धान की जैविक खेती

धान की जैविक खेती

धान की जैविक खेती से संबंधित कृषि क्रियाएं-





  1. भूमि का चयन और तैयार करना

  2. बिजाई का समय

  3. बीज का उपचार

  4. पनीरी की बिजाई का समय

  5. खेत की तैयारी

  6. पौध का उखाड़ना

  7. रोपाई का ढंग

  8. निराई-गुड़ाई व खरपतवार और नियंत्रण

  9. कटाई

  10. फसल चक्र

  11. अनुमोदित किस्में

  12. मृदा उर्वरकता प्रबंधन

  13. पौध संरक्षण

  14. भण्डारण

  15. उत्पादकता



जैविक खेती से धान की उपज बढ़ाने की मेडागास्कर पद्धति



  • बीज का चुनाव इस पद्धति में सिर्फ एक एकड़ में 2 किलो ही बीज चाहिए। ...

  • बीज का उपचार बीज को नमक पानी में उपचारित कर हल्का बीज हटा दें। ...

  • नर्सरी तैयार करने का तरीका समतल जगह में गोबर खाद आदि डालकर अच्छे से तैयार कर लें। ...

  • रोपाई ...

  • खाद की व्यवस्था ...

  • पानी का नियोजन ...

  • खरपतवार नियंत्रण

  • छत पर खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)







भूमि का चयन और तैयार करना


धान हर प्रकार की जमीन चाहे वह रेतीली हो या चिकनी अथवा अम्लीय या क्षारीय हो, पर उगाया जा सकता है। लेकिन पानी की सुविधा आवश्यक है। धान की खेती के लिए 5-8 पीएच रेंज और 1 प्रतिशत से अधिक जैविक कार्बन युक्त सुनिकासी व्यवस्था वाली चिकनी दोमट मृदा सर्वाधिक उपयुक्त होती है। खेत में पीएच स्तर, जैविक कार्बन, सूक्ष्म पोषक तत्वों (एनपीके) और सूक्ष्मजीवों की संख्या की जांच करने के लिए वर्ष में एक बार मृदा की जांच करने की अपेक्षा होती है।

यदि जैविक कार्बन की मात्रा 1 प्रतिशत से कम है, 25-30 टन/है0 कार्बनिक खाद का प्रयोग करें और खाद को भलीभांति मिलाने के लिए खेत की 2-3 बार अच्छी तरह जुताई करें। प्रमाणित जैविक खेतों पर प्रतिबंधित सामग्रियों के प्रवाह को रोकने के लिए प्रमाणित जैविक खेतों और अजैविक खेतों के बीच लगभग 25 मीटर की दूरी का पर्याप्त बफर जोन (सुरक्षा पट्टी) दी जानी चाहिए।

मुख्य खेत को रोपण से 3 सप्ताह पूर्व सूखी जुताई की जाती है और 5-10 सें.मी. खडे पानी में जलमग्न किया जाता है। 10 टन जैविक खाद अथवा 10-20 टन हरा खाद मिलाने के बाद, खेत को भलीभांति समतल किया जाता है। धान के लिए भूमि तैयार करने में एक बार जुताई और एक बार गीली जुताई की जाती है। प्रतिरोपण से 3 दिन पूर्व खेत में पानी भर दिया जाना चाहिए। जैविक खादों व ढंग से उगाया गया धान न केवल पर्याप्त उपज ही देता है बल्कि इससे किसानों को ज्यादा मूल्य भी मिलता है।

शिमला मिर्च की जैविक खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

बिजाई का समय


रोपाई द्वारा

धान की खेती करने की दो मुख्य विधियां हैं - धान की रोपाई द्वारा खेती केवल अच्छी परिस्थितियों में होती है जहां पर पानी की पूरी उपलब्धता है। इस विधि में सबसे पहले पौध तैयार की जाती है और फिर पौधों को मच्च किए गए खेत में लगाया जाता है जब वह 15-20 सें.मी. और उनमें 4-5 पत्ते हों।

बीज का चयन

केवल भारी बीजों को ही बिजाई के लिए लेना चाहिए। ऐसे बीजों को लेने के लिए 25 लीटर पानी में 2.5 कि.ग्रा. नमक घोलें और इस घोल में 3.7 कि.ग्रा. बीज बारी-बारी डुबोएं और तैरते हुए बीजों को निकाल दें व नष्ट कर दें। फिर बीजों को धोकर अच्छी तरह से सूखा लें। एक हैक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए 25-35 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है। बीज से लगनेवाली बीमारियों के बचाव के लिए सूखे बीजों को पंचगव्य से उपचारित करें।

बीज का उपचार


पौध उगाना

अधिक उपज प्राप्त करने के लिए स्वस्थ, मजबूत व एक-सार पनीरी तैयार करनी चाहिए। धान की पनीरी को शुष्क व गीली विधि से निम्न प्रकार से तैयार किया जा सकता है

(क) शुष्क विधि

8 X 1.25 सें.मी. की 10 सें.मी. उठी हुई क्यारियां बनाएं, जिनकी मिट्टी बारीक व भुरभुरी हो। प्रत्येक क्यारी में गोबर की खाद, केचुआ खाद और ट्राईकोडर्मा अच्छी तरह से मिला दें। प्रत्येक क्यारी में 400 ग्राम उपचारित बीज 10 सें.मी. की दूरी की कतारों में बीजे। बीजों को बारीक मिट्टी से ढक दें। बिजाई के 15 दिन बाद प्रत्येक क्यारी में थोडी - थोडी केचुआ खाद डालें, ताकि पनीरी 25-30 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाए। एक बीघा रोपाई के लिए ऐसी 4 क्यारियों से पौध तैयार चाहिए। क्यारियों में समय-समय पर पानी दें तथा खरपतवार न उगने दें।

(ख) गीली विधि

20-30 किलोग्राम गली सड़ी गोबर की खाद 8 x 1.25 क्यारी के अनुसार डालने के | पश्चात् पानी भर दें तथा मच्च करें। मच्च किए गए खेत को 2-3 दिन के लिए छोड़ दें। फिर 8 x 1.25 मीटर आकार की 20 सें.मी. उठी हुई क्यारियां बनाएं और क्यारियों के बीच में 1/3 मीटर चौड़ी पानी की नालियां बनाएं। इसके बाद सभी क्रियाएं शुष्क विधि से पौध तैयार करने की तरह है। केवल शुष्क बीज के स्थान पर अंकुरित बीज का प्रयोग किया जाता है। अंकुरित बीज तैयार करने के लिए पहले बीज को 24 घंटे के लिए पानी में भिगो दें और उसके बाद अंधेरे कमरे में 36- 48 घंटे के लिए रखें।

टमाटर(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

पनीरी की बिजाई का समय


रोपाई से 4 सप्ताह पहले पनीरी की बिजाई करनी चाहिए। निम्न समय पर पनीरी की बिजाई करें -

लम्बी व बौनी किस्में : 20 मई - 7 जून

बासमती किस्में: 15 मई - 30 मई

खेत की तैयारी


1) सभी मेढ़ों की मरम्मत करें।

2) रोपाई से दो सप्ताह पहले खेत में गोबर की खाद डालें व जुताई करें ताकि खाद | अच्छी तरह से गल-सड़ जायें।

3) खेत में अच्छी तरह से मच करें ताकि निचली सतह पर पानी जाने का अधिक नुकसान न हो।

4) उर्वरक देने से पहले खेत को समतल कर लें।

पौध का उखाड़ना


पौध निकालने के एक दिन पहले नर्सरी में सिंचाई कर दें। पौध को बड़े ध्यान से निकालें ताकि जड़ों को नुकसान न हो।

रोपाई का समय

लम्बी व बौनी किस्में- 15 जून - 7 जुलाई

बासमती किस्में - 20 जून - 1 जुलाई

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रोपाई का ढंग


1) रोपाई को कतारों में लगाएं और केवल 3 सें.मी. गहराई तक लगाएं।

2) एक स्थान पर 2-3 पौध ही रोपें।

3) समय की रोपाई के लिए 15 x 20 सें.मी. की दूरी पर पौध लगाएं और देर से रोपाई करने पर लम्बी किस्में 15 x 15 सें.मी. की दूरी पर ही लगाएं परंतु बासमती किस्मों को समय व देरी से होने वाली रोपाई के लिए 15 x 15 सें.मी. की दूरी पर ही लगाएं।

4) रोपाई के क्रमशः 5 व 10 दिन के बाद खाली स्थानों में पौध की रोपाई करें।

5) रोपाई के बाद खेत में इतना पानी खड़ा रहना चाहिए ताकि पौधे का 2/3 भाग पानी में 5 दिन तक डूबा रहे। इससे पौध सुदृढ़ रूप से लग जाती है।

यह ध्यान रहे कि

1) पौध 25-30 दिन के ऊपर न हो।

2) पौध अधिक गहरी व अधिक अंतर पर न लगे अन्यथा उत्पादन में कमी आ जायेगी।

3) रोपाई वाले खेत पूरे समतल हों।

निराई-गुड़ाई व खरपतवार और नियंत्रण


खेत में मल्च्च करने तथा सही जल प्रबंध द्वारा कई खरपतवार नष्ट हो जाते हैं इससे रोपाई के दो सप्ताह तक खरपतवारों से फसल बची रहती है। उसके बाद ही खरपतवार निकलते हैं और उनकी रोकथाम करनी चाहिये। हाथ से निकाल कर भी इनका नियंत्रण किया जा सकता है।

(ग ) सीधी विधि द्वारा

इस विधि में धान के बीज की सीधी बिजाई खेत में की जाती है और नर्सरी तैयार नहीं की जाती है। यह विधि भी दो प्रकार की है –

1) मल्च्च किए गए खेत में अंकुरित किए हुए बीजों की सीधी बिजाई।

2) तैयार किए गए खेत में बीज की सीधी बिजाई।

पहली विधि को मल्च द्वारा बिजाई से जाना जाता है व यह उन स्थानों पर अपनाई जाती है जहां मच्च के लिए पानी उपलब्ध हो। पनीरी व रोपाई विधि द्वारा इस विधि की अपेक्षा अधिक उपज होती है। अतः किसानों को चाहिए कि जहां पर पानी की उपलब्धता हो वहां पनीरी तैयार करके रोपाई ही करें।

दूसरी विधि द्वारा खेत में सीधी बिजाई की जाती है। यह बिजाई बरसात के आरंभ होने पर या उससे भी पहले सूखी भूमि पर कर दी जाती है। यह विधि वहां अपनाई जाती है जहां पर पानी उपलब्ध नहीं है क्योंकि पानी का सही प्रबंध नहीं होता है। अत: फसल में पैदावार कम रहती है। अतः इन स्थानों में मक्की की खेती करनी चाहिए ताकि अधिक आमदनी हो सके। फिर भी यदि धान की ही खेती करनी हो तो नीचे दी गई सिफारिशें अपनाने से अधिक उपज मिल सकती है।

खेत की तैयारी

सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें और फिर देसी हल से ताकि मिट्टी नर्म व भुरभुरी हो जाये। बिजाई के समय पर्याप्त नमी को सुनिश्चित करें।

बिजाई का समय

सीधी बिजाई का समय वही है जब पनीरी लगाई जाती है। देरी से बिजाई करने में पैदावार कम होती है। प्रायः पहली बारिश होते ही बिजाई कर देनी चाहिए।

बिजाई का ढंग

इस विधि द्वारा अपनाई गई बिजाई में 100-125 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर लगता है। बीज को हल के पीछे 20 सें.मी. दूरी की कतारों में 3-4 सें.मी. गहरा डालना चाहिए ताकि अंकुरण सही हो सके तथा पौधों की संख्या पर्याप्त हो।

खरपतवार नियंत्रण

सीधी की गई बिजाई में खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्यक है और सही समय पर किया गया नियंत्रण ही अच्छी पैदावार देने में सहायक होता है। पहली बार खरपतवारों को उस समय निकालें जब पौधों में 2-3 पत्ते आ जाएं। उसके बाद आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालें।

जल प्रबंध

धान की फसल में पानी की उपलब्धता का सीधा प्रभाव पड़ता है। फसल की बढ़ौतरी की सारी अवस्थाओं में पानी खड़ा रहना चाहिए। पानी की कमी के क्षेत्रों में खेतों का गीला रहना ही लाभदायक है। धान के खेतों में अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी रहने के यह गुण हैं –

(1) फास्फोरस, लोहा व मैग्नीज तत्वों की अधिक उपलब्धता,

(2) खरपतवारों का दबा रहना,

(3) पानी की कमी न होना और

(4) फसल उत्पादन में अन्य मौसम संबंधी सूत्रों की उपलब्धता। इन सारे गुणों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित तरीकों को अपनाना चाहिए -

1) नर्सरी केवल वहीं तैयार करें जहां पानी की उपलब्धता हो।

2) खेतों को बराबर समतल करें।

3) जहां पर सिंचाई की सुविधा न हो, वहां पर खेतों के किनारे 25-30 सें.मी. मेंढे बनाएं ताकि बारिश का पानी इकट्ठा किया जा सके।

4) मल्च्च करने के समय खेत में 8-10 सें.मी. पानी रहना चाहिए और उसके बाद बढ़ौतरी की सारी अवस्थाओं में पानी खड़ा रखें।

5) यह आवश्यक है कि प्रत्येक खेत में पानी खड़ा रहे।

6) पौध की जड़ पकड़ने तक खेत में पानी खड़ा रखें।

7) उन स्थानों में जहां सिंचई के पानी का तापमान कम होता है वहां एक खेत से दूसरे खेत में पानी के बहने की प्रथा को खत्म करना चाहिए तथा 4-5 सें.मी. तक पानी खेत में खड़ा रखना चाहिए।

8) उर्वरक डालने के दो दिन पहले खेत से पानी निकाल देना चाहिए।

9) दौजियां निसरने और फूल आने की अवस्था आने पर 5-7 दिन के लिए खेत से पानी निकाल दें। इससे सलफाईड जैसे जहरीले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। और जड़ों को ऑक्सीजन मिलने में आसानी हो जाती है।

कटाई


कटाई से 7-10 दिन पहले खेत से पानी निकाल दें। फसल को खेत में पूरा पकने देना चाहिए जिससे दाने नहीं गिरते हैं। फसल में सूखे व भूरे पत्ते फसल के पकने का संकेत देते हैं।

फसल चक्र


खंड-1 के ऊना, बिलासपुर, हमीरपुर जिलों में तथा सिरमौर, कांगड़ा, सोलन व चम्बा जिलों में जो पंजाब व हरियाणा के साथ लगते हैं, में नीचे दिए गए फसल चक्र लाभदायक हैं-

धान - अलसी - मक्की का चारा

धान - अलसी - आलू/गेहूं

जंगली धान (रीसा) का नियंत्रण

1) खेती करने की विधि

गन्ना(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

रोपाई करने के ढाग से जंगली धान का प्रकोप कम हो जाता है। अतः जहां संभव हो, वहां यह तरीका अपनाना चाहिए। सीधी बिजाई व लंग के ढंग में पौधों के स्थिर हो जाने पर हाथ से रीसे को निकाल दें।

2) किस्मों में अन्तर

जामुनी रंग की किस्म - आर - 575 लगाने से रीसे को आसानी से शुरू में ही निकाला जा सकता है।

3) फसल चक्र

धान के बाद अलसी या गेहूं की फसल लगाएं।

4) बीज का चयन

उन क्षेत्रों में जहां रीसे का प्रकोप होता हो तो उन इलाकों के लिए अगली फसल के लिए बीज वहां से लें जहां रीसे का प्रकोप न होता हो।

5) खेतों से रीसे का उन्मूलन

यदि ऐसे स्थानों में जहां नड या दलदल हों और वहां रीसा उगा हो तो इसको बालियां पड़ने से पहले नष्ट कर दें।

अनुमोदित किस्में


पालम धान-957, हिमालय-2216, आर.पी.-2421, वी.एल. धान-221, कस्तूरी, हसन सराय, हिमालय-741, चायना -988, आई.आर. - 579, आर - 575, हिमालय -799, | भृगु धान (एच.पी.आर.-1179), नग्गर धान (चिंग शी -15), पी.आर.-108, पी.आर.- 109, एच.के.आर.-126

मृदा उर्वरकता प्रबंधन


5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से कार्बनिक खाद लगाया जाता है और वर्मी कम्पोस्ट 5 टन प्रति है0 के हिसाब से लगाया जाता है।

ट्रिकोडर्मा हर्जियानम (टीएच) अथवा स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस (पीएसएफ) के साथ कार्बनिक खाद प्री-कोलोनाइज्ड का प्रयोग करें। कार्बनिक खाद के पी- कॉलोनाइजेशन के लिए, मासिक अंतराल पर 100 ग्राम प्रति गड्ढे के हिसाब से टीएच/पीएसएफ अथवा 1.0 कि.ग्रा./गड्ढे के हिसाब से पेंट बायो-एजेंट-3 मिलाया जाता है। इन गड्ढों को गन्ने के पते अथवा धान की भूसी से ढका जाना चाहिए। नमी को बरकरार रखने के लिए नियमित अंतराल पर (बायो एजेंट के प्रयोग के बाद कम से कम एक बार) और कार्बनिक खाद के प्रयोग से 15 और 7 दिन पूर्व पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए।

धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

पौध संरक्षण

































(अ)    कीट

टिड्डे
इस कीट के व्यस्क व शिशु पौधों के नर्म भागों से व दुधिया दानों से रस चूसते हैं। दानों में काले या भूरे धब्बे इस कीट का मुख्य लक्षण हैं। रोकथाम

  • खेतों के आस-पास झाड़ियां व खरपतवार न आने दें।

  • इकोनीम (0.05 प्रतिशत) या दरेकास्त्र का प्रयोग करें।

  • अधिक संख्या होने पर नीम (1.5 ली. प्रति एकड़) का छिड़काव करें।

  • आवश्यकतानुसार 7-10 दिन बाद पुन: छिड़काव करें।


काला भुंग 

इस कीट का प्रकोप रोपाई के तुरन्त बाद पौधों के दबे भाग में होता है, जिससे पौधे मर जाते हैं।

रोकथाम

  • खेतों के आस-पास झाड़ियां व खरपतवार न आने दें।

  • इकोनीम (0.05 प्रतिशत) या दरेकास्त्र का प्रयोग करें।

  • अधिक संख्या होने पर नीम (1.5 ली. प्रति एकड़) का छिड़काव करें।

  • आवश्यकतानुसार 7-10 दिन बाद पुन: छिड़काव करें।

  • 1.5 ली. नीम तेल को 25 कि.ग्रा. रेत में मिलाकर प्रति एकड़ खेतों में खड़े पानी में छिड़काव करें।


धान का हिस्पा

 
शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पौधों को क्षति पहुंचाते हैं। शिशु पत्तों के अन्दर जाकर सफेद धारियां बनाते हैं। अधिक संख्या होने पर पौधे सूख जाते हैं। रोकथाम

  • खेतों के आसपास खरपतवार न उगने दें।

  • रोपाई के 10 दिन बाद गोबर व गौमूत्र के अर्क से छिड़काव करें।

  • नीमाजल (0.03 प्रतिशत) या ईको नीम (0.05 प्रतिशत) या दरेकास्त्र या अग्निस्त्र का छिड़काव 10-15 दिनों के अन्तराल पर करें।


तना छेदक

 
इस कीट के शिशु (लावे) तनों के अंदर जाकर क्षति पहुंचाते हैं। रोपाई के 50-60 दिन बाद इस कीट से मादा व्यस्क (मौथ) पत्तों के किनारों पर पौधों में अण्डे देती हैं व जुलाई से अक्तूबर तक क्षति पहुंचाते हैं। ग्रसित पौधे सफेद बालियों में बदल जाते हैं व सूख जाते हैं।

रोकथाम

  • गोबर व गौमूत्र के अर्क से व्यस्क दिखने पर छिड़काव करें।

  • दरेकास्त्र या नीम का प्रयोग व्यस्कों को भगाने के लिए 15 दिन के अंतराल पर करें।

  • प्रकाश प्रपंच (लाईट ट्रैप) का प्रयोग व्यस्कों को इकट्ठा करने के लिए करें।

  • 1.5 ली. नीम तेल को 25 कि.ग्रा. रेत में अच्छी तरह मिलाकर 1 एकड़ खेत में खड़े पानी में छिड़काव करें। जिससे लार्वा एक पौधे से दूसरे पौधों तक न जा सके। आवश्यकतानुसार पुनः प्रयोग करें।


पत्ता लपेटरोपाई के लगभग 30 दिन बाद इस कीट के व्यस्क (मौथ) पौधों पर अण्डे देते हैं, जिससे निकलकर सुण्डियां नर्म पत्तों के किनारों को लपेट कर उसमें रहती हैं।

रोकथाम

  • ग्रसित पत्तों को निकालकर नष्ट कर दें।

  • खरपतवारों व घास को खेत के पास न उगने दें।

  • फसल में कीट के प्रकट होते ही (रोपाई के 25-30 दिन बाद) गोबर व गौमूत्र के अर्क से छिड़काव करें। इसके बाद दरेक के अर्क या दरेकास्त्र का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार पुनः छिड़काव करें।

  • हरी मिर्च व लहसुन के अर्क या नीमाजल/इकोनीम का छिड़काव करें।


भूरा फुदका

 
इस कीट का प्रकोप अगस्त-सितम्बर मास में होता है। शिशु व प्रौढ़ पौधों का रस चूसकर क्षति पहुंचाते हैं।

रोकथाम

  • दरेक अर्क या दरेकास्त्र या अग्निस्त्र का छिड़काव करें।

  • नीम तेल (1.5 ली.) को रेत (25 कि.ग्रा.) में मिलाकर एक एकड़ खेत में पानी में छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 7 दिन बाद पुन: छिड़काव करें।


भूरा धब्बापत्तों पर गोल, भूरे धब्बे जो बीच में से खाकी या सफेद होते हैं, प्रकट होते हैं। बीमारी आने पर पत्ते मुरझा जाते हैं। वालियों पर काले या गहरे - भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो कभी-कभी पूरी वालियों पर आ जाते हैं जिससे दानों पर भी बीमारी आ जाती है।

रोकथाम

  • स्वस्थ बीज का इस्तेमाल करें।

  • बिजाई से पहले बीज को बीज अमृत से उपचार कर लें।

  • नर्सरी में वर्मीवाश और पंचगव्य का छिड़काव करें।



भण्डारण


धान में बहुत भंडारण कीटों के प्रकोप की संभावना अपेक्षाकृत अधिक होती है। अवैज्ञानिक भंडारण से चावल में परिमाण के साथ गुणवत्ता में भी कमी आती है।

धान को न निकाले गए धान के रूप में भण्डारित करें। नमी स्तर को 12-14 प्रतिशत तक लाएं और भण्डारण से पूर्व आंशिक तौर पर भरें और खाली धान के साथ ही अन्य पदार्थों को भली भांति साफ करें। परिमाण के आधार पर उपयुक्त भण्डारण संरचना का चुनाव करें जिसमें हवा न जाती हो।

उत्पादकता


फसल की उत्पादकता रूपांतरण अवधि के आरंभ में कम होती है क्योंकि रासायनित ऊर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता। तथापि, जैसे- जैसे जैविक प्रक्षेत्र रूपांतरण प्रक्रिया आगे बढ़ती है, उत्पादकता चौथे वर्ष में सामान्य उत्पादकता के 90 प्रतिशत तक पहुंच जाती है और इस स्तर पर स्थिर हो जाती







धान उत्पादन की उन्नत तकनीकी



परिचयधान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ अंचल का मध्यप्रदेशसे अलग हो जाने के बावजूद भी इस प्रदेश में लगभग 17.25 लाख हेक्टर भूमि में धान की खेती प्रमुखता के साथ की जाती है।






















वर्ष2007-20082012-2013
क्षेत्रफल(लाख हे.)उत्पादकता(किग्रा/हे.)क्षेत्रफल(लाख हे.)उत्पादकता (किग्रा/हे.)
म.प्र.16.4585317.661807


प्रमुख उत्पादक जिले/क्षेत्र -बालाघाट, सिवनी, मंडला, रीवा, शहडोल, अनुपपूर, कटनी, जबलपुर, डिन्डौरी आदि।

खेत की तैयारी:

ग्रीष्मकालीन जुताई करके दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें एवं ढेलों को फोड़कर समतल करें एवं खेत में छोटी-छोटी पारे डालकर खेत तैयार करें।

उपयुक्त भूमि का प्रकार- मध्यम काली मिट्टी एवं दोमट मिट्टी।

उपयुक्त किस्में:

धान की बीज की मात्रा बुवाई की पध्दति के अनुसार अलग-अलग रखी जाती है। जैसे छिटकवां विधि से बोने के लिये 40-48 ,कतार मे बीज बोने के लिये 36-40, लेही पध्दति में 28-32 किलो, रोपाई पध्दति में 12-16 किलों तथा बियासी पध्दति में 48-60 किलो प्रति एकड़ उपयोग में लाया जाता है।

अतिशीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ

































क्र.प्रजातिअनुसंशित वर्षअवधि (दिन)उपज (क्वि./हे.)विशेषताएँउपयुक्त क्षेत्र
1सहभागी201190-9530-40छोटा पौधा, मध्यम पतला दानाअसिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों केलिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वालेक्षेत्र तथा देरी की बोवाई।
2दन्तेश्वरी200190-9540-50छोटा पौधा, मध्यम आकार का दानाअसिंचित क्षेत्रों में बधांन रहित समतल व हल्के ढलान वाले खेतों केलिए व बिना बंधान वाले समतल बहुत हल्की भूमि वाले छोटे मेढ़ युक्त खेत कम वर्षा वालेक्षेत्र तथा देरी की बोवाई।


मध्यम अवधि में पकने वाली प्रजातिया






































































क्र.प्रजातिअनुसंशित वर्षअवधि (दिन)उपज (क्वि./हे.)विशेषताएँ
1पूसा -14602010120-12550-55छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
2डब्लू.जी.एल -321002007125-13055-60छोटा पतला दाना, छोटा पौधा
3पूसा सुगंध 42002120-12540-45लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
4पूसा सुगंध 32001120-12540-45लम्बा, पतला व सुगंधित दाना
5एम.टी.यू-10102000110-11550-55पतला दाना, छोटा पौधा
6आई.आर.641991125-13050-55लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा
7आई.आर.361982120-12545-50लम्बा पतला दाना, छोटा पौधा


विभिन्न क्षेत्रों के लिये संकर प्रजातिया एंव उनकी विशेषताएँ -























































क्र.प्रजातिअनुसंशित वर्षपकने की अवधि(दिन)औसत उपज(क्वि./हे.)
1जे.आर.एच.-52008100.10565.70
2जे.आर.एच.-8200995.10060.65
3पी आर एच -10120.12555.60
4नरेन्द्र संकर धान-2125.13055.60
5सी.ओ.आर.एच.-2120.12555.60
6सहयाद्री125.13055.60


इनके अलावा प्राईवेट कम्पनियों की संकर प्रजातिया जैसे अराईज 6444, अराईज 6209, अराईज 6129 किसानों के बीच प्रचलित है।











उपलब्ध भूमि के अनुसार उपयुक्त प्रजातियों का चयन




































क्रखेतों की दिशाएँउपयुक्त प्रजातियाँसंभावित जिले
1बिना बंधान वाले समतल/ हल्के ढालान वाले खेतपूर्णिमा, सहभागी, दंतेष्वरीडिण्डौरी, मण्डला, सीधी, शहडोल, उमरिया
2हल्की बंधान वाले खेत व मध्यम भूमिजे.आर.201, जे.आर.345, पूर्णिमा, दंतेष्वरी डब्लू.जी.एल -32100, आई.आर.64रीवा, सीधी, पन्ना, शहडोल, सतना, कटनी, छतरपुर, टीकमगढ़, ग्वालियर,बालाघाट, डिण्डौरी, मण्डला, कटनी
3हल्की बंधान वाले भारी भूमिपूर्णिमा, जे.आर.345, दंतेष्वरीजबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर,छिदंवाड़ा
4उँची बंधान वाले हल्की व मध्यम भूमिआई.आर.-36, एम.टी.यू-1010,दंतेष्वरी, डब्लू.जी.एल -32100जबलपुर, सिवनी, दमोह, बालाघाट, मण्डला, डिण्डौरी, सतना, नरसिंहपुर,छिदंवाड़ा


बीज की मात्रा -


























क्र.बोवाई की पद्धतिबीज दर (किलो/हेक्ट.)
1श्री पद्धति5
2रोपाई पद्धति10-12
3कतरो में बीज बोना20-25


बीजोपचार :-

बीज को फफूंदनाशक दवा कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बेन्डाजिम + मैन्कोजेब 3 ग्राम/किग्रा बीज या कार्बोक्सिऩ + थायरम 3 ग्राम/किग्रा बीज से उपचारित करें।


बुवाई का समय :-

वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है।

बुवाई की विधियाँ:-

कतारो में बोनी: अच्छी तरह से तैयार खेत में निर्धारित बीज की मात्रा नारी हल या दुफन या सीडड्रील द्वारा 20 सें.मी. की दूरी की कतारों में बोनी करना चाहिए।

रोपा विधि:-

सामान्य तौर पर 2-3 सप्ताह के पौध रोपाई के लिये उपयुक्त होते हैं तथा एक जगह पर 2-3 पौध लगाना पर्याप्त होता है रोपाई में विलम्ब होने पर एक जगह पर 4-5 पौधे लगाना उचित होगा।


























क्र.प्रजातियाँ तथा रोपाई का समयपौधो की ज्यामिती (सें.मी. सें.मी.)
1जल्दी पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर15 * 15
2मध्यम अवधि की प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर20 * 15
3देर से पकने वाली प्रजातियाँ उपयुक्त समय पर25 * 20



जैव उर्वरको का उपयोग:-

धान में एजोस्पिरिलियम या एजोटाबेक्टर एवं पी.एस.बी. जीवाणुओं की 5 किलो ग्राम को 50 किग्रा/हैक्टेयर सूखी सड़ी हूई गोबर की खाद में मिलाकर खेत मे मिला दें। धान के रोपित खेत में (20दिन रोपाई उपरांत) 15 किग्रा/हैक्टेयर नील हरित काई का भुरकाव 3 सेमी पानी की तह रखते हुए करें।


पौषक तत्व प्रबंधन

गोबर खाद या कम्पोस्ट:-

धान की फसल में 5 से 10 टन/हेक्टेयर तक अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट का उपयोग करने से मंहगे उवैरकों के उपयोग में बचत की जा सकती है।

हरी खाद का उपयोग:-

हरी खाद के लिये सनई ढेंचा का बीज 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से रोपाई के एक महीना पहिले बोना चाहिये। लगभग एक महिने की खड़ी सनई की फसल को खेत में मचैआ करते समय मिला देना चाहिए।

उर्वरकों का उपयोग:-














































क्र.धान की प्रजातियाँउर्वराकों की मात्रा (किलों ग्राम/हेक्टेयर)
नत्रजनस्फुरपोटाश
1शीघ्र पकने वाली 100 दिन से कम40-5020.3015.20
2मध्यम अवधि 110-125दिन की,80-10030.4020.25
3देर से पकने वाली 125 दिनों से अधिक,100-12050.6030.40
4संकर प्रजातियाँ1206040


उपरोक्त मात्रा में प्रयोगों के परिणामों पर आधरित है किन्तु भूमि परीक्षण द्वारा उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण वांछित उत्पादन के लिये किया जाना लाभप्रद होगा।


उर्वरकों के उपयोग का समय व तरीका:-
















































नत्रजन उर्वराक देने का समयधान के प्रजातियों के पकने की अवधि
शीध्रमध्यमदेर
नत्रजन (:)उम्र (दिन)नत्रजन (:)उम्र (दिन)नत्रजन (:)उम्र (दिन)
बीजू धान में निदाई करके या रोपाई के 6-7 दिनों बाद50203020-252520-25
कंसे निकलते समय2535-404045-554050-60
गभोट के प्रारम्भ काल में2550-603060-703565-75


एक वर्ष के अंतर से जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से बुआई या रोपाई के समय प्रयोग करना चाहिए।


खरपतवार नियंत्रण की रासायनिक विधि






























































क्र.शाकनाषी दवा का नामदवा की व्यापारिक मात्रा/है.उपयोगका समयनियंत्रित खरपतवार
प्रेटीलाक्लोर1250 मि.ली.बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दरघास कुल के खरपतवार
2पाइरोजोसल्फयूरॉन200 ग्रामबुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दरचौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
3बेनसल्फ्युरान मिथाईल . प्रेटीलाक्लोर 6:10 कि.गा्र.बुआई/रोपाई के 2-3 दिन के अन्दरघास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
4बिसपायरिबेक सोडियम80 मि.ली.बुआई/रोपाई के 15-20 दिन के अन्दरघास कुल,मौथा कुल तथा चौड़ी पत्ती
52,4-डी1000 मि.ली.बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दरचौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
6फिनॉक्साप्रॉकप पी ईथाइल500 मि.ली.बुआई/रोपाई के 25-35 दिन के अन्दरघास कुल के खरपतवार
7क्लोरीम्यूरॉन ईथाइल . मेटसल्फयूरॉन मिथाइल20 ग्रामबुआई/रोपाई के 20-25 दिन के अन्दरचौड़ी पत्ती तथा मौथा कुल



रोग प्रबंधन -

धान की प्रमुख गौण बीमारीयों के नाम, कवक उनके लक्षण, पौधों की अवस्था, जिसमें आक्रमण होता है, निम्नानुसार हैः-



    • झुलसा रोग (करपा)












आक्रमण - पौधे से लेकर दाने बनते तक की अवस्था तक इस रोग का आक्रमण होता है। इस रोग का प्रभाव मुख्य पत्तियों, तने की गाठें, बाली पर आँख के आकार के धब्बे बनते है बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे या लालीमा लिये होते है। कई धब्बे मिलकर कत्थई सफेद रंग के बडे धब्बे बना लेते हैं, जिससे पौधा झुलस जाता है। गाठो पर या बालियों के आधार पर प्रकोप होने पर पौधा हल्की हवा से ही गाठों पर से तथा बाली के आधर से टूट जाता है।

नियंत्रण -

  • स्वच्छ खेती करना आवश्यक है खेत में पडे पुराने पौध अवषेश को भी नष्ट करें।

  • रोग रोधी किस्में का चयन करें-जैसे आदित्य, तुलसी, जया, बाला, पंकज, साबरमती, गरिमा, प्रगति इत्यादि।

  • बीजोपचार करें-बीजोपचार ट्रायसायक्लाजोल या कोर्बेन्डाजीम अथवा बोनोमील - 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से घोल बना कर 6 से 12 घंटे तक बीज को डुबोये, तत्पश्चात छाया में बीज को सुखा कर बोनी करें।

  • खडी फसल के रोग के लक्षण दिखाई देने पर ट्रायसायक्लाजोल 1 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति ली. या मेन्कोजेब 3 3 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिये।







    • भूरा धब्बा या पर्णचित्ती रोग




आक्रमण- इस रोग का आक्रमण भी पौध अवस्था से दाने बनने कर अवस्था तके होता है।

लक्षण- मूख्य रूप से यह रोग पत्तियों, पर्णछन्द तथा दानों पर आक्रमण करता है पत्तियों पर गोंल अंडाकर, आयताकार छोटे भूरे धब्बे बनते है जिससे पत्तिया झुलस जाती है, तथा पूरा का पूरा पौधा सूखकर मर जाता है। दाने पर भूरे रंग के धब्बे बनते है तथा दाने हल्के रह जाते है।

नियंत्रण-





      • खेत में पडे पुराने पौध अवषेष को नष्ट करें।

      • कोर्बेन्डाजीम- 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें।

      • खडी फसल पर लक्षण दिखते ही कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तथा निरोधक जातिया जैसे- आई आर-36 की बुवाई करें।



    • खैरा रोग












लक्षण- जस्ते की कमी वाले खेत में पौध रोपण के 2 हफ्ते के बाद ही पुरानी पत्तियों के आधार भाग में हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं, जिससे पौधा बौना रह जाता है तथा कल्ले कम निकलते है एवं जड़े भी कम बनती है तथा भूरी रंग की हो जाती है।

नियंत्रण- खैरा रोग के नियंत्रण के लिये 20-25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर बुवाई पूर्व उपयोग करें। खडी फसल में 1000लीटर पानी में 5किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 2.5किलोग्राम बिना बुझा हुआ चुने के घोल का मिश्रण बनाकर उसमें 2किलो ग्राम यूरिया मिलाकर छिड़काव करने से रोग का निदान तथा फसल की बढ़वार में वृद्धि होती है।





    • जीवाणु पत्ती झुलसा रोग-












लक्षण-इसका अक्रमण बाढ़ की अवस्था में होता है। इस रोग में पौधे की नई अवस्था में नसों के बीच पारदर्शिता लिये हुये लंबी-लंबी धरिया पड़ जाती है।, जो बाद में कत्थई रंग ले लेती है।

नियंत्रण - बीजोपचार स्ट्रेप्टोसायक्लीन 0.5 ग्राम/किलों बीज की दर से करें।





    • दाने का कंडवा (लाई फूटना)












आक्रमण- दाने बनने की अवस्था में

लक्षण- बाली के 3-4 दानें में कोयले जैसा काला पाउडर भरा होता है, जो या तो दाने के फट जाने से बाहर दिखाई देता है या बंद रहने पर सामान्यतः दाने जैसा ही रहता है, परन्तु ऐसे दाने देर से पकते है तथा हरे रहते है सूर्य की धूप निकलने से पहले देखने पर संक्रमित दानो का काला चूर्ण स्पष्ट दिखाई देता है।

नियंत्रण- इस रोग का प्रकोप अब तीव्र हो गया है। अतः बीज उपचार हेतु क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति किलो बीज उपयोग करें।
लक्षण दिखते ही प्रभावीत बाली को निकाल दें व क्लोरोथानोमिल 2 ग्राम प्रति ली. की दर से छिड़काव करें है|



कीट प्रबंधन











































कीट का नामलक्षणनियंत्रण हेतु अनुषंसित दवादवा की व्यापारिक मात्राउपयोग करने का समय एवं विधि
पत्ती लपेटक (लीफ रोलर)इस कीट की इल्ली हरे रंग की होती है, जो अपनी थूक से पत्ती के दोनोकिनारों को आपस में जोड़ देती है। बाद में पत्तियां सूख जाती हैं।ट्राइजोफॉस 40 ई.सी.प्रोफेनोफॉस 44 ई.सी. + साइपरमेथ्रिन 4 ई.सी.1 लीटर/है.750 मिली/है.कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
तना छेदकतना छेदक कीट कल्ले निकलने की अवस्था में पौध पर आक्रमण करता है एवंकेन्द्रीय भाग को हानि पहंुचाता है और परिणाम स्वरूप पौधा सूख जाता है।कार्बोफ्यूरान 3 जी या कार्टेपहाइड्रोक्लोराइड 4 जी25 किग्रा/है.कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।
भूरा भुदका तथा गंधी बगब्राउन प्लांट हापर कीट पौधों के कल्लों के बीच में जमीन की उपरी सतहपर पाये जाते हैं। इनका आक्रमण फसल की दूधिया अवस्था एवं दाने के भराव के समय होताहै। इनके रस चूसने के कारण तना सूख जाता है। गंधी वग कीट पौधों के विभिन्न भागों सेरस चूसकर हानि पहुंचाता है।एसिटामिप्रिड 20 प्रतिषत एस.पी.बुफ्रोजिन 25 प्रतिषत एस.पी.125 किग्रा/है.750 मिली/है.कीट का प्रकोप होने पर छिड़काव।



कटाई - गहाई एवं भंण्डारण

पूर्ण तरह से पकी फसल की कटाई करें। पकने के पहले कटाई करने से दाने पोचे हो जाते है। कटाई में विलम्ब करने से आने झडते है तथा चावल अधिक टूटता हैं। कटाई के बाद फसल को 1-2 दिन खेत में सुखाने के बाद खलियान में ले जाना चाहिये। खलियान में ठीक से सुखने के बाद गहाई करना चाहिये। गहाई के बाद उड़ावनी करके साफ दाना इकट्ठा करना चाहिये और अच्छि तरह धूप में सुखाने के बाद भण्डारण करना चाहीये।


उपज -

सिंचित /हे. - 50-60 क्वि
असिंचित/हे. - 35-45 क्वि.

आय व्यय का संक्षिप्त ब्यौरा- औसत उत्पादन 50 क्विं. प्रति हे. होता है और 72500 की आमदानी होती है, जिसका खर्च लगभग 35000 प्रति हे. आता है । इस प्रकार एक हेक्टर में शुद्ध लाभ 37500 /- प्राप्त होता है।


अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख पांच बिन्दु

  • जलवायु परिवर्तन को दृष्टिगत रखते हुए सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में धान की जल्दी पकने वाली संकर किस्मों (110-115 दिन में पकने वाली )की बुआई एसआरआई पद्धति से करें।

  • गहरी काली मिट्टी में वर्षा पूर्व धान की सीधी बुआई कतार में करें।

  • शीघ्र पकने वाली किस्में, जे.आर.एच.-5, 8, पी.एस.-6129, दंतेश्वरी, सहभागी, मध्यम समय में पकने वाली किस्में- डब्लू.जी.एल.-32100, पूसा सुगंधा-3, पूसा सुगंधा-5, एम.टी.यू-1010, जे आर 353 ।

  • क्रांति एवं महामाया किस्मों को प्रोत्साहित न किया जावे।

  • बासमती किस्मों से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पूसा बासमती-1121, पूसा बासमती-1509 एवं पूसा बासमती-1460 किस्मों को अधिक क्षेत्र में लगावें।

  • बुवाई कतारों में करें। अतिशीघ्र एवं शीघ्र पकने वाली किस्में को 15ग्15 से.मी. मध्यम समय में पकने वाली किस्मों को 20 ग्15 से.मी. तथा देर से पकने वाली किस्मों को 25 ग् 20 से.मी. की दूरी पर लगायें।

  • बोवाई अथवा रोपाई के 20 दिन बाद नील हरित काई 15 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।



सफलता की कहानी -










































































धान की श्री पद्धति से रिकार्ड उत्पादनकिस्म - MTU .1010
किसान का नामश्री ताराचन्द बिसेन
ग्रामसालेटेका, किरनापुर
उत्पादन वर्षखरीफ 2013-14
रकबाहेक्टर
नर्सरी, रोपा, कटाईजून, जूलाई, नवबंर 2013
उत्पादन70 क्विं./1450रू.(औसत) = 101500.00
शुद्ध लाभ (1 हेक्टर)कुल आयकुल लागत
64000.00101500.0037500.00
सामान्य धान की खेती से आय
शुद्ध लाभ (1 हेक्टर)कुल आयकुल लागत
30250.0065250.0035000.00
सामान्य धान खेती की तुलना में श्री पद्धति धानफसल उत्पादन से अतिरिक्त लाभ
अतिरिक्त लाभसंकर धान बीज उत्पादन से आयसामान्य धान खेती से आय
33750.0064000.00
30250.00


  • कम बीज मात्र 7.50 किलोंग्राम प्रति हेक्टर परहा लगाने मेंबहुत कम मजदुरी कीट बिमारीयों का कम प्रकोप।;

  • प्रति हेक्टर अधिक आय।

  • कृषिविज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिको के मार्गदर्शनमें आधुनिक पद्धति से खेती करने पर अधिक उत्पादन व सामाजिक व आर्थिक साख बढ़ी।



















सफलता की कहानी


























































































धान की श्री पद्धति से रिकार्ड उत्पादनजे.आर.एच-5
किसान का नामश्री लखन लाल पाॅचे
ग्रामनक्षी, किरनापुर
उत्पादन वर्षरबी जायद 2013-14
रकबा0.75 एकड़
नर्सरीदिसम्बर 2013
रोपाजनवारी 2014
कटाईमई 2014
उत्पादनसंकर बीज (मादा) 4.25 क्विं./12500रू.(औसत) =53125
नर 8 क्विं./1325रू. =10600 =10600
कुल आय63725
शुद्ध लाभ (0.75 हेक्टर)कुल आयकुल लागत
50225.0063725.0013500.00
सामान्य धान की खेती से आय
शुद्ध लाभ (0.75हेक्टर)कुल आयकुल लागत
15000.0026500.0011500.00
सामान्य धान खेती की तुलना में संकर धान बीज उत्पादनसे अतिरिक्त लाभ
अतिरिक्त लाभसंकर धान बीज उत्पादन से आयसामान्य धान खेती से आय
35225.0050225.00
15000.00


  • कम (100) दिनों में तैयार होने वाली संकर किस्म का गुणवत्तायुक्त, उन्नत बीज से निश्चित रूप से किसानों की उत्पादकता बढ़ेगी।

  • 100 प्रति हेक्टर अतिरिक्त कृषि मजदूरों को रोजगार मिलेगा

  • संकर बीज उत्पादन से रबी जायद में धान उगाने वाले क्षेत्र में उपरोक्तानुसार अतिरिक्त आय





 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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