मूंग

मूंग



मूंग की लाभकारी खेती





  1. भूमि की तैयारी

  2. बीज की बुवाई

  3. खाद एवं उर्वरक

  4. खरपतवार नियंत्रण

  5. रोग तथा किट नियंत्रण

  6. फसल चक्र

  7. बीज उत्पादन

  8. कटाई एवं गहाई

  9. उपज एवं आर्थिक लाभ









मूंग राजस्थान में खरीफ ऋतु में उगाई जाने वाली महत्पूर्ण दलहनी फसल हैl राज्य में इसकी खेती 12 लाख हेक्टयर क्षेत्र में की जाती हैl राज्य में मूंग के सकल क्षेत्रफल की औसत उपज काफी कम हैl निम्न उन्नत तकनीक के प्रयोग द्वारा मूंग की पैदावार को 20 से 50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता हैI



















































किस्मपकने की अवधि (दिनों में )औसत उपजविशेषतायें
आर एम जी-6265-706-9सिंचित एवं अ सिंचित क्षत्रो के लिए उपयुक्तI राइजक्टोनिया ब्लाइट कोण व् फली छेदन किट के प्रति रोधक ,फलिया एक साथ पकती है I
आर एम जी-26862-708-9सूखे के प्रति सहनसीलI रोग एवं कीटो का कम प्रकोपI फलिया एक साथ पकती है I
आर एमजी-34462-727-9खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्तI ब्लाइट को सहने की क्षमता चमकदार एवं मोटा दाना I
एस एम एल-66862-708-9खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्तlअनेक बिमारियों एवं रोगो के प्रति सहनसील I पीत शिरा एवं बैक्टीरियल ब्लाइट का प्रकोप कम I
गंगा-870729-10उचित समय एवं देरी दोनों के लिए उपयुक्त , खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त I पीत शिरा एवं बैक्टीरियल ब्लाइट का प्रकोप कम I
जी एम-462-6810-12फलिया एक साथ पकती है Iदाने हरे रंग के तथा  बड़े आकर के होते है
मूंग के -85170-808-10सिंचित एवं अ सिंचित क्षत्रो के लिए उपयुक्त I चमकदार एवं मोटा दाना I

भूमि की तैयारी


मूंग की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैl भूमि में उचित जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चहियेl पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो चलाकर करनी चाहिए तथा फिर एक क्रॉस जुताई हैरो से एवं एक जुताई कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिएl

बीज की बुवाई


मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक कर देनी चाहिएl देरी से वर्षा होने पर शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक की जा सकती हैl स्वस्थ एवं अच्छी गुणवता वाला तथा उपचरित बीज बुवाई के काम लेने चाहिएl वुबाई कतरों में करनी चाहिए l कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है l

खाद एवं उर्वरक


दलहन फसल होने के कारण मूंग को कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होती हैl मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है l नाइट्रोजन एवं फास्पोरस की मात्रा 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया के द्वारा  बुवाई के समय देनी चाहिएl मूंग की खेती हेतु खेत में दो तीन वर्षों में कम एक बार  5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिएl इसके अतिरिक्त 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिएl खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिटटी की जाँच कर लेनी चहियेl

खरपतवार नियंत्रण


फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात तक पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो एक गुड़ाई कस्सी से कर देनी चहिये या  इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मी. ली . मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

रोग तथा किट नियंत्रण


दीमक
दीमक फसल के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती हैl बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफोस 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिटटी में मिला देनी चाहिए  बोनेके समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मि.ली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोना चाहिए I

कातरा
कातरा का प्रकोप बिशेष रूप से दलहनी फसलों में बहुत होता है l इस किट की लट पौधों को आरम्भिक अवस्था में काटकर बहुत नुकसान पहुंचती है l इसके  नियंत्रण हेतु खेत के आस पास कचरा नहीं होना चाहिये l कतरे की लटों पर क्यूनालफोस1 .5  प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिये I

मोयला,सफ़ेद मक्खी एवं हरा तेला

ये सभी कीट मूंग की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैंI इनकी रोकथाम के किये मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू ए.सी या  मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए आवश्यकतानुसार दोबारा चिकाव किया जा सकता है l
पती बीटल
इस कीट के नियंत्रण के लिए क्यूंनफास 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए l

फली छेदक
फली छेदक को नियंत्रित  करने के लिए मोनोक्रोटोफास आधा लीटर या मैलाथियोन या क्युनालफ़ांस 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो हेक्टयर की दर से छिड़काव /भुरकाव करनी चहिये। आवश्यकता होने पर 15 दिन के अंदर दोबारा छिड़काव /भुरकाव  किया जा सकता है।

रस चूसक कीड़े
मूंग की पतियों ,तनो एवं फलियों का रस चूसकर अनेक प्रकार के कीड़े फसल को हानि पहुंचाते हैंI इन कीड़ों की रोकथाम हेतु एमिडाक्लोप्रिड 200 एस एल का 500 मी.ली. मात्रा का प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिएI आवश्कता होने पर दूसरा छिड़काव 15  दिन  के अंतराल पर करें I

चीती जीवाणु रोग

इस रोग के लक्षण पत्तियों,तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे  के रूप में दिखाई देते है I इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसीन 200 ग्रामया स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए I

पीत शिरा मोजेक
इस रोग के लक्षण फसल की पतियों पर एक महीने के अंतर्गत दिखाई देने लगते हैI फैले हुए पीले धब्बो के रूप  में रोग दिखाई देता हैI यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता हैI इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल दिमेटान 0.25 प्रतिशत व मैलाथियोन 0.1प्रतिशत मात्रा को मिलकर प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर घोल बनाकर छिड़काव करना काफी प्रभावी  होता है I

तना झुलसा रोग
इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चहिये बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये ।

पीलिया रोग
इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण हेतू गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करना चहिये I

सरकोस्पोरा  पती धब्बा
इस रोग के कारण पौधों के ऊपर छोटे गोल बैगनी लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं I पौधों की पत्तियां,जड़ें व अन्य भाग भी सुखने लगते हैंI इस के नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की1ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चहिये बीज को 3 ग्राम केप्टान या २ ग्राम कार्बेंडोजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाइये
किंकल विषाणु रोग

इस रोग के कारण पोधे की पत्तियां सिकुड़ कर इकट्ठी हो जाती है तथा पौधो पर फलियां बहुत ही कम बनती हैं। इसकी रोकथाम हेतु डाइमिथोएट 30 ई.सी. आधा लीटर अथवा मिथाइल डीमेंटन 25 ई.सी.750 मि.ली.प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए l ज़रूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करना चहिये I

जीवाणु पती धब्बा, फफुंदी पती धब्बा  और विषाणु रोग

इन रोगो की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम १ ग्राम , सरेप्टोसाइलिन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान  25 ई .सी.की एक मिली.मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये l

फसल चक्र


अच्छी पैदावार प्राप्त करने एवं भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने हेतु उचित फसल चक्र आवश्यक है l वर्षा आधारित खेती के लिए मूंग -बाजरा तथा सिंचित क्षेत्रों में मूंग-गेहू/जीरा/सरसो फसल चक्र अपनाना चहिये l

बीज उत्पादन


मूंग के बीज उत्पादन हेतु ऐसे खेत चुनने चहिये जिनमें पिछले मौसम में मूंग अन्हिं उगाया गया हो l मूंग के लिए निकटवर्ती खेतो से संदुषण को रोकने के लिए फसल के चारो तरफ 10 मीटर की दुरी तक मूंग का दूसराखेत नहीं होना चहिये l भूमि की अच्छी तैयारी,उचित खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग ,खरपत वार, कीड़े एवं विमारियों के नियंत्रण के साथ साथ समय समय पर अवांछनीय पौधों को निकालते रहना चहिय तथा फसल पकने पर लाटे को अलग सुखाकर दाना निकाल कर ग्रेडिंग कर लेना चहियेI बीज को साफ करके उपचारित कर सूखे स्थान में रख देना चाहिये I इस प्रकार पैदा किये गये बीज को अगले वर्ष बुवाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है I

कटाई एवं गहाई


मूंग की फलियों जब काली परने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए I अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता है I फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है I

उपज एवं आर्थिक लाभ


उचित विधिओं के प्रयोग द्वारा खेती करने पर मूंग  की 7 -8  कुंतल  प्रति हेक्टयर वर्षा आधारित फसल से उपज प्राप्त हो जाती है I एक हेक्टयर क्षेत्र में मूंग की खेती करने के लिए 18 - 20 हज़ार
रुपए का खर्च आ जाता है I  मूंग का भाव 40 रु . प्रति किलो होने पर 12000 /- से 14000 रूपये  प्रति हेक्टयर शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है I




मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक














































































































मूंग उत्पादन की उन्नत तकनीक

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मध्यप्रदेश में मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसके दाने का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिये किया जाता हैजिसमें 24-26% प्रोटीन,55-60% कार्बोहाइड्रेट एवं 1.3%वसा होता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में गठाने पाई जाती है जो कि वायुमण्डलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टयर) एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियो के रूप में प्रति हैक्टयर 1.5टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ा जाता है जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवंमृदा की उर्वराशक्ति बढाती है। मध्यप्रदेश में मूंग की फसल हरदा, होशंगाबाद, जवलपुर, ग्वालियर, भिण्ड, मुरेना, श्योपुर एवं शिवपुरी जिले में अधिक मात्रा में उगाया जाता है।मध्यप्रदेश की औसत उत्पादकता लगभग 350किलोग्राम प्रति हैक्टयर है जो कि बहुत कम है,जिसके बढने की प्रवल सम्भावनायें है। अतः कृषक भाई उन्नत प्रजातियो एवं उत्पादन की उन्नत तकनीक को अपनाकर पैदावार को 8-10 क्विंटल प्रति हैक्टयर तक प्राप्त कर सकते है।


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जलवायु-
मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-32 °C ता पमान अनुकूल पाया गया हैं। मूंग के लिए 75-90 से.मी.वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रउपयुक्त पाये गये है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60% आर्दता होना चाहिये। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है।
भूमि-
मूंग की खेती हेतु दोमट से बलुअर दोमट भूमियाँ जिनका पी. एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये।









भूमि की तैयारी-


खरीफ की फसल हेतुएक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए एंव वर्षाप्रराम्भ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। दीमक से बचाव के लिये क्लोरपायरीफॉस 1.5 % चूर्ण 20-25 कि.ग्रा/है. के मान से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिये।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4-5 दिन छोड कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावे। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं।









बुआई का समय -


खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।









उन्नत किस्मो का चयन-


मँग के लिये 8 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर, 8 किलो पोटाश एवं 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बोने के समय प्रयोग करना चाहिये।
मध्य प्रदेश लिये उन्नत जातियों का चयन निम्नलिखित जातियों का चुनाव उनकी विशेषताओं के आधार पर करना चाहिये।































































क्र.

किस्म का


नाम


अवधि (दिन)

उपज (क्विं/हैक्ट)



प्रमुख विशेषताये



चित्र


1

टॉम्बे जवाहर मूंग-3
(टी.जे. एम -3)

जारी करने का वर्षः-2006
केन्द्र का नामः-जवहार लाल नेहरू कृषि विश्व विधालय जबलपुर


60-7010-12


  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो के लिए उपयुक्त




  • फलियाँ गुच्छो में लगती है




  • एक फली मे 8-11 दाने




  • 100 दानो का बजन 3.4-4.4 ग्राम




  • पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग हेतु प्रतिरोधक




2जवाहर मूंग -721
जारी करने का वर्षः 1996

केन्द्र का नामःकृषि महाविधालय इन्दोर

70-75



12-14



<



  • पूरे मध्यप्रदेश में ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त




  • पौधे की उंचाई 53-65 सेमी




  • 3-5 फलियाँ एक गुच्छे मे




  • एक फली में 10-12 दाने




  • पीला मोजेक एवं पाउडरीमिल्डयू रोग सहनशील




3के - 851
जारी करने का वर्षः 1982
केन्द्र का नामः- चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौघोगिकी विश्व विघालय, कानपुर
60-65
(ग्रीष्म)
70-80
(खरीफ)

8-10

10-12





  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त




  • पौधे मध्यम आकार के (60-65 सेमी.)




  • एक पौधो मे 50-60 फलियाँ




  • एक फली मे 10-12 दाने




  • दाना चमकीला हरा एवं बडा




  • 100 दानो का बजन 4.0-4.5 ग्राम




4

एच.यू.एम. 1 (हम -1)
जारी करने का वर्षः 1999
केन्द्र का नामः- बनारस हिंदू विश्वविधालय, वाराणसी


65-708-9


  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त




  • पौधे मध्यम आकार के (60-70 सेमी.)




  • एक पौधे मे 40-55 फलियाँ




  • एक फली मे 8-12 दाने




  • पीला मोजेक एवं पर्णदाग रोग के प्रति सहनशील




5

पी.डी.एम - 11
जारी करने का वर्षः 1987
केन्द्रः-भारतीय दलहन अनुसंधान केन्द्र, कानपुर


65-7510-12

  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम के लिये उपयुक्त

  • पौधे मध्यम आकार के (55-65 सेमी.)

  • मुख्य शाखये मध्यम (3-4)

  • परिपक्व फली का आकार छोटा

  • पीला मोजेक रोग प्रतिरोधी


6

पूसा विशाल
जारी करने का वर्षः 2000
केन्द्रः- भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र- नई दिल्ली


60-6512-14

  • ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो के लिये उपयुक्त

  • पौधे मध्यम आकार के (55-70 सेमी.)

  • फली का साइज अधिक (9.5-10.5 सेमी.)

  • दाना मध्यम चमकीला हरा

  • पीला मोजेक रोग सहनशील










बीज दर व बीज उपचार-


खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 20 कि.ग्रा./है. पर्याप्त होता है। बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 25-30 कि.ग्रा/है. बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम + केप्टान (1 + 2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। तत्पश्चात इस उपचारित बीज को विशेष राईजोबियम कल्चर की 5 ग्राम. मात्रा प्रति किलो बीज की दर से परिश¨धित कर बोनी करें।









बुआई का तरीका -

वर्षा के मौसम में इन फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्तकरने हेतु हल के पीछे पंक्तियोंअथवा कतारों में बुआई करना उपयुक्त रहता है। खरीफ फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिये20-22.5 से.मी. रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. रखते हुये 4 से.मी. की गहराई परबोना चाहिये।







खाद एवं उर्वरक -


खाद एवं उर्वरक की मात्रा किलोग्राम /हे. होनी चाहिये।






















नाइट्रोजनफास्फोरसपोटाशगंधकजिंक
बीज उत्पादन2040202520

नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उर्वरको की पूरी मात्रा बुबाई के समय 5-10 सेमी. गहरी कूड़ में आधार खाद के रूप में दें।







सिचाई एवं जल निकास -

प्रायः वर्षा ऋतु में मूंग की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पडती है फिर भी इस मौसम में एक वर्षा के बाद दूसरी वर्षा होने के बीच लम्बा अन्तराल होने पर अथवा नमी की कमी होने पर फलियाँ बनते समय एक हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिये, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।







खरपतवार नियंत्रण -

मूंग की फसल में नींदा नियंत्रण सही समय पर नही करने सेफसल की उपज में 40-60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। खरीफ मौसम में फसलों में सकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसेः सवा (इकाईनाक्लोक्लोवा कोलाकनम/ क्रुसगेली) दूब घास (साइनोडॉन डेक्टाइलोन) एवं चैडी पत्ती वाले पत्थरचटा (ट्रायन्थिमा मोनोगायना), कनकवा (कोमेलिना वेंघालेंसिस), महकुआ (एजीरेटम कोनिज्वाडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अर्जेसिया), हजारदाना (फाइलेन्थस निरूरी), एवं लहसुआ (डाइजेरा आरवेंसिस) तथा मोथा (साइप्रस रोटन्डस, साइप्रस इरिया) आदि वर्ग के खरपतवार बहुतायत निकलते है। फसल व खरपतवार की प्रतिस्पर्धा की क्रान्तिक अवस्था मूंग में प्रथम 30 से 35 दिनों तक रहती है। इसलिये प्रथम निदाई-गुडाई 15-20 दिनों पर तथा द्वितीय 35-40 दिन पर करना चाहियें। कतारों में ब¨ई गई फसल में व्हील ह¨ नामक यंत्र द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।चूंकि वर्षा के मौसम में लगातार वर्षा होने पर निदाई गुडाई हेतु समय नहीं मिल पाता साथ ही साथ श्रमिक अधिक लगने से फसल की लागत बढ जाती है। इन परिस्थितियों में नींदा नियंत्रण के लिये निम्न नींदानाशक रसायन का छिड़काव करने से भी खरपतवार का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।खरपतवार नाशक दवाओ के छिडकाव के लिये हमेशा फ्लैट फेन नोजल का ही उपयोग करें।





























शाकनाशी रसायन का नाम



मात्रा
(ग्रा. सक्रिय पदार्थ/हे.)



प्रयोग का समय



नियंत्रित खरपतवार


पेन्डिमिथिलीन
(स्टाम्प एक्स्ट्रा)
700 ग्रा.बुवाई के 0-3 दिन तकघासकुल एवं कुछ चैडी पत्ती वाले खरपतवार
इमेजेथापायर
(परस्यूट)
100 ग्रा.बुवाई के 20 दिन बादघासकुल, मोथाकुल एवं चैडी पत्ती वाले खरपतवार
क्यूजालोफाप ईथाइल (टरगासुपर)40-50 ग्रा.बुबाई के 15-20 दिन बादघासकुल के खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण








कीट नियंत्रण-


मूंग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू, तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता है। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनालफास की 1.5 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस की 750 मि.ली. तथा हरा फुदका, माहू एवं सफेद मक्खी जैसे रस चूसक कीटो के लिए डायमिथोएट 1000 मि.ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मि.ली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयरछिड़काव करना लाभप्रद रहता है।



जब फलियाँ काली पड़कर पकने लगे तब तुड़ाई करना चाहिये। इन फलियों को सुखाकर बैलों के दावन से या लकड़ी द्वारा पीटकर गहाई करें।









रोग नियंत्रण -


मूंग में अधिकतर पीत रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतया आते है। इन रोगों की रोकथाम हेतु रोग निरोधक किस्में हम 1, पंत मूंग 1, पंतमूंग 2, टी.जे.एम -3, जे.एम. 721 आदि का उपयोग करना चाहिये। पीत रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है इसके नियंत्रण हेतु मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी 750 से 1000 मि.ली. का 600लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टर छिड़काव 2 बार 15 दिन के अंतराल पर करे। फफूंद जनित पर्णदाग (अल्टरनेरिया/सरकोस्पोरा/माइरोथीसियस) रोगों के नियंत्रण हेतु डायइथेन एम. 45, 2.5 ग्रा/लीटर या कार्वान्डाजिम $ डायइथेन एम. 45 की मिश्रित दवा बना कर 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर वर्षा के दिनों को छोड़ कर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुरूप छिड़काव 12-15 दिनों बाद पुनः करें।










मूंग के प्रमुख रोग एवं नियंन्त्रण


































1



पीला चितकबरी (मोजेक) रोग





  • रोग प्रतिरोधी अथवा सहनशील किस्मो जैसे टी.जे.एम. -3, के -851, पन्त मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 का चयन करे।




  • प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का प्रयोग करे।




  • बीज की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कतारों में करें प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधों को उखाडकर नष्ट करें।




  • यह रोग विषाणु जनित है जिसका वाहक सफेद मक्खी कीट है जिसे नियंत्रित करने के लिये ट्रायजोफॉ 40 ईसी, 2 मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथोक्साम 25 डब्लू. जी. 2 ग्राम/ली. या डायमेथोएट 30 ईसी, 1 मिली./ली. पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिडकाव करे।





2



सर्कोस्पोरा पर्णदाग





  • रोग रहित स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें।




  • खेत में पौधे घने नही होने चाहिये पौधो का 10 सेमी. की दूरी के हिसाब से विरलीकरण करे।




  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. की 2.5 ग्राम लीटर या कार्बेन्डाइजिम 50 डब्लू. पी. की 1 ग्राम/ली. दवा का घोल बनाकर 2-3 बार छिडकाव करे।





3



एन्थ्राक्नोज





  • प्रमाणित एवं स्वस्थ बीजो का चयन करे।




  • फफूद नाशक दवा जैसे मेन्कोजेब 75 डब्लू. पी. 2.5 ग्राम/ली. या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू. पी. की 1ग्राम/ली. का छिडकाव बुबाई के 40 एवं 55 दिन पश्चात करे।





4



चारकोल विगलन





  • बीजापचार कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू जी. 1 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से करे।




  • 2-3 वर्ष का फसल चक्र अपनाये तथा फसल चक्र में ज्वार, बाजरा फसलो को सम्मिलित करें।





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भभूतिया (पावडरी मिल्डयू) रोग





  • रोग प्रतिरोधी किस्मो का चयन करे।




  • समय से बुबाई करे।




  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर कैराथन या सल्फर पाउडर 2.5 ग्राम/ली. पानी की दर से छिडकाव करे।












फसल पद्धति-


मूंग कम अवधि में तैयार होने वाली दलहनी फसल हैं जिसे फसल चक्र में सम्मलित करना लाभदायक रहता है। मक्का-आलू-गेहूँ -मूंग(बसंत),ज्वार+ मूंग -गेहूँ , अरहर + मूंग -गेहूँ , मक्का +मूंग -गेहूँ , मूंग -गेहूँ । अरहर की दो कतारों के बीच मूंग की दो कतारे अन्तः फसल के रूप में बोना चाहिये। गन्ने के साथ भी इनकी अन्तरवर्तीय खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।









कटाई एंव गहाई-


मूंग की फसल क्रमशः 65-70दिन में पक जाती है। अर्थात जुलाई में बोई गई फसल सितम्बर तथा अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक कट जाती है। फरवरी-मार्च में बोई गई फसल मई में तैयार हो जाती है। फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती है। पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती है अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में करें एंव बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें। अपरिपक्वास्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनो खराब हो जाते हैं। हॅंसिए से काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते है। सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या बैंलो को चलाकर दाना अलग कर लेते है वर्तमान में मूंग एवं उड़द की थ्रेसिंग हेतु थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।









उपज एंव भड़ारण-

मूंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर 8-10 क्विंटल/है. औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल/है. उपज प्राप्त की जा सकती है। भण्ड़ारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8-10% रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।


सामान्य जानकारी





यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण दलहनी फसलों में से एक है। यह प्रोटीन और फॉस्फोरिक एसिड का समृद्ध स्रोत है। इसका उपयोग दाल के रूप में किया जाता है और यह नाश्ते का महत्वपूर्ण घटक है। भारत में, प्रमुख मैश क्षेत्र मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक हैं। पंजाब में इसकी खेती 2.2 हजार हेक्टेयर (2012-13) में की जाती है।




धरती





 लवणीय - क्षारीय मिट्टी, जल भराव वाली मिट्टी भी मैश की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। अच्छी वृद्धि के लिए, इसे अच्छी जल धारण क्षमता वाली कठोर दोमट या भारी मिट्टी की आवश्यकता होती है।




उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में





मैश 338 : खरीफ की बुवाई के लिए उपयुक्त। बौनी और कम अवधि की किस्म। 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार। प्रत्येक फली में मोटे और काले 6-7 बीज होते हैं। यह मोज़ेक वायरस और लीफ स्पॉट के लिए प्रतिरोधी है। 3.5 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है। 

मैश 114 : खरीफ की बुवाई के लिए उपयुक्त। बौनी और कम अवधि की किस्म। 85 दिनों में कटाई के लिए तैयार। प्रत्येक फली में मोटे और काले 6-7 बीज होते हैं। 3.7 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।


मैश 218: गर्मियों में बुवाई के लिए उपयुक्त। कम अवधि की किस्म। 76 दिनों में कटाई के लिए तैयार। प्रत्येक फली में मोटे, सुस्त काले 6 बीज होते हैं। 4 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है। 


मैश 414: गर्मियों में बुवाई के लिए उपयुक्त। कम अवधि की किस्म। 73 दिनों में कटाई के लिए तैयार। प्रत्येक फली में मोटे, काले 6-7 बीज होते हैं। 4.3 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।


मैश 1008 : गर्मी की बुवाई के लिए उपयुक्त। 73 दिनों में कटाई के लिए तैयार। यह मोज़ेक वायरस और लीफ स्पॉट के लिए काफी प्रतिरोधी है। प्रत्येक फली में मोटे, काले 6-7 बीज होते हैं। 4.6 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।


अन्य राज्य किस्में:

टाइप 27
टाइप 56
पूसा 1
पंत 430
एचपीयू 6
टी 65
एलबीजी 22
एलबीजी 402
एलबीजी 20






भूमि की तैयारी





 मिट्टी को अच्छी तरह से जोतने के लिए दो से तीन जुताई करें। प्रत्येक जुताई के बाद प्लैंकिंग करें। खेत को खरपतवार मुक्त रखें।




बोवाई





बुवाई का समय खरीफ की बुवाई
का इष्टतम समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक है। ग्रीष्म ऋतु की खेती के लिए अनुकूल समय मार्च से अप्रैल तक है। उप-पर्वतीय क्षेत्र के लिए बुवाई 15-25 जुलाई तक पूरी कर लें।

खरीफ की बिजाई के लिए कतार की दूरी
30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखें। रबी की बिजाई के लिए पंक्ति में 22.5 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 4-5 सेमी रखें।

बुवाई की गहराई
बीज को 4-6 सें.मी. की गहराई पर बोयें। पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली गूदा बेहतर गुणवत्ता की होती है।

बुवाई की विधि बुवाई
के लिए केरा या पोरा विधि का प्रयोग करें या बीज ड्रिल द्वारा बीज बोयें।

मसूर(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)




बीज





बीज दर
खरीफ की बिजाई के लिए बीज दर 7-8 किग्रा/एकड़ का प्रयोग करें जबकि गर्मियों की बुवाई के लिए 19-20 किग्रा/एकड़ मोटे बीजों का प्रयोग करें।
खरीफ फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23 : सरकार ने 14 फसलों की एमएसपी बढ़ाई(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बीज उपचार

बिजाई से पहले बीज को कैप्टन या थीरम या मैनकोजेब या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें। इसके बाद इन्हें छाया में सुखा लें। रासायनिक उपचार के बाद बीज को राइजोबियम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करें।

नीचे से किसी एक कवकनाशी का प्रयोग करें























कवकनाशी/कीटनाशक का नाममात्रा (खुराक प्रति किलो बीज)
carbendazim2.5 ग्राम
कब्जा2.5 ग्राम
थिराम2.5 ग्राम
Mancozeb2.5 ग्राम

 




उर्वरक





उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)















यूरियाएसएसपीपोटशो का मुरीएटजस्ता
1 160##

 

पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)













नाइट्रोजनफॉस्फोरसपोटाश
510#

 
बिजाई के समय नाइट्रोजन 5 किलो यूरिया 11 किलो प्रति एकड़ और फास्फोरस 10 किलो एसएसपी 60 किलो प्रति एकड़ डालें।

 




खरपतवार नियंत्रण





 खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए एक या दो बार निराई करनी पड़ती है। पहली गुड़ाई बुवाई के एक माह बाद करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के दो दिनों के भीतर पेंडीमेथालिन 1 लीटर प्रति एकड़ को 100-200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।




सिंचाई





मैश को खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है। यदि आवश्यक हो तो जलवायु परिस्थितियों के आधार पर सिंचाई करें।




प्लांट का संरक्षण




पीला मोज़ेक वायरस




  • रोग और उनका नियंत्रण:


पीला मोज़ेक वायरस : यह सफेद मक्खी के कारण फैलता है। पत्तियों पर अनियमित पीले, हरे धब्बे देखे जाते हैं। संक्रमित पौधों पर फली विकसित नहीं होती।

पीली मोज़ेक वायरस प्रतिरोधी किस्में उगाएं। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए थायमेथोक्सम 40 ग्राम, ट्रायाजोफॉस 600 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।







Cercospora लीफ स्पॉट



 Cercospora लीफ स्पॉट : निवारक उपाय के रूप में, Captan और Thiram के साथ बीज उपचार करें। सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट प्रतिरोधी किस्म का प्रयोग करें। यदि इसका हमला दिखे तो ज़िनेब 75 डब्लयू पी 400 ग्राम को प्रति एकड़ में स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दो से तीन स्प्रे करें।






चूसने वाला कीट




  • कीट और उनका नियंत्रण:


चूसने वाला कीट (जैसिड, एफिड, सफेद मक्खी): यदि इसका हमला दिखे तो मैलाथियान 375 मि.ली. या डाइमेथोएट 250 मि.ली. या ऑक्सीडेमेटोन मिथाइल 250 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें।

सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए थियामेथोक्सम 40 ग्राम ट्रायाजोफॉस 600 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।







तंबाकू बालों वाली कैटरपिलर



 तंबाकू की सुंडी : यदि इसका हमला दिखे तो ऐसीफेट 57एसपी 800 ग्राम या क्लोरपायरीफॉस 20ईसी 1.5 लीटर प्रति एकड़ की स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें। 
 

बालों वाली सुंडी : बालों वाली सुंडी को नियंत्रित करने के लिए इल्लियों को हाथ से उठाएं और संक्रमण कम होने पर कुचलकर या मिट्टी के तेल में डालकर नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप होने पर क्विनालफॉस 500 मि.ली. या डाइक्लोरवोस 200 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।






फली छेदक



 फली छेदक : गंभीर कीट से उपज में भारी नुकसान होता है। यदि इसका हमला दिखे तो इंडोक्साकार्ब 14.5SC@200ml या एसीफेट 75SP@800gm या स्पिनोसैड 45SC@60ml प्रति एकड़ में स्प्रे करें। दो सप्ताह के बाद दोबारा स्प्रे करें।






घुन



 घुन : इसका हमला दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30ईसी 150 मि.ली. को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।







 ब्लिस्टर बीटल : ये फूल आने की अवस्था में नुकसान पहुंचाते हैं। वे फूलों पर फ़ीड करते हैं, कलियां इस प्रकार अनाज के गठन को रोकती हैं। 

यदि इसका हमला दिखे तो इंडोक्साकार्ब 14.5SC@200ml या Acephate 75SC@800gm प्रति एकड़ में स्प्रे करें। छिड़काव शाम के समय करें और यदि आवश्यक हो तो पहले छिड़काव के 10 दिन बाद दूसरा छिड़काव करें।




फसल काटने वाले





मैश की कटाई का सबसे अच्छा समय तब होता है जब पत्तियां झड़ जाती हैं और फलियां भूरे रंग की काली हो जाती हैं। फसल को दरांती से काटें और फिर कटी हुई फसल को सूखने के लिए फर्श पर फैला दें। फिर थ्रेसिंग की जाती है और बीज को फली से अलग किया जाता है।




संदर्भ





1.पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना

2.कृषि विभाग

3.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली

4.भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान

5.कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय




 

 

 

 

 

 

 

 

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