अरंडी Castor की खेती

अरंडी Castor की खेती


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(Castor Oil Farming) से सम्बंधित जानकारी


अरंडी की खेती खरीफ के मौसम में औषधीय तेल के रूप में की जाती है | इसका पौधा झाड़ी के रूप में विकास करता है | इसकी खेती व्यापारिक तौर पर अधिक लाभ कमाने के लिए की जाती है | अरंडी का बीज लम्बे समय तक पकता रहता है, जिसमे 40 से 60 प्रतिशत तेल की मात्रा पायी जाती है | इसके तेल के इस्तेमाल से कपड़ा, साबुन, प्लास्टिक, कपड़ा रंगाई, हाइड्रोलिक ब्रेक तेल, वार्निश और चमड़े आदि चीजों को बनाया जाता है | इसके अलावा इस तेल को पाचन, पेट दर्द, और बच्चो की मालिश के लिए भी उपयोग करते है, तथा तेल निकालते समय निकलने वाली खली को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करते है |

अरंडी Castor की उत्पादन तकनीक


अरंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Castor Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)



  • इसकी खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है |

  • इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली अवश्य हो |

  • अरंडी की खेती बंजर भूमि में कर सकते है |

  • इसकी खेती क्षारीय भूमि में बिल्कुल न करे |






अरंडी Castor की खेती मुख्य रूप से औषधीय तेल के रूप में के लिए की जाती है | तेल का उपयोग दवा तथा साबुन बनाने में किया होता है | इसका उपयोग पेट दर्द, पाचन तथा बच्चों की मालिश केलिए भी उपयोगी है | इसके खली जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है | अरण्डी की पेड़ एक झाड़ीनुमा 10 से 12 फीट के कमजोर होती है | इसकी खेती के लिए खास कोई मिट्टी की जरूरत नहीं होती है | अरण्डी का प्रमुख्य उत्पादक देश भारत है इसके बाद चीन तथा ब्राजील है | भरत में इसका उत्पादन 10 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष होता है |

  • मुख्य बीज किस्में

  • फसल चक्र

  • जुताई एवं खेत की तैयारी

  • बीज उपचार

  • बुआई करनें की विधियाँ

  • खाद और उर्वरक का प्रयोग

  • सिंचाई 

  • मुख्य रोग एवं उनका उपचार

  • लगने वाले कीट और उनका नियंत्रण

  • कटाई एवं भण्डारण


अरंडी Castor की मुख्य प्रजातियाँ


अरण्डी की मुख्य प्रजातियों में से 47 – 1 (ज्वाला), ज्योति, क्रांति किरण, हरिता, जीसी -2, टीएमवि -6, किस्में तथा डीसीएच – 519, डीसीएच- 177, डीसीएच – 32, जी.सी.एच  -4, जी.सी.एच -5,6,7 इत्यादी | अरंडी की अन्य विकसित किस्में आप सीड नेट पोर्टल पर देख सकते हैं |

फसल क्रम / फसल चक्र


खेत में फसल बदल – बदल कर लगाना चाहिए | इससे खेत में पोषक तत्वों की पूर्ति होती रहती है | इसके लिए फसल का चुनाव करना जरुरी है | किसान फसल चक्र को इस तरह अपना सकते हैं – अरण्डी – मूंगफली, अरण्डी – सूरजमुखी, अरण्डी – बाजार, अरण्डी – रागी, अरण्डी – अरहर, अरंड – ज्वार, बाजरा – अरण्डी, ज्वार – अरण्डी, अरंड – मुंग, अरंड – तिल, अरंड- सूरजमुखी, सरसों – अरंड, अरंड – बाजरा – लोबिया |

अरण्डी के लिए जुताई :-


खेती के लिए मानसून आने से पहले देशी हल से एक – दो जुताई कर के पाटा चलायें | बुवाई के समय दक्षिण पश्चिम मानसून की वर्ष के तुरन्त बाद बुवाई करें | रबी की बुवाई सितम्बर – अक्तूबर और गर्मी की फसल की बुवाई जनवरी में करें |

बीजों की गुणवत्ता


प्राधिकृत एजेंसी से अच्छे संकर / किस्मों के बीज खरीदें | बीज अछि उत्पादन देने के साथ – साथ रोग प्रतिरोधी होना चाहिए | तथा बीज को 4 से 5 वर्षों तक काम में लाया जा सकता है |

बीज दर और दुरी


बीजों कि दुरी उसके बुवाई तथा बीज का आकार पर निर्भर करता है | वर्षा काल में 90 से 60 से.मी. और सिंचित फसल के लिए 120 से 60 सेमी की दुरी रखें | वर्षा काल में खरीफ में बुवाई में देरी हो, तब दुरी कम रखें | बीजों के आकार के आधार पर 10 – 15 किलोग्राम / हैक्टेयर बीज दर पर्याप्त है |

अरंडी castor का बीज उपचार


बीज का उपचार करना जरुरी है | इससे बीज का अंकुरण अधिक तथा रोगों का प्रभाव कम होता है | अरण्डी बीज का उपचार थीरम या कैप्टन से 3 ग्राम / किलोग्राम या कर्बेन्डेलियम 2 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से करें और ट्राइकोडरमा विरिड़े से 10 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से करें और 2.5 किलोग्राम की मात्रा 125 किलोग्राम खाद / है, की दर से मिटटी में मिलायें |

बुवाई की विधियाँ और साधन


साधारणत:- देशी हल चलाने के बाद अरंडी की बुवाई करें | इसके अलावा सीड ड्रिल से भी बीज की बुवाई उचित नमी पर कर सकते हैं | बुवाई से पहले 24 से 48 घंटे तक बीजों को भिगो कर रखे | लवणीय मिटटी हो तो बुवाई से पहले बीजों को 3 घंटे तक 1 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड में भिगोंये |

खाद और उर्वरक का प्रयोग


बुवाई से पहले 10 से 12 टन खाद / है. मिटटी में मिलाएं | अरंड के लिए सुझाए गए उर्वरक (किलोग्राम / है.) नाइट्रोजन फास्फोरस पोटाश इस मात्रा में उपयोग करें | वर्षा काल में नाईट्रोजन 60 किलो , फास्फोरस 30 किलो तथा पोटाश 0 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तथा असिंचित अवस्था में नाईट्रोजन120 किलोग्राम, फास्फोरस 30 किलोग्राम तथा पोटाश 30 किलोग्राम उपयोग करना चाहिए |

अरंडी में सिंचाई 


खेती के लिए बारिश का पानी ही पर्याप्त होता है लेकिन जब अधिक समय तक सुखा हो तब फसल वृद्धि की अवस्था में पहले क्रम के स्पाइकों के विकास या दुसरे क्रम के स्पाइकों के निकलने / विकास के समय एक संरक्षी सिंचाई करें जिससे उपज अच्छी होती हैं | ऐन्चाई के लिए ड्रिप पद्धति का प्रयोग करें जिससे 80 प्रतिशत पानी की बचत होती है |

अरंडी खरपतवार नियंत्रण एवं निदाई – गुडाई


अरण्डी की पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मिल सके इसलिए खरपतवार की नियंत्रण करना जरुरी है | वर्ष के क्षेत्रों में बैलों से चलने वाले हल से बुवाई के 25 दिन बाद से ही खेत की निदाई – गुडाई शुरू कर देना चाहिए | इसके अलावा हाथ से भी खरपतवार कोसफ करना चाहिए | अरंडी की फसल में सितम्बर से जनवरी तक में खरपतवार ज्यादा दिखाई देता है इसे फूल आने से पहले हाथ से जड़ से उखाड़ दें | सिंचित फसल में फ्लुक्लोरेलिन या ट्राईफ्लोरेलिन का एक किलोग्राम / हैक्टेयर अंकुरण के बाद या अंकुरण से पहले एलाक्लोर 1.25 किलोग्राम / हैक्टेयर मिटटी में मिलायें |

मुख्य रोग और उनका प्रबंधन


किसी फसल में बीज , सिंचाई, उर्वरक के अलावा रोग तथा कीट की समुचित व्यवस्था करना जरुरी रहता है | रोग और कीट से कभी – कभी नुकसान इतना होता है की पूरी फसल ही खत्म हो जाता है |
फ्यूजेरियम उखटा :-

इस रोग से पौधे धीरे – धीरे पीले होकर रोगी दिखाई देने लगते हैं | उपरी पत्तियां और शाखाएँ मुद कर मुरझा जाती है |
रोकथाम :-

इसकी रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी बीज का चुनाव करें जैसे डीसीएस – 9, 48 – 1 (ज्वाला), हरिता, जिसिएच – 4, जीसीएच – 5, डीसीएच – 5, डीसीएच – 177 की बुवाई करें | कर्बेन्डजियम 2 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से या (कर्बेन्डेजियम 1 ग्राम./ ली. में 12 घंटे के लिए भीगा कर) /  टी. विरिड़े 10 ग्रा. / किलोग्राम से बीजों का उपचार और 2.5 किलोग्राम / है. 12.5 किलोग्राम खाद के साथ के साथ मिटटी में मिलायें | लगातार खेती न करें | बाजरा / रागी या अनाज के साथ फसल चक्र लें |
जड़ों का गलना / काला विगलन :-

इस रोग में पौधों में पानी की कमी दिखाई देती है , उपरी जड़ें सुखी गहरे दिखाई देने लगती है | जड़ की छाल निकालने लगती है |
रोकथाम :-

फसलों के अवशेषों को जला कर नष्ट कर दें | अनाज की फसलों के साथ फसल चक्र लें | प्रतिरोधी किस्में जैसे ज्वाला (48 – 1) और जीसीएच – 6 की खेती करें | टी. विरिड़े 4 ग्राम / किलोग्राम बीज या थिरम / कैप्टन से 3 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करें |
अल्टेरनेरिया अंगमारी :-

इस रोग की पहचान यह है कि बीज पत्र की पत्तियों पर हल्के भूरे गोल धब्बे दिखाई देते है और परिपक्व पत्तियों पर सघन छल्लों के साथ नियमित धब्बे होते हैं | बाद में यह धब्बे मिलने से अंगमारी होती है और पत्तियां झड़ जाती है | रोगाणुओं के स्थ पर जमा होने से अपरिपक्व कैप्सूल भूरे से काले होकर गीर जाते हैं | परिपक्व कैप्सूल पर काली कवकी वृद्धि होता है |
रोकथाम :-

थिरम / कैप्टन से 2 – 3 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करें | फसल वृद्धि के 90 दिन से आरंभ कर आवश्यकता के अनुसार 2 – 3 बार 15 दिनों के अंतराल से मैन्कोजेब 2.5 ग्रा. / ली. या कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम / लीटर का छिड़काव करें | पाउडरी मिल्ड्यू –  पत्तियों की निचली स्थ पर सफ़ेद पाउडर की वृद्धि होती है | पत्तियां बढने से पहले ही भरी हो कर झड जाती है | बुवाई के तिन महीने बाद से आरंभ कर दो बार वेटेबल सल्फर 0.2 प्रतिशत का 15 दिनों के अंतराल से छिड़काव करें |

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ग्रे रांट / ग्रे मोल्ड :-

आरंभ में फूलों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते है जिसमें से पिली द्रव रिसता है जिससे कवकीय धागों की वृद्धि होती है जो संक्रमण को फैलाते है | संक्रमित कैप्सूल गल कर गिरते है | अपरिपक बीज नर्म हो जाते है और परिपक्व बीज खोखले , रंगहीन हो जाते हैं | संक्रमित बीजों पर काली कवकीय वृद्धि होती है |
रोकथाम :-

सहनशील किस्म ज्वाला (48 – 1) की खेती करें | कतारों के बीच अधिक दुरी 90 से 60 से.मी. रखें | कर्बेन्डेजियम या थियोफ्नाते मिथाइल का 1 ग्रा. / ली. से छिड़काव करें | टी. विरिड़े और सूडोमोनस फ्लुरोसेसस का 3 ग्रा. / ली. से छिड़काव करें | संक्रमित स्पाइक / कैप्सूल को निकाल कर नष्ट कर दें | बारिश के बाद 20 ग्रा. / है. यूरिया फसल पर बिखरने से नए स्पाइक बनते हैं |

अरंडी में मुख्य कीट और उनका प्रबंधन


सेमीलूपर :-

यह कीट पौधे के पत्ती को खा जाती है | पुराने लारवें तने और शिराएँ छोड़ कर पौधे के सभी भाग खा लेते है | फसल वृद्धि की आरंभिक अवस्था में जब 25 प्रतिशत से अधिक पत्तियां झड़ने लगें तब ही इल्लियों को हाथ से निकाल कर फेंक दें |
तम्बाकू की इल्लियाँ :-

अधिकतर हानि पत्तियां झड़ने से होती है | खराब पत्तियों के साथ छोटे अण्डों और नष्ट हुई पत्तियों के साथ इल्लियों को एकत्र कर नष्ट कर दें | जब 25 प्रतिशत से अधिक पत्तियों पर नुकसान हो तब क्लोरोपाइरिफोस 20 ई.सी. 2 मि.ली.प्रति लीटर या प्रोफेनोफास 50 ई.सी. 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें |
कैप्सूल बेधक

यह कीट कैप्सूल को छेद कर पूरी बीज को खा जाती है इसके बाद एक कैप्सूल से दुसरे कैप्सूल में चली जाती है | इल्लियाँ कैप्सूल को बेधती है | कैप्सूल में जली और उत्सर्जित पदार्थ देखा जा सकता है | कीटनाशियों का कम उपयोग करें | 10 प्रतिशत कैप्सूल नष्ट पर किवनाल्फास 25 ई.सी., 1.5 मी.लि. / लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें | अधिक संक्रमन हो तब एसिफेट 75 प्रतिशत एस.पी.का 1.5 ग्रा./ली. पानी का छिड़काव करें | सफ़ेद मक्खी के लिए ट्रायेजोफास 40 ई.सी. , 2 मि.लि. / लीटर पानिमे घोलकर छिड़काव करें |

अरंडी की कटाई और गहाई


फसल की काटाई के लिए यह जानना जरुरी है कि पौधे का बीज पक चूका होगा | अगर कम पक्का होगा तो बीज खराब हो सकता है | इसके लिए यह जानना जरुरी है की पौधा को कैसे जाने की कटाई का समय आ चूका है | बुवाई के बाद 90 से 120 दोइनों के बाद जब कैप्सूल का रंग होने लगे तब कटाई करें | इसके बाद 30 दिनों के अंतराल के क्रम से स्पाइकों की कटाई करें | काटाई कर स्पाइकों की धूप में सुखायें जिससे गहाई में आसानी होती हैं | गहाई छड़ियों से कैप्सूलों को पिट कर या ट्रैक्टर या बैलों से या मशीन से करें |


अरंडी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान (Castor Cultivation Suitable Soil, Climate and Temperature)



  • इसकी खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है |

  • इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली अवश्य हो |

  • अरंडी की खेती बंजर भूमि में कर सकते है |

  • इसकी खेती क्षारीय भूमि में बिल्कुल न करे |

  • भूमि का P.H. मान 5 से 6 के मध्य होना चाहिए |

  • इसकी खेती किसी भी जलवायु में की जा सकती है, किन्तु शुष्क और आद्र जलवायु में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है |

  • सर्दियों में गिरने वाला पाला पौधों को कुछ हद तक हानि पहुँचाता है |

  • आरम्भ में पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है |

  • फसल पकने के दौरान पौधों को उच्च तापमान की आवश्यकता होती है |


अरंडी की उन्नत किस्में (Castor Improved Varieties)


व्यापारिक तौर पर की जाने वाली अरंडी की खेती के लिए बाज़ारो में कई तरह की उन्नत किस्में देखने को मिल जाती है | यह सभी किस्में दो प्रजातियों में विभाजित की गयी है, जिसमे साधारण और संकर प्रजाति शामिल है |
































































प्रजातिउन्नत किस्मतेल की मात्राउत्पादन समयउत्पादन
साधारण प्रजातिज्योति50 प्रतिशततक140 से 160 दिनमें14 से 16 क्विंटल प्रतिहेक्टेयर
अरुणा52 प्रतिशततक170 दिन में15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
भाग्य54 प्रतिशततक150 दिनमें22 से 25 क्विंटलप्रति हेक्टेयर
क्रांति50 प्रतिशततक180 दिनमें18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
ज्वाला 48-149 प्रतिशततक160 से 190 दिनमें16 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
संकर प्रजाति  आर एच सी 150 प्रतिशततक100 दिनमें30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
जी सी एच 448 प्रतिशततक90 से 110 दिनमें18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
डी सी एस 948 प्रतिशततक120 दिनमें25 से 27 क्विंटलप्रति हेक्टेयर


अरंडी के खेत की तैयारी (Castor Field Preparation)


अरहर की खेती

अरंडी के पौधों की जड़े भूमि में अधिक गहराई तक जाती है | इसलिए इसकी खेती में मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए | इसके लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है | खेत की जुताई के बाद उसे कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है, इससे खेत की मिटटी में सूर्य की धूप ठीक तरह से लग जाती है, और मिटटी में मोजूद हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते है |

खेत की पहली जुताई के बाद उसमे प्राकृतिक खाद के रूप में 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालना होता है | खाद डालने के बाद जुताई कर मिट्टी में खाद को ठीक तरह से मिला दे | इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दे | पानी लगे खेत में जब पानी सूख जाता है, तो उसकी दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है | इसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है

अरंडी के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका (Castor Seeds Planting Right time and Method)


अरंडी के बीजो की बुवाई के लिए ड्रिल विधि का इस्तेमाल किया जाता है | इसके लिए खेत में चार फ़ीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है | इन पंक्तियों में बीजो को दो से ढाई फ़ीट की दूरी पर लगाया जाता है | इसके अलावा यदि आप चाहे तो बीज रोपाई हाथ के माध्यम से भी कर सकते है |

एक हेक्टेयर के खेत में संकर क़िस्म के 11 से 15 किलो बीज तथा साधारण प्रजाति के तक़रीबन 20 किलो बीजो की आवश्यकता होती है | बीज रोपाई से पूर्व उन्हें कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेते है | अरंडी के बीजो की रोपाई के लिए जून और जुलाई का महीना सबसे उचित होता है |

अरंडी के पौधों की सिंचाई (Castor Plant Irrigation)


अरंडी के बीजो की बुवाई बारिश के मौसम में की जाती है, जिस वजह से इसे पहली सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | किन्तु बारिश के मौसम के पश्चात् पौधों को 18 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना होता है | इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | जिस वजह से इसके पौधों को जरूरत पढ़ने पर ही पानी देना होता है |

अरंडी के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण (Castor Plants Weed Control)


इसके पौधों को आरम्भ में खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है | इसके लिए जब फसल में आरम्भ में खरपतवार दिखाई दे तो तुरंत गुड़ाई कर उन्हें निकाल देना होता है | इसके पौधों को अधिकतम दो से तीन गुड़ाई की ही आवश्यकता होती है | यदि आप चाहे तो खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक विधि का भी इस्तेमाल कर सकते है | रासायनिक विधि में पेंडीमेथालिन की उचित मात्रा का छिड़काव बीज रोपाई से पूर्व खेत में करना होता है |

हॉप शूट्स की खेती कैसे करे



अरंडी के पौधे में लगने वाले रोग एवं उनकी रोकथाम (Castor Plant Diseases and Prevention)


झुलसा रोग


इस क़िस्म का रोग पौधों पर मध्य अवस्था में देखने को मिलता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर भिन्न-भिन्न आकार के धब्बे दिखाई देने लगते है, तथा कुछ समय पश्चात् ही यह धब्बे और बढ़ जाते है, जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते है, और कुछ समय पश्चात ही पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है | इस रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करना होता है |

उकठा रोग


अरंडी के पौधों पर यह रोग फूल बनने के दौरान देखने को मिलता है | इस क़िस्म का रोग पौधों पर फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरियम नामक फफूंदी की वजह से लगता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों का रंग पीला होने लगता है, तथा कुछ समय पश्चात् ही पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता है | अरंडी के पौधों को इस रोग से बचाने के लिए खेत में गोबर की खाद डालते समय ट्राइकोडर्मा विरिडी की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है|

सफेद मक्खी रोग


सफ़ेद मक्खी का रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है | इस रोग से प्रभावित पौधों की निचली सतह पर सफ़ेद रंग के कीट नज़र आने लगते है | जो पत्तियों का रस चूसकर उन्हें हानि पहुंचाते है | इस रोग से बचाव के लिए नीम के तेल या निम्बीसिडीन की उचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है |

अरंडी का भाव, फसल की कटाई, पैदावार और लाभ (Castor Harvest, Yield and Benefits)


अरंडी की उन्नत किस्में 120 से 150 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है | जब इसके पौधों पर लगे बीजो का रंग भूरा या पीला दिखाई देने लगे उस दौरान पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए | इसके सिकरे की कटाई के पश्चात् उन्हें अच्छी तरह से धूप में सूखा लिया जाता है | इसके बाद मशीन की सहायता से बीजो को अलग कर लिया जाता है |

एक हेक्टेयर के खेत से तक़रीबन 25 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | अरंडी का बाज़ारी भाव 5 हज़ार रूपए प्रति क्विंटल होता है | जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से सवा लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है

सूरजमुखी की खेती

सोयाबीन की खेती

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