गन्ना
- रबी/अक्टूबर-दिसंबर
- किस्मों के प्रकार
- रासायनिक उर्वरक
- कीट नियंत्रण
परिचय | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ना एक प्रमुख व्यवसायिक फसल है। विषम परिस्थितियां भी गन्ना की फसल को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर पाती इन्ही विशेष कारणों से गन्ना की खेती अपने आप में सुरक्षित व लाभ की खेती है।
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गन्ना फसल उत्पादन की प्रमुख समस्याएं | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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गन्ना फसल ही क्यों चुने | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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उपयुक्त भूमि, मौसम व खेत की तैयारी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उपयुक्त भूमि-गन्ने की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकती है। दोमट भूमि जिसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था व जल का निकास अच्छा हो, तथा पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है। उपयुक्त मौसम- गन्ने की वुआई वर्षा में दो बार किया जा सकता है।
शरदकालीन गन्ने, बसंत में बोये गये गन्ने से 25-30 प्रतिशत व ग्रीष्मकालीन गन्ने से 30-40 प्रतिशत अधिक पैदावार देता है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
खेत की तैयारी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
खेत की गी्रष्मकाल में अपे्रल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें। इसके पश्चात 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर तथा रोटावेटर व पाटा चलाकर खेत को भुरभुरा, समतल एवं खरपतवार रहित कर लें एवं रिजर की सहायता से 3 से 4.5 फुट की दूरी में 20-25 से.मी. गहरी कूड़े बनाये। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उपयुक्त किस्म, बीज का चयन, व तैयारी | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने के सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही है। गन्ने की फसल उगाने के लिए पूरा तना न बोकर इसके दो या तीन आंख के टुकड़े काटकर उपयोग में लायें। गन्ने ऊपरी भाग की अंकुरण 100 प्रतिशत, बीच में 40 प्रतिशत और निचले भाग में केवल 19 प्रतिशत ही होता है। दो आंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ना बीज का चुनाव करते समय सावधानियां | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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गन्ने की उन्नत जातियां | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने की फसल से भरपूर उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्म के बीज का प्रयोग करना आवश्यक है। उन्नत किस्मों से 15-20 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है मध्यप्रदेश के लिये गन्ने की उपयुक्त किस्मों का विवरण-
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गन्ना बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर-नवम्बर ही क्यों चुनें | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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बीज की मात्रा एवं बुआई पद्वतियां | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ना बीज की मात्रा बुवाई पद्वति, कतार से कतार की दूरी एवं गन्ने की मोटाई पर के आधार पर निर्भर करता है जिसका विवरण निम्नानुसार है। सामान्यतः मेड़नाल पद्वति से बनी 20-25 से.मी. बनी गहरी कूड़ों में सिरा से सिरा या आंख से आंख मिलाकर सिंगल या डबल गन्ना टुकड़े की बुवाई की जाती है। बिछे हुए गन्ने के टुकड़ों के ऊपर 2 से 2.5 से.मी. से अधिक मिट्टी की परत न हो अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है।
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बीजोपचार | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
बीज जनित रोग व कीट नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम 2 ग्रा/ लीटर पानी व क्लोरोपायरीफास 5 मि.ली./ली हे. की दर से घोल बनाकर आवश्यक बीज का 15 से 20 मिनिट तक उपचार करें। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
मृदा उपचार | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
ट्राईकोडर्मा विरडी / 5 कि.ग्रा./हे. 150 कि.ग्रा. वर्मी कम्पोस्ट के साथ मिश्रित कर एक या दो दिन नम रखकर बुवाई पूर्व कूड़ों में या प्रथम गुड़ाई के समय भुरकाव करने से कवकजनित रोगों से राहत मिलती है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
खाद एवं उर्वरक:-गन्ने की खेती मैं उत्पादन बढ़ाने के लिए करें इस विधि का प्रयोग(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है) | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
विशेष सुझाव - | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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जल प्रबंधन -सिंचाई व जल निकास | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गर्मी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर एवं ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिनों के अंतर से गर्मी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनों में सिंचाई करना चाहिये। सिंचाई की मात्रा कम करने के लिये गरेड़ों में गन्ने की सूखी पत्तियों की पलवार की 10-15 से.मी. तह बिछायें। गर्मी में पानी की मात्रा कम होने पर एक गरेड़ छोड़कर सिंचाई देकर फसल बचावें। कम पानी उपलब्ध होने पर ड्रिप (टपक विधि) से सिंचाई करने से भी 60 प्रतिशत पानी की बचत होती है। गर्मी के मौसम तक जब फसल 5-6 महीने तक की होती है स्प्रींकलर (फव्वारा) विधि से सिंचाई करके 40 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है। वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकास का प्रबंध रखें। खेत में पानी के जमाव होने से गन्ने की बढ़वार एवं रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
खाली स्थानों की पूर्ति | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
कभी-कभी पंक्तियों में कई जगहों पर बीज अंकुरित नहीं हो पाता है इस बात में ध्यान में रखते हुए खेत में गन्ने की बुआई के साथ-साथ अलग से सिंचाई स्त्रोत के नजदीक एक नर्सरी तैयार कर लें। इसमें बहुत ही कम अंतराल पर एक आंख के टुकड़ों व बुवाई करें। खेत में बुवाई के एक माहवाद खाली स्थानों पर नर्सरी में तैयार पौधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर रोपाई कर दें। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
खरपतवार प्रबंधन | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
अंधी गुड़ाईः गन्ने का अंकुरण देर से होने के कारण कभी-कभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है। जिसके नियंत्रण हेतु एक गुड़ाई करना आवश्यक होता है जिसे अंधी गुड़ाई कहते है।निराई-गुड़ाई: आमतौर पर प्रत्येक सिंचाई के बाद एक गुड़ाई आवश्यक होगी इस बात का विशेष ध्यान रखें कि व्यांत अवस्था (90-100 दिन) तक निराई-गुड़ाई का कार्य मिट्टी चढ़ाना: वर्षा प्रारम्भ होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य पूरा कर लें (120 व 150 दिन) । रासायनिक नियंत्रणः
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अन्तरवर्ती खेती | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने की फसल की बढ़वार शुरू के 2-3 माह तक धीमी गति से होता है गन्ने के दो कतारों के बीच का स्थान काफी समय तक खाली रह जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए यदि कम अवधि के फसलों को अन्तरवर्ती खेती के रूप में उगाया जाये तो निश्चित रूप से गन्ने के फसल के साथ-साथ प्रति इकाई अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो सकता है। इसके लिये निम्न फसलें अन्तरवर्ती खेती के रूप में ऊगाई जा सकती है। शरदकालीन खेतीः-गन्ना+आलू(1:2), गन्ना + प्याज (1:2), गन्ना+मटर(1+1),गन्ना+धनिया(1:2) गन्ना+चना(1:2), गन्ना+गेंहू(1:2) बसंतकालीन खेतीः- गन्ना + मूंग(1+1), गन्ना +उड़द (1+1), गन्ना+धनिया (1:3), गन्ना +मेथी (1:3), | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने को गिरने से बचाने के उपाय | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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पौध संरक्षण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
(अ) कीट नियंत्रण :-
(ब) रोग नियंत्रण:-
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गन्ने की कटाई | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
फसल की कटाई उस समय करें जब गन्ने में सुक्रोज की मात्रा सबसे अधिक हो क्योंकि यह अवस्था थोड़े समय के लिये होती है और जैसे ही तापमान बढ़ता है सुक्रोज का ग्लूकोज में परिवर्तन प्रारम्भ हो जाता है और ऐसे गन्ने से शक्कर एवं गुड़ की मात्रा कम मिलता है। कटाई पूर्व पकाव सर्वेक्षण करें इस हेतु रिफलेक्टो मीटर का उपयोग करें यदि माप 18 या इसके उपर है तो गन्ना परिपक्व होने का संकेत है। गन्ने की कटाई गन्ने की सतह से करें। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
उपज | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने उत्पादन में उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग कर लगभग 1000 से 1500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक गन्ना प्राप्त किया जा सकता है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
स्वतः गन्ना बीज तैयार करने की आधुनिक पद्वति | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
टिश्यू कल्चर एवं पालीबैग तकनीकः- टश्यू कल्चर - गन्ना से ऊतक संवर्धन तकनीकी अपनाकर तैयार किये गये पौधों को टिश्यू कल्चर पौध कहा जाता है। रोपण पूर्व पौध स्थिरीकरण - प्रयोगशाला से शिशु पौधे लाकर पहले ग्रीन हाउस या नेट शेड में पॉलीथीन की थैलियों में 30-45 दिन रखकर स्थिरीकरण किया जाता है जिससे पौधे खेत में रोपण उपरान्त अच्छे से स्थापित हो सकें। टिश्यू कल्चर पौध का खेत में रोपण -
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गन्ना बीज तैयार करने की एक आंख के टुकड़े व बडचिप-पालीबैग पद्वति | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
नोटः- गन्ना बडचिप को उपचारित कर 20 से 25 से.मी. गहरी कूड़ों में सीधे बुवाई की जा सकती है किन्तु बुवाई की गहराई 2.5 से. मी. से अधिक न हो व अंकुरण होने तक नमी का संरक्षण बना रहे। ड्रिप सिंचाई पद्वति के साथ अच्छे परिणाम प्राप्त हुये हैं। विशेष सुझावः- उपरोक्त में से किसी भी पद्वति का सुविधानुसार चुनाव करते हुए समस्त तकनीकी अनुशंसाओं का पालन करते हुए 10 प्रतिशत रकवे में स्वतः का बीज तैयार करें जो अगले वर्ष एक हें. खेत के रोपण हेतु पर्याप्त होगा। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने की खेती में यंत्रीकरण की आवश्यकता | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ने की खेती में कुल उत्पादन लागत का लगभग 45 से 50 प्रतिशत भाग श्रमिक व बैल चलित शक्तियों पर व्यय होता है। अतः आधुनिक कृषियंत्रों के उपयोग से लगभग 50 प्रतिशत तक श्रम लागत में कमी की जा सकती है। | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
जड़ी फसल से भरपूर पैदावार | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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गन्ना फसल का आर्थिक विश्लेषण | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
गन्ना एक दीर्घकाली फसल होने के नाते सामान्य फसलों की तुलना में लागत ज्यादा आती है साथ ही आय भी अधिक प्राप्त होती है। गन्ना फसल का व्यय आय विवरण निम्नानुसार है।
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अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिन्दु | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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सामान्य जानकारी
गन्ना, Saccharum officinarum L. एक बारहमासी घास है। यह बांस परिवार से संबंधित है और यह भारत के लिए स्वदेशी है। यह चीनी, गुड़ और खांडसारी का मुख्य स्रोत है। भारत में उत्पादित कुल गन्ने का लगभग दो-तिहाई हिस्सा गुड़ और खांडसारी बनाने में खर्च होता है और इसका एक तिहाई ही चीनी कारखानों में जाता है। यह शराब बनाने के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध कराता है। भारत, चीन, थाईलैंड, पाकिस्तान और मैक्सिको के बाद ब्राजील गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में, महाराष्ट्र चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक है और यह उत्तर प्रदेश के बाद देश में लगभग 34% चीनी का योगदान देता है।
सोयाबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
धरती
गन्ने की खेती के लिए पर्याप्त जल धारण क्षमता वाली मिट्टी की सतह से 1.5-2 मीटर नीचे भूजल तालिका के साथ अच्छी तरह से सूखा, गहरी, दोमट मिट्टी आदर्श है। यह काफी हद तक अम्लता और क्षारीयता को सहन कर सकता है इसलिए इसे 5 से 8.5 तक मिट्टी पर उगाया जा सकता है। यदि मिट्टी में पीएच कम है (5 से कम) तो मिट्टी में चूना डालें और उच्च पीएच (9.5 से अधिक) के लिए जिप्सम लगाएं।
गन्ना किसानों को बड़ी राहत, जल्दी खातों में जमा होंगे 314 करोड़ रुपए(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
उनकी उपज के साथ लोकप्रिय किस्में
CoJ 85: यह अगेती मौसम वाली किस्म है। यह लाल सड़न और पाले के प्रति सहनशील है। यह ठहरने के लिए प्रवण है इसलिए उचित अर्थिंग अप और प्रॉपिंग करें। 306 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
Co 118: जल्दी पकने वाली किस्म। इस किस्म के बेंत मध्यम मोटे, हरे-पीले रंग के होते हैं। यह लाल सड़न और पाले के प्रति सहनशील है। यह लगातार सिंचाई के साथ उच्च उर्वरता की स्थिति में अच्छा प्रदर्शन करता है। 320 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
CoJ 64: यह अगेती मौसम वाली किस्म है। यह अच्छा अंकुरण, विपुल जुताई और अच्छा राटूनर देता है। यह गुड़ की अच्छी गुणवत्ता का उत्पादन करता है। यह लाल सड़न के लिए अतिसंवेदनशील है। औसतन 300 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देता है।
सीओएच 119:मध्य-मौसम की किस्म। इसमें प्रमुख मौसम के साथ लंबे घने हरे रंग के बेंत हैं। यह लाल सड़न और पाले के प्रति सहनशील है। यह एक औसत राऊनर है। 340 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
Co 238: मिड-सीज़न किस्म। इसमें प्रमुख मौसम के साथ लंबे घने हरे रंग के बेंत हैं। यह लाल सड़न और शीर्ष बेधक के प्रति सहिष्णु है। यह एक औसत राऊनर है। 365Qtl/एकड़ की औसत उपज देता है।
CoJ 88: मध्य मौसम की किस्म। बेंत मध्यम मोटाई के लम्बे और भूरे रंग के होते हैं। इसके रस में 17-18% सुक्रोज होता है। रतौंधी की पैदावार भी अच्छी होती है। यह ठहरने के लिए नहीं है और यह लाल सड़न के प्रति सहनशील है। अच्छी गुणवत्ता का गुड़ पैदा करता है। खारे सिंचाई के पानी के लिए भी उपयुक्त है। 337 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
सीओएस 8436:यह मध्य ऋतु की किस्म है। यह छोटी लाल किस्म है जिसमें मोटी मजबूत हरी पीली बेंत होती है। यह अस्थाई और लाल सड़न के प्रति सहनशील है। लगातार सिंचाई के साथ उच्च उर्वरता वाली मिट्टी के तहत उत्कृष्ट उपज देता है। 307 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
सरसों(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
CoJ 89: यह देर से रोपण के लिए उपयुक्त है। यह लाल सड़न के लिए प्रतिरोधी है, आसानी से नष्ट हो जाता है और गैर-आवासीय है। इसकी औसत उपज 326 क्विंटल प्रति एकड़ है।
Co 1148: देर से बुवाई के लिए लागू। विपुल जुताई के साथ अच्छा जर्मिनेटर, उत्कृष्ट रटनिंग क्षमता। यह मध्यम गुणवत्ता वाला गुड़ पैदा करता है। यह लाल सड़न के लिए अतिसंवेदनशील है। यह 375 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
CoH 110: यह देर से पकने वाली किस्म है।
सह 7717:जल्दी पकने वाली, उच्च चीनी सामग्री वाली किस्म। यह लाल सड़ांध के लिए मध्यम प्रतिरोधी देता है। साथ ही रस की अच्छी मात्रा होने और इस संपत्ति को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए।
CoH 128: गन्ने की जल्दी पकने वाली किस्म।
CoPb 93: यह किस्म लाल सड़न रोग और पाला सहिष्णु है। इस किस्म में नवंबर में 16-17% सुक्रोज और दिसंबर में 18% सुक्रोज होता है। यह औसतन 335 क्विंटल प्रति एकड़ गन्ने की उपज देता है। यह गुड़ की अच्छी गुणवत्ता देता है।
CoPb 94: इस किस्म में नवंबर में 16% सुक्रोज और दिसंबर में 19% सुक्रोज होता है। यह औसतन 400 क्विंटल प्रति एकड़ गन्ने की उपज देता है। अन्य राज्यों की किस्में: Cos 91230: 280 क्विंटल/एकड़ की औसत उपज देती है। कंपनी पंत 90223:
350 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
CoH 92201: जल्दी पकने वाली किस्म, औसतन 300 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
Cos 95255: जल्दी पकने वाली किस्म, 295 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देती है।
सीओएस 94270: 345 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत उपज देता है।
CoH 119: जल्दी पकने वाली किस्म, औसतन 345 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
Co 9814: जल्दी पकने वाली किस्म, औसतन 320 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है।
भूमि की तैयारी
दो जुताई करने के लिए भूमि दें। पहली जुताई 20-25 सेंटीमीटर की गहराई पर करें। उपयुक्त औजारों या मशीन से क्लॉड्स को क्रश करें।
बोवाई
गन्ना बोने का समय – गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर – नवम्बर है । बसंत कालीन गन्ना फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए । भूमि का चुनाव एवं तैयारी : गन्ने के लिए काली भारी मिट्टी, पीली मिट्टी, तथा रेतेली मिट्टी जिसमें पानी का अच्छा निकास हो गन्ने हेतु सर्वोत्तम होती है।
बुवाई का समय
पंजाब में गन्ने की बुवाई का समय सितंबर से अक्टूबर और फरवरी से मार्च तक होता है। गन्ना आमतौर पर परिपक्व होने में एक वर्ष का समय लेता है इसलिए इसे एकाली कहा जाता है। उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए
रिक्ति पंक्ति रिक्ति 60-120 सेमी तक है। बुवाई की गहराई गन्ने को 3-4 सें.मी. की गहराई पर बोयें और मिट्टी से ढक दें। बुवाई की विधि
ए ) बुवाई के लिए उन्नत विधि जैसे डीप फरो, ट्रेंच विधि, पेयर रो विधि या रिंग पिट विधि का उपयोग करें।
बीज
बीज दर
विभिन्न शोधों और प्रयोगों से पता चलता है कि 3 कली सेटों का अंकुरण प्रतिशत तीन कलियों से अधिक या कम वाले सेटों की तुलना में अधिक होता है। दूसरे कटे हुए सिरे से नमी की कमी के कारण सिंगल बड सेट का अंकुरण प्रतिशत बहुत कम होता है। इसके अलावा यदि पूरी कैन के डंठल को बिना किसी कटौती के लगाया जाता है, तब भी अंकुरण प्रतिशत कम रहता है क्योंकि केवल शीर्ष सिरा अंकुरित होगा।
बीज दर क्षेत्र से क्षेत्र में भिन्न होती है। उत्तर पश्चिम भारत में, कम अंकुरण प्रतिशत और प्रतिकूल मौसम यानी शुष्क हवाओं के साथ गर्म मौसम के कारण बीज दर अधिक होती है। 20,000 तीन कलियों वाले बीज प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
बीज उपचार
6-7 महीने की उम्र की फसल से बीज सामग्री लें। यह कीट और रोग से मुक्त होना चाहिए। कीट, रोग प्रभावित और क्षतिग्रस्त कलियों और बेंतों को फेंक दें। बीज की फसल बोने से एक दिन पहले काट लें, यह उच्च और एक समान अंकुरण देगा। सेट को कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम में 1 लीटर पानी में भिगो दें। रासायनिक उपचार के बाद एज़ोस्पिरिलम से उपचार करें। इसके लिए एज़ोस्पिरिलम इनोकुलम 800 ग्राम प्रति एकड़ + पर्याप्त पानी के घोल में बोने से पहले 15 मिनट के लिए डालें।
मृदा उपचार
प्रति एकड़ 5 किलो जैव उर्वरक को 10 लीटर पानी में मिलाकर 80-100 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ अच्छी तरह मिला लें। FYM में मिश्रित जैव उर्वरक को रोपण की पंक्तियों में गन्ने के सेट पर छिड़का जाता है। तुरंत पंक्तियों को ढक देना चाहिए।
उर्वरक
उर्वरक की आवश्यकता (किलो/एकड़)
यूरिया | एसएसपी | पोटाश का मूरिएट | जस्ता |
200 | मिट्टी परीक्षण के अनुसार | मिट्टी परीक्षण के अनुसार | # |
पोषक तत्वों की आवश्यकता (किलो/एकड़)
नाइट्रोजन | फॉस्फोरस | पोटाश |
90 | मिट्टी परीक्षण के अनुसार | मिट्टी परीक्षण के अनुसार |
उर्वरक की वास्तविक आवश्यकता जानने के लिए प्रत्येक तीन वर्ष के बाद मृदा परीक्षण आवश्यक है। बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय, अच्छी तरह से सड़ी हुई गाय का गोबर @ 8 टन या वर्मीकम्पोस्ट + रालीगोल्ड @ 8-10 किग्रा या पीएसबी @ 5-10 किग्रा प्रति एकड़ डालें।
बिजाई के समय यूरिया 66 किलो प्रति एकड़ डालें। विकास अवस्था में यूरिया 66 किग्रा की दूसरी खुराक दूसरी सिंचाई के समय डालें। यूरिया 66 किग्रा की तीसरी खुराक चौथी सिंचाई के समय डालें।
सर्दियों में कम तापमान के कारण फसल द्वारा पोषक तत्वों का अवशोषण कम हो जाता है और पौधे पीले रंग का दिखाई देते हैं। ठीक होने वाली फसल के लिए 19:19:19@100 ग्राम/15 लीटर पानी की स्प्रे करें। पानी की कमी की स्थिति में यूरिया+पोटाश 2.5 किग्रा/100 लीटर की स्प्रे फसल के लिए सहायक होती है।
खरपतवार नियंत्रण
गन्ने में खरपतवार के प्रकोप के कारण गंभीरता के आधार पर लगभग 12 से 72% उपज हानि देखी जाती है। खरपतवार प्रबंधन के लिए शुरुआती 60-120 दिन महत्वपूर्ण हैं। इसलिए खरपतवार प्रबंधन पद्धतियों को रोपण के बाद 3-4 महीने के भीतर अपनाना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायन ही उपाय नहीं है। यांत्रिक और सांस्कृतिक प्रथाओं को अपनाने से प्रभावी समाधान मिलता है।
1) यांत्रिक उपाय: चूंकि गन्ना व्यापक रूप से अंतरिक्ष फसल है, हाथ से निराई या इंटरकल्चर ऑपरेशन आसानी से किया जा सकता है। हर सिंचाई के बाद 3-4 निराई करें।
2) सांस्कृतिक संचालन: इसमें फसल पैटर्न में बदलाव, इंटरक्रॉपिंग और कचरा मल्चिंग शामिल है। मोनोक्रॉपिंग से खरपतवार का भारी प्रकोप होता है। चारे या हरी खाद के साथ फसल चक्रण फसलें खरपतवारों को दबा देती हैं। साथ ही गन्ना अधिक जगह वाली फसल है इसलिए इसमें बड़ी संख्या में खरपतवार उगने का अवसर होता है। यदि गन्ना कम अवधि की फसलों के साथ अंतरफसल है तो यह खरपतवार की वृद्धि को दबा देगा और अतिरिक्त लाभ भी देगा। ट्रैश मल्चिंग में गन्ने के निकलने के बाद गन्ने की कतार के बीच में 10-12 सेमी मोटी गीली घास डाली जाती है। यह सूरज की रोशनी को प्रतिबंधित करेगा और इस प्रकार खरपतवार की वृद्धि को रोकने में मदद करेगा। इससे मिट्टी की नमी भी बनी रहती है।
3) रासायनिक: खरपतवार नियंत्रण के लिए, सिमाज़िन या एट्राज़िन @ 600-800 ग्राम / एकड़ या मेट्रिब्यूज़िन @ 800 ग्राम / एकड़ या डाययूरॉन @ 1- 1.2 किग्रा / एकड़ के साथ पूर्व-उद्भव खरपतवारनाशी आवेदन करें। रोपण के तुरंत बाद पूर्व-उद्भव शाकनाशी लागू करें। गन्ने में व्यापक रूप से खरपतवार नियंत्रण के लिए 2,4-डी@250-300 ग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करें।
सिंचाई
आवश्यक सिंचाई की संख्या मिट्टी के प्रकार, पानी की उपलब्धता आदि पर निर्भर करती है। शुष्क हवाओं और सूखे से जुड़े गर्म मौसम से फसल की पानी की आवश्यकता बढ़ जाती है।
20-25% फसल के अंकुरित होने पर पहली सिंचाई करें। मानसून में, वर्षा की तीव्रता और आवृत्ति के आधार पर सिंचाई करें। कम वर्षा होने पर 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें। बाद में सिंचाई के अंतराल को बढ़ा दें, यानी 20-25 दिन के अंतराल पर पानी डालें। मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए गन्ने की पंक्तियों के बीच मल्चिंग करें। अप्रैल से जून तक पानी के दबाव से बचें। इन दिनों पानी की कमी से उपज में कमी आएगी। खड़े खेत में जलजमाव से बचें। सिंचाई के लिए जुताई का चरण और बढ़ाव या भव्य विकास चरण महत्वपूर्ण हैं।
अर्थिंग: बेंत की खाइयों के बीच की मिट्टी को फावड़े की मदद से लिया जाता है और पौधों के किनारों पर लगाया जाता है। यह मिट्टी के भीतर अच्छी तरह से तैयार उर्वरक को अच्छी तरह से मिलाने में मदद करता है, साथ ही यह पौधे को सहारा देने और इसे रहने से रोकने में भी मदद करता है।
प्लांट का संरक्षण

- कीट और उनका नियंत्रण:
अगेती प्ररोह बेधक: अंकुरण अवस्था में इंटरनोड्स बनने तक हमला। लार्वा जमीन के नीचे की शूटिंग में छेद बनाते हैं और फिर उसमें प्रवेश करते हैं जिससे हृदय मृत हो जाता है। यह आपत्तिजनक गंध देता है। यह ज्यादातर हल्की मिट्टी और शुष्क मौसम में देखा जाता है। कीट मार्च-जून तक सक्रिय रहता है।
देर से रोपण से बचें। क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर प्रति एकड़ में 100-150 लीटर पानी में गुलाब की कैन की मदद से खारों पर रखे सेट पर लगाएं। मृत हृदय संक्रमित पौधों को हटा दें। हल्की सिंचाई करें और खेत को सूखने से बचाएं।
सफेद ग्रब : ये जड़ प्रणाली पर फ़ीड करते हैं और इस प्रकार फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद ग्रब संक्रमण के मुख्य लक्षण डंठलों का पूरी तरह सूख जाना और बेंत का आसानी से उखड़ जाना है। शुरूआती चरण में इसका प्रकोप चकत्तों में देखा गया और बाद में यह पूरे खेत में फैल गया।
जून-जुलाई के दौरान पहली बारिश के साथ वयस्क भृंग मिट्टी से निकलते हैं। वे पास के पेड़ों पर इकट्ठा होते हैं और रात के दौरान उनके पत्तों पर भोजन करते हैं। अंडे मिट्टी में रखे जाते हैं और उनसे निकलने वाले लार्वा (ग्रब) मूंगफली के पौधों की जड़ों या जड़ के बालों को खा जाते हैं। भृंगों को नष्ट करने के लिए इमीडाक्लोप्रिड 4-6 मि.ली./10 लीटर पानी की स्प्रे पास के गन्ने के पौधों के पौधों पर करें।
सफेद ग्रब के प्रभावी प्रबंधन के लिए। खेत की जुताई करें और मिट्टी में आराम करने वाले भृंगों को बाहर निकाल दें। फसल की बुवाई में देरी न करें। बिजाई से पहले गन्ने को क्लोरपाइरीफॉस से उपचारित करें। फोरेट @ 4 किग्रा या कार्बोफ्यूरन @ 13 किग्रा प्रति एकड़ मिट्टी में बुवाई के समय या पहले डालें। अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों में 48 घंटे के लिए बाढ़ करनी होती है। क्लोथियानिडिन 40 ग्राम को प्रति एकड़ में 400 लीटर पानी में मिलाकर बेंत से छान लें।

दीमक : बुवाई से पहले गन्ने का उपचार करें। इमिडाक्लोप्रिड घोल 4 मि.ली./10 लीटर में 2 मिनट के लिए डुबोएं या बुवाई के समय क्लोरपायरीफॉस 2 लीटर प्रति एकड़ का स्प्रे करें। यदि खड़ी फसल पर हमला हो तो इमिडाक्लोप्रिड 60 मि.ली./150 लीटर पानी या क्लोरपाइरीफॉस 1 लीटर/200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पायरिला: उत्तर भारत का गंभीर कीट। वयस्क पत्तियों की सतह के नीचे पत्ती का रस चूसते हैं। इससे सफेद धब्बे पीले पड़ जाते हैं और मुरझा जाते हैं। ये शहद जैसा पदार्थ स्रावित करते हैं और कालिखदार फफूंदी को आकर्षित करते हैं, इससे पत्तियाँ काली हो जाती हैं।
नियमित अंतराल पर सफेद-फूले अंडे के द्रव्यमान को इकट्ठा और नष्ट कर दें। अधिक प्रकोप होने पर डाइमेथोएट या ऐसीफेट 1-1.5 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

जड़ बेधक : बेधक जमीन के नीचे प्ररोह के जड़ क्षेत्र में प्रवेश करता है। जुलाई के बाद से संक्रमण अधिक है। इसके संक्रमण के कारण पत्तियों का शीर्ष से नीचे की ओर किनारे से नीचे की ओर पीलापन दिखाई देता है।
गन्ने की बिजाई से पहले क्लोरपाइरीफॉस से उपचार करें। सूखे खेत में संक्रमण कम होता है इसलिए खेत को सूखा और साफ रखें, खेत में जलजमाव की स्थिति से बचें। 90 दिनों में अर्थिंग ऑपरेशन करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो क्लोरोपायरीफॉस 20ईसी 1 लीटर प्रति एकड़ में 100-150 लीटर पानी में मिलाकर जड़ों के पास डालें या क्विनालफॉस 300 मि.ली. प्रति एकड़ में डालें। संक्रमित गन्ने को हटाकर खेत से दूर नष्ट कर दें।

डंठल छेदक : यह जुलाई से मानसून की शुरुआत के साथ सक्रिय होता है। लार्वा पत्ती म्यान, मध्य पसली और डंठल की भीतरी सतह पर फ़ीड करते हैं। यह डंठल के किसी भी क्षेत्र पर हमला कर सकता है। गन्ने के बनने से लेकर कटाई तक इसका प्रकोप जारी है।
नाइट्रोजन के अधिक उपयोग से बचें, खेत को साफ रखें और उचित जल निकासी प्रदान करें। फसल को रुकने से रोकने के लिए अर्थिंग अप करें। रासायनिक नियंत्रण शायद ही कभी प्रभावी होता है। जुलाई से नवंबर तक साप्ताहिक अंतराल पर पैरासिटॉइड, कोटेसिया फ्लेवाइप्स@800 मेटिड मादा/एकड़ को छोड़ दें।

शीर्ष छेदक : यह फसल को जुताई से लेकर पकने की अवस्था तक आक्रमण करता है। लार्वा सुरंगों को मध्य शिराओं में बनाता है जिससे सफेद लकीरें बनती हैं जो बाद में भूरी हो जाती हैं। यदि जुताई के दौरान संक्रमण होता है, तो हमला किए गए अंकुर मर जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप मृत हृदय का निर्माण होता है। यदि यह बड़े हो चुके बेंत पर हमला करता है, तो शिखर वृद्धि रुक जाती है जिसके परिणामस्वरूप गुच्छेदार शीर्ष लक्षण दिखाई देते हैं।
इसे नियंत्रित करने के लिए अप्रैल के महीने के अंत से मई के पहले सप्ताह के बीच में 100-150 लीटर पानी में राइनाक्सीपायर 20एससी 60 मि.ली. प्रति एकड़ की स्प्रे करें। मिट्टी में उचित जल निकासी बनाए रखें, क्योंकि जल जमाव से शीर्ष बेधक घटनाएँ बढ़ जाती हैं।

- रोग और उनका नियंत्रण:
लाल गलन : ऊपर से तीसरी और चौथी पत्तियाँ पीली होकर सूख जाती हैं। बाद के चरण में छिलके पर फीके पड़े घाव दिखाई देते हैं। यदि रोगग्रस्त डंठल विभाजित हो जाए तो आंतरिक ऊतक का लाल होना दर्शाता है। संक्रमित बेंत से एक खट्टी और मादक गंध निकलती है।
रोग प्रतिरोधक किस्मों की वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए। बिजाई के लिए रोगमुक्त गन्ने का चयन करें। गन्ने को त्यागें जो कटे हुए सिरे पर और नोडल क्षेत्र में लाल दिखाई देता है। धान के साथ या हरी खाद वाली फसलों के साथ फसल चक्र करें। जलजमाव वाले क्षेत्र से बचें। यदि इसका प्रकोप दिखे तो फसल को हटा दें और खेत से दूर नष्ट कर दें। रोगग्रस्त झुरमुट के आसपास की मिट्टी को कार्बेन्डाजिम 0.1% घोल से कीटाणुरहित करें।
मुरझाना: जड़ बेधक, सूत्रकृमि, दीमक, सूखा और जल भराव की स्थिति के कारण पौधे मुरझा जाते हैं। ताज के पत्ते पीले और ढीले हो जाते हैं और मुरझा जाते हैं। पिठ क्षेत्र में नाव के आकार की गुहाएँ दिखाई देती हैं और फसल सिकुड़ जाती है। यह अंकुरण को कम करता है और उपज को कम करता है।
रोपण के लिए रोग मुक्त सेटों का प्रयोग करें। 10 मिनट के लिए कार्बेन्डाजिम 0.2% + बोरिक एसिड 0.2% से उपचार करें। प्याज, लहसुन और धनिया के साथ अंतर-फसल लगाने से मुरझाने की बीमारी कम हो जाएगी।

पोक्का बोएंग : यह वायु जनित रोग है। मानसून में लक्षण देखे जाते हैं। रोग पौधे में विकृत और झुर्रीदार पत्तियाँ होती हैं। पत्तियां पत्ती के ब्लेड के आधार पर लाल रंग के धब्बे दिखाती हैं। नए बने पत्ते छोटे और तलवार के समान हो जाते हैं।
पोक्का बोएंग रोग प्रतिरोधक किस्में उगाएं। यदि रोग का संक्रमण दिखे तो कार्बेन्डाजिम 4 ग्राम प्रति लीटर या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर या मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फसल काटने वाले
गन्ने की सही समय पर कटाई अच्छी उपज और उच्च चीनी प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। अधिक उम्र या कम उम्र में गन्ने की कटाई से गन्ने की उपज में नुकसान होता है। पत्तियों के मुरझाने और गन्ने के रस के आधार पर कटाई का समय तय किया जा सकता है। कटाई का सही समय जानने के लिए कुछ किसान हैंड शुगर रेफ्रेक्टोमीटर का उपयोग करते हैं। कटाई के लिए दरांती का उपयोग किया जाता है। डंठल को जमीनी स्तर पर काटा जाता है ताकि नीचे के चीनी समृद्ध इंटरनोड्स को काटा जा सके जो उपज और चीनी को जोड़ते हैं। उचित ऊंचाई पर डी-टॉपिंग। कटाई के बाद काटे गए गन्ने का कारखाने में त्वरित निपटान आवश्यक है।
फसल कटाई के बाद
गन्ना एक रस प्रदान करता है, जिसका उपयोग सफेद चीनी, और गुड़ (गुड़) और कई उत्पादों जैसे खोई और गुड़ बनाने के लिए किया जाता है।
संदर्भ
1.पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना
2.कृषि विभाग
3.भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली
4.भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान
5.कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
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