रामतिल

रामतिल



रामतिल की उन्नत कृषि तकनीकी





  1. परिचय

  2. खेत की तैयारी

  3. अनुशंसित किस्में

  4. बुआई प्रबंधन

  5. जैव उर्वरकों का उपयोग

  6. जैव उर्वरकों का नाम एवं अनुशंसित मात्रा

  7. जैव उर्वरकों के प्रयोग की विधि

  8. पोषक तत्व प्रबंधन

  9. सिंचाई एंव जल प्रबंधन

  10. नींदा प्रबंधन

  11. अमरबेल का प्रबंधन

  12. बुआई के पूर्व

  13. रोग प्रबंधन

  14. कीट प्रबंधन की विभिन्न विधियाँ

  15. कटाई एंव गहाई

  16. उपज एंव भण्डारण







SWARAJ CODE TRACTOR INFORMATION

परिचय


आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की जगनी के नाम से जाने जानी वाली रामतिल एक तिलहनी फसल है।मध्यप्रदेश में इसकी खेती लगभग 87हजार हेक्टेयर भूमि में की जाती है तथा 30हजार टन उत्पादन मिलता है। प्रदेश में देश के अन्य रामतिल उत्पादक प्रदेशों की तुलना से औसत उपज अत्यंत कम (343 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है। मध्यप्रदेश में इसकी खेती मुख्य रूप से छिंदवाड़ा, बैतूल, मंडला, डिन्डौरी, कटनी, उमरिया एवं शहडोल जिलों में की जाती है। रामतिल के बीजों में 38-43 प्रतिशत तेल एवं 20से30प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है। रामतिल की फसल को नमी के अभाव में अथवा विषम परिस्थितियों में अनुपजाऊ एवं कम उर्वराशक्ति वाली भूमि में भी उगाया जा सकता है। फसल भूमि का कटाव रोकती है। रामतिल की फसल के बाद उगाई जाने वाली फसल की उपज अच्छी आती है। मध्यप्रदेश में इसकी काश्त आदिवासियों द्वारा अधिकतर ढालू नुमा जनजातीय क्षेत्रांतर्गत सीमांत एवं उपसीमांत भूमि पर की जाती है। इसके अतिरिक्त रामतिल की खेती असिंचित अवस्थाओं में वर्षा आधारित परिस्थितियों में बिना आदानों के सीमित निवेश के साथ की जाती है जो इसकी उत्पादकता को प्रभावित करते है। उन्नत तकनीक के साथ अनुशंसित कृषि कार्यमाला अपनाते हुये काश्त करने पर रामतिल की फसल से 700-800किग्रा/हे0 तक उपज प्राप्त की जा सकती जहाँ पर ऐरा प्रथा समानतय प्रचलित है वहाँ पर इसकी खेती सरलता से की जा सकती है।

म.प्र. में क्षेत्रफल - 87 हजार हेक्टेयर

म.प्र. में उत्पादकता - 343 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर

प्रमुख उत्पादक जिले - छिंदवाड़ा, बैतूल, मंडला, कटनी,डिन्डौरी, उमरिया एवं शहडोल

Mahindra Arjun NOVO 605 DI-i

खेत की तैयारी


इसकी खेती पड़ती एवं पर्वतीय मूमि में विगड़ी भूमि को सुधारते हुए करते हैं। अतः विषेष तैयारी की आवश्यकता  नहीं होती। बोनी करने के लिए कम से कम जुताई की आवश्यकता  होती है।

Coronavirus in India LIVE Updates: ‘Hybrid immunity gives better protection from Covid than just vaccines’

अनुशंसित किस्में


प्रदेश में फसल की काश्त हेतु निम्नलिखित अनुसंशित उन्नत किस्मों को अपनाना चाहियेः-



























































































क्र.किस्म का नामविकसित स्थानअनुसंशित वर्षउपज क्वि./हे.विशेषताएं
1उटकमंड  6.00अवधि - 105 से 110 दिन

तेल - 40 प्रतिशत

 
2जे.एन.सी. - 6अनुसंधान केन्द्र छिन्दवाड़ा (म.प्र.)20025.00 से 6.00अवधि - 95 से 100 दिन

तेल - 40 प्रतिशत पत्ती धब्बे के लिए सहनशील
3जे.एन.सी. - 1अनुसंधान केन्द्र छिन्दवाड़ा (म.प्र.)20066.00अवधि - 95 से 102 दिन

तेल - 38 प्रतिशत

दाने का रंग काला
 

4
जे.एन.एस. - 9अनुसंधान केन्द्र छिन्दवाड़ा (म.प्र.)20065.5 से 7.095 से 100 दिन

तेल - 39 प्रतिशत

संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त

 
5जबिरसा  नाईजर - 1बिरसा  कृषि विश्वविद्यालय कानके, राँची झारखण्ड19955.00 से 7.00अवधि - 95 से 100 दिन

तेल - 40.7 प्रतिशत

गुलाबी रंग का तना एवं हल्का काले रंग का दाना उपयुक्त

 
6बिरसा  नाईजर - 2बिरसा  कृषि विश्वविद्यालय कानके, राँची झारखण्ड20056.00 से 8.00अवधि - 96 से 100 दिन

संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त

 
7बिरसा  नाईजर - 3बिरसा  कृषि विश्वविद्यालय कानके, राँची झारखण्ड2009

 
6.00 से 7.00अवधि - 98 से 105 दिन

 
8पूजाबिरसा  कृषि विश्वविद्यालय कानके,राँची झारखण्ड20036.00 से 7.00,अवधि - 96 से 100 दिन

तेल - 39 प्रतिशत

संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त

दाने का रंग काला

 
9गुजरात नाईजर - 1नवसारी कृषि विश्वविद्यालय गुजरात20017.00अवधि - 95 से 100 दिन

तेल - 40 प्रतिशत

दाने का रंग काला

संपूण भारत हेतु उपयुक्त

 
10एन.आर.एस. - 96 -1नवसारी कृषि विश्वविद्यालय गुजरात 4.5 से 5.5mअवधि - 94 से 100 दिन

तेल - 39 प्रतिशत

दाने का रंग काला

 

अरंडी Castor की खेती

बुआई प्रबंधन


बोने की विधि एंव पौध अंतरणः- रामतिल को बोनी कतारों में दूफन, त्रिफन या सीडड्रील द्वारा कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा कतारों में पौधों से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखते हुये 3 से.मी. की गहराई पर करना चाहिये। बोनी करते समय बीजों का पूरे खेत में (कतारों में) समान रूप से वितरण हो इसके लिए बीजों को बालू/कण्डे की राख/गोबर की छनी हुई खाद के साथ 1:20 के अनुपात में अच्छी तरह से मिलाकर बोना चाहिए।

बीज दर सामान्यत- 5 से 7 किग्रा बीज प्रति हे. की दर से बोनी हेतु आवश्यक होता है।

बीजोपचार - फसल को बीजजनय एवं भूमिजनय रोगो से बचाने के लिए बोनी करने से पहले फफूंद नाशी दवा थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

दवा उपयोग करने का तरीका - बीज को किसी पॉलीथिन शीट में समान रूप से फैला लेना चाहिये। फफूंद दनाशक दवा की अनुशंसित मात्रा को समान रूप से बीज में मिलाकर पानी से मिला देना चाहिये एवं लगभग 20-25 मिनट तक हवा लगने देना चाहिये। बीजोपचार के दौरान दस्ताने अवश्य पहनकर बीजोपचार करना चाहिये।

जैव उर्वरकों का उपयोग


जैव उर्वरकों से लाभ

जैव उर्वरक, जीवाणु मिश्रित होते हैं जो कि फसल को फसल हेतु आवश्यक नत्रजन तत्व को वायुमण्डल से पौधों को उपलब्ध कराते हैं तथा मृदा में स्थित अघुलनशील स्फुर तत्व को घुलनशील कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों की तुलना में अत्यन्त सस्ते होते हैं एवं इनके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की मात्रा को कम कर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

VST shakti 130 DI POWER TILLER

जैव उर्वरकों का नाम एवं अनुशंसित मात्रा


रामतिल में प्रमुख रूप से एजोटोबेक्टर एवं स्फुर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) जैव उर्वरकों का प्रयोग 5-5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीजोपचार किया जाना चाहिये। यदि किसी कारणवश जैव उर्वरकों से बीजोपचार नहीं कर पाए हो तो इस दशा में बोनी करने के पूर्व आखरी बार बखरनी करते समय 5-7 किग्रा/हे0 के मान से इन जैव उर्वरकों को 50 किग्रा/हे0 की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर पूरे खेत में समान रूप से बिखरे। इस समय खेत में पर्याप्त नमी को होना नितांत आवश्यक होता है।

अरहर की खेती

जैव उर्वरकों के प्रयोग की विधि


सर्वप्रथम बीजो को फफूंदनाशक दवा से बीजोपचार करना चाहिए इसके पश्चात् जैव उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा द्वारा बीजोपचार करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते है। जैव उर्वरकों से बीजोपचार हेतु छाया वाले स्थान का चयन करना चाहिये। सर्वप्रथम पॉलिथीन शीट को छायादार स्थान में बिछाकर फफूंदनाशक दवा से उपचारित बीजो को फैला देना चाहिये तत्पश्चात् गुड़ के घोल को समान रूप से बीजों के ऊपर छिंटक देना चाहिये। इसके पश्चात् अनुशंसित जैव उर्वरकों (एजोटोबेक्टर एवं पी.एस.बी.) की मात्रा को बीजो के ऊपर समान रूप से फैलाकर हाथ से मिलादेना चाहिये तथा लगभग 20-30 मिनट तक छाया में सुखाने के बाद बोनी करना चाहिये।

पोषक तत्व प्रबंधन


गोबर की खाद/कम्पोस्ट की मात्रा एवं उपयोग- जमीन की उत्पाकता को बनाए रखने तथा अधिक उपज पाने के लिए भूमि की तैयारी करते समय अंतिम जुताई के पूर्व लगभग 2 से 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत में समान रूप से मिलाना चाहिये।

संतुलित उर्वरकों की मात्रा देने का समय एवं तरीका रामतिल की फसल हेतु अनुशंसित रासायनिक उर्वरक की मात्रा 40:30:20 नःफःपो किग्रा/हे0 है। जिसको निम्नानुसार देना चाहिये। 20 किलोग्राम नत्रजन + 30 किलोग्राम फास्फोरस + 20 किलोग्राम पोटाश/हेक्टेयर बोनी के समय आधार रूप में देना चाहिये। शेष नत्रजन की 10 किलोग्राम मात्रा बोने के 35 दिन बाद निंदाई करने के बाद दे। इसके पश्चात् खेत में पर्याप्त नमी होने पर 10 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फुल आते समय देना चाहिये।

समेकित उर्वरक प्रबंधन रामतिल की फसल पर समेकित उर्वरक प्रबंधन पर किये गये परिक्षणों के परिणामों से यह ज्ञात हुआ है कि अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा के साथ 2 प्रतिशत यूरिया अथवा डी.ए.पी. का पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल में 2 बार क्रमशः फुल आते समय तथा बोंडी बनना प्रारंभ होने पर करने से अधिक उपज प्राप्त होती है।

सूक्ष्म तत्वों की उपयोगिता,मात्रा एवं प्रयोग का तरीका मिट्टी परीक्षण से प्राप्त नतीजों के आधार पर यदि भूमि में गंधक तत्व की कमी पायी जाती है तो 20 - 30 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से गंधक तत्व का प्रयोग बोनी के समय करने पर तेल के प्रतिशत एवं उपज में बढ़ोतरी होती है।

सिंचाई एंव जल प्रबंधन


रामतिल की खेती खरीब के मौसम में पूर्णतः वर्षा आधारित की जाती है। वर्षाकाल में लम्बे समय तक वर्षा नहीं होने की स्थिति में अथवा सूखे की स्थिति निर्मित होने पर भूमि में नमी का स्तर कम होता है। भूमि में कम नमी की दशा का फसल की उत्पादकता पर विपरित प्रभाव पड़ता है। यदि फसल वृद्धि के दौरान इस तरह की स्थिति निर्मित होती है तो सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर सिंचाई करने से फसल से अच्छी उपज प्राप्त होती है।

नींदा प्रबंधन


खरपतवार प्रबंधन की विभिन्न विधियाँ किसान खरपतवारों को अपनी फसलों में विभिन्न विधियों जैसे कर्षण, यांत्रिकी, रसायनों तथा जैविक विधि आदि का प्रयाग करके नियंत्रण कर सकते हैं लेकिन पारंपरिक विधियों के द्वारा खरपतवार नियंत्रण करने पर लागत तथा समय अधिक लगता है। इसलिए रसायनों द्वारा खरपतवार जल्दी व प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किये जाते है और यह विधि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी भी है।

रासायनिक नींदा नाशक रासायनिक नींदा नियंत्रण के लिये ’’पेन्डीमेथालिन’’ 1.0 किलोग्राम सक्रिय घटक/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में बोनी के तुरंत बाद किन्तु अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें।

अमरबेल का प्रबंधन


अमरबेल तना परजीवी पौधा है जो फसलों या वृक्षों पर अवांछित रूप से उगकर हानि पहुँचाता है। इस खरपतवार को रामतिल, सोयाबीन, प्याज, अरहर, तिल, झाड़ियों, शोभाकार पौधों एवं वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। अमरबेल परजीवी पौधे में उगने के 25-30 दिन बाद सफेद अथवा हल्के पीले रंग के पुष्प गुच्छे में निकलते हैं। प्रत्येक पुष्प गुच्छ में 15-20 फल तथा प्रत्येक फल में 2-3 बीज बनते है। अमरबेल के बीज अत्यंत छोटे होते है जिनके 1000 बीजों का वजन लगभग 0.70-0.80 ग्राम होता है। बीजों का रंग भूरा अथवा हल्का पीला (बरसीम एवं लूसर्न के बीजों की जैसा) होता है। अमर बेल के एक पौधे से लगभग 50,000 से 1,00,000 तक बीज पैदा होते है। पकने के बाद बीज मिट्टी में गिरकर काफी सालों तक (10-20 साल तक) सुरक्षित पड़े रहते है तथा उचित वातावरण एवं नमी मिलने पर पुनः अंकुरित होकर फसल को नुकसान पहुँचाते है।

अमरबेल के संभावित क्षति

रामतिल में अमरबेल का एक पौधा प्रति 4 वर्गमीटर में होने पर 60-65 प्रतिशत से अधिक नुकसान पहुँचाता है। अमरबेल के प्रकोप से अन्य फसलों जैसे उड़द, मूंग में 30-35 प्रतिशत तथा लूसर्न में 60-70 प्रतिशत औसत पैदावार में कमी दर्ज की गई है।

अमरबेल के नियंत्रण की विधियाँ

निवारक विधि इस विधि में वे सभी क्रियाये सम्मिलित है जिनके द्वारा अमरबेल का नये क्षेत्रों में फैलाव रोका जा सकता है। अमरबेल के बीज देखने में लूसर्न एवं बरसीम के बीज जैसे होते है इसीलिये इन फसलों की बुवाई से पहले ये सुनिश्चित करना चाहिए कि फसल के बीज में अमरबेल के बीज नहीं मिलें हों। बुवाई के लिये हमेशा प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए । प्रयोग की जाने वाली गोबर की खाद पूर्णतः सड़ी एवं खरपतवार के बीजों से मुक्त होनी चाहिए। जानवरों को खिलाये जाने वाले चारे (बरसीम/लूसर्न) में अमरबेल के बीज नहीं होना चाहिए।

यांत्रिक विधियाँ

अमरबेल से प्रभावित चारे की फसलों को जमीन की सतह से काटने पर अमरबेल का प्रकोप कम हो जाता है।

अमरबेल से प्रभावित चारे की फसल को खरपतवार में फूल आने से पहले ही काट लेना चाहिए जिससे इसके बीज नहीं बन पाते है तथा अगली फसल में इसकी समस्या कम हो जाती है।

अमरबेल उगने के बाद परन्तु फसल में लपेटने से पहले (बुवाई के एक सप्ताह के अंदर) खेत में हैरो चलाकर इस खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है।

यदि अमरबेल का प्रकोप खेत में थोड़ी-थोड़ी जगह में हो तो उसे उखाड़कर इकट्ठा करके जला देना चाहिए।

उचित फसलचक्र अपनाकर

घास कुल की फसलें जैसे गेहूँ, धान, मक्का, ज्चार, बाजरा आदि में अमरबेल का प्रकोप नहीं होता है। अतः प्रभावित क्षेत्रों में फसल चक्र में इन फसलों को लेने से अमरबेल का बीज अंकुरित तो होगा परन्तु एक सप्ताह के अंदर ही सुखकर मर जाता है फलस्वरूप जमीन में अमरबेल के बीजों की संख्या में काफी कमी आ जाती है।

रासायनिक विधियाँ

विभिन्न दलहनी (चना, मसूर, उड़द, मूंग) तिलहनी (रामतिल, अलसी) एंव चारे (बरसीम, लूसर्न) की फसलों में पेन्डीमेथालिन 30 प्रतिशत (ईसी) स्टाम्प नामक शाकनाशी रसायन को 1.0 किग्रा व्यापारिक मात्रा प्रति एकड़ की दर से बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से अमरबेल का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। नये रसायन पेन्डीमेथालिन (स्टाम्प एक्स्ट्रा) 38.7 प्रतिशत (सीएस) 700 ग्राम प्रति एकड़ की व्यापारिक मात्रा का प्रयोग अमरबेल नियंत्रण पर काफी प्रभावी पाया गया है। इन रसायनों की उपरोक्त मात्रा को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर ’’फ्लैटफैन’’ नोजल लगे हुये स्पे्रयर द्वारा समान रूप से प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। इस शाकनाशी के प्रयोग से अमरबेल के साथ-साथ दूसरे खरपतवार भी नष्ट हो जाते है। यदि अमरबेल का प्रकोप पूरे खेत में न होकर थोड़ी-थोड़ी जगह पर हो तो इसके लिए ’’पैराक्वाट’’ अथवा ’’ग्लायफोसेट’’ नामक शाकनाशी रसायन का 1 प्रतिशत घोल बनाकर प्रभावित स्थानों पर छिड़काव करने से अमरबेल पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

बुआई के पूर्व



















क्र.दवा का नामदवा की व्यापारिक मात्रा/हेक्टेयरउपयोग का समयउपयोग करने की विधि
1.ग्लाइफोसेट2500 मिली लीटरपहली वर्षा के 15-20 दिन बाद एवं बोनी के 15 दिन पूर्वफ्लैटफेन नोजल लगाकर 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करें।

 

खड़ी फसल में

















क्र.दवा का नामदवा की व्यापारिक मात्रा/हेक्टेयरउपयोग का समयउपयोग करने की विधि
1.पेन्डीमेथालिन -38.7 %750 मिली लीटरबोनी के तुरंत बाद एवं फसल अंकुरण से पूर्वफ्लैटफेन नोजल लगाकर 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर समान रूप से छिड़काव करें।

KUBOTA L4508 tractor supply

रोग प्रबंधन


रोग प्रबंधन की विधियाँ

  • गर्मी में गहरी जुताई करें।

  • अच्छी सड़ी हुई गोबर खाद, नीम खली या महुआ की खली 500 किग्रा/हे0 की दर से प्रयोग करें।

  • प्रतिरोधी किस्मों जैसे जे.एन.सी.-1 या जे.एन.सी.-6 का बोनी हेतु प्रयोग करें।

  • दलहनी फसलों का 3 वर्षों का फसल चक्र अपनायें।

  • ट्राइकोडर्मा बिरडी या ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।

  • अंतर्वतीय खेती के रूप में मूंग, उड़द या कोदो के साथ बोनी करें।


रोग प्रबंधन हेतु अनुशंसाएँ –











































क्र.रोग का नामलक्षणनियंत्रण हेतु अनुशंसित दवादवा की व्यापारिक मात्राउपयोग करने का समय एवं विधि
1सरकोस्पोरापर्णदागइस रोग में पत्तियों पर छोटे धूसर से भूरे धब्बे बनते हैं जिसके मिलने पर रोग पूरी पत्ती पर फैल जाता है तथा पत्ती गिर जाती है।हेक्साकोनाजोल 5 प्रतिशत ई.सी. की2 मिलि लीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।
2आल्टरनेरिया पत्ती घब्बाइस रोग में पत्तीयों पर भूरे, अंडाकार, गोलाकार एवं अनियंत्रित वलयाकार धब्बे दिखते हैं।जीनेब0.2% दवा का छिड़काव रोग आने पर 15 दिन के अंतराल से करें।लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।
3जड़ सड़नतना आधार एवं जड़ का छिलका हटाने पर फफूंद के स्क्लेरोशियम होने के कारण कोयले के समान कालापन होता है।कापर आक्सीक्लोराइड1 किग्रा/हे. की दर से छिड़काव करें।लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।
4भभूतिया रोग (चूर्णी फफूंद)रोग में पत्तियों एंव तनों पर सफेद चूर्ण दिखता है।घुलनशील गंधक0.2 प्रतिशत का फुहारा पद्धति से फसल पर छिड़काव करें।लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।

सूरजमुखी की खेती

कीट प्रबंधन की विभिन्न विधियाँ



  • गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करें।

  • खेत एंव मेड़ों की सफाई करें।

  • उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग करे।

  • फसल में फेरोमोन ट्रेप 10 प्रति हेक्टेयर की दर से एंव प्रकाश प्रपंच 1 प्रति हेक्टेयर से लगाएं।

  • पक्षीयों के बैठने हेतु टी आकार की 50 खूटीयां प्रति हेक्टेयर गड़ायें।

  • नीम के बीजो का 5 प्रतिशत घोल का छिड़कांव करें।


कीट प्रबंधन हेतु अनुशंसाएँ



























क्र.रोग का नामलक्षणनियंत्रण हेतु अनुशंसित  दवादवा की व्यापारिक मात्रउपयोग करने का समय एवं विधि
1रामतिल की इल्लीरामतिल की इल्ली हरे रंग की होती है जिस पर जामुनी रंग की धारियाँ रहती है। पत्तीयाँ खाकर पौधे की प्रारंभिक अवस्था में ही पत्तीरहित कर देती हैं।ट्राइजोफास 40 प्रतिशत ई.सी.800 मिलि. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।
2माहों कीटमाहो कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तीयों तथा तने पर चिपके रहकर पौधे से रस चूसते हैं जिससे उपज में कमी आती है।इमीडाक्लोप्रिड0.3 मिलि लीटर मात्रा प्रति 1 लीटर पानी के मान से 600-700 लीटर पानी में अच्छी तरह से बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।

सोयाबीन की खेती

कटाई एंव गहाई


रामतिल की फसल लगभग 100-110 दिनों में पककर तैयार होती है। जब पौधों की पत्तियाँ सूखकर गिरने लगे, फल्ली का शीर्ष भाग भूरे एवं काले रंग का होकर मुड़ने लगे तब फसल को काट लेना चाहिये। कटाई उपरांत पौधों को गट्ठों में बाँधकर खेत में खुली धूप में एक सप्ताह तक सुखाना चाहिये उसके बाद खलिहान में लकड़ी /डंडों द्वारा पीटकर गहाई करना चाहिये।

उपज एंव भण्डारण



  • रामतिल की औसत उत्पादकता = 5 क्विं./हे.

  • बाजार में कीमत = 4000 रू./क्विं.

  • सकल आय = 20000/हे.

  • शुद्ध आय = 12859/हे.

  • लाभ लागत अनुपात = 1.97


अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिन्दु

  • रामतिल की उन्नतशील किस्मों जैसे बिरसा  नाईजर - 2 बिरसा  नाईजर - 3 बिरसा  नाईजर - 10, जे.एन.सी.-1, जे.एन.सी-6 एंव जे.एन.सी.-9, उत्कल नाईजर -150, के.बी.एन-1 का चयन करें।

  • रामतिल की बोनी हमेशा थायरम 3 ग्राम/किलो बीज या ट्राइकोडर्मा बिरडी की 5 ग्राम/किलो बीज की दर से अवश्य करें।

  • बोनी करते समय बीजों का पूरे खेत में (कतारों में) समान रूप से वितरण हो इसके लिए बीजों को बालू/कण्डे की राख/गोबर की छनी हुई खाद के साथ 1:20 के अनुपात में अच्छी तरह से मिलाकर बोना चाहिए।

  • रामतिल को बोनी कतारों में दूफन, त्रिफन या सीडड्रील द्वारा कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा कतारों में पौधों से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखते हुये 3 से.मी. की गहराई पर करना चाहिये।

  • अमरबेल नियंत्रण के लिये पेन्डीमेथालिन (स्टाम्प एक्स्ट्रा) 38.7 प्रतिशत (सीएस) 700 ग्राम प्रति एकड़ की व्यापारिक मात्रा का 150 लीटर पानी में घोल बनाकर ’’फ्लैटफैन’’ नोजल लगे हुये स्पे्रयर द्वारा समान रूप से प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।








रामतिल की खेती


रामतिल एक तिल की ही प्रजाति है जिसका मुख्य उपयोग तेल बनाने के लिए किया जाता है | आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों की जगनी के नाम से जाने जानी वाली रामतिल एक तिलहनी फसल है। रामतिल के बीजों में 38-43 प्रतिशत तेल एवं 20 से 30 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है।इसकी खेती उन सभी भूमि पर की जा सकता है जहाँ कम पानी तथा मिट्टी उपजाऊ नहीं है | यह विषम परिस्थितियों में भी अच्छी पैदावार देती है | इसके साथ ही अधिक बारिश के कारण बहाव में भी भूमि के कटाव को रोकता है |

इसकी फसल के बाद उगाई जाने वाली फसल की उपज अच्छी आती है।उन्नत तकनीक के साथ अनुशंसित कृषि कार्यमाला अपनाते हुये काश्त करने पर रामतिल की फसल से 700-800किग्रा/हे0 तक उपज प्राप्त की जा सकती जहाँ पर ऐरा प्रथा समानतय प्रचलित है वहाँ पर इसकी खेती सरलता से की जा सकती है।

  • खेती के लिए तैयारी

  • उन्नत किस्में

  • बीजोपचार कैसे करें 

  • खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

  • सिंचाई  

  • खरपतवार नियंत्रण 

  • रोग एवं उपचार  

  • कीट नियंत्रण 


रामतिल फसल लेने के लिए खेत की तैयारी 


जैसा की ऊपर बताया गया है की रामतिल की खेती किसी भी मिट्टी  में किया जा सकता है | इसलिए इसके लिए ज्यादा खेत की तैयारी करने की जरुरत नहीं होती | रामतिल की खेती पर्वतीय तथा बंजर भूमि में भी आसानी से की जा सकती है | इसकी खेती के लिए एक या दो जुताई की पड़ती है, जिससे मिट्टी  हल्की हो सके |

रामतिल की उन्नत किस्में 































































किस्म का नाम


उपज क्वि./हे.


विशेषताएं

उटकमंड6.00

  • अवधि – 105 से 110 दिन

  • तेल – 40 प्रतिशत


जे.एन.सी. – 65.00 से 6.00

  • अवधि – 95 से 100 दिन

  • तेल – 40 प्रतिशत

  • पत्ती धब्बे के लिए सहनशील


जे.एन.सी. – 16.00

  • अवधि – 95 से 102 दिन

  • तेल – 38 प्रतिशत

  • दाने का रंग काला


जे.एन.एस. – 95.5 से 7.0

  • 95 से 100 दिन

  • तेल – 39 प्रतिशत

  • संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त


जबीरसा नाईजर – 15.00 से 7.00

  • अवधि – 95 से 100 दिन

  • तेल – 40.7 प्रतिशत

  • गुलाबी रंग का तना एवं हल्का काले रंग का दाना पयुक्त


बीरसा नाईजर – 26.00 से 8.00

  • अवधि – 96 से 100 दिन

  • संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त


बीरसा नाईजर – 36.00 से 7.00

  • अवधि – 98 से 105 दिन


पूजा6.00 से 7.00,

  • अवधि – 96 से 100 दिन

  • तेल – 39 प्रतिशत

  • संपूर्ण भारत हेतु उपयुक्त

  • दाने का रंग काला


गुजरात नाईजर – 17.00

  • अवधि – 95 से 100 दिन

  • तेल – 40 प्रतिशत

  • दाने का रंग काला

  • संपूण भारत हेतु उपयुक्त


एन.आर.एस. – 96 -14.5 से 5.5m

  • अवधि – 94 से 100 दिन

  • तेल – 39 प्रतिशत

  • दाने का रंग काला



रामतिल बीजोपचार एवं बोने का तरीका  


बोने की विधि एंव पौध अंतरण

रामतिल को बोनी कतारों में दूफन, त्रिफन या सीडड्रील द्वारा कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा कतारों में पौधों से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखते हुये 3 से.मी. की गहराई पर करना चाहिये। बोनी करते समय बीजों का पूरे खेत में (कतारों में) समान रूप से वितरण हो इसके लिए बीजों को बालू/कण्डे की राख/गोबर की छनी हुई खाद के साथ 1:20 के अनुपात में अच्छी तरह से मिलाकर बोना चाहिए।

बीज दर:- सामान्यत- 5 से 7 किग्रा बीज प्रति हे. की दर से बोनी हेतु आवश्यक होता है।
बीजोपचार –

फसल को बीजजनय एवं भूमिजनय रोगो से बचाने के लिए बोनी करने से पहले फफूंद नाशी दवा थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

दवा उपयोग करने का तरीका – बीज को किसी पॉलीथिन शीट में समान रूप से फैला लेना चाहिये। फफूंद दनाशक दवा की अनुशंसित मात्रा को समान रूप से बीज में मिलाकर पानी से मिला देना चाहिये एवं लगभग 20-25 मिनट तक हवा लगने देना चाहिये। बीजोपचार के दौरान दस्ताने अवश्य पहनकर बीजोपचार करना चाहिये।

खाद, उर्वरक एवं पोषक तत्व प्रबंधन


जैव उर्वरक

जैव उर्वरक, जीवाणु मिश्रित होते हैं जो कि फसल को फसल हेतु आवश्यक नत्रजन तत्व को वायुमण्डल से पौधों को उपलब्ध कराते हैं तथा मृदा में स्थित अघुलनशील स्फुर तत्व को घुलनशील कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों की तुलना में अत्यन्त सस्ते होते हैं एवं इनके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की मात्रा को कम कर अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

रामतिल में प्रमुख रूप से एजोटोबेक्टर एवं स्फुर घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) जैव उर्वरकों का प्रयोग 5-5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीजोपचार किया जाना चाहिये। यदि किसी कारणवश जैव उर्वरकों से बीजोपचार नहीं कर पाए हो तो इस दशा में बोनी करने के पूर्व आखरी बार बखरनी करते समय 5-7 किग्रा/हे0 के मान से इन जैव उर्वरकों को 50 किग्रा/हे0 की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर पूरे खेत में समान रूप से बिखरे। इस समय खेत में पर्याप्त नमी को होना नितांत आवश्यक होता है।
जैव उर्वरकों का प्रयोग इस तरह करें

सर्वप्रथम बीजो को फफूंदनाशक दवा से बीजोपचार करना चाहिए इसके पश्चात् जैव उर्वरकों की अनुशंसित मात्रा द्वारा बीजोपचार करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते है। जैव उर्वरकों से बीजोपचार हेतु छाया वाले स्थान का चयन करना चाहिये। सर्वप्रथम पॉलिथीन शीट को छायादार स्थान में बिछाकर फफूंदनाशक दवा से उपचारित बीजो को फैला देना चाहिये तत्पश्चात् गुड़ के घोल को समान रूप से बीजों के ऊपर छिंटक देना चाहिये। इसके पश्चात् अनुशंसित जैव उर्वरकों (एजोटोबेक्टर एवं पी.एस.बी.) की मात्रा को बीजो के ऊपर समान रूप से फैलाकर हाथ से मिलादेना चाहिये तथा लगभग 20-30 मिनट तक छाया में सुखाने के बाद बोनी करना चाहिये।

पोषक तत्व प्रबंधन:-


गोबर की खाद/कम्पोस्ट की मात्रा एवं उपयोग- जमीन की उत्पाकता को बनाए रखने तथा अधिक उपज पाने के लिए भूमि की तैयारी करते समय अंतिम जुताई के पूर्व लगभग 2 से 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत में समान रूप से मिलाना चाहिये।

रामतिल की फसल हेतु अनुशंसित रासायनिक उर्वरक की मात्रा 40:30:20 नःफःपो किग्रा/हे0 है। जिसको निम्नानुसार देना चाहिये। 20 किलोग्राम नत्रजन + 30 किलोग्राम फास्फोरस + 20 किलोग्राम पोटाश/हेक्टेयर बोनी के समय आधार रूप में देना चाहिये। शेष नत्रजन की 10 किलोग्राम मात्रा बोने के 35 दिन बाद निंदाई करने के बाद दे। इसके पश्चात् खेत में पर्याप्त नमी होने पर 10 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फुल आते समय देना चाहिये।

समेकित उर्वरक प्रबंधन:-


रामतिल की फसल पर समेकित उर्वरक प्रबंधन पर किये गये परिक्षणों के परिणामों से यह ज्ञात हुआ है कि अनुशंसित उर्वरकों की मात्रा के साथ 2 प्रतिशत यूरिया अथवा डी.ए.पी. का पानी में घोल बनाकर खड़ी फसल में 2 बार क्रमशः फुल आते समय तथा बोंडी बनना प्रारंभ होने पर करने से अधिक उपज प्राप्त होती है।

सूक्ष्म तत्वों की उपयोगिता,मात्रा एवं प्रयोग का तरीका:- मिट्टी परीक्षण से प्राप्त नतीजों के आधार पर यदि भूमि में गंधक तत्व की कमी पायी जाती है तो 20 – 30 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से गंधक तत्व का प्रयोग बोनी के समय करने पर तेल के प्रतिशत एवं उपज में बढ़ोतरी होती है।

रामतिल की फसल में सिंचाई 


खेती खरीब के मौसम में पूर्णतः वर्षा आधारित की जाती है। वर्षाकाल में लम्बे समय तक वर्षा नहीं होने की स्थिति में अथवा सूखे की स्थिति निर्मित होने पर भूमि में नमी का स्तर कम होता है। भूमि में कम नमी की दशा का फसल की उत्पादकता पर विपरित प्रभाव पड़ता है। यदि फसल वृद्धि के दौरान इस तरह की स्थिति निर्मित होती है तो सिंचाई के साधन उपलब्ध होने पर सिंचाई करने से फसल से अच्छी उपज प्राप्त होती है।

रामतिल फसल में खरपतवार एवं निंदाई-गुड़ाई 


किसान खरपतवारों को अपनी फसलों में विभिन्न विधियों जैसे कर्षण, यांत्रिकी, रसायनों तथा जैविक विधि आदि का प्रयाग करके नियंत्रण कर सकते हैं लेकिन पारंपरिक विधियों के द्वारा खरपतवार नियंत्रण करने पर लागत तथा समय अधिक लगता है। इसलिए रसायनों द्वारा खरपतवार जल्दी व प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किये जाते है और यह विधि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी भी है। रासायनिक नींदा नियंत्रण के लिये ’’पेन्डीमेथालिन’’ 1.0 किलोग्राम सक्रिय घटक/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में बोनी के तुरंत बाद किन्तु अंकुरण के पूर्व छिड़काव करें।
अमरबेल का प्रबंधन

अमरबेल तना परजीवी पौधा है जो फसलों या वृक्षों पर अवांछित रूप से उगकर हानि पहुँचाता है। इस खरपतवार को रामतिल, सोयाबीन, प्याज, अरहर, तिल, झाड़ियों, शोभाकार पौधों एवं वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। अमरबेल परजीवी पौधे में उगने के 25-30 दिन बाद सफेद अथवा हल्के पीले रंग के पुष्प गुच्छे में निकलते हैं। प्रत्येक पुष्प गुच्छ में 15-20 फल तथा प्रत्येक फल में 2-3 बीज बनते है। अमरबेल के बीज अत्यंत छोटे होते है जिनके 1000 बीजों का वजन लगभग 0.70-0.80 ग्राम होता है। बीजों का रंग भूरा अथवा हल्का पीला (बरसीम एवं लूसर्न के बीजों की जैसा) होता है। अमर बेल के एक पौधे से लगभग 50,000 से 1,00,000 तक बीज पैदा होते है। पकने के बाद बीज मिट्टी में गिरकर काफी सालों तक (10-20 साल तक) सुरक्षित पड़े रहते है तथा उचित वातावरण एवं नमी मिलने पर पुनः अंकुरित होकर फसल को नुकसान पहुँचाते है।
अमरबेल के संभावित क्षति

रामतिल में अमरबेल का एक पौधा प्रति 4 वर्गमीटर में होने पर 60-65 प्रतिशत से अधिक नुकसान पहुँचाता है। अमरबेल के प्रकोप से अन्य फसलों जैसे उड़द, मूंग में 30-35 प्रतिशत तथा लूसर्न में 60-70 प्रतिशत औसत पैदावार में कमी दर्ज की गई है।
नियंत्रण की विधियाँ

अमरबेल के बीज देखने में लूसर्न एवं बरसीम के बीज जैसे होते है इसीलिये इन फसलों की बुवाई से पहले ये सुनिश्चित करना चाहिए कि फसल के बीज में अमरबेल के बीज नहीं मिलें हों। बुवाई के लिये हमेशा प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए । प्रयोग की जाने वाली गोबर की खाद पूर्णतः सड़ी एवं खरपतवार के बीजों से मुक्त होनी चाहिए। जानवरों को खिलाये जाने वाले चारे (बरसीम/लूसर्न) में अमरबेल के बीज नहीं होना चाहिए।
यांत्रिक विधियाँ

अमरबेल से प्रभावित चारे की फसलों को जमीन की सतह से काटने पर अमरबेल का प्रकोप कम हो जाता है। अमरबेल से प्रभावित चारे की फसल को खरपतवार में फूल आने से पहले ही काट लेना चाहिए जिससे इसके बीज नहीं बन पाते है तथा अगली फसल में इसकी समस्या कम हो जाती है। अमरबेल उगने के बाद परन्तु फसल में लपेटने से पहले (बुवाई के एक सप्ताह के अंदर) खेत में हैरो चलाकर इस खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है। यदि अमरबेल का प्रकोप खेत में थोड़ी-थोड़ी जगह में हो तो उसे उखाड़कर इकट्ठा करके जला देना चाहिए।
फसल चक्र द्वारा

घास कुल की फसलें जैसे गेहूँ, धान, मक्का, ज्चार, बाजरा आदि में अमरबेल का प्रकोप नहीं होता है। अतः प्रभावित क्षेत्रों में फसल चक्र में इन फसलों को लेने से अमरबेल का बीज अंकुरित तो होगा परन्तु एक सप्ताह के अंदर ही सुखकर मर जाता है फलस्वरूप जमीन में अमरबेल के बीजों की संख्या में काफी कमी आ जाती है।
रासायनिक विधियाँ

विभिन्न दलहनी (चना, मसूर, उड़द, मूंग) तिलहनी (रामतिल, अलसी) एंव चारे (बरसीम, लूसर्न) की फसलों में पेन्डीमेथालिन 30 प्रतिशत (ईसी) स्टाम्प नामक शाकनाशी रसायन को 1.0 किग्रा व्यापारिक मात्रा प्रति एकड़ की दर से बुवाई के बाद परन्तु अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से अमरबेल का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। नये रसायन पेन्डीमेथालिन (स्टाम्प एक्स्ट्रा) 38.7 प्रतिशत (सीएस) 700 ग्राम प्रति एकड़ की व्यापारिक मात्रा का प्रयोग अमरबेल नियंत्रण पर काफी प्रभावी पाया गया है। इन रसायनों की उपरोक्त मात्रा को 150 लीटर पानी में घोल बनाकर ’’फ्लैटफैन’’ नोजल लगे हुये स्पे्रयर द्वारा समान रूप से प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।

छिड़काव के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। इस शाकनाशी के प्रयोग से अमरबेल के साथ-साथ दूसरे खरपतवार भी नष्ट हो जाते है। यदि अमरबेल का प्रकोप पूरे खेत में न होकर थोड़ी-थोड़ी जगह पर हो तो इसके लिए ’’पैराक्वाट’’ अथवा ’’ग्लायफोसेट’’ नामक शाकनाशी रसायन का 1 प्रतिशत घोल बनाकर प्रभावित स्थानों पर छिड़काव करने से अमरबेल पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

रामतिल फसल में लगने वाले रोग एवं उनका उपचार 


रोग प्रबंधन की विधियाँ :-

फसल में रोग का प्रबंधन करने के लिए बुवाई से पहले ही कुछ सावधानियां एवं कार्य करना चाहिए| जिससे रोग से बचा जा सके |

  • गर्मी में गहरी जुताई करें |

  • अच्छी साड़ी हुई गोबर खाद, नीम खली या महा की खेती की खली 500 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें |



  • प्रतिरोधी किस्मों जैसे जे.एन.सी.-1 या जे.एन.सी.-6 का बोनी हेतु प्रयोग करें।

  •  दलहनी फसलों का 3 वर्षों का फसल चक्र अपनायें।

  • ट्राइकोडर्मा बिरडी या ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।

  • अंतर्वतीय खेती के रूप में मूंग, उड़द या कोदो के साथ बोनी करें |


फसल में रोग प्रबंधन के लिए रासायनिक दवा का उपयोग कर सकते हैं | जिससे फसल को बचाया जा सकता है तथा उत्पादन को बह्द्य जाता है |
सरकोस्पोरा पर्णदाग 

इस रोग में पत्तियों पर छोटे धूसर से भूरे धब्बे बनते हैं जिसके मिलने पर रोग पूरी पत्ती पर फैल जाता है तथा पत्ती गिर जाती है |

रोकथाम :- इस रोग की रोकथाम के लिए हेक्साकोनाजोल प्रतिशत ई.सीकी मिलि लीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें | इस दवा का प्रयोग लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए |
आल्टरनेरिया पत्ती घब्बा 

इस रोग में पत्तीयों पर भूरे, अंडाकार, गोलाकार एवं अनियंत्रित वलयाकार धब्बे दिखते हैं |

रोकथाम :- इस रोग की रोकथाम के लिए जीनेब दवा का प्रयोग 0.2% दवा का छिड़काव रोग आने पर 15 दिन के अंतराल से करें | लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए |
जड़ सड़न :-

इस रोग की पहचान तना आधार एवं जड़ का छिलका हटाने पर फफूंद  के स्क्लेरोशियम होने के कारण कोयले के समान कालापन होता है |

रोकथाम :– इस रोग की रोकथाम के लिए कापर आक्सीक्लोराइड की 1 किग्रा/हे. की दर से छिड़काव लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए।
भभूतिया रोग (चूर्णी फफूंद) 

इस रोग की पहचान यह की पत्तियों एंव तनों पर सफेद चूर्ण दिखता है |

रोकथाम :-  इस रोग की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक की 0.2 प्रतिशत का फुहारा पद्धति से फसल पर लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आवश्यकता अनुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए |

रामतिल फसल में लगने वाले कीट और उनका नियंत्रण 


रोग की तरह ही कीट से फसल को काफी नुकसान पहुँचता है | कभी – कभी तो पूरी फसल का ही नुकसान हो जाता है | कीट की रोकथाम के लिए जरुरी है की कीट की पहचान सही तरीके से हो सके | रामतिल में कुछ महत्वपूर्ण कीट लगते हैं जिसकी रोकथाम इस तरह कर सकते हैं |
 रामतिल की इल्ली

इस इल्ली की पहचान यह है कि यह हरे रंग की होती है जिस पर जामुनी रंग की धारियाँ रहती है | पत्तीयाँ खाकर पौधे की प्रारंभिक अवस्था में ही पत्तीरहित कर देती हैं |

रोकथाम :- इसकी रोकथाम के लिए ट्राइजोफास 40 प्रतिशत ई.सी. को 800 मिलि. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए |
माहों कीट :-

इसकी पहचान यह है कि माहो कीट के शिशु तथा प्रौढ़ पत्तीयों तथा तने पर चिपके रहकर पौधे से रस चूसते हैं जिससे उपज में कमी आती है |

रोकथाम :- इस कीट की रोकथाम के लिए  इमीडाक्लोप्रिड की 0.3 मिलि लीटर मात्रा प्रति 1 लीटर पानी के मान से 600-700 लीटर पानी में अच्छी तरह से बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से लक्षण दिखाई देने के तुरंत बाद एवं आश्यकतानुसार दुबारा छिड़कांव करें। दवा का छिड़कांव प्रातःकाल या सायंकाल के समय करना चाहिए |

 

 

1 Comments

Post a Comment

Previous Post Next Post