जीरे की खेती

जीरे की खेती


जीरे की खेती






जीरा




जलवायु

भूमि का चयन

खेत की तैयारी



खाद प्रबन्ध

बीज की तैयारी

पौधों को लगाना



पौधों की सिंचाईं

कीट/रोग और उनसे बचाव

फलों की तुड़ाई




जलवायु


इसकी फसल के लिये ठंडी जलवायु अच्छी होती है। बीज तैयार होने और पकने के दिन मे गरम औए शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसके अंकुरण के लिए तापमान 10 डिग्री से 30 डिग्री मे बीच होना चाहिए अन्यथा इसके बीज अंकुरण मे गलत प्रभाव पड़ता है। अधिक नमी से भी इसमे रोग लगने का डर रहता है। इसलिए पालाग्रस्त क्षेत्रों मे इसकी फसल अच्छी नही होती है। जीरे की बुवाई का उपयुक्त समय अक्तूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के मध्य तक है।

भूमि का चयन


हालाँकि जीरे की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, लेकिन रेतीली चिकनी बलुई या दोमट मिट्टी जिसमे कार्बनिक पदार्थो की अधिकता व उचित जल निकास हो, इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है|

खेत की तैयारी


अगर आपने अपनी पिछली खरीफ की फसल मे 10-15 टन प्रति हेक्टेअर गोबर की खाद का प्रयोग किया है तो और कोई खाद डालने की जरूरत नही है। अगर आपने ऐसा नही किया है तो आपको खेत की जुताई से पहले 10-15 टन प्रति हेक्टेअर की दर से गोबर की खाद खेत मे दाल देनी चाहिए। इसके साथ साथ आप 30 किलो नाइट्रोजन आर 20 किलो फोस्फोरस प्रति हेक्टेअर की दर से मिट्टी मे मिला दें। और बुआई के 30 या 35 दिन बाद 15 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फोस्फोरस प्रति हेक्टेअर की दर से दे। बाकी 15 किलो नाइट्रोजन बुआई के 60 दिन के बाद सिंचाई के साथ दें।

खाद प्रबन्ध


बुआई के 30 या 35 दिन बाद 15 किलो नाइट्रोजन और 20 किलो फोस्फोरस प्रति हेक्टेअर की दर से दे। बाकी 15 किलो नाइट्रोजन बुआई के 60 दिन के बाद सिंचाई के साथ दें।

जीरे की फसल मे रोग रोधी क्षमता बढ़ाने व बीज की गुणवत्ता बढ़ाने में पोटाश खाद का प्रयोग लाभप्रद रहता है।

बीज की तैयारी


बीज की मात्रा
जीरे की बुवाई के लिए खेत में 12 से 15 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से डालना चाहिए।

बीजों का उपचार
बीजोपचार करने से फसल को भूमि जनित व बीज जनित व्याधियों से बचाया जा सकता है। जीरे को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए बीजों को थाइरम या सेरेसान या बाविस्टिन द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोना चाहिए।

जैविक खेती के लिए बीज को ट्राईकोडर्मा द्वारा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए, ताकि गुणवत्तायुक्त अधिक उपज मिल सके। बीजोपचार सर्वप्रथम कवकनाशी उसके बाद कीटनाशी एवं अन्त में जीवाणु युक्त दवाई या जीवाणु खाद से करना चाहिए।

पौधों को लगाना


बिजाई का समय
जीरे की बुवाई का उपयुक्त समय अक्तूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के मध्य तक है।
कतार विधि (वैज्ञानिक विधि)
जीरे के बीजों की बुवाई 25 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाई गई कतारों में करनी चाहिए एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। उपर्युक्त दोनों विधियों में यह ध्यान रखते है, कि बीज के ऊपर 2.0 सेंटीमीटर से ज्यादा मिट्टी न चढ़ने पाये अन्यथा बीज जमाव प्रभावित होगा।
कतार विधि द्वारा की गयी बुवाई में अपेक्षाकृत अधिक मेहनत की जरुरत होती है। परन्तु इस विधि से बुवाई करने से अंतरासस्य क्रियाएँ जैसे निराई-गुड़ाई व दवाओं के छिड़काव आदि में सुविधा होती है। इस विधि द्वारा बुवाई करने से फसल की कटाई में भी आसानी होती है।

छिड़काव विधि
जीरा उगाने वाले काफी कृषक छिटकवां विधि द्वारा बुवाई करते आये हैं, परन्तु यह बुवाई का वैज्ञानिक तरीका नहीं है| बुवाई की इस विधि में पहले उचित आकार की क्यारियाँ बनाई जाती है| तत्पश्चात् बीजों को समान रूप से बिखेरकर लोहे की दंताली द्वारा हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए| इस विधि द्वारा बुवाई हेतु बीज दर अपेक्षाकृत अधिक लगता है एवं अन्तः कृषि क्रियाएँ (निराई-गुडाई) भी सुविधापूर्वक एवं आसानी से नहीं हो पाती हैं|

पौधों की सिंचाईं


मृदा में अगर नमी की कमी महसूस हो तो बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए, कि क्यारियों में पानी का बहाव तेज न हो अन्यथा बीज बहकर क्यारियों के किनारों पर इकट्ठे हो सकते है। पहली सिंचाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई की जानी चाहिए। यदि जमाव ठीक न हो तथा ऊपर सख्त पपड़ी बन रही हो तो एक और हल्की सिंचाई कर देना लाभदायक रहता है।
मृदा की संरचना तथा मौसम के आधार पर 15 से 25 दिन के अंतराल पर 3 से 5 सिंचाई करनी चाहिए। जब 50 प्रतिशत दाने पूरी तरह भर जाये तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए अन्यथा बीमारियों के प्रकोप की आशंका रहती है। जल के बचत हेतु फॅव्वारा एवं बूंद-बूंद सिंचाई विधि का प्रयोग करना चाहिए

किट/रोग और उनसे बचाव


हानिकारक कीट और रोकथाम
जीरे में कीट-व्याधियों के लिए पौध संरक्षण अपनायें:
प्रथम छिड़काव: बुवाई के 30-35 दिन बाद फसल पर मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत धोल का छिड़काव करें।
द्वितीय छिड़काव: बुवाई के 45 से 50 दिन बाद उपर्युक्त फफूंदनाशी के साथ केराथेन 0.1 प्रतिशत या घुलनशील गंधक 0.2 प्रतिशत व डाइमिथिएट 30 ई.सी. एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से धोल से छिड़काव करें।
तृतीय छिड़काव: दूसरे छिड़काव के 10 से 15 दिन बाद उपयुक्त अनुसार की छिड़काव करें।
भुरकाव: यदि आवश्यक हो तो तीसरे छिड़काव के 10-15 दिन बाद 25 किलो गन्धक चूर्ण का प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करें।

फलों की तुड़ाई


जीरे की फसल किस्म के आधार पर 90 से 135 दिन मे तैयार हो जाती है। फसल की कटाई के बाद इसकी डंठल को अच्छे से सूखा लें और पक्के फर्श पर हल्की हल्की पिटाई करके बीजों को अलग कर लें। और इन्हे अच्छी और शुष्क जगह जहां नमी बिलकुल भी न हो वहाँ रखे।

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