गेंदा फूल की खेती

गेंदा फूल की खेती



गेंदा फूल की वैज्ञानिक खेती








  1. भूमिका

  2. गेंदा के औषधीय गुण

  3. भूमि की तैयारी

  4. व्यवसायिक किस्में

  5. खाद एवं उर्वरक

  6. प्रसारण

  7. रोपाई

  8. सिंचाई

  9. पिंचिग

  10. निकाई-गुडाई

  11. फूल की तोड़ाई

  12. फूलों की पैकिंग

  13. कीड़े

  14. बीमारी







भूमिका


भारत में पुष्प व्यवसाय में गेंदा का महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसका धार्मिक तथा सामाजिकGendaअवसरों पर वृहत रूप में व्यवहार होता है। गेंदा फूल को पूजा अर्चना के अलावा शादी-व्याह, जन्म दिन, सरकारी एवं निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न समारोहों के अवसर पर पंडाल, मंडप-द्वार तथा गाड़ी, सेज आदि सजाने एवं अतिथियों के स्वागतार्थ माला, बुके, फूलदान सजाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

गेंदा के फूल उपयोग मुर्गी के भोजन के रूप में भी आजकल बड़े पैमाने पर हो रहा है। इसके प्रयोग से मुर्गी के अंडे की जर्दी का रंग पीला हो जाता है, जिससे अंडे की गुणवत्ता तो बढ़ती ही है, साथ ही आकर्षण भी बढ़ जाता है।

गेंदा के औषधीय गुण


अपनी औषधीय गुणों के कारण गेंदा का एक खास महत्व है। गेंदा के औषधीय गुण निम्नलिखित है:

  1. कान दर्द में गेंदा के हरी पत्ती का रस कान में डालने पर दर्द दूर हो जाता है।

  2. खुजली, दिनाय तथा फोड़ा में हरी पत्ती का रस लगाने पर रोगाणु रोधी का काम करती है।

  3. अपरस की बीमारी में हरी पत्ती का रस लगाने से लाभ होता है।

  4. अंदरूनी चोट या मोच में गेंदा के हरी पत्ती के रस से मालिश करने पर लाभ होता है।

  5. साधारण कटने पर पत्तियों को मसलकर लगाने से खून बहना बंद हो जाता है।

  6. फूलों का अर्क निकालकर सेवन करने से खून शुद्ध होता है।

  7. ताजे फूलों का रस खूनी बवासीर के लिए बहुत उपयोगी होता है।


भूमि

गेंदा की खेती के लिए दोमट, मटियार दोमट एवं बलुआर दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है जिसमें उचित जल निकास की व्यवस्था हो।

भूमि की तैयारी


भूमि  को समतल करने के बाद एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करके एवं पाटा चलाकर, मिट्टी को भुरभुरा बनाने एवं कंकर पत्थर आदि को चुनकर बाहर निकाल दें तथा सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां बना दें।

व्यवसायिक किस्में


अधिक उपज लेने के लिए परम्परागत किस्मों की जगह केवल सुधरी किस्में ही बोनी चाहिए। गेंदा की कुछ प्रमुख उन्नत किस्में निम्न है:

  1. अफ्रीकन गेंदा: इसके पौधे अनेक शाखाओं से युक्त लगभग 1 मीटर तक ऊँचे होते हैं, इनके फूल गोलाकार, बहुगुणी पंखुड़ियों वाले तथा पीले व नारंगी रगं का होता है। बड़े आकार के फूलों का व्यास 7-8 सेमी. होता है। इसमें कुछ बौनी किस्में भी होती है, जिनकी ऊंचाई सामान्यतः 20 सेमी. तक होती है।


अफ्रीकन गेंदा के अंतर्गत व्यवसायिक दृष्टिकोण से उगाये जाने वाले प्रभेद-पूसा नांरगी, पूसा बंसन्तु, अफ्रीकन येलो इत्यादि है।

2. फ्रांसीसी गेंदा: इस प्रजाति की ऊंचाई लगभग 25-30 सेंमी. तक होती है इसमें अधिक शाखाएं नहीं होती है किन्तु इसमें इतने अधिक पुष्प आते हैं कि पूरा का पूरा पौधा ही पुष्पों से ढँक जाता है। इस प्रजाति के कुछ उन्नत किस्मों में रेड ब्रोकेट, कपिड येलो, बोलरो, बटन स्कोच इत्यादि है।

खाद एवं उर्वरक


गेंदा की अच्छी उपज हेतु खेत की तयारी से पहले 200 किवंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टयेर की दर से मिट्टी में मिला दें। तत्पश्चात 120-160 किलो नेत्रजन, 60-80 किलो फास्फोरस एवं 60-80 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करें। नेत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम जुताई के समय मिट्टी  में मिला दें। नेत्रजन की शेष आधी मात्रा पौधा रोप के 30-40 दिन के अंदर प्रयोग करें।

प्रसारण


गेंदा का प्रसारण बीज एवं कटिंग दोनों विधि से होता है इसके लिए 300-400 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के आवश्यकता होती है जो 500 वर्ग मीटर के बीज शैय्या में तैयार किया जाता ही, बीज शैय्या में बीज की गहराई 1 सेमी. से अधिक नहीं होना चाहिए। जब कटिंग द्वारा गेंदा का प्रसारण किया जाता है उसमें ध्यान  रखना चाहिए कि हमेशा कटिंग नये स्वस्थ पौधे से लें जिसमें मात्र 1-2 फूल खिला हो, कटिंग का आकार 4 इंच (10 सेंमी.) लंबा होना चाहिए। इस कटिंग पर रुटलेक्स लगाकर बालू से भरे ट्रे में लगाना चाहिए। 20-22 दिन बाद इसे खेत में रोपाई करना चाहिए।

रोपाई


गेंदा फूल खरीफ, रबी, जायद तीनों सीजन में बाजार की मांग के अनुसार उगाया जाता है। लेकिन इसके लगाने के उपयुक्त समय सितम्बर-अक्तूबर है। विभिन्न मौसम में अलग-अलग दूरी पर गेंदा लगाया जाता है जो निम्न है:

खरीफ (जून से जुलाई)  - 60 x 45 सेमी.

रबी (सितम्बर-अक्तूबर) – 45 x 45 सेमी.

जायद (फरवरी-मार्च) – 45 x 30 सेमी.

सिंचाई


खेत की नमी को देखते हुए 5-10 दिनों के अंतराल पर गेंदा में सिंचाई करनी चाहिए। यदि वर्षा हो जाए तो सिंचाई नहीं करना चाहिए।

पिंचिग


रोपाई के 30-40 दिन के अंदर पौधे की मुख्य शाकीय कली को तोड़ देना चाहिए। इस क्रिया से यद्यपि फूल थोड़ा देर से आयेंगे, परन्तु प्रति पौधा फूल की संख्या एवं उपज में वृद्धि होती है।

निकाई-गुडाई


लगभग 15-20 दिन पर आवश्यकतानुसार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे भूमि में हवा का संचार ठीक रगं से होता है एवं वांछित खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

फूल की तोड़ाई


रोपाई के 60 से 70 दिन पर गेंदा में फूल आता है जो 90 से 100 दिनों तक आता रहता है। अतः फूल की तुड़ाई साधारनतया सांयकाल में की जाती है। फूल को थोड़ा डंठल के साथ तोड़ना श्रेयस्कर होता है।

फूलों की पैकिंग


फूल का कार्टून जिसमें चारों तरफ एवं नीचे में अखबार फैलाकर रखना चाहिए एवं ऊपर से फिर अखबार से ढँक कर कार्टून बंद करना चाहिए।

कीड़े


लीफ हापर, रेड स्पाइडर, इसे काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इसके रोकथाम के लिए मैलाथियान 0,1% का छिड़काव करें।

बीमारी


गेंदा में मोजेक, चूर्णी फफूंद एवं फुटराट मुख्य रूप से लगता है। मोजेक लगे पौधे को उखाड़कर मिट्टी तले दबा दें एवं गेंदा में कीटनाशक दवा का छिड़काव करें जिससे मोजेक के विषाणु स्थानांतरित करने वाले कीट का नियंत्रण हो इसका विस्तार एवं दूसरे पौधे में न हो। चूर्णी फुफुन्द के नियंत्रण हेतु 0.२% गंधक का छिड़काव करें एवं फुटराट के नियंत्रण हेतु इंडोफिल एम -45 0.25% का २-3 बार छिड़काव करें।

उपज

80-100 किवंटल फूल/हेक्टेयर।









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औषधीय एवं वाणिज्यिक फसलें








गेंदा फूल का बीजोत्पादन





  1. गेंदा फूल का बीजोत्पादन

  2. आनुवंशिकी

  3. किस्म

  4. मिट्टी

  5. जलवायु

  6. बीज दर एवं बिचड़ा उगाना

  7. बीज लगाने का समय

  8. खेत की तैयारी

  9. बिचड़ा लगाना

  10. उर्वरक

  11. सिंचाई

  12. दूरियाँ

  13. शाखाओं को तोड़ना

  14. पृथक्करण और अवांछित पौधों को निकालना

  15. बीमारियाँ एवं रोकथाम

  16. कीट एवं रोकथाम

  17. उपज

  18. बीज भंडारण

  19. गेंदे के बीज उत्पादन में अनुमानित लागत (1 एकड़ में)

  20. बीज को बेचने पर कुल आमदनी

  21. वन वृक्षों की परिपक्वता एवं उपयोगिता

  22. जैविक खादों में पोषक तत्वों की मात्रा

  23. रासायनिक उर्वरक में पोषक तत्वों की मात्रा







गेंदा फूल का बीजोत्पादन


गेंदा भारतीय फूलों में अत्यंत लोकप्रिय है तथा इसे पूरे वर्ष उगाया जता है। कम समय में ज्यादाफूल खिलने, कई रंगों में खिलने, जल्द न खराब होने तथा सभी मौसमों एवं मिट्टियों में उगाए जाने के कारण यह व्यावसायिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण फूल है। प्राकृतिक रंग बनाने, कुक्कुटों के भोजन और तेल निकालने में उसका उपयोग बढ़ता ही जा रहा है। इन्हीं सब महत्व के कारण बीज उत्पादन तकनीक की जानकारी से स्वस्थ बीज बनाकर लाभ भी कमाया जा सकता है और इसकी खेती का विस्तार भी किया जा सकता है।

भारत में अब अधिक उपज तथा अच्छे गुणों वाली अनेक उन्नतशील और संकर किस्में उपलब्ध हैं। किसानों को बीज उत्पादन के लिए बढ़ावा देने के ली किस्मों के प्रमाणित बीज तथा तकनीक उपलब्ध कराना अति आवश्यक है। ये बीज आनुवंशिक शुद्धता, उचित अंकुरण क्षमता आदि गुणों के साथ-साथ रोगाणुओं से भी मुक्त होते है।

आनुवंशिकी


(क) अफ़्रीकी गेंदा (टेगेट्स): इसके गुणसूत्रों की संख्या 24 होती है। इसके पौधे फैले तथा लम्बे (90 सें. मी.) होते है। इसके फूल बड़े (5-10 सें.मी.) होते हैं एवं पीला, चमकीला पीला, स्वर्णपीला, नारंगी और सफेद रंगों में पाये जाते हैं।

किस्म: पूसा नारंगी, पूसा बसंती, जायंट डबल अफ्रीकन आरेन्ज, जायंट डबल अफ्रीकन येल्लो।

(ख) फ्रेंच गेंदा (टेगेट्स पेटुला): इसके गुणसूत्रों की संख्या 48 होती है। इसके पौधे सघन तथा छोटे आकार (30-40 सें.मी.) के होते है। इसके फूल एकहरे एवं दोहरे प्रकार के होते हैं। फूलों

का रंग पीला, नारंगी, चित्तीदार, लाल एवं मिश्रित पाया जाता है।

औषधीय एवं वाणिज्यिक फसलें

किस्म


(1) एकहरी किस्म: स्टार ऑफ़ इंडिया, हार्मोनी।

(2) दोहरी किस्म: रस्टी रेड, फ्लेम, स्प्रे, बोनिटा, आरेन्ज, लेमन ड्रॉप, इत्यादि।

मिट्टी


बीज उत्पादन के लिए मिट्टी गहरी, उपजाऊ, जलनिकास वाली, मौसमी खरपतवार रहित, जल धारण कारने वाली हो। पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच वाली मिट्टी अच्छी मानी जाती है।

जलवायु


समशीतोष्ण जलवायु गेंदा की अच्छी वृद्धि, विकास एवं ज्यादा फूल के लिए अति उपयुक्त होती है। बीज भी इसी जलवायु में अधिक तथा अच्छे गुणों के बनते हैं।

बीज दर एवं बिचड़ा उगाना


बीज का अंकुरण 18 से 30 डिग्री सें.ग्रे. के बीच तापमान होने से अच्छा होता है। एक एकड़ के लिए 300 से 350 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज को ऊँची क्यारियों में 15-20 सें.मी. ऊँची, एक मीटर चौड़ी तथा 3 मीटर लम्बी क्यारियों में लगाना चाहिए। क्यारियों में 10 किलो गोबर की खाद प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से मिलानी चाहिए। बीजों को 2-3 सें.मी. गहराई पर कतार से कतार 5 सें.मी. की दूरी पर लगाना चाहिए। क्यारियों पर चींटी एवं अन्य कीट से बचाव के लिए लिन्डेन के धूल का छिड़काव करना चाहिए। अच्छे बीज का अंकुरण 5-7 दिनों में होने लगता है। सिंचाई हजारा (रोज केन) से सुबह शाम आवश्यकता अनुसार करनी चाहिए।

बीज लगाने का समय


गेंदा के अच्छे बीज उत्पादन के लिए बीज को सितम्बर माह में बो कर अक्टूबर माह में पौधे को खेत में लगा देना चाहिए। पौधशाला से पौधों को उखाड़ने के 2-3 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए तथा उखाड़ने के समय सिंचाई कर पौधे को उखाड़े।

जैविक खेती

खेत की तैयारी


खेत को 2-3 बार जुताई करके प्रति एकड़ 12 टन गोबर खाद पौधा लगाने के 30 दिन पहले ही खेत में मिला देना चाहिए। पौधा लगाने के 2-3 दिन पहले प्रति एकड़ 200 किलो सिंगल सुपर फास्फेट और 135 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश खाद देनी चाहिए तथा क्यारियाँ बनाकर सिंचाई कर देनी चाहिए।

बिचड़ा लगाना


25-30 दिनों में बीज से बिचड़ा या पौधे तैयार हो जाते हैं। बिचड़ो को शाम के समय लगाना चाहिए जिससे पौधे की मृत्यु दर कम होती है।

उर्वरक


खेत तैयार करते समय खाद देने के बाद क्यारियाँ बनाकर पौधा लगा देना चाहिए। जब पौधे 25 दिनों के हो जाएँ तब यूरिया खाद 12.5 किलो/एकड़ मिट्टी चढ़ाने के समय देना चाहिए तथा फिर 40 दिनों बाद 125 किलो/एकड़ यूरिया का उपनिवेश करना चाहिए।

सिंचाई


बीज उत्पादन के लिए सिंचाई की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। सभी अवस्थाओं में नमी रहनी चाहिए। प्रत्येक सप्ताह खेत में हल्की सिंचाई करने से उत्पादन अच्छा होता है।

दूरियाँ


बीज उत्पादन के लिए अफ़्रीकी गेंदा के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सें.मी. रखनी चाहिए। एक एकड़ में लगभग 30,000 पौधों की आवश्यकता होती है। फ्रेंच गेंदा के लिए कतार से कतार की दूरी 30 सें.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 20 सें.मी. रखनी चाहिए। एक एकड़ में लगभग 67,000 पौधों की आवश्यकता होती है।

शाखाओं को तोड़ना


अफ़्रीकी गेंदा में ऊपरी तनों को तोड़ने से ज्यादा शाखाएँ निकलती हैं जिससे ज्यादा समान रूप से फूल खिलते है। बिचड़ा लगाने के 40 दिनों बाद मुख्य शाखाओं को तोड़ना चाहिए। फ्रेंच गेंदा के लिए शाखाओं को तोड़ने की आवश्यकता नहीं होती है।

पृथक्करण और अवांछित पौधों को निकालना


गेंदा पर-परागित पौधा है। इसमें पर-परागण मुख्यत: मधुमक्खी द्वारा होता है। एक किस्म से दूसरी किस्मों के बीच कम से कम 500 मीटर की दूरी होनी चाहिए। इससे किस्मों की शुद्धता बनी रहती है। प्रजनक तथा मूल बीजोत्पादन के लिए किस्मों की पृथक्करण दूरी 800-1000 मीटर रखी जाती है।

बीज से तैयार पौधों का वानस्पतिक वृद्धि के समय या फूल खिलने के पहले और फूल खिलने के समय निरीक्षण करना चाहिए। पौधे की वृद्धि के समय, पत्तों का रंग, तनों का रंग, को देखकर अवांछित पौधों को निकालकर फेंक या जला देना चाहिए। फूल खिलने के समय फूलों का रंग, फूल के प्रकार को देखकर तुरन्त ही अवांछित पौधे उखाड़कर फेंक देना चाहिए जिससे कि पर-परागण न हो सके तथा बीज अच्छे गुणों के हों।

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बीमारियाँ एवं रोकथाम


(1) पौध गलन: यह रोग ज्यादातर पौधा की कोमल अवस्था में राईजक्टोनिया सोलेनी फफूंद के द्वारा लगता है। जड़ों तथा तने का निचला हिस्सा, जो भूमि से लगा होता है, सड़ने लगता है, फलस्वरूप खड़ी पौध यहीं से झुक कर गिर जाती है। नर्सरी को फ़ार्मल्डिहाइट (40 मी.ली./ली. पानी) से उपचारित कर बीज बोएँ तथा पौधा निकलने पर कॉपर आक्सिक्लोराइड दवा का 4 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करें।

(2) पर्णदाग और झुलसा: यह रोग अल्टेनेरिया टेगेटिका तथा सरकोस्पोरा फफूंद द्वारा लगता हैं। इससे पत्तियों पर भूरे काले रंग का दाग होने लगता है तथा बाद में पत्तियाँ जल जाती हैं। इस रोग के लिए ब्लाइटाक्स दवा 4 ग्राम या वेवस्टीन दवा 2 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

(3) पाउडरी मिल्ड्यू: यह रोग ओडियम स्पेसिज फफूंद द्वारा होता है। सफेद रंग का पाउडर जैसा छिड़काव हुआ पौधे के ऊपर दिखाई देता है। इसकी रोक थाम के लिए सल्फेक्स दवा 3 ग्राम/ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

(4) वायरस: गेंदा में कुकुम्बर मोजेक वायरस और एस्टर यलो वायरस का प्रकोप माहू और गार्सहॉपर कीट द्वारा होता है। रोग ग्रसित पौधा को उखाड़ कर जला देना चाहिए तथा मालाथियान दवा 1.5 मि.ली./ली. पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए।

कीट एवं रोकथाम


(1) रेड स्पाइडर माइट: यह नन्हा कीट फूल खिलने के समय ज्यादा लगता है। पत्तियों पर रंगहीन सफेद दाग बना देते हैं तथा फूल सूखे जैसे गंदे दिखने लगते हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए डाइकोफाल 2.5 मि.ली./ली. पानी में घोलकर 1 मि.ली. गोन्द मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

(2) रोयेंदार लार्वा: यह लार्वा पत्तियों, फूल को खाकर पौधे को नुकसान पहुँचाता है। इसकी रोकथाम के लिए इकाल्कस दवा 2 मि.ली./ली. पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

उपज


पूर्ण विकसित, सूखे फूल को सुबह के समय तोड़ना चाहिए। फूल के बाह्यदलपुंज (कैलिक्स) को हटाकर बीजों को निकालना चाहिए। फूलों की पंखुड़ियों को पहले हटा लेना चाहिए, फिर बाह्यदलपुंज को सावधानी से हटाकर स्वस्थ बीज एकत्र करना चाहिए। बीज एकत्र कर हवा के बहाव में उड़ाकर अच्छे बीज छाँटकर रखना चाहिए। बीज की उपज फसल प्रबंधन तथा परागण पर निर्भर करती है। साधारण फसल में 300-400 किलो ग्राम सूसा अफ़्रीकी गेंदा फूल का प्रति एकड़ उत्पादन होता है, जिससे 30-35 किलो बीज का उत्पादन प्रति एकड़ होता है। 1000 बीज का वजन 2.46 ग्राम (पूसा बसंती) और 2.98 ग्राम (पूसा नारंगी) होता है।

औषधीय एवं वाणिज्यिक फसलें

बीज भंडारण


बीजों का भंडारण 7 से 7.5% नमी रहने पर थीरम और साइटोजाइन से उपचारित कर 8 महीनों तक पोलीथिन के थैले में किया जा सकता है। कपड़े की थैली में 5-6 महीनों तक संरक्षित रखा जा सकता है।

गेंदे के बीज उत्पादन में अनुमानित लागत (1 एकड़ में)




























































क्र.सं.मदखर्च (रु. में.)
1भूमि की तैयारी एवं नर्सरी3000
2300 ग्राम बीज का मूल्य450
3सिंचाई3200
4पिंचिग160
5गुड़ाई एवं खरपतवार निकालना, रोगिंग1200
6खाद एवं उर्वरक6000
7रोग एवं कीट नियंत्रण1000
8फूल को तोड़ना1200
9बीज निकालना5000
 कुल खर्च21210

बीज को बेचने पर कुल आमदनी


35 किलो बीज का मूल्य 1250/- रूपये/किलो की दर से 43750

लाभ: (बीज बेचने पर कुल आमदनी – कुल खर्च)             22540

नोट: लागत एवं आय अनुपात किस्म, स्थिति एवं स्थान के हिसाब से परिवर्तनीय है।

वन वृक्षों की परिपक्वता एवं उपयोगिता













































































































































































क्र.सं.स्थानीय नामवैज्ञानिक नाम उम्र (वर्ष)परिपक्वताउपयोगिता
1अर्जुनटर्मीनैलिया अर्जुना10-15लकड़ी, टेनिन, टसर
2आकाशीएकेशिया आरी क्युलीप्तर्मिस10-12जलावन, लकड़ी
3इमलीटैमिरेन्ड्स इंडिका8-10लकड़ी, जलावन, फल, स्टार्च
4करंजपोंगैनिया पिन्नेटा8-10चारा, लकड़ी, बीज, तेल के लिए
5काला सिरिसएलवीजिया लेबेक12-15लकड़ी, चारा
6कचनारबाहुनिया वेरा गाटा8-10लकड़ी, चारा
7खैरएकेशिया कटेचु15-20लकड़ी, जलावन
8गम्हारमेला ना आरबीरिया12लकड़ी
9चकुंडीकैशिया सियामिया8-10लकड़ी, जलावन
10तूनटूना सिलिएटा15-20लकड़ी, जलावन
11नीमएजाडिरैकटा डिका8-10चारा, फल, तेल, लकड़ी, औषधि
12बबूलअकेशिया निलोटिका15-20चारा, टैनिन, गोंद, लकड़ी, जलावन
13बकैनमिलिया एजिडिरिक8चारा, फल, लकड़ी
14बेलइगल मार्मिलास8-10लकड़ी, फल, चारा
15ब्लूगमयुक्सिप्ट्स8-10लकड़ी, पोल, तेल, औषधि
16बाँसडेन्डारोकैलामस स्ट्रिकटस4-5पेपर, जलवान, चारा, अचार
17महुआमधुका इंडिका8फल, फूल, लकड़ी
18शीशमडलबर्जिया सिस्सू12-15लकड़ी, चारा, जलावन
19सफेद सिरिसएलबिहजया प्रोसेरा12-15लकड़ी, चारा
20सखुआशोरिया रोबस्टा80-120लकड़ी, तेल
21सागवानटेकटोना ग्रांडिस-लकड़ी
22सेमलबाम्बाकस सीबा10-15लकड़ी, फाइबर
23हर्राबमिनैलिया चेबुला10फल, औषधि

जैविक खादों में पोषक तत्वों की मात्रा














































































क्र.सं.जैविक खाद का नामपोषक तत्वों की प्रतिशत मात्रा
नाइट्रोजनस्फुरपोटैश
1गोबर की खाद0.50.30.4
2कम्पोस्ट0.40.41.0
3अंडी की खली4.21.91.4
4नीम की खली5.41.11.5
5करंज की खली4.00.91.3
6सरसों की खली4.82.01.3
7तिल की खली5.52.11.3
8कुसुम की खली7.92.11.9
9बादाम की खली7.01.31.5

 

रासायनिक उर्वरक में पोषक तत्वों की मात्रा



























































































































































क्र.सं.उर्वरकों का नामउपलब्ध पोषक तत्व (प्रतिशत में)
नाइट्रोजनस्फुरपोटैश
1यूरिया46.0--
2अमोनियम सल्फेट20.6--
3अमोनियम सल्फेट नाइट्रेट26.0--
4अमोनियम नाइट्रेट35.0--
5कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट25.0--
6अमोनियम क्लोराइट25.0--
7सोडियम नाइट्रेट16.0--
8संजीवन26.0--
9सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट-16.0-
10ट्रिपल सुपर फ़ॉस्फेट-48.0-
11डाई कैल्सियम फ़ॉस्फेट-38.0-
12पोटैशियम सल्फेट--48.0
13म्यूरिएट ऑफ़ पोटैश--60.0
14पोटैशियम नाइट्रेट13.0-40.0
15मोनो अमोनियम फास्फेट11.048.0-
16डाई अमोनियम फ़ॉस्फेट18.046.0-
17सुफला (भूरा)20.020.0-
18सुफला (गुलाबी)15.015.015.0
19सुफला (पीला)18.018.09.0
20ग्रोमोर20.028.0-

 

 

 


 








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