ग्वार

ग्वार


ग्वार उत्पादन की उन्नत तकनीक






ग्वार उत्पादन की उन्नत तकनीक


परिचयः –


ग्वार एक प्राचीन व बहुउददेशीय, गहरे जडतंत्र वाली सूखा-प्रतिरोधी दलहनी फसल हैं। इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा (लगभग 400 से 500 मि.मी.) वाले क्षेत्रो में सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। इसकी फसल से 25-30 कि. ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर भूमि में उपलब्ध होती हैं। ग्वार का मुख्य रूप से बीज, सब्जी, हरा चारा, हरी खाद एवं ग्वार गम के रूप मे प्रचुरता से उपयोग होता हैं।

इसके बीजों में अत्याधिक प्रोटीन (40-45 प्रतिशत) तथा उच्च गुणवत्ता वाला गैलेक्टोमैनन नामक ग्वारगम मिलने के कारण इसको ओद्योगिक फसल का दर्जा प्राप्त हैं। भारतवर्ष संसार का सबसे महत्वपूर्ण ग्वार उत्पादक देश हैं। भारत मे ग्वार का सर्वाधिक क्षेत्रफल (2.33 मि. हैक्टेयर), उत्पादन (1.03 मिलियन टन) एंव औसत उत्पादकता (491 कि.ग्रा./हैक्टेयर) है।

जलवायु :-


ग्वार के लिये नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता ह¨ती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिये 25-30° ब् तापमान अनुकूल पाया गया है। ग्वार के वृद्धि काल के दौरान लगभग 500 से 600 मि.मी. वर्षा होना आवश्यक हैं। पकने के समय साफ मौसम तथा 60 से 65 प्रतिशत आर्दता होनी चाहिये। फसल पकने के समय अधिक वर्षा हानिकारक होती है।

भूमि:-


ग्वार की खेती वैसे तो प्रत्येक प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन अधिक पैदावार के लिए समतल चिकनी उपजाऊ मिट्टी तथा उत्तम जल निकास की भूमि सर्वोतम होती हैं।

भूमि की तैयारीः-


रबी फसल काटने के पश्चात एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए तथा उसके बाद में 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खेत को खरपतवार रहित करने के उपरान्त पाटा चलाकर खेत को समतल करें।

बुबाई का समयः-


ग्वार की बुबाई का उपयुक्त समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं करें सिंचाई के साधन उपलब्ध हो वहाॅ पर ग्वार की फसल की बोनी जून के अन्तिम सप्ताह में भी कर सकते हैं।

उन्नत किस्में :-


ग्वार उत्पादन की उन्नत तकनीक

परिचयः –


ग्वार एक प्राचीन व बहुउददेशीय, गहरे जडतंत्र वाली सूखा-प्रतिरोधी दलहनी फसल हैं। इसकी खेती असिंचित व बहुत कम वर्षा (लगभग 400 से 500 मि.मी.) वाले क्षेत्रो में सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। इसकी फसल से 25-30 कि. ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर भूमि में उपलब्ध होती हैं। ग्वार का मुख्य रूप से बीज, सब्जी, हरा चारा, हरी खाद एवं ग्वार गम के रूप मे प्रचुरता से उपयोग होता हैं।

इसके बीजों में अत्याधिक प्रोटीन (40-45 प्रतिशत) तथा उच्च गुणवत्ता वाला गैलेक्टोमैनन नामक ग्वारगम मिलने के कारण इसको ओद्योगिक फसल का दर्जा प्राप्त हैं। भारतवर्ष संसार का सबसे महत्वपूर्ण ग्वार उत्पादक देश हैं। भारत मे ग्वार का सर्वाधिक क्षेत्रफल (2.33 मि. हैक्टेयर), उत्पादन (1.03 मिलियन टन) एंव औसत उत्पादकता (491 कि.ग्रा./हैक्टेयर) है।

जलवायु :-


ग्वार के लिये नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता ह¨ती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिये 25-30° ब् तापमान अनुकूल पाया गया है। ग्वार के वृद्धि काल के दौरान लगभग 500 से 600 मि.मी. वर्षा होना आवश्यक हैं। पकने के समय साफ मौसम तथा 60 से 65 प्रतिशत आर्दता होनी चाहिये। फसल पकने के समय अधिक वर्षा हानिकारक होती है।

गन्ना उत्पादन

भूमि:-


ग्वार की खेती वैसे तो प्रत्येक प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन अधिक पैदावार के लिए समतल चिकनी उपजाऊ मिट्टी तथा उत्तम जल निकास की भूमि सर्वोतम होती हैं।

भूमि की तैयारीः-


रबी फसल काटने के पश्चात एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए तथा उसके बाद में 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खेत को खरपतवार रहित करने के उपरान्त पाटा चलाकर खेत को समतल करें।

बुबाई का समयः-


ग्वार की बुबाई का उपयुक्त समय जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं करें सिंचाई के साधन उपलब्ध हो वहाॅ पर ग्वार की फसल की बोनी जून के अन्तिम सप्ताह में भी कर सकते हैं।

उन्नत किस्में :-







































































फसलकिस्मेंमुख्य गुणऔसत उपज (क्विंटल/हेक्टेयर)
दाने एवं गम हेतुएच जी -365शाखित, रोमयुक्त तना, बिना कटाव की पत्तीवाली तथा जल्दी से पकनेवाली किस्म है।18-20
एच जी- 563शाखित, रोमयुक्ततना, कोमल पर्णयुक्त तथा जल्दी से पकने वाली किस्म है।18-20
आर जी सी-1066अशाखित मध्यम अवध में पकने वाली रोमयुक्त तना वाली किस्म है।15-18
आर जी सी -1003शाखित जल्दी से पकने वाली किस्म है।15-18
सब्जी हेतु-दुर्गा बहारअशाखित, देरी से पकने वाली, सफेद फूल की किस्म है।50-60
पूसा नवबहारअशाखित, ग्लैबरस देरी से पकने वाली, किस्म है।40-50
चारा हेतुएच एफ जी -119शाखित, रोमयुक्त तना, गहरे कटाव की पत्ती वाली तथा बहुत देरी से पकने वाली किस्म है।300.325
300-325
एच एफ जी -156अशाखित, रोमयुक्त तना, बिना कटाव की पत्ती वाली तथा देरी से पकने वाली किस्म है।300.325
325-350

बीज की मात्रा :-


बीज उत्पादन हेतु : 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
सब्जी उत्पादन हेतु : 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
चरा एवं हरी खाद उत्पादन हेतु : 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

बीजोपचारः-


बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। तत्पश्चात इस उपचारित बीज को विशेष राईज¨बियम कल्चर की 5 ग्राम. मात्रा प्रति किलो बीज की दर से परिश¨धित कर बोनी करें।

बुवाई की विधिः-


रेज्ड बेड पध्दति का उपयोग बोनी के लिए करें। बिना शाखा वाली व जल्दी पकने वाली किस्मो के लिए 30ग10 से.मी. एवं शाखा वाली व मध्यम अवधि वाली किस्मों के लिए 40ग10 सेमी. पंक्ति से पंक्ति एवं पौधो से पौधो की दूरी पर बौनी करें।

खाद एवं उवर्रकः- खाद एवं उर्वरक की मात्रा किल¨ग्राम/हे. होनी चाहिये।





































नाइट्रोजनफास्फोरसपोटाशगंधकजिंक
बीज उत्पादन2040202520
सब्जी उत्पादन2540-50202520
चारा उत्पादन205050

नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरको की पूरी मात्रा बुबाई के समय 5-10 सेमी. गहरी कूड़ में आधार खाद के रूप में दंे।

सिंचाई एवं जल निकास प्रबन्धनः-


फसल मे फूल आने एवं फलियाँ बनने की अवस्था में अवर्षा की स्थिति या वर्षा का अन्तराल अधिक होने पर एक सिंचाई करने से उत्पादन में वृद्धि की जा सकती हैं। ग्वार फसल, खेत में भरे पानी को सहन नही कर पाती है, अतः अधिक वर्षा होने पर जल निकास का उचित प्रबन्धन करें।

Agricultural Technology

खरपतवार नियंत्रण:-


ग्वार में प्रथम निंदाई-गुडाई 20-25 दिन पर व द्वितीय निंदाई-गुडाई बुवाई के लगभग 40 से 45 दिन बाद करना चाहिए। नींदा नाशक दवाओं के छिडकाव में खेत तैयार करते समय फ्लूक्ल¨रेविन 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे. 600 लीटर पानी में घोल कर पूरे खेत मे छिडकाव करें। तत्पश्चात बखर एवं पाटा चलाकर मिट्टी मे मिलायंे इसके बाद ही बोनी करें। ग्वार फसल में अंकुरण पूर्व पेण्डीमिथलीन 0.75 कि.ग्रा./हे. सक्रिय तत्व तथा अंकुरण के पश्चात 20-25 दिन में इमेजाथायपर 40 ग्राम/हे. सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव करने पर सफलता पूर्वक खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता हैं। व्हील हो व हैन्ड हो से निंदाई-गुडाई करने पर लागत खर्च मे कमी की जा सकती हैं। छिडकाव के लिए फ्लैट फेन नोजल पम्प का उपयोग करें।

अन्तर-फसल पद्धति:-


अंतवर्तीय फसल के रूप में ग्वार के साथ बाजरा 3: 1 के रूप में लाभकारी है।

फसल चक्रः-


ग्वार – फलियाँ
ग्वार – चना
ग्वार – सरसों

कटाई एवं मडाई:-



  • बीजोत्पादन – जब ग्वार के पौधों की पत्तियाँ सूख कर गिरने लगे एवं 50 प्रतिशत फलियाँ  एकदम सूखकर भूरी हो जाये तब कटाई करें। कटाई के बाद फसल को धूप मे सुखाकर श्रमिको या थ्रेशर मशीन द्वारा उसकी थ्रेशिंग (मडाई) करें। दानो को अच्छी तरह धूप में सुखा कर उचित भण्डारण करें।

  • सब्जी उत्पादनः- सब्जी के लिए उगाई गई फसल से समय-समय पर लम्बी, मुलायम एवं अधपकी फलियाँ तोडते रहना चाहिए।

  • चारा उत्पादनः- चारे के लिए उगायी गई फसल को फूल आने एवं 50 प्रतिशत फली बनने की अवस्था पर काट लेना चाहिए। इस अवस्था से देरी होने पर फसल के तनों मे लिग्निन का उत्पादन होने लगता है, जिससे हरे चारे की पाचकता एवं पौष्टिकता घट जाती हैं।


ग्वार फसल में लगने वाले प्रमुख कीट व उनका प्रबंधन


ग्वार की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले मुख्य हानिकारक कीटों में एफिड, लीफ हॉपर, सफेद मक्खी, पत्ती छेदक और फली छेदक शामिल है।



























कीटप्रबंधन
एफिड्स (माहू या चेंपा)ग्वार की शीघ्र पकने वाली तथा एफिड रोधी किस्मों का चयन करें। इमिडाक्ल¨र¨प्रिड 17.8 एस. एल. 5 मिली./15 लीटर या डायमेथ¨एट 30 ई. सी. 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घ¨ल बना कर पौधों में छिड़काव करें।
लीफ हॉपर (जैसिड)यदि एक पत्ती पर एक से अधिक निम्फ हो तो, फसल पर इमिडाक्ल¨र¨प्रिड 17.8 एस. एल. 5 मिली./15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करें।
सफेद मक्खीफसल पर ट्राइजोफॉस 40 ई. सी. 2.0 मिली. प्रति लीटर या डायमेथ¨एट 30 ई. सी. 1.0 मिली. प्रति लीटर पानी में घ¨ल कर छिडकाव करना चाहिये ।
फली छेदकक्विनॉलफॉस 25 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या प्रोफेनफॉस 50 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या इन्ड¨स्कार्ब 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घ¨ल बनाकर पौधों पर छिडकाव कर इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता हैँ।
पत्ती छेदकक्विनॉलफॉस 25 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या प्रोफेनफॉस 50 ई. सी. 1.5 मिली. प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. 1 मिली. प्रति लीटर पानी में घ¨ल बनाकर पौधों पर छिडकाव कर इस कीट पर नियंत्रण पाया जा सकता हैँ।;

ग्वार फसल में लगने वाले प्रमुख रोग व उनका प्रबंधन

























रोगप्रबंधन
जीवाणु पर्ण अंगमारी (ब्लाइट)रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एच.जी.-365 व एच.जी.-563 लगाना चाहिए। बीजों को 100 पी.पी.एम. स्ट्रेप्टोसायक्लिन से उपचारित करना चाहिए। पौधांे की पत्तियों पर स्ट्रेप्टोसायक्लिन 150 पी.पी.एम. 0.2 प्रतिशत ब्लीटोक्स के मिश्रण का छिडकाव करना चाहिये।
आल्टरनेरिया लीफ स्पोटरोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एच.जी.-365, आर.जी.सी.-1011 एवं एच.जी.-365 को लगाना चाहिए। 15 दिनों के अन्तर से, व बुवाई के 40 से 50 दिनों मे 1.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से मेन्कोजेब नामक रासायन का छिडकाव करना चाहिए।
रूट रॉट कॉम्प्लेक्सप्रतिरोधक किस्में एच.जी.- 365 व एच.जी.- 563 की बुवाई करें। भूमि द्वारा संक्रमित बीमारियाँ  को रोकने के लिए खेत को अप्रेल-मई के महीने में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करनी चाहिए।
चुर्ण आसिता (पाऊडरी मिल्डयू)फसल पर घुलनशील गंधक 3 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से 15 दिनों के अन्तराल पर छिडकाव करना लाभदायक रहता हैं।

उपजः-

ग्वार फसल की उन्नत उत्पादन प्रोद्योगिकी अपनाने पर औसतन 20 से 25 क्विटल/हेक्टेयर दाना उपज ली जा सकती है।

ग्वार फसल की बहुउपयोगिताः-



  1. हरी फलियों का सब्जी के रूप में उपयोग।
    2. पशुओं के लिए हरा पौष्टिक चारा उपलब्ध।
    3. हरी खाद के रूप में (40-50 कि.ग्रा./ है नाइट्रोजन)।
    4. भूमि में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (25-30 कि.ग्रा/है) करती हैं।
    5. भूमि की उर्वरा शक्ति बढाती हैं।
    6. ग्वारगम प्राप्त होता हैं।


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मसूर की खेती

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