छत पर खेती

छत पर खेती

छत पर खेती करने की तकनीक


 



छत पर क्या-क्या उगा सकते हैं?


छत पर आप फल, फूल और सब्जी आसानी से उगा सकते हैं. अगर आप नई तकनीक के सहारे खेती कर रहे हैं तो आपको पैदावार अच्छी होगी, जिसे आप बाजार में बेच सकते हैं. इसके साथ ही आप तरह-तरह के पौधों को उगाकर बेच सकते हैं.

छत पर खेती करने की तकनीक


आप सोच रहे होंगे कि छत पर खेती करने के लिए मिट्टी की जरूरत होगी तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से खेती करने के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती है. इसमें फल, सब्जी और फूल को पानी के माध्यम से उगाया जाता है. मिट्टी में उगाए गए फसलों के मुकाबले में इनमें अधिक पोषक तत्व होते हैं. साथ ही पैदावार तेजी से बढ़ती भी है और चार से पांच गुना अधिक उपज होती है.

अपने देश के किसान तेजी से इस तकनीक को अपना रहे हैं और अपनी कमाई बढ़ा रहे हैं. भारत में कुछ कंपनियां भी इस तकनीक से खेती करने वालों की मदद करती हैं. इन कंपनियों से आप उपज के लिए तैयर फ्रेम और टावर गार्डन खरीद सकते हैं. ऑनलाइन भी ये उपलब्ध हैं.

बढ़ रहा है छत पर खेती का प्रचलन


शहर में खेती के लिए जमीन तो न के बराबर ही हैं. गांवों में तेजी से निर्माण हो रहा है और खेती की जमीन में लोग मकान बनवा रहे हैं. ऐसे में जमीन कम होती जा रही है लेकिन फल और सब्जियों की मांग बढ़ती जा रही है. मांग पूरी करने के लिए आम लोग से लेकर खेती के कारोबार से जुड़े लोग भी छत पर खेती करना शुरू कर रहे हैं. हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से फसल जल्द तैयार हो जाती है, जिससे आप कमाई तो ज्यादा करते ही हैं, साथ ही आप बाजार की मांग को भी पूरा करने में सक्षम होते हैं.

अगर आप व्यवसाय के लिए छत पर खेती नहीं करना चाहते हैं तो आप अपने लिए ऑर्गेनिक और पोषण से भरपूर फल और सब्जियां उगा सकते हैं. यह आपके स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए लाभदायक साबित होगा.


इसमें फल, सब्जी और फूल को पानी के माध्यम से उगाया जाता है. मिट्टी में उगाए गए फसलों के मुकाबले में इनमें अधिक पोषक तत्व होते हैं. साथ ही पैदावार तेजी से बढ़ती भी है और चार से पांच गुना अधिक उपज होती है. अपने देश के किसान तेजी से इस तकनीक को अपना रहे हैं और अपनी कमाई बढ़ा रहे हैं.


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छत पर खेती








मकानों की अधिकतर छतें खाली रहती हैं। हम उन पर अलग-अलग तरह की जैविक सब्जियां उगा सकते हैं। ये हानिकारक रसायनों एवं कीटनाशकों से रहित होती हैं। वैज्ञानिक विधियां अपनाकर खेतों के बिना भी खेती की जा सकती है। घर की छोटी सी जगह में अपने परिवार की जरूरत के अनुसार खेती कर सकते हैं। इस प्रकार वर्षभर अच्छी व ताजी सब्जियां उपलब्ध हो सकती हैं, जो कि परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी सिद्ध होंगी। छोटी छत पर मृदा की जरूरत कम पड़ती है। इससे कम मृदा में भी छत पर सब्जियां उगाई जा सकती हैं। आजकल बाजार में बिकने वाली सब्जियां बासी होने के साथ-साथ रसायनयुक्त भी होती हैं। इनके सेवन से हमारे स्वास्थ्य पर बहुत खराब प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और रोग आसानी से लग जाते हैं।

मारे शरीर के लिए सब्जियों का बहुत महत्व है। ये विटामिन, खनिज लवण कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन आदि की अच्छी स्रोत होती हैं।प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 85 ग्राम फल एवं 300 ग्राम सब्जियों का सेवन करना चाहिए। इनमें लगभग 125 ग्राम हरी पत्तेदार, 100 ग्राम जड़ वाली एवं 75 ग्राम अन्य प्रकार की सब्जियां शामिल हैं। यह मात्रा वर्तमान में केवल 190 ग्राम ही उपलब्ध हो रही है, जो कि बहुत कम है। घरों की छत पर बनाए गए जैविक किचन गार्डन से शुद्ध एवं ताजी सब्जियां तथा फल आसानी से मिल सकते हैं।

घरों की छत पर मिट्टी, सीमेंट के  गमलों के साथ-साथ थर्मोकोल के अपशिष्टको भी गमलों के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इससे पर्यावरण भी सुरक्षित होगा तथा खेती के लिए जरूरी आधार भी मिल जाएगा। गमलों में मृदा एवं थर्मोकॉल के बॉक्स में कोकोपिट एवं कम्पोस्ट का मिश्रण जरूरत के अनुसार भर लेते हैं। कोकोपिट में जल अवशोषण की क्षमता मृदा की तुलना में अधिक होती है। इससे पौधे की वृद्धि अच्छी होती है। इस तरह से बॉक्स में मौसमी सब्जियों को आसानी से उगाया जा सकता है। इसमें जरूरत के अनुसार कोई भी पौधा लगा सकते हैं।

ड्रैगन फल(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

घरों की छत पर अनेक प्रकार  की सब्जियां जैसे-टमाटर, तोरई, लौकी, टिंडा, बैंगन, पुदीना, मिर्च, भिण्डी, बीन्स आदि और फलों में स्ट्रॉबेरी, पपीता, नीबू आदि को उगाया जा सकता है। इनके साथ-साथ काजू, अंजीर आदि पौधों को भी लगाया जा सकता है। ये बाजार में उपलब्ध मिलावटयुक्त सब्जियों व फलों की तुलना में शुद्ध, पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक होते हैं।पहले विभिन्न प्रकार की सब्जियों व फलों की पौध को बॉक्स में तैयार करते हैं। फिर इनका पौधरोपण करते हैं। सिंचाई आदि की व्यवस्था ड्रिप सिंचाई विधि से करते हैं। इससे जल और धन  की बचत होती है। समय-समय पर उसमें कम्पोस्ट खाद आदि मिला सकते हैं। इससे  रासायनिक खाद देने की आवश्यकता नहीं  पड़ती है।भारत में ग्रामवासी, सब्जियां बिना किसी रसायन व कीटनाशक के उगाते हैं। इससे रसायन व कीटनाशक पर होने वाला खर्च भी बच जाता है।Benefits and information of eating drumstick vegetable | सहजन की सब्जी खाने के फायदे और जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

जैविक किचन गार्डन से लाभ



  •  जैविक किचन गार्डन से तुलसी, पुदीना, मेथी, अजवायन, धनिया, गिलोय, लेमन ग्रास आदि को प्रतिदिन आवश्यकतानुसार प्राप्त किया जा सकता है।

  • आमतौर पर एक साधारण परिवार का एक माह में साग-सब्जियों पर लगभग एक हजार से दो हजार रुपये तक व्यय हो जाता है। अत: घर की छत पर बनाए गए जैविक किचन गार्डन में उगाई गई सब्जियों से धन की बचत होती है।

  • गर्मी के मौसम में जैविक किचन गार्डन । का होना बहुत ही फायदेमंद होता है। इस का पौधा मौसम में खरबूज, तरबूज की बेल व सब्जियों में करेला, पुदीना, खीरा आदि को लगाकर इनके फलों को सुगमतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। ये शरीर को शीतलता प्रदान कर गर्मी से राहत दिलाते हैं।

  • आमतौर पर गर्मी के मौसम में जैविक किचन गार्डन का होना बहुत ही फायदेमंद होता है। कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जो कीट आदि को भगाकर वातावरण को शुद्ध रखते हैं। इसके लिए किचन गार्डन में लेस्टेकिंग विधि से खेती के लिए सरकार से मिलेेगी 1.25 लाख रुपए की मदद(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)मन ग्रास, लैवेण्डर, मीठा नीम, रोजमेरी, तुलसी, और सिट्रोनेला आदि पौधे लगा सकते हैं।

  • घर की छत पर बने जैविक किचन गार्डन में सुबह-शाम निराई-गुड़ाई करके शारीरिक श्रम भी होता है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है एवं तनाव से राहत मिलती है।

  • जैविक किचन गार्डन में उगाई गई सब्जियों व फलों के सेवन से शरीर की रोगप्रतिरोधक शक्ति मजबूत होती है।











कीटों से बचाव


पौधों को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए जैविक कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। इससे छोटे-छोटे पौधों के कीटों को आसानी से मारा जा सकता है।

जैविक कीटनाशक

नीम का घोल


10 कि.ग्रा. नीम की पत्ती को 5 लीटर पानी में रातभर रखें। सुबह उबालकर छान लें। इस घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें। इसे माहूं के प्रकोप को रोकने के लिए प्रयोग किया जाता है।

गोमूत्र व नीम का मिश्रण


10 लीटर गोमूत्र में 1 कि.ग्रा. नीम की पत्ती मिलाकर 10 दिनों तक रखें। 10 दिनों के बाद मिश्रण को छान कर छिड़काव करें। इससे इल्ली की रोकथाम होती है।

गोमूत्र व निरगुण्डी


5 लीटर गोमूत्र, 1 लीटर निरगुण्डी का रस, 1 लीटर हींग का पानी, इन तीनों को 8 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से कीटों से रोकथाम होती है।

तम्बाकू, हीराकासी व नीबू का मिश्रण


एक कि.ग्रा. तम्बाकू, 300 ग्राम हीराकासी व 50 ग्राम नीबू का सत 2 लीटर पानी में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। इस तैयार मिश्रण में से 250 ग्राम घोल को 15 लीटर पानी में मिलाकर सुबह छिड़काव करें। इससे हरे रंग की इल्लियों के प्रकोप को रोका जा सकता है।

स्टेकिंग विधि से खेती के लिए सरकार से मिलेेगी 1.25 लाख रुपए की मदद(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

Benefits and information of eating drumstick vegetable | सहजन की सब्जी खाने के फायदे और जानकारी(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

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राइसबीन(नए ब्राउज़र टैब में खुलता है)

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