मूंगफली फसल उत्पादन तकनीक
मूंगफली की उन्नत खेती
- भूमि एवं उसकी तैयारी
- बीज एवं बुवाई
- खाद एवं उर्वरक
- नीम की खल का प्रयोग
- सिंचाई
- निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
- फसल चक्र
- रोग नियंत्रण
- कीट नियंत्रण
- सफेद लट
- बीज उत्पादन
- कटाई एवं गहाई
- उपज एवं आर्थिक लाभ
मूंगफली भारत की मुखय महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है। राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हैक्टर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है। इसकी औसत उपज 1963 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (2010-11) है । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अधीनस्थ अनुसंधानों संस्थानों, एवं कृषि विश्वविद्यालयों ने मूंगफली की उन्नत तकनीकियाँ जैसे उन्नत किस्में, रोग नियंत्रण, निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण आदि विकसित की हैं जिनका विवरण नीचे दिया गया हैं।
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भूमि एवं उसकी तैयारी
मूंगफली की खेती के लिये अच्छे जल निकास वाली, भुरभुरी दोमट व बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। मिट्टी पलटने वाले हल तथा बाद में कल्टीवेटर से दो जुताई करके खेत को पाटा लगाकर समतल कर लेना चाहिए।जमीन में दीमक व विभिन्न प्रकार के कीड़ों से फसल के बचाव हेतु क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से अंतिम जुताई के साथ जमीन में मिला देना चाहिए।
बीज एवं बुवाई
मूंगफली की बुवाई प्रायः मानसून शुरू होने के साथ ही हो जाती है। उत्तर भारत में यह समय सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य का होता है। कम फैलने वाली किस्मों के लिये बीज की मात्रा 75-80 कि.ग्राम. प्रति हेक्टर एवं फैलने वाली किस्मों के लिये 60-70 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर उपयोग में लेना चाहिए बुवाई के बीज निकालने के लिये स्वस्थ फलियों का चयन करना चाहिए या उनका प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। बोने से 10-15 दिन पहले गिरी को फलियों से अलग कर लेना चाहिए। बीज को बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है तथा प्रारम्भिक अवस्था में लगने वाले विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है। दीमक और सफेद लट से बचाव के लिये क्लोरोपायरिफास (20 ई.सी.) का 12.50 मि.ली. प्रति किलो बीज का उपचार बुवाई से पहले कर लेना चाहिए। मूंगफली को कतार में बोना चाहिए। गुच्छे वाली/कम फैलने वाली किस्मों के लिये कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. तथा फैलने वाली किस्मों के लिये 45 से.मी.रखें। पौधों से पौधों की दूरी 15 से. मी. रखनी चाहिए। बुवाई हल के पीछे, हाथ से या सीडड्रिल द्वारा की जा सकती है। भूमि की किस्म एवं नमी की मात्रा के अनुसार बीज जमीन में 5-6 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
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खाद एवं उर्वरक
उर्वरकों का प्रयोग भूमि की किस्म, उसकी उर्वराशक्ति, मूंगफली की किस्म, सिंचाई की सुविधा आदि के अनुसार होता है। मूंगफली दलहन परिवार की तिलहनी फसल होने के नाते इसको सामान्य रूप से नाइट्रोजनधारी उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी हल्की मिट्टी में शुरूआत की बढ़वार के लिये 15-20 किग्रा नाइट्रोजन तथा 50-60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर के हिसाब से देना लाभप्रद होता है। उर्वरकों की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय ही भूमि में मिला देना चाहिए। यदि कम्पोस्ट या गोबर की खाद उपलब्ध हो तो उसे बुवाई के 20-25 दिन पहले 5 से 10 टन प्रति हैक्टर खेत मे बिखेर कर अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। अधिक उत्पादन के लिए अंतिम जुताई से पूर्व भूमि में 250 कि.ग्रा.जिप्सम प्रति हैक्टर के हिसाब से मिला देना चाहिए।
नीम की खल का प्रयोग
नीम की खल के प्रयोग का मूंगफली के उत्पादन में अच्छा प्रभाव पड़ता है। अंतिम जुताई के समय 400 कि.ग्रा. नीम खल प्रति हैक्टर के हिसाब से देना चाहिए। नीम की खल से दीमक का नियंत्रण हो जाता है तथा पौधों को नत्रजन तत्वों की पूर्ति हो जाती है। नीम की खल के प्रयोग से 16 से 18 प्रतिशत तक की उपज में वृद्धि, तथा दाना मोटा होने के कारण तेल प्रतिशत में भी वृद्धि हो जाती है। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों में अधिक उत्पादन के लिए जिप्सम भी प्रयोग में लेते हैं।
सिंचाई
मूंगफली खरीफ फसल होने के कारण इसमें सिंचाई की प्रायः आवश्यकता नहीं पड़ती। सिंचाई देना सामान्य रूप से वर्षा के वितरण पर निर्भर करता हैं फसल की बुवाई यदि जल्दी करनी हो तो एक पलेवा की आवश्यकता पड़ती है। यदि पौधों में फूल आते समय सूखे की स्थिति हो तो उस समय सिंचाई करना आवश्यक होता है। फलियों के विकास एवं गिरी बनने के समय भी भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। जिससे फलियाँ बड़ी तथा खूब भरी हुई बनें। अतः वर्षा की मात्रा के अनुरूप सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है।
मूंगफली की फलियों का विकास जमीन के अन्दर होता है। अतः खेत में बहुत समय तक पानी भराव रहने पर फलियों के विकास तथा उपज पर बुरा असर पड़ सकता है। अतः बुवाई के समय यदि खेत समतल न हो तो बीच-बीच में कुछ मीटर की दूरी पर हल्की नालियाँ बना देना चाहिए। जिससे वर्षा का पानी खेत में बीच में नहीं रूक पाये और अनावश्यक अतिरिक्त जल वर्षा होते ही बाहर निकल जाए।
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
निराई गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण का इस फसल के उत्पादन में बड़ा ही महत्त्व है। मूंगफली के पौधे छोटे होते हैं। अतः वर्षा के मौसम में सामान्य रूप से खरपतवार से ढक जाते हैं। ये खरपतवार पौधों को बढ़ने नहीं देते। खरपतवारों से बचने के लिये कम से कम दो बार निराई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। पहली बार फूल आने के समय दूसरी बार 2-3 सप्ताह बाद जबकि पेग (नस्से) जमीन में जाने लगते हैं। इसके बाद निराई गुड़ाई नहीं करनी चाहिए। जिन खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या हो तो बुवाई के 2 दिन बाद तक पेन्डीमेथालिन नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर छिड़काव कर देना चाहिए।
फसल चक्र
असिंचित क्षेत्रों में सामान्य रूप से फैलने वाली किस्में ही उगाई जाती हैं जो प्रायः देर से तैयार होती है। ऐसी दशा में सामान्य रूप से एक फसल ली जाती है। परन्तु गुच्छेदार तथा शीघ्र पकने वाली किस्मों के उपयोग करने पर अब साथ में दो फसलों का उगाया जाना ज्यादा संभव हो रहा है। सिंचित क्षेत्रों में सिंचाई करके जल्दी बोई गई फसल के बाद गेहूँ की खासकर देरी से बोई जाने वाली किस्में उगाई जा सकती हैं।
रोग नियंत्रण
उगते हुए बीज का सड़न रोगः कुछ रोग उत्पन्न करने वाले कवक (एर्र्स्पर्जिलस नाइजर, एर्र्स्पर्जिलस फ्लेवस आदि) जब बीज उगने लगता है उस समय इस पर आक्रमण करते हैं। इससे बीज पत्रों, बीज पत्राधरों एवं तनों पर गोल हल्के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। बाद में ये धब्बे मुलायम हो जाते हैं तथा पौधे सड़ने लगते हैं और फिर सड़कर गिर जाते हैं। फलस्वरूप खेत में पौधों की संखया बहुत कम हो जाती है और जगह-जगह खेत खाली हो जाता है। खेत में पौधों की भरपूर संखया के लिए सामान्य रूप से मूंगफली के प्रमाणित बीजों को बोना चाहिए। अपने बीजों को बोने से पहले 2.5 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर लेना चाहि।
रोजेट रोग
रोजेट (गुच्छरोग) मूंगफली का एक विषाणु (वाइरस) जनित रोग है इसके प्रभाव से पौधे अति बौने रह जाते हैं साथ पत्तियों में ऊतकों का रंग पीला पड़ना प्रारम्भ हो जाता है। यह रोग सामान्य रूप से विषाणु फैलाने वाली माहूँ से फैलता है अतः इस रोग को फैलने से रोकने के लिए पौधों को जैसे ही खेत में दिखाई दें, उखाड़कर फेंक देना चाहिए। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 3 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए।
टिक्का रोग
यह इस फसल का बड़ा भयंकर रोग है। आरम्भ में पौधे के नीचे वाली पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे रंग के छोटे-छोटे गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं ये धब्बे बाद में ऊपर की पत्तियों तथा तनों पर भी फैल जाते हैं। संक्रमण की उग्र अवस्था में पत्तियाँ सूखकर झड़ जाती हैं तथा केवल तने ही शेष रह जाते हैं। इससे फसल की पैदावार काफी हद तक घट जाती है। यह बीमारी सर्कोस्पोरा परसोनेटा या सर्केास्पोरा अरैडिकोला नामक कवक द्वारा उत्पन्न होती है। भूमि में जो रोगग्रसित पौधों के अवशेष रह जाते हैं उनसे यह अगले साल भी फैल जाती है इसकी रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 को 2 किलोग्राम एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से दस दिनों के अन्तर पर दो-तीन छिड़काव करने चाहिए।
कीट नियंत्रण
रोमिल इल्ली
रोमिन इल्ली पत्तियों को खाकर पौधों को अंगविहीन कर देता है। पूर्ण विकसित इल्लियों पर घने भूरे बाल होते हैं। यदि इसका आक्रमण शुरू होते ही इनकी रोकथाम न की जाय तो इनसे फसल की बहुत बड़ी क्षति हो सकती है। इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक है कि खेत में इस कीडे़ के दिखते ही जगह-जगह पर बन रहे इसके अण्डों या छोटे-छोटे इल्लियों से लद रहे पौधों या पत्तियों को काटकर या तो जमीन में दबा दिया जाय या फिर उन्हें घास-फॅूंस के साथ जला दिया जाय। इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफास 1 लीटर कीटनाशी दवा को 700-800 लीटर पानी में घोल बना प्रति हैक्टर छिड़काव करना चाहिए।
मूंगफली की माहु
सामान्य रूप से छोटे-छोटे भूरे रंग के कीडे़ होते हैं। तथा बहुत बड़ी संखया में एकत्र होकर पौधों के रस को चूसते हैं। साथ ही वाइरस जनित रोग के फैलाने में सहायक भी होती है। इसके नियंत्रण के लिए इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए
लीफ माइनर
लीफ माइनर के प्रकोप होने पर पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं। इसके गिडार पत्तियों में अन्दर ही अन्दर हरे भाग को खाते रहते हैं और पत्तियों पर सफेद धारियॉं सी बन जाती हैं। इसका प्यूपा भूरे लाल रंग का होता है इससे फसल की काफी हानि हो सकती हैं। मादा कीट छोटे तथा चमकीले रंग के होते हैं मुलायम तनों पर अण्डा देती है। इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोल छिड़काव कर देना चाहिए।
सफेद लट
मूंगफली को बहुत ही क्षति पहुँचाने वाला कीट है। यह बहुभोजी कीट है इस कीट की ग्रव अवस्था ही फसल को काफी नुकसान पहुँचाती है। लट मुखय रूप से जड़ों एवं पत्तियों को खाते हैं जिसके फलस्वरूप पौधे सूख जाते हैं। मादा कीट मई-जून के महीनें में जमीन के अन्दर अण्डे देती है। इनमें से 8-10 दिनों के बाद लट निकल आते हैं। और इस अवस्था में जुलाई से सितम्बर-अक्टूबर तक बने रहते हैं। शीतकाल में लट जमीन में नीचे चले जाते हैं और प्यूपा फिर गर्मी व बरसात के साथ ऊपर आने लगते हैं। क्लोरोपायरिफास से बीजोपचार प्रारंभिक अवस्था में पौधों को सफेद लट से बचाता है। अधिक प्रकोप होने पर खेत में क्लोरोपायरिफास का प्रयोग करें । इसकी रोकथाम फोरेट की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हैक्टर खेत में बुवाई से पहले भुरका कर की जा सकती है।
बीज उत्पादन
मूंगफली का बीज उत्पादन हेतु खेत का चयन महत्त्वपूर्ण होता है। मूंगफली के लिये ऐसे खेत चुनना चाहिए जिसमें लगातार 2-3 वर्षो से मूगंफली की खेती नहीं की गई हो भूमि में जल का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। मूंगफली के बीज उत्पादन हेतु चुने गये खेत के चारों तरफ 15-20 मीटर तक की दूरी पर मूंगफली की फसल नहीं होनी चाहिए। बीज उत्पादन के लिये सभी आवश्यक कृषि क्रियायें जैसे खेत की तैयारी, बुवाई के लिये अच्छा बीज, उन्नत विधि द्वारा बुवाई, खाद एवं उर्वरकों का उचित प्रयोग, खरपतवारों एवं कीडे़ एवं बीमारियों का उचित नियंत्रण आवश्यक है। अवांछनीय पौधों की फूल बनने से पहले एवं फसल की कटाई के पहले निकालना आवश्यक है। फसल जब अच्छी तरह पक जाय तो खेत के चारों ओर का लगभग 10 मीटर स्थान छोड़कर फसल काट लेनी चाहिए तथा सुखा लेनी चाहिए। दानों में 8-10 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए। मूंगफली को ग्रेडिंग करने के बाद उसे कीट एवं कवक नाशी रसायनों से उपचारित करके बोरों में भर लेना चाहिए। इस प्रकार उत्पादित बीज को अगले वर्ष की बुवाई के लिये उपयोग में लिया जा सकता है।
कटाई एवं गहाई
सामान्य रूप से जब पौधे पीले रंग के हो जायें तथा अधिकांश नीचे की पत्तियॉं गिरने लगे तो तुरंत कटाई कर लेनी चाहिए। फलियों को पौधों से अलग करने के पूर्व उन्हें लगभग एक सप्ताह तक अच्छी प्रकार सुखा लेना चाहिए। फलियों को तब तक सुखाना चाहिए जब तक उनमें नमी की मात्रा 10 प्रतिशत तक न हो जायें क्योंकि अधिक नमी वाली फलियों को भंडारित करने पर उस पर बीमारियों का खासकर सफेद फंफूदी का प्रकोप हो सकता है।
उपज एवं आर्थिक लाभ
उन्नत विधियों के उपयोग करने पर मूंगफली की सिंचित क्षेत्रों में औसत उपज 20-25 क्विण्टल प्रति हेक्टर प्राप्त की जा सकती है। इसकी खेती में लगभग 25-30 हजार रुपये प्रति हेक्टर का खर्चा आता हैं। मूंगफली का भाव 30 रुपये प्रतिकिलो रहने पर 35 से 40 हजार रुपये प्रति हेक्टर का शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
मूंगफली की खेती
मूंगफली की खेती सालभर की जा सकती है, लेकिन खरीफ सीजन की फसल के लिए जून महीने के दूसरे पखवाड़े तक इसकी बुवाई की जा सकती है. मूंगफली की फसल उगाने के लिए खेत की तीन से चार बार जुताई करनी चाहिए. इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई सही होती है. मूंगफली के खेत में नमी बनाए रखने के लिए जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी है
मूंगफल में तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखनें वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
उन्नत किस्में
किस्म | अवधि (दिन) | उपज (क्विं/हैक्टर) | विमोचन वर्ष |
जे.जी.एन.-3 | 100-105 | 15-20 | 1999 |
जे.जी.एन.-23 | 90-95 | 15-20 | 2009 |
टी.जी.- 37ए. | 100-105 | 18-20 | 2004 |
जे.एल.- 501 | 105-110 | 20-25 | 2010 |
जी.जी.-20 | 100-110 | 20-25 | 1992 |
मृदा एवं भूमि की तैयारी –
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।
भूमि उपचार –
मूंगफली फसल में मुख्यतः सफेद लट एंव दीमक का प्रकोप होता है। इसलिए भूमि में आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करते है। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलो के डण्ठल आदि को खेत से हटाना चाहिए और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालना चाहिए। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन –
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए।
मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन,फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग आधार खाद के रूप में प्रयोग करने से उपज में 22 प्रतिशत वृद्धि प्रक्षेत्र परीक्षण व अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में पायी गयी है।
समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
यूरिया, | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
43 | 375 | 33 |
समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
डी.ए.पी. | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
109 | 63 | 33 |
बीजदर-
मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है।
बीजोपचार-
बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
बुवाई एवं बुवाई की विधि –
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए।
फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। बीज की बुवाई ब्रोड बेंड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण-
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करना चाहिए।
रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।
सिंचाई प्रबंधन –
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाऐं क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कीटों की रोकथाम-
सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।
दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
रोगों की रोकथाम-
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें।
रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
खुदाई एवं भण्डारण –
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें। मूंगफली खुदाई में श्रमह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है।
मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए –
- उपयुक्त नमीं होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकाले।
- मूंगफली को भूमि से उखाड़ने के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर फलियाँ हमेंशा धूप की तरफ होना चाहिए।
- पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड़ 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
- भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगो से सुरक्षा रखें, जिससे भंण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
मूंगफली की खेती का आर्थिक विश्लेषण
क्र. | विवरण | मात्रा एवं दर प्रति हैक्ट. | लागत (रु) |
1. | भूमि की तैयारी | ||
क | जुताई की संख्या – 03 | @400रु/घंटा, 2 घंटा /हेक्टर | 2400 |
2. | खाद और उर्वरक | ||
क | उर्वरक गोबर की खाद | 10 टन/हे./ 400रु/टन | 4000 |
अ | नत्रजन | 20 X 12.5 | 300 |
ब | फास्फरस | 60 X32.5 | 1950 |
स | पोटाश | 20X20 | 400 |
ख | मजदूरो की संख्या | 3 पर 200रु/मजदूर | 600 |
3. | बीज एवं बुआई | ||
क | क बीज की मात्रा | 150 किग्रा @ 60 रु/किग्रा | 9000 |
ख | बीज उपचार | ||
अ | कार्बोक्सिम + थिरम | 188 ग्राम/किग्रा @1.8/gm. | 338 |
ब | राइपोबियम | 5 ग्राम/किग्रा @20/100gm. | 40 |
स | पी.एस.बी. | 5 ग्राम/किग्रा @20gm. | 40 |
ग | बुआई का खर्च | 2 घंटा /हेक्टर @400रु/ घंटा | 800 |
घ | मजदूरो की संख्या | 4 पर 250रु/मजदूर | 1000 |
4. | निंदाई/खरपतवार | ||
क | इमेजाथापर | 750 ग्रा. | 1300 |
ख | निंदाई – मजदूरी 1 | 50 @ 200 रु/ मजदूर | 10000 |
5. | फसल सुरक्षा | ||
क | ट्रायजोफास (2 बार) | 800 मिली/हेक्टर (1.5 लीटर) | 800 |
ख | कार्बेडाजिम + मैंकोजेब | 1 किग्रा. | 900 |
6. | खुदाई/तुड़ाई | ||
क | मजदूरो की संख्या | 40 मजदूर / 200रु/ मजदूर | 8000 |
7 | कुल खर्च | 41868 | |
8 | उपज | 20 क्विंटल / हेक्टर / 5000 रु/ क्विं | 100000 |
9 | शुद्ध लाभ | 58132 | |
10 | लागत: लाभ | 2.38\ |
मूंगफली फसल उत्पादन तकनीक
- परिचय
- मूंगफली की उन्नत किस्में
- मृदा एवं भूमि की तैयारी
- भूमि उपचार
- खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
- समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
- समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
- बीजदर
- बीजोपचार
- बुवाई एवं बुवाई की विधि
- निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
- सिंचाई प्रबंधन
- कीटों की रोकथाम
- रोगों की रोकथाम
- खुदाई एवं भण्डारण
- अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए
- मूंगफली की खेती का आर्थिक विश्लेषण
परिचय
म.प्र. में मूंगफली प्रमुख रूप से शिवपुरी, छिंदवाड़ा, बड़वानी, टीकमगढ, झाबुआ, खरगोन जिलों में लगभग 220 हजार हैक्टेयर

मूंगफल में तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे मानव शरीर को स्वस्थ रखनें वाले खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
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मूंगफली की उन्नत किस्में
किस्म | अवधि (दिन) | उपज (क्विं/हैक्टर) | विमोचन वर्ष |
जे.जी.एन.-3 | 100-105 | 15-20 | 1999 |
जे.जी.एन.-23 | 90-95 | 15-20 | 2009 |
टी.जी.- 37ए. | 100-105 | 18-20 | 2004 |
जे.एल.- 501 | 105-110 | 20-25 | 2010 |
जी.जी.-20 | 100-110 | 20-25 | 1992 |
मृदा एवं भूमि की तैयारी
मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है फिर भी इसकी अच्छी तैयारी हेतु जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।
भूमि उपचार
मूंगफली फसल में मुख्यतः सफेद लट एंव दीमक का प्रकोप होता है। इसलिए भूमि में आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित करते है। दीमक का प्रकोप कम करने के लिये खेत की पूरी सफाई जैसे पूर्व फसलो के डण्ठल आदि को खेत से हटाना चाहिए और कच्ची गोबर की खाद खेत में नहीं डालना चाहिए। जिन क्षेत्रों में उकठा रोग की समस्या हो वहाँ 50 कि.ग्रा. सड़े गोबर में 2 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदनाशी को मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में मिला देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
मिट्टी परीक्षण के आधार पर की गयी सिफारिशों के अनुसार ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित की जानी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। मूंगफली में गंधक का विशेष महत्व है अतः गंधक पूर्ति का सस्ता स्त्रोत जिप्सम है। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन,फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग आधार खाद के रूप में प्रयोग करने से उपज में 22 प्रतिशत वृद्धि प्रक्षेत्र परीक्षण व अग्रिम पंक्ति प्रदर्शनों में पायी गयी है।
समूह-1 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
यूरिया | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
43 | 375 | 33 |
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समूह-2 (मात्रा-कि.ग्रा. प्रति हैक्टर)
डी.ए.पी. | सु.फा. | म्यू.पोटाश |
109 | 63 | 33 |
बीजदर
मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. एवं फैलने व अर्द्ध फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज (दाने) प्रति हैक्टर प्रयोग उत्तम पाया गया है।
बीजोपचार
बीजोपचार कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. बीज को उपचार करना चाहिए। बुवाई पहले राइजोबियम एवं फास्फोरस घोलक जीवाणु (पी.एस.बी.) से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के मान से उपचार करें। जैव उर्वरकों से उपचार करने से मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
बुवाई एवं बुवाई की विधि
मूंगफली की बुवाई जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। विस्तार और अर्धविस्तारी किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए। मूंगफली फसल की बोनी को रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से किया जाना लाभप्रद रहता है। बीज की बुवाई ब्रोड बेंड पद्धति से करने पर उपज का अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस पद्धति में मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है। इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवारों का नियंत्रण व फसल की देखरेख सही हो जाने के कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये कम से कम एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है। और मिट्टी चढ़ाने का कार्य स्वतः हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है। यह कार्य कोल्पा या हस्तचलित व्हील हो से करना चाहिए। रसायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण हेतु पेण्डीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत 750 ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई के 3 दिन के अंदर प्रयोग कर सकते है या खडी फसल में इमेजाथापर 100 मि.ली. सक्रिय तत्व को 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर बोनी के 15-20 दिन बाद प्रयोग कर सकते हैं। साथ ही एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 30-35 दिन बाद अवश्य करें जो तंतु (पेगिंग) प्रक्रिया में लाभकारी होती है।
सिंचाई प्रबंधन
मूंगफली वर्षा आधारित फसल है अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। मूंगफली की फसल में 4 वृद्धि अवस्थाऐं क्रमशः प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई के प्रति अति संवेदनशील है। खेत में अवश्यकता से अधिक जल को तुरंत बाहर निकाल देना चाहिए अन्यथा वृद्धि व उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कीटों की रोकथाम
- सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक प्रमुख है। सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुवाई के पूर्व फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से खेत में डालें।
- दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करें।
- रस चूसक कीटों (माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी) के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. के मान से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रयोग करें।
- पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
रोगों की रोकथाम
मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है। टिक्का के लक्षण दिखते ही इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतर पर पुनः करें।
रोजेट वायरस जनित रोग हैं, इसके फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
खुदाई एवं भण्डारण
जब पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाये तथा बीज खोल रंगीन हो जाये तो खेत में हल्की सिंचाई कर खुदाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें। मूंगफली खुदाई में श्रमह्रास कम करने के लिए यांत्रिक ग्राउण्डनट डिगर उपयोगी है।
मूंगफली में उचित भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं होना चाहिए। अन्यथा नमीं अधिक होने पर मूंगफली में एस्परजिलस प्लेक्स फफूंद द्वारा एफलाटाक्सिन नामक विषैला तत्व पैदा हो जाता है जो मानव व पशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। यदि मूंगफली को तेज धूप में सुखाये तो अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।
अंकुरण क्षमता को बनाये रखने के लिए
- उपयुक्त नमीं होने पर ही मूंगफली को जमीन से निकाले।
- मूंगफली को भूमि से उखाड़ने के बाद इसके पौधों को उल्टा करके, छोटे-छोटे गट्ठर बनाकर फलियाँ हमेंशा धूप की तरफ होना चाहिए।
- पूर्णतया सूखी फलियों को हवादार स्थान में भण्डारित करना चाहिए। जहाँ पर नमीं ग्रहण नहीं कर सकें या फिर प्रत्येक बोरे में कैल्शियम क्लोराइड़ 300 ग्राम प्रति 40 कि.ग्रा. बीज की दर से भंडारण करें।
- भण्डारण के समय हानि पहुँचाने वाले कीट पतंगो से सुरक्षा रखें, जिससे भंण्डारण के समय फलियाँ खराब नहीं हो।
मूंगफली की खेती का आर्थिक विश्लेषण
क्र. | विवरण | मात्रा एवं दर प्रति हैक्ट. | लागत (रु) |
1.भूमि की तैयारी | |||
क | जुताई की संख्या - 03 | @400रु/घंटा, 2 घंटा /हेक्टर | 2400 |
2. खाद और उर्वरक | |||
क | उर्वरक गोबर की खाद | 10 टन/हे./ 400रु/टन | 4000 |
अ | नत्रजन | 20 X 12.5 | 300 |
ब | फास्फरस | 60 X32.5 | 1950 |
स | पोटाश | 20X20 | 400 |
ख | मजदूरो की संख्या | 3 पर 200रु/मजदूर | 600 |
3. बीज एवं बुआई | |||
क | क बीज की मात्रा | 150 किग्रा @ 60 रु/किग्रा | 9000 |
ख | बीज उपचार | ||
अ | कार्बोक्सिम + थिरम | 188 ग्राम/किग्रा @1.8/gm. | 338 |
ब | राइपोबियम | 5 ग्राम/किग्रा @20/100gm. | 40 |
स | पी.एस.बी. | 5 ग्राम/किग्रा @20gm. | 40 |
ग | बुआई का खर्च | 2 घंटा /हेक्टर @400रु/ घंटा | 800 |
घ | मजदूरो की संख्या | 4 पर 250रु/मजदूर | 1000 |
4. निंदाई/खरपतवार | |||
क | इमेजाथापर | 750 ग्रा. | 1300 |
ख | निंदाई - मजदूरी 1 | 50 @ 200 रु/ मजदूर | 10000 |
5. फसल सुरक्षा | |||
क | ट्रायजोफास (2 बार) | 800 मिली/हेक्टर (1.5 लीटर) | 800 |
ख | कार्बेडाजिम + मैंकोजेब | 1 किग्रा. | 900 |
6.खुदाई/तुड़ाई | |||
क | मजदूरो की संख्या | 40 मजदूर / 200रु/ मजदूर | 8000 |
7 | कुल खर्च | 41868 | |
8 | उपज | 20 क्विंटल / हेक्टर / 5000 रु/ क्विं | 100000 |
9 | शुद्ध लाभ | 58132 | |
10 | लागत: लाभ | 2.38 |
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