codon and kutki farming

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कोदों एवं कुटकी की उन्नत उत्पादन तकनीक


 



 कोदों एवं कुटकी की खेती




ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। अतः उस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां,एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यानों के रूप में प्राप्त होती है।

भूमि की तैयारी-


ये फसलें प्रायः हर एक प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई धान्य फसल उगाना संभव नही होता वहां भी ये फसलें सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैं। उतार-चढाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकतर उगाई जा रही है। हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के लिये उपयुक्त होती है। बहुत अच्छा जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्रायः सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।भूमि की तैयारी के लिये गर्मी की जुताई करें एवं वर्षा होने पर पुनः खेत की जुताई करें या बखर चलायें जिससे मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जावें।

खरीफ की फसलें

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बीज का चुनाव एवं बीज की मात्रा-


भूमि की किस्म के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भुमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट भूमि में एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बोनी करें। लघु धान्य फसलों की कतारों में बुवाई के लिये 8-10 किलोग्र्राम बीज तथा छिटकवां बोनी के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।लघु धान्य फसलों को अधिकतर छिटकवां विधि से बोया जाता है। किन्तु कतारों में बोनी करने से निदाई गुड़ाई में सुविधा होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।

बोनी का समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका –


वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद लघु धान्य फसलों की बोनी कर देना चाहिये। षीघ्र बोनी करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है। कोदों में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करने पर उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अन्त में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है।

बोनी से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों एवं कुछ हद तक मिट्टी जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है। कतारों में बोनी करने पर कतार से कतार की दूरी 20-25 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 7 से.मी. उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनी 2-3 से.मी. गहराई पर की जानी चाहिये। कोदों में 6-8 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर होना चाहिये।




























































उन्नत जातियाँ  कोदों


विकसित की गई


वर्ष


अवधि(दिनों में)


विशेषताऐं


औसत उपज  (क्विंटल/हेक्ट)

जवाहर कोदों 48 (डिण्डौरी – 48)जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर95-100इसके पौधों की ऊंचाई 55-60 से.मी. होती है।23-24
जवाहर कोदों – 439जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर2000100-105इसके पौधों की ऊंचाई 55-60 से.मी. होती है।  यह जाति विषेषकर पहाड़ी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है। इस जाति में सूखा सहन करने की क्षमता ज्यादा होती है।20-22
जवाहर कोदों – 41जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर1985105-108इसके दोनों का रंग हल्का भूरा होता है। पौधों की ऊंचाई 60-65 से.मी. होती है।20-22
जवाहर कोदों – 62198250-55इसके  पौधों की ऊंचाई 90-95 से.मी. होती है। यह किस्म पत्ती के धारीदार रोग के लिये प्रतिरोधी है यह किस्म सामान्य वर्षा वाली तथा कम उपजाऊ भूमि में आसानी से ली जा सकती है।20-22
जवाहर कोदों – 76199085-87यह किस्म तने की मक्खी के प्रकोप से मुक्त है।16-18
जी.पी.यू.के.- 3100-105पौधों की ऊंचाई 55-60 से.मी. होती है। इसका दाना गहरे भूरे रंग का बड़ा होता है। यह जाति संपूर्ण भारत के लिये अनुषंसित की गई है।22-25
















































कुटकी


जवाहर कुटकी -1(डिण्डौरी – 1)जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर197175-80इसका बीज हल्का काला व बाली की लम्बाई 22 से.मी. होती है।8-10
जवाहर कुटकी -2(डिण्डौरी – 2)जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर198475-80इसका बीज हल्का भूरा व अण्डाकार होता है।8-10
जवाहर कुटकी -8198780-82इसका दाना हल्के भूरे रंग का होता है। पौधों की लम्बाई 80 से.मी. होती है तथा प्रति पौधा 8-9 कल्ले निकलते हैं।8-10
सी.ओ. -280-85इसके पौधा की लम्बाई 110-120 से.मी.  होती है।यह सम्पूर्ण भारत के लिये अनुशंसित है।9-10
पी.आर.सी 375-80इसका पौधा की लम्बाई 100-110 से.मी.  होती है।22-24


खाद एवं उर्वरक का उपयोग


प्रायः किसान इन लघु धान्य फसलों में उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हैं। किंतु कुटकी के लिये 20 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर/हेक्टे. तथा कोदों के लिये 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हेक्टेयर का उपयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। उपरोक्त नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुवाई के समय एवं नत्रजन की षेष आधी मात्रा बुवाई के तीन से पांच सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद देना चाहिये।बुवाई के समय पी.एस.बी. जैव उर्वरक 4 से 5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किग्रा. मिट्टी अथवा कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रयोग करे ।

निंदाई गुड़ाई


बुवाई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निन्दाई करना चाहिये तथा जहां पौधे न उगे हों वहां पर अधिक घने ऊगे पौधों को उखाड़कर रोपाई करके पौधों की संख्या उपयुक्त करना चाहिये। यह कार्य 20-25 दिनों के अंदर कर ही लेना चाहिये। यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है।

फसल सुरक्षा (कीट एंव रोग)














































कीट


लक्षण


रोकथाम


तना की मक्खी

कोदों में इस कीट की छोटे आकार की मटमैली सफेद मैगट फसल की पौध अवस्था पर तने की अंदर के तंतुओं को खाती है। जिसके कारण डेड हार्ड बन जाता है, और इसमें बाले नहीं आती।एजाडिरिक्टीन 2.5 लीटर प्रति हेक्ट 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। डायमिथोएट  30 ई.सी. 750 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रीड150 मिली 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्ट.छिड़काव करें।  अथवा मिथाइल पैराथियान डस्ट का 20किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर से भुरकाव करें। भुरकाव के पहले डेड हार्ड खींचकर इकट्ठा कर लें।

कंबल कीट (हेयर केटर पिलर)

काले रंग की रोयेदार इल्ली है जो पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है।मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत डस्ट का 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।

कुटकी की गाल मिज

इस कीट की मेगट इल्ली, भरते हुये दानों को नुकसान पहुंचाती है। जिससे दाना खराब हो जाता है।बालियों की अवस्था पर क्लोरपायरीफासपाउडर का 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भुरकाव करें या क्लोरपायरीफास 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें ।

कुटकी का फफोला भृंग

यह कीट बालियों में दूध बनने की अवस्था पर नुकसान पंहुचाता है बालियों का रस चूसकर दाने नहीं बनने देता है।इस की कीट की रोकथाम हेतु प्रकाष प्रपंच का उपयोग करें । अधिक प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफास दवा 1 लीटर 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्ट.छिड़काव करें ।

कंडवा रोग

रोग की ग्रसित बालियां काले रंग के पुन्ज में बदल जाती है।वीटावेक्स 2 ग्राम/किलो ग्राम बीज दर से उपचारित करें। रोग ग्रस्त वाली जला दें।

कोदों का घारीदार रोग

पत्तियों पर पीली धारियां षिराओं के समान्तर बनती हैं। अधिक प्रकोप होने पर पूरी पत्ती भूरी होकर सूखकर गिर जाती है।मेन्कोजेब 1 किलो ग्राम/ हेक्टयर की दर से बुवाई के 40 से 45 दिन बाद 500 लीटर पानी में घोलकर.छिड़काव करें ।

कुटकी का मृदुरोमिल ग्रसित (डाऊनी मिल्डयू)

पौधे बोने रह जाते है। पत्तियों की उपरी सतह पर लंबे भूरे रंग के धब्बे जिनकी सतह पर सफेद मुलायम रेषे दिखते हैं।प्रारंभिक लक्षण दिखते ही डायथेन जेड – 78 (0.35 प्रतिषत)15कलो ग्राम/ हेक्टयर की दर से बुवाई के 40 से 45 दिन बाद 500 लीटर पानी में घोलकर.15 दिन के अन्तर से छिड़काव करें ।

फसल की कटाई गहाई एवं भंडारण


फसल पकने पर कोदों व कुटकी को जमीन की सतह के उपर कटाई करें। खलियान में रखकर सुखाकर बैलों से गहाई करें। उड़ावनी करके दाना अलग करें। रागी, सांवा एवं कंगनी को खलिहान में सुखाकर तथा इसके बाद लकड़ी से पीटकर अथवा पैरों से गहाई करें। दानों को धूप में सुखाकर (12 प्रतिषत) भण्डारण करें।

भण्डारण करते समय सावधानियाँ



  • भण्डार गृह के पास पानी जमा नहीं होना चाहिये। भण्डार गृह की फर्ष सतह से कम से कम दो फीट ऊंची होनी चाहिये।
    2- कोठी, बण्डा आदि में दरार हो तो उन्हें बंदकर देवे। इनकी दरार में कीडे हो तो चूना से पुताई कर नष्ट कर देवें।
    3- कोदों का भण्डारण कई वर्षो तक किया जा सकता है, क्योंकि इनके दानों में कीट का प्रकोप नहीं होता है। अन्य लघु धान्य फसल को तीन से पांच वर्ष तक भण्डारित किया जा सकता है।


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खरीफ की फसलें

Sarkari yojana
कोदों एवं कुटकी की उन्नत उत्पादन तकनीक



जबलपुर संभाग में सभी प्रकार की लघु धान्य फसलें ली जाती है। लघु धान्य फसलों की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। सांवा, काकुन एवं रागी को मक्का के साथ मिश्रित फसल के रूप में लगाते हैं। रागी को कोदो के साथ भी मिश्रित फसल के रूप में लेते है।

ये फसलें गरीब एवं आदिवासी क्षेत्रों में उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी प्रकार अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता है। ये फसलें अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रारंभ में पककर तैयार हो जाती है जबकि अन्य खाद्यान फसलें इस समय पर नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ जाने से गरीब किसान उन्हें नही खरीद पाते हैं। अतः उस समय 60-80 दिनों में पकने वाली कोदो-कुटकी, सावां,एवं कंगनी जैसी फसलें महत्वपूर्ण खाद्यानों के रूप में प्राप्त होती है।जबलपुर संभाग में ये फसलें अधिकतर डिण्डौरी, मण्डला, सिवनी एवं जबलपुर जिलों में ली जाती है।

लघु धान्य फसले : म.प्र. में क्षेत्रफल एवं उत्पादकता






























2002-20032007-20082012-20132013-2014
क्षेत्रफल(000हे)उत्पादकता(कि.ग्रा.प्रतिहे)क्षेत्रफल(000हे)उत्पादकता(कि.ग्रा.प्रतिहे)क्षेत्रफल(000हे)उत्पादकता (कि.ग्रा.प्रतिहे)क्षेत्रफल(000हे)उत्पादकता(कि.ग्रा.प्रतिहे)
432225315273233347


स्त्रोत कृषि सांख्यिकी विभाग

भूमि की तैयारी -

ये फसलें प्रायः हर एक प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई धान्य फसल उगाना संभव नही होता वहां भी ये फसलें सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैं। उतार-चढाव वाली, कम जल धारण क्षमता वाली, उथली सतह वाली आदि कमजोर किस्म में ये फसलें अधिकतर उगाई जा रही है। हल्की भूमि में जिसमें पानी का निकास अच्छा हो इनकी खेती के लिये उपयुक्त होती है। बहुत अच्छा जल निकास होने पर लघु धान्य फसलें प्रायः सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।भूमि की तैयारी के लिये गर्मी की जुताई करें एवं वर्षा होने पर पुनः खेत की जुताई करें या बखर चलायें जिससे मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जावें।

बीज का चुनाव एवं बीज की मात्रा-

भूमि की किस्म के अनुसार उन्नत किस्म के बीज का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भुमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट भूमि में एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बोनी करें। लघु धान्य फसलों की कतारों में बुवाई के लिये 8-10 किलोग्र्राम बीज तथा छिटकवां बोनी के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।लघु धान्य फसलों को अधिकतर छिटकवां विधि से बोया जाता है। किन्तु कतारों में बोनी करने से निदाई गुड़ाई में सुविधा होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।

बोनी का समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका -

वर्षा आरंभ होने के तुरंत बाद लघु धान्य फसलों की बोनी कर देना चाहिये। षीघ्र बोनी करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है। कोदों में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करने पर उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अन्त में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है। बोनी से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों एवं कुछ हद तक मिट्टी जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है। कतारों में बोनी करने पर कतार से कतार की दूरी 20-25 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 7 से.मी. उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनी 2-3 से.मी. गहराई पर की जानी चाहिये। कोदों में 6-8 लाख एवं कुटकी में 8-9 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर होना चाहिये।


उन्नत जातियाँ












कोदोंकुटकी











































































































उन्नत जातियाँ कोदोंविकसित की गईवर्षअवधि (दिनों में )विशेषताऐंऔसत उपज (क्विंटल/हेक्ट)
जवाहर कोदों 48 (डिण्डौरी - 48)जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर95-100इसके पौधों की ऊंचाई 55-60से.मी.होती है।23-24
जवाहरकोदों - 439जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर2000100-105इसके पौधों की ऊंचाई 55-60से.मी.होती है।यह जाति विषेष कर पहाड़ी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है। इस जाति में सूखा सहन करने की क्षमता ज्यादा होती है।20-22
जवाहरकोदों - 41जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर1985105-108इसके दोनों का रंग हल्का भूरा होता है। पौधों की ऊंचाई 60-65से.मी.होती है।20-22
जवाहरकोदों - 62198250-55इसके पौधों की ऊंचाई 90-95से.मी.होती है।यह किस्म पत्ती के धारीदार रोग के लिये प्रतिरोधी है यह किस्म सामान्यव र्षावालीतथा कम उपजाऊ भूमि में आसानी से ली जा सकती है।20-22
जवाहर कोदों - 76199085-87यह किस्मत ने की मक्खी के प्रकोप से मुक्त है।16-18
जी.पी.यू.के.- 3100-105पौधों की ऊंचाई 55-60 से.मी.होती है। इसका दाना गहरे भूरे रंग का बड़ा होता है।यह जाति संपूर्ण भारत के लिये अनुषंसित की गई है।22-25
कुटकी
जवाहरकुटकी -1(डिण्डौरी - 1)जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर197175-80इसका बीज हल्का काला व बाली की लम्बाई 22 से.मी.होती है।8-10
जवाहर कुटकी -2(डिण्डौरी - 2)जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर198475-80इसका बीज हल्का भूरा व अण्डाकार होता है।8-10
जवाहर कुटकी -8198780-82इसका दाना हल्के भूरे रंग काहोता है। पौधों की लम्बाई 80 से.मी.होती है तथा प्रति पौधा 8-9 कल्ले निकलते हैं।8-10
सी.ओ. -280-85इसके पौधा की लम्बाई 110-120 से.मी.होती है।यह सम्पूर्ण भारत के लिये अनुशंसित है।9-10
पी.आर.सी 375-80इसका पौधा की लम्बाई 100-110 से.मी.होती है।22-24


खाद एवं उर्वरक का उपयोग

प्रायः किसान इन लघु धान्य फसलों में उर्वरक का प्रयोग नहीं करते हैं। किंतु कुटकी के लिये 20 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर/हेक्टे. तथा कोदों के लिये 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हेक्टेयर का उपयोग करने से उपज में वृद्धि होती है। उपरोक्त नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुवाई के समय एवं नत्रजन की षेष आधी मात्रा बुवाई के तीन से पांच सप्ताह के अन्दर निंदाई के बाद देना चाहिये।बुवाई के समय पी.एस.बी. जैव उर्वरक 4 से 5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किग्रा. मिट्टी अथवा कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रयोग करे ।

निंदाई गुड़ाई

बुवाई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निन्दाई करना चाहिये तथा जहां पौधे न उगे हों वहां पर अधिक घने ऊगे पौधों को उखाड़कर रोपाई करके पौधों की संख्या उपयुक्त करना चाहिये। यह कार्य 20-25 दिनों के अंदर कर ही लेना चाहिये। यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है।

फसल सुरक्षा (कीट एंव रोग)














































कीटलक्षणरोकथाम
तना की मक्खीvalign="top"कोदों में इस कीट की छोटे आकार की मटमैली सफेद मैगट फसल की पौध अवस्था पर तने की अंदर के तंतुओं को खाती है। जिसके कारण डेड हार्ड बन जाता है, और इसमें बाले नहीं आती।एजाडिरिक्टीन 2.5 लीटर प्रति हेक्ट 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। डायमिथोएट 30 ई .स ी. 750 मि .ल ी.या इमिडाक्लोप्रीड 150मिली 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्ट .छिड़काव करें। अथवा मिथाइल पैराथियान डस्ट का 20किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर से भुरकाव करें। भुरकाव के पहले डेड हार्ड खींचकर इकट्ठा कर लें।
कंबल कीट ( हेयर केटर पिलर )काले रंग की रोयेदार इल्ली है जो पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचाती है।मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिषत डस्ट का 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
कुटकी की गाल मिजइस कीट की मेगट इल्ली ,भरते हुये दानों को नुकसान पहुंचाती है। जिससे दाना खराब हो जाता है।बालियों की अवस्था पर क्लोरपायरीफासपाउडर का 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भुरकाव करें या क्लोरपायरीफास 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें ।
कुटकी का फफोला भृंगयह कीट बालियों में दूध बनने की अवस्था पर नुकसान पंहुचाता है बालियों का रस चूसकर दाने नहीं बनने देता है।इस की कीट की रोकथाम हेतु प्रकाष प्रपंच का उपयोग करें । अधिक प्रकोप होने पर क्लोरपायरीफास दवा 1 लीटर 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्ट .छिड़काव करें ।
कंडवा रोगरोग की ग्रसित बालियां काले रंग के पुन्ज में बदल जाती है।वीटावेक्स 2 ग्राम/किलो ग्राम बीज दर से उपचारित करें। रोग ग्रस्त वाली जला दें।
कोदों का घारीदार रोगपत्तियों पर पीली धारियां षिराओं के समान्तर बनती हैं। अधिक प्रकोप होने पर पूरी पत्ती भूरी होकर सूखकर गिर जाती है।मेन्कोजेब 1 किलो ग्राम /हेक्टयर की दर से बुवाई के 40 से 45 दिन बाद 500 लीटर पानी में घोलकर .छिड़काव करें ।
कुटकी का मृदुरोमिल ग्रसित ( डाऊनी मिल्डयू )पौधे बोने रह जाते है। पत्तियों की उपरी सतह पर लंबे भूरे रंग के धब्बे जिनकी सतह पर सफेद मुलायम रेषे दिखते हैं।प्रारंभिक लक्षण दिखते ही डायथेन जेड - 78 (0.35 प्रतिषत )15कलो ग्राम /हेक्टयर की दर से बुवाई के 40 से 45 दिन बाद 500 लीटर पानी में घोलकर .15दिन के अन्तर से छिड़काव करें ।


फसल की कटाई गहाई एवं भंडारण

फसल पकने पर कोदों व कुटकी को जमीन की सतह के उपर कटाई करें। खलियान में रखकर सुखाकर बैलों से गहाई करें। उड़ावनी करके दाना अलग करें। रागी, सांवा एवं कंगनी को खलिहान में सुखाकर तथा इसके बाद लकड़ी से पीटकर अथवा पैरों से गहाई करें। दानों को धूप में सुखाकर (12 प्रतिषत) भण्डारण करें।

भण्डारण करते समय सावधानियाँ

  • भण्डार गृह के पास पानी जमा नहीं होना चाहिये। भण्डार गृह की फर्ष सतह से कम से कम दो फीट ऊंची होनी चाहिये।

  • कोठी, बण्डा आदि में दरार हो तो उन्हें बंदकर देवे। इनकी दरार में कीडे हो तो चूना से पुताई कर नष्ट कर देवें।

  • कोदों का भण्डारण कई वर्षो तक किया जा सकता है, क्योंकि इनके दानों में कीट का प्रकोप नहीं होता है। अन्य लघु धान्य फसल को तीन से पांच वर्ष तक भण्डारित किया जा सकता है।


लागत आय गणना (फसल -कोदों )












































































क्रमांकमदरू/ हे
1.खेतकीतैयारी1500
2.बीज360
3.बीजउपचार40
4.खादएवंउर्वरक1200
5.बुवाई300
6.निंदाई गुड़ाई2000
7.कटाई3000
8.गहाईसफाई1200
कुल लागत ( रू / हे )9600
कुल उपज ( क्विन्टल / हे )12 (2000रू/क्विन्टल )
भूसा ( रू )1200
सकल आय ( रू / हे )25200
षुध्द आय ( रू / हे )15600


लागत आय गणना (फसल - कुटकी)












































































क्रमांकमदरू /हे
1.खेत की तैयारी1500
2.बीज360
3.बीज उपचार40
4.खाद1200
5.बुवाई300
6.निंदाई गुड़ाई2000
7.कटाई3000
8.गहाई सफाई1200
कुल लागत (रू /हे )9600
कुल उपज (क्विन्टल /हे )10 (2500रू /क्विन्टल )
भूसा (रू )1200
सकल आय (रू /हे )26200
षुध्द आय (रू /हे )16600




 

 

 

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