली बांस प्रजातियों में स्पष्ट आरंभिक डाली होती है. डाली कटिंग एक आर्दश रोपण सामग्री है। यह छोटे आकार की होती है और तथ्य यह है कि अनेक डालियों को मातृ कल्मप को नुकसान पहुंचाए बनाई जा सकती है। डाली की आयु 0.5 से 1 वर्ष तक गारंटी निर्वाह दर होनी चाहिए। शीर्ष भाग को काट दें तथा दो नोड्स और आंरभिक उभरे हिस्से को छोड़ दें। इसके बाद कटिंग को बढ़वार नियामकों में भिगों दें जैसे आई बी ए/एन ए ए 200 पी पी एम् की दर से (20 ग्राम/ली. को 200 लि. तक मिलाया जाए) जो 200 मिली. ग्राम/ली. पानी के या 24 घंटे के लिए रुटैक्स -3 पाउडर के समतुल्य है। कटे हुए किनारों को निर्जलीकरण से रोकने के लिए मोम से बंद कर दें। रोपण से ठीक पहले कटिंग को वैबिस्टिन (0.1%) घोल  में भोगोएँ। कटिंग को सीधा पौलीबैग या उठी हुई क्यारी में इस प्रकार रोपित करे की राइजोमेट्स फुलाव और एक नोड हमेशा मिट्टी की सतह से नीचे रहे। पोलीबैग को आंशिक शेड (75% शेड, ऐग्रोशेड नैट द्वारा प्रदान की जाए) में रखा जाए और इसकी प्रतिदिन सिंचाई की जाए। रोपण के बाद अंकुरण और जड़ में 1-4 माह का समय लगता है।

सफलतम जमे हुए और राइजोम कटिंग को अगले वर्षाकालीन मौसम में लगाया जाए।

पुरी कल्म का दाब कल्म द्वारा संचरण

यह प्रक्रिया समस्त प्रजातियों के लिए उपयुक्त नहीं है और यह मैदानी क्षेत्रों में  स्थिर छितरे हुए खड़े बांसों के लिए उपयुक्त है। यद्यपि इस प्रक्रिया में लगभग 1-२ वर्ष पुरानी कल्म्प से कल्म को चुनना उपयुक्त होता है। इसके बाद कल्म को नीचे से काटते हुए मोड़कर नीचे किया जाता है और लगभग 20 नोड्स रखते हुए कल्म केशीर्ष को हटा देते हैं। डालियों को छांट दिया जाता है सिर्फ आधार पर कुछ डालियों रह जाती है। इस काम में सावधानी बरती जाए ताकि प्रसुप्त कलियों को क्षति न पहुंच पाए। इसके बाद कल्म को विधिवत तैयार मिट्टी से दाब दें और डालियों और पत्तों को मिट्टी से ऊपर बाहर के वातावरण की ओर कर दें। तैयार की गिया मिट्टी की गहराई लगभग 5 से 8 से.मी. होनी चाहिए और इसे मिट्टी से ढक दें और मिट्टी में दबा दें। इसके बाद मृदा को पलवार से कवर कर  दें और नियमित  रूप से इसमें पानी डालें। दबाई गई कल्म की प्रायः जाँच की जाए ताकि एक (री बाउंड) कल्म को जमीन में पुनः तत्काल दबाया जा सेक। मट्टी में दबने के कुछ सप्ताह के बाद नई जड़ और प्ररोह विकसित होने लगते हैं। इसके बाद  इंटरनोड्स को तैयार किये गए खेत में रोपण के लिए लगभग 6-8 माह बाद पृथक कर दिया जाए।

सम्पूर्ण कल्म कटिंग द्वारा संचरण (स्टम्प सहित या रहित)

लगभग २ वर्ष आयु वाली स्वस्थ कल्म का चयन किया जाए और इसे स्टम्प के साथ सतह से अलग किया जाए या कल्म को नीचे से काटा जाए। बेस में एक या दो हिस्सों को अलग कर दिया जाए। क्यारी को उस जगह तैयार किया जाए जहाँ गहराई 15 से 20 से.मी. ही और कल्म को समांतर रखा जाए। यदि यहाँ स्टम्प हिया तो स्टम्प हैड की स्थिति को अपसाईड डाउन करके रखा जाए। यह सलाह दी जाती है कि प्रत्येक इंटरनोड के सैक्सन को देखा जाए साथ ही बेहतर परिणामों के लिए लगभग 1/२ से 1/3 की गहराई होनी चाहिए (स्टम्प के नजदीक सैक्शन काफी गहरे होते हैं) इसके बाद मिट्टी की 5 से 10 से.मी. मोटी परत से ढककर इसे टाइट दबाया जाए। इसके बाद इसे पलवार से ढका जाए और पानी देना शुरू किया जाए। कुछ सप्ताह बाद जड़ और प्ररोह विकसित होते हैं।

व्यापक प्रचुरोदभव (पाउड प्रगुणन)

इस तरीके का इस्तेमाल सामान्यतः छोटी पौद में होता है। सफलतम रूप  में जमने और वृद्धि के लिए बांस प्रव्ध्य (प्रोप्ग्युल) में सुदिढ़ जड़ प्रणाली, राइजोम और प्ररोह होनी चाहिए। राइजोम पृथक्करण द्वारा बांस पौद के प्रगुणन के कारण छोटे आकार के  रोपण सामग्री होती है जिसे व्यापक प्रचुरोदभव का इस्तेमाल किया जाए। 130-40 दिन की आयु में एक बांस पौद से नई कल्म तैयार होती है और राइजोम विकसित होने लगते हैं। चार से  पांच माह की अवधि में इन पादपक ( प्लांटलेट) में  6 कल्म (हिल्लर)विकसित  होती है। इन हिल्लरों को ज्यादा यूनिटों के साथ-साथ प्ररोह, राइजोम और प्रकन्द के छोटे टुकड़ों में बाँटा जाए। दुर्घटनाओं से बचन/कम करने के क्रम में पृथक्करण के बाद पौद को शेड में रखा जाए और नियमित रूप से कुछ दिन पानी दिया जाए और इसके बाद नर्सरी की क्यारी में ले जाया जाए।

यह प्रवर्ध्य  खेत में चार माह के अंदर रोपण योग्य पौद का आकार ले लेते हैं यह इन्हें व्यापक प्रचूरोदभव् द्वारा आगामी प्रगुणित किया जा सकता है। बानिक (1985) ने यह प्रतिवेदित किया कि बी. दुल्डा की पांच से नौ माह प्राणी पौद को इस तकनीक के द्वारा 3-5 गुणा प्रगुणित किया जा सकता है। इन प्रगुणित पौद की निर्वाह दर 90-100% के बीच होती है। इस प्रौद्योगिकी द्वारा अनेक पहचानी गई रोपण स्टॉक उपलब्ध कराई जा सकती है। इस तरीके का लाभ यह है कि एक बार बांस की प्रजाति की पौद उपलब्ध होती है तो इस प्रक्रिया को अनेक वर्षों तक जारी रखा जा सकता है। इसका रखरखाव और इसे एक जगह से दूसरी जगर लाना ले जाना आसान है क्योंकि नियमित राइजोम पृथक्करण के कारण इसका लघु आकार होता है। वानिक (1985) द्वारा यद्यपि, यह सुझाव दिया गया कि इस प्रकार की पौद  प्रगणुन को अधिक लंबे समय तक जारी नहीं रखा जा सकता है। इस तरीके का यह लाभ है कि एक बार बांस की पौद उपलब्ध हो जाती है तो यह प्रक्रिया अनेक वर्षों तक नियमित रह सकती है।

बांस का रोपण


बांस को वाणिज्यिक रोपण को सघन  प्रंबधन सहित बांस रोपण को उसी रूप में स्पष्ट किया गया है जैसे अन्य नगदी फसलों की खेती की वार्षिक पूर्व निर्धारित पैदावार स्तर को बढ़ाने के लिए किया गया है। एक बार बांस रोपण अपने इष्टतम स्तर पर पहुंचने के बाद अर्थात पूर्वोत्तर क्षेत्र (एन ई आर) की प्रचलित जियो- मौसम स्थितयों के तहत सिम्पोडियल बांस के लिए रोपण के सातवें वर्ष में, आयु काफी स्थायी हो जाती है और यह तबतक नियमित रहती है जबतक इसकी आयु लगभग 20 से 25 वर्ष तक पहुंचती  है। इसके बाद यह जरूरी है कि नये रोपण को तैयार करने के लिए सभी रोपण को चरणबद्ध रूप से उखाड़ दिया जाए। इसके अलावा तीन प्रयोजनों के लिए वाणिज्यिक बांस रोपण किया जाए।

  1. सिर्फ प्ररोह की उच्च पैदावार के लिए

  2. सिर्फ पोल्स की  उच्च पैदावार के लिए

  3. प्ररोह और पोल्स की उच्च पैदावार के लिए


इस प्रकार के विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रबधन क्रियाएँ भी अलग-अलग है। कुन्तु यहाँ एन बी एम के अनुसार यह दिशा निर्देश एक ही समय में प्ररोह और पोल्स दोनों की उच्च पैदावार पर अधिक जोर देते हैं।

प्रस्तावित रोपण स्कीम

रोपण स्कीम में प्रजाति के आकार और वृद्धि व्यवहार पर विचार किया जाए। प्रस्तावित रोपण स्कीम (निम्नलिखित) में यह नोट किया जाए कि पंक्तियों के बीच पौधों का अंतराल पौधों की लाइन में अंतराल से ज्यादा होना चाहिए। पंक्तियों के बीच इस विशाल अन्तराल के कारण रखरखाव तथा सस्योत्तर कार्यकलापों के लिए आने-जाने में आसानी होती है।।



















































चयनित प्रजातियाँपादप अन्तराल (मी.)कुल
पंक्ति मेंपंक्तियों के मध्यपादप/हे.
ब्म्बुसा दुडला56333
बम्बूसा बालकोआ56333
डैन्द्रोकैलेमस हैमिलटोनी56333
मैलोकाना बैसीफेरा46417
डैन्द्रोकैलेमस जिगाटेस67238
डैन्द्रोकैलेमस आस्पर67238

निम्नलिखित कुछ विषय हैं जो उत्पादक रोपण को स्थापित करने में काफी सहायक होते हैं:

  1. रोपण स्थल का चयन कनरे में मृदा की गुणवत्ता की जाँच की जाए। बांस को अधिकाशंतः अच्छी तरह मृदा पर उगाया जा सकता है किन्तु डीप-पॉट्स उर्वरक मृदा जो उच्च नमी युक्त और पी एच 5.5 वाली हो उसे प्राथमिक दी जाए।

  2. मृदा में बेहतर जल निकासी काफी महत्वपूर्ण है। इस बात की जाँच की जाए कि भूमि बाढ़ग्रस्त न हो। जलमग्न मृदा में बांस का निष्पादन अच्छा नहीं होता। अंतः इस बात को प्राथमिकता दी जाए कि रोपण कार्य मामूली ढालू भूमि पर करना उचित होगा।

  3. भूमि को सभी तरह के खरपतवार और  आवांछीनीय वनस्पति से साफ किया जाए। सूखे मौसम के दौरान इन्हें जलाना जरूरी होगा।

  4. रोपण के कार्यक्रम की सावधानीपूर्वक योजना बनाई जाए ताकि रोपण छेदों को विशेष दूरी अरु अंतराल पर रखा जा सके।

  5. कार्यकलापों को इस तरह योजनाबद्ध किया जाए जिससे रोपण कार्यक्रम को कम से कम २ सप्ताह पहले प्रदान करता है।

  6. 30 से.मी. ड़ाया मीटर और 30 से.मी. गहराई वाले रोपण छिद्र को प्रत्येक प्रजाति की संस्तुत अंतराल के अनुरूप अंतराल पर रखा जाए। रोपण कार्य को वर्षा के प्रारभ होने साथ ही अप्रैल या मई में शुरू किया जाए। रोपण करते समय 1.5 किग्रा. गोबर को प्रत्येक छिद्र में डालकर ऊपरी मिट्टी के साथ मिश्रित किया जाए।

  7. एक या दो सप्ताह के बाद अनुशंसित उर्वरकों (एन पी के) के एक छोटी मात्रा का अनुप्रयोग रोपण छिद्रों पर किया जाए। उर्वरकों की निर्धारित खुराक निम्न तालिका में दी गई है।









































अजैविक उर्वरक एन पी के २:1:1:प्रति पौधा मिश्रण
हिस्सा (%)वजन  (किलो ग्राम)
यूरिया (एन 46%)33350.07
सपुर फस्फोट (पी.16%)16510.10
पोटाश (के 20.60%)16140.०३
कुल0.20

अजैविक मिश्रण को उपरोक्त दर्शाए गए अनुपात के अनुरूप तैयार किया जाए। पहले वर्ष में सिर्फ 200 ग्राम मिश्रण का अनुपयोग लगभग प्रत्येक पौधे पर किया जाए।

खरपतवार

किसी तरुण पौधे की बढ़वार में खतपतवार तथा कम्पीटिंग प्ररोहण पर बाधा डाल सकती है कि प्रत्येक बांस के झुरमुट के आस-पास खतपतवार का नियन्त्रण रखा जाए तथा साथ ही खरपतवार की बढ़वार को रोका जाए। ऐसा न होने पर तरुण बांसों में अपरिहार्य रूप से खराब जड़ तथा तने का विकास न हो सकेगा। 50 से.मी. व्यास के क्षेत्र को सभी खरपतवारों तथा प्ररोहतण से मुक्त होना चाहिए।

चराई करने वाले पशुओं का नियंत्रण

नाशीजीव की मौजूदगी तथा चरने वाले पशुओं का भलीभांति नियंत्रण होना चाहिए। प्रत्येक उपलब्ध उपायों में चरने वाले पशुओं की रोक होनी चाहिए। छोटे होमस्टेड, बाडा एक हल है परन्तु बड़े पैमाने पर रोपण में यह मंहगा है। इस संबध में सावधानीपूर्वक ध्यान देना महत्वपूर्ण है। रोपण निरीक्षक को रोजाना चक्कर मारने चाहिए तथा कोई नुकसान न हों, कारण जानना चाहिए तथा समस्या से निपटने के लिए उन्मूलन करना चाहिए।

उर्वरक

द्वितीय तथा तृतीय वर्ष में नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटाश के जरूरत को तालिका में नीचे दिया गया है। द्वितीय वर्ष में यह अनुमान है कि प्रति हेक्टर में 307 किग्रा. नाइट्रोजन फास्फोरस तथा पोटाश मिश्रण की आवश्कता है। तीसरे वर्ष से आगे करीब एक टन नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश की आवश्कता होती है। प्रत्येक झुरमुट के इर्दगिर्द समान रूप से खुराक की मात्रा दी जानी चाहिए। विक्षालन से बचने तथा पौधों के बढ़वार को अधिकतम करने के उद्देश्य से सामान्य वर्षा की अवधि में उर्वरकों का एडवांस में उपयोग किया जाना चाहिए।







































२ वर्ष में अकार्बनिक उर्वरकमिश्रणनाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश(किलोग्राम/हे.)थैला प्रति हे. (50 किग्रा./बैग)
नाकापो २:२:1
यूरिया (एन 46:)109502.1
सपुर फस्फोट (पी.16:)156253.1
पोटाश (के 20.46:)42250.8
307100

 







































3 वर्ष से आगे उपयोग  अकार्बनिक उर्वरकमिश्रणनाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश(किलोग्राम/हे.)थैला प्रति हे. (50 किग्रा./बैग)
एनपीके २:२:1
यूरिया (एन 46:)2171004.3
सपुर फस्फोट (पी.16:)313506.3
पोटाश (के 20.46:)5301501.7
100300

पलवार

बांस की वृद्धि को सुधारने में पलवार एक सिद्ध किया हुआ तरीका है। पलवार बांस को मोटे तल्ले के चारों ओर मृदा का तल पर एकरूपता के साथ मृदा की एक परत फैला कर, पत्तियों के कचरे आदि को और अन्य जैविक सामग्री को फैलाकर प्राप्त की जाती है। पलवार खरपतवार वृद्धि को रोकने का एक प्रभावी तरीका है इससे मृदा अच्छी संरक्षित होती है और मृदा की जैविक सामग्री में वृद्धि होती है।

पलवार अच्छी गुणवत्ता वाले बांस प्ररोहों के उत्पादन के लिए बहुत ही आवश्यक है। पलवार नए प्ररोहों को सीधी धूप से बचाती है और उन्हें नम रखती है और इस प्रकार उन्हें एक अधिकतम आकार तक बढ़ने में सहायता करती है और ऐसा बिना किसी कठोरता और उनकी गुणवत्ता खोये बिना होता है।

बांस के कल्म्प की देखभाल


मोटे तल्ले के उपयुक्त रखरखाव से उत्पादकता बढ़ती है और रोपण कमियों का काम भी आसन हो जाता है। मोटे तल्ले का प्रंबधन एक अधिक रखरखाव का कार्य है आंशिक तौर पर कटाई के परिणामस्वरूप होता है। रखरखाव गतिविधि के रूप में इसमें मोटे तल्ले की सघनता को रोकने के लिए अवाछित नाल को हटाना भी सम्मिलित है। यह सघन रूप से गुच्छेदार प्रजातियों के साथ विशेष रूप से आवश्यक है। कमी-कमी मोटे तल्ले में बेहतर प्ररोह उत्पादन के लिए कुछेक नालों को हटाना आवश्यक है। आदर्श रूप से मोटा तल्ला इस प्रकार प्रंबधित होना चाहिए कि प्रत्येक मोटे तल्ले में 9 से 12 नालों से अधिक नालें न हों। नालों को एक समान रूप से अवस्था के आधार पर एक, दो और तीन वर्षों के आधार पर 3-4 नाल द्वारा बांटा जाना चाहिए। सिम्पोडियल बांसों के लिए, चार वर्ष वाली अरु पुरानी सभी नालें कटाई में समय नालों से हटा की जानी चाहिए। सिम्पोडियल बांसों के लिए, चार वर्ष वाली और पुरानी सभी नालें कटाई में समय नालों से हटा दी जानी चाहिए। मेलोकैना बैसिफेरा के मामलें में , नालें दो वर्ष बाद पक जाती है, प्रौढ़  हो जाती है और इसलिए दो वर्ष वाली और पुरानी नालों को हटा दिया जाना चाहिए।

सड़न  के लिए नालों को नियंत्रित करना, प्ररोहों की स्वस्थ वृद्धि और नई नालों की बढ़वार के लिए आवश्यक है कि जिन नालों की कटाई कर दी गई है उनके ठुठों में सड़न पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यदि सड़न स्पष्ट हो तो ठूंठ के आसपास खुदाई और इसे पूरी तरह से हटाने के सलाह दी जाती है। इसी प्रकार सड़ते ठूंठों को हटा दिया जाना चाहिए। फुफुन्दी संदूषित या रोग के लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और एक पादप रोग विशेषज्ञ को संबधित रोग निदान और नियंत्रण उपायों की सलाह के लिए बुलाया जाना चाहिए।

कटाई और संचालन

बांस रोपाई में कटाई प्रचालन वर्षों के मौसम में प्ररोहों के संग्रह में और शुष्क मौसम में बांसों की कटाई में बांटे जाते हैं। कटाई एक श्रम समेकित प्रचालन है और रोपण कर्मियों के साथ अच्छी व्यवस्था बनाने के लिए यह आवश्यक है ताकि कटाई प्रचालन में विलंब न हो। यह विशेष रूप से प्ररोह कटाई के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण  है जो कि वर्षा काल में के महीनों की अल्प अवधि में पूरा किया जाता है।

कल्म कटाई


सिम्पोडियल बांस की कटाई में निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाए।

  1. परिपक्व कल्म की कटाई को रोपण के बाद चौथे वर्ष में आरंभ किया जाए।

  2. कल्म्प एप्रोच में सावधानी रखी जाए। यह जरुरी है कि काफी शोर किया जाए जिससे डरावने सांप जो बांस कल्म्प में अपना बसेरा बना लेते हैं, वे इसमें से निकल जाएँ।

  3. सूखे सर्द मौसम के दौरान सिर्फ कल्म को काटा जाए। सूखे की अवधि के दौरान बांस का स्टार्च तत्व कम हो जाता है। कल्म में कम स्टार्च तत्व बेघक आदि द्वारा आक्रमण के प्रति इसे संवेदनशील बनाता है।

  4. कटाई कार्य चयनित होना चाहिए, सिर्फ परिपक्व कल्म को काटा जाए।

  5. कटिंग कार्यकलाप के इस रूप में योजना बनाई जाए जिससे युवा कलमों को नुकसान न होने पाए।

  6. अधिक पैने औजारों का उपयोग किया जाए। यह सुझाव योग्य है कि कटाई औजारों को ब्लीच का उपयोग करते हुए संक्रमता रहित किया जाए। इससे पौधों में संक्रमण क खतरा कम हो जाता है।

  7. युवा कल्मों को न काटा जाए जब तक कि कल्म्प में संकुचन पके हुए कल्मों को काटने से रोकता है।

  8. प्रत्येक उस कल्म को काटा जाए जो भू-स्तर से प्रथम नोड के ठीक ऊपर स्थित हो। यह जरुरी है ताकि प्रोट्रीयुडिंग इंटरनोड में पानी एकत्र न हो जाए। पानी के एकत्रीकरण से विगलन हो सकता है और यह नाशी जीव को अपने अंडे छोड़ने के लिए आमंत्रित करता है।

  9. कभी भी पूरी कल्म्प को पूरी तरह तब तक न काटा जाए जब तक इस बात की पूरी जाँच न कर ली जाय कि यह रोग द्वारा गंभीर रूप से संवमित है।

  10. वर्षा मौसम के दौरान कल्म्प को न काटा जाए।

  11. कटाई के बाद प्रत्येक कल्म्प को न काटा जाए।


इनको काटने के बाद कल्म पर पलवार लगाई जाए। पलवार के लिए जैविक सामग्री प्रदान करने के लिए कल्म्प के चारों ओर स्वच्छ रूप से लगाया जाए। मानक नियम और प्रजाति के आधार पर नेक कल्म (औसतन) को काटते समय निम्नलिखित का पालन किया जाए:-

  1. 4/5 वर्षों में 3 कल्म प्रति कल्म्प

  2. 5/6 वर्षों में 4 कल्म प्रति कल्म्प

  3. 7 वर्षों में 5 कल्म प्रति कल्म्प


अथवा रोपण के सातवें वर्ष के बाद 1500 और 2000 क्ल्में प्रति हैक्टर

प्ररोह कटाई एवं रखरखाव

नये प्ररोह का उत्पन्न होना रोपण के बाद वाले वर्ष के वर्षा वाले मौसम के दौरान आरंभ हो जाता है। इन नई प्ररोह की कटाई नहीं की जाए। स्वस्थ कल्म्प स्थापित करने को बढ़ावा देने के लिए इन्हें पूरी ऊंचाई तक बढ़ने दिया जाए। प्रति कल्म्प उत्पादित कल्म्प की संख्या हमेशा भिन्न होती है। सिर्फ कुछ कल्म्प में ही एक या दो प्ररोह दिखाई देते हैं। अन्य कल्म्प इससे भी ज्यादा तैयार कर सकते हैं।

खाद्य योग्य युवा प्ररोह की छोटी मात्रा को रोपण के तीसरे वर्ष में अर्थात रोपण के दो मौसम वर्ष एक बाद करा लिया जाए। कुछ प्रजातियों को शूटिंग अन्य के मुकाबले जल्दी आरंभ हो जाती है। बढ़वार के पैटर्न की जानकारी काफी महत्वपूर्ण होती है। यद्यपि यह प्रजाति –दर-प्रजाति तथ स्थान-दर-स्थान अलग-अलग होती है। प्ररोह की कार्रवाई सिर्फ अच्छी तरह स्थापित कल्म्प से की जाए। प्ररोह की कटाई के लिए कुछ नियमों का पालन किया जाए।

  1. प्रथम बारिश के आरंभ से कल्म के अलावा कल्म्प के चारों ओर खाली जमीन पर बम्प या फुलाव की जाँच की जाए।

  2. प्रत्येक प्रजाति के शूटिंग मौसम के बारे में जानकारी होनी चाहिए। कुछ प्रजातियों में प्ररोह अप्रैल या मई के प्रारभ में होते होते हैं, जबकि अन्य प्ररोह कई माह बाद करते हैं।

  3. इस बात को ध्यान में रखा जाना जाए कि शूटिंग सामान्यतः एक निश्चित समय के बाद होती है। अतः यह जरुरी है कि नई प्ररोह के कल्म्प की जाँच की जाए।

  4. यह देखा जाए की कल्म्प की चारों ओर पलवार अच्छी तरह लगी है। पलवार से नए प्ररोह में नमी बनी रहती है और इनकी गुणवत्ता रहती है।

  5. समय बहुत महत्वपूर्ण है। प्ररोह जब जमीन से दिखाई देने लगे तब इनको एक से दो सप्ताह के बाद काटा जाए। ज्यादा विलम्ब से कांटने पर प्ररोह सख्त हो जाते हैं और खाद्य की गुणवत्ता भी निम्न स्तर की हो जाती है। अभी भी बांस की कुछ प्रजातियाँ (डी.ओल्डामी) ऐसी हैं जिन्हें कच्चा खाया जा सकता है किन्तु जब यह एक बार मृदा से बाहर आ जाते हैं इनका स्वाद कड़वा हो जाता है। अतः इन्हें हमेशा मृदा से ढककर उचित प्रबंधन के साथ रखा जाए और सही समय पर मृदा हटाकर काटा जाए।

  6. एक नया प्ररोह 10 से 20 सें.मी. लंबे होते हैं जो प्रजाति पर निर्भर करते हैं।

  7. युवा प्ररोह को पैने कटाई ब्लेड से काटा जाए (विशाल छैनी जैसी) मृदा से लगभग 10 से 15 से.मी. नीचे नरम भाग में कट लगाये जाएँ जहाँ प्ररोह सख्त राइजोम से उत्पन्न होते हैं।

  8. उन प्ररोह को न काटा जाए जो औसत खाद्य प्ररोह आकार से बाहर उगे हुए हों। यह रेशेदर, सख्त और गैर—खाद्य वाले होते हैं और इन्हें कल्म में उगाया जा सकता है।

  9. प्ररोह की कटाई के बाद नए प्ररोह के उत्पन्न होने के लिए कल्म्प की समय-समय पर जांच की जाए।  यह दूसरे चक्र के प्ररोह के उत्पन्न होने के असामान्य नहीं है विशेष रूप से अधिक वर्षा  और तीव्र वृद्धि में यह असामान्य नहीं है।


10.  कल्म्प के सभी प्ररोह न काटे जाएं। हमेशा यह देखा जाए कि प्ररोह को कल्म्प में उगने दिया जाए।।

काटे गये प्ररोह का सावधानीपूर्वक रखरखाव किया जाए। कटाई के बाद प्रत्येक प्रजाति के प्ररोह की छंटाई उसके आकार के अनुसार की जाए और सब्जी के रूप में उपयोग करने के इए लिए पारम्परिक तरीके का इस्तेमाल करते हुए बंडल बनाए जाएँ। काटे गये प्ररोह ठंडे स्थान पर भंडारण करके रखा जाए और इसे सीधे प्रकाश और आद्रता से दूर रखा जाए। इससे उत्पाद की स्वजीवन आयु बढ़ जाती है। यदि यहाँ बांस रोपण की लंबी मिश्रित प्रजातियाँ हैं तो प्ररोह कटाई के मापदंड निम्नलिखित होंगे:











































































प्ररोह
आकलित पैदावार (टन/वर्ष)बी.बी.डी.डी.एन.जी.
टूल्डाबालकोआस्परहैमिलटोनीबैसिफेराजिजैन्टस
औसत वनज (किलोग्राम) प्ररोह1.523.51.80.533.5
काटे गये/कल्म्प की औसत संख्या444444
औसत किलोग्राम/कल्म्प प्रक्षेपित68147.2214
अधिकतम पैदावार (टन प्रति हे.)233213
प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष औसत पैदावार2.67

आकलित पैदावार

































अधिकतम पैदावार के अनुरूप वार्षिक पैदावारप्ररोहटन/हे.
तीन वर्ष100.27
चार वर्ष250.67
पांच वर्ष501.३४
छः वर्ष75२.00
सात वर्ष से आगे100२.67

बांस के नाशीजीव तथा रोग एवं उनका नियंत्रण


बांस को क्षति पहुंचाने वाले अनेक प्रकार के कीट होते हैं जो पेड़-पौधों पर निर्भर कटे हैं। इन कीटों के आक्रमण से बांस पौधों की शक्ति और उत्पादकता में कमी आ जाती है। बहुत से कीट ऐसे होते हैं जिनके मुंह में बहुत पैन भाग होते हैं, ये पत्तों, टहनियों, टनों, कोंपलों, जड़ों और राइजोम को खा जाते हैं। ये कीट बॉस को चार तरह से क्षति पहूँचाते हैं:

  1. पौधे के तरल पदार्थ को समाप्त करना।

  2. अंडे देकर यांत्रिक क्षति पहुंचाना

  3. पौधे में छेद करके विषैले तत्व भर देना

  4. रोग संक्रमण। इन क्षतियों के फलस्वरूप नई कोपलों और टहनियों का विकास  रुक जाता है और वे मुरझा जाती है और पौधा सुख भी जाता है।


बांस का रोग

इस रोग और विकार से सबंधित कुल 440 फफूंद, दो विषाणु, एक फाइटोप्लाज्मा और एक बैक्टीरियम की तरह के जीव का पता लगा है। गंभीर तरह के थोड़ें से रोगों की पहचान हुई है, जिनसे बांस के नाल उत्पादन और इसके डंडों की उत्पादकता प्रभावित होती है। बांस के तनों (डंडों) को हानि पहुँचाने वाले रोगों में पूर्ण रोग सबसे अधिक होता है और ऐसे लगभग 200 फफूंदों के कारण होते हैं।  जो रोग ज्यादा भयंकर माने जाते हैं, उनमें कल्म ब्लाईट है जो सैरोकैलेडियम ओरीजी से होता है, उभरते हुए और विकसित होने वाली नालों (तनों) कस सड़न रोग, जो फ्यूजेरियम प्रजाति के कारण होता है, विचेज्ब्रूम बैलैंसिया के कारण, छोटी पत्ती रोग शुष्क क्षेत्रों में फाइटोप्लाकज्मा के कारण, कल्म मौजेक बांस के मैजेक विषाणु से और कल्म रतुवा रोग स्टेटोस्ट्रेटम  कोर्तिसीआइउस व टॉप बलाईट के कारण होता है।

संक्रमण रोगों के अलावा बांस नालों के उत्पादन कोप्रभावित करने वाले अजैविक घटकों के कारण होने वाले गैर-संक्रामक रोगों की भूमिका भी प्रखुख होती है।

बांस के मुख्य नाशीजीव और रोग डम्पिंग ऑफ़ रोग

कारक: राइजोक्टोनिया सोलैनी, फ्यूजेरियम मोनिलीफ़ौकी और एफ. ऑक्सी स्पोरम

लक्षण: डम्पिंग ऑफ़ रोग  बांस की पौधशालाओं में आमतौर से होता है जिससे पौधों को बहुत नुकसान हो जाता है। बुवाई के 7 से 12 दिन बाद यह बीमारी क्योंरियों में शुरू हो जाती है। पौधा उगने से पहले डम्पिंग ऑफ़ रोग अच्छे खासे बीज को सड़ा देता है और पौधा उगने के बाद यह रोग मिट्टी स्तर के नजदीक उगने वाले अंकुरों को मुरझा देता और उनमें भूरापन आ जाता है। यह रोग सारी क्यारियों में लग जाता है जिसको फलस्वरूप अंकुरण समाप्त हो जाता है।

नियंत्रण: डम्पिंग ऑफ़ रोग को नियंत्रण करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जिन क्यारियों में बांस बोये हों उन्हें फफूंद लगने से बचाया जाए। डम्पिंग ऑफ़ रोग नियन्त्रण पौधशाला की उचित तकनीकों को अपनाकर ही किया  जा सकता  है। क्यारियों में अधिक पानी न दिया जाए और छाया न पड़ने दी जाए। क्यारियों में धूप का उचित प्रंबध होना चाहिए और बैविस्टिन जैसी फफूंदनाशी दवाओं का प्रयोग किया जाए जिससे इस रोग के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

स्मट

लक्षण: फफूंद का प्रकोप छोटे-छोटे भ्रूणों पर होता है और अकसर देखा गया है कि बीज में काली फफूंद पूरी तरह से लग जाती है और वह समाप्त होने लगता है, जिससे स्मट रोग हो जाता है। जो बीज संवमित नहीं उन्हीं में परिपक्कवता आती है, मगर उनमें भी  फंगल स्पोर लग जाते हैं। ऐसे संवमित बीजों से स्वस्थ पौधे उत्पन्न नहीं होते ।

नियंत्रण : रोग रोधी प्रजाति के पौधे ही लगाने और बीज का भी उपचार करने से स्मट का नियत्रण संभव है। स्मट फफूंद के प्रभावी नियंत्रण के लिए कार्बोविक्सन, थियाबेंडैजोल, इटैकोनैजोल और अन्य तरह की फफूंदनाशी दवाओं का प्रयोग किया जाए।

हरे बांस का कैटरपिलर (लौडोन्टा डिस्पर)

नियंत्रण : गड्ढा खोदकर या खेती की दूसरी विधि द्वारा शीतकालीन कीटों को मिट्टी को नीचे से दबा देना चाहिए और इन्हें खाने वाले परजीवियों, मकड़ियों  और पक्षियों से संरक्षित किया जाए।

ग्रीन स्लम वॉर्म (पैरासा वाईकलर)

नियंत्रण : जुताई करने के समय कृमिकोष को मिट्टी में दबा दिया जाए और उसे समाप्त किया जाए, पैरासाईटौयड को निकाल दिया जाए, जहाँ जरूरी हो वहाँ रासायनिक कीटनासी दवाओं का छिड़काव किया जाए।

ब्लैक मिल्ड्यू

लक्षण: परिपक्व पत्तियों की ऊपरी सतह पर काले रगं की चूर्णक फफूंद दिखाई देती है जैसे ही इसका संक्रमण बढ़ता है तो पत्ती की ऊपरी सतह में काले रंग की फफूंद की गहरी परत जम जाती है और इसका संक्रमण पत्ती के डंठलों और छोटी-छोटी शाखाओं तक फैल जाता है। इस  तीव्र संक्रमण से पत्तियों में  प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित हो जाती है।

नियंत्रण : पौधे की कैनोपी खुली रखने से संक्रमण रुक जाता है।

सुटी मॉल्ड

लक्षण: इसका संक्रमण अकसर पत्तियों की ऊपरी सतह पर स्पार्ज के रूप में दिखाई देता है, जो हाईपीज का एक संजाल बन जाता है अथवा पतले, एफ्युज काली चूर्णक फफूंद से ढक जाता है। यह रोग शाखाओं पर भी जो जाता है। प्रायः बांस के एफिड सूटी मॉल्ड के साथ मिलते है।

नियत्रंण: एफिडो का नियंत्रण मुख्य उपचार है। इसके लिए इसके प्राकृतिक शत्रु जैसे लेडी बग बीटल, परजीवी आदि।

बांस का चूर्णक भृंग (डायनोडेरस मिनट्स)

नियंत्रण : प्रतिरोधी बांस का चयन जैसे कडुवा बांस। पतझड़ से शीतकाल तक बांस को काटने का समय चुनना चाहिये जब उसमें स्टार्च और शर्करा की मात्रा कम होती है, बांस को शर्करा स्टार्च मुक्त करने के लिए उसे पानी में रख देना और बांस को कीटनाशी दवाओं से उपचारित करना चाहिए।

बांस की परिलक्षण तकनीकें


इमारती लकड़ी आदि की तुलना में बांस की मजबूती (मियाद) कम समय तक बनी रहती है। यदि बांस को उपचारित न किया गया हो और वातावरण के अनुसार ही इसका उपयोग किया गया हो तो इसका तेजी से जैविक क्षरण होने लगता है। इसका कारण यह है कि इसमें बड़ी मात्रा में हेमिसेलुलोज, स्टार्च होता है तथा इसमें नमी लग जाती है जो जैविक रूप से नुकसान पहुँचाने वाले अभिकार्कों के लिए पौष्टिक तत्वों आदि के रूप में कार्य करती है। यसे सभी जैविक क्षति पहुँचाने वाले घटकों जैसे व्हाईट रॉट, स्टेन फफूंद के समूह और कीट जैसे बौरर व दीमक आदि बांस पर आक्रमण कर देते हैं और इसे तेजी से नष्ट कर देते हैं। बांस के उपयोग के समय और भंडारण के दौरान उपचारित स्थितियों में न रखने से इन जैविक अभिकार्कों से 40% से अधिक क्षति होने का आकलन किया गया है।

बांस की मियाद को परिरक्षरण के दौरान उचित विधियों से रसायनों के प्रयोग से अथवा इनके  बिना बढ़ाया जा सकता है। फिर भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से और खेत के अनुभव यह सिद्ध हुआ है कि परिरक्षण विधियों में रसायनों के प्रयोग करने से बांस की मियाद बिना रसायनों के प्रयोग की तुलना में कई गुना बढ़ जाती है। कटे हुए बांस के डंडों की मियाद बढ़ाने के लिए प्रारंभिक उपायों में परिरक्षण विधियों को भंडारण के समय शुरू से ही अपनाया जाना चाहिए, कटे हुए डंडों का उचित भंडारण एक मुख्य पहलू है, क्योंकिइसमें थोड़ी सी भी ढील होने पर भारी क्षति हो सकती है। जब बांस का भंडारण किया जाता है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डंडों में ज्यादा नमी न हो, वे वर्षा के कारण या जमीन में पानी गिरने से गीले न हों, जमीन पर इन्हें खुलें में रखने से उनपर फफूंद, कीड़े आदि लग जाते हैं। इसके अलावा धूप में पड़े रहने से इनमें दरारें पड़ जाती है, इसलिए बांस के डंडों को 6 से 12 सप्ताह तक यदि रखा जाना हो तो  इन्हें बंद स्थान में भंडारित किया जाना चाहिए जो मौसम पर निर्भर करता है।

परिरक्षण के उपाय: परिरक्षण की कई तरह की तकनीकें हैं, पारम्परिक और रासायनिक विधियाँ भी हैं ।

पारम्परिक विधियाँ

बांस उगाए जाने वाले सभी देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में कई तरह की पारम्परिक परिरक्षण विधियाँ प्रचलित है। अनुभवी ग्रामीण लोग रासायनिक उपायों के बिना इन विधियों को आसानी से अपनाते हैं और इसमें किसी तकनीकी उपकरण की आवश्कता भीं नहीं होती, इनमें लागत भी बहुत कम आती है।

  1. बांस का स्व-उपचार: इस प्रकिया में चयनित बांसों की उसके आधार पर काटा जाता है और  उसे कुछ दिनों तक उसी झुरमुट में छोड़ दिया जाता अहि जिससे यह झुकता नहीं है और सीधा खड़ा रहता है। ऐसे कटे हुए बांस की निचली स्तर जमीन को नहीं छूती और किसी पत्थर आदि पर टिकी होती है। जबा पत्तियाँ, टहनियाँ आदि पीली व भूरी पड़ जाती है, तो तभी इन बांसों को वहाँ से हटाया जाता है और संग्रहण  के लिए ले जाया जाता है। यह ध्यान रखने की बात है कि झुरमुट से बांस को हटाते समय इसका भार कम हो जाता है क्योंकि पत्तियों द्वारा लगातार उनका पानी सोख लिया जाता है और नमी की मात्रा भी कम हो जाती है तथा स्टार्च की मात्रा भी घट जाती है।

  2. पानी का उपचार- यह एक आम प्रथा है। नए कटे हुए कल्म 1 से 3 महीने के लिए किसी ठहरे पानी अथवा बहते पानी में रखें जाते हैं। यह विधि अधिक कारगर सिद्ध होती है अगर इसकी नोडल दीवारें फटी हुईं हो। फिर भी अगर कल्मों को लंबे समय तक पानी में रखा जाए तो दुर्गन्ध आनी शुरू हो जाती है और दागी हो जाते हैं। यह उपाया छिद्रकों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है, और फुंगी से रोकता है। कल्म और स्लीवर्स जो हथकरघा कार्यों में प्रयोग होते हैं उनको अच्छे परिणाम पाने के लिए 30 से 60 मिनट तक उबलते पानी में उबाला जाता है।

  3. धूएँ से उपचार: एशिया के कुछ बांस उगाने वाले देशों में धूम्र उपचार की एक पारम्परिक विधि भी प्रचलन में है, जिसमें बांस के डंडों को घर में आग जलने वाले स्थान के ऊपर रखा जाता है। कुछ दिनों तक ऐसा किया जाने से बांस से नमी काफी हद तक समाप्त हो जाती है और उनमें जैविक क्षति होने की संभावना नहीं होती। मगर ऐसा करने से बांस का रगं भूरा या काला पड़ जाता है, जो समय और तापक्रम पर निर्भर करता  है, जिससे फफूंद के स्पोर ओर कीड़ा नहीं लग पाता है।


रासायनिक उपचार की विधियाँ

कुछ समय के लिए अस्थाई संरक्षण

रासायनिक उपचार की विभिन्न प्रकार की विधियाँ होती है। कुछ विधियों में मंहगें उपकरणों की आवश्यकता होती है जिसमें बिजली भी शामिल है और कुछ रसायनों की जरूरत होती है जैसे सीसीए बहुत ही जहरीले होते हैं और इनके लिए बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्कता होती है। किन्तु कुछ विधियाँ ऐसे भी है जिनमें रसायनों के लिए ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है ये अधिक जहरीले भी नहीं होते, इनकी चर्चा यहाँ की जा रही है-

  1. रसायनों का छिड़काव- विधि में रसायनों/कीटनाशी को दवाओं को मिलाया जाता है और उन्हें पानी में घोलकर कटे हुए बांसों पर छिड़काव किया जाता है अथवा बांसों को हो घोल में लगभग 30 मिनट तक रख दिया जाता है। यह घोल विभिन्न प्रकार के रसायनों से बनाया जाता है। किन्तु ग्रामीण वातावरण की दृष्टि  से और ऐसे रसायनों का इस्तेमाल करने की विधि की जानकारी होनी चाहिए। 6-8% सांद्रता के साथ बोरेक्स व बोरिक एसिड (1:5;1) 5% सांद्रता के साथ छिड़काव की संस्तुति की जाती है। कटे हुए बांस सीधे जमीन को नहीं छूने चाहिए और वर्षा में भी नहीं भींगने चाहिए।

  2. डुबोना (डिपिंग)- इस प्रक्रिया में पोल्स या स्लीवर्स का उपयोग हस्तशिल्प उत्पादों या फर्नीचर , मैट्स आदि बनाने के लिए सिफारिश की जाती है क्योंकि यह प्रक्रिया पिछली प्रक्रिया से ज्यादा प्रभावशाली है। यदि स्लीवर/स्ट्रिप्स का उपयोग किया जाता है तो इन्हें डुबोने से पहले एक साथ बंडल बना दिया जाएं।घोल को बोरैक्स: बोररिक एसिड से 1:5:1 की अनुपात से बनाया जाए साथ में लगभग 5% संकेन्द्रण होना चाहिए। डुबोने (डिपिंग) का समय जरूरत और उपयोग पर निर्भर करता है। यद्यपि यह एक मान नियम है कि 30 मिनट  डुबोने (डिपिंग) का समय कुछ सुरक्षा प्रदान करता है।


स्थायी सुरक्षा या लंबी सेवा

  1. स्टिपिंग या बट-एंड उपचार- इस प्रक्रिया में अपेक्षित लंबाई वाले ताजे कटे हए बांस को लगभग 1% संकेन्द्रण के बोरिक एसिड बोरेक्स (50:50) के घोल में बट-एंड्स के साथ डुबोया जाता है। निमज्जन घोल को बट-एंड के लगभग 30 सें.मी. की लम्बाई तक किया जाए। उपचार को 8 से 12 दिन तक किया जाए। इस प्रक्रिया में अवसादन से बचने के लिए घोल की क्रियाशीलता की मांग प्रतिदिन होती है और अपटेक हानि की पूर्ति के लिए बोरिक एसिड बोरैक्स मिश्रण की थोड़ी मात्रा भी शामिल की जाती है। यह उपचार बागवानी फसलों जैसे केला आदि की फैसिंग/सहायता में उपयोग के लिए उचित उपचार है क्योंकि इसका किनारा सतह से जुड़ा होता है।

  2. संचरण/सोकिंग प्रक्रिया- संचरण प्रक्रिया में, ताजे कोट हुए कल्म जो एम सीझ50% है उन्हें 1-२ दिन के लिए संरक्षण घोल में भिंगोकर रखा जाता है। इसके बाद 10-15 दिन के लिए शेड में ढेर लगाकर रखा जाता है। सूखे बांस कल्म के उपचार के लिए इसे पानी तब तक भिंगोया जाए जब तक एम सी लगभग 50% तक न पंहुचे। इस प्रक्रिया में बांस की डंडियों को भी उपचारित किया जा सकता है। प्रभावशाली व्यापन के लिए कल्म के निमज्जन (इमसर्न) से पहले प्रत्येक इंटरनोड में दो विपरीत छिद्र किये जाएं। परिरक्षक तत्व के ठंडे घोल में साधारण रूप से डुबोकर फास्टन करने के क्रम में घोल को गर्म किया जा सकता है। इस तरह के मामले में प्रक्रिया को पूरा करने की कुल अवधि 3 घंटे होती है।

  3. गर्म और ठंडी प्रक्रिया- इस प्रक्रिया का इस्तेमाल विशेष रूप से पोल्स के रूप में उपयोग की जाने वाली कल्म के लिए किया जाए साथ ही अंतिम कट को भूमिगत रखा जाए या पोल्स स्ट्रिप दोनों की फैसिंग रूप में इस्तेमाल में लाया जाए। बांस कल्म को ड्रम को क्रिअसोट तेल और डीजल आयल मिश्रण (1;1) से भरा जाए। २-3 ड्रम को सीधे गर्म किया जाए इसके बाद घोल को पूरी रात ठंडा होने दें। इससे व्यापन में कुछ वृद्धि होती है।

  4. इंटरनोड इंजैक्शन- शुष्क बांस पोल्स के लिए भी क्रिअसोट और डीजल ईंधन का समानुपात मिश्रण इंटरनोड में ड्रिलिंग छेदों द्वारा इंजैक्शन किया जा सकता है। आयल सम्पूर्ण क्रास स्ट्रक्चरल क्षेत्र की आंतरिक परत को शामिल करता है। इंजैक्शन के बाद छेद को सील किया जा सकता है और इसे सप्ताह से पहले उपयोग करने के लिए दो दिनों में वितरण के लिए बेहतर रूप में रोल किया जा सकता है।


ग्राम स्तर पर बांस का प्राथमिक प्रसंस्करण इकाई


प्राथमिक प्रसंकरण की अनिवार्यता का तात्पर्य यह है की कटाई के बाद बांस की अन्य रूप में परिवर्तन किया जाए। इसमें क्रास कटिंग, स्पलिंट, गाँठ को हटाना आदि शामिल है चाहे यह हस्तशिल्प उत्पादों, फर्नीचर और अन्य उत्पाद के लिए हो या विशाल बांस प्रसंकरण यूनिटों की जरूरतों को पूरा करने लिए हो। प्राथमिक प्रसंकरण कार्य को या तो स्थानीय रूप से उपलब्ध औजारों जैसे डाओ या बिजली या हाथ द्वारा चालित मशीनों का इस्तेमाल करते हुए किया जा सकता है। पैदावार उत्पादकता बढ़ाने ओर समान रूपी आकार बनाये रखने के लिए मशीनों के उपयोग की सलाह दी जाती है। बांस के इस प्राथमिक प्रसंकरण को कच्चे माल अर्थात बांस के स्त्रोत के नजदीक ग्राम स्तर पर स्थापित किया जा सकता है। इन यूनिटों को या तो ग्रामीण उद्यमियों, स्वयंसेवी दलों, गैर-सरकारी संगठनों, पी आर आई या क्लस्टर अवधारणा के आधार पर सामुदायिक तौर पर स्थापित किया जा सकता है। प्राथमिक प्रसंकरण यूनिटों सिर्फ आय रोजगार सृजन में सहायक नहीं होगी बल्कि इससे ग्रामीण औद्योगिकरण की शुरुआत होगी। इसका फलस्वरूप ग्रामीण जनता निम्नलिखित तरीकों से स्वयं अपना विकास करने में सक्षम होगी-

- संसाधनों पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी जिसे इन्होंने स्वयं बनाया है-

- सामूहिक दल के रूप में काम करने से स्वावलम्बन हासिल होगा और वित्तीय सहायता मिलेगी।

- स्वंतत्रता का अहसास होगा और अपना संगठन बनाने तथा व्यवस्थित करने की जिम्मेवारी महसूस होगी।

- उद्योग/उपभोक्त्ता के साथ सशक्त सम्पर्क विकसित होंगे।

- सहयोग की भावना को प्रोत्साहन मिलेगा जो “आपरेशन फ्लड” के समान रूपी होगा जो की भारतीय स्थितियों के अंतर्गत एक सफलता मॉडल है। इस प्रकार के मॉडल सम्भवतः इस देश में दोहराते रहेंगे जिससे समुदाय के रूप में बांस में अपनाने पर दुग्ध से ज्यादा प्रबल संभावनाएँ हैं।

प्राथमिक प्रसंकरण के तहत विभिन्न कार्यकलापों को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है_

  1. क्रास कटिंग- क्रास कटिंग का तात्पर्य पूर्ण बांस कल्म को अपेक्षित लंबाई के अनुलम्ब रूप में आकार दिया जाता है। इसे या तो बिजली से क्रास कटिंग या हाथ द्वारा हैक्सा, डेओं आदि के द्वारा किया जा सकता है।

  2. स्पिलिटंग- इस क्रास कट पोल्स को अपेक्षित चौड़ाई की स्ट्रिप बनाने में सीधा स्पिलिट किया जाता है। इस कार्य को विद्युत चालित स्पिलिटंग मशीन या हाथ से चलने वाली स्पिलिटंग मशीन के इस्तेमाल से किया जा सकता है।

  3. अंदर की गांठों को हटाना- अंदर की अवांछनीय गांठों को या तो आंतरिक नौट रिमूवल मशीन या दो तरफ वाली प्लानर या हाथ द्वारा चालित उपकरण के उपयोग द्वारा किया जा सकता है।

  4. स्लाईसिंग- स्पिलिटंग के बाद बांस की स्ट्रिप और आंतरिक गाठों को फिर से हटाया जाता है तथा अपेक्षित आकार तक अधिक पतला किया जाता है (पतलेपन की सीमा के साथ) इस कार्य को बिजली या हाथ द्वारा चालित स्लाईसिंग मशीन से किया जाता है। स्ट्रिप की स्लाईसिंग के बाद 0.6 मि.मी. से 1.5 मि.मी.  तक की मोटाई को सामान्यतः स्लीवर कहा जाता है। इन स्लीवर के विभिन्न उपयोग है अर्थात मैट बनाने, स्टिक बनाने, हस्तशिल्प और फर्नीचर आदि बनाने में उपयोग किया जाता है।

  5. स्टिक बनाने वाली मशीन- विभिन्न डायामीटर की गोल बांस स्टिक और विभिन्न प्रयोजनों हेतु अगरबत्ती, पुष्प स्टिक, टूथ-पिंक्स, माचिस की तिल्ली, बुनाई आदि के लिए विभिन्न आकार की आयाताकार बांस स्टिक बनाने की मशीन है। इन स्टिकों को या तो बिजली या हाथ द्वारा चालित मशीनों से बनाया जाता है। किन्तु तकनीकों कारणों से हाथ से चलने वाले मशीन सिर्फ बिना गाँठ वाली आयाताकार स्टिक बनाती है।


बांस क्लस्टर विस्तार मॉडल


क्लस्टर -1

क) स्टिक/मैट

ख) क्लस्टर संग्रहण केंद्र (एनजीओ)

ग) अगरबत्ती बनाने वाली यूनिट

क्लस्टर -2

क) स्टिक/मैट

क्लस्टर -3

क) स्टिक/मैट

ख) बांस मैट बोर्ड यूनिट

ग) प्रमुख बाजार

प्रत्येक क्लस्टर में परिवार है या कम या ज्यादा हो सकते हैं और यह एक निर्धारित परिधि में लाजिस्टिकल फायदे के साथ इस प्रकार का पर्याप्त क्लस्टर होगा ताकि संग्रहण केंद्र (कलैक्शन सेंटर) ट्रक में विक्रय हेतु भरने के लिए पर्याप्त उत्पाद का एकत्रण कर सकें, यह साप्ताहिक आधार पर है। मुख्य संग्रहण केंद्र को क्षेत्र में प्रमुख गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा परिचालित तथा चलाया जाए।

इस मॉडल की अवधारणा के साथ ग्रामवासी एक दल की भावना के रूप में काम करेंगे और प्रतिस्पर्धा भावना के साथ आर्थिक स्केल यूनिट के तौर पे एकलपरिवार स्तर पर थोड़ा योगदान देंगे। इस प्रकार के मॉडल देश में अन्य क्षेत्रों जैसे कपड़ा उद्योग, ऑटोमोबाइल्स स्पेयर पार्ट्स आदि में बहुत अच्छा काम कर रहे है।

उपरोक्त के अलावा एक प्रमुख एन जी ओ या स्वयं समुदाय एक सामान्य सुविधाजनक केंद्र (सी एफ सी) की अवधारणा को अपना सकते हैं। इस मॉडल के तहत प्रमुख एन जी ओ या समुदाय एक सी एफ सी  को कार्यान्वित कर सकते हैं। इस मॉडल की खरीद तथा अपेक्षित क्षेत्र में शेड बनाने के लिए निवेश करेंगे। दस्तकार/ग्रामवासी एक नाममात्र के कनवर्जन शुल्क का भुगतान करते हुए विभिन्न आधे बने हुए उत्पादों के रूपांतरण के लिए अपने बांस पोल्स लाएंगे या निवेशक द्वारा ग्रामवासियों/वन विभाग से बांस खरीदे जाएंगे और उन्हें आधे बने हुए उत्पादों जैसे स्लीवर्स आदि में रूपांतरित किया जाएगा और मैट/बास्केट बनाने के लिए इन्हें इस्तकारों/ग्रामवासियों में बाँटा जाएगा और किये गये काम का भुगतान करते हए समय-समय पर इन्हें एकत्र किया जाएगा और आगामी विक्रय के लिए भंडारण डिपों में इन्हें भंडारित करके रखा जाएगा।

अनेक बांस आधारित उत्पादों को हमारे दस्तकारों द्वारा बनाया जा रहा है वास्तव में स्थानीय विशाल मांग वाले उत्पाद जैसे सब्जी और फल ले जाने की टोकरी, चाय पत्ती की टोकरी, चिक्स आदि शामिल है। किन्तु इन सभी को दस्तकार द्वारा सिंगल हैडिंग रूप में बनाया जा रहा है जो पोल्स की कटाई से इसे अपने घर में लाते हैं और स्लाईसिंग के लिए आंतरिक गांठ निकालने के लिए स्पिलिटिंग की क्रास कटिंग करते हैं और फिर इसे बनाते हैं।

बांस बोर्ड प्रसंकरण यूनिट

क) फिनिश्ड उत्पाद

ख) बाजार

ग) हस्तशिल्प की तरफ

घ) मैट/परदे

वन विभाग/किसान

क) बांस

ख) सहकारिता सोसायटी/एनजीओ/एसएसजी तथा क्रम भंडारण एवं आपूर्ति केंद्र यूनिट

ग) मैट/परदे

घ) स्लीवर

ङ) दस्तकार सोसायटी/कम्युनिटी के सदस्य/गृहणियां

यदि ऐसा स्त्रोत आस-पास उपलब्ध हो जहाँ स्लीवर को दस्तकारों को दिया जा सके तो यह अपने दस्तकारी/बुनाई क्षेत्र पर ज्यादा उत्पाद तैयार करेंगे जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी। इसके आगे यदि दो-तीन परिवार समानरूपी टोकरी बनाने में शामिल होते हैं, इसी में अलग-अलग कार्य करते हैं जसे एक परिवार स्लीवर की पॉलिशिंग में लग जाए, अन्य दो परिवार मुख्य टोकरी के खुले हुए सिरे की फिनिशिंग में लग जाएँ तो यह कार्य आधुनिक फैक्टरी में असेम्बली लाईन के तौर पर होगा और पैदावार के कई गुना वृद्धि होगी। इस प्रकार बाजार में उत्पाद लागत  प्रतिस्पर्धा बनेगा और दस्तकारों की आय मुख्य रूप से उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी ज्यादा मात्रा में वृद्धि से बढ़ेगी क्योंकि इसका मूल्य कम होगा।

हार्मोन घोल तैयार करना


आई बी ए (इंडोले ब्यूट्रिक एसिड) – जड़ उत्पन्न  करने वाले हार्मोन

एन ए ए (नैप्थील एक्किट एसिड) – प्ररोह  उत्पन्न  करने वाले हार्मोन

बैविस्टिन- फफूंदनाशक

बोरिक एसिड – एक रसायन जो रूटिंग को सक्रिय करता है

पी पी एम (पार्ट पर मिलियन) 1 मिलियन- 10 लाख

200 पी पी एम, आई बी ए या एन ए ए या बोरिक एसिड घोल तैयार  करना

  1. मापन पैमाने की मदद से 20 ग्राम आई बी ए/एन ए ए.बोरिक एसिड लें और इसे साफ मग में डालें, इसमें 1/२ लीटर डीस्टिल्ड वाटर मिलाएं (इसे आउटलेट्स, बैटरी रिचाचे दूकान आदि से खरीद सकते हैं)

  2. इस तब तक जब तक यह पानी में पूरी तरह घुल न जाए, इसमें 200 लीटर तक डीस्टिल्ड वाटर मिलाएं।

  3. यह मिश्रण 1000 कटिंग पर 200 मि.ली. प्रति दो नोडीड दर से कटिंग में इस्तेमाल के लिए तैयार है। यद्यपि बोरिक एसिड का इस्तेमाल करते समय मात्रा ज्यादा होनी चाहिए क्योंकि इस घोल से इंटरनोड पूरी तरह भर जाने चाहिए।


1 प्रतिशत बैविस्टिन घोल तैयार करना-

मापक पैंमाने की मदद से 10 ग्राम बैविस्टिन लें या दो चम्मच लें और 1 लीटर साफ पानी में इसे मिला दें।

राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत पहचानी गई प्रजातियाँ एवं मुख्य विवरणी





























































































































डैन्द्रो कालैमसबम्बुसा बम्बोसबम्बुसा दुडलाबम्बुसा बालकोडैन्द्रो कालैमस हैमिलटोनीडैन्द्रो कालैमस बसिफेरामैलोकोन

बैसिफेरा
डैन्द्रो कालैमस

गिजान्ट्स
डैन्द्रो कालैमस  आस्पर
अधिकतम (मी.203028302520352035
उंचाई  की रेंज10 से 1520 से 2516 से 235 से 3012 से 2510 से 1520 से 3015 से 2020 से 30
औसत ऊंचाई132320181913221522
ड़ायामीटर रेजं25से 815 से 185 से 198 से 1510 से 203 से 718 से 255 से 1010 से 20
औसत ड़ाय मीटर516101015520815
वॉल मोटाई रेजं (से.मी.)3 से 1010 से 158 से 1214 से 228 से 135 से 1220 से 258 से 12आधार पर 11 से 36
औसत वॉल मोटाई (मी.मी.)6131018116201020
शीत वहनीय (डी.से.)50-3-5-35000
विवरणसबसे ज्यादा बांस का उपयोग पूर्वोत्तर किया जाता है। इसकी कल्म लंबी और सीधी तथा मोटी परत वाली होती है। यह हस्तशिल्प और मेंट बोर्ड के लिए पंसद की जाने वाली प्रजातियां है। यह तेज और सशक्त उगाई जाने वाली किस्म है। कल्म्प के तहत कल्म के संचरण वृद्धि कटाई की सरल बनाती है।एक अत्यधिक टपड बांस की पैक्ड कल्म होती अहि और कागज उद्योग, स्कैफोल्डिंग तथा निर्माण राप्त आदिमें इनका अधिक सशक्त और व्यापक उपयोग होता है\ इसे प्ररोह और बीज दोनों खाद्य योग्य है।बड़े आकार सहित टिपटड बांस, सीधे, मोटी परत वाले कल्म/बहु प्रयोजन वाली प्रजातियाँ निरमं कार्य स्कैफोल्डिंग बास्केटरी तथा हस्तशिल्प/ प्ररोह प्रायः कडुवे अरु पिकल्ड होते हैं।सघन टपिप्ड सिम्पोडियल बांस कजे साथ मोटी परत और सशक्त कल्म। निर्माण और हस्तशिल्प के उपयोगी। प्ररोह खाद्य योग्य है।दक्षिण-पूर्व एशिया के विशाल बांस को पूर्वोत्तर भारत में हाल में ही में प्रांरभ  किया गया। टिम्बर और खाद्य योग्य प्ररोह की उकृष्ट प्रजातियाँपूर्वोत्तर भारत मूल की इस प्रजाति से निर्माण के लिए उत्कृष्टप्ररोह तथा सशक्त पोल्स तैयार किये जाते अहिं। कल्म प्रायः मुड़ी हुई होती अहि, पत्तियाँ 30 सेमी. तक लंबी होती है।सबसे ज्यादा बांस का उपयोग पूर्वोत्तर भारत में किया जाता है। इसकी कल्म लंबी और सीधी तथा मोटी परत वाली होती है। यहहस्तशिल्प अरु मैट बोर्ड के लिए पंसद की जाने वाली प्रजातियाँ है। यह तेज और सशक्त उगाई जाने वाली किस्म है। कल्म के तहत कल्म के संचरण वृद्धि कटाई की सरल  बनाती है।सघन टपिप्ड सिम्पोडियल बांस, सम्भवतः विश्व के सवसे लंबे बांस है। स्कैफोल्डिंग और निर्माण सामग्री के लिए लंबे मोटे वाल्ड कल्म का उपयोग किया जाता है। युवा टेंडर प्ररोह  को जब पकाया जाता है तो यह क्रीमी होते हैं।सघन टपिप्ड सिम्पोडियल बांस के साथ मोटी परत और सशक्त कल्म। निर्माण और हस्तशिल्प के उपयोगी । प्ररोह खाद्य योग्य है।









































































































































































































पुष्प चक्र25 से 45 वर्ष30 से 60 वर्ष35 से 45 वर्ष30 से 40 वर्ष40 से 45 वर्ष40 से 45 वर्ष35 वर्ष80 वर्ष
कटाई कल्म की अवधिमानसून के बाद-सर्दिया (नवम्बर-मार्च)
कटाई प्ररोह की अवधिमानसून से पूर्व तक (अप्रैल-सितम्बर)
पैदावार (वायु शुष्क टन/हे./कल्म)3101520247362533
औसत कल्म वजन (वायु शुष्क टन/हे./किग्रा.)4121520243501546
प्रति टन कल्म की औसत सं.25008336174914103420201617215
पैदावार (टन/हे.) खाद्य प्ररोह0.80.8N/A2.72.30.83.3N/A3.3
औसत प्ररोह बजन (किग्रा.)0.51.01.52.01.80.53.51.53.5
प्रति टन कल्म की औसत सं.2000100025005712000286667286
कटाई का तरीकामैनुअल/चयनित
पंक्ति में पौधे का अंतराल455554656
पंक्तियों के बीच पौधों का अन्तराल65.56667767
प्रति हे, पौधे41740033.333.333.341723833.3238
पौधे की लागत5.00
पौधे का प्रकारराइजोम आफसेटराइजोम आफसेटराइजोम आफसेटराइजोम आफसेटराइजोम आफसेटराइजोम आफसेटराइजोम आफसेटराइजोम आफसेट२ नेड कल्म कटिंग
बेहतर रोपण समयमई-जूनमई-जूनमई-जूनमई-जूनमई-जूनमई-जूनमई-जूनमई-जूनमई-जून
रोपण समय के विकासमानसून पूर्व के अंत में/प्रांरभ में
प्रथम फसल7 वर्ष7 वर्ष4 वर्षप्ररोह: 3 वर्ष कल्म:4 वर्षप्ररोह: 3 वर्ष कल्म:4 वर्षप्ररोह: 3 वर्ष कल्म:4 वर्षप्ररोह: 3 वर्ष कल्म:4 वर्ष7 वर्षप्ररोह: 3 वर्ष कल्म:4 वर्ष

राष्ट्रीय बांस मिशन अंतर्गत प्राप्त सहायतानुदान विवरणी





































































































































































































क्र.कार्यक्रमअनुमानित लागतसहायतानुदान
Aअनुसधान एवं विकास
1अनुसन्धान
फसल उपरान्त प्रंबधन एवं टिकाऊ बांस की खेतीपरियोजना आधारितसार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के संस्थानों में विकास के लिए 100%
नये बांस कृषि वानिकी तकनीक का विकासपरियोजना आधारितसार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के संस्थानों में विकास के लिए 100%
बांस एवं जीवकोपार्जनपरियोजना आधारितसार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के संस्थानों में विकास के लिए 100%
बांस रोपण  का विकास
बांस रोपण  सामग्री (वन क्षेत्र)
केन्द्रीयकृत नर्सरी
सावर्जनिक क्षेत्र (0.25 हे.)रु० 2.73  लाखलागत का 100%, अधिकतम रु० 2.73  लाख/नर्सरी
निजी क्षेत्र (0.25 हे.)रु० 2.73  लाखलागत का 25%, अधिकतम रु०68,000 प्रति नर्सरी  क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड अनुदान
ख)निजी क्षेत्र की नर्सरी
किसान नर्सरी (0.10 हे.)रु० 26,000/इकाईलागत का 25%, अधिकतम रु०6,500 प्रति नर्सरी
महिला नर्सरी (0.10 हे.)रु० 26,000/इकाईलागत का 25%, अधिकतम रु०6,500 प्रति नर्सरी
2बांस रोपण  सामग्री (गैर -वन क्षेत्र)
क)केन्द्रीयकृत नर्सरी
सावर्जनिक क्षेत्र (0.25 हे.)रु० 2.73  लाखलागत का 100%, अधिकतम रु० 2.73  लाख/नर्सरी
निजी क्षेत्र (0.25 हे.)रु० 2.73  लाखलागत का 25%, अधिकतम रु०68,000 प्रति नर्सरी  क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड अनुदान
ख)निजी क्षेत्र की नर्सरी
किसान नर्सरी (0.10 हे.)रु० 26,000/इकाईलागत का 25%, अधिकतम रु०6,500 प्रति नर्सरी
महिला नर्सरी (0.10 हे.)रु० 26,000/इकाईलागत का 25%, अधिकतम रु०6,500 प्रति नर्सरी
बांस रोपण सामग्री प्रमाणीकरण के लिए राशिपरियोजना आधारितसार्वजनिक/ निजी के संस्थानों लिए 100% सहायता
टिशु कल्चर इकाई (सावर्जनिक क्षेत्र)रु०21 लाख/इकाईसार्वजनिक क्षेत्र की इकाई के लिए 100% (अधिकतम 21 लाख)
टिशु कल्चर इकाई (निजी  क्षेत्र)रु०21 लाख/इकाईलागत का 50%, अधिकतम रु०10.50 लाख  क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड अनुदान
5बांस के प्रकार
वन क्षेत्ररु० 25,000/हेक्टेयर100% दो बराबर किस्त्तों में (50:50)
गैर वन क्षेत्ररु० 16,000/हेक्टेयरलागत का 50%, अधिकतम रु०8,00 प्रति हेक्टयेर तथा 4 हेक्टेयर प्रति लाभार्थी तक सिमित
6उपलब्ध स्टॉक  का विकासरु० 8,000/हेक्टेयर100%, गैर वन क्षेत्र में, २ हे. प्रति लाभ लाभार्थी तक सिमित)
7तकनीकी हस्तांतरण एवं मानव संसाधन विकास
किसानों एवं उद्यमियों का प्रशिक्षणपरियोजना आधारितराज्य के अंदर रु०1,520 प्रतिभागी (सात दिवसीय राज्य के अंदर रु०2,500 प्रतिभागी (सात दिवसीय
क्षेत्र कर्मियों का प्रशिक्षणपरियोजना आधारितरु०8,000 प्रतिभागी (सात दिवसीय
पौध रोपण तकनीक का प्रत्यक्षणपरियोजना आधारित50%, अधिकतम रु०10,000 प्रति हे. तथा 0.5 हे. प्रति लाभार्थी तक सिमित
































































































































































क्र.कार्यक्रमअनुमानित लागतसहायतानुदान
घ)कार्यशाला/सेमीनार/प्रशिक्षण
अंतराष्ट्रीय स्तरपरियोजना आधारित100% सहायता, अधिकतम रु०40 लाख।
राष्ट्रीय स्तरपरियोजना आधारित100% सहायता, अधिकतम रु०5,00  लाख प्रति कार्यक्रम (दो दिवसीय)
राज्य स्तरपरियोजना आधारित100% सहायता, अधिकतम रु०3,00  लाख प्रति कार्यक्रम (दो दिवसीय)
जिला स्तरपरियोजना आधारित100% सहायता, अधिकतम रु०1,00  लाख प्रति कार्यक्रम (दो दिवसीय)
8पौध रोपण स्तर में कीट एवं व्याधि प्रबन्धनरु०400/हे.50% सहायता, अधिकतम रु० 200.00 प्रति लाभार्थी तथा गैर वन क्षेत्रों में २ हे. तक सिमित
9नयी अवधारणापरियोजना आधारित100% सहायता
10फसल कटाई संग्रहण एवं उपचार की सुविधापरियोजना आधारित100% सहायता, अधिकतम रु०20.00  लाख।
11सूक्ष्म सिंचाई (गैर वन क्षेत्र)रु०40,000 /हे.50% सहायता, अधिकतम रु० 200.000.00  प्रति हे. 4 हे. प्रति लाभार्थी तक सिमित
हस्तशिल्प, बाजार व्यवस्था एवं निर्यात
1बांस का थोक एवं खुदरा बाजाररु० 16 लाख /इकाई25%, अधिकतम रु० 4.00 लाख
बांस का बाजाररु० 27 लाख /इकाई25%, अधिकतम रु० 4.00 लाख
खुदरा दूकान (प्रदर्शनी हाउस)रु० 40 लाख /इकाई25%, अधिकतम रु० 10.00 लाख
नयी अवधारणापरियोजना आधारित100%
2घरेलू व्यापार मेले में भागीदारीपरियोजना आधारित75%, रु०5,00  लाख प्रति कार्यक्रम की दर से  रु०75 लाख अधिकतम (दो दिवसीय)
3अंतराष्ट्रीय व्यापार मेले में भागीदारीपरियोजना आधारित75%, रु०10,00  लाख प्रति कार्यक्रम की दर से  रु०7.50 लाख अधिकतम (पांच दिवसीय)
4बाजार सर्वें इत्यादिपरियोजना आधारितलागत व्यय का 100%
निगरानी तंत्र का क्रियान्वयन
राष्ट्रीय बांस सेल
मूल्यांकन  एवं निगरानीपरियोजना आधारितलागत व्यय का 100%
बांस तकनीकी सहायता समूहपरियोजना आधारितलागत व्यय का 100%, निद्रिष्ट समय में निद्रिष्ट कार्य के लिए तकनीक सहायता।
रगीन ब्रोशर एवं लीफलेटपरियोजना आधारितलागत व्यय का 100%
इलेक्ट्रोनिक/ऑडियो विजुअल माध्यम/समाचार पत्र द्वारा प्रचार अभियानपरियोजना आधारितलागत व्यय का 100%
डाटाबेस की तैयारी एवं प्रंबधन (सूचना, वेब आधारित डाटाबेस)परियोजना आधारितलागत व्यय का 100% (केन्द्रीय राज्य स्तरीय संस्थान/आई.सी.ए.आर. इत्यादि)
राज्य क्रियान्वयन एजेंसियां, परियोजना प्रतिवेदन की तयारी एवं परामर्शपरियोजना आधारितपरियोजना व्यय का 1.5% तक।

राज्य सहायता

























































बांस रोपण का विकास (गैर वन क्षेत्र)
केंद्रीयकृत नर्सरीअनुमानितकेन्द्रीय सहायताराज्य सहायता
निजी क्षेत्र ((0.25 हे.)रु० २.73 लाखलागत का 25%, अधिकतम रु०68.000 प्रति नर्सरी   क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड अनुदानलागत का 65%, अधिकतम रु०77.000 प्रति नर्सरी   क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड अनुदान
निजी क्षेत्र की नर्सरी
किसान नर्सरी (0.10 हे.)रु० 26,000/इकाईलागत का 25%, अधिकतम रु०6,500 प्रति नर्सरीलागत का 65%, अधिकतम रु०16,900 प्रति नर्सरी
बांस का क्षेत्र विस्तार
गैर वन क्षेत्ररु० 16,000/हेक्टेयरलागत का 50 %, अधिकतम रु०8.000 प्रति हेक्टयेर तथा 4 हेक्टयेर  प्रति लाभार्थी तक सिमितलागत का 40 %, अधिकतम रु०6,400 प्रति हेक्टयेर तथा 4 हेक्टेयर  प्रति लाभार्थी तक सिमित
तकनीकी हस्तांतरण
पौध रोपण तकनीक का प्रत्यक्षणरु० 20,000/हेक्टेयरलागत का 50 %, अधिकतम रु०10,000 प्रति हेक्टयेर तथा 0.5  हेक्टयेर  प्रति लाभार्थी तक सिमितलागत का 40 %, अधिकतम रु०8,000 प्रति हेक्टयेर तथा 0.5  हेक्टयेर  प्रति लाभार्थी तक सिमित
बांस का थोक एवं खुदरा बाजाररु० 16,000/हेक्टेयरलागत का 25 %, अधिकतम रु०4, 00,000/-लागत का 65 %, अधिकतम रु०10, 04,000/-
बांस का बाजाररु० 27,000/हेक्टेयरलागत का 25 %, अधिकतम रु०6, 75,000/-लागत का 65 %, अधिकतम रु०10, 000/-

 




अनाज

औषधीय एवं वाणिज्यिक फसलें

खरीफ की फसलें

तिलहन

दाल

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