टमाटर

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टमाटर की जैविक खेती topic





  1. टमाटर की जैविक खेती की तैयारी

  2. मिट्टी का उपचार

  3. बिजाई का ढंग एवम् क्यारी की देखभाल

  4. प्रोट्रेज में पौध तैयार करना

  5. नर्सरी लगाना

  6. बीजों में अंतराल (नर्सरी)

  7. पौध को संसाधित करना

  8. मृदा की उर्वरकता का प्रबंधन

  9. प्रतिरोपण और अंतराल (मुख्य खेत)

  10. सिंचाई और पानी की आवश्यकता

  11. कांट-छांट तथा सहारा देना

  12. परंपरागत विधियां और खरपतवार प्रबंधन

  13. फसल की सुरक्षा

  14. तुड़ाई एवं पैदावार

  15. भण्डारण

  16. बीज उत्पादन








टमाटर की जैविक खेती की तैयारी


मिट्टी

टमाटर की जैविक खेती के लिए आमतौर पर जंगल की मिट्टी 1 भाग + रेत 1 भाग तथा गली सड़ी खाद 1 भाग का मिश्रण तैयार किया जा सकता है जिसमें पानी सोखने की क्षमता अच्छी होती है।

क्यारी का आकार

क्यारी लगभग 1 मी. चौड़ी तथा 6 इंच ऊंची होनी चाहिए, लम्बाई जरूरत के अनुसार रखें। क्यारी जो 3 मी. लम्बी, एक मी. चौड़ी तथा 6 इंच ऊंची आकार की हो, में 20-25 कि.ग्रा. गली सड़ी गोबर की खाद तथा 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट मिलायें। क्यारी सीधी तथा समतल रखें ताकि बीच में पानी खड़ा न हो।

मिट्टी का उपचार


(क) सौर ऊर्जा द्वारा

सौर ऊर्जा से भूमि को रोगाणुरहित करने की इस तकनीक में भूमि को गर्मियों में सफर पारदर्शी पॉलीथिन से ढके, जिससे सौर ऊर्जा संचित होती है तथा भूमि का तापमान बढ़ने से इसमें उपस्थित रोगाणु या तो निष्क्रिय हो जाते हैं या मर जाते हैं। सौर ऊर्जा से भूमि के तापमान में वृद्धि भूमि के सामान्य तापमान की अपेक्षा 5 सें.मी. गहराई पर 10-12 सैल्सियस तक और इससे भी अधिक दर्ज की गई है। यह तकनीक भूमिजनित फफूद जैसे कि फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया तथा स्क्लैरोशियम आदि के बीजाणुओं को 40 दिनों में सौर ऊर्जा उपचार से पूरी तरह नष्ट करने में सक्षम है।

(ख) फार्मलीन विधि द्वारा

मिट्टी का उपचार फार्मलीन 1 भाग को 7 भाग पानी में मिलाकर 8-10 लीटर मिश्रण प्रति वर्ग मीटर में डालें तथा उसे पॉलीथिन की चादर से 7 दिनों तक ढक कर रखें। इसके बाद चादर को हटाकर समय-समय पर मिट्टी को हिलाते रहें। यह क्रिया तब तक करें जब तक दवाई की गंध इसमें न रहे, अन्यथा बीज के अंकुरण पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा।टमाटर खेती की पूरी जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

टमाटर की उन्नत किस्में



  • टमाटर की देशी किस्में: पूसा शीतल, पूसा-120, पूसा रूबी, पूसा गौरव, अर्का विकास, अर्का सौरभ और सोनाली प्रमुख हैं।

  • टमाटर की हाइब्रिड किस्में: पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा हाईब्रिड-4, रश्मि और अविनाश-2 प्रमुख हैं।


भारत में टमाटर की सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म- अर्का रक्षक


भारत में टमाटर की खेती करने वाले किसानों के बीच टमाटर की अर्का रक्षक किस्म काफी लोकप्रिय हो रही है। इसकी वजह ये हैं कि एक तरफ तो इस किस्म से बंपर पैदावार मिलती है वहीं दूसरी ओर इसमें टमाटर में लगने वाले प्रमुख रोगों से लडऩे की क्षमता अन्य किस्मों से अधिक है। साथ ही अर्का रक्षक का फल काफी आकर्षक और बाजार की मांग के अनुरूप होता है। इसलिए किसानों का रूझान इस किस्म की ओर बढ़ रहा है।

क्या है अर्का रक्षक किस्म की विशेषताएं / लाभ


यह किस्म भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बेंगलुरू की ओर से वर्ष 2010 में इजाद की गई थी। संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक और सब्जी फसल डिवीजन के प्रमुख एटी सदाशिव का कहना है कि यह भारत की पहली ऐसी किस्म है जो त्रिगुणित रोग प्रतिरोधक होती है। इसमें पत्ती मोडक़ विषाणु, जीवाणुविक झुलसा और अगेती अंगमारी जैसे रोगों से लडऩे की क्षमता है। वहीं इसके फल का आकार गोल, बड़े, गहरे लाल और ठोस होता है। वहीं फलों का वजन 90 से 100 ग्राम तक होता है। जो बाजार की मांग के अनुकूल हैं।

एक एकड़ में होती है 500 क्विंटल की पैदावार / टमाटर की उन्नत उत्पादन तकनीक


डॉ सदाशिव के अनुसार टमाटर की इस किस्म में अन्य किस्मों की तुलना में कम लागत आती है। जबकि मुनाफा जबदस्त होता है। इसकी फसल 150 दिन में तैयार हो जाती है। पैदावार के मामले में यह टमाटर की अन्य किस्मों की तुलना में अधिक उत्पादन देने वाली है। इससे प्रति हेक्टेयर 190 टन का उत्पादन लिया जा सकता है। वहीं प्रति एकड़ 45 से 50 टन का उत्पादन होता है। प्रति क्विंटल के हिसाब से उत्पादन देखें तो एक एकड़ में टमाटर की बुवाई करने पर 500 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है। वहीं अन्य किस्मों से काफी कम पैदावार प्राप्त होती है।

टमाटर की बुवाई का सही समय



  • जनवरी में टमाटर के पौधे की रोपाई के लिए किसान नवंबर माह के अंत में टमाटर की नर्सरी तैयार कर सकते हैं। पौधों की रोपाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में करना चाहिए।

  • यदि आप सितंबर में इसकी रोपाई करना चाहते हैं तो इसकी नर्सरी जुलाई के अंत में तैयार करें। पौधे की बुवाई अगस्त के अंत या सितंबर के पहले सप्ताह में करें।

  • मई में इसकी रोपाई के लिए मार्च और अप्रैल माह में नर्सरी तैयार करें। पौधे की बुवाई अप्रैल और मई माह में करें।


टमाटर की पौधे कैसे तैयार करें


खेत में रोपने से पहले टमाटर के पौधे नर्सरी में तैयार किए जाते हैं। इसके लिए नर्सरी को 90 से 100 सेंटीमीटर चौड़ी और 10 से 15 सेंटीमीटर उठी हुई बनाना चाहिए। इससे नर्सरी में पानी नहीं ठहरता है। वहीं निराई-गुड़ाई भी अच्छी तरह हो जाती है। बीज को नर्सरी में 4 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। टमाटर के बीजों की बुवाई करने के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बीज की नर्सरी में बुवाई से पहले 2 ग्राम केप्टान से उपचारित करना चाहिए। वहीं खेत में 8-10 ग्राम कार्बोफुरान 3 जी प्रति वर्गमीटर के हिसाब से डालना चाहिए। टमाटर के पौधे जब 5 सप्ताह बाद 10-15 सेंटीमीटर के हो जाए तब इन्हें खेत में बोना चाहिए। यदि आप एक एकड़ में टमाटर की खेती करना चाहते हैं तो इसके लिए टमाटर के 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होगी।

Benefits of eating tomato and its information | टमाटर खाने के फायदे और इसकी जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

बिजाई का ढंग एवम् क्यारी की देखभाल


उपचारित बीज को पंक्तियों में 5 सें.मी. की दूरी पर बोये तथा पंक्तियों को मिट्टी तथा गोबर के मिश्रण से ढके। बिजाई के तुरन्त बाद क्यारी को सूखी घास से ढक लें। मौसम के अनुसार एक या दो बार सिंचाई करें। क्यारी में घनी बिजाई न करें तथा अधिक पानी भी न दें अन्यथा पौधों में कमर तोड रोग फैलने की संभावना रहती है। जब पौधे 8-10 सैं.मी. लम्बे हो जाये तो पंचगव्य के घोल का छिड़काव करें, जिससे पौधों में हरापन ज्यादा रहता है। समय पर खरपतवार निकालते रहें तथा हल्की गुड़ाई के बाद अवांछनीय पौधों को निकाल दें। 4-6 सप्ताह में जब पौधे 10-15 सें.मी. ऊंचे हो जाते हैं तो पौधों में पानी देना कम कर दें तथा जिस दिन पौधों का रोपण करना हो उससे 1-2 घंटे पूर्व खूब पानी दें ताकि पौध बिना जड़ टूटे सरलता से उखाड़ी जा सके। रोपण शाम के समय कर एकमद सिंचाई करें। जब तक पौधे अच्छी तरह स्थापित न हो जायें, हर रोज सिंचाई करें।

प्रोट्रेज में पौध तैयार करना


टमाटर की पौध तैयार करने के लिए प्लास्टिक ट्रे जिसमें 3 इंच सुराख हो लें तथा इन्हें दो प्रकार के मिश्रणों से भरा जा सकता है। पहला जिसमें एक भाग गली सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट तथा एक भाग कोकोपीट हो, दूसरा जिसमें तीन भाग कोकोपीट | एक भाग केचुआ खाद तथा एक भाग वर्मीकुलाईट हो। ट्रे के एक-एक छिद्र में एक ही उपचारित बीज डालें। इन मिश्रणों के प्रयोग से पौधों में विभिन्न प्रकार के मिट्टी जनित रोग नहीं लगते तथा पौध स्वस्थ तथा सुदृढ़ बनती है। रोपण के बाद पौधे मरते नहीं तथा फसल उपज जल्दी तथा अधिक निकलती है।

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नर्सरी लगाना


सबसे पहले टमाटर की पौध तैयार की जाती है। नर्सरी बिजाई का उचित समय निम्न है-

  • निचले पर्वतीय क्षेत्र - जून- जुलाई (बारानी क्षेत्र)


नवम्बर - फरवरी (सिंचित क्षेत्र)

  • मध्य पर्वतीय क्षेत्र -   फरवरी-मार्च (सिंचित अवस्था)


मई-जून (आंशिक सिंचित बारानी)

  • ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र - रोपण योग्य पौध को निचले क्षेत्रों में तैयार करना तथा अप्रैल-मई में स्थानांतरण करना।


बीजों में अंतराल (नर्सरी)


बीजों की बुआई लगभग 5 सें.मी. गुणा 2 सें.मी. के अंतराल पर और 0.5 सें.मी. से 1 सैं.मी. की गहराई पर की जानी चाहिए। पानी लगाने के बाद क्यारियों को नमी बरकरार रखने के लिए घास और सूखी टहनियों से ढक देना चाहिए। ऐसा करने से कीटों और रोगों को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी।

पौध को संसाधित करना


पौध को चूषक कीटों जैसे सफेद मक्खी (वाइट फ्लाई) और कीटों से बचाव के लिए 15 दिन पुरानी पौध पर नीम के साबुन का छिड़काव (7 ग्रा0 /लीटर) किया जाता है। प्रतिरोपण (बुआई से 20 दिन बाद) से 2-3 दिन पूर्व पानी में थोड़ी कमी कर और प्रतिरोपण से 1-2 दिन पूर्व उन्हें सीधे धूप के संपर्क में लाकर पौध को सख्त किया जाता है। खेत में प्रतिरोपण से 12 घंटे पूर्व पौध को अच्छी तरह पानी दें। एक अच्छी पौध मजबूत और 4 से 5 पत्ते (लगभग 4 सप्ताह पुरानी) वाली होती है। पत्तों के रोगों से बचाव के लिए पौध को प्रतिरोपण से पूर्व सुडोनोमास फ्लोरोसेन्स (10 ग्रा0 /लीटर) में भिगोया जाता है। टमाटर की नर्सरी पौध की जड़ को 15-30 मिनट तक हींग के घोल (एक बर्तन में 5 लीटर पानी में लगभाग 100 ग्राम हींग मिलाएं और अच्छी तरह हिलायें) में डुबोएं और मुरझाने संबंधी मृदा जनित रोग कारकों से बचाव के लिए पौध को मुख्य खेत में प्रतिरोपित करें।

मृदा की उर्वरकता का प्रबंधन


दाल/फलीदार जैसी दलहनी परिवार की फसलों के साथ आवर्तन से मृदा में नाइट्रोजन की स्थिति समृद्ध होती है। आखिरी बार जुताई करते समय 8-10 टन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से लगभग 40 टन भली भांति अपघटित गोबर की खाद अथवा वर्मी कम्पोस्ट/कम्पोस्ट खाद का प्रयोग किया जाता है। खाद के 500 ग्रा0 प्रति टन की दर से ट्राईकोडर्मा के साथ गोबर की खाद का प्रयोग किया जा सकता है। 1 मीटर के अंतराल पर मेंढ़ और नाली बनाई जाती है और मेंढ़ बनाते समय और प्रतिरोपण के 7 सप्ताह बाद भी 250 कि0ग्रा0/है0 के हिसाब से नीम की खली का प्रयोग किया जाता

प्रतिरोपण और अंतराल (मुख्य खेत)


अच्छी वायु प्रवाह और पर्णीय रोगों को तेजी से फैलाव को न्यूनतम करने के लिए टमाटर की जैविक खेती के लिए 60 सें.मी. X 45 सें.मी. बौनी किस्मों के लिए तथा 90 सैंमी. x 30 सें.मी. ऊंची किस्मों के अंतराल की सिफारिश की जाती है। पॉली हाऊस में पंक्तियों की दूरी 70-90 सें.मी. रखी जाती है।

सिंचाई और पानी की आवश्यकता


प्रतिरोपण के तत्काल बाद, फूल आने के दौरान और फल के विकास होने के दौरान टमाटर पानी की कमी के प्रति सर्वाधिक संवेदी होता है। फसल की अच्छी बढ़ौतरी के लिए, सही समय पर नालियां बनाना तथा ड्रिप सिंचाई प्रभावी होती है।

प्रात:काल मुरझाने से पता चलता है कि फसल की सिंचाई की जानी चाहिए। शुष्क मौसम के दौरान प्रतिरोपण के बाद पहले 3-4 दिन के अंतराल पर सिंचाई और तदोपरांत फसल तैयार होने तक 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए।

कांट-छांट तथा सहारा देना


लम्बी किस्मों में अधिक ऊंचाई के कारण सहारे की आवश्यकता होती है जिसके लिए तने की सतह से पौधों को प्लास्टिक की सुतली या रस्सी से सहारा दिया जाता है। टमाटर के पौधे में मुख्य तने ही रखें तथा इनमें निकलने वाली अन्य शाखाओं को समय-समय पर निकालते रहें।

पौधों को सहारा देने से फल मिट्टी और पानी के सम्पर्क में नहीं आते जिससे वे सड़ने वाले रागों से बचे रहते हैं। इस क्रिया से प्रति वर्ग मी. ज्यादा पौध भी रोपी जा सकती है, जिससे उत्पादन में भी वृद्धि रहती है।

परंपरागत विधियां और खरपतवार प्रबंधन


खरपतवार हाथ द्वारा खरपतवार निकालने से मृदा ढीली हो जाएगी। निराई प्रतिरोपण के बाद तीसरे और सातवें सप्ताह में की जा सकती है। दूसरी निराई के दौरान मृदा से उखाड़ा जा सकता है। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए फसल चक्र अपनाएं, फसल को ढके और पलवार (मल्चिंग) करें। पंक्तियों में, मल्चिंग बनाकर खरपतवार को नियंत्रित कर सकते हैं। ये तिनके अथवा निराई गई घास से जैविक मल्च भी हो सकती है I




मिट्टी





इस फसल की खेती  अलग-अलग मिट्टी की किस्मों में की जा सकती है जैसे कि रेतली,  चिकनी,  दोमट,  काली,  लाल मिट्टी,  जिसमें पानी के निकास का सही प्रबंध हो। इसकी अच्छी पैदावार के लिए इसे अच्छे निकास वाली रेतली मिट्टी में उत्तम जैविक तत्वों से उगाया जा सकता है। अच्छे निकास वाली मिट्टी की पी एच 7-8.5 होनी चाहिए। यह तेजाबी और खारी मिट्टी में भी उगने योग्य फसल है। ज्यादा तेजाबी मिट्टी में खेती ना करें। अगेती फसल के लिए हल्की मिट्टी लाभदायक है, जबकि अच्छी पैदावार के लिए चिकनी, दोमट और बारीक रेत वाली मिट्टी बहुत अच्छी है।




प्रसिद्ध किस्में और पैदावार




Punjab Ratta : इस किस्म की पहली तुड़ाई 125 दिनों में तैयार होती है। इसकी औसतन पैदावार 225 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। यह किस्म कईं तरह के उत्पाद तैयार करने के लिए भी प्रयोग की जाती है।


Punjab Chhuhara : यह किस्म बीजों के बिना, नाशपाती के आकार की, लाल और मोटे छिल्के वाली होती है। इसकी क्वालिटी कटाई के बाद 7 दिन तक मंडी में बेचनेयोग्य होती है। इसलिए इसे लंबी दूरी वाली स्थानों पर लिजाकर नए उत्पाद तैयार करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसकी औसतन पैदावार 325 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab Tropic :  इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 100 सैं.मी. होती है। यह कटाई के लिए 141 दिनों में तैयार हो जाती है। इस किस्म के टमाटर का आकार बड़ा और गोल होता है और यह गुच्छों में लगते हैं। इसकी औसतन पैदावार 90-95 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab Upma : यह किस्म वर्षा वाले मौसम के लिए अनुकूल है। इस किस्म का आकार अंडाकार और दरमियाना होता है। इसका रंग गहरा लाल होता है। इसकी औसतन पैदावार 220 कि्ंवटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab NR -7 : इस किस्म के पौधे छोटे होते हैं और इसके टमाटर दरमियाने आकार के और रसीले होते हैं। यह सोके और जड़ गलने की रोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 175-180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab Red Cherry : यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई है। इस किस्म को खास सलाद के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका रंग गहरा लाल होता है और भविष्य में यह पीले, संतरी और गुलाबी रंग में भी उपलब्ध होगी। इसकी बिजाई अगस्त या सितंबर में की जाती है और फरवरी में यह कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह जुलाई तक पैदावार देती है। इसकी अगेती पैदावार 150 क्विंटल प्रति एकड़ और कुल औसतन पैदावार 430-440 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab Varkha Bahar 2 : पनीरी लगाने के बाद 100 दिनों में यह किस्म कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पत्ता मरोड़ बीमारी रोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 215 कि्ंवटल प्रति एकड़ है।


Punjab Varkha Bahar 1 : पनीरी लगाने के बाद 90 दिनों में यह किस्म कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह किस्म वर्षा के मौसम के लिए अनुकूल है। यह पत्ता मरोड़ बीमारी की रोधक किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 215 क्विंटल प्रति एकड़ है।


HS 101 : यह उत्तरी भारत में सर्दियों के समय लगाई जाने वाली किस्म है। इसके पौधे छोटे होते हैं। इस किस्म के टमाटर गोल और दरमियाने आकार के और रसीले होते हैं। यह गुच्छों के रूप में लगते हैं। यह पत्ता मरोड़ बीमारी की रोधक किस्म है।

 

Punjab Swarna: यह किस्म 2018 में जारी हुई है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। इसके फल अंडाकार, संतरी रंग के और दरमियाने होते हैं। इस किस्म की पहली तुड़ाई पनीरी लगाने के 120 दिनों के बाद की जाती है। मार्च के अंत तक इस किस्म की औसतन पैदावार 166 क्विंटल प्रति एकड़ और कुल उपज 1087 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। यह किस्म सलाद के तौर पर प्रयोग करने के लिए अनुकूल है।



Punjab Sona Cherry: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 425 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल पीले रंग के और गुच्छों में निकलते हैं। फल का औसतन भार लगभग 11 ग्राम होता है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 7.5 प्रतिशत होती है।


Punjab Kesari Cherry: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 405 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इस किस्म के फल का औसतन भार लगभग 11 ग्राम होता है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 7.6 प्रतिशत होती है।

 

Punjab Kesar Cherry: यह किस्म 2016 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 405 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इस किस्म के फल का औसतन भार लगभग 11 ग्राम होता है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 7.6 प्रतिशत होती है।

 

Punjab Varkha Bahar-4: यह किस्म 2015 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 245 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 3.8 प्रतिशत होती है।


Punjab Gaurav: यह किस्म 2015 में जारी की गई है। इसकी औसतन उपज 934 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।इसमें सुक्रॉस की मात्रा 5.5 प्रतिशत होती है।


Punjab Sartaj: यह किस्म 2009 में जारी की गई है। इस किस्म के फल गोल आकार के, मध्यम और सख्त होते हैं। यह किस्म बारिश के मौसम के लिए उपयुक्त है। इसकी औसतन उपज 898 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


TH-1: यह किस्म 2003 में जारी की गई है। इस किस्म के फल गहरे लाल रंग के, गोल आकार के और भार लगभग 85 ग्राम होता है। इसकी औसतन उपज 245 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।


Punjab Swarna: यह किस्म 2018 में जारी की गई है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। इस किस्म के फल अंडाकार होते हैं जो संतरी रंग के और मध्यम आकार के होते हैं। इसकी पहली तुड़ाई रोपाई के 120 दिन बाद की जानी चाहिए। अंत मार्च तक इसकी औसतन पैदावार 166 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। और यह 1087 क्विंटल प्रति एकड़ उपज देती है। यह सीधे तौर पर खाने के लिए उपयुक्त किस्म है।



दूसरे राज्यों की किस्में 


HS 102 : यह किस्म जल्दी पक जाती है। इस किस्म के टमाटर छोटे और दरमियाने आकार के गोल और रसीले होते हैं।


Swarna Baibhav Hybrid :  इस किस्म की सिफारिश पंजाब, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसकी बिजाई सितंबर-अक्तूबर में की जाती है। इसकी क्वालिटी लंबी दूरी वाले स्थानों पर ले जाने और अन्य उत्पाद बनाने के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी औसतन पैदावार 360-400 क्विंटल प्रति एकड़ है।


Swarna Sampada Hybrid : इस किस्म की सिफारिश पंजाब, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसकी बिजाई के लिए अनुकूल समय अगस्त-सितंबर और फरवरी-मई है। यह झुलस रोग और पत्तों के मुरझाने  की रोधक किस्म है। इसकी औसतन पेदावर 400-420 क्विंटल प्रति एकड़ है।


Keekruth : इसके पौधे की ऊंचाई 100 सैं.मी. होती है। यह फसल 136 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म के टमाटर दरमियाने से बड़े आकार के, गोल और गहरे लाल रंग के होते हैं।


Keekruth Ageti : इसके पौधे की ऊंचाई 100 सैं.मी. होती है। इस किस्म के टमाटर दरमियाने से बड़े आकार के और गोल होते हैं जो ऊपर से हरे होते हैं। पकने के समय इनका रंग बदल जाता है।






ज़मीन की तैयारी





टमाटर के पौधे लगाने के लिए अच्छी जोताई और समतल मिट्टी की जरूरत होती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 4-5 बार जोताई करें। फिर मिट्टी को समतल करने के लिए सुहागा लगाएं। आखिरी बार हल से जोताई करते समय इसमें अच्छी किस्म की रूड़ी की खाद और कार्बोफिउरॉन 4 किलो प्रति एकड़ या नीम केक 8 किलो प्रति एकड़ डालें। टमाटर की फसल को बैड बनाकर लगाया जाता है, जिसकी चौड़ाई 80-90 सैं.मी. होती है। मिट्टी के अंदरूनी रोगाणुओं, कीड़ों और जीवों को नष्ट करने के लिए मिट्टी को सूरज की किरणों में खुला छोड़ दें। पारदर्शी पॉलीथीन की परत भी इस काम के लिए प्रयोग की जा सकती है। यह परत सूर्य की किरणों को सोखती है, जिससे मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और यह मिट्टी के अंदरूनी रोगाणुओं को मारने में सहायक होती है।




पनीरी की देख-रेख और रोपण




बिजाई से एक महीना पहले मिट्टी को धूप में खुला छोड़ दें। नर्सरी में बीजों को 1.5 सैं.मी. चौड़े और 20 सैं.मी. ऊंचे बैडों पर बोयें। बिजाई के बाद बैडों को प्लास्टिक शीट से ढक दें और फूलों को पानी देने वाले डब्बे से रोज़ सुबह बैडों की सिंचाई करें। रोगाणुओं के हमले से फसल को बचाने के लिए नर्सरी वाले बैडों को अच्छे नाइलोन के जाल से ढक दें।


पनीरी लगाने के 10-15 दिन बाद 19:19:19 के साथ सूक्ष्म तत्वों की 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। पौधों को तंदरूस्त और मजबूत बनाने के लिए बिजाई के 20 दिन बाद लीहोसिन 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। प्रभावित पौधों को खेत में से उखाड़ दें ताकि पौधों का फासला सही रखा जा सके और निरोग पौधों को रोगाणुओं से भी बचाया जा सके। रोगाणुओं से बचाव के लिए मिट्टी में नमी बनाये रखें। यदि सोका दिखे तो पौधों को बिजाई से पहले मैटालैक्सिल 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में 2-3 बार भिगोयें।


बिजाई से 25-30 दिन बाद पनीरी वाले पौधे तैयार हो जाते हैं और इनके 3-4 पत्ते निकल आते हैं। यदि पौधों की आयु 30 दिन से ज्यादा हो तो इसके उपचार के बाद इसे खेत में लगायें। पनीरी उखाड़ने के 24 घंटे पहले बैडों को पानी लगायें ताकि पौधे आसानी से उखाड़े जा सकें।


फसल को शुरूआती विकास के समय मुरझाने के लिए नए पौधों को स्ट्रैपटोसाइकलिन घोल 1 ग्राम 40 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई से पहले 30 मिनट के लिए भिगोयें।






बिजाई




बिजाई का समय

उत्तरी राज्यों में, बसंत के समय टमाटर की पनीरी नवंबर के आखिर में बोयी जाती है और जनवरी के दूसरे पखवाड़े में खेत में लगाई जाती है। पतझड़ के समय पनीरी की बिजाई जुलाई-अगस्त में की जाती है और अगस्त-सितंबर में यह खेत में लगा दी जाती है। पहाड़ी इलाकों में इसकी बिजाई मार्च-अप्रैल में की जाती है और अप्रैल-मई में यह खेत में लगा दी जाती है।


फासला

किस्म और विकास के ढंग मुताबिक 60x30 सैं.मी. या 75x60 सैं.मी. या 75x75 सैं.मी. का फासला रखें। पंजाब में छोटे कद वाली किस्म के लिए 75x30 सैं.मी. का फासला रखें और वर्षा वाले मौसम के लिए 120-150x30 सैं.मी. का फासला रखें।


बीज की गहराई

नर्सरी में बीजों को 4 सैं.मी. गहराई में बोयें और मिट्टी से ढक दें।


बिजाई का ढंग 

पनीरी को उखाड़कर खेत में लगा दें।







बीज




बीज की मात्रा

एक एकड़ में पनीरी उगाने के लिए 100 ग्राम बीज की मात्रा का प्रयोग करें।


बीज का उपचार

फसल को मिट्टी से होने वाली बीमारियों और कीड़े मकौड़ों से बचाने के लिए बीजों को बिजाई से पहले थीरम 3 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इसके बाद टराइकोडरमा 5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। बीज को छांव में रख दें और फिर बिजाई के लिए प्रयोग करें।


















फंगसनाशी/कीटनाशी दवाई मात्रा (प्रति किलोग्राम बीज)
Carbendazim3 gm
Thiram3 gm





खाद





खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)













UREASSPMURIATE OF POTASH
13015545

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)













NITROGENPHOSPHORUSPOTASH
602525

 
खेत की तैयारी के समय अच्छी तैयार की हुई रूड़ी की खाद 10 टन प्रति एकड़ डालें और मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। नाइट्रोजन 60 किलो (130 किलो यूरिया), फासफोरस 25 किलो (155 किलो एस एस पी) और पोटाश 25 किलो (45 किलो एम ओ पी) की मात्रा प्रति एकड़ में प्रयोग करें। पनीरी लगाने से पहले शुरूआती खुराक के तौर पर आधा हिस्सा नाइट्रोजन को और पूरा हिस्सा फासफोरस और पोटाश का डालें। पनीरी लगाने के 20-30 दिन बाद बाकी बची नाइट्रोजन का चौथा हिस्सा डालें। पनीरी लगाने के दो महीने बाद बाकी बची यूरिया डाल दें।


WSF:  पनीरी लगाने के 10-15 दिन बाद 19:19:19 के साथ सूक्ष्म तत्वों 2.5-3 ग्राम प्रति लीटर में मिलाकर स्प्रे करें। कम तापमान के कारण पौधे तत्वों को कम सोखते हैं और इससे पौधे के विकास पर भी प्रभाव पड़ता है। इस तरह की स्थितियों में फोलियर स्प्रे पौधे के विकास में मदद करती है। शाखाएं और टहनियां निकलने के समय 19:19:19  या 12:61:00 की 4-5 ग्राम प्रति लीटर स्प्रे करें। पौधे के अच्छे विकास  और पैदावार के लिए पनीरी लगाने के 40-50 दिन बाद 10 दिनों के फासले पर ब्रोसिनोलाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ को 150 मि.ली. प्रति एकड़ को 150 लीटर पानी में मिलाकर दो बार स्प्रे करें।


अच्छी क्वालिटी और पैदावार प्राप्त करने के लिए फूल निकलने से पहले 12:61:00 मोनो अमोनियम फासफेट 10 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। जब फूल निकलने शुरू हो जाएं तो शुरूआती दिनों में बोरेन 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह फूल और टमाटर के झड़ने को रोकेगा। कईं बार टमाटरों पर काले धब्बे देखे जा सकते हैं जो कैल्शियम की कमी से होते हैं। इसको रोकने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अधिक तापमान में फूल गिरते दिखें तो एन ए ए 50 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने पर करें। टमाटर के विकास के समय पोटाश और सलफेट (00:00:50+18S) की 3-5 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। यह टमाटर के विकास और बढ़िया रंग के लिए उपयोगी होती है। टमाटर में दरार आने से इसकी क्वालिटी कम हो जाती है और मूल्य भी 20 प्रतिशत कम हो जाता है। इसे रोकने के लिए चिलेटड बोरेन 200 ग्राम प्रति एकड़ प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे फल पकने के समय करें। पौधे के विकास, फूल और फल को बढ़िया बनाने के लिए बायोज़ाइम धनज़ाइम 3-4 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे महीने में दो बार करें। मिट्टी में नमी बनाई रखें।

 




खरपतवार नियंत्रण





थोड़े थोड़े समय बाद गोडाई करते रहें और जड़ों को मिट्टी लगाएं। 45 दिनों तक खेत को नदीन रहित रखें। यदि नदीन नियंत्रण से बाहर हो जायें तो यह 70-90 प्रतिशत पैदावार कम कर देंगे। पनीरी लगाने के 2-3 दिन बाद फ्लूकोरेलिन 800 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे बिजाई से पहले वाले नदीन नाशक के तौर पर करें। यदि नदीन जल्दी उग रहे हों तो नदीन नाशक के तौर पर सैंकर 300 ग्राम प्रति एकड़ की स्प्रे करें। नदीनों पर नियंत्रण डालने और ज़मीन का तापमान कम करने के लिए पॉलीथीन की परत का प्रयोग कर सकते हैं।




सिंचाई





सर्दियों में 6 से 7 दिनों के फासले पर सिंचाई करें और गर्मियों के महीने में मिट्टी में नमी के मुताबिक 10-15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें। सोके के बाद ज्यादा पानी देने से टमाटरों में दरारें आ जाती हैं। फूल निकलने के समय सिंचाई महत्तवपूर्ण होती है। इस समय पानी की कमी से फूल झड़ सकते हैं और फल के साथ साथ पैदावार पर भी प्रभाव पड़ता है। बहुत सारी जांचों के मुताबिक यह पता चला है कि हर पखवाड़े में आधा इंच सिंचाई करने से जड़ें ज्यादा फैलती हैं और इससे पैदावार भी अधिक हो जाती है।




पौधे की देखभाल






पत्ते का सुरंगी कीड़ा




  • हानिकारक कीट और रोकथाम


पत्ते का सुरंगी कीड़ा : यह कीट पत्तों को खाते हैं और पत्ते में टेढी मेढी सुरंगे बना देते हैं। यह फल बनने और प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर भी असर करता है।


शुरूआती समय में नीम सीड करनल एक्सट्रैक्ट 5 प्रतिशत 50 ग्राम लीटर पानी की स्प्रे करें। इस कीड़े पर नियंत्रण करने के लिए डाईमैथोएट 30 ई सी 250 मि.ली.या स्पीनोसैड 80 मि.ली.में 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।









सफेद मक्खी



सफेद मक्खी : यह पत्तों में से रस चूसकर पौधों को कमज़ोर बनाती है। यह शहद की बूंद की तरह के पत्तों पर काले धब्बे छोड़ती है। यह पत्ता मरोड़ बीमारी का भी कारण बनते हैं।


नर्सरी में बीजों की बिजाई के बाद, बैड को 400 मैस के नाइलोन जाल के साथ या पतले सफेद कपड़े से ढक दें। यह पौधों को कीड़ों के हमले से बचाता है। इनके हमले को मापने के लिए पीले फीरोमोन कार्ड प्रयोग करें, जिनमें ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा हों सफेद मक्खी को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को जड़ों से उखाड़कर नष्ट कर दें। ज्यादा हमला होने पर एसिटामिप्रिड 20 एस पी 80 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी या ट्राइज़ोफोस 250 मि.ली.प्रति 200 लीटर या प्रोफैनोफोस 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह स्प्रे 15 दिन बाद दोबारा करें।









थ्रिप्स



थ्रिप्स : यह टमाटरों में आम पाया जाने वाला कीट है। यह विशेष कर शुष्क मौसम में पाया जाता है। यह पत्तों का रस चूसता है, जिस कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। पत्तों का आकार कप की तरह हो जाता है और यह ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं। इससे फूल झड़ने भी शुरू हो जाते हैं।


इनकी गिणती देखने के लिए स्टीकी ट्रैप 6-8 प्रति एकड़ में लगाएं। इन्हें रोकने के लिए वर्टीसीलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि थ्रिप की मात्रा ज्यादा हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल @60 मि.ली या फिप्रोनिल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 2.5 मि.ली.प्रति लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 600 ग्राम प्रति 200 लीटर या स्पाइनोसैड 80 मि.ली.प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।









फल छेदक



फल छेदक : यह टमाटर का मुख्य कीट है। यह हेलीकोवेरपा के कारण होता है, जिसे सही समय पर यदि कंटरोल ना किया जाये तो यह 22-37 प्रतिशत तक फसल को नुकसान पहुंचाता है। यह पत्ते, फूल और फल खाता है। यह फलों पर गोल छेद बनाता है और इसके गुद्दे को खाता है।


शुरूआती नुकसान के समय इसके लारवे को हाथों से भी इकट्ठा किया जा सकता है। शुरूआती समय में HNPV या नीम के पत्तों का घोल 50 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। फल बेधक को रोकने के लिए फेरोमोन कार्ड बराबर दूरी पर पनीरी लगाने के 20 दिनों के बाद लगाएं प्रभावित हिस्सों को नष्ट कर दें। यदि कीड़ों की गिणती ज्यादा हो तो सपानोसैड 80 मि.ली.+ स्टिकर 400 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। शाख और फल बेधक को रोकने के लिए कोराज़न 60 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।


 








जूं



जूं : यह एक खतरनाक कीड़ा है जो 80 प्रतिशत तक पैदावार कम कर देता है। यह कीट पूरे संसार में फैला हुआ है। यह पत्तों को नीचे की ओर से खाता है। प्रभावित पत्ते कप के आकार में नज़र आते हैं। इसका हमला बढ़ने से पत्ते सूखने और झड़ने लग जाते हैं और शाखाएं नंगी हो जाती हैं।


यदि खेत में पीली जुंएं और थ्रिप का हमला देखा जाये तो क्लोफैनापियर 15 मि.ली.प्रति 10 लीटर, एबामैक्टिन 15 मि.ली.10 लीटर या फैनाज़ाकुइन 100 मि.ली.प्रति 100 लीटर असरदार सिद्ध होगा। अच्छे नियंत्रण के लिए स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली.प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करें।










फल का गलना




  • बीमारियां और रोकथाम


फल का गलना : यह टमाटर की प्रमुख बीमारी है जो मौसम के परिवर्तन के कारण होती है। टमाटरों पर पानी के फैलाव जैसे धब्बे बन जाते हैं। फल गलने के कारण बाद में यह काले और भूरे रंग में बदल जाते हैं।


बिजाई से पहले बीजों को ट्राइकोडरमा 5-10 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम या थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। यदि खेत में इसका हमला दिखे तो प्रभावित और नीचे गिरे हुए फल और पत्ते इकट्ठे करके नष्ट कर दें। यह बीमारी ज्यादातर बादलवाइ वाले मौसम में पाई जाती है, इसे रोकने के लिए मैनकोज़ेब 400 ग्राम या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 300 ग्राम या क्लोरोथैलोनिल 250 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह स्प्रे 15 दिन बाद दोबारा करें।









ऐंथ्राक्नोस



ऐंथ्राक्नोस: गर्म तापमान और ज्यादा नमी वाली स्थिति में यह बीमारी ज्यादा फैलती है। इस बीमारी से पौधे के प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे पड़ जाते हैं। यह धब्बे आमतौर पर गोलाकार, पानी के साथ भीगे हुए और काली धारियों वाले होते हैं। जिन फलों पर ज्यादा धब्बे हों वे पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी गिरावट आ जाती है।


यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो इसे रोकने के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।


 








झुलस रोग



झुलस रोग : यह टमाटर की खेती में आम पाई जाने वाली प्रमुख बीमारी है। शुरू में पत्तों पर छोटे भूरे धब्बे होते हैं। बाद में ये धब्बे तने और फल के ऊपर भी दिखाई देते हैं। पूरी तरह विकसित धब्बे भद्दे और गहरे भूरे हो जाते हैं जिनके बीच में गोल सुराख होते हैं। ज्यादा हमला होने पर इसके पत्ते झड़ जाते हैं।


यदि इसका हमला देखा जाये तो मैनकोज़ेब 400 ग्राम या टैबूकोनाज़ोल 200 मि.ली.प्रति 200 लीटर की स्प्रे करें। पहली स्प्रे से 10-15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें। बादलवाइ वाले मौसम में इसके फैलने का ज्यादा खतरा होता है। इसे रोकने के लिए क्लोरोथैलोनिल 250 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी की स्प्रे करें। अचानक होने वाली वर्षा भी इस बीमारी के बढ़ने में मदद करती है, इसे रोकने के लिए कॉपर वाले फंगसनाशी 300 ग्राम प्रति लीटर$ स्ट्रैपटोसाइकलिन 6 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।










मुरझाना और पत्तों का झड़ना



मुरझाना और पत्तों का झड़ना : यह बीमारी नमी वाली या बुरे निकास वाली मिट्टी में होती है। यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है। इससे तना पानी में डुबोने से मुरझाया हुआ दिखता है और मुरझाना शुरू हो जाता है। इससे पौधे निकलने से पहले ही मर जाते हैं। यदि यह बीमारी नर्सरी में आ जाये तो यह सारे पौधों को नष्ट कर देती है।


जड़ों के गलने से रोकने के लिए 1 प्रतिशत यूरिया 100 ग्राम प्रति 10 लीटर और कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी को मिट्टी में मिलाएं। पौधे को मुरझाने से बचाने के लिए नजदीक की मिट्टी में कॉपर आक्सी क्लोराइड 250 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी मिलाएं। ज्यादा पानी देने से तापमान और नमी में वृद्धि हो जाती है, जिससे जड़ें गलने का खतरा बढ़ जाता है। इसे रोकने के लिए ट्राइकोडरमा 2 किलो प्रति एकड़ को रूड़ी के साथ पौधे की जड़ों के नजदीक डालें। मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम.प्रति लीटर या बोरडो मिक्स 10 ग्राम प्रति लीटर को मिट्टी में मिलाएं। इससे एक महीने बाद 2 किलो ट्राइकोडरमा प्रति एकड़ को 100 किलो रूड़ी में मिलाकर डालें।











पत्तों पर धब्बे



पत्तों पर धब्बे : इस बीमारी से पत्तों के निचली ओर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। यह बीमारी पौधे को भोजन के रूप में प्रयोग करती है। जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह आमतौर पर पुराने पत्तों पर फल बनने में थोड़ा समय पहले या फल बनने के समय हमला करती है। पर यह फसल के विकास के समय किसी भी स्थिति में हमला कर सकती है। ज्यादा हमले की स्थिति में पत्ते झड़ने शुरू हो जाते हैं।


खेत में पानी ना खडा होने दें और खेत की सफाई रखें। बीमारी को रोकने के लिए हैकसा कोनाज़ोल के साथ स्टिकर 1 मि.ली.प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अचानक वर्षा की स्थिति में इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। धीरे-धीरे हो रहे नुकसान की स्थिति में पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की 2-3 बार 10 दिनों के फासले पर स्प्रे करें।






फसल की कटाई




पनीरी लगाने के 70 दिन बाद पौधे फल देना शुरू कर देते हैं। कटाई का समय इस बात पर निर्भर करता है कि फलों को दूरी वाले स्थानों पर लेकर जाना है या ताजे फलों को मंडी में ही बेचना है आदि। पके हरे टमाटर जिनका 1/4 भाग गुलाबी रंग का हो, लंबी दूरी वाले स्थानों पर लेकर जाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। ज्यादातर सारे फल गुलाबी या लाल रंग में बदल जाते हैं, पर सख्त गुद्दे वाले टमाटरों को नज़दीक की मंडी में बेचा जा सकता है। अन्य उत्पाद बनाने और बीज तैयार करने के लिए पूरी तरह पके और नर्म गुद्दे वाले टमाटरों का प्रयोग किया जाता है।





कटाई के बाद





कटाई के बाद आकार के आधार पर टमाटरों को छांट लिया जाता है। इसके बाद टमाटरों को बांस की टोकरियों या लकड़ी के बक्सों में पैक कर लिया जाता है। लंबी दूरी पर लिजाने के लिए टमाटरों को पहले ठंडा रखें ताकि इनके खराब होने की संभावना कम हो जाये। पूरी तरह पके टमाटरों से जूस, सीरप और कैचअप आदि उत्पाद भी तैयार किए जाते हैं।



 


फसल की सुरक्षा


 

कीट प्रबंधन

टमाटर की फसल को बहुत से नाशी कीट जैसे कटवा कीड़ा, फल छेदक, फल मक्खी, माईट, सफेद मक्खी, सुरंगी कीड़ा, जड़ गांठ, सूत्रकृमि इत्यादि हानि पहुंचाते हैं, जो टमाटर की पैदावार ही कम नहीं करते बल्कि इसकी गुणवत्ता पर भी प्रभाव डालते हैं। टमाटर में लगने वाले नाशी कीटों का वर्णन नीचे दिया गया है I































कटवा कीड़ा

 
इस कीट का प्रकोप टमाटर के पौधे रोपने के कुछ दिनों बाद ही शुरू हो जाता है। विशेषकर मार्च व अप्रैल में इसका प्रकोप अधिक होता है। इस कीट की सुंडियां बड़े आकार तथा भूरे रंग या गहरे रंग की होती हैं। इन सुंडियों के प्रौढ़ गहरे भूरे या गेहूं रंग के आकार के होते हैं जो कि लगभग 5-6 सै.मी. के आकार के होते हैं। इनके पंख हल्के सफेद रंग के होते हैं।

रोकथाम

क्योंकि इस कीट की सुंडियों मिट्टी के अंदर रहती हैं इसलिए इससे बचाव के लिए पूर्ण रूप से गली-सड़ी खाद का प्रयोग करना चाहिए।

  • खेत को तैयार करते समय मिट्टी को जीवामृत से उपचारित करें।

  • जहां प्रकोप अधिक दिखाई दें वहां नीम, तेल का छिड़काव करें। ।

  • जिस खेत में प्रत्येक वर्ष टमाटर लगाए जा रहे हों वहां रोपित सब्जियों का चक्र न अपनाएं।


फल छेदकयह टमाटर का मुख्य कीट है। इसके पतंगे मोटे व पीले भूरे रंग के होते हैं, जबकि पीछे के पंख हल्के भूरे सफेद रंग के होते हैं। इस कीट की सुंडियां हल्के भूरे रंग या गुलाबी रंग की होती हैं, जिनके शरीर के दोनों तरफ लंबाई की ओर दो भूरे रंग की लाइनें होती हैं। इस कीट के अंडे छोटे, गोल तथा हल्के पीले रंग के होते हैं। यह कीट मार्च-अप्रैल में सक्रिय होता है और प्रौढ़ रात्रि में प्रकाश की ओर आकर्षित होते हैं। इस कीट की मादा टमाटर के ऊपर के पत्तों पर नीचे की तरफ या ऊपर की तरफ अंडे देती हैं, जिनमें से सुंडियां निकलकर पत्तों को छिलने लगती हैं। अधिक प्रकोप की अवस्था में 70-80 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचता है।

रोकथाम

  • जब टमाटर में फूल आ रहे हों तो उस समय बेसिलस थूरिनजैन्सिस वार कुर्सटाकी 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें और 15 दिन बाद पुन: छिड़काव करें।


फल मक्खीफल मक्खी का नियंत्रण करना काफी मुश्किल है। यह पंख वाली व मध्यम आकार की होती है। इसका शरीर हल्के भूरे रंग का होता है तथा दोनों पंखों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे होते हैं। प्रौढ़ के पैर हल्के पीले रंग के होते हैं, जबकि सुंडियां हल्के सफेद रंग की तथा बिना पैर वाली होती हैं। इस मक्खी की मादा टमाटर में डंडी वाले स्थान पर या उसके आसपास अंडे देती है। इस कीट की सुंडियां ही नुकसान पहुंचाती हैं जो कि टमाटर के अंदर घुसकर उसके गूदे को खाती हैं, जिससे फल सड़ जाता है और बाद में जमीन में गिर जाता है।

रोकथाम

  • जून- जुलाई में वर्षा शुरू होने पर इस कीट के प्रौढ़ दिखाई देने लगते हैं।

  • रोगग्रस्त फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें तथा जमीन में 10-15 सें.मी. गहराई में दबा देना चाहिए।

  • नीम, तेल का छिड़काव भी इसके प्रकोप को कम करता है।


माईटइस नाशी जीव के प्रौढ़ बहुत छोटे, हल्के रंग के या हल्के पीले रंग के होते हैं तथा शरीर के पृष्ठ भाग में दो धब्बे होते हैं। यह जीव पत्तों पर मकड़ी की तरह जाला बनाता है।

रोकथाम

  • इस कीट की रोकथाम के लिए नीम के बीजों को पीसकर पाउडर बनाकर पानी | में घोलकर तथा इस घोल को कपड़े से छानकर पांच प्रतिशत के हिसाब से पानी में घोल बनाकर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।


सफेद मक्खीयह कीट बहुत छोटा होता है, जिसके चारों पंख सफेद होते हैं। निम्फ बहुत ही छोटे तथा पत्तों के निचले भाग में चिपके होते हैं। प्यूपा के शरीर में विशेष प्रकार की संख्या में बाल होते हैं। इस कीट के प्रौढ़ तथा निम्फ दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा यह कीट चीनीनुमा पदार्थ भी छोड़ता है, जिससे सारा पत्ता चिपचिपा हो जाता है। और इससे बीमारियां पैदा हो जाती हैं, जो कि बाद में पौधे की प्रकाश संश्लेषण क्रिया को हानी पहुंचाती है।

रोकथाम

  • इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम (1-3 मि.ली. प्रति लीटर पानी) | का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें।

  • पीले ट्रेप्स का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।


सुरंगी कीड़ा

 
यह दो पंखों वाला बहुत छोटा कीट है, जिसके पृष्ठ भाग का रंग पीला होता है तथा पीठ के ऊपर पीला धब्बा होता है। यह पत्तों में सुरंगें बनाते हैं जो कि कीट की विशेष पहचान है। मादा पत्ते के अंदर अंडे देती है, जिसमें से कुछ दिनों बाद सुंडियां निकलती हैं जो पत्तों में सुरंग बनाती हैं और यह पत्तों के अंदर जाकर पत्तों का हरा पदार्थ चूस लेती हैं, जिससे क्लोरोफिल बनने की क्रिया कम हो जाती है और पौधा कमजोर होता रहता है, जो पैदावार पर बुरा असर डालता है।

रोकथाम

इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम (1-3 मि.ली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें।
जड़ गांठ सूत्रकृमि

 
जड़ गांठ सूत्रकृमि टमाटर के पौधों को तीन प्रकार से भारी नुकसान पहुंचाते हैं -

  • पौधों की कोशिकाओं से अपना भोजन प्राप्त करके।

  • जड़ों की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करके।


सूत्रकृमि द्वारा किए गए जख्मों हानिकारक फफूद, जीवाशु इत्यादि सूक्ष्म जीव आसानी से प्रवेश कर जाते हैं।

सूत्रकृमि अक्सर जड़ों पर पलते हैं। जिससे जड़े मिट्टी से जरूरी तत्व व पानी नहीं ले पाती और पौधों के ऊपरी भागों पर कई तरह के विकार पैदा हो जाते हैं। जैसे कि -

  • पौधों की बढ़ौतरी रूकना।

  • पत्तियों का पीला पड़ना।

  • शाखाओं का कम निकलना।

  • खेतों में टुकड़ों में पीले छोटै छितराए पौधे दिखना।

  • फूल व फलों के लगने में कमी आना।

  • पौधों का ऊपर से नीचे की ओर सूखना।


रोकथाम

  • खेतों की 2-3 बार जुताई करने के बाद 15-20 दिनों के लिए धूप में खुला छोड़ दें, जिससे सूत्रकृमि ऊपर आकर धूप की गर्मी से मर जाते हैं।

  • यदि जुताई के बाद खेतों को पॉलीथिन की चादर से 3-6 सप्ताह ढककर रखें तो भी बेहतर नियंत्रण होगा।

  • टमाटर की फसल के बाद खेतों में लहसुन, प्याज, तिल, बाथू, मक्की, पालक एवं गेंदे या गुलदाऊदी फसलें लगाएं, जिससे सूत्रकृमियों की संख्या में भारी गिरावट आती है।



बीमारियां



































कमर तोड़ रोग (पिथियम,फाइटोप्थोरा, फ्यूजेरियम प्रजातियां तथा राइजोक्टोनिया सोलेनाई)

 
टमाटर व अन्य सब्जियों जैसे शिमला मिर्च, मिर्च, बैंगन, बंद गोभी, फूल गोभी, ब्रॉकली, प्याज इत्यादि का एक महत्वपूर्ण रोग है। इस रोग के लक्षण पौधों पर दो रूप में दिखाई देते हैं। बीज अंकुर भूमि की सतह से निकलने से पहले ही रोगग्रस्त हो जाते हैं तथा मर जाते हैं। बाद में इस रोग का आक्रमण पौधों के तनों पर होता है तथा तने का विगलन होने पर पौधे भूमि की सतह पर लुढ़क जाते हैं तथा मर जाते हैं।

रोकथाम

  • पौध को जालीनुमा घर में ही उगाएं।

  • पौधशाला का स्थान हर वर्ष बदलें।

  • पौधशाला की मिट्टी का उपचार फार्मलीन (1 भाग फार्मलीन तथा 7 भाग पानी) या सौर ऊर्जा से करें।

  • बिजाई से पूर्व बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा से करें।

  • पानी उतना ही दें जितनी जरूरत है। अधिक पानी पौधे को रोगग्राही बनाता है।


बकाई फल सड़न रोग

Power tiller VST RT 65
इस फल के लक्षण फलों पर ही दिखाई देते हैं तथा फलों पर हल्के तथा गहरे भूरे रंग के गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं जो हिरण की आंख की तरह लगते हैं। रोगग्रस्त फल प्रायः जमीन पर गिर जाते हैं तथा सड़ जाते हैं।

रोकथाम

  • पौधे को झाबे का सहारा देकर सीधा खड़ा रखें।

  • भूमि की सतह से 15-20 सें.मी. तक की पत्तियों को तोड़ दें।

  • वर्षाकाल के आरंभ होते ही उपयुक्त पानी निकास नालियां बनाएं।

  • समय-समय पर रोगग्रस्त फलों को इकट्ठा करके गड्ढे में दबा दें।

  • वर्षाकाल के आरंभ होने से पहले खेत की सतह पर चील या घास की पत्तियों का बिछौना बिछाएं।

  • फसल के दौरान खेतों में गौमूत्र, पंचगव्य, खट्टी लस्सी इत्यादि का छिड़काव करते रहें।


पछेता झुलसा रोग

 
इस रोग के लक्षण अगस्त के अंतिम व सितंबर माह के पहले सप्ताह में पत्तों पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे काले धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं। नमी व ठंडे मौसम में यह धब्बे फैलने लगते हैं तथा 3-4 दिनों में पौधे पूरी तरह झुलस जाते हैं। फलों पर भी गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

रोकथाम

  • फसल चक्र अपनाएं, खेत में उपयुक्त पानी की निकास नालियां बनाएं तथा खरपतवार को नियंत्रण में रखें।


रोगग्रस्त फलों तथा पत्तियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
पत्तों का धब्बा रोगपत्तों पर गहरे भूरे रंग के गोलाकार चक्रनुमा धब्बे बनते हैं जो लक्ष्य पटल की तरह दिखाई देते हैं और नमी वातावरण में यह धब्बे आपस में मिल जाते हैं और भूरे रंग के हो जाते हैं और समय से पहले पीले पड़ जाते हैं तथा गिर जाते हैं।

रोकथाम

  • रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।

  • फसल चक्र अपनाएं तथा खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।

  • स्वस्थ फलों से ही बीज निकालें।

  • बीज का ट्राइकोडर्मा से उपचार करें।

  • भूमि से 15-20 सें.मी. की ऊंचाई तक के पत्तों को तोड़ दें ताकि हवा का प्रभाव ठीक हो सके।


पाउडरी मिल्ड्यू रोग

 
इस फफूद के लक्षण पत्तों की निचली सतह पर चूर्णी धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जिससे पत्तों की ऊपरी सतह पीली पड़ जाती है और पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं।

रोकथाम

  • पंचगव्य का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

  • जल निकास का उचित प्रबंध करें।

  • ट्रिकोडर्मा हर्जियाम (10 ग्रा0/लीटर पानी) स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स (10 ग्रा0/लीटर पानी) बेसिलस सबटिल्स (12 ग्रा0/लीटर पानी) का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।


मुझन रोग (राल्सटोनिया

सोलेनेसियरम)
रोगग्रस्त पौधों के पत्ते बिना पीले पड़े ही नीचे की ओर झुक जाते हैं तथा बाद में पूरा पौधा मुरझा जाता है और मर जाता है। फलों पर सफेद रंग से घिरे छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

रोकथाम

  • रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को नष्ट करें।

  • फसल चक्र अपनाएं तथा रोगग्रस्त भूमि में कम से कम टमाटर की फसल तीन वर्ष तक न लगाएं।

  • रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें तथा बीज को ट्राईकोडर्मा से उपचारित करें।

  • खेत तैयार करते समय ब्लीचिंग पाउडर (10 कि.ग्रा./हैक्टेयर) मिट्टी में मिलाएं तथा हल्की सिंचाई करें।

  • रोगग्रस्त खेतों में रोग प्रतिरोधक संकर किस्में जैसे कि सन सीड 7711 का ही रोपण करें।

  • रोगग्रस्त पौधों को निकाल कर नष्ट करें।


चित्तीदार मुझन रोग (टोमैटो स्पॉटिड विल्ट विषाणु)इस रोग से ग्रस्त पौधों के पत्तों का रंग कांस्य की तरह हो जाता है। पत्ते मुड़ जाते हैं। और पौधों की लंबाई भी कम हो जाती है। फलों की सतह पर लाल-पीले रंग के चक्र बनते हुए धब्बे भी दिखाई देते हैं। विषाणु की अपेक्षा टोमैटो स्पॉटिड विल्ट विषाणु की मार क्षमता बहुत अधिक है। शिमला मिर्च, लेट्यूस, मटर, तम्बाकू, आलू, टमाटर और बहुत सी सजावटी पौधों की प्रजातियां इस विषाणु की मुख्य परिपोषक फसलें हैं।

रोकथामबागवानी प्रभाग(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

  • पौध को जालीनुमा घर में उगाएं ताकि थ्रिप्स पौधशाला में प्रवेश न कर पाएं।

  • यदि फसल पर रोग के लक्षण दिखाई दे तो तत्काल प्रभावित पौधों को जड़ से निकाल कर नष्ट कर दें तथा फसल पर नीम के तेल का छिड़काव करें।


मोजेक (टोमैटो मोजेक

विषाणु)

 
रोगग्रस्त पौधों के पत्तों पर हल्के व गहरे रंग की चित्तियां दिखाई देती हैं तथा छोटे पत्ते कभी - कभी विकृत हो जाते हैं। पत्तों का आकार भी कम हो जाता है। इस रोग को कोई भी रोगवाहक कीट संचारित नहीं करता। यह विषाणू रोगी बीज या भूमि में रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों में कई माह तक जीवित रहता है।

रोकथाम

  • इस विषाणु को आसरा देने वाले खरपतवारों को नष्ट कर दें।

  • विषाणु मुक्त बीज के उपयोग से इस रोग की तीव्रता में काफी कमी आ जाती है

  • फसल चक्र अपनाते रहें।



तुड़ाई एवं पैदावार


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टमाटर के फलों की तुड़ाई इस बात पर निर्भर करती है कि उन्हें कितनी दूर ले जाना है। सामान्यतः फलों को हरी परिपक्व जब फल के निचले भाग के एक चौथाई हिस्से में गुलाबी रंग आ जाए ऐसी अवस्था में तोड़कर दूर मंडियों में भेजा जा सकता है। सामान्य किस्मों की पैदावार 300-400 क्विंटल/हैक्टेयर तथा संकर किस्मों की 450-500 क्विंटल/हैक्टेयर है परन्तु औसतन पैदावार कई संकर प्रजातियों में अधिक भी हो सकती है।

भण्डारण


टमाटर का भण्डारण 10-15° सै. तापमान और 80-85 प्रतिशत सापेक्षित आर्द्रता में 30 दिन तक किया जा सकता है जब फलों का तुड़ान हरे रंग से पीले रंग में परिवर्तित हो रहा हो। पके हुए टमाटर 5 सै. तापमान पर 10 दिन तक रखे जा सकते हैं।

बीज उत्पादन


टमाटर स्वपरगित फसल होते हुए भी इसमें 2-5 प्रतिशत तक परागण आ सकते हैं। अतः बीज उत्पादन करते समय दो किस्मों के मध्य 50 से 100 मीटर की दूरी रखनी चाहिए। बीज प्राप्ति के लिये स्वस्थ पौधों का जिनमें एक जैसे आकार तथा रंग के फल लगते हो का चुनाव करना चाहिए। पूर्ण रूप से पक जाने पर ही बीज के लिए फलों का तुड़ान करना चाहिए। फलों से बीज मुख्यतः दो विधियों से निकाला जा सकता है –

1) किण्वन विधि

इस विधि में टमाटर के गुद्दे को किसी मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में किण्वीकरण के लिए 3- + दिनों तक रखते हैं। इसके बाद इसमें पानी डाला जाता है जिससे मुद्दा एवं छिलका तैरने लगता है तथा बीज नीचे बैठ जाते हैं। इसके बाद बीज को छाया में सुखाकर बंद लिफाफों में रख दिया जाता है। इस विधि में फल का कोई भी भाग खाने के काम नहीं आता है।

2) अम्लोपचार विधि

बड़े स्तर पर यदि बीज उत्पादन करना हो तो इस विधि का प्रयोग करें। फलों का गुद्दा इसमें खाने में लाया जाता है। 14 किलो पके हुए टमाटर के फलों में 100 मि.ली. व्यापारिक हाईड्रोक्लोरिक अम्ल गुर्दे के साथ अच्छी तरह मिलाकर 30 मिनट तक रख लें तथा इतने में ही बीज गुद्दा लसलसे पदार्थ से अलग हो जाता है। अम्लीय घोल में से बीजों को निथार कर साफ पानी में धोकर छाया में सुखायें। गोल किस्मों में 125-150 कि.ग्रा. तथा नाशपाती आकार वाली किस्मों में 75-100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर बीज प्राप्त किया जा सकता है। संकर बीज उत्पादन के लिए हमेशा नर व मादा जातियों का संकरण करना पड़ता है।


टमाटर खेती की पूरी जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)




टमाटर की उन्नत उत्पादन तकनीक





  1. आदर्श तापमान

  2. भूमि

  3. टमाटर की किस्में

  4. बीज की मात्रा और बुवाई

  5. बीज उपचार

  6. नर्सरी एवं रोपाई

  7. उर्वरक का प्रयोग

  8. सिंचाई

  9. मिट्‌टी चढ़ाना व पौधों को सहारा देना (स्टेकिंग)

  10. खरपतवार नियंत्रण

  11. प्रमुख कीट एवं रोग

  12. एकीकृत कीट एवं रोग नियंत्रण

  13. फलों की तुड़ाई,उपज एवं विपणन







आदर्श तापमान


टमाटर की फसल पाला नहीं सहन कर सकती है। इसकी खेती हेतु आदर्श तापमान 18. से 27 डिग्री से.ग्रे. है। 21-24 डिग्री से.ग्रे तापक्रम पर टमाटर में लाल रंग सबसे अच्छा विकसित होता है। इन्हीं सब कारणों से सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते हैं। तापमान 38 डिग्री से.ग्रे से अधिक होने पर अपरिपक्व फल एवं फूल गिर जाते हैं।

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भूमि


उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि जिसमे पर्याप्त मात्रा मे जीवांश उपलब्ध हो।

टमाटर की किस्में


देसी किस्म-पूसा रूबी, पूसा-120,पूसा शीतल,पूसा गौरव,अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली

संकर किस्म-पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड -2, पूसा हाइब्रिड-4, अविनाश-2, रश्मि तथा निजी क्षेत्र से शक्तिमान, रेड गोल्ड, 501, 2535उत्सव, अविनाश, चमत्कार, यू.एस.440 आदि।


बीज की मात्रा और बुवाई


बीजदर

एक हेक्टयेर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने हेतु लगभग 350 से 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है। संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है।

बुवाई

वर्षा ऋतु के लिये जून-जुलाई तथा शीत ऋतु के लिये जनवरी-फरवरी। फसल पाले रहित क्षेत्रों में उगायी जानी चाहिए या इसकी पाल से समुचित रक्षा करनी चाहिए।

बीज उपचार


बुवाई पूर्व थाइरम/मेटालाक्सिल से बीजोपचार करें ताकि अंकुरण पूर्व फफून्द का आक्रमण रोका जा सके।


नर्सरी एवं रोपाई



  • नर्सरी मे बुवाई हेतु 1X 3 मी. की ऊठी हुई क्यारियां बनाकर फॉर्मल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन कर लें अथवा कार्बोफ्यूरान 30 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिलावें।

  • बीजों को बीज कार्बेन्डाजिम/ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित कर 5 से.मी. की दूरी रखते हुये कतारों में बीजों की बुवाई करें। बीज बोने के बाद गोबर की खाद या मिट्‌टी ढक दें और हजारे से छिड़काव -बीज उगने के बाद डायथेन एम-45/मेटालाक्सिल से छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।

  • 25 से 30 दिन का रोपा खेतों में रोपाई से पूर्व कार्बेन्डिजिम या ट्राईटोडर्मा के घोल में पौधों की जड़ों को 20-25 मिनट उपचारित करने के बाद ही पौधों की रोपाई करें। पौध को उचित खेत में 75 से.मी. की कतार की दूरी रखते हुये 60 से.मी के फासले पर पौधों की रोपाई करें।

  • मेड़ों पर चारों तरफ गेंदा की रोपाई करें। फूल खिलने की अवस्था में फल भेदक कीट टमाटर की फसल में कम जबकि गेदें की फलियों/फूलों में अधिक अंडा देते हैं।



उर्वरक का प्रयोग


20 से 25 मैट्रिक टन गोबर की खाद एवं 200 किलो नत्रजन,100 किलो फॉस्फोरस व 100किलो पोटाश। बोरेक्स की कमी हो वहॉ बोरेक्स 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करने से फल अधिक लगते हैं।

सिंचाई


सर्दियों में 10-15 दिन के अन्तराल से एवं गर्मियों में 6-7 दिन के अन्तराल से हल्का पानी देते रहें। अगर संभव हो सके तो कृषकों को सिंचाई ड्रिप इर्रीगेशन द्वारा करनी चाहिए।

मिट्‌टी चढ़ाना व पौधों को सहारा देना (स्टेकिंग)


टमाटर मे फूल आने के समय पौधों में मिट्‌टी चढ़ाना एवं सहारा देना आवश्यक होता है। टमाटर की लम्बी बढ़ने वाली किस्मों को विशेष रूप से सहारा देने की आवश्यकता होती है। पौधों को सहारा देने से फल मिट्‌टी एवं पानी के सम्पर्क मे नही आ पाते जिससे फल सड़ने की समस्या नही होती है। सहारा देने के लिए रोपाई के 30 से 45 दिन के बाद बांस या लकड़ी के डंडों में विभिन्न ऊॅचाईयों पर छेद करके तार बांधकर फिर पौधों को तारों से सुतली बांधते हैं। इस प्रक्रिया को स्टेकिंग कहा जाता है।


खरपतवार नियंत्रण



  • आवश्यकतानुसार फसलों की निराई-गुड़ाई करें। फूल और फल बनने की अवस्था मे निंदाई-गुड़ाई नही करनी चाहिए।

  • रासायनिक दवा के रूप मे खेत तैयार करते समय फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन) या से रोपाई के 7 दिन के अंदर पेन्डीमिथेलिन छिड़काव करें।


प्रमुख कीट एवं रोग


प्रमुख कीट- हरा तैला, सफेद मक्खी, फल छेदक कीट एंव तम्बाकू की इल्ली





प्रमुख रोग-आर्द्र गलन या डैम्पिंग ऑफ, झुलसा या ब्लाइट, फल संडन

एकीकृत कीट एवं रोग नियंत्रण



  • गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।

  • पौधशाला की क्यारियॉ भूमि धरातल से ऊंची रखे एवं फोर्मेल्डिहाइड द्वारा स्टरलाइजेशन करलें।

  • क्यारियों को मार्च अप्रैल माह मे पॉलीथीन शीट से ढके भू-तपन के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।

  • गोबर की खाद मे ट्राइकोडर्मा मिलाकर क्यारी में मिट्‌टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।

  • पौधशाला की मिट्‌टी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिड़काव करें।

  • पौध रोपण के समय पौध की जड़ों को कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा के घोल मे 10 मिनट तक डुबो कर रखें।

  • पौध रोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से ३ छिड़काव इमीडाक्लोप्रिड या एसीफेट के करें। माइट की उपस्थिति होने पर ओमाइट का छिड़काव करें।

  • फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए इन्डोक्साकार्ब या प्रोफेनोफॉस का छिड़काव ब्याधि के उपचार के लिए बीजोपचार, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोजेब से करना चाहिए। खड़ी फसल मेंं रोग के लक्षण पाये जाने पर मेटालेक्सिल + मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का धोल बनाकर छिड़काव करें। चूर्णी फंफूद होने सल्फर धोल का छिड़काव करें।


फलों की तुड़ाई,उपज एवं विपणन


जब फलों का रंग हल्का लाल होना शुरू हो उस अवस्था मे फलों की तुड़ाई करें तथा फलों की ग्रेडिंग कर कीट व व्याधि ग्रस्त फलों दागी फलों छोटे आकार के फलों को छाटकर अलग करें। ग्रेडिंग किये फलों को केरैटे में भरकर अपने निकटतम सब्जी मण्डी या जिस मण्डी मे अच्छा टमाटर का भाव हो वहां ले जाकर बेचें। टमाटर की औसत उपज 400-500 क्विंटल/है. होती है तथा संकर टमाटर की उपज 700-800 क्विंटल/है. तक हो सकती है।



टमाटर की प्रति हेक्टेयर कृषि लागत व्यय (रुपये में)







































































क्र.विवरणमात्रा एवं दर प्रति इकाईलागत (रु.)
1.

क.

ख.
भूमि की तैयारी

जुताई की संख्या

मजदूरों की संख्या
02, दर 500/- प्रति घंटा

06, दर 150/-
1000

900
2.







स.

ख.
खाद एवं उर्वरक

गोबर की खाद 10 टन, 2 वर्ष में एक बार

नत्रजन

फास्फोरस

पोटाश

(मृदा परीक्षण के अनुसार) मजदूरों की संख्या
1000/-प्रति टन,

200 किलोग्राम दर 12.40/-

100 किलोग्राम दर 32.70/-

100 किलोग्राम दर 19.88/-

20, दर 150/-
10000

2480

3270

1988

3000
3.

क.

पौधों को सहारा देना (स्टेकिंग)

बॉस एवं वायर

मजदूरों की संख्या
50, दर 150/-31000

7500
4.क.



बीज की मात्रा

बुआई पर

मजदूरों की संख्या
200 ग्राम दर 400/10 ग्राम

15, दर 150/-
8000

2250
5.क.

सिंचाई संख्या

मजदूर
10

10 दर 150/-
5000

1500
6.निंदाई

मजदूरों की संख्या
40 दर 150/-6000
7.फसल सुरक्षा

ट्रायजोफॉस

इमीडाक्लोप्रिड

एसीफेट

प्रोफेनोफॉस

मजदूरों की संख्यासूरजमुखी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)
2 बार, दर 450/-

2 बार, दर 200/-

2 बार, दर 160/-

2 बार, दर 500/-

16 दर 150/-
900

400

320

1000

2400
तुड़ाई (मजदूरों की संख्या)40 दर 150/-6000
कुल लागत88158
कुल आय (औसतन पैदावार 600 क्विंटल प्रति हेक्टयर)480000
शुद्ध लाभ391842


फ्रेंचबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

धान(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)


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