बाजरा
- खरीफ/जुलाई
- किस्मों के प्रकार
- रासायनिक उर्वरक
- कीट नियंत्रण
सामान्य जानकारी
बाजरा या बाजरा दुनिया में व्यापक रूप से उगाया जाता है। यह सूखे को सहन कर सकता है, इसलिए इसे कम वर्षा वाले क्षेत्र में अच्छी तरह से अपनाया जाता है। भारत बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक है। मानव उपभोग के साथ-साथ इसका उपयोग चारे के लिए किया जाता है, इसके डंठल का उपयोग जानवरों को खिलाने के लिए किया जाता है। भारत में बाजरा उगाने वाले प्रमुख क्षेत्र पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं।
2002-03 में पंजाब में बाजरे की खेती के लिए लगभग 0.8 हजार हेक्टेयर भूमि का उपयोग किया गया और 3.9 क्विंटल/एकड़ की औसत उपज दी गई। बाजरा की कुल उपज 0.8 हजार टन है। पंजाब में प्रमुख बाजरा उत्पादक क्षेत्र बठिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर, मानसा, मोगा और संगरूर हैं।
बाजरा की उन्नत उत्पादन तकनीक
बाजरा की खेती
46 एचपी श्रेणी में बेहतरीन ट्रैक्टर जॉन डियर 5045 D पावर प्रो
- बाजरा एक ऐसी फसल है ऐसे किसानो जो कि विपरीत परिस्थितियो एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रो तथा बहुत कम उर्वरको की मात्रा के साथ, जहाँ अन्य फसले अच्छा उत्पादन नही दे पाती के लिए संतुत की जाती है।
- फसल जो गरीबो का मुख्य श्रोत है- उर्जा, प्रोट्रीन विटामिन, एवं मिनरल का ।
- शुष्क एवं अर्द्धषुष्क क्षेत्रो मे मुख्य रुप से उगायी जाती है, यह इन क्षेत्रो के लिए दाने एवं चारे का मुख्य श्रोत माना जाता है। सूखा सहनषील एवं कम अवधि (मुख्यतः 2-3 माह) की फसल है जो कि लगभग सभी प्रकार की भूमियो मे उगाया जा सकता है। बाजरा क्षेत्र एवं उत्पादन मे एक महत्वपूर्ण फसल है ।जहाँ पर 500-600 मि.मी. वर्षा प्रति वर्ष होती है जो कि देश के शुष्क पष्चिम एवं उत्तरी क्षेत्रो के लिए उपयुक्त रहता है
- न्यूटिषियन जरनल के अध्ययन के अनुसार भारत वर्ष के 3 साल तक के बच्चे यदि 100 ग्राम बाजरा के आटे का सेवन करते है तो वह अपनी प्रतिदिन की आयरन (लौह) की आवष्यकता की पूर्ति कर सकते है तथा जो 2 साल के बच्चे इसमे कम मात्रा का सेवन करे ।
- आटा विशेषकर भारतीय महिलाओ के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। भारतवर्ष मे ही नही अपितु संसार मे महिलाये एवं बच्चे मे लौहतत्व (आयरन) एवं मिनरल(खनिज लवण) की कमी पायी जाती है – डा. एरिक बोई, विभागाध्यक्ष न्यूटिषियन हारवेस्टप्लस के अनुसार गेहूँ एवं चावल से, बाजरा आयरन एवं जिंक का एक बेहतर श्रोत है
जलवायु-
- बाजरा की फसल तेजी से बढने वाली गर्म जलवायु की फसल है जो कि 40-75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त होती है। इसमे सूखा सहन करने की अदभुत शक्ति होती है।
- फसल वृद्धि के समय नम वातावरण अनुकूल रहता है साथ ही फूल अवस्था पर वर्षा का होना इसके लिए हानिकारक होता है क्योंकि वर्षा से परागकरण घुल जाने से वालियो मे कम दाने बनते है। साधारणतः बाजरा को उन क्षेत्र मे उगाया जाता है जहाँ ज्वार को अधिक तापमान एवं कम वर्षा के कारण उगाना संभव न हो।
- अच्छी बढवार के लिए 20-280 सेन्टीग्रेट तापमान उपयुक्त रहता है
- बाजरा की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
भूमि-
बाजरा को कई प्रकार की भूमियो काली मिट्टी,दोमट, एवं लाल मृदाओ मे सफलता से उगाया जा सकता है लेकिन पानी भरने की समस्या के लिए बहुत ही सहनशील है।
उन्नत किस्मे –
क्र. | किस्म | अधिसूचना वर्ष | केन्द्र का नाम | अनुकूल क्षेत्र | विशेष गुण, |
1 | के.वी.एच. 108 (एम.एच. 1737) | 2014 | कृष्णा सीड़ प्रा.लि. आगरा | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने के लिए, बडे पौधे, डाउनीमिल्ड्यू, ब्लास्ट एवं स्मट प्रतिरोधी |
2 | जी.वी.एच. 905 (एम.एच. 1055) | 2013 | ए.आई.सी.पी.एम.आई. पी.एम.आर.एस. जामनगर | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | मध्यम अवधि, मध्यम उचाई, डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
3 | 86 एम 89 (एम एच 1747) | 2013 | पायोनीयर ओवरसीज को. हैदराबाद | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने वाली, बडे पौधे, डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
4 | एम.पी.एम.एच 17(एम.एच.1663) | 2013 | ए.आई.सी.पी.एम.आई.पी. जोधपुर | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, दिल्ली, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | मध्यम अवधि एवं उचाई, डाउनीमिल्डयू सहिष्णुता |
5 | कवेरी सुपर वोस (एम.एच.1553) | 2012 | कावेरी सीड को.लि. सिकन्दराबाद | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने वाली, बडे पौधे |
6 | 86 एम. 86 (एम. एच. 1684) | 2012 | पायोनीयर ओवरसीज को. हैदराबाद | म.प्र.,उ.प्र., पंजाब, हरियाणा,गुजरात, राजस्थान, | देर से पकने वाली, मध्यम उचाई |
7 | 86 एम. 86 (एम. एच. 1617) | 2011 | ए.आई.सी.पी.एम.आई. पी.टी.एन.ए.यू.कोयम्बटूर | म.प्र. गुजरात, हरियाणा, राज. उ.प्र. दिल्ली, पंजाब | देर से पकने वाली, मध्यम उचाई, डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
8 | आर.एच.बी. 173(एम.एच. 1446) | 2011 | ए.आई.सी.पी.एम.आई. पी.एस.के.आर.ए.यू.जयपुर | म.प्र. गुजरात, हरियाणा, राज. उ.प्र. दिल्ली, पंजाब | मध्यम अवधि, मध्यम से बडी उचाई, डाउनीमिल्ड्यू सहिष्ण |
9 | एच.एच.बी. 223(एम.एच. 1468) | 2010 | ए.आईसी.पी.एम. आई.पी.सी.एस.एच.ए.यू. हिसार | म.प्र. गुजरात, हरियाणा, राज. उ.प्र. दिल्ली, पंजाब | मध्यम अवधि, डाउनीमिल्डयू प्रतिरोधी, सूखा सहिष्णु |
10 | एम.वी.एच. 130 | 1986 | महिको जालना | सम्पूर्ण भारत | 80-85 दिन अवधि, मध्यम उचाई |
प्रजातियाँ (अनाज एंव चारे के लिऐ ) | |||||
1 | जे.सी.बी. 4(एम.पी. 403) | 2007 | ए.आई.सी.पी.एम.आई.पी सी.ओ.ए.,ग्वालियर | म.प्र. | अवधि 75 दिन, मध्यम उचाई |
2 | सी.जेड.पी. 9802 | 2003 | कजरी, जोधपुर | सूखाग्रस्त क्षेत्र- राज.,गुजरात, हरियाणा | 70-72 दिन, मध्यम उचाई, सूखा सहिष्णुता अधिक कडवी, हाईब्रिड |
3 | जवाहर बाजरा -3 | 2002 | जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर | म.प्र. | उपज 18-20 क्वि./हे., अवधि 75-80 दिन डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
4 | जवाहर बाजरा -4 | 2002 | जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर | म.प्र. | उपज 15-27 क्वि./हे., अवधि 75-80 दिन डाउनीमिल्ड्यू प्रतिरोधी |
5 | देशी(क्षेत्रीय किस्म) | विशेष रुप से हरे चारे के लिए | उपज 12-15 क्वि./हे., सूखी कडवी 125-150 क्विंटल/हेक्टेयर |
खेत की तैयारी-
गेंहू की संपूर्ण जानकारी A To Z(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बाजरा का बीज बारीक होन के कारण खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। एक गहरी जुताई के बाद 2-3 बार हल से जुताई कर खेत को समतल करना चाहिए, जिससे खेत मे पानी न रुक सके, साथ मे पानी के निकास की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। बुवाई के 15 दिन पूर्व 10-15 टन प्रति हेक्टेयर सडी गोबर की खाद डालकर हल द्वारा उसे भलीभॉती मिट्टी मे मिला देते हैं। दीमक के प्रकोप की संभावना होने पर प्रति 25 कि.ग्रा./हेक्टेयर क्लोरोपायरीफॉस 1.5 प्रतिषत चूर्ण खेत मे मिलाये।
बुवाई का समय एवं विधि-
वर्षा प्रारंभ होते ही जुलाई के दूसरे सप्ताह तक इसे कतारो मे बीज को 2-3 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए। लाइन से लाइन 45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 -15 सेमी. उपयुक्त होती है।
फसल चक्र-
बाजरा-जौ बाजरा-गेहूँ / बाजरा-चना बाजरा-मटर/ बाजरा-सरसों आदि ।
अन्र्तवर्तीय फसलें –
अन्तवर्तीय फसले जैसे बाजरा की दो पंक्तियों के बीच में दो पंक्ति उडद/ मूंग की लगाने से उडद/मूंग की लगभग 3 क्विंटल/हेक्टेयर तक अतिरिक्त उपज मिलती है।
बाजरा की दो पंक्तियो के बीच मे 2 पक्ति लोबिया की लगाने से इससे 45 दिन के अंदर 80-90 क्विंटल/हेक्टेयर तक अतिरिक्त हरा चारा मिल जाता है।
धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
पौधे रोपण़-
बाजरा की समय से बोनी का न हो पाना उसके लिए कई कारण उत्तरदायी हो सकते है – जैसे मानसून का देर से आना, भारी एवं लगातार वर्षा का बोनी के उपयुक्त समय पर हाना अथवा गर्मी की फसल देर से कटाई आदि। इन परिस्थितियो मे बाजरा की पौध रोपण करना ज्यादा उत्पादन देता है बजाय सीधी बीज बुवाई के। पौध रोपण के निम्न लाभ होते है-
- पौध रोपण से फसल शीध्र पक जाती है तथा देरी से कम तापमान का प्रभाव दाने बनने पर नही पडता।2 अच्छी वृद्धि के कारण अधिक कल्ले एवं वाली निकलती है।
- पौधे की संतुत संख्या रख सकते है।
- रोपे हुए पौधे अच्छी वृद्धि करते है क्योंकि लगभग तीन सप्ताह पुराने पौधे लगातार वर्षा स्थिति को अच्छी तरह से सहन कर सकते है।
- डाउनीमिल्डयू से प्रभावित पौधे को लगाने के समय उनको निकाला जा सकता है।
- सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
पौधरोपण के लिए नर्सरी तैयार करना-
एक हेक्टेयर भूमि के लिए 2 कि.ग्रा. बाजरा को 500-600 वर्ग मी. क्षेत्रफल मे बोना चाहिए। बीज को 1.2 मी.X 7.50 मी (चैडाई X लम्बाई) क्यारियों मे 10 सेमी. दूरी एवं 1.5 सेमी.की गहराई पर बोना चाहिए। पौधे की अच्छी बढवार के लिए नर्सरी मे 25-30 कि.ग्रा. कैल्सियम अमेनियम नाईटेªट का प्रयोग करते है। नर्सरी से पौधो को तीन सप्ताह बाद उखाडकर खेत मे रोपण कर देना चाहिए।
साथ ही पौधे को उखाडते समय नर्सरी की क्यारियाँ गीली होनी चाहिए जिससे पौधो को उखाडते समय उनकी जडे प्रभावित न होने पायें। पौधे को उखाडने के बाद बढवार बिन्दू से ऊपर के भाग का तोड़ देते है जिससे कम से कम ट्रांसपाइरेषन (वाष्पोत्सर्जन) हो सके। साथ ही साथ रोपण उस दिन करना चाहिए जिस दिन वर्षा हो रही हो। यदि वर्षा नही हो रही तो खेत मे सिचांई कर देना चाहिए जिससे पौध आसानी से रोपित हो सकें। एक छेद मे एक पौधे को 50 सेमी. की दूरी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी. दूरी रखते है। जुलाई के तीसरे सप्ताह से लेकर अगस्त के दूसरे सप्ताह तक कर देनी चाहिए।
उर्वरक-
बुवाई के पहले 40 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. स्फुर तथा 20 कि.ग्रा. पोटाष प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। बोेने के लगभग 30 दिन पर शेष 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए। उर्वरकों की आधार मात्रा सदैव बीज के नीचे 4-5 सेमी. गहराई पर बोते हैं।
बाजरा मे समन्वित खरपतवार नियंत्रण हेतु एट्राजीन 1 किग्रा.सक्रिय तत्व/हे. बोनी के 3 दिन के अंदर + 20-25 दिन पर एक हाथ से निराई | |||
देशी बाजरा (क्षेत्रीय किस्म) मुख्य रुप से चारे के लिए, उपज- 12-15 क्विं/हे.कडवी 250-300 क्विं/हेक्टेयर, सूखी कडवी 125-150 क्विंटल/ हेक्टेयर | |||
समन्वित खरपतवार नियंत्रण-
त मे जहा पर अधिक पौधो उगे हो उन्हे वर्षा वाले दिन निकालकर उन स्थानो पर लगाये जिस स्थान पर पौधो की संख्या कम हो। यह कार्य बीज जमने के लगभग 15 दिन पर कर देना चाहिए । बोनी के 20 – 25 दिन पर एक बार निदाई कर देनी चाहिए। चैडी पत्ती के खरपतवारों के नियंत्रण हेतु बोनी के 25-30 दिन पर 2,4 डी 500 ग्राम मात्रा 400-500 ली. पानी मे घोल बनाकर छिडकाव करे । सकरी एवं चैडी पत्ती के खरपतवारो के नियंत्रण के लिए बोनी के तुरंत बाद एट्राजीन 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टे. 400-500 लीटर पानी मे मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।
Multi Crop Vacuum Planter
सिंचाई-
बाजरा एक वर्षाधारित फसल है इसलिये इसको पानी सिचांई की कम ही आवष्यकता होती है जब वर्षा न हो तब फसल की सिंचाई करनी चाहिए। साधारणतः फसल को सिंचाइयो की इसकी बढवार के समय आवष्यकता होती है। यदि वाली निकलते समय कम नमी है तो इस समय सिंचाई की आवष्कता पडती है क्योंकि उस स्तर पर नमी की बहुत आवष्कता होती है। बाजरा की फसल अधिक देर तक पानी भराव को सहन नही कर सकती इसलियें पानी के निकास का उचित प्रबंध करना चाहिए।
समन्वितकीट एवं रोग प्रबंधन-
कीट एवं बीमारियाँ | नियंत्रण के उपाय |
तना छेदक, ब्लिस्टर बीटल, ईयरहेड, केटर पिलर |
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मृदुरोमिल आसित (हरित वाली या डाउनीमिल्ड्यू) |
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कड़वा रोग |
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कटाई एवं भण्डारण-
फसल पूर्ण रुप से पकने पर कटाई करे फसल के ढेर को खेत मे खडा रखे तथा गहाई के बाद बीज की ओसाई करे। दानो को धूप मे अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करे।
उपज-
वैज्ञानिक तरीके से सिंचित अवस्था मे खेती करने पर प्रजातियो से 30 -35 क्विटल दाना
100 क्विटल/हेक्टेयरसूखी कडवी मिलती है।
- हाईब्रिड प्रजातिया लगाने तथा वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन मे 40-45 क्विटल तक उपज प्राप्त होती है।
- वर्षाधारित खेती मे 12-15 क्विटंल तक दाना तथा 70 क्विटल तक सूखी कडवीं प्राप्त होती है।
- Multi Crop Vacuum Planter
औसत आय – व्यय प्रति हेक्टेयर का आंकलन –
आय- औसत दाना 40 क्विंटल / 1250 प्रति क्विंटल =50000/- + कडवी- 5000/- प्रति हेक्टेयर
कुल आय =55000 /-
कुल लागत =30000/-
शुद्ध आय =25000/-
धरती
यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है लेकिन अच्छी जल भराव वाली और रेतीली मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।
उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में
पीएचबी 2884: यह एक संकर किस्म है जो 230 सेमी की ऊंचाई प्राप्त करती है, सिर 28 सेमी लंबा और 12 सेमी व्यास होता है। इसके दाने मध्यम मोटे और भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म लगभग सभी रोगों के प्रति सहनशील है। यह किस्म 28 दिनों में पक जाती है और औसतन 13.2 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
PHB 2168: यह एक संकर किस्म है जो 210cm लंबी होती है। यह किस्म 83 दिनों में पक जाती है। इसका सिर 26 सेमी लंबा और 9 सेमी चौड़ा होता है। दाने मध्यम मोटे और भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म कोमल फफूंदी को सहन करने में सक्षम है। यह औसतन 16.4 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।
पीएसबी 164: पौधे की औसत ऊंचाई 207 सेमी होती है। सिर अनाज से भरे हुए हैं। सिर 27-28 सेमी लंबे और 8-10 सेमी चौड़े होते हैं। दाने मध्यम मोटे और भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म डाउनी फफूंदी के लिए प्रतिरोधी है। यह किस्म 80 दिनों में पक जाती है और औसतन 15 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
पीएचबी 47: यह एक संकर किस्म है जिसमें मोटी तना और चौड़ी पत्तियां होती हैं जो अंत तक हरी रहती हैं। यह ऊंचाई में लगभग 2 मीटर लंबा है। सिर लगभग 35 सेमी लंबे होते हैं। यह किस्म 85 दिनों में पक जाती है। इसके दाने मोटे और गहरे भूरे रंग के होते हैं। यह किस्म डाउनी मिल्ड्यू के लिए प्रतिरोधी है और एर्गोट और स्मट रोग के लिए भी प्रतिरोधी है।
PHBF 1: 2009 में जारी किया गया। यह किस्म रोगों के प्रति सहनशील है। पौधा 198cm की ऊंचाई प्राप्त करता है और इसमें नरम तना होता है। यह हरे चारे की औसतन 256 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।
एफबीसी 16: 2003 में जारी किया गया। पौधे 235 सेमी की ऊंचाई प्राप्त करता है। यह हरे चारे की औसत उपज 230 क्विंटल प्रति एकड़ देता है।
भूमि की तैयारी
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अच्छी तरह से तैयार भूमि में बुवाई करनी चाहिए। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए 2-3 जुताई करके जुताई कर लेनी चाहिए।
बोवाई
बुवाई का समय
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बुवाई जुलाई के प्रारंभ में तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में जुलाई के अन्तिम सप्ताह में कर देनी चाहिए।
अंतर
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी रखें।
बुवाई की गहराई
बीजों को 2.5 सैं.मी. की गहराई पर बोयें।
बुवाई की विधि
बुवाई के लिए डिब्लिंग या ड्रिलिंग विधि का प्रयोग करें।
बीज
बीज दर:
उन्नत किस्मों के लिए, बुवाई के लिए 1.5 किग्रा / एकड़ का प्रयोग करें। यदि बुवाई अच्छी तरह से तैयार भूमि में और समान रूप से की जाए तो बुवाई की मात्रा 1 किग्रा तक कम की जा सकती है।
बीज उपचार:
एर्गोट रोग से बचाव के लिए बीजों को 20 प्रतिशत नमक के घोल में 5 मिनट के लिए डुबोकर रखें। पानी पर तैर रहे बीजों को निकालकर नष्ट कर दें और बचे हुए बीजों को साफ पानी से धो लें।
फिर बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किग्रा या क्लोरपाइरीफॉस 20 ई सी 4 मि.ली. प्रति किग्रा बीज से उपचारित करें।
उर्वरक
उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)
यूरिया | डीएपी या एसएसपी | झाड़ू | |
दोमट मिट्टी के लिए | 90 | 55 या 150 | - |
रेतीली मिट्टी के लिए | 55 | 27 या 75 | - |
पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)
नाइट्रोजन | फॉस्फोरस | पोटैशियम | |
दोमट मिट्टी के लिए | 40 | 24 | - |
रेतीली मिट्टी के लिए | 25 | 12 | - |
दोमट मिट्टी के लिए नाइट्रोजन 40 किलो प्रति एकड़ (यूरिया 90 किलो प्रति एकड़) और फास्फोरस 24 किलो प्रति एकड़ (डीएपी 55 किलो प्रति एकड़ या एसएसपी 150 किलो प्रति एकड़) डालें। रेतीली मिट्टी के लिए नाइट्रोजन 25 किलो प्रति एकड़ (यूरिया 55 किलो प्रति एकड़) और फास्फोरस 12 किलो प्रति एकड़ (डीएपी 27 किलो प्रति एकड़ या एसएसपी 75 किलो प्रति एकड़) डालें।
टिप्पणी:
- जिंक की कमी वाली भूमि में जिंक हेप्टाहाइब्रिड 21% @10 किग्रा/एकड़ या जिंक सल्फेट मोनोहाइब्रिड @6.5 किग्रा/एकड़ डालें।
- मृदा परीक्षण में कमी पाये जाने पर पोटाश तत्व (एमओपी) का प्रयोग करें।
- डीएपी 27 किग्रा प्रति एकड़ और 55 किग्रा प्रति एकड़ डालने पर यूरिया की मात्रा 10-20 किग्रा प्रति एकड़ तक कम हो जाती है।
प्लांट का संरक्षण
- कीट और उनका नियंत्रण:
जड़ का कीट: यदि इसका हमला दिखे तो मिथाइल पैराथियान 2% @ 10 किग्रा प्रति एकड़ की धूल झाड़ें।
नीली भृंग : नीले भृंगों को नियंत्रित करने के लिए 1.5% क्विनालफॉस@250 मि.ली. प्रति एकड़ का स्प्रे करें।
- रोग और उनका नियंत्रण:
डाउनी मिल्ड्यू: गंभीर संक्रमण में, पत्तियों के ऊपरी और निचले दोनों तरफ सफेद रंग की वृद्धि दिखाई देती है। ईयरहेड पत्तेदार संरचना में बदल जाता है। यह बादल वाले मौसम में तेजी से फैलता है।
यदि इसका हमला दिखे तो इसके नियंत्रण के लिए मेटलैक्सिल एमजेड 30 ग्राम को 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।
एरगॉट : कान के सिरों पर शहद जैसा पदार्थ स्रावित होता है। 10-15 दिनों के बाद ये बूंदे सूख जाती हैं और गहरे भूरे से काले रंग में बदल जाती हैं। बीजों को काले रंग के फंगस यानी स्क्लेरोटिया से बदल दिया जाता है।
एर्गोट रोग से बचाव के लिए बीजों को 20 प्रतिशत नमक के घोल में 5 मिनट के लिए डुबोकर रखें। पानी पर तैर रहे बीजों को निकालकर नष्ट कर दें और बचे हुए बीजों को साफ पानी से धो लें। बचाव के तौर पर ईयरहेड बनते समय ज़िनेब या मैनकोज़ेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। दो-तीन स्प्रे 3 दिन के अंतराल पर करें।
स्मट: निवारक उपाय के रूप में स्मट प्रतिरोधी किस्में उगाएं। यदि इसका हमला दिखे तो संक्रमित पौधों को हटा दें और उन्हें खेत से दूर नष्ट कर दें। मैनकोज़ेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
जंग: पत्ते पर लाल भूरे से लाल रंग के नारंगी धब्बे विकसित हो जाते हैं।
यदि इसका हमला दिखे तो नियंत्रण के लिए मैनकोजेब 75 डब्लयू पी 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यदि आवश्यक हो तो 8 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।
फसल काटने वाले
जब अनाज पर्याप्त नमी युक्त सख्त हो जाता है, तो फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। सिकल की सहायता से खड़ी फसल से इयरहेड्स हटा दें। कुछ किसानों ने पूरे पौधे को दरांती से काट दिया। कटाई के बाद फसल को खुली जगह में इकट्ठा करके डंठल कर दें और चार-पांच दिनों तक सुखाएं।
फसल कटाई के बाद
उचित सुखाने के बाद, थ्रेसिंग ऑपरेशन करें और दानों को ईयरहेड्स से अलग करें। इसके बाद सफाई अभियान चलाएं। बीजों को साफ करके धूप में सुखाएं और नमी का स्तर 12-14% तक लाएं। अनाज को बोरियों में भरकर सूखी जगह पर रख दें।
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