फूलगोभी की वैज्ञानिक खेती
- परिचय
- जलवायु
- उन्नत किस्में
- भूमि एवं उसकी तैयारी
- खाद एवं उर्वरक
- बीजदर, बुआई का समय एवं विधि
- सिंचाई
- खरपतवार नियन्त्रण
- निकाई-गुड़ाई तथा मिटटी चढ़ाना
- सूक्ष्म तत्वों का महत्व एवं उनकी कमी से उत्पन्न विकृतियाँ
- बोरन
- मॉलीब्डेनम
- प्रमुख कीड़े एवं रोकथाम
- रोग एवं नियन्त्रण
परिचय
फूल गोभी की खेती (gobhi ki kheti) के लिए भूमि की तैयारी
- फूल गोभी की खेती सितंबर से अक्टूबर के मध्य की जाती है।
- सितंबर के पहले सप्ताह में खेत की 2 बार अच्छी जुताई कर लें।
- खेत में गोबर की खाद अच्छे से बिखेर कर मिट्टी में मिला दें।
- 2-3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करने के बाद खेत में पाटा लगाकर समतल और भुरभुरी बना लें।
गोभी वर्गीय सब्जियों में फूलगोभी का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी खेती मुख्य रूप से श्वेत, अविकसित व गठे हुए पुष्प पुंज के उत्पादन हेतु की जाती है। इसका उपयोग सब्जी, सूप, अचार, सलाद, बिरियानी, पकौडा इत्यादि बनाने में किया जाता है। साथ ही यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में अत्यंत लाभदायक है। यह प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन ‘ए’ तथा ‘सी’ का भी अच्छा श्रोत है।
जलवायु
इसकी सफल खेती के लिए ठंढा और आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम होता है। अधिक ठंढा और पाला का प्रकोप होने से फूलों को अधिक नुकसान होता है। शाकीय वृद्धि के समय तापमान अनुकूल से कम रहने पर फूलों का आकार छोटा हो जाता है। अच्छी फसल के लिए 15-20 डिग्री तापमान सर्वोत्तम होता है।
उन्नत किस्में
उगाये जाने का आधार पर फूलगोभी को विभिन्न वर्गो में बांटा गया है। इसकी स्थानीय तथा उन्नत दोनों

अगेती किस्में: अर्ली कुंआरी, पूसा कतिकी, पूसा दीपाली, समर किंग, पावस, इम्प्रूब्ड जापानी।
मध्यम किस्में: पंत सुभ्रा,पूसा सुभ्रा, पूसा सिन्थेटिक, पूसा स्नोबाल, के.-1, पूसा अगहनी, सैगनी, हिसार नं.-1 ।
पिछेती किस्में: पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल-16 ।धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
भूमि एवं उसकी तैयारी
फूलगोभी की खेती यों तो सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती, परन्तु अच्छी जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट भूमि जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा उपलब्ध हो, काफी उपयुक्त है। इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से खेत को तैयार करना चाहिए। इसके लिए खेत को ३-४ जुताई करके पाटा मारकर समतल कर लेना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
फूलगोभी कि अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में जीवांश का होना अत्यंत आवश्यक है। खेत में 20-25 तन सड़ी हुई गोबर कि खाद या कम्पोस्ट रोपाई के 3-4 सप्ताह पूर्व अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके अतितिक्त 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर कि दर से देना चाहिए। नाइट्रोजन कि एक तिहाई मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई या प्रतिरोपण से पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए तथा शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर खड़ी फसल में 30 और 45 दिन बाद उपरिवेशन के रूप में देना चाहिए।मूंग(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बीजदर, बुआई का समय एवं विधि
अगेती किस्मों का बीज डॉ 600-700 ग्राम और मध्यम एवं पिछेती किस्मों का बीज दर 350-400 ग्राम प्रति हेक्टेयर है।
अगेती किस्मों कि बुआई अगस्त के अंतिम सप्ताह से 15 सितम्बर तक कर देना चाहिए। मध्यम और पिछेती किस्मों कि बुआई सितम्बर के मध्य से पूरे अक्टूबर तक कर देना चाहिए।
फूलगोभी के बीज सीधे खेत में नहीं बोये जाते हैं। अत: बीज को पहले पौधशाला में बुआई करके पौधा तैयार किया जाता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए लगभग 75-100 वर्ग मीटर में पौध उगाना पर्याप्त होता है। पौधों को खेत में प्रतिरोपण करने के पहले एक ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन का 8 लीटर पानी में घोलकर 30 मिनट तक डुबाकर उपचारित कर लें। उपचारित पौधे की खेत में लगाना चाहिए।
अगेती फूलगोभी के पौधों कि वृद्धि अधिक नहीं होती है। अत: इसका रोपण कतार से कतार 40 सेंमी. पौधे से पौधे 30 सेंमी. कि दूरी पर करना चाहिए। परन्तु मध्यम एवं पिछेती किस्मों में कतार से कतार 45-60 सेंमी. एवं पौधे से पौधे कि दूरी 45 सेंमी. रखना चाहिए।
सिंचाई
पौधों कि अच्छी वृद्धि के लिए मिटटी में पर्याप्त मात्रा में नमी का होना अत्यंत आवश्यक है। सितम्बर के बाद 10 या 15 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में 5 से 7 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
खरपतवार नियन्त्रण
फूलगोभी में फूल तैयार होने तक दो-तीन निकाई-गुड़ाई से खरपतवार का नियन्त्रण हो जाती है, परन्तु व्यवसाय के रूप में खेती के लिए खरपतवारनाशी दवा स्टाम्प 3.0 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव रोपण के पहले काफी लाभदायक होता है।
सरसों(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
निकाई-गुड़ाई तथा मिटटी चढ़ाना
पौधों कि जड़ों के समुचित विकास हेतु निकाई-गुड़ाई अत्यंत आवश्यक है। एस क्रिया से जड़ों के आस-पास कि मिटटी ढीली हो जाती है और हवा का आवागमन अच्छी तरह से होता है जिसका अनुकूल प्रभाव उपज पर पड़ता है। वर्षा ऋतु में यदि जड़ों के पास से मिटटी हट गयी हो तो चारों तरफ से पौधों में मिटटी चढ़ा देना चाहिए।
सूक्ष्म तत्वों का महत्व एवं उनकी कमी से उत्पन्न विकृतियाँ
बोरन
बोरन कि कमी से फूलगोभी का खाने वाल भाग छोटा रह जाता है। इसकी कमी से शुरू में तो फूलगोभी पर छोटे-छोटे दाग या धब्बा दिखाई पड़ने लगते हैं तथा बाद में पूरा का पूरा हल्का गुलाबी पीला या भूरे रंग का हो जाता है जो खाने में कडुवा लगता है। फूलगोभी एवं फूल का तना खोखला हो जाता है और फट जाता है। इससे फूलगोभी की उपज तथा मांग दोनों में कमी आ जाती है। इसके रोकथाम के लिए बोरेक्स 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कि दर से अन्य उर्वरक के साथ खेत में डालना चाहिए।
मॉलीब्डेनम
एस सूक्ष्म तत्व की कमी से फूलगोभी का रंग गहरा हरा हो जाता है और किनारे से सफेद होने लगती है जो बाद में मुरझाकर गिर जाती है। इससे बचाव के लिए 1.0 से 1.50 किलोग्राम मॉलीब्डेनम प्रति हेक्टेयर कि दर से मिटटी में मिला देना चाहिए। इससे फूलगोभी का खाने वाला भाग अर्थात कर्ड पूर्ण आकृति को ग्रहण कर ले एवं रंग श्वेत अर्थात उजला एवं चमकदार हो जाय तो पौधों कि कटाई कर लेना चाहिए। ढेर से कटाई करने पर रंग पीला पड़ने लगता है और फूल फटने लगते हैं जिससे बाजार मूल्य घट जाता है।
प्रमुख कीड़े एवं रोकथाम
फूलगोभी में मुख्य रूप से लाही, गोभी मक्खी, हीरक पृष्ठ कीट, तम्बाकू की सूड़ी आदि कीड़ों का प्रकोप होता है। लाही कोमल पत्तियों का रस चुसती है। खासकर जाड़े के समय कुहासा या बदली लगी रहे तो इसका आक्रमण अधिक होता है। गोभी मक्खी पत्तियों में छेदकर अधिक मात्रा में खा जाती है। हीरक पृष्ठ कीट के सूड़ी पत्तियों की निचली सतह पर खाते हैं और छोटे-छोटे छिद्र बना लेते हैं। जब इसका प्रकोप अधिक मात्रा में होता है तो छोटे पौधों की पत्तियाँ बिल्कुल समाप्त हो जाती है जिससे पौधे मर जाते हैं। तम्बाकू की सूड़ी के व्यस्क मादा कीट पत्तियों कि निचली सतह पर झुण्ड में अंडे देती है। 4-5 दिनों के बाद अण्डों से सूड़ी निकलती है और पत्तियों को खा जाती है। सितम्बर से नवम्बर तक इसका प्रकोप अधिक होता है। उपरोक्त सभी कीड़ों का जैसे ही आक्रमण शुरू हो तो इंडोसल्फान, नुवाक्रान, रोगर, थायोडान किसी भी कीटनाशी दवा का 1.5 मिली. पानी कि दर से घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।
रोग एवं नियन्त्रण
फूलगोभी में मुख्य रूप से गलन रोग, काला विगलन, पर्णचित्ती, अंगमारी, पत्ती का धब्बा रोग तथा मृदु रोमिल आसिता रोग लगते हैं। वः फफूंदी के कारण होता है। यह रोग पौधा से फूल बनने तक कभी भी लग सकती है। पत्तियों कि निचली सतह पर जहां फफूंदी दीखते हैं उन्ही के उपर पत्तियों के ऊपरी सतह पर भूरे धब्बे बनते हैं जोकि रोग के तीव्र हो जाने पर आपस में मिलकर बड़े धब्बे बन जाते हैं। काला गलन नामक रोग भी काफी नुकसानदायक होता है। रोग का प्रारंभिक लक्षण “V” आकार में पीलापन लिए होता है। रोग का लक्षण पत्ती के किसी किनारे या केन्द्रीय भाग से शुरू हो सकता है। यह बैक्टीरिया के कारण होता है। इससे बचाव के लिए रोपाई के समय बिचड़े को स्ट्रेप्टोमाइसीन या प्लेन्टोमाइसीन के घोल से उपचारित कर ही खेत में लगाना चाहिए। (दवा कि मात्रा-आधा ग्राम दवा + 1 लीटर पानी) बाकी सभी रोगों से बचाव के लिए फफूंदीनाशक दवा इंडोफिल एम.-45 का 2 ग्राम या ब्लाइटाक्स का 3 ग्राम 1 लीटर पानी कि दर से घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए।
गोभी वर्गीय सब्जियों की जैविक खेती से संबंधित कृषि क्रियाएं
- भूमि का चयन और इसे तैयार करना
- बुआई का समय
- अनुमोदित किस्में
- बीज दर
- बीज उपचार
- नर्सरी में फसल उगाना
- बीज की दूरी (नर्सरी)
- पौध उपचार
- मृदा प्रबंधन
- प्रतिरोपण और दूरी (मुख्य खेत)
- सिंचाई और पानी की आवश्यकता
- संवर्धन क्रियाएं और खरपतवार प्रबंधन
- फसल संरक्षण
- फसल कटाई/तुड़ाई
- बीजोत्पादन
- अवांछनीय पौधा निष्कासन (रोगिंग)
- पृथकीकरण
- बीज प्राप्ति
भूमि का चयन और इसे तैयार करना
गोभी वर्गीय सब्जियों में मुख्यतः बन्द गोभी और फूल गोभी की फसलें आती हैं। इस सब्जियों की काश्त के लिए मृदा की पी.एच. रेंज 6-6.5 है और जैविक कार्बन एक प्रतिशत से ज्यादा होना चाहिए। ऐसी भूमि बंदगोभी और फूल गोभी की खेती के लिए उपयुक्त होती है। मृदा में पी.एच. स्तर, जैविक कार्बन, गौंण पोषक तत्व (एन.पी.के. -नाइट्रोजन, फास्फोरस पोटाष) खेत में सूक्ष्म जीवों के प्रभाव की मात्रा की जांच के लिए वर्ष में एक बार मृदा परीक्षण करना जरूरी है। यदि मृदा में जैविक कार्बन एक प्रतिशत से कम पाई जाती है, तो खेत में 25-30 टन/है0 की दर से कार्बनिक खाद डाली जाए और खाद को अच्छी तरह खेत में मिलाने के लिए खेत की 2-3 बार जुताई की जाए।
बुआई का समय
क्षेत्र | बंद गोभी | फूल गोभी |
निचले पर्वतीय क्षेत्र | अगस्त-सितम्बर | जून- जुलाई |
मध्य पर्वतीय क्षेत्र | सितम्बर – अक्तूबर फरवरी-मार्च | अप्रैल-मई जुलाई-अगस्त-सितम्बर |
ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र | अप्रैल-जून | अप्रैल-मई |
मसूर(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
अनुमोदित किस्में
बंदगोभी- प्राइड ऑफ इंडिया, गोल्डन एकड़, पूसा डूम हैड, पूसा मुक्ता।
फूल गोभी- अर्ली कुनवारी, इम्पूवड जापानीज, पूसा स्नोबौल-1, पूसा स्नोबॉल के-1, पालम उपहार।
बीज दर
बंद गोभी- लगभग 500-700 ग्रा./है0 और 40-45 ग्राम/बीघा गोभी का बीज नर्सरी में बिजाई के लिए पर्याप्त होता है। फूल गोभी-अगेती किस्मों के लिए- 750 ग्राम/है0 (60 ग्राम/बीघा)
पछेती किस्मों के लिए- 500 से 625 ग्राम/है0 (40-50 ग्राम/बीघा)
सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
बीज उपचार
5 प्रतिशत ट्राईकोडर्मा घोल के साथ बीज उपचार किया जाए और बुवाई से पहले छाया में सुखाया जाए।
नर्सरी में फसल उगाना
नर्सरी क्यारी की मृदा अच्छी तरह तैयार की जाए जिसमें खरपतवार और रोग - जीवाणु बिल्कुल भी नहीं होने चाहिए। सूत्रकृमि के प्रकोप को कम करने के लिए 100 कि.ग्रा. अपघटित कार्बनिक खाद में 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडि मिलाकर इसका उपयोग किया जाए। कीट से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए 1 कि0ग्रा0/वर्ग मी0 की दर से नीम की खली का उपयोग किया जाए। नर्सरी क्यारियों की ऊपरी मश्दा को नमी युक्त बनाए रखने के लिए क्यारी पर सूखी घास की पतली परत को फैलाकर बिछाया जाए। पौध उगाने के लिए 8.5 गुणा 10 मी. आकार के साथ 15-20 सें.मी. ऊंचाई वाली उठी हुई बीज क्यारियां तैयार की जाएं। नर्सरी के प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में काइकोराइजा 40 ग्राम तथा एजोसपिरोलियम तथा फास्फोट घोल बैक्टीरिया प्रत्येक 200 ग्राम को कम्पोस्ट और फार्म - यार्ड खाद के साथ मिलाया जाए। 25-30 दिन में पौध तैयार हो जाती है। पौध निकालने से 4-5 दिन पहले पानी देना बंद कर दें और पौधे को ठोस बनाने के लिए इसे खुले स्थान पर धूप में रखें। जब पौध 4-5 सप्ताह की (10-12 सें. मी. ऊंची) हो जाए तो तैयार किए गए खेत में शाम के समय रोपाई करें तथा रोपण के बाद तुरंत पानी दें।
बीज की दूरी (नर्सरी)
बीज की दूरी 1-2 सें.मी. गहराई में 10 सें.मी. अलग पंक्ति में 4-5 सें.मी. में बीज डाला जाए।
पौध उपचार
प्रतिरोपण से एक दिन पहले पौध पर 1 मि.ली. मिश्रण की दर से बी.टी. (बैसिलस थूरीनजेनसिस) छिड़का जाए। प्रतिरोपण के समय पौध के जड़ वाले हिस्से को 1 प्रतिशत बोरडोक्स मिश्रण या इससे गड्ढे को भर दें।
मृदा प्रबंधन
बंदगोभी व फूलगोभी रोपण से 2 माह पहले फलीदार हरी खाद वाली फसलें उगाई जाएं और ढेचा, सनई, लोबिया या कुलथी। खेत में 30 टन कार्बनिक खाद, 1.5 टन वर्मी कम्पोस्ट और 250 कि.ग्रा. नीम की खली के साथ 8 प्रतिशत तेल का प्रयोग किया जाए। नाईट्रोजन की आवश्यकता को फसल परिचक्रण, फली वाली फसलों, कम्पोस्ट, हरी खाद और पलवार के माध्यम से पूरा किया जाए। फास्फेट की अतिरिक्त आवश्यकता को जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल से पूरा किया जाए जैसे खली, अस्थिचूर्ण, मछली आहार, सॅफ फास्फेट आदि। पोटाशियम की अतिरिक्त जरूरत को लकड़ी के बुरादे, ग्रेनाईट डस्ट या पोटाशियम सल्फेट से पूरा किया जा सकता है। पोषण तत्वों की जरूरत, गणना में नीचे दी गई आदर्श गणना तालिका सहायक होगी।
प्रतिरोपण और दूरी (मुख्य खेत)
आम तौर पर 4-5 सप्ताह पुराने स्वस्थ पौध को मुख्य खेत में प्रतिरोपण के लिए चुना जाता है। मेंढ और नालियां बनाई जाती हैं। अगेती किस्मों के लिए 45 सें.मी. x 30 सें. मी. तथा पछेती किस्मों के लिए 60 सें.मी. X 45 सें. मी. की दूरी रखी जाए।
सिंचाई और पानी की आवश्यकता
कुशलतम तरीके से जल उपयोग और संरक्षण की दृष्टि से टपका सिंचाई बेहतर है। यदि खुली सिंचाई का इस्तेमाल किया जाता है तो जलमग्नता से बचने पर पूरा ध्यान दिया जाए। रोपण से पहले सिंचाई की जाए। तीसरे दिन ‘जीवनवर्धक - सिंचाई' (लाईफ इरीगेशन) की जाए। इसके बाद प्रत्येक 10-15 दिन में सिंचाई की जाए। जब शीर्ष परिपक्व स्थिति में आ जाएं तो इनके टूटने को रोकने के लिए सिंचाई बंद कर दें।
संवर्धन क्रियाएं और खरपतवार प्रबंधन
नियमित रूप से हाथ से खरपतवार निकालने और मिट्टी चढ़ाने का काम किया जाना चाहिये। खरपतवार को नष्ट करने तथा नमी संरक्षण के लिए पंक्तियों के बीच शुष्क फसल/निकाले गए घास अपषिष्ट से पलवार बिछाई जा सकती है। खरपतवार प्रबंधन की आवश्यकता फसल वृद्धि के 60 दिन तक होती है।
फसल संरक्षण
(अ) कीट प्रबंधन |
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डायमंड ब्लैक मोथ केटरपिलर: |
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माहू (एफिड्स): |
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(ब) रोग प्रबंधनः नमी वाली स्थिति अनेक तरह के रोग पनपने में सहायक होती है। कोई भी कार्य जिसमें पत्तियां सूखती हैं, इससे इस तरह के पत्ती रोगों को बढ़ने में रोक लगाई जा सकती है। पूर्व-पश्चिम दिशा में फसल के पौधों की पंक्तियां और अधिक सघनता से बचने से भी मृदा को सूरखने में मदद मिलती है और पौधे की छत्रक में नमी तत्व में कमी आती है। | |
क्लब रूट (जड़): | क्लब रूट (जड़) संक्रमण में उस समय काफी कमी आती है, जब टमाटर, खीरा या बीज को फसल परिचक्रण में शामिल किया जाता है। रोकथाम- निम्नलिखित विवरण के अनुसार स्यूडोमोनस का उपयोग किया जाए-
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कमर तोड़ रोगः | इस रोग के लक्षण, रोग चक्र, अनुकूल वातावरण तथा रोकथाम टमाटर की तरह है। इसके अतिरिक्त बीज का उपचार गर्म पानी - स्ट्रेप्टोसाइकलिन (1 ग्रा./10 लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक) से अवश्य करवाएं। |
तना विगलनः | यह रोग प्राय: दिसंबर मास में पौधों पर मिट्टी चढ़ाने के साथ ही शुरू हो जाता है। पौधों के तनों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे तथा सड़न शुरू हो जाती है तथा कोयले की तरह लगते हैं। फूल सड़ने शुरू हो जाते हैं। रोकथाम-
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डाऊनी मिल्ड्यू: | पत्तियों की निचली सतह तथा तनों पर छोटे-छोटे लोहित रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं। इन धब्बों पर फफूदी की सफेद मृदुरोमिल वृद्धि का पाया जाना है। इसके लक्षण फूल पर भी दिखाई देते हैं। फूल सड़ने शुरू हो जाते हैं तथा गले- सड़े भाग का रंग भूरा तथा किनारे काले हो जाते हैं। बन्द गोभी के संक्रमित बन्द परागमन के दौरान सड़ जाते हैं। इस रोग का प्रकोप तभी होता है जब तापमान में एकदम गिरावट आ जाए। ठंडा तथा नमी वाला मौसम इस रोग की वृद्धि के लिए सहायक है। रोकथाम-
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काला विगलन: | रोगग्रस्त पौधों के पत्तों के किनारों पर तिखुटे आकार के पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। जो बढ़कर पत्ते के अधिकतर भाग को घेर देते हैं। इन धब्बों की मुख्य तथा अन्य शिराएं गहरे भूरे अथवा काले रंग की हो जाती हैं। मार्च-अप्रैल के महीनों में जब तापमान में वृद्धि शुरू हो जाती है तो रोग से प्रभावित फसल एकदम सूख जाती है। इस रोग का जीवाणु प्रायः रोगी बीज में जीवित रहता है तथा बीज द्वारा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में फैलता है। गोभी वर्गीय खरपतवारों में भी यह जीवाणु जीवित रहता है। अधिक वर्षा इस जीवाणु तथा रोग को फैलाने में सहायक है। रोकथाम-
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फसल कटाई/तुड़ाई
ठोस फूलों/कंदों को जमीन की सतह से चाकू या दराटी से काटा जाता है। फसल कटाई/तुड़ाई के दौरान बाहरी परिपक्व बिना मुड़े पत्तों को हटा दिया जाए। यदि यहां कोई लम्बा ठोस ढूंठ है तो उसे भी हटा दें। इन शीर्षों को आकार और गुणवत्ता के अनुसार वर्गीकृत किया जाए और बोरी या प्लास्टिक क्रेट में पैक करके ट्रक में भरकर बाजार में लाया जाता है। उत्पाद की तुड़ाई शाम को या सुबह-सुबह की जाए और फलों को छाया वाले स्थान या कमरे में रखा जाए जहां अच्छा वायु संचरण हो।
पैदावार/उपज-
बंदगोभी-
अगेती प्रजातियां-25-30 टन/हैक्टेयर
पछेती प्रजातियां-40-50 टन/हैक्टेयर
फूलगोभी-
अगेती प्रजातियां-19-25 टन/हैक्टेयर
पछेती प्रजातियां-17-20 टन/हैक्टेयर
बीजोत्पादन
बंदगोभी-
व्यावसायिक स्तर पर बीज ठडे क्षेत्रों में तैयार किया जाता है, जैसे किन्नौर, भरमौर, लाहौल घाटी, ऊपरी कुल्लू घाटी। नौहराधार (सिरमौर) व कटराई (कुल्लू) के क्षेत्रों में बन्दों को शीत ऋतु में खेत में ऐसे ही या उन पर मिट्टी चढ़ाकर छोड़ दिया जाता है। अधिक ठडे क्षेत्रों में (कल्पा- किन्नौर) बन्दों को 2 x 1 x 1 मीटर के आकार की नाली या खत्ती में रखा जाता है। बन्द के ऊपर के पत्ते उतार दिए जाते हैं तथा इन्हें नाली में एक परत के रूप में रखा जाता है तथा दोनों ओर वायु के आवागमन के लिए छिद्र रखे जाते हैं। बर्फ पिघलने पर मार्च-अप्रैल में इन बन्दों को खेत में रोपित कर दिया जाता है। इस समय 3 सै.मी. गहरा चीरा बन्द के ऊपर दिया जाता है और वहां से फूल के कल्ले निकलते हैं।
फूलगोभी-
फूलगोभी कोमल फसल है। इसका रोपण फूल बनने पर संभव नहीं है। जब पौधे बड़े हो जाते हैं, तब उनकी गहरी गुड़ाई नहीं करनी चाहिए। अगेजी व मध्यम मौसमी किस्मों के बीज मैदानी भागों तथा निचले पहाड़ी क्षेत्रों में उत्पादित किए जाते हैं। परंतु पछेती किस्मों के बीज समुद्र तल से 1200-1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में जहां पर आम तौर पर तापमान 30° सै. से अधिक न हो, पैदा किए जा सकते हैं। विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त उत्तम गुणवत्ता वाले बीज से ही पौधे तैयार करें। सामान्य फसल की तरह खेती करें।
अवांछनीय पौधा निष्कासन (रोगिंग)
बंदगोभी- तीन अवस्थाओं में फसल का निरीक्षण करें-
1) वानस्पतिक वृद्धि अथवा पर रोगी, बंदरहित तथा अन्य किस्म के पौधे निकाल
2) बन्द बनने पर उसके आकार, रंग व कठोरता के लिए निरीक्षण करें।
3) फूलते समय खरपतवार और रोगी पौधों को निकाल दें।
फूलगोभीः अंवाछनीय व रोगी पौधों को निम्न चार अवस्थाओं पर निकालना आवश्यक
(1) वनस्पति बढ़वार होने पर।
(2) फूलगोभी के फूल बनने पर।
(3) फूलगोभी तैयार होने पर।
(4) फूलते समय।
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पृथकीकरण
बीज प्राप्त करने के लिए ध्यान रखा जाए कि फूलगोभी या उसके परिवार की दूसरी किस्मों/फसलों के बीच 1000 लीटर तथा 1600 मीटर की दूरी क्रमशः प्रमाणित तथा आधार बीज तैयार करने के लिए रखें।
बीज की कटाई व सुरखाना-
जब फलियां पक जाएं तो उन्हें शाखा सहित काट लें तथा इनके गठे बनाकर ढेर में सुखा लें तथा पूरे सूख जाने पर पूरे बीज की झड़ाई करें तथा बीज को सुखाकर पूरी तरह से सुरक्षित भंडार करें।
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