शिमला मिर्च की जैविक खेती

शिमला मिर्च की जैविक खेती





शिमला मिर्च की जैविक खेती





  1. भूमि का चयन और तैयारी

  2. बुआई का समय

  3. अनुमोदित किस्में

  4. बीज का उपचार

  5. बीज दर और अन्तराल

  6. मृदा उर्वरक प्रबन्धन

  7. सिंचाई व जल प्रबन्धन

  8. खरपतवार प्रबन्धन

  9. पौध संरक्षण




शिमला मिर्च इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच 6 से 6.5 होना चाहिए। इसके अलावा बलुई दोमट मिट्टी में भी शिमला मिर्च की खेती को किया जा सकता है, लेकिन तब जब मिट्टी में अधिक खाद व उसके पौधे का समय समय से सिंचाई का प्रबंधन अच्छे से किया गया हो । शिमला मिर्च की खेती के लिए नर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है ।





भूमि का चयन और तैयारी


शिमला मिर्च मध्य क्षेत्रों की एक प्रमुख नकदी फसल है। इसकी काश्त हिमाचल प्रदेश में करना। मुख्य तौर पर सोलन, सिरमौर, कांगड़ा, मंडी, कुल्लू व चम्बा में की जाती है। शिमला मिर्च की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मध्यम रेतीली दोमट भूमि उपुयक्त होती है। मृदा की पीएच 5.5 से 6.8 तथा जैविक कार्बन 1 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। मृदा में पीएच स्तर, जैविक कार्बन, गौण पोषक तत्व (एनपीके), सूक्ष्म पोषक तत्व तथा खेत में सूक्ष्म जीवों के प्रभाव की मात्रा की जांच करवाने हेतू वर्ष में एक बार मृदा परीक्षण जरूरी है। यदि जैविक कार्बन तत्व एक प्रतिशत से कम हो तो खेत में 20-25 टन/हे० गोबर की खाद का प्रयोग करें तथा खेत में भली प्रकार से 2-3 बार हल चलाकर गोबर को मिलाएं। हर बुआई के बाद सुहागा प्रयोग में लायें ताकि खेत में किसी प्रकार के ढेले न रहें और खेत अच्छी प्रकार समतल हो।

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बुआई का समय


निचले पर्वतीय क्षेत्र - फरवरी से मार्च

मध्य पर्वतीय क्षेत्र - मार्च से मई

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र - रोपण योग्य पौध को निचले या मध्य पर्वतीय क्षेत्रे से लाना या पौध को नियन्त्रण वातावरण में इस तरह तैयार करें ताकि अप्रैल-मई में रोपाई हो सके। बीज अंकुरण के समय तापमान 20° सैल्सियस होना चाहिए। जब पौध 10-15 सें.मी. ऊंची हो जाए तो खेत में शाम के समय इसकी रोपाई करें। रोपाई के बाद सिंचाई करना और कुछ दिनों तक सुबह-शाम पानी देना अति आवश्यक है।

अनुमोदित किस्में


केलीफोर्निया वन्डर, यलो वन्डर, सोलन भरपूर, भारत, सोलन संकर -1, सोलन संकर -2,

इंदिरा, डौलर एवं स्थानीय किस्में।

बीज का उपचार


बीज क्यारियों में बोने से पहले बीजों को 4 ग्राम/कि.ग्रा. के हिसाब से ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित किया जाना चाहिए। बीज क्यारियों में बोया जाता है। जिनका आकार 1 मी. x 3 मी. x 20 सें.मी. होना चाहिए। बीज की क्यारियों में गोबर की खाद 20 से 25 कि. ग्रा. तथा ट्राईकोडर्मा हरजियानम 4 ग्राम/किलोग्राम और कारंज (पोगमिया)/नीम की खली शामिल किए जाते हैं। बीजों को 1 प्रतिशत पंचगव्य के साथ 12 घंटों तक संसाधित करना अच्छा होता है। ऐसी 30 क्यारियों में 400 ग्राम बीज खुली परागित सामान्य किस्मों का तथा 200 ग्राम संकर किस्मों को बोया जाता है जिससे 1 हैक्टेयर | भूमि के लिए पौध तैयार होती है। पौध को टमाटर की तरह संसाधित करें।

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बीज दर और अन्तराल


बीज मात्रा

सामान्य किस्में 750-900 ग्राम/हे०शिमला मिर्च

  • संकर किस्में 200-250 ग्राम/हे०)

  • अन्तराल (खेत में)

  • पंक्ति से पंक्ति 60 सें.मी.

  • पौधे से पौध 45 सें.मी.

  • (नर्सरी में)

  • पंक्ति से पंक्ति 5 सें.मी.

  • पौधे से पौधे 2 सें.मी.

  • बीज बोने की गहराई 0.5 सें.मी. से 1.0 सें.मी.


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मृदा उर्वरक प्रबन्धन


फलीदार जैसी दलहनी परिवार की फसलों के साथ आवर्तन से मृदा में नाईट्रोजन की स्थिति समृद्ध होती है। खेत में तीन-चार बार हल चलाएं तथा प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा चलाएं जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए। खेत में 20 टन/हे० गोबर की खाद तथा 2 टन/हे० बी.डी. कम्पोस्ट या 15 टन/हे० वर्मी कम्पोस्ट तथा 2 टन/हे० बी.डी. कम्पोस्ट डालें।

सिंचाई व जल प्रबन्धन


प्रतिरोपण के तत्काल बाद, फूल आने पर और फल विकास की अवस्था में पानी की कमी नहीं आनी चाहिए। शुष्क मौसम के दौरान प्रतिरोपण के बाद पहले माह 3-4 दिन के अन्तराल पर सिंचाई और तदोपरांत फसल तैयार होने तक 7-10 दिन के अन्तराल पर जल निकासी पर ध्यान दें। खेतों में अधिक नमी से फसल खराब हो जाती है। इसलिए खेत में पानी खड़ा न होने दें।

खरपतवार प्रबन्धन


खरपतवार को नियन्त्रण में रखने के लिए फसल चक्र अपनाएं। हाथ द्वारा खरपतवार निकालने से मृदा ढीली हो जाती है जो मिट्टी को भुरभुरा बनाती है। रोपाई के 30-50 दिन तक खरपतवार न उगने दें। तीन-चार बार गुड़ाई के साथ खरपतवार निकाल दें।

बाजरा की खेती(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

पौध संरक्षण























































(अ)     कीट

 
कीट मक्खियां - 

तेले तथा थ्रिप्स पत्तों का रस चूसकर पौधे को हानि पहुंचाते हैं। तेला तथा मक्खियां कभी-कभी विषाणु रोग को भी फैलातीहैं।

रोकथाम

रस चूसने वाले कीटों की रोकथाम के लिए नीम तेल 3 मि.ली./लीटर पानी में अथवा वरटीसीलियम लेकेनाई 0.03 प्रतिशत घोल अथवा घनीरी अर्क 5 प्रतिशत का प्रयोग उपयुक्त होता है।

 
दीमक व टीड़े मकोड़े -ये निचले पर्वतीय क्षेत्रों के असिंचित इलाकों में अंकुरित पौधों को मार देते हैं।

रोकथाम -

फसल बिजाई के समय जमीन में नीम के पत्ते से तैयार की गई खाद (5 क्विंटल/हे०) या नीम के बीजों से तैयार खाद (1 क्विंटल/हे०) का प्रयोग करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है। चूना और गन्धक का मिश्रण जमीन में डालने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है। लकड़ी से प्राप्त राख को पौधों के तनों के मूल में डालने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है। पशू-मूत्र को पानी के साथ 1-6 अनुपात में मिलाकर बार-बार दीमक के घरों में डालने से इनके प्रसार को रोका जा सकता है। वीवेरिया या मोटाराईजियम फफूद का कण अवस्था में (6 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) प्रयोग करें।

 
(ब) बीमारियां
कमर तोड़ -बीज से पौध बनते ही मुरझा जाता है।

रोकथाम -

  • क्यारियों को पंचगव्य से उपचारित करें।

  • स्वस्थ बीज बोएं।

  • बीमारी के लक्षण आने पर वॉयोसोल और पंचगव्य को मिलाकर जमीन में डालें।


 
फल सड़न -फलों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे बन जाते हैं और फल पूर्णत- सड़ जाता है। ऐसे ही धब्बे पत्तों पर आते हैं और वह सड़ जाते हैं।

रोकथाम -

  • रोग मुक्त बीज व पौध लगायें।

  • सड़े फलों को एकत्र करके नष्ट करें।

  • वारडैक्स मिश्रण का छिड़काव करें।


 
चूर्ण आसिता रोग -रोग से प्रभावित पौधों पर फफूद की सफेद से मटमैली रूई की हल्की तह नजर आती है।

रोकथाम -

  • दूध में हींग मिलाकर (5 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें।

  • चूर्ण आसिता बीमारी के नियंत्रण के लिए 2 कि.ग्रा. हल्दी का चूर्ण तथा 8 कि. ग्रा. लकड़ी की राख का मिश्रण बनाकर पत्तों के ऊपर डालें।

  • अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाएं तथा 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़कने से चूर्ण आसिता तथा अन्य फफूद वाली बीमारियों का प्रकोप कम होता है।


सर्कोस्पोरा पत्तों का धब्बा -पत्तियों पर गोल-गोल धब्बे बन जाते हैं, जिनके किनारे भूरे रंग के साथ केन्द्र धुंधले रंग के होते हैं। पत्तियों पर जब काफी धब्बे बन जाते हैं तो ग्रस्त पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तथा समय से पहले जमीन पर गिर जाती हैं।

रोकथाम –

  • रोगी पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।

  • फसल चक्र अपनाएं।

  • खेतों में पानी निकास का उचित प्रबन्ध करें।

  • स्वस्थ बीज का प्रयोग करें।

  • बीज को बीजामृत और ट्राईकोडर्मा से उपचारित करें।


पाउडरी मिल्ड्यू -इस रोग के कारण पत्तों की निचली सतह पर सफेद-सफेद धब्बे बनते हैं तथा उनके

ऊपर फफूद चूर्ण के रूप में उभर आती है। जिसके अनुरूप पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे बनते हैं और प्रभावित पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं।

रोकथाम -

  • रोगग्रस्त पत्तों को इकट्ठा करके या जला दें या मिट्टी में दबा दें।

  • पौधों पर रोग के लक्षण देखते ही पंचगव्य का छिड़काव करें।


मिर्च का वेनल मौटल रोग -

 
रोगग्रस्त पौधों के पत्तों में गहरे हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और शिराओं के आसपास गहरे रंग के बिन्दु व पट्टियां बन जाती हैं। यह चितकबरे धब्बे कम उम्र के पौधों पर ज्यादा नजर आते हैं। रोगग्रस्त पत्ते आकार में छोटे तथा अलग- अलग तरह से विकृत हो जाते हैं। शुरू में ही रोगग्रस्त पौधे बौने दिखते हैं और उनके तने तथा शाखाओं पर गहरी हरे रंग की धारियां नजर आती हैं। उनके अधिकतम फूल फल बनने से पहले ही झड़ जाते हैं।

रोकथाम -

  • मक्की को अवरोधी फसल तथा अन्य फसलों के बीच में अन्तर फसल के रूप में लगाएं, जिससे रोगवाहक कीटों की संख्या में कमी आए।

  • अल्यूमीनियम या चांदीदार चमकदार पॉलीथिन चादर का प्रयोग करें जिससे एफिड संख्या घट जाए।

  • रोगग्रस्त पौधों से छुए हुए यंत्रों को रोग रहित पौधों के साथ न लगाएं।


मिर्च का मोजेक रोग -

 
पत्तों पर हरे और पीले रंग के धब्बे प्रकट हो जाते हैं और हल्के गड्ढे तथा फफोले भी दिखाई देते हैं। कभी-कभी पत्ती का आकार अति सूक्ष्म और सूत्राकार हो जाता है। रोगी पौधों में फूल और फल कम लगते हैं तथा फल खुरदुरे व विकृत हो जाते हैं।

रोकथाम -

  • यदि रोगग्रस्त पौधों की संख्या कम हो तो उन्हें उखाड़ कर दूर जाकर जला देना चाहिए या गड्ढे में दबा देना चाहिए।

  • एफिड की रोकथाम के लिए नीम तेल का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

  • फसल के चारों ओर व बीच-बीच में मक्की जैसी अवरोधी फसलें लगाएं।

  • एफिड संख्या को घटाने के लिए चमकदार सतह वाली पॉलीथिन की चादर को जमीन पर बिछाना चाहिए।


 
बीज उत्पादन -

 
बीज वाली फसल को सामान्य फसल की भांति ही लगाया जाता है। फसल का कम से कम तीन अवस्थाओं

(1) फूल आने से पूर्व

(2) फूल व फल आने के समय तथा

(3) फल पकने पर निरीक्षण करें और आवांछनीय पौधों व फलों को निकाल दें। दो जातियों के मध्य कम से कम 200 मीटर का अन्तर रखें क्योंकि यह फसल पर - परागित है।

बीज एकत्रित करने के लिए उचित पके फलों को दो भागों में काट लिया जाता है और बीज को निकालने के बाद छाया में सुखा लें।
बीज की उपज -75-100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर (6-8 कि.ग्रा. प्रति बीघा)






शिमला मिर्च

























































































हमारे देश मे उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों मे टमाटर एवं शिमला मिर्च (कैपसीकम एनम) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शिमला मिर्च को सामान्यता बेल पेपर भी कहा जाता है। इसमे विटामिन-सी एवं विटामिन -ए तथा खनिज लवण जैसे आयरन, पोटेशियम, ज़िंक, कैल्शियम इत्यादी पोषक तत्व प्रचुर मात्रा मे पाये जाते है। जिसके कारण अधिकतर बीमारियो से बचा जा सकता है।बदलती खाद्य शैली के कारण शिमला मिर्च की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है। शिमला मिर्च की खेती भारत मे लगभग 4780 हैक्टयर में की जाती है तथा वार्षिक उत्पादन 42230 टन प्रति वर्ष होता है।


उपज बढाने मे मध्यप्रदेश मे अभी काफी गुजाईश हैं। इसके लिए खेत की तैयारी, उन्नत संकर बीज का उपयोग, बीज उपचार, समय पर बुवाई, निर्धारित पौध संख्या, कीट और बीमारी का नियन्त्रण, निर्धारित मात्रा मे उर्वरको का उपयोग और समयपर सिंचाई आदि उपज बढाने मे विशेष भूमिका अदा करते है। टमाटर एवं शिमला मिर्च की खेती देशवासियो को भोजन तथा खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के अलावा रोजगार सजृन तथा विदेशी मुद्रा का भी अर्जन कराती है।



जलवायु और मृदा



दिन का तापमान 22 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड एवं रात्रीकालीन तापमान सामान्यतः 16 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड उत्तम रहता है।अधिक तापमान की वजह से फूल झडने लगते है एवं कम तापमान की वजह से परागकणो की जीवन उपयोगिता कम हो जाती है। सामान्यतः शिमला मिर्च की संरक्षित खेती पॉली हाउस मे कीटरोधी एवं शेड नेट लगाकर सफलतापूर्वक कर सकते है। शिमला मिर्च की खेती के लिए सामान्यतः बलुई दोमट मृदा उपयुक्त रहती है जिसमे अधिक मात्रा मे कार्बनिक पदार्थ मौजूद हो एवं जल निकासी अच्छी हो।
















पॉलीहाउस परिचय :-



पॉलीहाउस पारदर्शी आवरण से ढके हुए ऐसे ढांचे होते है जिनमे कम से कम आंशिक या पूर्णरूप से नियंत्रित वातावरण मे फसले पैदा की जाती है। पॉलीहाउस तकनीक का बे-मौसमी सब्जियाँ पैदा करने मे महत्वपूर्ण स्थान है। पॉलीहाउस की खेती के लिए सामान्यतः ऐसी फसलो का चयन किया जाता है। जिनका आयतन कम हो एवं अधिक मूल्यवान हो जैसे खीरा, टमाटर, शिमला मिर्च इत्यादि।


















भूमि की तैयारी



पौध रोपण के लिए मुख्य खेत को अच्छी तरह से 5-6 बार जुताई कर तैयार किया जाता है । गोबर की खाद या कम्पोस्ट अंतिम जुताई के पूर्व खेत मे अच्छी तरह से खेत मे मिला दिया जाना चाहिए। तत्पश्चात उठी हुई 90 सेमी चौडी क्यारियाँ बनाई जाती है । पौधों की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए। एक क्यारी पर पौधो की सामान्यतः दो कतार लगाते है।


किस्मों का चयन  :- प्रमुख किस्मेः कैलिफोर्निया वंडर, रायल वंडर, येलो वंडर, ग्रीन गोल्ड, भारत , अरका बसन्त, अरका गौरव , अरका मोहिनी, सिंजेटा इंडिया की इन्द्रा, बॉम्बी, लारियो एवं ओरोबेल, क्लॉज़ इंटरनेशनल सीडस की आशा, सेमिनीश की 1865, हीरा आदि किस्मे प्रचलित है।













बीज दर - सामान्य किस्म - 750-800 ग्राम एवं संकर शिमला - 200 से 250 ग्राम प्रति हैक्टयर रहती है



पौध तैयार करना



शिमला मिर्च के बीज मंहगे होने के कारण इसकी पौध प्रो-ट्रेज मे तैयार करनी चाहिए। इसके लिए अच्छे से उपचारित ट्रेज का उपयोग किया जाना चाहिए। ट्रेज मे मीडिया का मिश्रण जैसे वर्मीकुलाइट, परलाइट एवं कॉकोपीट 1:1:2 की दर से तैयार करना चाहिए एवं मीडिया को भली भांति ट्रेज मे भरकर प्रति सेल एक बीज डालकर उसके उपर हल्का मिश्रण डालकर झारे से हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो मल्च का उपयोग भी किया जा सकता है। एक हेक्टयर क्षेत्रफल मे 200-250 ग्राम संकर एवं 750-800 ग्राम सामान्य किस्म के बीज की आवश्यकता होती है।


रोपाई30 से 35 दिन मे शिमला मिर्च के पौध रोपाई योग्य हो जाते है। रोपाई के समय रोप की लम्बाई तकरीबन 16 से 20 सेमी एवं 4-6 पत्तियां होनी चाहिए। रोपाई के पूर्व रोप को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम मे डुबो कर पूर्व मे बनाए गए छेद मे लगाना चाहिए। पौधो की रोपाई अच्छी तरह से उठी हुई तैयार क्यारियाँ मे करनी चाहिए। क्यारियो की चौड़ाई सामान्यतः 90 सेमी रखनी चाहिए। पौधो की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए। एक क्यारी पर पौधों की सामान्यतः दो कतार लगाते है।


उर्वरक-25 टन /है. गोबर खाद एवं रासायनिक उर्वरक मे एनः पीः के: 250:150: एवं 150 किग्रा. / है.


सिंचाईगर्म मौसम मे 7 दिन तथा ठण्डे मौसम मे 10-15 दिन के अन्तराल पर। ड्रिप इरीगेशन की सुविधा उपलब्ध होने पर उर्वरक एवं सिंचाई (फर्टीगेशन) ड्रिप द्वारा ही करना चाहिए।


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खरपतवार नियंत्रण



शिमला मिर्च की 2 से 3 बार गुडाई करना आवश्यक है। अच्छी उपज के लिए 30 एवं 60 दिनो के बाद गुडाई करनी चाहिए। शिमला मिर्च मे अच्छी उपज के लिए मिट्टी चढाना आवश्यक है यह कार्य 30-40 दिन की अवस्था पर करना चाहिए। रासायनिक दवा के रूप मे खेत तैयार करते समय 2.22 लीटर की दर से फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन ) का छिडकाव कर खेत मे मिला देना चाहिए। या पेन्डीमिथेलिन 3.25 लीटर प्रति हैक्टयर की दर से रोपाई के 7 दिन के अंदर छिडकाव कर देना चाहिए।



वृद्धि नियंत्रक -



शिमला मिर्च की उपज बढाने के लिए ट्राइकोन्टानाॅल 1.25 पी.पी.एम (1.25 मिलीग्राम/लीटर पानी ) रोपाई के बाद 20 दिन की अवस्था से 20 दिन के अन्तराल पर 3से 4 बार करना चाहिए। इसी प्रकार एन.ए.ए. 10 पी.पी.एम (10 मिलीग्राम/लीटर पानी ) का 60 वे एवं 80 वे दिन छिडकाव करना चाहिए।



पौधों को सहारा देना -



शिमला मिर्च मे पौधो को प्लास्टिक या जूट की सूतली रोप से बांधकर उपर की और बढने दिया जाना चाहिए जिससे फल गिरे भी नही एवं फलो का आकार भी अच्छा हो। पौधो को सहारा देने से फल मिट्टी एवं पानी के सम्पर्क मे नही आ पाते जिससे फल सडने की समस्या नही होती है।



कीट एवं व्याधियां



शिमला मिर्च मे कीटो मे मुख्य तौर पर चेपा, सफेद मक्खी, थ्रिप्स , फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली एवं व्याधियों मे चूर्णी फफूंद, एन्थ्रेक्नोज, फ्यूजेरिया विल्ट, फल सडन एवं झुलसा का प्रकोप



समन्वित नाशीजीव प्रबंधन क्रियाएँ -



नर्सरी के समय
1. पौधशाला की क्यारियों भूमि धरातल से लगभग 10 सेमी ऊची होनी चाहिए।
2. क्यारियों को मार्च अप्रेल माह मे 0.45 मि.मी. मोटी पॉलीथिन शीट से ढकना चाहिए। भू-तपन के लिए मृदा मे पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
3. 3 किग्रा गोबर की खाद मे 150 ग्राम फफूंद नाशक ट्राइकोडर्मा मिलाकर 7 दिन तक रखकर 3 वर्गमीटर की क्यारी मे मिट्टी मे अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
4. पौधशाला की मिट्टी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिडकाव करे।


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मुख्य फसल
पौध रोपण के समय पौध की जडो को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी के घोल मे 10 मिनट तक डुबो कर रखे।
पौध रोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से 3 छिडकाव इमीडाक्लोप्रिड या एसीफेट के करे माइट की उपस्थिती होने पर ओमाइट का छिडकाव करे।
फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए इन्डोक्साकार्ब या प्रोफेनोफॉस का छिडकाव ब्याधि के उपचार के लिए बीजोपचार, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोज़ेब से करना चाहिए। खडी फसल मे रोग के लक्षण पाये जाने पर मेटालेक्सिल + मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का धोल बनाकर छिडकाव करे। चूर्णी फफूंद होने सल्फर घोल का छिडकाव करे।



फलों की तुड़ाई एवं उपज



शिमला मिर्च के फलो की तुडाई हमेशा पूरा रंग व आकार होने के बाद ही करनी चाहिए तथा तुडाई करते समय 2-3 से.मी. लम्बा डण्ठल फल के साथ छोडकर फल को पौधो से काटा जाना चाहिए। वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर संकर शिमला मिर्च की औसतन पैदावार 700-800 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है ।



शिमला मिर्च की प्रति हेक्टेयर कृषि लागत व्यय (रुपये में )




























































































































































विवरणमात्रा एवं दर प्रति इकाईखर्चा (रु.)
भूमि की तैयारी
जुताई की संख्या02, दर 500/- प्रति घंटा1000
मजदूरों की संख्या06, दर 150/-900
खाद एवं उर्वरक
गोबर की खाद 20 टन, 2 वर्ष में एक बार1000/-प्रति टन,20000
नत्रजन250 किलोग्राम दर 12.40/-3100
फास्फोरस150 किलोग्राम दर 32.70/-905
पोटाश (मृदा परीक्षण के अनुसार )150 किलोग्राम दर 19.88/-2982
मजदूरों की संख्या20, दर 150/-3000
पौधों को सहारा देना (स्टेकिंग)
बॉस एवं वायर31000
मजदूरों की संख्या40, दर 150/-6000
बीज की मात्रा200 ग्राम दर 800/10 ग्राम16000
बुवाई पर मजदूरों की संख्या15, दर 150/-2250
सिंचाई संख्या105000
मजदूर10 दर 150/-1500
Power tiller VST RT 65
निदाई मजदूरों की संख्या40 दर 150/-6000
फसल सुरक्षा
ट्राइजोफॉस
इमीडाक्लोप्रिड
एसीफेट
प्रोफेनोफॉस
मजदूरों की संख्या
2 बार, दर 450/-
2 बार, दर 200/-
2 बार, दर 160/-
2 बार, दर 500/-
16 दर 150/-
900/-
400/-
320/-
1000/-
2400/-
तुडाई (मजदूरों की संख्या )40 दर 150/-6000
कुल लागत114657
कुल आय (औसतन पैदावार 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर)700000
शुद्ध लाभ585343



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