धान

धान

धान की खेती


 कैसे करें सम्पूर्ण जानकारी



  1. भूमि की तैयारी गर्मी की जुताई करने के बाद 2-3 जुताइयां करके खेत की तैयारी करनी चाहिए। ...

  2. धान की प्रजातियों का चयन ...

  3. शुद्ध एवं प्रमाणित बीज का चयन ...

  4. उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं विधि ...

  5. जल प्रबन्ध ...

  6. धान में फसल सुरक्षा ...

  7. प्रमुख खरपतवार




 
धान उत्पादन की उन्नत तकनीकी



परिचयधान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ अंचल का मध्यप्रदेशसे अलग हो जाने के बावजूद भी इस प्रदेश में लगभग 17.25 लाख हेक्टर भूमि में धान की खेती प्रमुखता के साथ की जाती है।






















वर्ष2007-20082012-2013
क्षेत्रफल(लाख हे.)उत्पादकता(किग्रा/हे.)क्षेत्रफल(लाख हे.)उत्पादकता (किग्रा/हे.)
म.प्र.16.4585317.661807


प्रमुख उत्पादक जिले/क्षेत्र -बालाघाट, सिवनी, मंडला, रीवा, शहडोल, अनुपपूर, कटनी, जबलपुर, डिन्डौरी आदि।

खेत की तैयारी:

ग्रीष्मकालीन जुताई करके दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें एवं ढेलों को फोड़कर समतल करें एवं खेत में छोटी-छोटी पारे डालकर खेत तैयार करें।

उपयुक्त भूमि का प्रकार- मध्यम काली मिट्टी एवं दोमट मिट्टी।

उपयुक्त किस्में:

धान की बीज की मात्रा बुवाई की पध्दति के अनुसार अलग-अलग रखी जाती है। जैसे छिटकवां विधि से बोने के लिये 40-48 ,कतार मे बीज बोने के लिये 36-40, लेही पध्दति में 28-32 किलो, रोपाई पध्दति में 12-16 किलों तथा बियासी पध्दति में 48-60 किलो प्रति एकड़ उपयोग में लाया जाता है।

अतिशीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ

































क्र.प्रजातिअनुसंशित वर्षअवधि (दिन)उपज (क्वि./हे.)विशेषताएँउपयुक्त क्षेत्र
1सहभागी201190-9530-40छोटा पौधा, मध्यम पतला दानाअसिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों केलिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वालेक्षेत्र तथा देरी की बोवाई।
2दन्तेश्वरी200190-9540-50छोटा पौधा, मध्यम आकार का दानाअसिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों केलिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वालेक्षेत्र तथा देरी की बोवाई।


मध्यम अवधि में पकने वाली प्रजातिया






































































क्र.प्रजातिअनुसंशित वर्षअवधि (दिन)उपज (क्वि./हे.)विशेषताएँ
1पूसा -14602010120-12550-55छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
2डब्लू.जी.एल -321002007125-13055-60छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
3पूसा सुगंध 42002120-12540-45लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
4पूसा सुगंध 32001120-12540-45लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
5एम.टी.यू-10102000110-11550-55पतला दाना, छोटा पौधा
6आई.आर.641991125-13050-55लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा
7आई.आर.361982120-12545-50लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा


विभिन्न क्षेत्रों के लिये संकर प्रजातिया एंव उनकी विशेषताएँ -























































क्र.प्रजातिअनुसंशित वर्षपकने की अवधि(दिन)औसत उपज(क्वि./हे.)
1जे.आर.एच.-52008100.10565.70
2जे.आर.एच.-8200995.10060.65
3पी आर एच -10120.12555.60
4नरेन्द्र संकर धान-2125.13055.60
5सी.ओ.आर.एच.-2120.12555.60
6सहयाद्री125.13055.60


इनके अलावा प्राईवेट कम्पनियों की संकर प्रजातिया जैसे अराईज 6444, अराईज 6209, अराईज 6129 किसानों के बीच प्रचलित है।











उपलब्ध भूमि के अनुसार उपयुक्त प्रजातियों का चयन




































क्रखेतों की दिशाएँउपयुक्त प्रजातियाँसंभावित जिले
1बिना बंधान वाले समतल/ हल्के ढालान वाले खेतपूर्णिमा, सहभागी, दंतेष्वरीडिण्डौरी, मण्डला, सीधी, शहडोल, उमरिया
2हल्की बंधान वाले खेत व मध्यम भूमिजे.आर.201, जे.आर.345, पूर्णिमा, दंतेष्वरी डब्लू.जी.एल -32100, आई.आर.64रीवा, सीधी, पन्ना, शहडोल, सतना, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर,बालाघाट, डिण्डौरी, मण्डला, कटनी
3हल्की बंधान वाले भारी भूमिपूर्णिमा, जे.आर.345, दंतेष्वरीजबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर,छिदंवाड़ा
4उँची बंधान वाले हल्की व मध्यम भूमिआई.आर.-36, एम.टी.यू-1010,दंतेष्वरी, डब्लू.जी.एल -32100जबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर,छिदंवाड़ा


बीज की मात्रा -


























क्र.बोवाई की पद्धतिबीज दर (किलो/हेक्ट.)
1श्री पद्धति5
2रोपाई पद्धति10-12
3कतरो में बीज बोना20-25


बीजोपचार :-

बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब 3 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बोक्सिऩ + थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें।


बुवाई का समय :-

वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है।

बुवाई की विधियाँ:-

कतारो में बोनी: अच्छी तरह से तैयार खेत में निर्धारित बीज की मात्रा नारी हल या दुफन या सीडड्रील द्वारा 20 सें.मी. की दूरी की कतारों में बोनी करना चाहिए।

रोपा विधि:-

सामान्य तौर पर 2-3 सप्ताह के पौध रोपाई के लिये उपयुक्त होते हैं तथा एक जगह पर 2-3 पौध लगाना पर्याप्त होता है रोपाई में विलम्ब होने पर एक जगह पर 4-5 पौधे लगाना उचित होगा।


























क्र.प्रजातियाँ तथा रोपाई का समयपौधो की ज्यामिती (सें.मी. सें.मी.)
1जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर15 * 15
2मध्यम अवधि की प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर20 * 15
3देर से पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर25 * 20



जैव उर्वरको का उपयोग:-

धान में एजोस्पिरिलियम या एजोटाबेक्टर एवं पी.एस.बी. जीवाणुओं की 5 किलो ग्राम को 50 किग्रा/हैक्टेयर सूखी सड़ी हूई गोबर की खाद में मिलाकर खेत मे मिला दें। धान के रोपित खेत में (20दिन रोपाई उपरांत) 15 किग्रा/हैक्टेयर नील हरित काई का भुरकाव 3 सेमी पानी की तह रखते हुए करें।


पौषक तत्व प्रबंधन

गोबर खाद या कम्पोस्ट:-

धान की फसल में 5 से 10 टन/हेक्टेयर तक अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करने से मंहगे उवैरकों के उपयोग में बचत की जा सकती है।

हरी खाद का उपयोग:-

हरी खाद के लिये सनई ढेंचा का बीज 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के एक महीना पहिले बोना चाहिये। लगभग एक महिने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मचैआ करते समय मिला देना चाहिए।

उर्वरकों का उपयोग:-














































क्र.धान की प्रजातियाँउर्वराकों की मात्रा (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
नत्रजनस्फुरपोटाश
1शीघ्र पकने वाली 100 दिन से कम40-5020.3015.20
2मध्यम अवधि 110-125दिन की,80-10030.4020.25
3देर से पकने वाली 125 दिनों से अधिक,100-12050.6030.40
4संकर प्रजातियाँ1206040


उपरोक्त मात्रा में प्रयोगों के परिणामों पर आधरित है किन्तु भूमि परीक्षण द्वारा उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण वांछित उत्पादन के लिये किया जाना लाभप्रद होगा।


उर्वरकों के उपयोग का समय व तरीका:-
















































नत्रजन उर्वराक देने का समयधान के प्रजातियों के पकने की अवधि
शीध्रमध्यमदेर
नत्रजन (:)उम्र (दिन)नत्रजन (:)उम्र (दिन)नत्रजन (:)उम्र (दिन)
बीजू धान में निदाई करके या रोपाई के 6-7 दिनों बाद50203020-252520-25
कंसे निकलते समय2535-404045-554050-60
गभोट के प्रारम्भ काल में2550-603060-703565-75


एक वर्ष के अंतर से जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से बुआई या रोपाई के समय प्रयोग करना चाहिए।


खरपतवार नियंत्रण की रासायनिक विधि






























































क्र.शाकनाषी दवा का नामदवा की व्यापारिक मात्रा/है.उपयोगका समयनियंत्रित खरपतवार
प्रेटीलाक्लोर1250 मि.ली.बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दरघास कुल के खरपतवार
2पाइरोजोसल्फयूरॉन200 ग्रामबुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दरचौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
3बेनसल्फ्युरान मिथाईल . प्रेटीलाक्लोर 6:10 कि.गा्र.बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दरघास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
4बिसपायरिबेक सोडियम80 मि.ली.बुआई/रोपाई के 15-20 दिन के अन्दरघास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
52,4-डी1000 मि.ली.बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दरचौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
6फिनॉक्साप्रॉकप पी ईथाइल500 मि.ली.बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दरघास कुल के खरपतवार
7क्लोरीम्यूरॉन ईथाइल . मेटसल्फयूरॉन मिथाइल20 ग्रामबुआई/रोपाई के 20-25 दिन के अन्दरचौड़ी पत्ती तथा मौथा कुल



रोग प्रबंधन -

धान की प्रमुख गौण बीमारीयों के नाम, कवक उनके लक्षण, पौधों की अवस्था, जिसमें आक्रमण होता है, निम्नानुसार हैः-



    • झुलसा रोग (करपा)












आक्रमण - पौधे से लेकर दाने बनते तक की अवस्था तक इस रोग का आक्रमण होता है। इस रोग का प्रभाव मुख्य पत्तियों, तने की गाठें, बाली पर आँख के आकार के धब्बे बनते है बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे या लालीमा लिये होते है। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बडे धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। गाठो पर या बालियों के आधार पर प्रकोप होने पर पौधा हल्की हवा से ही गाठों पर से तथा बाली के आधर से टूट जाता है।

नियंत्रण -

  • स्वच्छ खेती करना आवश्यक है खेत में पडे पुराने पौध अवषेश को भी नष्ट करें।

  • रोग रोधी किस्में का चयन करें-जैसे आदित्य, तुलसी, जया, बाला, पंकज, साबरमती, गरिमा, प्रगति इत्यादि।

  • बीजोपचार करें-बीजोपचार ट्रायसायक्लाजोल या कोर्बेन्डाजीम अथवा बोनोमील - 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से घोल बना कर 6 से 12 घंटे तक बीज को डुबोये, तत्पश्चात छाया में बीज को सुखा कर बोनी करें।

  • खडी फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्रायसायक्लाजोल 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति ली. या मेन्कोजेब 3 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये।







    • भूरा धब्बा या पर्णचित्ती रोग




आक्रमण- इस रोग का आक्रमण भी पौध अवस्था से दाने बनने कर अवस्था तके होता है।

लक्षण- मूख्य रूप से यह रोग पत्तियों, पर्णछन्द तथा दानों पर आक्रमण करता है पत्तियों पर गोंल अंडाकर, आयताकार छोटे भूरे धब्बे बनते है जिससे पत्तिया झुलस जाती है, तथा पूरा का पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। दाने पर भूरे रंग के धब्बे बनते है तथा दाने हल्के रह जाते है।

नियंत्रण-





      • खेत में पडे पुराने पौध अवषेष को नष्ट करें।

      • कोर्बेन्डाजीम- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।

      • खडी फसल पर लक्षण दिखते ही कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा निरोधक जातिया जैसे- आई आर-36 की बुवाई करें।



    • खैरा रोग












लक्षण- जस्ते की कमी वाले खेत में पौध रोपण के 2 हफ्ते के बाद ही पुरानी पत्तियों के आधार भाग में हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे पौधा बौना रह जाता है तथा कल्ले कम निकलते है एवं जड़े भी कम बनती है तथा भूरी रंग की हो जाती है।

नियंत्रण- खैरा रोग के नियंत्रण के लिये 20-25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर बुवाई पूर्व उपयोग करें। खडी फसल में 1000लीटर पानी में 5किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 2.5किलोग्राम बिना बुझा हुआ चुने के घोल का मिश्रण बनाकर उसमें 2किलो ग्राम यूरिया मिलाकर छिड़काव करने से रोग का निदान तथा फसल की बढ़वार में वृद्धि होती है।





    • जीवाणु पत्ती झुलसा रोग-












लक्षण-इसका अक्रमण बाढ़ की अवस्था में होता है। इस रोग में पौधे की नई अवस्था में नसों के बीच पारदर्शिता लिये हुये लंबी-लंबी धरिया पड़ जाती है।, जो बाद में कत्थई रंग ले लेती है।

नियंत्रण - बीजोपचार स्ट्रेप्टोसायक्लीन 0.5 ग्राम/किलों बीज की दर से करें।





    • दाने का कंडवा (लाई फूटना)












आक्रमण- दाने बनने की अवस्था में

लक्षण- बाली के 3-4 दानें में कोयले जैसा काला पाउडर भरा होता है, जो या तो दाने के फट जाने से बाहर दिखाई देता है या बंद रहने पर सामान्यतः दाने जैसा ही रहता है, परन्तु ऐसे दाने देर से पकते है तथा हरे रहते है सूर्य की धूप निकलने से पहले देखने पर संक्रमित दानो का काला चूर्ण स्पष्ट दिखाई देता है।

नियंत्रण- इस रोग का प्रकोप अब तीव्र हो गया है। अतः बीज उपचार हेतु क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति किलो बीज उपयोग करें।
लक्षण दिखते ही प्रभावीत बाली को निकाल दें व क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति ली. की दर से छिड़काव करें है|



कीट प्रबंधन











































कीट का नामलक्षणनियंत्रण हेतु अनुषंसित दवादवा की व्यापारिक मात्राउपयोग करने का समय एवं विधि
पत्ती लपेटक (लीफ रोलर)इस कीट की इल्ली हरे रंग की होती है, जो अपनी थूक से पत्ती के दोनोकिनारों को आपस में जोड़ देती है। बाद में पत्तियां सूख जाती हैं।ट्राइजोफॉस 40 ई.सी.प्रोफेनोफॉस 44 ई.सी. + साइपरमेथ्रिन 4 ई.सी.1 लीटर/है.750 मिली/है.कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
तना छेदकतना छेदक कीट कल्ले निकलने की अवस्था में पौध पर आक्रमण करता है एवंकेन्द्रीय भाग को हानि पहंुचाता है और परिणाम स्वरूप पौधा सूख जाता है।कार्बोफ्यूरान 3 जी या कार्टेपहाइड्रोक्लोराइड 4 जी25 किग्रा/है.कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
भूरा भुदका तथा गंधी बगब्राउन प्लांट हापर कीट पौधों के कल्लों के बीच में जमीन की उपरी सतहपर पाये जाते हैं। इनका आक्रमण फसल की दूधिया अवस्था एवं दाने के भराव के समय होताहै। इनके रस चूसने के कारण तना सूख जाता है। गंधी वग कीट पौधों के विभिन्न भागों सेरस चूसकर हानि पहुंचाता है।एसिटामिप्रिड 20 प्रतिषत एस.पी.बुफ्रोजिन 25 प्रतिषत एस.पी.125 किग्रा/है.750 मिली/है.कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।



कटाई - गहाई एवं भंण्डारण

पूर्ण तरह से पकी फसल की कटाई करें। पकने के पहले कटाई करने से दाने पोचे हो जाते है। कटाई में विलम्ब करने से आने झडते है तथा चावल अधिक टूटता हैं। कटाई के बाद फसल को 1-2 दिन खेत में सुखाने के बाद खलियान में ले जाना चाहिये। खलियान में ठीक से सुखने के बाद गहाई करना चाहिये। गहाई के बाद उड़ावनी करके साफ दाना इकट्ठा करना चाहिये और अच्छि तरह धूप में सुखाने के बाद भण्डारण करना चाहीये।


उपज -

सिंचित /हे. - 50-60 क्वि
असिंचित/हे. - 35-45 क्वि.

आय व्यय का संक्षिप्त ब्यौरा- औसत उत्पादन 50 क्विं. प्रति हे. होता है और 72500 की आमदानी होती है, जिसका खर्च लगभग 35000 प्रति हे. आता है । इस प्रकार एक हेक्टर में शुद्ध लाभ 37500 /- प्राप्त होता है।


अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख पांच बिन्दु

  • जलवायु परिवर्तन को दृष्टिगत रखते हुए सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान की जल्दी पकने वाली संकर किस्मों (110-115 दिन में पकने वाली )की बुआई एसआरआई पद्धति से करें।

  • गहरी काली मिट्टी में वर्षा पूर्व धान की सीधी बुआई कतार में करें।

  • शीघ्र पकने वाली किस्में, जे.आर.एच.-5, 8, पी.एस.-6129, दंतेश्वरी, सहभागी, मध्यम समय में पकने वाली किस्में- डब्लू.जी.एल.-32100, पूसा सुगंधा-3, पूसा सुगंधा-5, एम.टी.यू-1010, जे आर 353 ।

  • क्रांति एवं महामाया किस्मों को प्रोत्साहित न किया जावे।

  • बासमती किस्मों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509 एवं पूसा बासमती-1460 किस्मों को अधिक क्षेत्र में लगावें।

  • बुवाई कतारों में करें। अतिशीघ्र एवं शीघ्र पकने वाली किस्में को 15ग्15 से.मी. मध्यम समय में पकने वाली किस्मों को 20 ग्15 से.मी. तथा देर से पकने वाली किस्मों को 25 ग् 20 से.मी. की दूरी पर लगायें।

  • बोवाई अथवा रोपाई के 20 दिन बाद नील हरित काई 15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।



सफलता की कहानी -










































































धान की श्री पद्धति से रिकार्ड उत्पादनकिस्म - MTU .1010
किसान का नामश्री ताराचन्द बिसेन
ग्रामसालेटेका, किरनापुर
उत्पादन वर्षखरीफ 2013-14
रकबाहेक्टर
नर्सरी, रोपा, कटाईजून, जूलाई, नवबंर 2013
उत्पादन70 क्विं./1450रू.(औसत) = 101500.00
शुद्ध लाभ (1 हेक्टर)कुल आयकुल लागत
64000.00101500.0037500.00
सामान्य धान की खेती से आय
शुद्ध लाभ (1 हेक्टर)कुल आयकुल लागत
30250.0065250.0035000.00
सामान्य धान खेती की तुलना में श्री पद्धति धानफसल उत्पादन से अतिरिक्त लाभ
अतिरिक्त लाभसंकर धान बीज उत्पादन से आयसामान्य धान खेती से आय
33750.0064000.00
30250.00


  • कम बीज मात्र 7.50 किलोंग्राम प्रति हेक्टर परहा लगाने मेंबहुत कम मजदुरी कीट बिमारीयों का कम प्रकोप।;

  • प्रति हेक्टर अधिक आय।

  • कृषिविज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको के मार्गदर्शनमें आधुनिक पद्धति से खेती करने पर अधिक उत्पादन व सामाजिक व आर्थिक साख बढ़ी।






चावल



  • 20 मई - 5 जून

  • किस्मों के प्रकार

  • रासायनिक उर्वरक

  • कीट रोगों के प्रकार


सामान्य जानकारी





चावल भारत की सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है जो कुल फसली क्षेत्र के लगभग एक-चौथाई हिस्से को कवर करती है और लगभग आधी भारतीय आबादी को भोजन प्रदान करती है। पंजाब ने पिछले 45 वर्षों के दौरान चावल की उत्पादकता और उत्पादन में जबरदस्त प्रगति की है। अधिक उपज देने वाली किस्मों और नई तकनीक के उपयोग के कारण पंजाब ने "भारत का चावल का कटोरा" का खिताब दिया है।

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धरती





इसे कम पारगम्यता और 5.0 से 9.5 के बीच पीएच के साथ विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। dhan की खेती के लिए बलुई दोमट से दोमट रेत से दोमट दोमट से चिकनी दोमट मिट्टी, कम पारगम्यता वाली चिकनी से चिकनी दोमट मिट्टी, जल जमाव से मुक्त और सॉडिसिटी को सबसे अच्छा माना जाता है।




उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में





पीआर 128: चावल का पीआर 128 पीएयू 201 का एक उन्नत संस्करण है। इसमें लंबे पतले स्पष्ट पारभासी अनाज होते हैं। इसके पौधे की औसत ऊंचाई 110 सेमी होती है और रोपाई के बाद लगभग 111 दिनों में पक जाती है। यह पंजाब राज्य में बैक्टीरियल ब्लाइट रोगज़नक़ के सभी 10 वर्तमान में प्रचलित पैथोटाइप के लिए प्रतिरोधी है। इसकी औसत dhan की उपज 30.5 क्विंटल प्रति एकड़ है।

 

पीआर 129: पीआर 129 चावल पीएयू 201 का एक उन्नत संस्करण है। इसमें लंबे पतले स्पष्ट पारभासी अनाज होते हैं। इसके पौधे की औसत ऊंचाई 105 सेमी होती है और रोपाई के बाद लगभग 108 दिनों में पक जाती है। यह पंजाब राज्य में बैक्टीरियल ब्लाइट रोगज़नक़ के सभी 10 वर्तमान में प्रचलित पैथोटाइप के लिए प्रतिरोधी है। इसकी औसत dhan की उपज 30.0 क्विंटल प्रति एकड़ है।

 

एचकेआर 47: एचकेआर 47 चावल की मध्य-प्रारंभिक परिपक्वता किस्म है। रोपाई के बाद इसे परिपक्व होने में 104 दिन लगते हैं और इसके पौधे की औसत ऊंचाई 117 सेमी होती है। यह पंजाब में बैक्टीरियल ब्लाइट रोगज़नक़ों के सभी 10 वर्तमान में प्रचलित पैथोटाइप के लिए अतिसंवेदनशील है और रहने की संभावना है। इसकी औसत उपज 29.5 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह हल्का उबालने के लिए उपयुक्त है।Multi Crop Vacuum Planter

PR 111: यह छोटे कद की, कड़ी धारीदार किस्म है और इसके पत्ते सीधे और गहरे हरे रंग के होते हैं। यह 135 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, पतले और साफ होते हैं। यह प्रतिरोधी बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग है और औसतन 27 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

PR 113: यह छोटे कद की, कड़ी धारीदार किस्म है और इसकी पत्तियाँ सीधी और गहरे हरे रंग की होती हैं। यह 142 दिनों में पक जाती है। अनाज मोटा और भारी होता है। यह प्रतिरोधी बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग है और औसतन 28 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

PR 114: यह अर्ध-बौनी, कड़ी बिखरी हुई किस्म है जिसमें संकीर्ण, गहरे हरे रंग की सीधी पत्तियाँ होती हैं। यह 145 दिनों में पक जाती है। इसके दाने बहुत लंबे, स्पष्ट पारभासी अनाज होते हैं जिनमें खाना पकाने की बहुत अच्छी गुणवत्ता होती है।

यह 27.5 क्विंटल/एकड़" पीआर 115 की औसत उपज देता है : यह अर्ध-बौनी, कड़ी बिखरी हुई किस्म है जिसमें संकीर्ण, गहरे हरे रंग की खड़ी पत्तियां होती हैं। यह 125 दिनों में परिपक्व होती है। इसके दाने लंबे पतले, अच्छी पकाने की गुणवत्ता के साथ पारभासी होते हैं। यह देता है 25 क्विंटल/एकड़ की औसत उपज

पीआर 116: यह अर्ध-बौनी, कड़ी बिखरी हुई किस्म है। यह रहने के लिए प्रतिरोधी दिखाता है। इसके पत्ते हल्के हरे रंग के और सीधे होते हैं। यह 144 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, पतले और पारभासी होते हैं। इसकी औसत उपज 28 क्विंटल प्रति एकड़ है।
सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
पीआर 118: यह एक अर्ध-बौनी, कड़ी बिखरी हुई और रहने की सहनशील किस्म है। इसकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की होती हैं और पत्तियाँ खड़ी होती हैं। यह 158 दिनों में पक जाती है। इसके दाने अच्छे पकने की गुणवत्ता के साथ मध्यम पतले होते हैं। इसकी औसत उपज 29 क्विंटल प्रति एकड़ है।

पीआर 120: यह अर्ध बौनी किस्म है जिसमें लंबे पतले और पारभासी अनाज उच्च खाना पकाने की गुणवत्ता के साथ होते हैं। यह 132 दिनों में पक जाती है। यह औसतन 28.5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

PR 121 : यह छोटी, कड़ी बिखरी हुई किस्म है। यह रहने के लिए प्रतिरोधी दिखाता है। इसकी पत्तियाँ गहरे हरे रंग की और सीधी होती हैं। यह 140 दिनों में पक जाती है। इसके दाने लंबे, पतले और पारभासी होते हैं। यह बैक्टीरियल ब्लाइट रोगज़नक़ के लिए प्रतिरोधी है। यह औसतन 30.5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

कपास(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

PR 122 : यह अर्ध-बौनी, कड़ी बिखरी हुई किस्म है जिसमें गहरे हरे रंग की सीधी पत्तियाँ होती हैं। यह 147 दिनों में पक जाती है। इसमें खाना पकाने की अच्छी गुणवत्ता के साथ लंबे पतले पारभासी अनाज होते हैं। यह औसतन 31.5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

पीआर 123: यह अर्ध बौना, गहरे हरे और सीधे पत्तों वाली कड़ी बिखरी हुई किस्म है। इसके दाने लंबे, पतले और पारभासी होते हैं। यह बैक्टीरियल ब्लाइट रोगज़नक़ के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। यह 29 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।

पीआर 126 : यह किस्म पीएयू द्वारा पंजाब में सामान्य खेती के लिए जारी की जाती है। यह जल्दी पकने वाली होती है जो रोपाई के बाद 123 दिनों में पक जाती है। यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट रोग के लिए प्रतिरोधी है। यह औसतन 30 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

PR 127: यह मध्यम पकने वाली किस्म है जो बुवाई के बाद 137 दिनों में पक जाती है। पौधे की औसत ऊंचाई 104 सेमी होती है। यह किस्म क्षारीय और खारी मिट्टी में उगाने के लिए उपयुक्त नहीं है। यह औसतन 30 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

सीएसआर 30:
 इस किस्म में अतिरिक्त लंबे पतले आकार के दाने होते हैं जो अपने उत्कृष्ट खाना पकाने और अच्छे खाने के गुणों के लिए जाने जाते हैं। यह किस्म रोपाई के 142 दिनों के भीतर पक जाती है। यह औसतन 13.5 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

पंजाब बासमती 3:
 पीएयू लुधियाना द्वारा विकसित। इसमें उत्कृष्ट खाना पकाने और खाने की गुणवत्ता है। यह बासमती 386 का उन्नत संस्करण है। यह रहने और बैक्टीरियल ब्लाइट के लिए प्रतिरोधी है। इसके दाने अधिक लंबे और उत्कृष्ट सुगंध वाले होते हैं। यह औसतन 16 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

पंजाब बासमती 4 : यह अधिक उपज देने वाली और अर्ध बौनी किस्म है जो 96 सेमी लंबी होती है। यह एक आवास सहनशील किस्म है और जीवाणु झुलसा के लिए प्रतिरोधी है। यह किस्म रोपाई के 146 दिनों के भीतर पक जाती है। यह औसतन 17 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

पंजाब बासमती 5: यह भी एक उच्च उपज देने वाली किस्म है जो औसतन 15 क्विंटल/एकड़ उपज देती है। यह किस्म रोपाई के 137 दिनों के भीतर पक जाती है।

पूसा पंजाब बासमती 1509: जल्दी पकने वाली किस्म यानी 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार। यह बैक्टीरियल ब्लाइट के लिए अतिसंवेदनशील है। इसके दाने अधिक लंबे, पतले और उत्कृष्ट खाना पकाने की गुणवत्ता रखते हैं। यह बहु फसल पैटर्न के लिए उपयुक्त है। यह औसतन 15.7 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

पूसा बासमती 1121:लंबी किस्म और 137 दिनों में कटाई के लिए तैयार। खाना पकाने की सबसे लंबी लंबाई वाली और अच्छी खाना पकाने की गुणवत्ता वाली सुगंधित किस्म। यह 13.7 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।

पूसा 44: लंबी अवधि की किस्म और यह जीवाणु झुलसा के लिए अतिसंवेदनशील है। 

पूसा बासमती 1637:
 2018 में जारी। यह किस्म ब्लास्ट रोगों के लिए मध्यम प्रतिरोधी है। पौधा 109 सेमी की ऊंचाई तक पहुंचता है। यह किस्म 138 दिनों में पक जाती है और इसकी औसत उपज 17.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


अन्य राज्य किस्में:

संकर 6201 : सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। यह विस्फोट को प्रतिरोध देता है। यह औसतन 25 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।

विवेक धन 62 : पहाड़ी और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। इसके दाने छोटे मोटे होते हैं। यह विस्फोट के लिए प्रतिरोधी देता है। नेक ब्लास्ट और यह कम तापमान वाले क्षेत्रों में जीवित रह सकता है। यह 19 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।

कर्नाटक चावल हाइब्रिड 2
 : सिंचित और समय पर बोए जाने वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त। यह पत्ती झुलसा तथा अन्य रोगों के प्रति सहनशील है। यह 35 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।

रत्नागिरी 1 और 2 : रत्नागिरी एक सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जबकि रत्नागिरी 2 निम्न भूमि क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। ये अर्ध बौनी किस्में हैं और क्रमशः 19 क्विंटल/एकड़ और 21 क्विंटल/एकड़ की औसत उपज देती हैं।




भूमि की तैयारी





गेहूं की कटाई के बाद मई के पहले सप्ताह तक ढैंचा (बीज दर 20 किलो/एकड़) या सनहेम्प @ 20 किलो/एकड़ या लोबिया @ 12 किलो/एकड़ उगाएं। जब फसल 6-8 सप्ताह की हो जाए तो धान की रोपाई से एक दिन पहले उन्हें मिट्टी में गाड़ दें। इससे प्रति एकड़ 25 किलो एन की बचत होगी। भूमि समतल करने के लिए लेजर लैंड लेवलर का प्रयोग करें। उसके बाद पोखर की मिट्टी और अच्छी तरह से समतल पोखर क्षेत्र प्राप्त करें ताकि रिसाव के माध्यम से पानी की कमी को कम किया जा सके।




बीज





बीज दर:
एक एकड़ भूमि में रोपण के लिए 8 किग्रा बीज पर्याप्त होते हैं।

बीजोपचार :

बुवाई से पहले 10 लीटर पानी में कार्बेन्डाजिम 20 ग्राम + स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 1 ग्राम को बिजाई से पहले 8 से 10 घंटे के लिए भिगो दें। इसके बाद बीजों को छाया में सुखा लें। और फिर बुवाई के लिए उपयोग करें।
इसके अलावा आप फसल को जड़ सड़न रोग से बचाने के लिए नीचे दिए गए कवकनाशी का उपयोग कर सकते हैं। पहले रासायनिक फफूंदनाशकों का प्रयोग करें फिर ट्राइकोडर्मा से बीज का उपचार करें।















कवकनाशी/कीटनाशक का नाममात्रा (खुराक प्रति किलो बीज)
ट्राइकोडर्मा5-10 ग्राम
क्लोरपाइरीफोस5 मिली







बोवाई





बुवाई का समय:
20 मई से 5 जून बुवाई के लिए अनुकूलतम समय है

रिक्ति:

सामान्य बुवाई के लिए पंक्तियों के बीच 20 - 22.5 सेमी की दूरी की सिफारिश की जाती है। बिजाई में देरी होने पर 15-18 सें.मी. की दूरी रखनी चाहिए।

बुवाई की विधि:
प्रसारण विधि

बुवाई की गहराई:
रोपाई को 2 से 3 सेमी की गहराई पर प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए। हल्की बुवाई करने से अच्छी पैदावार होती है।



नर्सरी प्रबंधन और प्रत्यारोपण





बिजाई से पहले उन्हें 10 लीटर पानी में कार्बेनडाज़िम 20 ग्राम + स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 1 ग्राम से 8 से 10 घंटे पहले भिगो दें। इसके बाद बीजों को छाया में सुखा लें। और फिर बुवाई के लिए उपयोग करें।

नर्सरी की तैयारी : नर्सरी की तैयारी के लिए 15 से 30 मई का समय उपयुक्त है।

वेट बेड नर्सरी : यह पर्याप्त पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्र में किया जाता है। नर्सरी क्षेत्र प्रतिरोपित किए जाने वाले क्षेत्र का लगभग 1/10 भाग है। पूर्व-अंकुरित बीजों को पोखर और समतल मिट्टी पर प्रसारित करें। पहले कुछ दिनों तक बिस्तरों को नम रखें। बिस्तरों में पानी न भरें। जब अंकुर लगभग 2 सेमी ऊंचे हों, तो क्यारियों को पानी की उथली परत में डुबो कर रखें। यूरिया 26 किलो प्रति एकड़ की दर से बुवाई के लगभग एक पखवाड़े बाद डालें। रोपाई के लिए 15-21 दिनों की पौध का प्रयोग करें या जब रोपाई 25-30 सेमी लंबी हो। नर्सरी की नियमित सिंचाई करें।

सूखा बिस्तर:इसे सूखी मिट्टी की स्थिति में तैयार किया जाता है। कुल बीज क्यारी क्षेत्र प्रतिरोपण के क्षेत्र का लगभग 1/10 है। 6-10 सें.मी. की ऊंचाई पर उठाई गई मिट्टी से सुविधाजनक आयामों की सीड बेड बनाएं। आसानी से उखाड़ने के लिए इन क्यारियों पर आधी जली हुई चावल की भूसी फैलाएं। सिंचाई सही तरीके से करनी चाहिए क्योंकि कम नमी से पौध खराब हो सकती है। उचित पोषक तत्वों के लिए बेसल उर्वरक को शामिल करें।

संशोधित चटाई नर्सरी
: यह नर्सरी बनाने की संशोधित विधि है जिसमें कम जगह और कम मात्रा में बीज की आवश्यकता होती है। इसकी खेती समतल सतह और सुनिश्चित जल आपूर्ति वाले किसी भी स्थान पर की जा सकती है। आवश्यक क्षेत्र प्रतिरोपण योग्य भूमि का लगभग 1% है। मिट्टी के मिश्रण की 4 सेमी परत में पौध की स्थापना, एक दृढ़ सतह पर व्यवस्थित। 1 मीटर चौड़ा और 20-30 मीटर लंबा प्लॉट बनाकर उस पर प्लास्टिक शीट या केले के पत्ते बिछा दें। लकड़ी के फ्रेम को 4 सेमी गहरा रखें और फिर फ्रेम को मिट्टी के मिश्रण से भरें। इसमें पहले से अंकुरित बीज बोएं और बीज को सूखी मिट्टी से ढक दें। उस पर तुरंत पानी छिड़कें। जरूरत पड़ने पर फ्रेम में सिंचाई करें और इसे नम रखें। बीज बोने के 11 से 14 दिनों के भीतर रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। अंकुर की चटाई को खेत में ले जाएं और उन्हें अलग करें और 1-2 पौध को 20x20 सेमी या 25x25 सेमी की दूरी पर रोपाई करें।

रोपण की गहराई : रोपाई को 2 से 3 सेमी की गहराई पर रोपाई करनी चाहिए। हल्की बुवाई करने से अच्छी पैदावार होती है।


रोपाई की विधि

1) सपाट पोखरों में रोपाई
 : कतार में रोपाई सामान्य के लिए 20x15 सेंटीमीटर और देर से रोपाई के लिए 15x15 सेंटीमीटर की दूरी पर करें। प्रति पहाड़ी में 2 पौधे लगाएं और रोपाई को सीधा और लगभग 2-3 सेंटीमीटर गहरा रोपना चाहिए।

2) क्यारी रोपाई : क्यारी की ढलानों के बीच में पौध रोपित करें। ये क्यारी भारी मिट्टी में व्हीट बेड प्लांटर द्वारा तैयार की जाती है। रोपाई से पहले गड्ढों में सिंचाई करें, फिर पौधे से पौधे की दूरी 9 सेमी रखते हुए रोपाई करें।

3) यांत्रिक प्रत्यारोपण:मैट टाइप नर्सरी की रोपाई के लिए मैकेनिकल ट्रांसप्लांटर का उपयोग किया जाता है। यह रोपाई को 30x12 सेमी की दूरी पर रोपता है।



उर्वरक





उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)

















यूरियाडीएपी या एसएसपीझाड़ूजस्ता
110277520-

पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)













नाइट्रोजनफॉस्फोरसपोटाश
501212

 

धान के लिए एन:पी:के@50:12:12 किलो प्रति एकड़ यूरिया 110 किलो प्रति एकड़, एसएसपी 75 किलो प्रति एकड़ और एमओपी 20 किलो प्रति एकड़ डालें। उर्वरक प्रयोग से पूर्व मृदा परीक्षण कर मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर उर्वरक का प्रयोग करें। यदि मृदा परीक्षण में इसकी कमी दिखाई दे तो P एवं K की खुराक दें। यदि डीएपी का प्रयोग करना हो तो यूरिया 100 किलो प्रति एकड़, डीएपी 27 किलो प्रति एकड़ और एमओपी 20 किलो प्रति एकड़ डालें। अंतिम पोखर से पहले नाइट्रोजन की 1/3 खुराक और पी और के की पूरी खुराक डालें।

दूसरी खुराक रोपाई के तीन सप्ताह बाद और दूसरी खुराक के तीन सप्ताह बाद, नाइट्रोजन की शेष खुराक डालें। नीम लेपित यूरिया का प्रयोग करें क्योंकि इससे एन की मात्रा बढ़ जाती है। जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट @ 25 किग्रा या जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट @ 16 किग्रा / एकड़ में जिंक की कमी को दूर करने के लिए डालें। पानी की कमी के कारण, नई पत्तियाँ रोपाई के लगभग तीन सप्ताह बाद पीली या पीली सफेद दिखाई देती हैं। तुरंत सिंचाई करें और फेरस सल्फेट 1 किलो प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ दो-तीन बार साप्ताहिक अंतराल पर स्प्रे करें।



खरपतवार नियंत्रण





बुटाक्लोर 50 ईसी @ 1200 मिली/एकड़ या थियोबेनकार्ब 50 ईसी @ 1200 मिली या पेंडीमेथालिन 30 ईसी @ 1000 मिली या प्रीटीलाक्लोर 50 ईसी @ 600 मिली प्रति एकड़ का उपयोग पूर्व-उभरती जड़ी-बूटियों के रूप में, रोपाई के 2 से 3 दिन बाद करें। इनमें से किसी एक शाकनाशी को 60 किलो बालू प्रति एकड़ में मिलाकर 4-5 सेंटीमीटर गहरे खड़े पानी में समान रूप से प्रसारित करें।

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए मेटसल्फ्यूरॉन 20 WP @ 30 ग्राम प्रति एकड़ को 150 लीटर पानी में डालकर रोपाई के 20-25 दिन बाद डालें। छिड़काव से पहले खेत से खड़े पानी को निकाल दें और छिड़काव के एक दिन बाद सिंचाई करें।



सिंचाई





रोपाई के दो सप्ताह बाद तक खेत में पानी भरकर रखें। जब दो दिन बाद सारा पानी निकल जाए तो खेत में सिंचाई करें। खड़े पानी की गहराई 10 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए। अंतर-सांस्कृतिक और निराई का कार्य करते समय, इस कार्य के पूरा होने के बाद खेत से अतिरिक्त पानी निकाल दें और खेत की सिंचाई करें। आसान कटाई की सुविधा के लिए परिपक्वता से लगभग एक पखवाड़े पहले सिंचाई बंद कर दें।




प्लांट का संरक्षण




रूट वीविल




  • कीट और उनका नियंत्रण:


जड़ घुन : जड़ घुन की उपस्थिति का पता जड़ से लगाया जा सकता है और उपज को नुकसान पहुंचा सकता है। ये सफेद लेगलेस ग्रब हैं जो मुख्य रूप से जड़ पर फ़ीड करते हैं। पौधा पीला दिखाई देता है, वृद्धि रूक जाती है और कुछ टिलर बन जाते हैं।
यदि घटना देखी जाए तो कार्बेरिल (4जी)@10 किग्रा या तो फोरेट (10 ग्राम)@4 किग्रा या कार्बोफ्यूरान (3 ग्राम) @10 किग्रा प्रति एकड़ डालें।







प्लांट हॉपर



प्लांट हॉपर: ये मुख्य रूप से सिंचित आर्द्रभूमि की स्थिति या बारानी क्षेत्रों में होते हैं। कीट की उपस्थिति उपज के भूरे रंग, कालिख के सांचे और संक्रमित ठिकानों में मौजूद हनीड्यू को दर्शाती है।

यदि इसका नियंत्रण पाया जाता है, तो डाइक्लोरवोस @ 126 मिली या 400 ग्राम कार्बेरिल को 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड @ 40 मिली या क्विनालफॉस 25 ईसी @ 400 मिली या क्लोरपाइरीफॉस @ 1 लीटर 100 लीटर पानी प्रति एकड़ में मिलाकर स्प्रे करें।







लीफ फोल्डर.jpg



लीफ फोल्डर : यह कीट उच्च आर्द्रता में विकसित होता है और विशेष रूप से वहां पाया जाता है जहां चावल को भारी मात्रा में निषेचित किया जाता है। लार्वा पत्तियों को मोड़ते हैं और पौधे के ऊतकों को खाते हैं और सफेद धारियाँ पैदा करते हैं।

नियंत्रण:
 यदि इसका प्रकोप दिखाई दे तो फसल को कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 170 ग्राम या ट्राईजोफोस 350 मिली या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ स्प्रे करें।







चावल हिस्पा



चावल हिस्पा: कुछ जिलों में यह गंभीर कीट है। लार्वा पत्तियों में सुरंग बनाते हैं और इस प्रकार पत्तियों पर सफेद धारियाँ बनाकर पत्तियों को नष्ट कर देते हैं।

यदि खेत में इसका हमला दिखे तो मिथाइल पैराथियोन 120 मि.ली. या क्विनालफॉस 25 ई.सी. 400 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस @ 1 लीटर को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें।







तना छेदक



तना छेदक: लार्वा तने में छेद कर देता है और मृत हृदय का कारण बनता है। पुराने कान खाली सिर पैदा करते हैं जो सफेद हो जाते हैं।

नियंत्रण : यदि खेत में इसका प्रकोप दिखे तो कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 170 ग्राम या ट्राईजोफोस 350 मि.ली. या क्लोरपाइरीफॉस @ 1 लीटर प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।







विस्फोट




  • रोग और उनका नियंत्रण:


ब्लास्ट : ब्लास्ट रोग के कारण पत्तियों पर भूरे रंग के केंद्र और भूरे रंग के किनारे के साथ धुरी के आकार के धब्बे दिखाई देते हैं। साथ ही गर्दन में सड़न के लक्षण भी दें और दाने गिर जाएं। नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग वाले क्षेत्रों में देखा गया।

यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।







करनाल बंटो



करनाल बंट : पुष्पगुच्छ के कुछ दाने पहले प्रभावित होते हैं और अनाज का कुछ हिस्सा काला पाउडर में बदल जाता है। गम्भीर स्थिति में पूरी कलौंजी प्रभावित हो जाती है और पत्तियों, दानों आदि पर काला पाउडर फैल जाता है।

इस रोग को नियंत्रित करने के लिए नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से बचें। जब फसल 10 प्रतिशत फूल आने पर हो तो टिल्ट 25 ईसी 200 मिली/200 लीटर पानी में स्प्रे करें। स्प्रे को 10 दिनों के अंतराल पर दोहराएं।






ब्राउन लीफ स्पॉट



भूरे रंग की पत्ती वाली जगह : यह अंडाकार, आंखों के आकार के धब्बे पैदा करती है, जिसके बीच में एक विशिष्ट गहरे भूरे रंग का बिंदु और हल्के भूरे रंग का मार्जिन होता है। दानों पर भी धब्बे बनते हैं। कम पोषक मिट्टी में, यह अधिक हमला करता है।

इस रोग पर नियंत्रण रखने के लिए संतुलित मात्रा में पोषक तत्व दें। जब फसल बूट अवस्था में हो तो 200 लीटर पानी में टेबुकोनाज़ोल @ 200 मिली या प्रोपिकोनाज़ोल @ 200 मिली का स्प्रे करें। 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।






झूठी स्मट



मिथ्या स्मट: इस कवक ने अलग-अलग दानों पर बड़े हरे रंग के मखमली बीजाणु-गोले विकसित किए। आर्द्र, उच्च वर्षा और बादलों की स्थिति में रोग फैलने की संभावना अधिक होती है। नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग से भी हमले की तीव्रता बढ़ जाती है।

इस रोग के नियंत्रण के लिए 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई की अवस्था में छिड़काव करें। 10 दिनों के अंतराल पर टिल्ट 25 ईसी @ 200 मिली/200 लीटर पानी का छिड़काव करें।







म्यान तुषार



म्यान झुलसा : पत्ती के आवरण पर, बैंगनी मार्जिन के साथ भूरे रंग का घाव विकसित होता है। बाद में ये घाव विकसित हो जाते हैं और बढ़ जाते हैं। गंभीर स्थिति में, खराब अनाज भरना देखा जाता है। नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से बचें। खेत को साफ रखें।
सूरजमुखी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
यदि रोग का प्रकोप दिखे तो टेबुकोनाजोल या टिल्ट 25 ईसी 200 मिली या कार्बेन्डाजिम 25% 200 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 15 दिन के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।





फसल काटने वाले





एक बार फलियों के पूरी तरह विकसित हो जाने के साथ-साथ फसलें काफी पीली हो जाने पर उपज काट लें। उपज को आम तौर पर सिकल या ब्लेंड हार्वेस्टर द्वारा मैन्युअल रूप से काटा जाता है। कटी हुई फसलें, कॉम्पैक्ट बंडलों में बंधी हुई, इसे भूसे से अनाज को अलग करने के लिए वास्तव में कठोर सतह के खिलाफ प्रहार करती हैं, साथ में विनोइंग भी।




फसल कटाई के बाद





कटाई के बाद की विधि में कुछ प्रक्रियाएं शामिल हैं जिनमें फसल से उपयोग तक का अंतराल शामिल है 1) कटाई 2) थ्रेसिंग 3) सफाई 4) सुखाने 5) गोदाम 6) मिलिंग फिर व्यापार के लिए परिवहन।

फसल को कीट और रोग के हमले से बचाने के लिए अनाज के भंडारण से पहले, 500 ग्राम नीम के बीज की धूल को 10 किलो बीज के साथ मिलाएं। भंडारित अनाज को कीटों से बचाने के लिए मैलाथियान 50 ईसी 30 मिली/3 लीटर पानी मिलाएं। हर 15 दिनों में 100 2 मीटर भंडारण क्षेत्र के लिए स्प्रे करें ।





संदर्भ





1.पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना

2.कृषि विभाग

3.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

4.भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान

5.कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय



 

 

 

 

5 Comments

  1. […] प्रति हेक्टेयर 30 किग्रा. नत्रजन तथा 30 किग्रा. फास्फेट व 20 किग्रा. पोटाश बुआई के समय कूंड़ों में बीज के नीचे डाले तथा बाद में 30 किलोग्राम नत्रजन पहली सिंचाई पर टापड्रेसिंग करें। हल्की भूमि में 20-30 किग्रा./हे. की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहिए। अच्छी उपज के लिए 40 कुन्तल प्रति हे. की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। माल्ट प्रजातियों हेतु 25 प्रतिशत अतिरिक्त नत्रजन का प्रयोग करेंधान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है) […]

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  2. […] धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है) […]

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  3. […] पिछेती किस्में: पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल-16 ।धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है) […]

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