चना उत्पादन की उन्नत तकनीक
चना की उन्नत कृषि तकनीक
- जी एन जी 1581 (गणगौर) - यह देसी चना की किस्म है। ...
- जी एन जी 1488 (संगम) - यह देसी चना की किस्म है। ...
- जी एन जी 663 (वरदान) - यह किस्म 145 से 150 दिनों में पककर तैयार होती है और इसकी पैदावार 20 से 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। ...
- आर एस जी 888 - ...
- बी जी 256 - ...
- जलवायु: ...
- खाद एवं उर्वरक : ...
- उपज एवं भण्डारण :
चने की उन्नतशील खेती
- उपज अन्तर
- जलवायु
- भूमि एवं भूमि की तैयारी
- बुआई समय
- बीज की मात्रा
- बुआई की विधि
- अन्तरवतीय फसल प्रणाली
- बीजोउपचार
- खाद एवं उर्वरक
- गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्व
- गंधक (सल्फर)
- जिंक
- बोरॉन
- खरपतवार नियंत्रण
- सिंचाई
- फली छेदक या इल्ली या गिडार
- कटुआ
- नियंत्रण
- उकठा रोग के लक्षण
- नियंत्रण
- ग्रे-मोल्ड
- नियंत्रण
- स्क्लेरोटीनिया ब्लाइट
- नियंत्रण
- एस्कोकाइटा ब्लाइट
- नियंत्रण
- शीर्ष कलिका तोड़ना/खुटाई (निपिंग)
- कटाई एवं मड़ाई
- उपज
- भण्डारण
भारत विश्व का सबसे बड़ा चना उत्पादक (कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत) देश है। क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि में दलहनी फसलों में चने का मुख्य स्थान है। समस्त उत्तर-मध्य व दक्षिण भारतीय राज्यों में चना रबी फसल के रूप में उगाया जाता है। चना उत्पादन की नई उन्नत तकनीक व उन्नतशील प्रजातियों का उपयोग कर किसान चने का उत्पादन बढ़ा सकते हैं तथा उच्चतम एवं वास्तविक उत्पादकता के अन्तर को कम कर सकते हैं।
उपज अन्तर
सामान्यतः यह देखा गया है कि अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन की पैदावार व स्थानी किस्मों की उपज में 25: का अन्तर है। यह अन्तर कम करने के लिये अनुसंधान संस्थानों व कृषि विज्ञान केन्द्र की अनुशंसा के अनुसार उन्नत कृषि तकनीक को अपनाना चाहिए।
जलवायु
चने के खेती प्रायः बारानी फसल के रूप में रबी मौसम की जाती है । चने खेती के लिए 60-90 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त रहते हैं।
भूमि एवं भूमि की तैयारी
हल्की दोमट से मटियार भूमि चने के लिए सर्वोत्तम रहती है किन्तु समुचित जल निकास का प्रबन्ध होने पर भारी भूमियों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। काबुली चने के लिये अधिक उपजाऊ भूमि कि आवश्यता पड़ती है। जड़ ग्रन्थियों के उत्तम विकास हेतु मृदा में पर्याप्त वायु-संचार का होना अति आवश्यक है अतः यह ढेलेदार खेत को पसन्द करता है। रफ सीडबेड तैयार करने हेतु एक जुताई मिट्टी पलट हल से व एक से दो जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से पर्याप्त रहती है।
बुआई समय
उत्तरी भारत – असिंचित : अक्टूबर के द्वितीय पखवाड़े , सिंचित : नवम्बर के प्रथम पखवाड़े (मध्य एवं दक्षिण भारत-अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े)। सिंचित : अक्टूबर के द्वितीय पखवाड़े से नवम्बर के प्रथम पखवाड़ा।
बीज की मात्रा
छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिए 50-60 कि.ग्रा./हे. तथा बड़े दानों वाली प्रजातियों के लिए 100 कि.ग्रा. बीजदर व पछेती बुवाई के लिए 90-100 कि.ग्रा./हे. एवं काबुली किस्मों के लिये 100 से 125 किग्रा./हे. पर्याप्त रहती है।
बुआई की विधि
अधिक उपज लेने हेतु बोआई कतारों में ही 30 से.मी. की दूरी पर व देर से 25 से.मी. की दूरी पर सीड ड्रिल द्वारा या हल के पीछे चोंगा बांधकर 8-10 से.मी. की गहराई पर करें ।
अन्तरवतीय फसल प्रणाली
चने की खेती अन्तरवर्तीय के रूप में निम्न फसलों के साथ करने से अधिक उत्पादन के परिणाम प्राप्त हुए हैं।
6 लाईन चना 4 लाईन गेहूं ------ 6 लाईन चना 2 लाईन सरसों
4 लाईन चना 2 लाईन जौ --------4 लाईन चना 2 लाईन अलसी
प्रयोग द्वारा चना गेहूं फसल प्रणाली सबसे अधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है।
बीजोउपचार
रोग नियंत्रण हेतु
उकठा एवं जड़ सड़न रोग से फसल के बचाव हेतु 2 ग्राम थायरम + 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से प्रति किलो बीज या वीटावेक्स (कार्बोक्सिन) 2 ग्राम/किलो से उपचारित करें।
कीट नियंत्रण हेतु
थायोमेथोक्साम 70 डब्ल्यू. पी. 3 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित करें।
खाद एवं उर्वरक
मृदा परीक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अन्तिम जुताई के समय हल के पीछे चोंगा बांधकर या फर्टीसीड ड्लि द्वारा कूड़ में बीज की सतह से 2 से.मी. गहराई व 5 से.मी. साइड में देना सर्वोत्तम रहता है। चना के लिए सामान्यतयः 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 50-60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20 कि.ग्रा. गंधक की आवश्यकता होती है। जिन क्षेत्रों में जस्ता की कमी हो वहाँ 15-20 कि.ग्रा. जिन्क सल्फेट प्रयोग करें।
नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की समस्त भूमियों में आवश्यकता होती है। किन्तु पोटाश एवं जिंक का प्रयोग मदा पीरक्षण उपरान्त खेत में कमी होने पर ही करें। नत्रजन एवं फास्फोरस की संयुक्त रूप से पूर्ति हेतु 100-150 किग्रा डाइ अमोनियम फास्फेट का प्रयोग करें।
राज्यवार प्रमुख प्रजातियों का विवरण राज्य
राज्य | प्रजातियां | |
देशी | काबुली | |
आंध्रप्रदेश | फूले जी. 95311, आई.सी.सी.वी. |