बाजरा की उन्नत उत्पादन तकनीक
बाजरा की खेती
- बाजरा एक ऐसी फसल है ऐसे किसानो जो कि विपरीत परिस्थितियो एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रो तथा बहुत कम उर्वरको की मात्रा के साथ, जहाँ अन्य फसले अच्छा उत्पादन नही दे पाती के लिए संतुत की जाती है।
- फसल जो गरीबो का मुख्य श्रोत है- उर्जा, प्रोट्रीन विटामिन, एवं मिनरल का ।
- शुष्क एवं अर्द्धषुष्क क्षेत्रो मे मुख्य रुप से उगायी जाती है, यह इन क्षेत्रो के लिए दाने एवं चारे का मुख्य श्रोत माना जाता है। सूखा सहनषील एवं कम अवधि (मुख्यतः 2-3 माह) की फसल है जो कि लगभग सभी प्रकार की भूमियो मे उगाया जा सकता है। बाजरा क्षेत्र एवं उत्पादन मे एक महत्वपूर्ण फसल है ।जहाँ पर 500-600 मि.मी. वर्षा प्रति वर्ष होती है जो कि देश के शुष्क पष्चिम एवं उत्तरी क्षेत्रो के लिए उपयुक्त रहता है
- न्यूटिषियन जरनल के अध्ययन के अनुसार भारत वर्ष के 3 साल तक के बच्चे यदि 100 ग्राम बाजरा के आटे का सेवन करते है तो वह अपनी प्रतिदिन की आयरन (लौह) की आवष्यकता की पूर्ति कर सकते है तथा जो 2 साल के बच्चे इसमे कम मात्रा का सेवन करे ।
- आटा विशेषकर भारतीय महिलाओ के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। भारतवर्ष मे ही नही अपितु संसार मे महिलाये एवं बच्चे मे लौहतत्व (आयरन) एवं मिनरल(खनिज लवण) की कमी पायी जाती है – डा. एरिक बोई, विभागाध्यक्ष न्यूटिषियन हारवेस्टप्लस के अनुसार गेहूँ एवं चावल से, बाजरा आयरन एवं जिंक का एक बेहतर श्रोत है
जलवायु-
- बाजरा की फसल तेजी से बढने वाली गर्म जलवायु की फसल है जो कि 40-75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त होती है। इसमे सूखा सहन करने की अदभुत शक्ति होती है।
- फसल वृद्धि के समय नम वातावरण अनुकूल रहता है साथ ही फूल अवस्था पर वर्षा का होना इसके लिए हानिकारक होता है क्योंकि वर्षा से परागकरण घुल जाने से वालियो मे कम दाने बनते है। साधारणतः बाजरा को उन क्षेत्र मे उगाया जाता है जहाँ ज्वार को अधिक तापमान एवं कम वर्षा के कारण उगाना संभव न हो।
- अच्छी बढवार के लिए 20-280 सेन्टीग्रेट तापमान उपयुक्त रहता है
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भूमि-
बाजरा को कई प्रकार की भूमियो काली मिट्टी,दोमट, एवं लाल मृदाओ मे सफलता से उगाया जा सकता है लेकिन पानी भरने की समस्या के लिए बहुत ही सहनशील है।
उन्नत किस्मे –
क्र. | किस्म | अधिसूचना वर्ष | केन्द्र का नाम | अनुकूल क्षेत्र | विशेष गुण, |
1 | के.वी.एच. 108 (एम.एच. 1737) | 2014 | कृष्णा सीड़ प्रा.लि. आगरा | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने के लिए, बडे पौधे, डाउनीमिल्ड्यू, ब्लास्ट एवं स्मट प्रतिरोधी |
2 | जी.वी.एच. 905 (एम.एच. 1055) | 2013 | ए.आई.सी.पी.एम.आई. पी.एम.आर.एस. जामनगर | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | मध्यम अवधि, मध्यम उचाई, डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
3 | 86 एम 89 (एम एच 1747) | 2013 | पायोनीयर ओवरसीज को. हैदराबाद | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने वाली, बडे पौधे, डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
4 | एम.पी.एम.एच 17(एम.एच.1663) | 2013 | ए.आई.सी.पी.एम.आई.पी. जोधपुर | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | मध्यम अवधि एवं उचाई, डाउनीमिल्डयू सहिष्णुता |
5 | कवेरी सुपर वोस (एम.एच.1553) | 2012 | कावेरी सीड को.लि. सिकन्दराबाद | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने वाली, बडे पौधे |
6 | 86 एम. 86 (एम. एच. 1684) | 2012 | पायोनीयर ओवरसीज को. हैदराबाद | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने वाली, मध्यम उचाई |
7 | 86 एम. 86 (एम. एच. 1617) | 2011 | ए.आई.सी.पी.एम.आई. पी.टी.एन.ए.यू.कोयम्बटूर | म.प्र. गुजरात, हरियाणा, राज. उ.प्र. दिल्ली, पंजाब | देर से पकने वाली, मध्यम उचाई, डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
8 | आर.एच.बी. 173(एम.एच. 1446) | 2011 | ए.आई.सी.पी.एम.आई. पी.एस.के.आर.ए.यू.जयपुर | म.प्र. गुजरात, हरियाणा, राज. उ.प्र. दिल्ली, पंजाब | मध्यम अवधि, मध्यम से बडी उचाई, डाउनीमिल्ड्यू सहिष्ण |
9 | एच.एच.बी. 223(एम.एच. 1468) | 2010 | ए.आईसी.पी.एम. आई.पी.सी.एस.एच.ए.यू. हिसार | म.प्र. गुजरात, हरियाणा, राज. उ.प्र. दिल्ली, पंजाब | मध्यम अवधि, डाउनीमिल्डयू प्रतिरोधी, सूखा सहिष्णु |
10 | एम.वी.एच. 130 | 1986 | महिको जालना | सम्पूर्ण भारत | 80-85 दिन अवधि, मध्यम उचाई |
प्रजातियाँ (अनाज एंव चारे के लिऐ ) | |||||
1 | जे.सी.बी. 4(एम.पी. 403) | 2007 | ए.आई.सी.पी.एम.आई.पी सी.ओ.ए.,ग्वालियर | म.प्र. | अवधि 75 दिन, मध्यम उचाई |
2 | सी.जेड.पी. 9802 | 2003 | कजरी, जोधपुर | सूखाग्रस्त क्षेत्र- राज.,गुजरात, हरियाणा | 70-72 दिन, मध्यम उचाई, सूखा सहिष्णुता अधिक कडवी, हाईब्रिड |
3 | जवाहर बाजरा -3 | 2002 | जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर | म.प्र. | उपज 18-20 क्वि./हे., अवधि 75-80 दिन डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
4 | जवाहर बाजरा -4 | 2002 | जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर | म.प्र. | उपज 15-27 क्वि./हे., अवधि 75-80 दिन डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
5 | देशी(क्षेत्रीय किस्म) | विशेष रुप से हरे चारे के लिए | उपज 12-15 क्वि./हे., सूखी कडवी 125-150 क्विंटल/हेक्टेयर |
खेत की तैयारी-
बाजरा का बीज बारीक होन के कारण खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। एक गहरी जुताई के बाद 2-3 बार हल से जुताई कर खेत को समतल करना चाहिए, जिससे खेत मे पानी न रुक सके, साथ मे पानी के निकास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। बुवाई के 15 दिन पूर्व 10-15 टन प्रति हेक्टेयर सडी गोबर की खाद डालकर हल द्वारा उसे भलीभॉती मिट्टी मे मिला देते हैं। दीमक के प्रकोप की संभावना होने पर प्रति 25 कि.ग्रा./हेक्टेयर क्लोरोपायरीफॉस 1.5 प्रतिषत चूर्ण खेत मे मिलाये।
बुवाई का समय एवं विधि-
वर्षा प्रारंभ होते ही जुलाई के दूसरे सप्ताह तक इसे कतारो मे बीज को 2-3 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए। लाइन से लाइन 45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 -15 सेमी. उपयुक्त होती है।
फसल चक्र-
SUPPLY
बाजरा-जौ बाजरा-गेहूँ / बाजरा-चना बाजरा-मटर/ बाजरा-सरसों आदि ।
अन्र्तवर्तीय फसलें –
अन्तवर्तीय फसले जैसे बाजरा की दो पंक्तियों के बीच में दो पंक्ति उडद/ मूंग की लगाने से उडद/मूंग की लगभग 3 क्विंटल/हेक्टेयर तक अतिरिक्त उपज मिलती है।
बाजरा की दो पंक्तियो के बीच मे 2 पक्ति लोबिया की लगाने से इससे 45 दिन के अंदर 80-90 क्विंटल/हेक्टेयर तक अतिरिक्त हरा चारा मिल जाता है।
पौधे रोपण़-
बाजरा की समय से बोनी का न हो पाना उसके लिए कई कारण उत्तरदायी हो सकते है – जैसे मानसून का देर से आना, भारी एवं लगातार वर्षा का बोनी के उपयुक्त समय पर हाना अथवा गर्मी की फसल देर से कटाई आदि। इन परिस्थितियो मे बाजरा की पौध रोपण करना ज्यादा उत्पादन देता है बजाय सीधी बीज बुवाई के। पौध रोपण के निम्न लाभ होते है-
- पौध रोपण से फसल शीध्र पक जाती है तथा देरी से कम तापमान का प्रभाव दाने बनने पर नही पडता।2 अच्छी वृद्धि के कारण अधिक कल्ले एवं वाली निकलती है।
- पौधे की संतुत संख्या रख सकते है।
- रोपे हुए पौधे अच्छी वृद्धि करते है क्योंकि लगभग तीन सप्ताह पुराने पौधे लगातार वर्षा स्थिति को अच्छी तरह से सहन कर सकते है।
- डाउनीमिल्डयू से प्रभावित पौधे को लगाने के समय उनको निकाला जा सकता है।
पौधरोपण के लिए नर्सरी तैयार करना-
एक हेक्टेयर भूमि के लिए 2 कि.ग्रा. बाजरा को 500-600 वर्ग मी. क्षेत्रफल मे बोना चाहिए। बीज को 1.2 मी.X 7.50 मी (चैडाई X लम्बाई) क्यारियों मे 10 सेमी. दूरी एवं 1.5 सेमी.की गहराई पर बोना चाहिए। पौधे की अच्छी बढवार के लिए नर्सरी मे 25-30 कि.ग्रा. कैल्सियम अमेनियम नाईटेªट का प्रयोग करते है। नर्सरी से पौधो को तीन सप्ताह बाद उखाडकर खेत मे रोपण कर देना चाहिए।
साथ ही पौधे को उखाडते समय नर्सरी की क्यारियाँ गीली होनी चाहिए जिससे पौधो को उखाडते समय उनकी जडे प्रभावित न होने पायें। पौधे को उखाडने के बाद बढवार बिन्दू से ऊपर के भाग का तोड़ देते है जिससे कम से कम ट्रांसपाइरेषन (वाष्पोत्सर्जन) हो सके। साथ ही साथ रोपण उस दिन करना चाहिए जिस दिन वर्षा हो रही हो। यदि वर्षा नही हो रही तो खेत मे सिचांई कर देना चाहिए जिससे पौध आसानी से रोपित हो सकें। एक छेद मे एक पौधे को 50 सेमी. की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. दूरी रखते है। जुलाई के तीसरे सप्ताह से लेकर अगस्त के दूसरे सप्ताह तक कर देनी चाहिए।
उर्वरक-
मौसम अपडेट : मानसून की केरल में दस्तक, जानें अपने राज्य का हाल
बुवाई के पहले 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर तथा 20 कि.ग्रा. पोटाष प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। बोेने के लगभग 30 दिन पर शेष 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए। उर्वरकों की आधार मात्रा सदैव बीज के नीचे 4-5 सेमी. गहराई पर बोते हैं।
बाजरा मे समन्वित खरपतवार नियंत्रण हेतु एट्राजीन 1 किग्रा.सक्रिय तत्व/हे. बोनी के 3 दिन के अंदर + 20-25 दिन पर एक हाथ से निराई | |||
देशी बाजरा (क्षेत्रीय किस्म) मुख्य रुप से चारे के लिए, उपज- 12-15 क्विं/हे.कडवी 250-300 क्विं/हेक्टेयर, सूखी कडवी 125-150 क्विंटल/ हेक्टेयर | |||
समन्वित खरपतवार नियंत्रण-
त मे जहा पर अधिक पौधो उगे हो उन्हे वर्षा वाले दिन निकालकर उन स्थानो पर लगाये जिस स्थान पर पौधो की संख्या कम हो। यह कार्य बीज जमने के लगभग 15 दिन पर कर देना चाहिए । बोनी के 20 – 25 दिन पर एक बार निदाई कर देनी चाहिए। चैडी पत्ती के खरपतवारों के नियंत्रण हेतु बोनी के 25-30 दिन पर 2,4 डी 500 ग्राम मात्रा 400-500 ली. पानी मे घोल बनाकर छिडकाव करे । सकरी एवं चैडी पत्ती के खरपतवारो के नियंत्रण के लिए बोनी के तुरंत बाद एट्राजीन 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टे. 400-500 लीटर पानी मे मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
सिंचाई-
बाजरा एक वर्षाधारित फसल है इसलिये इसको पानी सिचांई की कम ही आवष्यकता होती है जब वर्षा न हो तब फसल की सिंचाई करनी चाहिए। साधारणतः फसल को सिंचाइयो की इसकी बढवार के समय आवष्यकता होती है। यदि वाली निकलते समय कम नमी है तो इस समय सिंचाई की आवष्कता पडती है क्योंकि उस स्तर पर नमी की बहुत आवष्कता होती है। बाजरा की फसल अधिक देर तक पानी भराव को सहन नही कर सकती इसलियें पानी के निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए।
समन्वितकीट एवं रोग प्रबंधन-
कीट एवं बीमारियाँ | नियंत्रण के उपाय |
तना छेदक, ब्लिस्टर बीटल, ईयरहेड, केटर पिलर |
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मृदुरोमिल आसित (हरित वाली या डाउनीमिल्ड्यू) |
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कड़वा रोग |
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कटाई एवं भण्डारण-
फसल पूर्ण रुप से पकने पर कटाई करे फसल के ढेर को खेत मे खडा रखे तथा गहाई के बाद बीज की ओसाई करे। दानो को धूप मे अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करे।
उपज-
वैज्ञानिक तरीके से सिंचित अवस्था मे खेती करने पर प्रजातियो से 30 -35 क्विटल दाना
100 क्विटल/हेक्टेयरसूखी कडवी मिलती है।
- हाईब्रिड प्रजातिया लगाने तथा वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन मे 40-45 क्विटल तक उपज प्राप्त होती है।
- वर्षाधारित खेती मे 12-15 क्विटंल तक दाना तथा 70 क्विटल तक सूखी कडवीं प्राप्त होती है।
औसत आय – व्यय प्रति हेक्टेयर का आंकलन –
आय- औसत दाना 40 क्विंटल / 1250 प्रति क्विंटल =50000/- + कडवी- 5000/- प्रति हेक्टेयर
कुल आय =55000 /-
कुल लागत =30000/-
शुद्ध आय =25000/-
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खरीफ की फसलें
बाजरा की खेती
- भूमि की चुनाव
- भूमि की तैयारी
- प्रजातियां
- बीज दर
- बुवाई की विधि
- उर्वरकों प्रबन्धन
- विरलीकरण (थिनिंग) गैप फिलिंग
- सिंचाई
- खरपतवार नियंत्रण/निराई-गुड़ाई
- फसल सुरक्षा
- अरगट
- लक्षण
- रोकथाम
- कण्डुआ
- लक्षण
- रोकथाम
- मृदुरोमिल आसिता व हरित बाल रोग
- लक्षण
- रोकथाम
खरीफ के अलावा जायद में भी बाजरा की खेती सफलतापूर्व की जाने लगी है, क्योंकि जायद में बाजरा के लिए अनुकूल वातावरण जहॉ इसके दाने के रूप में उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है वहीं चारे के लिए भी इसकी खेती की जा रही है।
सिंचाई की जल की समुचित व्यवस्था होने पर आलू, सरसों, चना, मटर के बाद बाजरा की खेती से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
भूमि की चुनाव
बलुई दोमट या दोमट भूमि बाजरा के लिए अच्छी रहती है। भली भॉति समतल व जीवांश वाली भूमि में बाजरा की खेती करने से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
भूमि की तैयारी
पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10–12 सेमी. गहरी एक जुताई तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो–तीन जुताइयॉ करके पाटा लगाकर खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए।
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प्रजातियां
बाजरा की उन्नतिशील प्रजातियां।
प्रजाति | पकने की अवधि (दिन) | ऊंचाई (सेमी.) | दाने की उपज (कु./हे.) | |
अ. | संकुल | |||
आई.सी.एम.वी.-221 | 75-80 | 200-225 | 20-22 | |
आई.सी.टी.पी.-8203 | 80-85 | 180-190 | 18-20 | |
राज-171 | 80-85 | 190-210 | 20-25 | |
पूसा कम्पोजिट-383 | 80-85 | 190-210 | 20-25 | |
ब. | संकर | |||
86 एम-52 | 78-82 | 170-180 | 28-30 | |
जी.एच.बी.-526 | 80-85 | 170-180 | 28-30 | |
पी.बी.-180 | 80-85 | 180-190 | 28-30 | |
जी.एच.बी.-558 | 75-80 | 170-180 | 28-30 |
बुवाई का समय
बाजरा की बेवाई मार्च के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। बाजरा एक परागित फसल है तथा इसके परागकण 46 डिग्री.C तापमान पर भी जीवित रह सकते है व बीज बनाते हैं।
बीज दर
दाने के लिए 4-5 किलोग्राम प्रति हे. पर्याप्त होता है बीज को 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा. की दर से शोधित कर लेना चाहिए।
बुवाई की विधि
बाजरा की बुवाई लाईन में करने से अधिक उपज प्राप्त होती है। बुवाई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. रखनी चाहिए।
उर्वरकों प्रबन्धन
उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण से प्राप्त संस्तुतियों के आधार पर करें मृदा परीक्षण की सुविधा उपलब्ध न हो तो संकुल प्रजातियों के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तथा संकर प्रजातियों के लिए 80 किग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फास्फोरस तथा 40 किग्रा. पोटाश प्रति हे. प्रयोग करना चाहिए। फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा बेसल ड्रेसिंग के रूप में बुवाई के समय तथा नत्रजन की आधी मात्रा टापड्रेसिंग के रूप में बुवाई के 20-25 दिन बाद खेत में पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करनी चाहिए। यदि पूर्व में बोयी गयी फसल में गोबर की खाद का प्रयोग न किया गया हो तो 5 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर देने से भूमि का स्वास्थ्य भी सही रहता है तथा उपज भी अधिक प्राप्त होती है। बीज को नत्रजन जैव उर्वरक-एजोस्प्रीलिनम तथा स्फूर जैव उर्वरक-फास्फेटिका द्वारा उपचारित कर बोने से भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा उपज भी अधिक मिलती है।
आलू के खेत में बाजरा बोने से उर्वरकों की मात्रा को 25 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
विरलीकरण (थिनिंग) गैप फिलिंग
बुवाई के 15-20 दिन बाद सांय के समय खेत में पर्याप्त नमी होने पर घने पौधों वाले स्थान के पौधों को उखाड़ कर कम पौधे वाले स्थान पर रोपित कर देना चाहिए तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. कर लेना चाहिए तथा रोपित पौधे किये गये पौधों में पानी लगा देना चाहिए।
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सिंचाई
जायद में बाजरा की फसल 4-5 सिंचाइयॉ पर्याप्त होती है। 15-20 दिन के अन्तर से सिंचाई करते रहना चाहिए। कल्ले निकलते समय व फूल आने पर खेत में पर्याप्त नमी आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण/निराई-गुड़ाई
खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद जमाव से पूर्व एट्राजीन 0.5 किग्रा./हे. की दर से 700-800 लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव समान रूप से करना चाहिए। खरपतवार दिखाई देने पर निकाई के बाद गहरी गुड़ाई करने से खरपतवारों पर नियंत्रण के साथ-साथ नमी का संरक्षण भी हो जाता है।
फसल सुरक्षा
बाजरा एक तेजी से बढ़ने वाली फसल है तथा जायद में बोने पर कीट तथा रोग का प्रभाव भी कम होता है। रोग से रोकथाम के निम्न उपाय है।
अरगट
लक्षण
यह फफॅूदी से उत्पन्न होने वाला रोग है। इसके लक्षण बालों पर दिखाई देते है। इसमें दाने के स्थान पर भूरे काले रंग से सींक के आकार की गांठे बन जाती है। संक्रमित फूलों में फफॅूदी विकसित हो जाती है। रोग ग्रसित दाने मनुष्यों एवं जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होते हैं।
रोकथाम
- रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाय।
- शोधित बीज का प्रयोग करें यदि बीज उपचारित नहीं है तो 20 प्रतिशत नमक के घोल में बीज को डालने पर प्रभावित बीज/फफॅूदी तैर कर ऊपर आ जाएगी। जिन्हें हटाकर नीचे का शुद्ध बीज लेकर साफ पानी से 4-5 बार धोकर एवं सुखाकर प्रयोग करें।
कण्डुआ
लक्षण
यह फफॅूदी जनित रोग है। बालियों में दाना बनते समय रोग के लक्षण दिखार्इ देते हैं। रोग ग्रसित दाने बड़े, गोल या अण्डाकार हरे रंग के दिखाई देते है बाद में दानों के अन्दर काला चूर्ण भरा होता है।
रोकथाम
- बीज शोधित करके बोना चाहिए।
- एक ही खेत में प्रति वर्ष बाजरा की खेती नहीं करनी चाहिए।
- रोग ग्रसति बालियों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए।
- रोग की संभावना दिखते ही फफॅूदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या कार्बाक्सिन की 1.0 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।
मृदुरोमिल आसिता व हरित बाल रोग
लक्षण
रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियॉ पीली पड़ जाती है तथा निचली सतह पर फफॅूदी की हल्के भूरे रंग की वृद्धि दिखाई देती है। पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा बालियों के स्थान पर टेड़ी मेड़ी गुच्छेनुमा हरी पत्तियॅा सी बन जाती है।
रोकथाम
- रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन किया जाय।
- बीज को शोधित करके बुवाई की जाय।
- सर्वोगी फफॅूदी नाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या कार्बाक्सिन 1.00 किग्रा. मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति.हे. की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करना चाहिए।
आलू की सफल खेती
बीएससी कृषि प्रथम वर्ष की कक्षा कब शुरू होगी?
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